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Saturday, September 17, 2016

Mind 1(कॉपी)

      Mind 1
     लेख नं 3 
मनोरोगियों  के लिए ज्योतिष काउंसलिंग ही कारगर बाक़ी सब फेल !जानिए क्यों ?
    योगासनों का भी मनोरोग में कोई रोल नहीं ! मनोरोगी इतना निरुत्साही और निराश हो जाता है कि आसन करेगा कैसे !फिर आसनों से पेट हिलेगा दिमाग नहीं !मनोरोग से योगासनोंका क्या संबंध !
       सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं  किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !
    यथा -  "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |'
     कुल मिलाकर विश्व की किसी  भी चिकित्सा पद्धति में मनोरोगियों को स्वस्थ करने की कोई दवा नहीं होती नींद लाने के लिए दी जाने वाली औषधियाँ  मनोरोग की दवा नहीं अपितु नशा  हैं उन्हें मनोरोग की दवा नहीं कहा जा सकता है ! अब बात आती है  काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा की !
    काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा - 
    काउंसलिंग के नाम पर चिकित्सावैज्ञानिक मनोरोगी को जो बातें समझाते हैं उनमें उस मनोरोगी के लिए कुछ नया और कुछ अलग से नहीं होता है क्योंकि स्वभावों के अध्ययन के लिए उनके पास कोई ठोस आधार नहीं हैं और बिना उनके किसी को कैसे समझा सकते हैं आप !कुछ मनोरोगियों पर किए गए कुछ अनुभव कुछ अन्य लोगों पर अप्लाई किए जा रहे होते हैं किंतु ये विधा कारगर है ही नहीं  हर किसी की परिस्थिति मनस्थिति सहनशीलता स्वभाव साधन और समस्याएँ आदि अलग अलग होती हैं उसी हिसाब से स्वभावों के अध्ययन की भी कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिए !इस विषय में मैं ऐसे कुछ समझदार लोगों से मिला भी उनसे चर्चा की किंतु वे कहने को तो मनोचिकित्सक  थे किंतु मनोचिकित्सा के   विषय में  बिलकुल कोरे और खोखले थे !मैंने उनसे पूछा कि मन के आप चिकित्सक है तो मन होता क्या है तो उन्होंने कई बार हमें जो समझाया उसमें मन बुद्धि आत्मा विवेक आदि सबका घालमेल था किंतु मनोचिकित्सा की ये प्रक्रिया ठीक है ही नहीं क्योंकि इसके लिए हमें मन बुद्धि आत्मा आदि को अलग अलग समझना पड़ेगा और चोट कहाँ है ये खोजना होगा तब वहाँ लगाया जा सकता है प्रेरक विचारों का मलहम ! इसलिए ऐसी आधुनिक काउंसलिंग से केवल सहारा दे दे कर मनोरोगी का  कुछ समय तो  पास किया जा सकता है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !
     'समयशास्त्र' (ज्योतिष) -के द्वारा मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किसी मनोरोगी का विश्लेषण करने के लिए उसके जन्म समय तारीख़ महीना वर्ष आदि पर रिसर्च कर के सबसे पहले उस मनोरोगी का स्थाई स्वभाव खोजना होता है इसके बाद उसी से उसका वर्तमान स्वाभाव निकालना होता है फिर देखना होता है कि रोगी का दिग्गज फँसा कहाँ है ये सारी चीजें समय शास्त्रीय स्वभाव विज्ञान के आधार पर तैयार करके इसके बाद मनोरोगी से करनी होती है बात और उससे पूछना कम और बिना  बताना ज्यादा होता है उसमें उसे बताना पड़ता है कि आप अमुक वर्ष के अमुक महीने से इस इस प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं उसमें कितनी गलती आपकी है और कितनी किसी और की ये सब अपनी आपसे बताना होता है उसके द्वारा दिया गया डिटेल यदि सही है तो ये प्रायः साठ से सत्तर प्रतिशत तक सही निकल आता है जो रोगी और उसके घरवालों ने बताया नहीं होता है इस कारण मनोरोगी को इन बातों पर भरोसा होने लगता है इसलिए उसका मन मानने को तैयार हो जाता है फिर वो जानना चाहता है कि ये तनाव घटेगा कब और घटेगा या नहीं !ऐसे समय इसी विद्या से इसका उत्तर खोजना होता है यदि घटने लायक संभावना निकट भविष्य में है तब तो वो बता दी जाती है और विश्वास दिलाने के लिए रोगी से कह  दिया जाता है कि मैं आपके बीते हुए जीवन से अनजान था मेरा बताया हुआ आपका पास्ट जितना सही है उतने प्रतिशत फ्यूचर भी सही निकलेगा !इस बात से रोगी को बड़ा भरोसा मिल जाता है और वह इसी सहारे बताया हुआ समय बिता लेता है !
     दूसरी बात इससे विपरीत अर्थात निकट भविष्य में या भविष्य में जैसा वो चाहता है वैसा होने की सम्भावना नहीं लगती है तो भी उसका पास्ट बताकर पहले तो विश्वास में ले लिया जाता है फिर फ्यूचर के विषय  में न बताकर  अपितु  घुमा फिरा कर कुछ ऐसा समझा दिया जाता है जिससे तनाव घटे और वो धीरे धीरे भूले इसके लिए कईबार उसके साथ बैठना होता है । आदि  इस प्रकार से   मनोचिकित्सा के   विषय में भी  'समयशास्त्र' (ज्योतिष)की बड़ी भूमिका है ।  मनोरोगियों में पनपजाते हैं कई प्रकार केशारीरिकरोग -
      मनोरोग के कारण  शारीरिक बीमारियाँ भी पैदा होने लगती हैं उसी के साथ एक एक पर एक जुड़ती चली जाती हैं धीरे धीरे मनोरोग तो पीछे पड़ बाक़ी शारीरिक बीमारियों का समूह बन जाता है मनोरोगी  !ऐसे रोगों का इलाज शारीरिक  चिकित्सा पद्धति की दृष्टि से अत्यंत कठिन एवं काम चलाऊ  होता है ऐसे लोगों को समयशास्त्र  (ज्योतिष)की पद्धति से कुछ समय तक यदि लगातार काउंसलिंग दी जाए और उसके बाद चिकित्सा की जाए तो घट सकती हैं जीवन से जुडी अनेकों बीमारियाँ !
   आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे लोग अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं हैं इसलिए उनके शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता है उससे नींद नहीं आती है नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लगती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,यही गैस कान में पहुँच कर कर्ण निनाद अर्थात कानों में आवाजें आने लगना तैयार कर देती है बाल फटना ,सफेद होना ,झड़ना, उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना , 6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी तथा जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,घुटने जाम होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें होने लगती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने  मन नहीं होता किसी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों पर यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकर मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और चिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !   कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूज में सुनने पर ऐसे लोग उस बड़ी से बड़ी बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !
     चिकित्सा करते समय ऐसे लोगों का मानसिक तनाव सर्व प्रथम कम करना चाहिए जब  मानसिक तनाव घटकर चिंतन सामान्य हो जाए!ऐसे लोगों की चिकित्सा में धीरे धीरे कुछ महीना  या अधिक दिक्कत हुई तो वर्ष भी लग सकते हैं ठीक ढंग से सविधि चिकित्सा करने में समय तो लगता है किंतु धीरे धीरे सब कुछ नार्मल होता चला जाता है !कंडीशन पर डिपेंड करता है ! सबसे पहले तो हमें ऐसे लोगों के विषय में गंभीर रिसर्च इस बात के लिए करनी होती है कि ये परिस्थिति पैदा क्यों हुई !दिमागी तनाव बढ़ा क्यों और कब से बढ़ा तथा रहेगा कब तक और उसे ठीक करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं !
      दूसरी स्टेज वो आती है जब पता करना होता है कि इतने दिनों तक तनाव बना रहने से सम्बंधित व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार से कितना नुक्सान हुआ और उसे रिकवर कैसे किया जाए !ये खान पान औषधि टॉनिक आदि  चीजों के साथ साथ उचित आहार व्यवहार से उचित समय से उचित मात्रा में देना होता है । इन सबके साथ साथ अपने विरुद्ध सोचने की आदत ऐसे लोगों की इतनी जल्दी नहीं छूटती है ये डर हमेंशा बना रहता है कि ये कहीं पुरानी स्थिति में फिर न लौट जाएँ इसलिए ऐसे लोगों समय समय पर आवश्यकतानुशार उचित काउंसेलिंग करनी होती है ।
     योगासन करने से लाभ -   ऐसे में ये निरुत्साही लोग योगासन भी नहीं कर पाते करें तो थोड़ा डैमेज कंट्रोल हो सकता है किन्तु अधिक नहीं कुछ पाखंडी लोग ऐसे सपने दिखाते हैं कि योगासनों से मनोरोग दूर हो जाएंगे ये सच नहीं हैं इसमें एकमात्र भूमिका निभा सकता है तो समयशास्त्र  (ज्योतिष)इसकी पद्धति  ही मनोरोग में सबसे अधिक प्रभावी है । 



