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Sunday, December 23, 2012

वाजपेयी के जन्म दिवस पर वाजपेयी की शुभ कामनाएँ

                         सादर शुभ कामनाएँ 

रखना सुरक्षित है जीवन इस व्यस्तता में 

                   राष्ट्र की धरोहर इस अमिट निशानी को। 

त्याग के तागों से निर्मित कलेवर यह 

                     अमर बना रहे ये सत्य कवि वाणी हो।। 

ईश्वर प्रसन्न वा निरोग रखे आपको 

                    अटल! तुम्हारी अमितायु जिंदगानी हो ।

गरिमामय जीवन सदैव रहे आपका 

                      अंत में कलंक मुक्त मंजुल कहानी हो।।

 

कामना हमारी है ये कुशल रहो सदैव 

                           ईश्वर कृपा करे जो सबका सहारा है।

देश ने प्रसाशकों  के घृणित घोटाले देख 

                     आपसे व्रती को आर्त हो कर पुकारा है ।।

भूल मत जाना तुम भूषण हो भारत के

                       मातृभूमि के लिए ही जीवन सँवारा है ।

अटल !अटल सदैव जीवन तुम्हारा रहे 

                    भारतीय वसुंधरा पे सब का दुलारा है ।। 

                                         

                                         डा.शेष नारायण वाजपेयी

जन जन के दुलारे अटलजी के जन्म दिवस पर


                         सादर शुभ कामनाएँ 


रखना सुरक्षित है जीवन इस व्यस्तता में 

                   राष्ट्र की धरोहर इस अमिट निशानी को। 

त्याग के तागों से निर्मित कलेवर यह 

                     अमर बना रहे ये सत्य कवि वाणी हो।। 

ईश्वर प्रसन्न वा निरोग रखे आपको 

                    अटल! तुम्हारी अमितायु जिंदगानी हो ।

गरिमामय जीवन सदैव रहे आपका 

                      अंत में कलंक मुक्त मंजुल कहानी हो।।

 

कामना हमारी है ये कुशल रहो सदैव 

                           ईश्वर कृपा करे जो सबका सहारा है।

देश ने प्रसाशकों  के घृणित घोटाले देख 

                     आपसे व्रती को आर्त हो कर पुकारा है ।।

भूल मत जाना तुम भूषण हो भारत के

                       मातृभूमि के लिए ही जीवन सँवारा है ।

अटल !अटल सदैव जीवन तुम्हारा रहे 

                    भारतीय वसुंधरा पे सब का दुलारा है ।। 

                                         

                                         डा.शेष नारायण वाजपेयी 

Saturday, December 22, 2012

ज्योतिष विद्या के साथ मजाक है लाल किताब,इसका ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं है !

इसमें गोदान तक को रोका गया है और कुत्ता पालना तक सिखाया गया है !ऐसी धर्म विरोधी लाल पीली किताबें ज्योतिष कैसे हो सकती हैं ? 

  अनंत काल से चली आ  रही  दान की अवधारणा  को भी लाल किताब में रोका गया है । 

       "आखिर क्या है लालकिताब? ज्‍योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्‍योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्‍योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बाँटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएँ। आकाशीय घटनाओं की पुख्‍ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्‍ययन ज्‍योतिष का फलित हिस्‍सा है।"

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ  नहीं है।वस्तुतः इस ग्रन्थ का कोई प्रमाणिक ऐसा अभी तक सामने नहीं आ पाया है जिससे ज्योतिष की प्राचीन प्रमाणित विधा से इसका कोई सम्बन्ध सिद्ध हो सके इसी लिए प्राचीन  ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने इसे कभी महत्व नहीं दिया न केवल इतना अपितु इस विधा से जुड़ा कोई प्रमाणित विद्वान् इसे किसी सभा में सिद्ध ही कर सका कि ये कितना प्रमाणित एवं विश्वसनीय ग्रन्थ है।इसी लिए इसे संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष पाठ्य क्रमों में भी सम्मिलित नहीं किया जा सका है।

   वस्तुतः प्राचीन ज्योतिष वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आज भी खरा उतरता है लाल किताब में कोई ऐसी विधा ही नहीं है जिसे  अध्ययन अनुशीलन या शोध का विषय बनाया जा सके।अतःयह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि लाल किताब का ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं है।

         इससे जुड़े  प्रायः वो लोग हैं जो ज्योतिष नहीं  जानते हैं वो अक्सर किसी अन्य कार्य व्यापार से जुड़े  या अपने व्यवसाय में असफल होने के बाद कुछ लोग इस लाल किताब के धंधे से जुड़े।कुछ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सक्षम लोग बिना पढ़े लिखे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्ति के लालच में ऐसी लाल पीली किताबों के मनोरंजन से जुड़ गए, रहे होंगे और भी कारण किन्तु मुख्य कारण यही है कि इसमें कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है।दूसरा कारण यह है कि इसमें घर गृहस्थी से लेकर सब्जी दाल रोटी के द्वारा भाग्य सुधारने के रास्ते बताए जाते हैं।बुरा समय सुधरेगा तो नहीं ही इससे पार करने में सफलता अवश्य मिलती है जैसे किसी को कोई उपाय 41दिन के लिए बोला गया तो इसी सहारे में उस बुरे समय के 41दिन तो कट गए पैसे भी नहीं खर्च हुए।

         इसमें कोई एक प्रमाणित किताब नहीं है इस लिए किसी के भविष्य के लिए कुछ भी बको कोई भी उपाय बताओ कौन किससे प्रमाण माँगेगा सब की अपनी अपनी लाल पीली किताबें हैं कोई क्या कर लेगा ?

    उचित होता यदि ऐसी किताबों से जुड़े लोगों ने किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से भी ज्योतिष का कोर्स भी किया होता फिर इन किताबों को भी पढ़ता तो कुछ सही तथ्य निकालने में सुविधा होती किन्तु लाल टके की बात यह है कि जो शास्त्रीय ज्योतिष पढ़ लेगा वो उस सजीव विज्ञान को छोड़ कर इस प्रपंच में पड़ेगा ही क्यों ?इसी लिए मैंने तो लाल किताब वाले बहुत लोगों से पूछा कि क्या आपने ज्योतिष पढ़ी भी है आपके पास है किसी किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से  ज्योतिष के  कोर्स की कोई प्रमाणित डिग्री ?किन्तु मुझे तो आज तक कोई मिला नहीं आप भी पता कीजिए ।यद्यपि ऐसे किसी प्रमाणित व्यक्ति से मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी आखिर पता तो लगे कि इस विषय में उसकी शास्त्रीय सोच क्या है ?

     हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था।बताया जाता है कि इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को 'लाल किताब के फरमान' नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-‍पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित ‍की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।

     चूँकि उक्त विधा का प्रचलन  उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक हुआ।इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह भी है कि कई जगह इसमें हिन्दुओं के पुराने सनातन शास्त्रों के विरोध में भी विचार मिलते हैं।जैसे कुत्ता पालने का सनातन  शास्त्र तो विरोध करते हैं किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं ।इसी प्रकार दान या गोदान आदि को सनातन धर्म तो पुण्य का काम मानता है किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं।इसी प्रकार और भी बहुत सारे सनातन धर्मं विरोधी या अज्ञान जन्य विचार हैं ।मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस पर अन्य देशों एवं भाषाओं का ही असर नहीं है अपितु उन धर्मों का भी असर हो सकता है जिनकी भाषा में मूल रूप से यह पुस्तक मिली थी।संभवतः इसी धर्म द्वेष के कारण ही वहाँ गोदान आदि को रोका गया है।

      बताया जाता है कि इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्‍व नहीं है। लग्‍न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियाँ  स्थिर कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न के जातक की कुण्‍डली भी बनाई जाए तो भी लग्‍न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्‍हीं का इस्‍तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्‍च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा। 

 जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्‍हें अपने स्‍थान से हटाकर दूसरे स्‍थानों पर ले जाया जा सकता है। अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्‍डों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्‍डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है। हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्‍न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्‍न, धातु अथवा वस्‍तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्‍न में बैठा है। इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्‍तु स्‍थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्‍कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्‍मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्‍थान में, दसवें के लिए सरकारी प्‍लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्‍तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्‍तुओं को रखना होगा। लाल किताब कहती है कि ग्‍यारहवाँ  भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्‍के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया।

 मसनुई ग्रह  

पारंपरिक ज्‍योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्‍य ग्रह की तरह होने लगेगा। ग्रहों की युति किसी अन्‍य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।

विशिष्‍ट शब्‍दावली -इनकी  अपनी विशिष्‍ट शब्‍दावली भी  है। जैसे पक्‍का घर। हर ग्रह का अपना पक्‍का घर होता है। यह वह भाव होता है जहाँ  ग्रह अपने सबसे अच्‍छे प्रभाव के साथ होता है। शक्‍की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो। सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं। 

      इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।ऐसा समझाया जा सकता है किन्तु जिस पुस्तक की प्रामाणिकता पर ही संदेह हो कौन लेखक है कब लिखी गई है क्या प्रमाण हैं क्या विषय है प्रतिपादित विषय के समर्थन में क्या तर्क हैं ? केवल सभी प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का मन गढ़ंत विधान बताया गया  है इसमें जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों किन्तु उनकी प्रामाणिकता हमेंशा संदेह के घेरे में रही है ।

     इस लिए धर्मवान लोगों को अपने सनातन धर्म  एवं धर्म ग्रंथों के विरुद्ध किसी भी कही सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।


Friday, December 21, 2012

मोदी को बन्दर बताने वाले स्वयं बन्दर बन गए

किसे कौन क्या कह देगा ?

 

     राजनीति का भी अजब हाल है।लोग किसी को कुछ भी बोल देते हैं ।इसके बाद कह देते हैं कि मैंने तो ऐसा कहा ही नहीं या मेरे कहने का ये उद्देश्य  नहीं था या मेरी बात मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर छापी है। आदि आदि....।
      भाषा का एक नियम होता है कि आपकी कोई भी बात जितने प्रतिशत या जैसी भी सामने वाले को समझ में आती है वो उसका साधारणीकरण होता है जो नहीं समझ में आती है वो व्यक्तिवैचित्र्यवाद होता है। जिसकी बात में व्यक्तिवैचित्र्यवाद जितना अधिक होता है।उतना उसको असफल वक्ता माना जाता है।
    वक्तुः तद् असामर्थ्यम श्रोता यत्र न बुध्यते।  

    वक्ता कुछ और समझाना चाह रहा है किंतु श्रोता कुछ और समझ रहा है इसका मतलब वक्ता में समझाने की ताकत नहीं है।वो निरर्थक ही बोला करता है निरर्थक बोलने का दुर्गुण अक्सर  पागलों में पाया जाता  है किंतु नेताओं की बातों में पता नहीं क्यों अक्सर आजकल ऐसा होते देखा जा रहा  है, जो चिंता की बात है।जब किसी नेता की ऐसी कोई भ्रामक खबर चैनलों पर खूब दिखाई जा चुकी होती है  तो दूसरे दिन वे संबंधित व्यक्ति की प्रशंसा या आदर सम्मान की बात कर रहे होते हैं।इस प्रकार का आचरण प्रेरणा योग्य नहीं माना जा सकता।इस बिषय  में एक कहानी मैंने पहले कभी किसी से सुनी थी--
     एक बंदर का आतंक पूरे शहर में फैला हुआ था  बंदर से सब परेशान थे।उस बंदर को घेरने के लिए कुत्ते छोड़े गए किंतु ये केवल भौंकने वाले थे ये पता नहीं क्यों काटने से डरते थे या काट नहीं पाते थे या काटना उनको आता ही नहीं था लोगों को शक होने लगा कि इनकी मिली भगत तो नहीं है?कहीं ऐसा तो नहीं है कि बंदर ने इन्हें रोटी का टुकड़ा दिखाकर पटा रखा हो क्योंकि तेजी से भौंकने वाले कुत्ते अचानक भौंकना बंद क्यों कर देते हैं।लोंगों ने नजर रखनी शुरू की तो देखा कि जब कुत्ते तेजी से भौंकने लगते हैं तो बंदर घरों से लूटकर लाई हुई रोटी का टुकड़ा उनकी ओर भी फेंक देता था वो भी खाने में मस्त हो जाया करते थे।
      बंदर तो रोटी किसी के घर घुस कर उठा लाते हैं क्योंकि वे सभी घरों को अपना समझते हैं।कहीं भी उनका सहज प्रवेश संभव भी होता है उन्हें कोई सहसा पकड़ भी नहीं पाता है।जहॉं तक बात गलियों  में घूमने वाले कुत्तों की है पहली बात तो उनका घरों में सहज प्रवेश  संभव ही नहीं होता है यदि कदाचित घुस भी जाएँ  तो घर वाले बड़ी बुरी तरह मारते हैं।पिटने के बाद वे असहाय घबराए कुत्ते भौंकते हुए भागते हैं। मानों वो कह रहे हों कि हम नहीं बंदर था... बंदर!आदि आदि....।खैर यह तो कहानी है।

