Thursday, January 31, 2013

मीडिया और भ्रष्टाचार --कविता, गॉंधी जी के तीन बंदरों की

         गॉंधी जी के तीन बंदर  और  भ्रष्टाचार


बुरा  न  कहिए  बुरा   न  सुनिए  बुरा  न देखो मित्र।

करो  भलाई  सदा  सभी  की  जीवन  रखो  पवित्र  ।।



पत्रकार   भैया   एक   बोले   मन   की   बात   बताऊँ।                

सीख  बंदरों  की  यदि मानूँ  तो  खबर कहॉं से  लाऊँ ।।



अच्छा अच्छा कहूँ सभी को प्रवचन है वह न्यूज नहीं।

अच्छा  सुनने  से   जनता   के   आते   पूरे   ब्यूज   नहीं।।



कहूँ  किस  तरह  मॅहगाई  को  सुंदर  सुंदर  भ्रष्टाचार।
सुनूँ  कहॉं  पर  खुशहाली  के  सुंदर सुंदर रागमल्हार।।



अमनचैन किस चिड़ियाघर में देखें जाकर सुंदर सीन।
झूठ बोलना क्यों सिखलाते गॉंधी जी के बंदर तीन।।                          



सरकारों  से  मिले  लग  रहे  बापू  जी  के  बंदर यार ।
पोल खोलना खबर दिखाना इनको लगता भ्रष्टाचार।।


कहो  बंदरों  से  चुप  बैठो  स्टिंग  कर  देंगे हम लोग।
झूठ   गवाही   झूठ   सफाई   देते  घूमोगे  तुम  लोग।।



                . शिखर, सुरभी, नित्या, कुमुद ,श्रींदुशेखर वाजपेयी



राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील

यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है।

यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन ए मनए धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।

सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

निरंकुशता की ओर बढ़ता समाज ! By Dr.S.N.Vajpayee

पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा                                 यह समाज ?

    कुछ  टी.वी. चैनल हर तरफ से  हो रहे अपराधों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाज उठा रहे  हैं यह अत्यंत प्रशंसा की बात है।सनातनधर्म से जुड़े मानव मूल्यों को खोजने में बड़ा व्यस्त दिखते  हैं।हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी बिन्दुओं पर अपनी क्षमताओं के आधार पर पूर्ण समर्पित से   दिखते  हैं।

     मेरा एक निवेदन जरूर है कि हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर न केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता देखता हूँ ।

     अक्सर टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी, और न ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है! 

    इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुकपाने पाने में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

   अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ?सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?

   एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी ,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर रोडों पर ही बीतती है।फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक नहीं है।मैं तो इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष, वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?

   कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को न पढ़ पाने,न जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने की विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए । 

       ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं ।   


     टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से !

      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उन्हें मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों प  लोग पैंट शर्ट  पहन  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है। ऐसे लोग भी हैं जो  किसी का गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर उद्धार कर  रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और  हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैं जो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे होते हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता ! खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । 

    प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है। 
      वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।

    जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।

       पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष  परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।

     इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदरउस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।

      पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.ए. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?

       कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ! 

प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर बोल रहे होते हैं सौ प्रतिशत झूठ,चैनलों पर पढ़ा रहे होते हैं ज्योतिष,ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े होगें नहीं पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन। कराई जाती है झूठी प्रशंसा  ।अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं ।कई तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं । अन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ नहीं होता है आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए ! 

      इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु , उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट  www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा ।  

  

अंध विश्वास फैलाने में सहायक बनता मीडिया !

      हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर न केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता देखता हूँ ।

     अक्सर टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी, और न ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है! 

    इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुकपाने पाने में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

   अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ?सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?

   एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी ,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर रोडों पर ही बीतती है।फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक नहीं है।मैं तो इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष, वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?

   कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को न पढ़ पाने,न जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने की विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए । 

       ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं ।

     टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से !

      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उन्हें मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों प  लोग पैंट शर्ट  पहन  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है। ऐसे लोग भी हैं जो  किसी का गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर उद्धार कर  रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और  हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैंएजो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे होते हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता ! खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । 

    प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है। 
      वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।

    जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।

       पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष  परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।

     इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदरउस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।

      पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.ए. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?

       कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ! 

प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर बोल रहे होते हैं सौ प्रतिशत झूठ,चैनलों पर पढ़ा रहे होते हैं ज्योतिष,ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े होगें नहीं पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन। कराई जाती है झूठी प्रशंसा  ।अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं ।कई तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं । अन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ नहीं होता है आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए ! 

      इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु , उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट  www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा ।  

 

अब अँगुलियाँ उठाने वालों पर ही अँगुलियाँ उठने लगीं !

पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा                                 यह समाज ?

    कुछ  टी.वी. चैनल हर तरफ से  हो रहे अपराधों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाज उठा रहे  हैं यह अत्यंत प्रशंसा की बात है।सनातनधर्म से जुड़े मानव मूल्यों को खोजने में बड़ा व्यस्त दिखते  हैं।हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी बिन्दुओं पर अपनी क्षमताओं के आधार पर पूर्ण समर्पित से   दिखते  हैं।

     मेरा एक निवेदन जरूर है कि हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर न केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता देखता हूँ ।

     अक्सर टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी, और न ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है! 

    इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुकपाने पाने में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

   अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ?सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?

   एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी ,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर रोडों पर ही बीतती है।फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक नहीं है।मैं तो इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष, वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?

   कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को न पढ़ पाने,न जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने की विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए । 

       ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं ।   


     टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से !

      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उन्हें मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों प  लोग पैंट शर्ट  पहन  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है। ऐसे लोग भी हैं जो  किसी का गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर उद्धार कर  रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और  हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैंएजो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे होते हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता ! खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । 

    प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है। 
      वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।

    जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।

       पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष  परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।

     इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदरउस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।

      पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.ए. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?

       कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ! 

प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर बोल रहे होते हैं सौ प्रतिशत झूठ,चैनलों पर पढ़ा रहे होते हैं ज्योतिष,ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े होगें नहीं पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन। कराई जाती है झूठी प्रशंसा  ।अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं ।कई तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं । अन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ नहीं होता है आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए ! 

      इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु , उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट  www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा ।  

 

देश और समाज की सुरक्षा केवल पुलिस के सहारे !

पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा                                 यह समाज ?

    कुछ  टी.वी. चैनल हर तरफ से  हो रहे अपराधों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाज उठा रहे  हैं यह अत्यंत प्रशंसा की बात है।सनातनधर्म से जुड़े मानव मूल्यों को खोजने में बड़ा व्यस्त दिखते  हैं।हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी बिन्दुओं पर अपनी क्षमताओं के आधार पर पूर्ण समर्पित से   दिखते  हैं।

     मेरा एक निवेदन जरूर है कि हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर न केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता देखता हूँ ।

     अक्सर टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी, और न ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है! 

    इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुकपाने पाने में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

   अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ?सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?

   एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी ,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर रोडों पर ही बीतती है।फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक नहीं है।मैं तो इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष, वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?

   कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को न पढ़ पाने,न जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने की विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए । 

       ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं ।   


     टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से !

      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उन्हें मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों प  लोग पैंट शर्ट  पहन  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है। ऐसे लोग भी हैं जो  किसी का गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर उद्धार कर  रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और  हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैंएजो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे होते हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता ! खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । 

    प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है। 
      वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।

    जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।

       पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष  परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।

     इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदरउस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।

      पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.ए. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?

       कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ! 

प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर बोल रहे होते हैं सौ प्रतिशत झूठ,चैनलों पर पढ़ा रहे होते हैं ज्योतिष,ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े होगें नहीं पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन। कराई जाती है झूठी प्रशंसा  ।अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं ।कई तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं । अन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ नहीं होता है आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए ! 

      इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु , उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट  www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा ।  

 

Mata Durga puja By Dr.S.N.Vajpayee

                          अब  दुर्गासप्तशती  आदि

                                         भी

                   रामचरितमानस एवं सुंदरकांड 

                                    की तरह 

                       हिंदी दोहा चौपाई में पढ़िए                         

                    राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान 

                                     की ओर से 

                              शास्त्रीय ज्ञानविज्ञान  को 

             घर घर जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पह

                                            में

                            आप भी सहयोगी बनें


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 दुर्गा सप्तशती की पुस्तक संस्कृत भाषा  में होने के कारण बड़े  यज्ञ यागादि  तो वैदिक ब्राह्मणों से कराने  ही होते रहे हैं।जो लोग संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती नहीं पढ़ पाते हैं उनकी सुविधा के लिएअब

            राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान  से 

     उसी दुर्गा सप्तशती ग्रंथ का  हिंदी दोहा चौपाई में प्रमाणित अनुवाद किया गया है इसे अब आसानीपूर्वक सुंदरकांड  या राम चरित मानस की तरह  हिंदी कविता में अकेले या कुछ लोगों के समूह में बैठ कर  बिना संगीत या संगीत के द्वारा भी पढ़ा जा सकता है।

    समाज में जो अपराध की भावना बड़ी है उसी कारण से प्राकृतिक विप्लव कहीं बाढ़, कहीं सूखा,भूकंप आदि के द्वारा भारी नरसंहार के भयावह दृश्य देखने को मिल रहे हैं।इसीप्रकार से बम विस्फोट, आतंकवाद,  महामारी आदि सामूहिक या पारिवारिक विपदाओं से बचने के लिए अभी भी सँभलने का समय है। ऐसे में दुर्गा जी की आराधना ही एक मात्र सरल उपाय है जो कोई संस्कृत भाषा में न पढ़ सके उसे  हमारे संस्थान से प्रकाशित दुर्गा सप्तशती की इस सबसे अधिक प्रमाणित पुस्तक से ही पाठ करना  चाहिए,यह सबसे सरल और प्रमाणित उपाय है।

       कुछ लोगों ने पहले भी इस पुस्तक को या दुर्गा जी की और भी ऐसी पुस्तकें अपनी अपनी भाषा शैली में श्रृद्धापूर्वक लिखने के प्रयास किए हैं।उनमें जो कमियाँ छूट गई हैं उन्हें पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। 

      पहली बात उनमें भाषा की गलतियाँ देखी गई हैं दूसरी बात किताब को सरल बनाने के लिए बहुत विषय छोड़ दिया गया है वो छोटी छोटी पतली पतली पुस्तकें पढ़ने में आसान ज़रूर हैं,किन्तु खंडित होने के कारण उन्हें पढ़ने का लाभ क्या है?वो प्रचलित पुस्तकें कितनी प्रमाणित हैं इसकी तुलना आप गीता प्रेस की प्रमाणित पुस्तक को देखकर स्वयं भी कर सकते हैं। 

    तीसरी बात यह है कि उनमें से कुछ पुस्तकों में लेखक लोगों ने हर पेज में अपनी फोटो एवं हर लाइन में अपना नाम डाल रखा है।यह विधा इसलिए ठीक नहीं है कि पाठ करने वाला लेखक की नहीं अपितु दुर्गा माता की पूजा करना चाहता है इसलिए उस पाठ के बीच - बीच में लेखक की अपनी फोटो एवं हर लाइन में उसके नाम की  जरूरत क्या है और इससे पाठ भी खंडित होता है जिससे करने वाले को दोष तो लगता ही होगा !

      ऐसे लोगों ने रद्दी कागज में घटिया टाइटल लगाकर केवल पैसे कमाने के लिए कमजोर किताबें बनाई हैं ताकि ताकि जल्दी फट जाएँ और उनकी नई किताबें बिक सकें!

       इन सबसे ऊपर उठकर मैंने सोचा कि फिल्मी मैग्जीनें तो अच्छे अच्छे कागजों और कवर में छापी बनाई जाती हैं जबकि दुर्गा जी के साहित्य लिए ऐसी तुच्छ श्रृद्धा !इसलिए मैंने सबसे महँगी लागत लगाकर किताब बनाई है आखिर जगत जननी माता दुर्गा के प्रति आस्था विश्वास का सवाल है । हम माता के सम्मान एवं प्रामाणिकता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते,शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के साथ समझौता करना अपने स्वभाव में ही नहीं है !