 मनोरोग, मानसिक तनाव ,स्ट्रेस आदि  को  कंट्रोल करने में सक्षम है ज्योतिष ! जानिए कैसे ?
   भविष्य के भय को चिंता कहते हैं और गंभीर एवं लगातार रहने वाली चिंताएँ ही मनोरोगी बना देती हैं जिनके कारण सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा कर देता है मानसिक तनाव !उन बीमारियों पर यथासंभव नियंत्रण करने की योग्यता तो डॉक्टरों के पास है किंतु जिस मानसिक तनाव से वो बीमारियाँ होती हैं उस तनाव को कैसे घटाया जाए ! इसके लिए चिकित्सा पद्धति में कोई उपाय नहीं है । वस्तुतः ये विषय ही ज्योतिषविज्ञान का है  ।
    मन के प्रायः समस्त रोग भविष्य के भय सोच सोच कर होते हैं "कल क्या होगा !"जो हम पाना चाहते हैं वो हमें मिलेगा कि नहीं ?जो हमें मिला आई उसे सुरक्षित रख पाएँगे कि नहीं !कल कोई बीमारी तो नहीं हो जाएगी !व्यापार में घाटा तो नहीं हो जाएगा !कुल मिलाकर भविष्य में कुछ बुरा न हो जाए चिंता तो इसी बात की है कि सब कुछ वैसा होगा क्या जैसा हम भविष्य में चाहते हैं आदि बातों के ही तो हमें मानसिक तनाव होते हैं !भविष्य में क्या होगा क्या नहीं आदि भविष्यसंबंधी बातों का जवाब कोई डॉक्टर या मनोचिकित्सक कैसे दे सकता है !ये तो काम  ही ज्योतिष का है इसलिए इसका उत्तर भी ज्योतिष वैज्ञानिक ही दे सकते हैं ।     
        डॉक्टरों का कार्यक्षेत्र हमारे शरीर का हार्डवेयर तो है किंतु साफ्टवेयर पर उनका कोई अधिकार नहीं है!डॉक्टर या विश्ववैज्ञानिक अभी तक आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियों आदि को लेकर इनके आस्तित्व को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करते हैं क्योंकि इन्हें वो देख नहीं सकते छू नहीं सकते इनका अनुभव नहीं कर सकते !यदि सच्चाई इतनी ही है तो इन्हें मनोचिकित्सक क्यों मान लिया जाए !ये मन को देख नहीं सकते छू नहीं सकते मन की जाँच नहीं कर सकते मन को दवा नहीं दे सकते किसी के मन की उदासी निराशा आत्मग्लानि आदि को कम करने की इनके पास कोई दवा नहीं है फिर भी मनो चिकित्सक आखिर किस बात के !मन की चिकित्सा में इन चिकित्सकों की भूमिका आखिर क्या है !
     मोबाईल का मैकेनिक मोबाईल के पुर्जे पुर्जे खोल सकता है बाँध सकता है नए बदल सकता है किंतु उसमें मैसेज आएगा कि नहीं कॉलड्रॉप होगा कि नहीं ये मोबाइल मैकेनिक नहीं बता सकता !घर में लगे बिजली के उपकरण ठीक कर लेने वाला मैकेनिक बिजली आने न आने की गारंटी नहीं दे सकता और बिजली के बिना उन्हें चला कर नहीं दिखा सकता !जैसे मोबाईल और बिजली उपकरणों के मैकेनिक का उसके साफ्टवेयर पर कोई अधिकार नहीं होता है ठीक उसी प्रकार से शरीरों के मैकेनिक डॉक्टरों का  शरीरों के साफ्टवेयर पर कोई अधिकार नहीं होता !
     आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियों आदि का क्या पता उनको !डॉक्टर लोग पूरा शरीर खोलकर देख लेते हैं किंतु उन्हें आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियाँ आदि कहीं नहीं मिलते !आधुनिक वैज्ञानिकों की आदत है कि वो जिस चीज को देख नहीं सकते छू नहीं सकते आदि उसे वो विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं होते !जिसमें भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की तो बात सुनते ही वो भड़क उठते हैं । मोबाईल और टेलीवीजन में जितने सन्देश या चित्र आदि दिखाई पड़ते हैं यदि मोबाईल एवं  टेलीवीजन का पुर्जा पुर्जा खोल दिया जाए तो एक भी सन्देश या चित्र आदि उसके अंदर खोजने पर भी कहीं नहीं मिलेगा किंतु वैज्ञानिकों को उसमें आपत्ति इसलिए नहीं है क्योंकि इनमें जो सन्देश या चित्र आदि दिखाई पड़ते हैं वो जहाँ से भेजे जातें हैं उन कंपनियों के विषय में इन्हें पता है ये उस सारे सिस्टम को समझते हैं इसलिए इन्हें उसमें कोई आश्चर्य नहीं लगता किंतु शरीर के साफ्टवेयर विज्ञान के विषय में इन्हें चूँकि जानकारी नहीं है इसलिए ये उन बातों को गलत मानते हैं यदि इन वैज्ञानिकों को जानकारी नहीं है इसलिए इनके कह देने  पर  शरीर के साफ्टवेयर विज्ञान को गलत कैसे मान लिया जाए !हम अपने शरीर की हर समस्या का समाधान डाक्टरों से चाहते हैं किंतु उनकी भी सीमाएँ  हमें समझनी होंगी !के पास भागते हैं किंतु हमें यह भी सोचना चाहिए कि डाक्टर हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत कुछ हैं किंतु सब  कुछ नहीं हैं 
मन है क्या ? मनोरोग क्या हैं इनकी जाँच कैसे हो दवा कैसे हो !मनोचिकित्सा या औषधि देने से मानसिकतनाव, निराशा, उदासी, हीनभावना आदि रुकजाती है क्या ?यदि नहीं तो मनोचिकित्सा का मतलब क्या है !मन को देखा नहीं जा सकता छुआ नहीं जा सकता जाँचा नहीं जा सकता !मन में दवा नहीं दी जा सकती फिर मनोचिकित्सा कैसी !
मन -
   जुकाम बुखार जैसी छोटी छोटी बीमारियों में बिना जाँच कराए एक कदम भी आगे न बढ़ने वाले चिकित्सक मन की जाँच किस मशीन से करते होंगे ?मनोरोगी को कौन सी दवा देते हैं और उस दवा से मानसिक तनाव घट जाता है क्या ? सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा करने वाले मानसिक तनाव को घटाने के लिए क्या है आधुनिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के पास उपाय क्या है ?     बेरोजगारी, किसी प्रियजन की मृत्यु, कर्जदार होने जैसी आर्थिक समस्याएं, अकेलेपन बांझपन या नपुंसकता, वैवाहिक झगड़ा, हिंसा और मानसिक अघात ऐसी समस्याएं हैं जो बहुत ज्यादा तनाव पैदा करती है | कुछ लोग ऐसी स्थिति में ही मनोरोगी होकर सुगर B. P. जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं ।मन को न मानने वाली चिकित्सा पद्धति में मन को  जाँचने वाली न कोई मशीन है और न ही मनोरोग की कोई दवा ही होती है !चिकित्सा पद्धति में लोगों का स्वभाव समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है अच्छे बुरे समय के अनुसार लोगों का स्वभाव बदलता रहता है इसलिए किसी भी व्यक्ति के समय को समझे बिना उसके स्वभाव को समझ पाना अत्यंत कठिन है और स्वभाव को समझे बिना मनोरोगियों को दी जाने वाली काउंसलिंग  खानापूर्ति मात्र होती  है जबकि ऐसे स्थलों पर ज्योतिष विज्ञान संपूर्ण रूप से सटीक बैठता है ।इसके  द्वारा काफी हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं मनोरोग !
