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Monday, March 21, 2016

सेक्स मुक्त साधक साधू संत !


    सेक्स मुक्त साधक साधू संत भी होते हैं यह सुन कर थोड़ा अटपटा सा भले लगे किंतु सच्चाई यही है कि सेक्स मुक्त विरक्त साधू संतों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वो सामाजिक प्रपंच फैलते फिरें !यही करना होता तो वो विवाह करते बच्चे होते तो उनका उत्सव मनाते धंधा व्यापार करते !और आज भी जो साधक साधू संत हैं उनका न उत्सवों से लगाव है न मीडिया से अपितु वे तो किसी से मिलना ही नहीं चाहते !वैराग्य वाले साधू संत न तो धन संग्रह करते हैं और न ही सांसारिक प्रपंचों में फँसते हैं और नही किसी को ये बताते फिरते हैं कि मैं क्या खाता हूँ क्या पीता हूँ कैसे रहता हूँ आदि आदि !
    आजकल धार्मिक पाखंडियों को  इस बात का भी प्रचार प्रसार करना पड़ रहा है कि वो केवल एक ग्लास गाय का दूध लेते हैं वो जमीन में केवल एक चटाई बिछाकर सोते हैं उनके नाम से एक भी पैसा नहीं है उनका किसी महिला से कोई सम्बन्ध नहीं है !किंतु ऐसे पाखंडियों की हर हरकत पर समाज की निगाहें होती हैं  इसीलिए तो ये पाखंडी पापी दे रहे होते हैं सफाई !इन्हें ये समझ में नहीं आता है कि तुमने ऐसी हरकतें की क्यों कि समाज को तुम पर शक हुआ और तुम्हें सफाई देनी पड़ी !
   वैसे भी जिसने धन कमाया मकान बनाया सुख सुविधा के सारे साधन जुटाए वो सेक्स से दूर रहेगा ये विश्वास करने योग्य ही नहीं है जिसे अपने मन पर लगाम ही लगाना होता वो पहली स्टेज पर ही लगा लेता किंतु सारे साधन जुटाकर फिर केवल सेक्स नहीं करेगा !ऐसे लोग लुक छिप कर समाज में इतनी गन्दगी फैला रहे हैं जिसका जब भंडाफोड़ होता है तब अपने पापों के कारण सारे धर्म एवं धार्मिक समाज को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं ऐसे लोग !जिसकी पीड़ा और उससे संबंधित समाज के ताने महीनों वर्षों तक सहने पड़ते हैं चरित्र वान  साधूसंतों को !इसलिए ऐसे पाखंडियों का शुरू से ही बहिष्कार करे धार्मिक समाज !
  गाँवों में कहावत है कि "राणें तो रणापा सहकर भी रह सकती हैं किंतु रणुआ लोग रहने दें तब न !"इस कहावत का मतलब है कि विधवा स्त्रियाँ यदि अपना जीवन नियम संयम पूर्वक बिताना भी चाहें तो भी रणुआ अर्थात विवाह की आशा छोड़ चुके अविवाहित लोग उन्हें जीने कहाँ देते हैंअर्थाततंग किया हीकरतेहैं ।        बिलकुल यही स्थिति धर्म के क्षेत्र में भी है यदि बाबा बैरागी नियम संयम पूर्वक रहना भी चाहें तो भी कुछ कामचोर अकर्मण्य आलसी भाग्यपीड़ित ईश्वर विमुख लोग उनके आश्रमों में दुँदाढ़ी पर साँप रेंगाने पहुँच जाते हैं - यथा : मलमल बाबा की जय हो !मलमल बाबा के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम !बाबा जबसे हम आपके समागम में आए आपने पति दिया, पत्नी दी ,प्रेमी दिया ,प्रेमिका दी , बच्चे भी आप के ही दिए हुए हैं माकन आपने दिया है सरकारी नौकरी आपने दे दी है मेरा कारोबार खूब चलने लगा है हमारे यहाँ आपने इतना धन भर दिया है कि हम तो माला माल हो गए ! ऐसे भाड़े के प्रशंसा कर्मियों ने बाबाओं के न केवल दिमाग ख़राब कर दिए हैं अपितु उन्हें भगवान सिद्ध कर दिया है। 
    यह सब बनावटी विरुदावली  सुनकर बाबा को लगता है कि क्या वास्तव में मेरे अंदर ये गुण हैं और यदि हैं तो क्यों न सब कुछ अपने लिए ही सबकुछ किया जाए और जब अपने लिए करने लगते हैं तो तुरंत पकड़ जाते हैं तो पता लगता है कि  ये बुद्धूबकस वैसे तो ढपोल शंख हैं किंतु लोग पूजने लगे तो पुजवाने लगे और पुजवाने के चक्कर में खा रहे हैं जेलों की हवाएँ !