       बहुत से बुक सेलरों ने हमारी पुस्तकों को बेचने से इसलिए मना कर दिया है कि उन्हें कमीशन कम मिलता है यदि हम किताबों की क्वालिटी घटा दें तो उनका कमीशन बढ़ जाए!बंधुओं,आज भी  तीस प्रतिशत कमीशन देकर हम लगभग लागत दाम पर उन्हें पुस्तकें उपलब्ध करवाते हैं फिर भी उन्हें संतोष नहीं हो रहा है,किताबों की क्वालिटी घटाने का हम पर दबाव बना रहे हैं।  

     बंधुओं,इसी प्रकार के कुछ लोगों के विरोधी विचारों से मैं आहत हूँ,महँगे महँगे विज्ञापन दे पाना अपने बस का नहीं है अतएव आप सभी दुर्गा जी के भक्तों से निवेदन है कि आप हमारे संस्थान के इस तरह के कार्यक्रमों में सहयोग करने के लिए आगे आएँ और आप अपनी श्रृद्धा एवं शक्ति के अनुशार हमारा आर्थिक सहयोग करें ।यदि संभव हो तो इसके लिए आप कुछ और लोगों को भी प्रेरित करें। 

       दूसरी बात यह है कि लागत मूल्य पर ये पुस्तकें संस्थान से खरीद कर भक्तों को बाँटने के लिए  लोगों को आप प्रेरित करें।

        इस प्रकार की पाँच पुस्तकों के सेट हमारे यहाँ बनाए गए हैं जो हमारे एकाउंट में पैसे जमा करवाकर आप डाक द्वारा हमसे ये पुस्तकें मँगवा सकते हैं।

  हमारा अभियान केवल इतना ही नहीं अपितु जन जन तक शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को पहुँचाना है सनातन धर्म के समस्त श्रृद्धालुओं से मेरी प्रार्थना है कि इस अत्यंत पवित्र कार्य में आप भी हमारे सहयोगी बनें।

        वैसे भी पुराणों में कहा गया है कि कोई भी  व्यक्ति जब तक प्रतिदिन भगवती दुर्गा की पूजा नहीं करता तब तक वह और कितने भी प्रकार के दूसरे  पुण्य कर्म क्यों न कर ले किन्तु  उनका कोई फल नहीं मिलता है अपितु  भगवती दुर्गा  स्वयं उन सारे पुण्यों को भस्म कर देती हैं। जैसे -

     यो न पूजयते नित्यं चण्डिकां भक्त वत्सलाम् ।

     भस्मी कृत्यास्य  पुण्यानि निर्दहेत् परमेश्वरी ।।

                                                                 -पुराण 

      इसलिए भगवती दुर्गा की आराधना हर किसी को प्रतिदिन करनी चाहिए साथ ही हर घर में प्रतिदिन होनी चाहिए।हर गाँव, नगर ,समाज,शहर ,देश आदि में सामूहिक रूप से की जानी चाहिए। मंदिरों के पंडित पुजारियों को चाहिए कि वे इस पूजन विधान को प्रतिदिन करें । इससे उस क्षेत्र में रहने वालों को कभी किसी प्रकार के संकट का सामना नहीं करना पड़ता है। इससे सामाजिक दुष्प्रवृत्तियाँ एवं विप्लव आदि रोकने में विशेष सहयोग मिलेगा।

    जैसे किसी दुर्घटना के घटने पर सरकार राहत सामग्री पहुँचाती है साथ ही सहयोग राशि देती है किन्तु सरकार हो या संसार का कोई और दूसरा व्यक्ति हो किन्तु कोई दुर्घटना घटने के बाद ही उसके विषय में सबको पता लगता है किन्तु दुर्गा जी की आराधना तो कोई दुर्घटना घटने ही नहीं देती है।इसलिए जीवन में सभी प्रकार की सुख शांति समृद्धि  पूर्वक जीने के लिए  क्यों न दुर्गा जी की ही आराधना की जाए ! 

       इसके लिए दुर्गा सप्तशती एवं नवदुर्गा स्तुति हमारे संस्थान से प्रकाशित हैं इनका पाठ अधिक से अधिक करना चाहिए।इसमें खर्च की समस्या भी बहुत कम होती है क्योंकि किसी बाबा ,पंडित, पुजारी आदि से इसका पाठ नहीं कराना पड़ता है आप स्वयं इसका पाठ कर सकते हैं।   

      चूँकि संस्कृत की दुर्गा सप्तशती की पुस्तक कठिन है संस्कृत  विद्वानों के अलावा और कोई इसका पाठ नहीं कर सकेगा। अशुद्ध पाठ करना नहीं चाहिए। धन की कमी के कारण हर कोई विद्वान् ब्राह्मणों से इसका पाठ करा नहीं सकताउसके लिए ज्यादा धन की आवश्यकता होती है।