 रोग और मनोरोग जैसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए  समय का पूर्वानुमान लगाकर उसके अनुरूप ही कार्य योजना बनाकर चलने से ऐसी परेशानियों के  पैदा होने से बचा जा सकता है । पुराने समय में जब राजा प्रजा लोग ज्योतिषीय पद्धति से  समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे उसी के अनुसार जीवन और शासन सत्ता को ढाल लिया करते थे !इसीलिए तब रोगी मनोरोगी हत्यारे आत्महत्यारे बलात्कारी और लुटेरे आदि इतने नहीं होते थे । ज्योतिषीय पूर्वानुमान के कारण ही लोग अच्छी बुरी परिस्थितियों को सहने की क्षमता  रखते थे यही कारण है कि  तब जो समाज विश्व बन्धुत्व की भावना से जुड़ा होता था कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे किंतु ज्योतिष की उपेक्षा होते ही समाज बिखर रहा है परिवार टूट रहे हैं 'वसुधैवकुटुम्बकं' तो दूर अब तो पति -पत्नी ,बाप-बेटा ,भाई - भाई के संबंध भी बोझ बनते जा रहे हैं एक साथ कब तक रह पाएँगे कहना कठिन  है ।
ज्योतिष अपनाओ ! तनाव घटाओ ! मनोरोग भगाओ !
    भविष्य का भय ही चिंता है जिसे जितना बड़ा भय उसे उतनी बड़ी चिंता !
      जिसके स्वप्नों और परिस्थितियों में जितना बड़ा गैप उसे उतनी बड़ी चिंता !इस गैप को ही तो तनाव खिंचाव चिंता स्ट्रेस आदि कुछ भी कहा जा सकता है । गलत काम करने वालों को, अधिक कर्ज से रिस्क लेकर काम करने वालों को जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने वालों को !किसी न ठीक होने लायक बीमारी वालों को या दवा कराने की सामर्थ्य न होने वालों को भविष्य का भय बहुत अधिक रहता है ऐसे लोगों में मनोरोग होने की प्रबल संभावनाएँ होती हैं । 
     जिसका मन नैतिकता, कानून ,सिद्धांत, सदाचार ,कृतज्ञता और ईश्वर पर विश्वास छोड़कर जितनी दूर चला जाता है उतनी ज्यादा गंदगी समेट लाता है ! गंदे काम करके आया कोई संस्कारित बच्चा जैसे अपने माता पिता का सामना करने में डरता है वैसे ही गलत काम करने वाले लोग अपनी आत्मा का सामना करने से डरने और बचने लगते हैं जैसे हम यदि सूर्य के सामने नहीं पड़ेंगे तो सूर्य की किरणे हमारे ऊपर नहीं पड़ेंगी और धूप न लगने से जैसे स्वास रोग, टीवी ,एलर्जी आदि अनेकों बीमारियाँ होने लगती हैं हड्डियाँ कमजोर  हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार से आत्मसूर्य का प्रकाश मन पर न पड़ने से मन में होने वाली बीमारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं और मन कमजोर होने लगता है । क्योंकि हमारे मन को बल (ताकत) आत्मा से ही मिलता है और आत्मा के सामने न पड़ने के कारण मन को आत्मा का बल नहीं मिल पाता है ऐसे आत्मबल से विहीन लोग हर किसी से डरने लगते हैं हर काम डर डर कर करते हैं । मन उदास रहता है काम करने का उत्साह नहीं रहता इसीलिए काम डरने के कारण काम धीरे धीरे करते हैं और धीरे धीरे काम करने के कारण ही सबसे पहले पेट की पाचन शक्ति समाप्त होने लगती है इसके बाद शरीर बिगड़ने लगता है और धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय (जाम) होता चला जाता है यही स्थिति बढ़ते बढ़ते हृदय रोग शुगर रोग जैसी तमाम बड़ी बीमारियाँ पनपने  लगती हैं और धीरे धीरे बीमारियों से बीमारियाँ बनने लगती हैं ।बीमारियों का जाल बनता चला जाता है सकने वाले न हमारे उससे हमारे देता है यही आत्मा ही हमारे आतंरिक जगत का सूर्य है जैसे सूर्य 
 सूर्य हमें प्रकाश देता है और बिटामिन 'D ' अर्थात शक्ति देता है सूर्य
     भविष्य का भय हर किसी को रहता है  हर कोई जानना चाहता है कि हमारे जीवन में कल क्या होगा !और यह जानना जरूरी भी है !भविष्य के विषय में ये पता हो कि हम अपने जीवन का विकास करने के किस क्षेत्र में कितना बढ़ सकते हैं तो वो उस सीमा में अपने को समेटने की कोशिश करता है या उससे अधिक जो प्रयास भी करता है उनसे बहुत अधिक आशा नहीं रखता है मिल जाए तो अच्छा और न मिल जाए तो विष तनाव नहीं होता !
ज्योतिष अपनाओ ! तनाव घटाओ ! मनोरोग भगाओ !
    भविष्य का भय ही चिंता है जिसे जितना बड़ा भय उसे उतनी बड़ी चिंता !
      जिसके स्वप्नों और परिस्थितियों में जितना बड़ा गैप उसे उतनी बड़ी चिंता !इस गैप को ही तो तनाव खिंचाव चिंता स्ट्रेस आदि कुछ भी कहा जा सकता है । गलत काम करने वालों को, अधिक कर्ज से रिस्क लेकर काम करने वालों को जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने वालों को !किसी न ठीक होने लायक बीमारी वालों को या दवा कराने की सामर्थ्य न होने वालों को भविष्य का भय बहुत अधिक रहता है ऐसे लोगों में मनोरोग होने की प्रबल संभावनाएँ होती हैं । 
     जिसका मन नैतिकता, कानून ,सिद्धांत, सदाचार ,कृतज्ञता और ईश्वर पर विश्वास छोड़कर जितनी दूर चला जाता है उतनी ज्यादा गंदगी समेट लाता है ! गंदे काम करके आया कोई संस्कारित बच्चा जैसे अपने माता पिता का सामना करने में डरता है वैसे ही गलत काम करने वाले लोग अपनी आत्मा का सामना करने से डरने और बचने लगते हैं जैसे हम यदि सूर्य के सामने नहीं पड़ेंगे तो सूर्य की किरणे हमारे ऊपर नहीं पड़ेंगी और धूप न लगने से जैसे स्वास रोग, टीवी ,एलर्जी आदि अनेकों बीमारियाँ होने लगती हैं हड्डियाँ कमजोर  हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार से आत्मसूर्य का प्रकाश मन पर न पड़ने से मन में होने वाली बीमारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं और मन कमजोर होने लगता है । क्योंकि हमारे मन को बल (ताकत) आत्मा से ही मिलता है और आत्मा के सामने न पड़ने के कारण मन को आत्मा का बल नहीं मिल पाता है ऐसे आत्मबल से विहीन लोग हर किसी से डरने लगते हैं हर काम डर डर कर करते हैं । मन उदास रहता है काम करने का उत्साह नहीं रहता इसीलिए काम डरने के कारण काम धीरे धीरे करते हैं और धीरे धीरे काम करने के कारण ही सबसे पहले पेट की पाचन शक्ति समाप्त होने लगती है इसके बाद शरीर बिगड़ने लगता है और धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय (जाम) होता चला जाता है यही स्थिति बढ़ते बढ़ते हृदय रोग शुगर रोग जैसी तमाम बड़ी बीमारियाँ पनपने  लगती हैं और धीरे धीरे बीमारियों से बीमारियाँ बनने लगती हैं ।बीमारियों का जाल बनता चला जाता है 
         