       कुलमिलाकर संपत्ति बढ़ती है वैभव बढ़ता है यश बढ़ता है सुख सुविधा के साधन बढ़ते हैं सुन्दर सा मकान बनता है उसमें बेडरूम बनता है उसमें बेड पड़ता है जिस विरक्त का मन यहाँ तक पहुँच गया वो इसके आगे की जीवन यात्रा ब्रह्मचारी बन कर करेगा इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए ! वैरागियों के मन बेडरूम से बेडों तक पहुँचते ही नहीं हैं वो इनके बहुत पहले संयम पूर्वक रोक लिए जाते हैं ।
   धार्मिक भ्रष्टाचारियों  अर्थात भीड़ लगाने वाले सुख सुविधा भोगी आधुनिक धार्मिकों के आनंदभवनों (आश्रमों )की तलाशी जहाँ जहाँ भी हुई है वहाँ  और कुछ मिला हो न मिला हो किन्तु सेक्स सामग्री तो लगभग मिलती ही है वैसे भी ऐसे सेक्सकांड जहाँ भी पकड़े जाते हैं वहाँ कोई बाबा निकलता है या जहाँ कोई बाबा पकड़ा जाता है वहाँ सेक्स निकलता है ! आखिर बाबाओं और सेक्स का आपसी सम्बन्ध क्या है !बंधुओ !सांसारिक प्रपंचों में फँसे होने पर भी जो बाबा पकड़े नहीं जाते हैं उसमें उनके पवित्र बने रहने का श्रेय उनके राजनैतिक रसूक को दिया जाए या उनके पैसे के प्रभाव को या उनके अनुयायियों के दबाव को या फिर प्रशासन की ढिलाई को !किंतु दुर्भाग्य इस बात का है कि ऐसे लोग आजकल मीडिया के द्वारा धर्मगुरु  योगगुरु ज्योतिषगुरु आदि और भी बहुत कुछ बताए जाने लगे हैं मीडिया को जैसे पैसे मिलते हैं उतना उसके विषय में बढ़ा चढ़ा कर बोला जाता है ।

      जहाँ धार्मिक लोग शास्त्रीय आचार व्यवहार सदाचरण आदि छोड़कर निरंकुश स्वेच्छाचारी जीवन जीने लगते हैं उन पर विश्वास ही क्यों किया जाता है उनका बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता !और समाज के जो लोग ऐसे अवारा लोगों साथ दे रहे होते हैं उन्हें दोषी क्यों न माना जाए !आखिर ये कैसे मान लिया जाए कि वहाँ हो रहे कुकर्मों के विषय में उन्हें कुछ पता ही नहीं था !बंधुओ !आप घर बनाने खड़े होते हैं तो हजारों अड़चनें आती हैं किंतु आप बाबा हैं इसलिए आश्रम बनाने खड़े होते हैं तो धड़ाधड़ बनता चला जाता है आखिर कैसे ?इसी प्रकार आप व्यापार करने निकलते हैं तो कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं क्या कुछ नहीं सहना पड़ता है उधार व्यवहार पैसे माँगने पड़ते हैं ब्याज चुकाना पड़ता है गारंटी देनी पड़ती है आदि आदि और भी बहुत कुछ !किंतु यदि आप बाबा बनके ब्यापार करना चाहते हैं तो कितना आसान होता है लोग दसपाँच वर्षों में करोड़ों अरबोंपति बन जाते हैं ।
 अपनी भावनाओं को कब तक यों ही कुंठित होने दें बाबा लोग ! 