      वैसे भी पूजापाठ स्वयं करना ही अधिक श्रेयस्कर रहता है, उससे पुण्यलाभ के साथ साथ संस्कार भी सुधरते हैं । इसलिए समाज की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ही संस्कृत दुर्गा सप्तशती का हिन्दी कविता अर्थात दोहा चौपाई में अनुवाद किया गया है।

      दुर्गा जी की पूजा सामूहिक रूप से की जाए तो बहुत ज्यादा प्रभावी होगी।आप अपने नाते रिश्तेदारों तथा हेती व्यवहारियों को एवं समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को साथ जोड़कर सामूहिक पाठ का आयोजन कर सकते हैं, न अधिक संभव हो तो यह आयोजन वर्ष में एक बार तो हर कहीं किया ही जा सकता है और करना भी चाहिए । यह तो धर्म, पुण्य एवं जनहित का काम है,इसलिए तन मन धन से प्रसन्नता पूर्वक करना ही चाहिए।ऐसा करने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।हमारे संस्थान से लागत दाम पर दुर्गा सप्तशती आदि लेकर उन लोगों को बाँटनी चाहिए जो इन्हें पढ़ने  की रूचि रखते हों । लोगों को सामूहिक पाठ करने या करवाने के लिए प्रेरित भी करना चाहिए।

       हमारे संस्थान की ओर से इस प्रकार के कार्यक्रम अक्सर अलग अलग जगहों पर चलाए जाते रहते हैं उनमें सम्मिलित होने के लिए यदि आप धन का सहयोग करना चाहें तो आप हमारे संस्थान के पता एवं फोन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।  इस प्रकार के पवित्र प्रयास वाले पर भगवती दुर्गा असीम कृपा करती रहती  हैं ऐसे भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूरी करती रहती हैं ।

      इससे एक अथवा अनेकों स्त्री-पुरुष आदि एक साथ बैठ कर स्वयं ही बड़ी आसानी से संयम पूर्वक हजारों पाठ करके शत चंडी यज्ञ, सहस्र चंडी यज्ञ  या इसीप्रकार लक्षचंडी यज्ञ भी आप स्वयं ही आम आदमी के सहयोग से कर सकते हैं। 

   शत चंडी यज्ञ के लिए आपको दुर्गा सप्तशती के सौ पाठ करने होते हैं,सहस्र चंडी यज्ञ में आपको दुर्गा सप्तशती के एक हजार पाठ करने होते हैं इसीप्रकार लक्षचंडी यज्ञ के लिए आपको दुर्गा सप्तशती के एक लाख पाठ करने होते हैं। दस पाँच या सैकड़ों स्त्री पुरुष इस पाठ में सम्मिलित किए जा सकते हैं वो जितने भी पाठ एक दिन में कर लें वो लिख ले इस प्रकार शत चंडी यज्ञ,सहस्र चंडी यज्ञ आदि कुछ भी आप स्वयं संपन्न कर सकते हैं।इसके लिए यदि किसी को कोई जानकारी लेनी तो बिना किसी हिचक के आप हमारे यहाँ फोन कर सकते हैं या फिर समय समय पर लगने वाले हमारे प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेकर इस विषय की जानकारी समझ सकते हैं ।  

     नवदुर्गा स्तुतिःइसीप्रकार जिनके पास समय का अभाव है उनके लिए नवरात्र के अलग अलग दिनों में पढ़ने के लिए नव देवियों की नव स्तुतियॉं प्रमाणित रूप से हमारे श्री नवदुर्गा स्तुति नामक ग्रंथ में लिखी गई हैं। यह हमारे संस्थान से प्रकाशित है इसका पाठ अधिक से अधिक करना चाहिए। एक तो यह प्रमाणित है दूसरा रामचरित मानस की तरह ही इसका भी पाठ किया जा सकता है। तीसरी सुविधा यह है कि जिनके पास समय नहीं होता है उन्हें नवरात्र के प्रतिदिन भी दिनों के हिसाब से अर्थात नवरात्र के किस दिन में किस देवी का  पाठ कितना करना होता है ?यह जानकारी  भी सबिधि दी गई है। 

    इन्हें  प्राप्त करने के लिए अथवा किसी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए आप हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान  में बिना किसी हिचक के संपर्क कर सकते हैं 09811226973