 मन क्या है ? मनोरोग कितने हैं ? मन में होने वाले रोगों की जाँच कैसे की जाती है ?मनोरोगों की दवा क्या है ?उस दवा से मनोरोग  या मानसिक तनाव  को रोका जा सकता है क्या ?

      मनोरोग, मानसिक तनाव ,स्ट्रेस आदि कंट्रोल करने का एक मात्र  उपाय है ज्योतिष !जानिए कैसे ?

   जुकाम बुखार जैसी छोटी छोटी बीमारियों में बिना जाँच कराए एक कदम भी आगे न बढ़ने वाले मनोचिकित्सक लोग मन की जाँच किस मशीन से करवाते हैं और मनोरोगी को कौन सी दवा देते हैं और उस दवा से मानसिक तनाव घट जाता है क्या ? सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा करने वाले मानसिक तनाव को घटाने के लिए क्या है आधुनिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के पास उपाय क्या है ?

कुछ लोग ऐसी स्थिति में ही मनोरोगी होकर सुगर B. P. जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं ।मन को न मानने वाली चिकित्सा पद्धति में मन को  जाँचने वाली न कोई मशीन है और न ही मनोरोग की कोई दवा ही होती है !चिकित्सा पद्धति में लोगों का स्वभाव समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है अच्छे बुरे समय के अनुसार लोगों का स्वभाव बदलता रहता है इसलिए किसी भी व्यक्ति के समय को समझे बिना उसके स्वभाव को समझ पाना अत्यंत कठिन है और स्वभाव को समझे बिना मनोरोगियों को दी जाने वाली काउंसलिंग  खानापूर्ति मात्र होती  है जबकि ऐसे स्थलों पर ज्योतिष विज्ञान संपूर्ण रूप से सटीक बैठता है ।इसके  द्वारा काफी हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं मनोरोग !

     रोग और मनोरोग जैसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए  समय का पूर्वानुमान लगाकर उसके अनुरूप ही कार्य योजना बनाकर चलने से ऐसी परेशानियों के  पैदा होने से बचा जा सकता है । पुराने समय में जब राजा प्रजा लोग ज्योतिषीय पद्धति से  समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे उसी के अनुसार जीवन और शासन सत्ता को ढाल लिया करते थे !इसीलिए तब रोगी मनोरोगी हत्यारे आत्महत्यारे बलात्कारी और लुटेरे आदि इतने नहीं होते थे । ज्योतिषीय पूर्वानुमान के कारण ही लोग अच्छी बुरी परिस्थितियों को सहने की क्षमता  रखते थे यही कारण है कि  तब जो समाज विश्व बन्धुत्व की भावना से जुड़ा होता था कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे किंतु ज्योतिष की उपेक्षा होते ही समाज बिखर रहा है परिवार टूट रहे हैं 'वसुधैवकुटुम्बकं' तो दूर अब तो पति -पत्नी ,बाप-बेटा ,भाई - भाई के संबंध भी बोझ बनते जा रहे हैं एक साथ कब तक रह पाएँगे कहना कठिन  है । 

मानसिकतनाव विज्ञान !

 ऐसे लोगों को समय विज्ञान की दृष्टि से यदि काउंसलिंग (परामर्श) दिया जाए एक सीमा तक बचाव हो सकता है अन्यथा ऐसे मनोरोगी धीरे धीरे गंभीर शारीरिक बीमारियों से ग्रसित होते चले जाते हैं । 
      कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बिना तनाव के रह ही नहीं सकते !ऐसे लोग अच्छी से अच्छी एवं अनुकूल से अनुकूल बातों व्यवहारों से भी अपने लिए मानसिक तनाव खोज लेते हैं ऐसे लोग धीरे धीरे मानसिक तनाव में रहने के आदी हो जाते हैं ।कुछ समय विंदुओं में ऐसी परिस्थितियाँ सारे जीवन के लिए होती हैं तो कुछ में दो चार दस पाँच वर्ष के लिए होती हैं । ऐसे समय विन्दुओं का अध्ययन करके ये पता किया जा सकता है कि यह तनावी मानसिकता किसमें कितने समय के लिए है जिसके जीवन में कुछ वर्षों के लिए है वो किस उम्र या किस  वर्ष में होगी  साथ ही इससे बचने के लिए क्या कुछ सावधानी बरती जानी चाहिए आदि पर व्यापक रिसर्च की आवश्यकता है । इन्हें कोई नमस्ते करे तो तनाव न करे तो तनाव ।किसी के नमस्ते करने से इस बात का तनाव कि कोई स्वार्थ होगा तभी ऐसा कर रहा है और नमस्ते न करने से इन्हें लगता है वो घमंडी  हो गया है। आफिस में या घर में इनकी आज्ञा लेकर कोई काम करे तो इन्हें चमचा गिरी लगती है और इनसे बिना पूछे करे तो इन्हें लापरवाह घमंडी आदि वो सब कुछ लगता है जिससे अपना तनाव बढ़ाया जा सके !
      ऐसे लोग अपने इतने बड़े शत्रु स्वयं होते हैं कि ये अपनों पर तो शक करते ही रहते  हैं साथ ही इन्हें अपनी कार्यक्षमता पर भी हमेंशा शक बना रहता है किंतु ऐसी बातें ये मन खोलकर कभी किसी के सामने रखते नहीं हैं केवल अंदर ही अंदर सहते रहते हैं ऐसे लोग अपने  गलत चिंतन से तैयार हुआ दिमागी कूड़ा कचरा खुद ढोया करते हैं इन्हें अपने को अकारण व्यस्त और सम्मानित मानने की लत होती है बहुत काबिल समझते हैं अपने को इसीलिए इन्हें एक एक करके धीरे धीरे अपने लोग छोड़ते चले जाते हैं। यहाँ तक कि पति पत्नी और बच्चों के संबंध भी इतने अधिक बोझिल हो जाते हैं कि कुछ को ये छोड़ देते और कुछ इन्हें छोड़ देते हैं यदि सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा धन दौलत मान मर्यादा आदि बहुत अच्छी हुई तो परिवार के लोग दिखावटी रूप से तो जुड़े रहते हैं किंतु मन से औरों के प्रति समर्पित हो जाते हैं उसका भी  इन्हें तनाव होता है ऐसे तनाव प्रिय लोग अपनी सोच के कारण अपने घर को एक घोसला बना लेते हैं जहाँ रात्रि में केवल सोने के लिए इकट्ठे होते हैं बाकी उनकी सारी  सुख सुविधाएँ दूसरों पर आश्रित एवं घर से बाहर होती हैं । 
       ऐसे लोग सुखों एवं अपनेपन  के अभाव में आजीवन तड़पते रहते हैं इनकी मदद के लिए समय विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और इन्हें भी सामान्य जीवन की सुख सुविधाओं का एहसास करवा सकता है भविष्य का भय हर किसी को रहता है  हर कोई जानना चाहता है कि हमारे जीवन में कल क्या होगा !और यह जानना जरूरी भी है !भविष्य के विषय में ये पता हो कि हम अपने जीवन का विकास करने के किस क्षेत्र में कितना बढ़ सकते हैं तो वो उस सीमा में अपने को समेटने की कोशिश करता है या उससे अधिक जो प्रयास भी करता है उनसे बहुत अधिक आशा नहीं रखता है मिल जाए तो अच्छा और न मिल जाए तो विष तनाव नहीं होता !


आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे में वो अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं हैं ऐसे में उनके शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता है उससे नींद नहीं आती है नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लगती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,कानों में आवाजें आने लगना ,मसूड़ों में दर्द होना सूजन हो जाना ,मुख के अंदर छाले पड़ना या घाव होने लगना ,जीभ में बलगम लिपटा रहना मुख से दुर्गंध आने लगना,बाल फटना ,सफेद होना ,झड़ना उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगाना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,महिलाओं के मुख पर बाल उगने लगना, सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना ,दबाने से बायीं और दायीं छाती से निचे पेट के ऊपर ज्वाइंट में दर्द होने लग्न या कुछ अड़ा सा प्रतीत होने लगना होने लगना ! 6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगाना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी तथा जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,घुटने जाम होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें होने लगती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने  मन नहीं होता किसी से आँख मिलने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों पर यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकर मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और चिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !
     कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूज में सुनने पर ऐसे लोग उस बड़ी से बड़ी बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !कि किंतु भी बहुत अधिक कारगर नहीं होते
पेट में शांत करने के लिए पति पत्नियों के आपसी शांत करने के लिए बीमारियाँ
 

Friday, September 9, 2016

साधूसंतों और नेताओं में चरित्रवान लोग खोजे जाएँ वही बचा सकते हैं अब देश और समाज !