      दूसरों को सेक्स सुखों के छलकते तालाबों में डूबते उतराते आखिर कब तक यूँ ही बेबश निगाहों से निहारते  रहें !आखिर क्यों न उतरें आप भी इस सेक्स सरोवर में !ऐसी ही भावनाओं से गर्भित विरक्ति विहीन मन निकल पड़ता है परोपकार या समाज सेवा करने । कुछ बाबालोग शादियाँ कराने लगते हैं कुछ तो दूसरों की डिस्टर्ब मैरिज लाइफ को ही सेट करने लगते हैं कुछ तो सेट करते करते खुद सेट हो जाते हैं इसी सेटिंग में कुछ को तो बाल बच्चे तक हो जाते हैं ,कुछ बाबा लोग नपुंसकता दूर करने के आसन सिखाने लगते हैं कुछ बच्चा होने की दवाई बनाते बेचते हैं कुछ बच्चा होने के यंत्र तंत्र ताबीज देते हैं तो कुछ लोग बच्चा होने का आशीर्वाद केवल वाणी से देते हैं तो कुछ कृपालु ऐसे भी हैं जो किसी को बच्चा देने के लिए अपना शारीरिक योगदान भी करते हैं !

Wednesday, March 9, 2016

महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही हैं फिर छेड़छाड़ के आरोप केवल पुरुषों पर क्यों ?

बलात्कारविश्लेषण-आखिर रुक क्यों नहीं रहे हैं बलात्कार !
     कहीं ऐसा तो नहीं है कि गलती केवल पुरुषों की न हो !अन्यथा इतने बड़े बड़े दंड विधानों का उतना असर होता क्यों नहीं दिख रहा है समाज पर !लगभग हर दिन सुनाई पड़जाता है कोई न कोई केस !अब तो छोटी छोटी बच्चियों के साथ भी किए जाने लगे हैं अत्याचार !आखिर कहाँ तक और किस किससे बचाई  जाएँ बच्चियाँ !ग़लतियाँ बड़ों की और भोग रही हैं बच्चियाँ !
     वर्तमान समय में अच्छे बुरे जो भी जितने प्रकार के काम पुरुष करते या कर सकते हैं लगभग वो हर काम आज महिलाएँ भी करती या करने का प्रयास करते देखी जा सकती हैं !आतंकियों नक्सलियों नशेड़ियों शराबियों तस्करों चोरों हत्यारों आदि बुरे से बुरे कामों में भी महिलाएँ सम्मिलित देखी जा रही हैं आज !फिर क्या कारण है कि रेप जैसी जितनी भी दुर्घटना घटती हैं सब में केवल पुरुष समाज को दोषी ठहरा दिया जाता है आखिर  महिलाओं में सेक्स की इच्छा नहीं होती है क्या ?आप स्वयं देखिए कहाँ पीछे हैं महिलाएँ -see more...http://khabar.ibnlive.com/photogallery/ibn7-operation-lajja-reavels-wife-swapping-459253.html
    महिलाओं की सुरक्षा हेतु  पुरुषों को अनुशासित रखने के लिए बड़े से बड़े दंडविधानों का प्रावधान किया गया किंतु महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार घटते नहीं दिख रहे हैं आखिर क्यों ?हो न हो हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही महिलाएँ इसक्षेत्र में भी अधिक न सही आंशिक रूप से ही हो अपनी भूमिका भी अदा कर रही हों ! केवल पुरुषों को कहीं बेवजह परेशान तो नहीं किया जा रहा है !
     सेक्स भावना जिन भी स्त्री पुरुषों के मन में जितनी अधिक होती है ऐसे स्त्री पुरुष उतने ही अधिक सजते सँवरते अर्थात श्रृंगारप्रिय होते हैं कुलमिलाकर शरीर के  श्रृंगार का लेवल मन की बासना के लेवल को प्रकट  करता है ये प्राचीन शास्त्रीय सिद्धांत है संभवतः पुराने लोग इसीलिए सहज श्रृंगार ही करते थे !इस शास्त्रीय सिद्धांत के अनुशार यदि श्रृंगार का सीधा संबंध सेक्सभावना से माना जाए तो वर्तमान समय में श्रृंगार करने करवाने का शौक पुरुषों में अधिक होता है या महिलाओं में ?ब्यूटी पार्लरों की जरूरत अधिक किसे पड़ती है । पुरुषों को या स्त्रियों को  ?