     आजकल  राजनीति में प्रायः इसी प्रकार के उदाहरण अक्सर मिलते रहते हैं। अब तो समाज सुधारकों ने भी ऐसे आरोप आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं कि सभी राजनैतिक दलों में आपसी मिली भगत है। इस प्रकार से कई बार शिकायत का प्रचार करने वाले विरोधियों की बातें सुनकर ये समझ में ही नहीं आता है कि ये विरोध कर रहे हैं या प्रचार ? 
     देश  की सबसे पुरानी पार्टी एक बंदर के आतंक से परेशान है उसके कार्यकर्ता जिसे बंदर बताते हैं वह तो मदारी अर्थात बंदरों को नचाने वाला माहिर मदारी माना जाता है और जिसे वो शेर बताते हैं उसे दहाड़ते कभी किसी ने सुना हो तो सुना हो हमनें तो चीं चीं करते भी नहीं सुना है।वो जिस माँद में रहता रहै वो उसकी  अपनी तो है ही नहीं किराए की भी नहीं हैं वह तो किसी की कृपा की है। किसी और की कृपा पर दिन गुजारने वाला तो सरकस का ही  शेर  हो सकता है, जिसे सरकस वाले अपने इशारों पर नचाते हैं किसी और के इशारे पर नाचने वाले सिंह तो केवल नाम के ही सिंह होते हैं इनका तो जीवन ही अपने वंश के गौरव को गिराकर ही सम्मान पाने के लिए होता है।इन्हें किस किस के ताने बातें कितनी कितनी बेचारगी से सुननी सहनी होती हैं।ये तो ऐसे शेरों की आत्मा ही जानती है।
     वैसे भी लगभग सभी प्रकार के राजनैतिक या निजी संगठन सभी अपनी अपनी पार्टी या दल को निजी कंपनी की तरह चलाते हैं उसका लगभग हर पद ठेके पर उठता है हर पदाधिकारी या अधिकारी के चेहरे पर दाम लिखे गए होते हैं कि कौन कितने में बिकेगा।हर कुर्सी उपजाऊ  खेती की तरह होती है इस खेती की नीलामी होती है इसकी तो बोली लगती है जिसकी जैसी कीमत उसकी वैसी कुर्सी और जैसी जिसकी कुर्सी अर्थात खेती वैसी उसकी फसल।यह बात कहने का हमारा प्रमुख उद्देश्य यह है कि जो किसान होता है वह बैल या भैंसा जो कुछ भी जोतने के लिए रखता है उसे पहले  बधिया अर्थात नपुंसक करता है बाद में जोतता है।उसे पता होता है कि यदि इसे नपुंसक नहीं करेंगे तो ये हमारा अनुशासन नहीं मानेगा। जो नपुंसक हो ही गया हो वो मन से तो खेत भी नहीं जोतता ,वह तो भुगत रहा होता है, मरता क्या न करता?यही  हालत राजनैतिक शेरों  की होती है। 
     शायद यही कारण है कि पढ़े लिखे  प्रतिभा संम्पन्न स्वाभिमानी लोग प्रायः राजनीति में नहीं जाना चाहते हैं।किसी प्रकार यदि कुछ लोग घुस पाए हैं और उनको स्वतंत्र काम करने का मौका दिया जाता है तो ऐसे लोगों ने ही देश  की गरिमा बचा रखी है।जो मार्ग अत्यंत कठिन है।इसीलिए सुशिक्षित नौजवान राजनीति में जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते हैं। अन्यथा सत्ता और पद प्रतिष्ठा का आकर्षण किसे सम्मोहित नहीं करता?जो राजनीति में सहज सुलभ होता है।सौभाग्यवश देश के पढ़े लिखे चरित्रवान प्रतिभा संम्पन्न स्वाभिमानी लोग जो संयोगवश  राजनीति में पहुँच गए हैं वे या तो दबे कुचले कहीं पड़े पड़े दिन काटा करते हैं या तो मीडिया की रोजी रोटी के लिए कुछ बोला बदला करते हैं इनकी ड्यूटी ऐसी ही जगह लगाई जाती है। कई तो हिंदी में गाली देकर इंग्लिस में माँफी माँगने के लिए रख लिए जाते हैं पड़े रहते हैं,कहीं माँफी मँगाने के काम आते हैं,किसी बाबा जोगी को पटाने फुसलाने के काम आ जाते हैं ,और भी आड़े तिरछे वक्त में कहीं काम आ जाते हैं। बदले में तथाकथित कंपनी मालिक खुश होकर नेग न्योछावर के रूप में कोई मंत्री मुंत्री पद देकर कृतार्थ कर देते हैं।राजनीति में अक्सर लोगों की इसीलिए जबान फिसलती है दरसल यह मंत्री मुंत्री पद पाने के लिए तीर तुक्का लगाया गया होता है,तीर चूक गया तो मॉफी मॉंग ली और यदि निशाने पर लग ही गया तो बल्ले बल्ले। 

 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

  

मोदी मदारी हो सकते हैं बंदर नहीं !

         

                 किसे कौन क्या कह देगा ?

 

     राजनीति का भी अजब हाल है।लोग किसी को कुछ भी बोल देते हैं ।इसके बाद कह देते हैं कि मैंने तो ऐसा कहा ही नहीं या मेरे कहने का ये उद्देश्य  नहीं था या मेरी बात मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर छापी है। आदि आदि....।
      भाषा का एक नियम होता है कि आपकी कोई भी बात जितने प्रतिशत या जैसी भी सामने वाले को समझ में आती है वो उसका साधारणीकरण होता है जो नहीं समझ में आती है वो व्यक्तिवैचित्र्यवाद होता है। जिसकी बात में व्यक्तिवैचित्र्यवाद जितना अधिक होता है।उतना उसको असफल वक्ता माना जाता है।
    वक्तुः तद् असामर्थ्यम श्रोता यत्र न बुध्यते।  

    वक्ता कुछ और समझाना चाह रहा है किंतु श्रोता कुछ और समझ रहा है इसका मतलब वक्ता में समझाने की ताकत नहीं है।वो निरर्थक ही बोला करता है निरर्थक बोलने का दुर्गुण अक्सर  पागलों में पाया जाता  है किंतु नेताओं की बातों में पता नहीं क्यों अक्सर आजकल ऐसा होते देखा जा रहा  है, जो चिंता की बात है।जब किसी नेता की ऐसी कोई भ्रामक खबर चैनलों पर खूब दिखाई जा चुकी होती है  तो दूसरे दिन वे संबंधित व्यक्ति की प्रशंसा या आदर सम्मान की बात कर रहे होते हैं।इस प्रकार का आचरण प्रेरणा योग्य नहीं माना जा सकता।इस बिषय  में एक कहानी मैंने पहले कभी किसी से सुनी थी--
     एक बंदर का आतंक पूरे शहर में फैला हुआ था  बंदर से सब परेशान थे।उस बंदर को घेरने के लिए कुत्ते छोड़े गए किंतु ये केवल भौंकने वाले थे ये पता नहीं क्यों काटने से डरते थे या काट नहीं पाते थे या काटना उनको आता ही नहीं था लोगों को शक होने लगा कि इनकी मिली भगत तो नहीं है?कहीं ऐसा तो नहीं है कि बंदर ने इन्हें रोटी का टुकड़ा दिखाकर पटा रखा हो क्योंकि तेजी से भौंकने वाले कुत्ते अचानक भौंकना बंद क्यों कर देते हैं।लोंगों ने नजर रखनी शुरू की तो देखा कि जब कुत्ते तेजी से भौंकने लगते हैं तो बंदर घरों से लूटकर लाई हुई रोटी का टुकड़ा उनकी ओर भी फेंक देता था वो भी खाने में मस्त हो जाया करते थे।
      बंदर तो रोटी किसी के घर घुस कर उठा लाते हैं क्योंकि वे सभी घरों को अपना समझते हैं।कहीं भी उनका सहज प्रवेश संभव भी होता है उन्हें कोई सहसा पकड़ भी नहीं पाता है।जहॉं तक बात गलियों  में घूमने वाले कुत्तों की है पहली बात तो उनका घरों में सहज प्रवेश  संभव ही नहीं होता है यदि कदाचित घुस भी जाएँ  तो घर वाले बड़ी बुरी तरह मारते हैं।पिटने के बाद वे असहाय घबराए कुत्ते भौंकते हुए भागते हैं। मानों वो कह रहे हों कि हम नहीं बंदर था... बंदर!आदि आदि....।खैर यह तो कहानी है।