    जिनके चरित्र की चर्चा सुनकर बिगड़ रहे हैं देश के बच्चे !उन्हें नेता साधू संत शिक्षक या अधिकारी मानने का मन ही नहीं करता !इन पर विश्वास करना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है ! 
      देश का बचपन बचाने की सशक्त पहल की जरूरत है अन्यथा "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"कहने से कुछ नहीं होगा ! बेटियों को बचाना और पढ़ाना तो दूर उनकी जीवन रक्षा भी होती अब तो कठिन दिख रही है सरकारी सुरक्षा उनकी रक्षा करने में सफल नहीं है और सरकारी शिक्षक इतने पढ़े लिखे कहाँ होते हैं कि बेटियों को पढ़ा लें वो बुद्धू शिक्षक अपने बच्चे खुद प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं !
    ड़े से बड़ा अपराधी या तो किसी नेता का ख़ास होगा या किसी बाबा का इनकी मदद के बिना अपराध कर पाना आसान है क्या !
      आप थोड़ा सा कोई गलत काम करके देखिए अगले दिन ही कोई सरकारी बाबू आपके दरवाजे आकर खड़ा हो जाएगा आपको रोकने के लिए नहीं किंतु आपसे हफ्ता महीना आदि माँगने इसका मतलब है कि लगभग सभी प्रकार के अपराधों की जानकारी सरकारियों की जेब में हो होती है किंतु जब तक वो पैसे देते हैं तब तक वो निर्भय विचरण करते हैं किंतु जिस दिन वे बेचारे घूस न दे पाए उसी दिन सरकारी कमाऊपूत उसे पकड़ कर ऐसे खड़े होते हैं जैसे कोई कायर किसी सिंह को पकड़ने में सफल हो गया हो !उसकी ऐसे जाँच करने का नाटक किया जाता है जैसे मंगल ग्रह पर पानी खोज रहे हों !कुल मिलाकर कार्यवाही केवल भोले भाले और भले लोगों पर होती है बाकी  जितने असली अपराधी हैं उनकी ओर देखता कौन है !यही कारण है कि कोई भी आम आदमी व्यापार  शुरू तो कर लेता है किंतु चला कम ही लोग पाते हैं वहीँ नेताओं और बाबाओं के बड़े बड़े संस्थान स्कूल कालेज फैक्ट्रियाँ आदि केवल चल ही नहीं रही हैं अपितु दौड़ रही हैं आखिर कैसे !
    जितने बाबा अपराधों में पकड़े गए सब करोडों अरबोंपति निकले आखिर कैसे !जिनकी जाँच ही नहीं हुई वे पकड़े कैसे जाते जो नहीं पकड़े गए वो निकलते कैसे !जिन बाबाओं के बस का कमाना नहीं था किंतु खाने के शौकीन थे वे बाबा बने थे खाने के लिए किंतु वे अकर्मण्य लोग अचानक व्यापारी बन जाएँ ये बात समझ के बाहर की है !दूसरी बात यदि वे इतने ही काबिल थे तो जब उन्हें करना ही व्यापार था तो उन्होंने संन्यास को बदनाम क्यों किया पहले से ही व्यापार करने लगते किसने रोका  था उन्हें !किंतु व्यापार करने के लिए जो पाप करना जरूरी था वो करने की अघोषित छूट  या तो नेताओं को होती है या फिर बाबाओं को !व्यापार के लिए जुटाई जाने वाली जरूरी फंडिंग दूसरी बात व्यापार में घाटा हो जाने पर उसकी भरपाई की धनराशि बाबा धर्म के नाम पर समाज से माँग लेते हैं और नेता पार्टी फंड के नाम पर इकठ्ठा कर लेते हैं और फिर शुरू कर देते हैं व्यापार !कुल मिलाकर सारा फायदा उनका और घाटा समाज का !
    कई महाभ्रष्ट बाबाओं को तो यहाँ तक कहते सुना जाता है कि मैं एक ग्लास गाय का दूध पीकर रहता हूँ केवल !अरे !यदि वे इतने ही विरक्त होते तो इतने सारे प्रपंचों में फँसते क्यों ? वे कहते हैं हम ब्रह्मचारी हैं जबकि उनके आश्रमों में सैकड़ों महिलाएँ भी रहती हैं जिनमें कुछ के बच्चे बाबा जी के अपने होते हैं और कोई समझ भी नहीं पाता है कि बाबा जी गृहस्थ हैं जो महिला घरेलू कलह से तंग आकर शांति की तलाश में किसी आश्रम पहुँची तो बाबा जी को केवल एक बात ही कहनी होती है कि आपके पति के संबंध किसी और से हैं तो तू क्यों उसके चक्कर में पड़ी है ऐसा समझा  कर रख लेते हैं रखैल बनाकर !उन्हीं के बच्चों के लिए भूत बनकर कमाते रहते हैं बाबा जी !
    ये बेईमान झुट्ठे कहते हैं कि हम चैरिटी करते हैं और अरबों रूपए कमा रहे होते हैं !चैरिटी में कहीं कमाई होती है क्या !यही हाल नेताओं का है !ये दोनों भरोसा करने लायक ही अब नहीं रहे हैं !चरित्रवान ईश्वर भक्त साधूसंत और देश भक्त नेता मुश्किल से ही ढूँढे  मिलते हैं आज कल !
  आपको जो व्यक्ति चरित्रवान कर्मठ ईमानदार परिश्रमी देशभक्त आदि लगे उसे किसी राजनैतिक पार्टी में सम्मिलित कराने के लिए ले जाओ या तो उसे पार्टी से जोडेंगे नहीं विशेष दबाव में यदि जोड़ना पड़ा भी तो अंदर ही अंदर उसे इतना अधिक सताएँगे कि थोड़े दिनों में वो स्वयं भाग खड़ा होगा अन्यथा राजनैतिक नपुंसकता का शिकार होकर वहीँ पड़े पड़े दफन हो जाएगा ! 
    बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
     वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य  कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते  हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके  पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ? 
      उसे पकड़े और सुधारे  बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।


     नेता और तथाकथित संतों में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं इन बाबाओं के पास ईश्वरभक्ति नहीं होती है। और नेताओं में देश भक्ति नहीं होती है।जनता को दिखा कर ठगने के लिए एक देश भक्ति की बातें करता है तो दूसरा ईश्वर भक्ति की किंतु दोनों भ्रष्टाचारी हैं दोनों अपनी आमदनी के स्रोत प्रूफ नहीं कर सकते !दोनों को काम करते किसी ने नहीं देखा होगा !एक पाप का भय दिखाकर समाज को लूटता है तो दूसरा कानून का जबकि लुटेरे दोनों है एक स्वर्ग पहुँचाने का सपना दिखाकर यौन शोषण करता है तो दूसरा सत्ता की सुख सुविधाएँ प्रदान करने का सपना दिखाकर यौन शोषण करता है दोनों ही भ्रष्टाचारी बदमाश अपने  अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों  ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही हो।अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश  उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि  पराई संपत्ति सहित पराई सारी चीजों को भोगने की होती है।दोनों वेष  भूषा  का पूरा ध्यान रखते हैं एक नेताओं की तरह दिखने की  दूसरा महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश   करता है। दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बोलते हैं।बातों में दम हो न हो पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट  होता है तो कहता कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि संन्यासी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।मानो पोलखुलने के भय से संन्यासी भयभीत हों कि कहीं कोई पोल न खुल जाए।इसी प्रकार कोई संन्यासी भ्रष्टहोता है तो नेता बन जाता है।क्योंकि   बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।   

      इसप्रकार धार्मिक लोगों की गतिविधियों को भी शास्त्रीय संविधान की सीमाओं के दायरे में बॉंधकर रखने की भी कोई तो सीमा रेखा होनी ही चाहिए। स्वामी जी रैलियॉं कर रहे हैं, आज स्वामी जी साड़ी बॉंट रहे हैं।स्वामी जी स्वदेशी  के नाम पर सब कुछ बेच रहे हैं , स्वामी जी उद्योगधंधे लगा रहे हैं, स्वामी जी चुनाव लड़ रहे हैं, स्वामी जी मंत्री भी हैं।ऐसे लोगों के पर्दे के पीछे के भी बहुत सारे अच्छे बुरे आचरण देखने सुनने को मिलते हैं।ये सब गंभीर चिंता के बिषय हैं ।

       इनकी दृष्टि में  क्या सारे पापों का कारण पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव  है? साधुत्व के अपने अत्यंत कठोर नियम होते हैं उन्हें हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं  पर लगाम कैसे लगे?यह संतों को ही सोचना होगा।जो धार्मिक व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान ?         
     जैसे स्वामी जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सतसंग करने गए थे पैसे पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं जाकर सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या या तथा कथित प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने  समझादारी से काम लिया है।इस देश  की जनता धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना आता है करते चाहें जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा जी को फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा अपराधी बन गया।क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन कमाना ही हो गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष  नष्ट भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सतसंगों की भीड़ें आखिर 
सतसंगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ?
     इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ  बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।

Monday, September 5, 2016

शिक्षक दिवस है तो क्या हुआ शिक्षकों को बधाई कैसे दूँ !