     इसी प्रकार कोई भी दूकानदार हर बिकाऊ वस्तु को सीसे में रखता है ताकि दिखाई पड़ती रहे जब दिखाई पड़ेगी तब तो कस्टमर उसे पसंद करेंगे !जो चीज में किसी के पसंद न पसंद की चिंता नहीं होगी उसे लोग दिखाएँगे क्यों ढक कर रखेंगे !वर्तमान फैशन के युग में स्त्री -पुरुषों में शरीर दिखाने की भावना किसमें किससे अधिक देखी जाती है ?       
    अब स्त्री-पुरुषों,लड़के-लड़कियों का रोडों पर साथ साथ निकलना बंद किया जाए !ऑड इवेन के हिसाब से घरों से निकलें पुरुष और महिलाएँ ! जिसदिनहिलाएँ रोडों बाजारों के लिए निकलें उस दिन पुरुष दूर दूर तक दिखाई न पढ़ें इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी नियम बनाए जाएँ !बंद हो जाएगी सारी  छेड़छाड़ ! पुरुष अपने आपसे किसी महिला को छुएँ न देखें न घूरें न कुछ बोलें न और महिलाओं को जो ठीक लगे सो सब कर सकती हैं महिलाएँ !ये कैसी बराबरी !!
     छोटी छोटी बच्चियों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए करना होगा ये ....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
   प्यार का खतरनाक खेल खेलते दोनों हैं किंतु बातबिगड़े तो दोषी पुरुष समाज !ये कैसी बराबरी !!किसी के पास कितनी है धन संपत्ति यह जानने के लिए पहले प्यार करें मन मिलाकर पूछ लें सबकुछ इसके बाद छेड़ छाड़ से लेकर बलात्कार तक का लगाकर आरोप भेज दें जेल समझौता हो तो अच्छा हो अन्यथा सड़े जेल में !बाद में दोषी बेचारा पुरुष समाज !प्यार का खेल दोनों ने खेला और भुगते केवल आदमी !अरे ये कैसी बराबरी ? 
    ससुराल वाले दहेज़ लें न लें उनके मातापिता बहू की कितनी भी प्रताड़ना सहें किंतु कुछ न कहें और यदि कभी कुछ मुख से निकल ही जाए आखिर मर मर कर जिसघर को बनाते हैं उसे बर्बाद होते कैसे देख सकते हैं किन्तु इतनी भी बात बर्दाश्त नहीं है तुरंत होता है दहेज़ का मुकदमा घर भर भेज दिए जाते हैं जेल!ऐसे बचेगा समाज !उचित तो ये है कि ऐसी महिलाओं से उन वृद्ध मातापिता की सुरक्षा के लिए क्यों न बनाए जाएँ कुछ कठोर नियम !ऐसी महिलाओं की असहनशीलता के कारण दिनोंदिन बुढ़ापा बोझ होता जा रहा है।जो घर में घरभर को दबाकर रखती हैं उन्हें बाहर सुरक्षा की जरूरत पड़ती होगी क्या ?सरकार ने भी तो सारे कानून महिलाओं के ही पक्ष में बना रखे हैं ये कोई नहीं सोच रहा आम समाज में सामान्यतौर पर गुजर बसर करने वाले उन परिवारों का क्या होगा जो महिलाओं की प्रताड़ना से नर्क बन चुके हैं आज !पुरुष हों या स्त्री अपने दायित्वों के प्रति जो समर्पित नहीं हैं वे सब दोषी !ऐसे हो सकती है बराबरी !दायित्व भ्रष्ट हर स्त्रीपुरुष का सामाजिक पारिवारिक बहिष्कार हो !