     आजकल  राजनीति में प्रायः इसी प्रकार के उदाहरण अक्सर मिलते रहते हैं। अब तो समाज सुधारकों ने भी ऐसे आरोप आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं कि सभी राजनैतिक दलों में आपसी मिली भगत है। इस प्रकार से कई बार शिकायत का प्रचार करने वाले विरोधियों की बातें सुनकर ये समझ में ही नहीं आता है कि ये विरोध कर रहे हैं या प्रचार ? 
     देश  की सबसे पुरानी पार्टी एक बंदर के आतंक से परेशान है उसके कार्यकर्ता जिसे बंदर बताते हैं वह तो मदारी अर्थात बंदरों को नचाने वाला माहिर मदारी माना जाता है और जिसे वो शेर बताते हैं उसे दहाड़ते कभी किसी ने सुना हो तो सुना हो हमनें तो चीं चीं करते भी नहीं सुना है।वो जिस माँद में रहता रहै वो उसकी  अपनी तो है ही नहीं किराए की भी नहीं हैं वह तो किसी की कृपा की है। किसी और की कृपा पर दिन गुजारने वाला तो सरकस का ही  शेर  हो सकता है, जिसे सरकस वाले अपने इशारों पर नचाते हैं किसी और के इशारे पर नाचने वाले सिंह तो केवल नाम के ही सिंह होते हैं इनका तो जीवन ही अपने वंश के गौरव को गिराकर ही सम्मान पाने के लिए होता है।इन्हें किस किस के ताने बातें कितनी कितनी बेचारगी से सुननी सहनी होती हैं।ये तो ऐसे शेरों की आत्मा ही जानती है।
     वैसे भी लगभग सभी प्रकार के राजनैतिक या निजी संगठन सभी अपनी अपनी पार्टी या दल को निजी कंपनी की तरह चलाते हैं उसका लगभग हर पद ठेके पर उठता है हर पदाधिकारी या अधिकारी के चेहरे पर दाम लिखे गए होते हैं कि कौन कितने में बिकेगा।हर कुर्सी उपजाऊ  खेती की तरह होती है इस खेती की नीलामी होती है इसकी तो बोली लगती है जिसकी जैसी कीमत उसकी वैसी कुर्सी और जैसी जिसकी कुर्सी अर्थात खेती वैसी उसकी फसल।यह बात कहने का हमारा प्रमुख उद्देश्य यह है कि जो किसान होता है वह बैल या भैंसा जो कुछ भी जोतने के लिए रखता है उसे पहले  बधिया अर्थात नपुंसक करता है बाद में जोतता है।उसे पता होता है कि यदि इसे नपुंसक नहीं करेंगे तो ये हमारा अनुशासन नहीं मानेगा। जो नपुंसक हो ही गया हो वो मन से तो खेत भी नहीं जोतता ,वह तो भुगत रहा होता है, मरता क्या न करता?यही  हालत राजनैतिक शेरों  की होती है। 
     शायद यही कारण है कि पढ़े लिखे  प्रतिभा संम्पन्न स्वाभिमानी लोग प्रायः राजनीति में नहीं जाना चाहते हैं।किसी प्रकार यदि कुछ लोग घुस पाए हैं और उनको स्वतंत्र काम करने का मौका दिया जाता है तो ऐसे लोगों ने ही देश  की गरिमा बचा रखी है।जो मार्ग अत्यंत कठिन है।इसीलिए सुशिक्षित नौजवान राजनीति में जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते हैं। अन्यथा सत्ता और पद प्रतिष्ठा का आकर्षण किसे सम्मोहित नहीं करता?जो राजनीति में सहज सुलभ होता है।सौभाग्यवश देश के पढ़े लिखे चरित्रवान प्रतिभा संम्पन्न स्वाभिमानी लोग जो संयोगवश  राजनीति में पहुँच गए हैं वे या तो दबे कुचले कहीं पड़े पड़े दिन काटा करते हैं या तो मीडिया की रोजी रोटी के लिए कुछ बोला बदला करते हैं इनकी ड्यूटी ऐसी ही जगह लगाई जाती है। कई तो हिंदी में गाली देकर इंग्लिस में माँफी माँगने के लिए रख लिए जाते हैं पड़े रहते हैं,कहीं माँफी मँगाने के काम आते हैं,किसी बाबा जोगी को पटाने फुसलाने के काम आ जाते हैं ,और भी आड़े तिरछे वक्त में कहीं काम आ जाते हैं। बदले में तथाकथित कंपनी मालिक खुश होकर नेग न्योछावर के रूप में कोई मंत्री मुंत्री पद देकर कृतार्थ कर देते हैं।राजनीति में अक्सर लोगों की इसीलिए जबान फिसलती है दरसल यह मंत्री मुंत्री पद पाने के लिए तीर तुक्का लगाया गया होता है,तीर चूक गया तो मॉफी मॉंग ली और यदि निशाने पर लग ही गया तो बल्ले बल्ले। 

 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

  

ये कैसी लाल किताब ?

इसमें गोदान तक को रोका गया है और कुत्ता पालना तक सिखाया गया है !ऐसी धर्म विरोधी लाल पीली किताबें ज्योतिष कैसे हो सकती हैं ? 

  अनंत काल से चली आ  रही  दान की अवधारणा  को भी लाल किताब में रोका गया है । 

       "आखिर क्या है लालकिताब? ज्‍योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्‍योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्‍योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बाँटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएँ। आकाशीय घटनाओं की पुख्‍ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्‍ययन ज्‍योतिष का फलित हिस्‍सा है।"

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ  नहीं है।वस्तुतः इस ग्रन्थ का कोई प्रमाणिक ऐसा अभी तक सामने नहीं आ पाया है जिससे ज्योतिष की प्राचीन प्रमाणित विधा से इसका कोई सम्बन्ध सिद्ध हो सके इसी लिए प्राचीन  ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने इसे कभी महत्व नहीं दिया न केवल इतना अपितु इस विधा से जुड़ा कोई प्रमाणित विद्वान् इसे किसी सभा में सिद्ध ही कर सका कि ये कितना प्रमाणित एवं विश्वसनीय ग्रन्थ है।इसी लिए इसे संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष पाठ्य क्रमों में भी सम्मिलित नहीं किया जा सका है।

   वस्तुतः प्राचीन ज्योतिष वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आज भी खरा उतरता है लाल किताब में कोई ऐसी विधा ही नहीं है जिसे  अध्ययन अनुशीलन या शोध का विषय बनाया जा सके।अतःयह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि लाल किताब का ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं है।

         इससे जुड़े  प्रायः वो लोग हैं जो ज्योतिष नहीं  जानते हैं वो अक्सर किसी अन्य कार्य व्यापार से जुड़े  या अपने व्यवसाय में असफल होने के बाद कुछ लोग इस लाल किताब के धंधे से जुड़े।कुछ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सक्षम लोग बिना पढ़े लिखे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्ति के लालच में ऐसी लाल पीली किताबों के मनोरंजन से जुड़ गए, रहे होंगे और भी कारण किन्तु मुख्य कारण यही है कि इसमें कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है।दूसरा कारण यह है कि इसमें घर गृहस्थी से लेकर सब्जी दाल रोटी के द्वारा भाग्य सुधारने के रास्ते बताए जाते हैं।बुरा समय सुधरेगा तो नहीं ही इससे पार करने में सफलता अवश्य मिलती है जैसे किसी को कोई उपाय 41दिन के लिए बोला गया तो इसी सहारे में उस बुरे समय के 41दिन तो कट गए पैसे भी नहीं खर्च हुए।

         इसमें कोई एक प्रमाणित किताब नहीं है इस लिए किसी के भविष्य के लिए कुछ भी बको कोई भी उपाय बताओ कौन किससे प्रमाण माँगेगा सब की अपनी अपनी लाल पीली किताबें हैं कोई क्या कर लेगा ?