परीक्षा लेना और कॉपी जाँचना जिन्हें नहीं आता है वे शिक्षक है !
   घूस देकर नौकरियाँ पाने वाले शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की योग्यता का पुनः परीक्षण हो जो उसमें पास हों वे रखे जाएँ अन्यथा खदेड़ बाहर किए जाएँ !जनता के टैक्स से सैलरी पाने वाले लोग यदि जनता के काम न आ सकें जनता का भरोसा न जीत सकें तो ऐसे लोग देश के किस काम के !
    सरकार निकाल बाहर करे उन्हें नौकरियों से और उनसे वसूली जाए अब तक की सारी सैलरी ऊपर से  चलाया जाए धोखाधड़ी का मुक़दमा !बिहार सरकार यदि ईमानदार है तो अपनी न्याय प्रियता का परिचय दे !
    वैसे तो पूरे देश में ही अधिकारियों कर्मचारियों का पुनः योग्यता परिक्षण हो क्योंकि देश के किसी विभाग के अधिकारी कर्मचारी अपनी सेवाओं से समाज को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं इन की जिम्मेदारी है ये या तो जनता का विश्वास जीतें और यदि ऐसी योग्यता सेवा भावना न्यायप्रियता नहीं है तो वो जिस लायक हैं जाकर वो करें सरकारी पदों को छेककर न बैठें !सरकारी विभागों के घपले घोटाले भ्रष्टाचार घूसखोरी और बढ़ते अपराध उन विभागों से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की अयोग्यता को दर्शाते हैं यदि योग्यता होती तो कंट्रोल कर लेते !
  मूर्खों भ्रष्टों और बेशर्मों का समुद्र है शिक्षा विभाग !अधिकारी स्कूलों में झांकने तक नहीं जाते हैं शिक्षक पंचायतें किया करते हैं । सरकार ने आफिसों में लगवा रखे हैं AC निकलने का मन किसका होता है वैसे भी गरीबों के बच्चे यदि पढ़ भी जाएंगे तो अधिकारीयों को कौन कमाकर खिलाएंगे !
    शिक्षा विभाग में घूस और सोर्स के बिना कहीं बात ही नहीं बनती है इसीलिए तो पढ़ेलिखे ईमानदार लोग आज बेरोजगार हैं! बेचारे बच्चों के लिए ईमानदारी की बातें !वैसे भी अनपढ़ गँवार लोग मंत्री बनें तो ठीक और टॉपर बनें तो गलत क्यों ?पढ़े लिखे लोग ईमानदार लोगों को राजनीति में कोई नहीं पूछता है न सरकारी नौकरियों में और व्यापार वो कर नहीं सकते सरकारों को समझ नहीं है कि उनका उपयोग कहाँ करें !

टॉपर के लिए चित्र परिणाम
बिहारसरकारकेशिक्षास्वाभिमान
     शिक्षाबोर्ड  में ही यदि पढ़े लिखे कर्तव्य निष्ठ लोग होते और उन्हें ही सैलरी लेने की थोड़ी भी शर्म होती तो ये परिस्थितियाँपैदा ही क्यों  होतीं !आखिर इन बच्चों को टॉपरबनायाकिसने !             शिक्षकों अधिकारियों कर्मचारियों की भी योग्यता का परीक्षण क्यों न हो !क्या वो उन पदों के लायक हैं जहाँ  जमे बैठे हैं आज !हो सकता है उन्हें परीक्षा लेना और कॉपी जाँचना ही न आता हो ! या फिर खरीद ही लिए गए हों !क्योंकि पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को नौकरियाँ मिलती कहाँ हैं जिनका भाग्य बहुत अच्छा हो उनकी तो बात ही और है बाकी तो नौकरियों के लिए परीक्षा कम नीलामी ज्यादा होती है वैसे तो सरकारी नौकरी पाने के लिए शिक्षा हो न हो घूस और    सोर्स हो तो आप हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी !
      शिक्षकों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है कि वो जिन कक्षाओं को पढ़ाने के लिए स्कूलों पर थोपा गया है उन्हें खुद उन कक्षाओं की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो वो बड़े गर्व से फेल हो जाएँगे !वहीँ दूसरी ओर बहुत पढ़े लिखे होनहार लोग जलालत की जिंदगी जी रहे हैं उनके पास घूस देने के लिए पैसे नहीं थे सोर्स नहीं था इसलिए !मेरी बात पर यदि भरोसा न हो तो सरकार अपने नियुक्त शिक्षकों से उन विषयों में खुली बहस करवाकर देख ले धूल चाटते फिरेंगे ये सरकारी भ्रष्टाचार के प्रोडक्ट !
       सरकार के ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों ने न जाने कितने बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ किया होगा कितने अनपढ़ों को टॉपर  बनाया होगा !कितने होनहार बच्चों को फेल किया होगा !अब उनके साथ न्याय कैसे हो ! किंतु इस बीमारी को दूर करने की जिम्मेदारी सरकारों की होती है सरकारों में शिक्षित लोग होते कितने हैं शिक्षित लोगों को राजनीति में पसंद कौन करता है जो शिक्षित होते भी हैं वो भी लगभग उन्हीं की भाषा बोलने लगते हैं उन्हीं के जैसा बात व्यवहार !इसलिए नेताओं से क्या उम्मींद की जाए !
     समय समय पर अधिकारियों कर्मचारियों की योग्यता का परीक्षण और इनके काम का मूल्यांकन होता रहे तो पता लगे कि वो जिन पदों पर काम कर रहे हैं उस लायक हैं भी क्या ? घूस और सिफारिस के नाम पर नौकरियाँ पाने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बहुत बड़ा वर्ग फेल हो जाएगा ऐसी योग्यतापरीक्षण परीक्षाओं में ! रही बात मूल्यांकन में उसमें तो वैसे भी फेल ही हैं उसमें पास इन्हें मान कौन रहा है सारे अपराधों भ्रष्टाचारों के जनक हैं ये !सरकारों में सम्मिलित लोगों की कमाई करवाते रहते हैं इसलिए सरकार इनकी सैलरी बढ़ाती और पीठ थपथपाती रहती है !बाकी और पसंद कौन करता है इन्हें !
   आज 10 -15 हजार रुपए देकर प्राइवेट स्कूल इतनी अच्छी शिक्षा दे रहे हैं कि सारे सरकारी कर्मचारी और सरकारों में सम्मिलित लोग और धनी लोग  उन्हीं स्कूलों में पढ़वा रहे हैं अपने बच्चे !फिर भी सरकारी स्कूलों में पचासों हजार सैलरियाँ उन्हें देते हैं जिन्हें उठने बैठने बोलने चालने का भी ढंग नहीं होता वो पढ़ाएँगे क्या ?वो तो छोटे बच्चों की तरह स्कूलों कक्षाओं से इतना डरते हैं कि बहाने बना बना कर भाग आते हैं कक्षाओं से स्कूलों से सरकार उन्हें सैलरी बढ़ाने का लालच दे देकर घेर घेर कर बैठाती है स्कूलों में ऐसे कहीं होती है पढ़ाई !     
    वैसे भी वो पढ़े हों तो पढ़ाने में मन लगे जिस गाय के पास दूध होगा वही तो पेन्हाएगी ठठुआ गायों से दूध की उम्मीद लगाए बैठी है सरकार !वैसे भी प्राइमरी स्कूलों के शिक्षक तो ढो रहे हैं अपनी अध्यापकी !उन्हें पढ़ने के अलावा सबकुछ आता है ये मीटिंग बहुत अच्छी कर लेते हैं इन्हें जुकाम भी हो गया हो और जुकाम की चर्चा करते करते गुजार देते हैं पूरा दिन !
    अधिकारी इतने गैर जिम्मेदार हैं कि वो शिक्षा के प्रति अपना दायित्व ही भूल चुके हैं शिक्षा की क्वालिटी क्या सुधारेंगे !
      संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों के नाम पर ऐसे लोग रखे जाते हैं जिनमें 99 प्रतिशत लोग तो संस्कृत बोल ही नहीं पाते हैं संस्कृत पढ़ाएँगे क्या ख़ाक !फिर भी सरकार इतनी दयालु है कि उन्हें भी 50-60 हजार सैलरी देती है संस्कृत पढ़ाने की ! दूसरी ओर संस्कृत बोलने समझने और पढ़ने पढ़ाने वाले लोग घूम  रहे हैं बेरोजगार उनके पास घूस देने के पैसे नहीं हैं !ऐसे ही अधिकारी कर्मचारी कर रहे हैं शिक्षा का सत्यानाश !
    मजे की बात ये है कि कम पैसों में प्राइवेट स्कूलों को शिक्षक आराम से मिल जाने पर भी सरकार महँगे शिक्षक रखती है अपना अपना शौक !अन्यथा उतनी सैलरी में एक की जगह चार शिक्षक रखकर बेरोजगारों की बेरोजगारी दूर की जा सकती है और स्कूलों को अधिक शिक्षक उपलब्ध कराए जा सकते हैं अधिक संख्या होने पर सरकारी शिक्षक होने के नाते शिक्षा की उम्मींद तो नही जा सकती फिर भी सुरक्षा की उम्मींद तो की ही जा सकती है ! उन्हें बातें ही तो करनी होती हैं जैसे आफिस में बैठ के करते हैं वैसे गेट के सामने बैठ के करेंगे !
   बच्चों ने कर्तव्यभ्रष्ट सरकार के मुख पर तमाचा मारा है ! मेरी ओर से तोटॉपर बच्चों को बधाई उनकी मूर्खता  बिहार के काम तो आई !पढ़ लिखकर वो देश और समाज की इतनी मदद नहीं कर सकते थे !मूर्खों को महत्त्व  देती हैं सरकारें तो टॉपर  बनाने से ज्यादा खतरनाक है मूर्खों को मंत्री बनाना !मूर्ख मंत्री कब किससे क्या बोल बैठे क्या कर बैठे क्या भरोस !  नितीश कुमार की नकलनीति जिन्हें टॉपर बनाया उन बच्चों को जलील क्यों किया जा रहा है !
  सरकारी कर्मचारी खुद काम करना नहीं चाहते सरकार उनसे काम लेना नहीं चाहती !बच्चों का दोष देते हैं । सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग समाज से कमा कर उसका कुछ हिस्सा सरकार को देता है सरकार खुश होकर उनकी सैलरी बढ़ा देती है !सरकार भी खुश वो भी खुश !सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार है किंतु उसे पकड़े कौन !उस पर एक्सन लेने का मतलब है सरकार और सरकारी कर्मचारियों दोनों का नुक्सान !
   कुल मिलाकर टॉपर होकर  बेचारे किसी को सताते तो नहीं हैं !मूर्ख मंत्रियों को तो कोई कुछ नहीं कहता फिर मूर्ख टॉपरों को क्यों जलील किया जा रहा है
बिहार के टॉपरों को कुछ नहीं आता इसमें उनका क्या दोष ?
 शिक्षक कापियाँ ही न जाँच पाए हों उनका क्या भरोस !
या उपमुख्यमंत्री जी की अशिक्षा का इन टापरों से कोई नाता हो ।
हो सकता है कि बिहार सरकार को ही परीक्षा लेना न आता हो ॥