    समाज में मुश्किल से दस प्रतिशत लड़के लड़कियाँ पुरुष स्त्रियाँ आधुनिक खुलेपन की जिंदगी जीने के चक्कर में कर रहे हैं बड़ी बड़ी गलतियाँ !ये नशे से लेकर सारे दुष्कर्मों में एक दूसरे से बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और बदनामी भुगत रहा है देश का सारा सभ्य समाज !जिसे इस आधुनिकता फैशनेबलनेस से कोई लेना देना ही नहीं है बच्चे पालने मुश्किल हो रहा है उसे !वो एय्याशी करेगा तो खाएगा क्या ? इन दस प्रतिशत फैशनेबल हाईटेक स्त्री पुरुषों ने प्यार आधुनिकता और फैशन के नाम पर बदनाम कर रखा है सारा समाज !        कानून के हिसाब से महिलाएँ सबकुछ कर सकती हैं बेचारे पुरुष नहीं कर सकते !कहने को है बराबरी किंतु हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। बात यदि बराबरी की है तो मैट्रो में दो कमरे महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो दो पुरुषों के लिए भी होने चाहिए किन्तु ऐसा होता तो नहीं है आखिर क्यों ?महिलाओं के लिए भी तो बननी चाहिए कोई आचार संहिता !ऐसा कब तक  चलेगा कि गलती करें महिलाएँ और फाँसी पर लटकाते रहा जाए पुरुषों को ! पुरुष इस समाज के अंग नहीं हैं क्या ?प्यार दोनों मिलकर करते हैं किंतु कोई दुर्घटना पुरुषों पर घटती है तो कोई बात नहीं महिलाओं पर घट जाए तो महिला सुरक्षा की बात उठने लगती है ।
    फाँसी जैसा कठोर कानून बनने के बाद इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाए !सभी पुरुषों को बदनाम करना ठीक नहीं है !पुरुष इस समाज में कैसे रहें ये महिलाएँ ही निर्णय कर दें।आम आदमी हो या आम महिलाएँ प्यार फैशन इस प्रकार के सारे लफड़ों से दूर हैं वे !  
     खजाने को चाहने वाले बहुत लोग होते हैं इसलिए वो बहुमूल्य होता है इसीलिए उसे छिपाकर रखना होता है अन्यथा उसकी सुरक्षा के लिए किससे किससे कैसे कैसे लड़ा जाएगा ! यदि किसी के पास कोई खजाना हो और नैतिक तथा कानूनी दृष्टि से वो उसका अपना हो किंतु यदि उसे एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर पहुँचाना हो तो उसे लोग छिपाना क्यों चाहते हैं उसे ले जाने के लिए सिक्योरिटी की जरूरत क्यों पड़ती है और यदि कोई खजाना खोलकर केवल सरकारी सिक्योरिटी के बलपर ले जाना चाहे इसका मतलब क्या ये नहीं है कि वो खजाना स्वयं लुटवाना  चाहता है ।
     इसीप्रकार से महिलाओं के संपर्क में रहने से लेकर उन्हें छूने देखने आदि सभी प्रकार से महिलाओं से जुड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों से महिलाओं को संपर्क सीमित क्यों नहीं रखने चाहिए !जो सरकारें शहरों की रोडों पर बिना स्पेशल सिक्योरिटी के बैंकों की कैस बैन नहीं भेजती हैं इसका मतलब महिलाओं को भी समझना चाहिए कि आम नागरिकों को मिली सिक्योरिटी पर सरकार स्वयं भरोसा नहीं करती है तो ऐसी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे महिलाएँ अपने को सुरक्षित कैसे मानती हैं इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए निजी तौर पर सतर्कता बरतना चाहिए !क्योंकि कामी पुरुषों के लिए महिलाएँ किसी खजाने से कम नहीं होती हैं । 