    उचित होता यदि ऐसी किताबों से जुड़े लोगों ने किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से भी ज्योतिष का कोर्स भी किया होता फिर इन किताबों को भी पढ़ता तो कुछ सही तथ्य निकालने में सुविधा होती किन्तु लाल टके की बात यह है कि जो शास्त्रीय ज्योतिष पढ़ लेगा वो उस सजीव विज्ञान को छोड़ कर इस प्रपंच में पड़ेगा ही क्यों ?इसी लिए मैंने तो लाल किताब वाले बहुत लोगों से पूछा कि क्या आपने ज्योतिष पढ़ी भी है आपके पास है किसी किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से  ज्योतिष के  कोर्स की कोई प्रमाणित डिग्री ?किन्तु मुझे तो आज तक कोई मिला नहीं आप भी पता कीजिए ।यद्यपि ऐसे किसी प्रमाणित व्यक्ति से मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी आखिर पता तो लगे कि इस विषय में उसकी शास्त्रीय सोच क्या है ?

     हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था।बताया जाता है कि इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को 'लाल किताब के फरमान' नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-‍पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित ‍की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।

     चूँकि उक्त विधा का प्रचलन  उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक हुआ।इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह भी है कि कई जगह इसमें हिन्दुओं के पुराने सनातन शास्त्रों के विरोध में भी विचार मिलते हैं।जैसे कुत्ता पालने का सनातन  शास्त्र तो विरोध करते हैं किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं ।इसी प्रकार दान या गोदान आदि को सनातन धर्म तो पुण्य का काम मानता है किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं।इसी प्रकार और भी बहुत सारे सनातन धर्मं विरोधी या अज्ञान जन्य विचार हैं ।मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस पर अन्य देशों एवं भाषाओं का ही असर नहीं है अपितु उन धर्मों का भी असर हो सकता है जिनकी भाषा में मूल रूप से यह पुस्तक मिली थी।संभवतः इसी धर्म द्वेष के कारण ही वहाँ गोदान आदि को रोका गया है।

      बताया जाता है कि इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्‍व नहीं है। लग्‍न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियाँ  स्थिर कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न के जातक की कुण्‍डली भी बनाई जाए तो भी लग्‍न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्‍हीं का इस्‍तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्‍च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा। 

 जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्‍हें अपने स्‍थान से हटाकर दूसरे स्‍थानों पर ले जाया जा सकता है। अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्‍डों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्‍डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है। हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्‍न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्‍न, धातु अथवा वस्‍तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्‍न में बैठा है। इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्‍तु स्‍थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्‍कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्‍मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्‍थान में, दसवें के लिए सरकारी प्‍लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्‍तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्‍तुओं को रखना होगा। लाल किताब कहती है कि ग्‍यारहवाँ  भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्‍के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया।

 मसनुई ग्रह  

पारंपरिक ज्‍योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्‍य ग्रह की तरह होने लगेगा। ग्रहों की युति किसी अन्‍य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।

विशिष्‍ट शब्‍दावली -इनकी  अपनी विशिष्‍ट शब्‍दावली भी  है। जैसे पक्‍का घर। हर ग्रह का अपना पक्‍का घर होता है। यह वह भाव होता है जहाँ  ग्रह अपने सबसे अच्‍छे प्रभाव के साथ होता है। शक्‍की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो। सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं। 

      इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।ऐसा समझाया जा सकता है किन्तु जिस पुस्तक की प्रामाणिकता पर ही संदेह हो कौन लेखक है कब लिखी गई है क्या प्रमाण हैं क्या विषय है प्रतिपादित विषय के समर्थन में क्या तर्क हैं ? केवल सभी प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का मन गढ़ंत विधान बताया गया  है इसमें जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों किन्तु उनकी प्रामाणिकता हमेंशा संदेह के घेरे में रही है ।

     इस लिए धर्मवान लोगों को अपने सनातन धर्म  एवं धर्म ग्रंथों के विरुद्ध किसी भी कही सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।

लाल किताब काल्पनिक कोई चीज होगी जो सच नहीं है

इसमें गोदान तक को रोका गया है और कुत्ता पालना तक सिखाया गया है !ऐसी धर्म विरोधी लाल पीली किताबें ज्योतिष कैसे हो सकती हैं ? 

  अनंत काल से चली आ  रही  दान की अवधारणा  को भी लाल किताब में रोका गया है । 

       "आखिर क्या है लालकिताब? ज्‍योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्‍योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्‍योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बाँटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएँ। आकाशीय घटनाओं की पुख्‍ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्‍ययन ज्‍योतिष का फलित हिस्‍सा है।"

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ  नहीं है।वस्तुतः इस ग्रन्थ का कोई प्रमाणिक ऐसा अभी तक सामने नहीं आ पाया है जिससे ज्योतिष की प्राचीन प्रमाणित विधा से इसका कोई सम्बन्ध सिद्ध हो सके इसी लिए प्राचीन  ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने इसे कभी महत्व नहीं दिया न केवल इतना अपितु इस विधा से जुड़ा कोई प्रमाणित विद्वान् इसे किसी सभा में सिद्ध ही कर सका कि ये कितना प्रमाणित एवं विश्वसनीय ग्रन्थ है।इसी लिए इसे संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष पाठ्य क्रमों में भी सम्मिलित नहीं किया जा सका है।

   वस्तुतः प्राचीन ज्योतिष वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आज भी खरा उतरता है लाल किताब में कोई ऐसी विधा ही नहीं है जिसे  अध्ययन अनुशीलन या शोध का विषय बनाया जा सके।अतःयह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि लाल किताब का ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं है।

         इससे जुड़े  प्रायः वो लोग हैं जो ज्योतिष नहीं  जानते हैं वो अक्सर किसी अन्य कार्य व्यापार से जुड़े  या अपने व्यवसाय में असफल होने के बाद कुछ लोग इस लाल किताब के धंधे से जुड़े।कुछ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सक्षम लोग बिना पढ़े लिखे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्ति के लालच में ऐसी लाल पीली किताबों के मनोरंजन से जुड़ गए, रहे होंगे और भी कारण किन्तु मुख्य कारण यही है कि इसमें कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है।दूसरा कारण यह है कि इसमें घर गृहस्थी से लेकर सब्जी दाल रोटी के द्वारा भाग्य सुधारने के रास्ते बताए जाते हैं।बुरा समय सुधरेगा तो नहीं ही इससे पार करने में सफलता अवश्य मिलती है जैसे किसी को कोई उपाय 41दिन के लिए बोला गया तो इसी सहारे में उस बुरे समय के 41दिन तो कट गए पैसे भी नहीं खर्च हुए।

         इसमें कोई एक प्रमाणित किताब नहीं है इस लिए किसी के भविष्य के लिए कुछ भी बको कोई भी उपाय बताओ कौन किससे प्रमाण माँगेगा सब की अपनी अपनी लाल पीली किताबें हैं कोई क्या कर लेगा ?