Thursday, September 1, 2016

Dr.Shesh Narayan Vajpayee - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

 
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
वैदिक मौसम वैज्ञानिक 
वैदिक भूकंपवैज्ञानिक 
वैदिक वर्णवैज्ञानिक
वैदिक प्राकृतिक रोगवैज्ञानिक 
 संस्थापकः-  राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान seemore....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2014/06/blog-post_3979.html
हमारी शिक्षा -
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता ,उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी(काशी हिंदू विश्वविद्यालय ) 
  
 जीवन का मुख्य लक्ष्य : आजीवन सरकारी या निजी नौकरी न करने का व्रत लेकर ज्योतिष आयुर्वेद योग आदि समस्त वेदविज्ञान के आधार पर जलवायुपरिवर्तन, पर्यावरण, मौसम, भूकंप,स्वास्थ्य  एवं महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण खोजने के लिए एवं ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के बिषय में अनुसंधानकार्य हेतु समर्पित भावना से कार्य करते हुए मानवता की सेवा करने का लक्ष्य |
 कोरोना महामारी के विषय में विस्तृत जानकारी के साथ -
    संक्रमितों की संख्या बढ़ने और घटने के बिषय में हमारे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सही सटीक घटित हुए हैं जो पीएमओ की मेल पर आज भी विद्यमान हैं | 
मौसम विज्ञान -
    भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से संबंधित कार्यों के बिषय में प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के द्वारा विभिन्न अखवारों में प्रकाशित करवाया गया अनुसंधानात्मक लेख : "मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान !'  see more....  https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms 
 
 हमारे मौसम संबंधी अनुसंधान को सच मानने वाले निजीसंस्था स्काईमेट के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.रजनीश रंजन का परिचय !
Dr. R Ranjan, PhD,PGJMC,LLB
Vice President (Government Business & Disaster Management)
Senior Consultant, National Disaster Management Authority, Govt. of India  [former]
Special Advisor ,International Federation of Red Cross and Red Crescent Societies [former]
Programme Manager (e-learning),National Institute of Disaster Management [former]
Assistant Professor (Disaster Management) ,YASHADA, Pune [former]
Assistant Professor (Disaster Management) ,J&K IMPA,Jammu [former]
Landline  -91-120-4156504
Mobile - 91-9971767760
Skype-rajnishranjan70 
 डॉ.रजनीश रंजन जी के द्वारा मौसम विभाग के महानिदेशक  मृत्युंजय महापात्रा जी के लिए लिखा गया हमारे अनुसंधान के विषय में पत्र -
    To: Mrutyunjay Mohapatra <mohapatraimd@gmail.com>

Dear Sir,

My heartiest congratulations to you for assuming the highest and the prestigious position in your organization, which you really deserve. I have been one of the active spectator of your knowledge and skills  , who has seen you in different roles since long- As a Hard Core Scientist, A good orator on the subject, An excellent faculty, A dynamic communicator and head of the division and many more . Sir,  May god give you strength and enthusiasm so that you can continue your extra ordinary services to the nation . I shall be happy  and pleased to offer my support whenever required .

Further I would also like to introduce you with a qualified Astrologer Dr. Shesh Narayan Vajpayee (vajpayeesn@gmail.com) , to whom I came in contact recently and found him with a great capability of  forecasting weather with his Astrological Science . If you could desire to utilize his honorary services to your utility then he may be happily come to meet you for further discussion. May I request you to kindly listen to his techniques and model for further consideration in your system .

Thank you very much and warm regards.