     पहले शरीर ढकने के लिए कपड़े पहने जाते थे अब शरीर दिखाने के लिए कपड़े पहने जाते हैं !आजकल मुख्य मुख्य जगहों पर कपड़े पहनकर उन्हें हाईलाईट करने का फैशन चला है इसीलिए कपड़े मुख्य मुख्य जगहों पर पहने जाते हैं तब आचार ब्यवहार संस्कार सृजन को ध्यान में रख कर कपड़ों का चयन किया जाता था उससे चरित्रवान संस्कारी समाज का निर्माण होता था अब फैशनेबल लोग बलात्कारी समाज तैयार कर रहे हैं वो रेप गैंगरेप सेक्स या मासिक धर्म जैसी चीजों को मन और शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं ऐसे इतने आधुनिक स्त्री पुरुषों को कोई रोके कैसे इससे भारत कहीं आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ न जाए ! फैशन स्त्रियों का हो या पुरुषों का इसमें नया कुछ नहीं होता है बल्कि फैशन का उद्देश्य ही पुरानी परंपराओं की दीवार लाँघ कर खुला खुला जीवन जीना होता है ऐसी खुली विचार धारा के स्त्री पुरुष लड़के लड़कियाँ का पहनावे से लेकर रहन सहनबोली भाषा मिलना जुलना सब कुछ आधुनिक होता है।पुराने समय में लोग  किसी महिला के प्रति अपनी सेक्सुअल भावना व्यक्त नहीं कर सकते थे इस भावना से उन्हें छू भी नहीं सकते थे पूरा शरीर ढक कर रखना होता था श्रृंगार मर्यादा में रखना होता था संगीत मर्यादित होता था ये सब करने का उद्देश्य सादा सात्विक रहन सहन एवं संस्कारयुक्त चरित्रवान सादा  जीवन उच्च विचार बनाए रखना था किंतु जिसे पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन सब पसंद न हों वो आधुनिक फैशनेबल आदि कुछ भी कहे जा सकते हैं । ये आधुनिक लोग प्राचीन के बिलकुल बिलोम होते हैं आधुनिकों का  रहन सहन आचार ब्यवहार आदि सबकुछ प्राचीनता विरोधी होता है उस समय पूरे कपड़े पहने जाते थे अब आधे पहने जाते हैं पुराने रहन सहन में संस्कार सदाचार आदि सबकुछ होता था प्राचीन का बिलोम शब्द है आधुनिक , इसलिए पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन जिन्हें  पोंगापंथी लगने लगता है ऐसे आधुनिक फैशनेबल लोग जब अपनी जिंदगी का सबकुछ बदल लेंगे तो संस्कार सदाचार आदि कैसे बचा रहेगा !ये भी तो बलात्कार जैसी भ्रष्टता में बदल जाएगा ।
       प्यार करने वाली महिलाएँ हों या पुरुष सम्मिलित तो दोनों ही होते हैं प्यार कभी किसी का अकेले तो हो भी नहीं सकता है दूसरी बात प्यार के पथ पर धोखे भी सबसे अधिक मिलते हैं !प्यार करने वाले स्त्री पुरुष प्रायः शूनशान जगह खोजते हैं और अपराधियों को भी शूनशान जगहें या खाली बसें आदि सवारियाँ ही प्रिय होती हैं ।ऐसी जगहों पर प्रेमी जोड़े जाते ही इसलिए हैं कि वहाँ असामाजिक या अश्लील हरकतें कर सकें और वहाँ पहुँचकर वो करते ही यही सबकुछ हैं ये वो जगहें होती हैं जहाँ समाज का जाना आना कम हो और पुलिस की पहुँच भी कम हो ! एकांत में प्रेमी   की अश्लील हरकतों में रूचि ले रही प्रेमिका को पाकर नशेड़ी अपराधियों में बासना न जगे इसकी कल्पना कैसे कर ली जाए वो भी तब जबकि वो जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा अकेले है जबकि अपराधी अक्सर अकेले नहीं होते हैं जो प्रेमी जोड़े ऐसी जगहें ताक कर ही जाते हैं और वहाँ यदि कोई अप्रिय वारदात होती है तो उनकी सुरक्षा समाज या पुलिस कैसे करे कहाँ कहाँ खोजे इन्हें ? और इसमें सारे पुरुष समाज का दोष कैसे ?
       कुछ ऐसी संस्थाएँ बनीं हैं जहाँ सेक्स सुविधाओं के लिए कुछ निश्चित अमाउंट लेकर लड़कियाँ उपलब्ध करवाई जाती हैं कुछ शरारती लड़के आपसी सहमति से खूबघनी एवं पिछड़ी बस्ती में आपसी कंट्रीब्यूशन में कुछ घंटों का किराया देकर एक कमरा लेते हैं उधर चार्ज जमा करके एक लड़की लाई जाती है किंतु उसे ये नहीं बताया जाता है कि लड़के पाँच हैं जिन्हें देखकर लड़की लड़ने लगी किंतु लड़े या कुछ भी करे अब जो होना था वो तो हुआ ही बाद में  लड़की रोड पर छोड़ आई गई जहाँ उसने गैंगरेप का पुलिस कम्प्लेन किया किंतु अब न वो लड़के उस कमरे में होंगे और न ही वो लड़की घनी बस्ती के उस मकान तक पहुँच ही सकती है बताओ ऐसी परिस्थिति में क्या करे पुलिस और महिला सुरक्षा के नाम पर सारे पुरुष समाज को क्यों कोसा जाए !