    उचित होता यदि ऐसी किताबों से जुड़े लोगों ने किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से भी ज्योतिष का कोर्स भी किया होता फिर इन किताबों को भी पढ़ता तो कुछ सही तथ्य निकालने में सुविधा होती किन्तु लाल टके की बात यह है कि जो शास्त्रीय ज्योतिष पढ़ लेगा वो उस सजीव विज्ञान को छोड़ कर इस प्रपंच में पड़ेगा ही क्यों ?इसी लिए मैंने तो लाल किताब वाले बहुत लोगों से पूछा कि क्या आपने ज्योतिष पढ़ी भी है आपके पास है किसी किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से  ज्योतिष के  कोर्स की कोई प्रमाणित डिग्री ?किन्तु मुझे तो आज तक कोई मिला नहीं आप भी पता कीजिए ।यद्यपि ऐसे किसी प्रमाणित व्यक्ति से मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी आखिर पता तो लगे कि इस विषय में उसकी शास्त्रीय सोच क्या है ?

     हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था।बताया जाता है कि इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को 'लाल किताब के फरमान' नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-‍पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित ‍की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।

     चूँकि उक्त विधा का प्रचलन  उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक हुआ।इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह भी है कि कई जगह इसमें हिन्दुओं के पुराने सनातन शास्त्रों के विरोध में भी विचार मिलते हैं।जैसे कुत्ता पालने का सनातन  शास्त्र तो विरोध करते हैं किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं ।इसी प्रकार दान या गोदान आदि को सनातन धर्म तो पुण्य का काम मानता है किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं।इसी प्रकार और भी बहुत सारे सनातन धर्मं विरोधी या अज्ञान जन्य विचार हैं ।मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस पर अन्य देशों एवं भाषाओं का ही असर नहीं है अपितु उन धर्मों का भी असर हो सकता है जिनकी भाषा में मूल रूप से यह पुस्तक मिली थी।संभवतः इसी धर्म द्वेष के कारण ही वहाँ गोदान आदि को रोका गया है।

      बताया जाता है कि इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्‍व नहीं है। लग्‍न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियाँ  स्थिर कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न के जातक की कुण्‍डली भी बनाई जाए तो भी लग्‍न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्‍हीं का इस्‍तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्‍च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा। 

 जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्‍हें अपने स्‍थान से हटाकर दूसरे स्‍थानों पर ले जाया जा सकता है। अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्‍डों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्‍डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है। हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्‍न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्‍न, धातु अथवा वस्‍तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्‍न में बैठा है। इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्‍तु स्‍थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्‍कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्‍मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्‍थान में, दसवें के लिए सरकारी प्‍लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्‍तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्‍तुओं को रखना होगा। लाल किताब कहती है कि ग्‍यारहवाँ  भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्‍के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया।

 मसनुई ग्रह  

पारंपरिक ज्‍योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्‍य ग्रह की तरह होने लगेगा। ग्रहों की युति किसी अन्‍य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।

विशिष्‍ट शब्‍दावली -इनकी  अपनी विशिष्‍ट शब्‍दावली भी  है। जैसे पक्‍का घर। हर ग्रह का अपना पक्‍का घर होता है। यह वह भाव होता है जहाँ  ग्रह अपने सबसे अच्‍छे प्रभाव के साथ होता है। शक्‍की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो। सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं। 

      इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।ऐसा समझाया जा सकता है किन्तु जिस पुस्तक की प्रामाणिकता पर ही संदेह हो कौन लेखक है कब लिखी गई है क्या प्रमाण हैं क्या विषय है प्रतिपादित विषय के समर्थन में क्या तर्क हैं ? केवल सभी प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का मन गढ़ंत विधान बताया गया  है इसमें जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों किन्तु उनकी प्रामाणिकता हमेंशा संदेह के घेरे में रही है ।

     इस लिए धर्मवान लोगों को अपने सनातन धर्म  एवं धर्म ग्रंथों के विरुद्ध किसी भी कही सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।

लाल किताब कितनी सच कितनी झूठ ?

इसमें गोदान तक को रोका गया है और कुत्ता पालना तक सिखाया गया है !ऐसी धर्म विरोधी लाल पीली किताबें ज्योतिष कैसे हो सकती हैं ? 

  अनंत काल से चली आ  रही  दान की अवधारणा  को भी लाल किताब में रोका गया है । 

       "आखिर क्या है लालकिताब? ज्‍योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्‍योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्‍योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बाँटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएँ। आकाशीय घटनाओं की पुख्‍ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्‍ययन ज्‍योतिष का फलित हिस्‍सा है।"

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ  नहीं है।वस्तुतः इस ग्रन्थ का कोई प्रमाणिक ऐसा अभी तक सामने नहीं आ पाया है जिससे ज्योतिष की प्राचीन प्रमाणित विधा से इसका कोई सम्बन्ध सिद्ध हो सके इसी लिए प्राचीन  ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने इसे कभी महत्व नहीं दिया न केवल इतना अपितु इस विधा से जुड़ा कोई प्रमाणित विद्वान् इसे किसी सभा में सिद्ध ही कर सका कि ये कितना प्रमाणित एवं विश्वसनीय ग्रन्थ है।इसी लिए इसे संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष पाठ्य क्रमों में भी सम्मिलित नहीं किया जा सका है।

   वस्तुतः प्राचीन ज्योतिष वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आज भी खरा उतरता है लाल किताब में कोई ऐसी विधा ही नहीं है जिसे  अध्ययन अनुशीलन या शोध का विषय बनाया जा सके।अतःयह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि लाल किताब का ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं है।

         इससे जुड़े  प्रायः वो लोग हैं जो ज्योतिष नहीं  जानते हैं वो अक्सर किसी अन्य कार्य व्यापार से जुड़े  या अपने व्यवसाय में असफल होने के बाद कुछ लोग इस लाल किताब के धंधे से जुड़े।कुछ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सक्षम लोग बिना पढ़े लिखे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्ति के लालच में ऐसी लाल पीली किताबों के मनोरंजन से जुड़ गए, रहे होंगे और भी कारण किन्तु मुख्य कारण यही है कि इसमें कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है।दूसरा कारण यह है कि इसमें घर गृहस्थी से लेकर सब्जी दाल रोटी के द्वारा भाग्य सुधारने के रास्ते बताए जाते हैं।बुरा समय सुधरेगा तो नहीं ही इससे पार करने में सफलता अवश्य मिलती है जैसे किसी को कोई उपाय 41दिन के लिए बोला गया तो इसी सहारे में उस बुरे समय के 41दिन तो कट गए पैसे भी नहीं खर्च हुए।

         इसमें कोई एक प्रमाणित किताब नहीं है इस लिए किसी के भविष्य के लिए कुछ भी बको कोई भी उपाय बताओ कौन किससे प्रमाण माँगेगा सब की अपनी अपनी लाल पीली किताबें हैं कोई क्या कर लेगा ?