Sincerely Yours ,

Rajnish Ranjan, PhD   Ex- Sr. Consultant 

NDMA ,M-9971767760

 विशेष: - वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीन वाङ्मय एवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
हमारेलिखी हुई पुस्तकें-
प्रकाशितः- पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिंदी  की किताबें
   कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम (एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादन, सह-संपादन, स्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशित साहित्यः- श्री शिव सुंदरकांड, श्री हनुमत सुंदरकांड,
संक्षिप्त निर्णय सिंधु, ज्योतिषायुर्वेद, श्री रुद्राष्टाध्यायी, वीरांगना द्रोपदी, दुलारी राधिका, ऊधौ-गोपी संवाद, श्रीमद्भगवद् गीताकाव्यानुवाद
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव - इंदलपुर, पो.- संभलपुर, जि.- कानपुर,उत्तर प्रदेश
तत्कालीन पता :
के -71, छाछी बिल्डिंग चौक,
कृष्णा नगर, दिल्ली-110051
मो. 9811226973, 9811226983 
ई - मेल : vajpayeesn @gmail.com 
वेवसाइट :www.drsnvajpayee.com
 
 वैदिकमौसमविज्ञान के कार्य :- उपग्रहों रडारों की मदद से मौसम वैज्ञानिक लोग आँधी     तूफानों एवं बादलों की जासूसी कर सकते हैं उनकी एक जगह उपस्थिति देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर उनके दूसरी जगह पहुँचने के विषय में तीर तुक्के लगा सकते हैं यदि हवा का रुख बदलता नहीं हैतो कभी कभी तीर तुक्के सही लग भी जाते हैं किंतु अधिकाँश गलत निकलते ही देखे जाते हैं जिनके लिए जलवायुपरिवर्तन का बहाना बनाया जाता है जो कोरी कल्पना मात्र है |इसीलिए मानसून आने जाने की तारीखें दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान आँधी तूफान के पूर्वानुमान आदि प्रायः गलत निकलते रहे हैं | इसका प्रमुख कारण मौसम संबंधी अध्ययनों के लिए किसी सही एवं सटीक पूर्वानुमानविज्ञान का न होना है |इसलिए वैदिक मौसम पूर्वानुमान संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता समझ कर इस पद्धति से मौसम संबंधित अनुसंधान किए जाते रहे हैं जिसके आधार पर दसहजार(10000) वर्ष  आगे तक के मौसम सम्बन्धी घटनाओं के पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं|यह गणित संबंधी वही अनुसंधान विधा है जिसके द्वारा हमारों वर्ष पहले सूर्य चंद्र संबंधी ग्रहणों का सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
वैदिकभूकंप विज्ञान के कार्य:- भूकंप संबंधी किसी भी वैज्ञानिकपद्धतिका कोई भी संबंध अभी तक भूकंपसंबंधी घटनाओं के साथ वैज्ञानिक रूप में प्रमाणित नहीं किया जा सका है भूमिगत गैसों या प्लेटों केआपस में टकराने की काल्पनिक कहानियों का कोई ऐसा तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार नहीं है जिसके आधार परभूकंपों के विषय में कभी कुछ बताया जा सका हो जो तर्क की कसौटी पर खरा उतर सका हो| इसलिए वैदिक भूकंपविज्ञान के द्वारा गणितागतपद्धति से सभीप्रकार के भूकंपों के विषय में बहुत कुछ पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| 
वैदिक वर्णविज्ञान के कार्य:- प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि प्रत्येक छोटे से छोटे या बड़े से बड़े अंश में न केवल सारी अच्छाइयाँ होती हैं और न ही सारी बुराइयाँ होती हैं वस्तुतः संसार की समस्त वस्तुएँ उन्हीं अच्छाइयों बुराइयों का  ही सम्मिश्रण हैं |  जिसे जो व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर आदि जितने अच्छे लगते हैं उन्हें वह उतना अच्छा मान लेता है जो जिसे अच्छे नहीं लगते हैं वो उन्हें उतना ख़राब मान लेता है |अच्छा और बुरा लगने का कारण उन सबका अपने अपने नाम का पहला अक्षर होता है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार लोगों का स्वभाव होता है | उस व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर आदि के लोगों  के नाम के पहले अक्षर के साथ जितना अच्छा संबंध होता है उन दोनों के आपसी संबंध भी उतने ही मधुर होते देखे जाते हैं | वही नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि  पहली पसंद होता है वहीँ उसका मन लगता है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार ही मित्र शत्रु बनते हैंउसी के अनुशार देश शहर नगर गाँव मोहल्ले  आदि स्थान  अच्छे या बुरे लगने लगते हैं | जिन दो या दो से अधिक अक्षरों का स्वभाव एक दूसरे वर्ण से मिल रहा होता है उन दोनों अक्षरों वाले लोगों के मन में एक दूसरे के प्रति दोष देखने की दृष्टि नहीं रह जाती है अपितु आपस में एक दूसरे केअंदर दिखाई पड़ने वाले दुर्गुणों में भी गुण खोज लिए जाते हैं और एक दूसरे से मित्रता बढ़ती चली जाती है और जिन वर्णों का स्वभाव एक दूसरे से विपरीत होता है वे एक दूसरे की अच्छाइयों में भी बुराइयाँ खोजते खोजते एक दूसरे के शत्रु होते चले जाते हैं |  |  इस प्रकार से वैदिक वर्ण विज्ञान के आधार पर बिखरते समाज तथा  टूटते परिवारों एवं बिगड़ते संबंधों को सुधारने की दृष्टि से अनुसंधान किए जाते हैं| see more... https://www.drsnvajpayee.com/index.php/relation/58-2018-10-03-06-15-31
 
वैदिकसमय विज्ञान के कार्य:- https://www.drsnvajpayee.com/index.php/2019-02-23-13-39-44
 
आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं श्री श्याम बिहारी मिश्र जी के साथ 
आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी                श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
श्रीमती सुषमा स्वराज जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
        श्री मदनलाल खुराना जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी




                                          




                            
                                                                                                                                                                                   मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं !

 दूसरा ...... 

 आप स्वयं  देखिए ... https://epaper.livehindustan.com/imageview_484316_46643970_4_1_06-01-2020_8_i_1_sf.html


  विशेष बात :आप अवश्य पढ़िए -
             वैदिक विज्ञान को विज्ञान न मानने वालों की सच्चाई आप भी एक बार अवश्य पढ़ें कुछ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख -और मौसम पूर्वानुमान !
     यह भारत का सबसे प्राचीन विज्ञान है इसमें प्रकृति से लेकर जीवन तक सबके रहस्य छिपे हुए हैं यह जानते हुए भी सरकारी मशीनरी इसे विज्ञान नहीं मानती है ?आखिर रोजी रोटी का सवाल जो है | 
   जिस मौसमविज्ञान के नाम पर मंत्रालय बनाए जाते हैं मंत्री नियुक्त किए जाते हैं मौसम वैज्ञानिक बताकर लोगों को बड़े बड़े ओहदों  पर बैठाया जाता है उन्हें भारी भरकम सैलरी दी जाती है उनके अनुसंधानों के नाम पर करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा दिए जाते हैं मंत्रालयों के संचालन में करोड़ों रूपए लगा दिए जाते हैं इतना सब करने के बाद भी उनके द्वारा लगाए जाने वाले दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं !मानसून आने जाने की तारीखें गलत निकल जाती हैं |ऐसे अनुसंधान कर्ताओं और उनके तामझाम पर इतना धन खर्च किए जाने का औचित्य क्या है ? जनता के टैक्स के पैसों से ये सब खेल खेला जाता है आखिर किस लिए ?इसकाम में यदि वेद विज्ञान सहायक हो सकता है और इनकी अपेक्षा उसमें खर्च भी बहुत कम लगता है इसके बाद भी सरकार उसमें रूचि नहीं लेती है क्यों ?इसविषय में सच्चाई  अवश्य पढ़िए  ....       

जनसत्ता के पेज - 7 पर -
ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार कोsee more....
https://epaper.jansatta.com/2508300/Jansatta/13-January-2020?fbclid=IwAR3uHqAiU1rYP81z6DSWs5lX0LA_IN0f_roA_w7cLsBOLygazUnJsErPkaI#page/7/2

नव भारत में -मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान !
    https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms 


 ABP news
ज्योतिषी का दावा: मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं सरकार को। ... https://www.abplive.com/news/india/weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-1277275
  
इण्डिया न्यूज -
ज्योतिषी का दावा: मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं सरकार को। ........ https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms

पंजाब केशरी -मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान...... https://www.punjabkesari.in/national/news/from-weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-1110219 

R.भारत - मौसमी घटनाएँ -

 webdunia.

   सोमवार, 13 जनवरी 2020 :ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार कोsee more ....  https://hindi.webdunia.com/national-hindi-news/weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-120011200023_1.html

asianetnews.........मौसम के साथ

ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार को ....... 

 The  Print-ज्योतिषी का दावा,

web DuniA :ज्योतिषी का दावा,


The world  News------मौसम के साथ
मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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