        मैट्रो में खड़ा प्रेमी प्रेमिका का एक जोड़ा उस भीड़ भरी जगह में एक दूसरे से अश्लील हरकतें कर रहा था लोग देख रहे थे किंतु उन दोनों को शर्म नहीं थी देखने वालों में तीन शरारती लड़के भी थे उन्होंने लड़की को एकदम रोमांटिक मूड में देखा वो ब्याकुल हो गए उन्होंने निश्चय किया कि जिस स्टेशन पर ये लड़की उतरेगी वहीँ हम भी उतरेंगे मेट्रो पास था ही तो यही किया और उस प्रेमी जोड़े का पीछा किया पास में ही एक ओबर ब्रिज था वहाँ  उन दोनों को पकड़ लिया प्रेमी को पीटा प्रेमिका रेप की शिकार हुई !दोषी सारा पुरुष समाज कैसे ?
     राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक पार्क में मुझे पता लगा कि सौ सौ पचास पचास रूपए में लड़कियाँ उपलब्ध रहती हैं ये मुख्यजगह और मुख्यमार्किट का पार्क है जागरूक नागरिक होने के नाते मैंने वहाँ जाकर देखा तो अश्लील परिस्थिति में कई जोड़े मिले एक आध को डांटा और पुलिस बोलाने की धमकी दी तो वो कहने लगे बोला लीजिए क्या कर लेंगे वो हर सप्ताह के हिसाब से बीत वाले से पैसे बँधे हैं हमारे !मैं दूसरे कोने पर स्थित पार्क के चौकीदार के पास गया शिकायत करने तो उसे कमरे में एक प्रेमी जोड़ा लेटा रखा था पैग लग रहे थे तो मैंने चौकीदार को डाँटा कि तुम्हें यही सबकुछ करने के लिए कमरा मिला है तो उसने कहा पुलिस वाले भी तो यही करते हैं तब तक चैकीदार के पास एक फोन आया कि पार्क के इस कोने की लाइट बंद कर दे तो उसने हमसे कहा कि देखो पुलिस वाला लाइट बंद करवा रहा है अब वहाँ कुछ होगा उसने लाइट बंद कर दी मैंने सोचा मैं फिर जला  दूँ किंतु देखा तो तारों का सारा जाल था तो मैंने कहा ठीक क्यों नहीं कराते ये सब तो उसने कहा कि कोई सुनता ही नहीं है तो मैंने निगम पार्षद को फोन किया तो पता लगा कि परसों ही ठीक करवाया गया है चौकीदार ही ख़राब कर देता है जब हमने चौकीदार को डांटकर पूछा तो उसने बताया कि लाइट  बंद करने और  6-8  पार्क में गस्त न करने के लिए उसे सौ रूपए रोज मिलते हैं तो वो घर से कपड़े लाता है धोया करता है पार्क में !          इसके बाद उधर पहुँचे जहाँ की लाईट बंद करवाई गई थीं तो वहाँ एक लड़की को तीन लोग पीट रहे थे मैंने जाकर छोड़वाने का प्रयास किया तब तक दो पुलिस वाले आए वो हमें वहाँ से जाने के लिए कहने लगे उन्होंने हमें बताया कि ये यहाँ का रोज का काम है ये लड़की अपने प्रेमी से सेक्स कर रही थी उसी समय ये तीनों गूजर लड़के आ गए इन्होंने देख लिया है ये भी करना  चाह रहे हैं लड़की मान नहीं रही है इसलिए झगड़ा हो रहा है !तुम जाओ यहाँ से !