    उचित होता यदि ऐसी किताबों से जुड़े लोगों ने किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से भी ज्योतिष का कोर्स भी किया होता फिर इन किताबों को भी पढ़ता तो कुछ सही तथ्य निकालने में सुविधा होती किन्तु लाल टके की बात यह है कि जो शास्त्रीय ज्योतिष पढ़ लेगा वो उस सजीव विज्ञान को छोड़ कर इस प्रपंच में पड़ेगा ही क्यों ?इसी लिए मैंने तो लाल किताब वाले बहुत लोगों से पूछा कि क्या आपने ज्योतिष पढ़ी भी है आपके पास है किसी किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से  ज्योतिष के  कोर्स की कोई प्रमाणित डिग्री ?किन्तु मुझे तो आज तक कोई मिला नहीं आप भी पता कीजिए ।यद्यपि ऐसे किसी प्रमाणित व्यक्ति से मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी आखिर पता तो लगे कि इस विषय में उसकी शास्त्रीय सोच क्या है ?

     हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था।बताया जाता है कि इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को 'लाल किताब के फरमान' नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-‍पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित ‍की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।

     चूँकि उक्त विधा का प्रचलन  उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक हुआ।इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह भी है कि कई जगह इसमें हिन्दुओं के पुराने सनातन शास्त्रों के विरोध में भी विचार मिलते हैं।जैसे कुत्ता पालने का सनातन  शास्त्र तो विरोध करते हैं किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं ।इसी प्रकार दान या गोदान आदि को सनातन धर्म तो पुण्य का काम मानता है किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं।इसी प्रकार और भी बहुत सारे सनातन धर्मं विरोधी या अज्ञान जन्य विचार हैं ।मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस पर अन्य देशों एवं भाषाओं का ही असर नहीं है अपितु उन धर्मों का भी असर हो सकता है जिनकी भाषा में मूल रूप से यह पुस्तक मिली थी।संभवतः इसी धर्म द्वेष के कारण ही वहाँ गोदान आदि को रोका गया है।

      बताया जाता है कि इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्‍व नहीं है। लग्‍न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियाँ  स्थिर कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न के जातक की कुण्‍डली भी बनाई जाए तो भी लग्‍न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्‍हीं का इस्‍तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्‍च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा। 

 जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्‍हें अपने स्‍थान से हटाकर दूसरे स्‍थानों पर ले जाया जा सकता है। अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्‍डों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्‍डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है। हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्‍न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्‍न, धातु अथवा वस्‍तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्‍न में बैठा है। इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्‍तु स्‍थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्‍कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्‍मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्‍थान में, दसवें के लिए सरकारी प्‍लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्‍तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्‍तुओं को रखना होगा। लाल किताब कहती है कि ग्‍यारहवाँ  भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्‍के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया।

 मसनुई ग्रह  

पारंपरिक ज्‍योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्‍य ग्रह की तरह होने लगेगा। ग्रहों की युति किसी अन्‍य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।

विशिष्‍ट शब्‍दावली -इनकी  अपनी विशिष्‍ट शब्‍दावली भी  है। जैसे पक्‍का घर। हर ग्रह का अपना पक्‍का घर होता है। यह वह भाव होता है जहाँ  ग्रह अपने सबसे अच्‍छे प्रभाव के साथ होता है। शक्‍की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो। सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं। 

      इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।ऐसा समझाया जा सकता है किन्तु जिस पुस्तक की प्रामाणिकता पर ही संदेह हो कौन लेखक है कब लिखी गई है क्या प्रमाण हैं क्या विषय है प्रतिपादित विषय के समर्थन में क्या तर्क हैं ? केवल सभी प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का मन गढ़ंत विधान बताया गया  है इसमें जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों किन्तु उनकी प्रामाणिकता हमेंशा संदेह के घेरे में रही है ।

     इस लिए धर्मवान लोगों को अपने सनातन धर्म  एवं धर्म ग्रंथों के विरुद्ध किसी भी कही सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।

Lal Kitab Nahin Hai Jyotish Shastra Se Sambadhit

   गो दान तक को रोका गया है और कुत्ता पालना                                   सिखाया गया है   

   अनंत काल से चली आ  रही  दान की अवधारणा  को भी लाल किताब में रोका गया है।

  आखिर क्या है लालकिताब? ज्‍योतिष के मूल रूप से दो भाग हैं। इनमें से एक है सिद्धांत और दूसरा है फलित। सिद्धांत पक्ष में ज्‍योतिष का वह भाग है जो खगोलीय गणनाओं से संबंधित है और इन गणनाओं में से ज्‍योतिष के उपयोग में आने वाली गणनाओं का इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे कि आकाश को 360 डिग्री में बाँटकर उसका 12 बराबर भागों में विभाजन, नक्षत्रों की स्थिति, ग्रहों की गति और ग्रहण जैसी घटनाएँ। आकाशीय घटनाओं की पुख्‍ता जानकारी मिलने के बाद उनका मानव जीवन पर असर के बारे में अध्‍ययन ज्‍योतिष का फलित हिस्‍सा है।

लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ  नहीं है।वस्तुतः इस ग्रन्थ का कोई प्रमाणिक ऐसा अभी तक सामने नहीं आ पाया है जिससे ज्योतिष की प्राचीन प्रमाणित विधा से इसका कोई सम्बन्ध सिद्ध हो सके इसी लिए प्राचीन  ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने इसे कभी महत्व नहीं दिया न केवल इतना अपितु इस विधा से जुड़ा कोई प्रमाणित विद्वान् इसे किसी सभा में सिद्ध ही कर सका कि ये कितना प्रमाणित एवं विश्वसनीय ग्रन्थ है।इसी लिए इसे संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष पाठ्य क्रमों में भी सम्मिलित नहीं किया जा सका है।

   वस्तुतः प्राचीन ज्योतिष वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आज भी खरा उतरता है लाल किताब में कोई ऐसी विधा ही नहीं है जिसे  अध्ययन अनुशीलन या शोध का विषय बनाया जा सके।अतःयह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि लाल किताब का ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं है।

         इससे जुड़े  प्रायः वो लोग हैं जो ज्योतिष नहीं  जानते हैं वो अक्सर किसी अन्य कार्य व्यापार से जुड़े  या अपने व्यवसाय में असफल होने के बाद कुछ लोग इस लाल किताब के धंधे से जुड़े।कुछ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सक्षम लोग बिना पढ़े लिखे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्ति के लालच में ऐसी लाल पीली किताबों के मनोरंजन से जुड़ गए, रहे होंगे और भी कारण किन्तु मुख्य कारण यही है कि इसमें कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है।दूसरा कारण यह है कि इसमें घर गृहस्थी से लेकर सब्जी दाल रोटी के द्वारा भाग्य सुधारने के रास्ते बताए जाते हैं।बुरा समय सुधरेगा तो नहीं ही इससे पार करने में सफलता अवश्य मिलती है जैसे किसी को कोई उपाय 41दिन के लिए बोला गया तो इसी सहारे में उस बुरे समय के 41दिन तो कट गए पैसे भी नहीं खर्च हुए।

         इसमें कोई एक प्रमाणित किताब नहीं है इस लिए किसी के भविष्य के लिए कुछ भी बको कोई भी उपाय बताओ कौन किससे प्रमाण माँगेगा सब की अपनी अपनी लाल पीली किताबें हैं कोई क्या कर लेगा ?