     मैंने सोचा सौ नंबर डायल कर दूँ तो मैंने कर दिया !उन दोनों पुलिस वालों ने प्रेमी जोड़ों को समझाया देख यदि आज एक पकड़ गया तो ये खेल रोज के लिए बंद हो जाएगा इसलिए सब लोग कह देना यहाँ ऐसी कोई बात ही नहीं हुई है वो सब मान गए !जब सौ नंबर वाले आए तो पुलिस वालों के सिखाए के अनुशार वे लड़कियाँ हम पर ऊट पटाँग गंदे आरोप लगाने लगीं और वो लड़के गवाही देने को तैयार उधर पार्क में आने जाने वाले लोग कुछ बोलने को तैयार न थे अंत में उन पुलिस वालों ने और प्रेमी जोड़ों ने आपसी एकजुटता दिखाते हुए हमें अपराधी सिद्धकर दिया !अंत में आज के बाद मैं पंगा नहीं लूँगा इस शर्त पर मुझे छोड़ा गया !
      प्यार के पथ पर रूचि लेने  वाली महिलाओं के आपसी संबंध पुरुषों से जब तक नार्मल रहते हैं तब तक तो वो दोनों प्रेमी प्रेमिका होते  हैं किंतु जिस दिन प्रेमिका किसी नए प्रेमी को पकड़ ले जिसमें प्रेमी की कोई गलती न हो फिर भी वो पुराना प्रेमी  घुट घुट कर मरता रहे या आत्म हत्या कर ले या वो प्रेमिका ही उसकी हत्या करवा दे !ऐसे किसी प्रकरण में केवल एक पुरुष की हत्या मानी जाती है किंतु ऐसी ही दुर्घटना का शिकार यदि कोई लड़की या महिला होती है तो महिलाओं पर अत्याचार मानकर सारे पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है क्यों ?
      महिलाएँ नौकरी पाने के लिए ,प्रमोशन के लिए ,पैसे के लिए ,राजनीति में कोई पद प्रतिष्ठा पाने लिए पीएचडी करते समय गाइड आदि लोगों से अपने काम बनाने के लिए कई बार शारीरिक समझौता करते देखी  जाती हैं जिससे कई महिलाओं को कई उन बड़े पदों पर आसीन देखा जा सकता है जिसके लायक वो नहीं होती हैं किंतु इन बातों के कहीं कोई प्रमाण नहीं होते हैं फिर भी समाज तो सबकुछ समझता है । ऐसे ही प्रकरणों में जब उनका वो लक्ष्य बाधित होता है जिसके लिए समझौता हुआ तब उड़ती हैं बलात्कार की अफवाहें और कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है सारा पुरुष समाज !

Tuesday, March 1, 2016

dalit kaanuun ....

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दलित दुकानदारी बंद हो !
सवर्णों को गालियाँ देकर कुछ लोग बहुत बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा पा गए कुछ ने दलितों के नाम से भारी भरकम चंदा लिया और खुद खा गए सरकारों से अनुदान लिया अपने पास रख लिया आज ऐसे नेताओं से उनकी अचानक इकठ्ठा की गई अकूत सम्पत्तियों के स्रोत पूछे जा सकते हैं क्या और यदि नहीं तो क्यों ?ऐसे ही दमनकारी लोगों ने उस युग में गरीबों का शोषण किया था वही इस युग में कर रहे हैं इनकी कोई जाति धर्म नहीं होता जैसे ये इस युग में नहीं रोके जा पा रहे हैं ऐसे ही ये पहले भी नहीं रोके जा सके थे इसके लिए सारा समाज जिम्मेदार है न कि केवल सवर्ण !फिर गालियाँ सवर्णों को क्यों ?


जातिगत आरक्षण सवर्णों के लिए एक बड़ी सजा है !
ये सवर्णों के उन पूर्वजों पर आरोप लगाकर दी जा रही है जो आज इस दुनियाँ में नहीं हैं लोकतांत्रिक देश में न्याय की व्यवस्था यदि सबके लिए है तो आरक्षण जैसी कठोर सजा देने से पहले सवर्णों का पक्ष भी तो सुना जाए !सवर्णों ने दलितों का शोषण किया कब क्यों और कैसे ?बहुसंख्यक दलितपूर्वजों ने उस युग में इसका विरोध क्यों नहीं किया ? 


मनुस्मृति की निंदा क्यों ?
जिन्होंने जब लिखी थी तभी नियम बना दिया गया था कि मनुस्मृति केवल सतयुग में मानी जाएगी कह दिया गया था कि 


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