    उचित होता यदि ऐसी किताबों से जुड़े लोगों ने किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से भी ज्योतिष का कोर्स भी किया होता फिर इन किताबों को भी पढ़ता तो कुछ सही तथ्य निकालने में सुविधा होती किन्तु लाल टके की बात यह है कि जो शास्त्रीय ज्योतिष पढ़ लेगा वो उस सजीव विज्ञान को छोड़ कर इस प्रपंच में पड़ेगा ही क्यों ?इसी लिए मैंने तो लाल किताब वाले बहुत लोगों से पूछा कि क्या आपने ज्योतिष पढ़ी भी है आपके पास है किसी किसी अधिकृत विश्व विद्यालय से  ज्योतिष के  कोर्स की कोई प्रमाणित डिग्री ?किन्तु मुझे तो आज तक कोई मिला नहीं आप भी पता कीजिए ।यद्यपि ऐसे किसी प्रमाणित व्यक्ति से मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी आखिर पता तो लगे कि इस विषय में उसकी शास्त्रीय सोच क्या है ?

     हिमाचल से एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई थी तब उक्त पांडुलिपि का उन्होंने अनुवाद किया था।बताया जाता है कि इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को 'लाल किताब के फरमान' नाम से एक किताब प्रकाशित की। इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-‍पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित ‍की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।

     चूँकि उक्त विधा का प्रचलन  उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक हुआ।इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं यहाँ ध्यान देने वाली विशेष बात यह भी है कि कई जगह इसमें हिन्दुओं के पुराने सनातन शास्त्रों के विरोध में भी विचार मिलते हैं।जैसे कुत्ता पालने का सनातन  शास्त्र तो विरोध करते हैं किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं ।इसी प्रकार दान या गोदान आदि को सनातन धर्म तो पुण्य का काम मानता है किन्तु लाल किताबी लोग समर्थन करते देखे जाते हैं।इसी प्रकार और भी बहुत सारे सनातन धर्मं विरोधी या अज्ञान जन्य विचार हैं ।मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस पर अन्य देशों एवं भाषाओं का ही असर नहीं है अपितु उन धर्मों का भी असर हो सकता है जिनकी भाषा में मूल रूप से यह पुस्तक मिली थी।संभवतः इसी धर्म द्वेष के कारण ही वहाँ गोदान आदि को रोका गया है।

      बताया जाता है कि इसके अनुसार राशियों की चाल का कोई महत्‍व नहीं है। लग्‍न हमेशा मेष राशि होगी और इसी तरह बारह भावों में बारह राशियाँ  स्थिर कर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न के जातक की कुण्‍डली भी बनाई जाए तो भी लग्‍न मेष ही रहेगा। शेष ग्रह जिस भाव में बैठे हैं उन्‍हीं का इस्‍तेमाल किया जाएगा। ऐसे में कोई ग्रह उच्‍च या नीच का होगा तो भावों में स्थिति की वजह से होगा। 

 जो ग्रह खराब प्रभाव वाले हैं उन्‍हें अपने स्‍थान से हटाकर दूसरे स्‍थानों पर ले जाया जा सकता है। अगर सिद्धांत की दृष्टि से देखें तो हकीकत में खगोलीय पिण्‍डों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर खिसकाना असंभव है, लेकिन लाल किताब कहती है कि ग्रहों को भले ही न खिसकाया जा सकता हो, लेकिन जातक की कुण्‍डली में उसके प्रभाव को बदला जा सकता है। हर ग्रह के प्रभाव को बदलने के लिए लाल किताब ने तय सिद्धांत भी बनाए हैं। मसलन किसी ग्रह को लग्‍न में लाने के लिए उससे संबंधित रत्‍न, धातु अथवा वस्‍तु को गले में पहनना होगा। इससे ग्रह का असर ऐसा होगा कि वह लग्‍न में बैठा है। इसी तरह दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए घर में वस्‍तु स्‍थापित करें, तीसरे भाव के लिए हाथ में, चौथे के लिए बहते पानी में, पांचवे के लिए स्‍कूल में, छठे के लिए कुएं में, सातवें के लिए जमीन में, आठवें के लिए श्‍मशान में, नौंवे के लिए धर्मस्‍थान में, दसवें के लिए सरकारी प्‍लाट या भवन में और बारहवें भाव में किसी वस्‍तु तो पहुंचाने के लिए छत पर संबंधित वस्‍तुओं को रखना होगा। लाल किताब कहती है कि ग्‍यारहवाँ  भाव आय या लाभ का होता है, इस भाव के लिए कोई उपचार नहीं है। उपायों से ग्रहों को अपने पक्‍के या बेहतर लाभ देने वाले भावों में पहुंचाने और खराब प्रभाव देने वाले ग्रहों को हटाने का प्रयास किया।

 मसनुई ग्रह  

पारंपरिक ज्‍योतिष के इतर लाल किताब ग्रहों की युति यानी दो या अधिक ग्रहों के एक ही भाव में बैठने को मसनुई ग्रह की उपाधि देती है। इसके अनुसार अगर किसी भाव में दो या इससे अधिक ग्रह बैठे हैं तो उन सभी का प्रभाव किसी अन्‍य ग्रह की तरह होने लगेगा। ग्रहों की युति किसी अन्‍य ग्रह को सहायता भी कर सकती है और उसके प्रभाव को खराब भी कर सकती है। उदाहरण के तौर पर गुरु और सूर्य एक भाव में बैठकर चंद्रमा का प्रभाव पैदा करते हैं, इसी तरह बुध और शुक्र से सूर्य, सूर्य और बुध से मंगल, शुक्र और गुरु से शनि का प्रभाव पैदा होता है। इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उपचार कर दिया जाता है।

विशिष्‍ट शब्‍दावली इनकी  अपनी विशिष्‍ट शब्‍दावली भी  है। जैसे पक्‍का घर। हर ग्रह का अपना पक्‍का घर होता है। यह वह भाव होता है जहाँ  ग्रह अपने सबसे अच्‍छे प्रभाव के साथ होता है। शक्‍की हालत का ग्रह उसे कहते हैं जो अपने निश्चित भाव को छोड़कर किसी और भाव में बैठा हो। सोया हुआ ग्रह उसे कहते हैं जब कोई ग्रह ऐसे भाव में बैठा हो जिससे सातवें भाव में कोई ग्रह न हो। इसके साथ ही ग्रहों के बलिदान के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार किसी ग्रह की स्थिति खराब होने पर उससे संबंधित दूसरे ग्रहों का प्रभाव खराब हो जाता है। इस हालत में लाल किताब के अनुसार बलिदान दे रहे ग्रहों का उपचार किए जाने की जरूरत होती है।। दान, पूजन और साधना के जरिए दीर्धकाल में मिलने वाले लाभ की तुलना में लोग लाल किताब के तुरत फुरत उपचार करने में अधिक सहज महसूस करते हैं। 

इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि । ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।ऐसा समझाया जा सकता है किन्तु जिस पुस्तक की प्रामाणिकता पर ही संदेह हो कौन लेखक है कब लिखी गई है क्या प्रमाण हैं क्या विषय है प्रतिपादित विषय के समर्थन में क्या तर्क हैं ? केवल सभी प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का मन गढ़ंत विधान बताया गया  है इसमें जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों किन्तु उनकी प्रामाणिकता हमेंशा संदेह के घेरे में रही है ।

     इस लिए धर्मवान लोगों को अपने सनातन धर्म  एवं धर्म ग्रंथों के विरुद्ध किसी भी कही सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।