मैथ के द्वारा मौसम का पूर्वानुमान !
मैथ का मौसम से सीधा संबंध है!वस्तुतः गणित केवल जोड़ भाग गुणा घटाना ही नहीं है और न हि ये काल्पनिक है अपितु जीवन एवं प्रकृति को सही सही एवं सटीक समझने की यह सर्वोत्तम प्रक्रिया है !कुछ घटनाएँ प्रकृति में घटित होती हैं कुछ जीवन में दोनों के घटित होने का कारण समय होता है !समय कब कैसा बीता था और कब कैसा आगे आएगा !समय के इन दोनों स्वरूपों का सटीक अध्ययन केवल गणित से किया जा सकता है !
जो तूफान चक्रवात आदि इस वर्ष आया है उसका आना न जाने कितने करोड़ वर्ष पहले निश्चित हो चुका था !यही स्थिति बाढ़ आदि सभी प्राकृतिक आपदाओं की है किसी के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं है !
जिस प्राकृतिक सिद्धांत से सूर्य चंद्र आदि ग्रहण घटित होते हैं उसी से तो वर्षा बाढ़ आँधी तूफान आदि भी घटित होते हैं ऐसे में गणित ही एक मात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसी गणित विज्ञान के माध्यम से ही अनुसन्धान पूर्वक मौसम का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !
इसीलिए जिस दिन वर्षा होती है उस दिन कई जगह वर्षा होते देखी जाती है बाढ़ आती है तो कई देशों में उसी एक समय पर आती है !आँधी तूफ़ान होता है तो कई जगहों पर एक साथ होता है !और नहीं होती है तो नहीं होती है !आँधी भूकंप आता है देखा जाए की दृष्टि से सभी प्रकार की घटनाओं का समय निश्चित होता है इसीलिए एक प्रकार की अनेकों घटनाएँ अलग अलग स्थानों पर एक साथ घटित होते देखी जाती हैं !
ऐसी परिस्थिति में गणित विज्ञान के माध्यम से जिस चक्रवात का पूर्वानुमान लगाकर उसके विषय में महीनों पहले से अनुभव जुटाए जाने लगते हैं !इसके बनने का प्रारम्भिक असर उस क्षेत्र के लता वृक्षों बनस्पतियों पर पड़ने लगता है !मनुष्य आदि जीव जंतुओं समेत समस्त जीवधारियों के शरीरों और स्वभावों पर उसका असर पड़ने लगता है !उस तरह के रोग होने लगते हैं !ऐसे बदलावों लक्षणों का अध्ययन करते करते उस पूर्वानुमान पर विश्वास और अधिक बढ़ता जाता है इसके बाद वो तूफान बनना प्रारंभ होता है जिसका इतने लंबे समय से इन्तजार रहा होता है !गणितविज्ञान के द्वारा उस तूफ़ान के विषय में अध्ययन करने का इतना लम्बा अनुभव मिल जाता है !इसके बाद जब वह तूफान अपना स्वरूप बढ़ाने लगता है उस समय आधुनिक वैज्ञानिकों के राडार उसे पहचान पाते हैं तब तक बहुत दूर हो चुकी होती है !ऐसा सभी प्राकृतिक घटनाओं के साथ होता है !
ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी घटनाओं का गणितविज्ञान के द्वारा यदि पूर्वानुमान लगा लिया जाए और इसके बाद उनका परीक्षण आधुनिक वैज्ञानिक रडारों से करते रहा जाए तो पूर्वानुमान के क्षेत्र में बड़ी क्रांति ले जा सकती है !इससे भूकंप जैसी उन घटनाओं के विषय में भी अध्ययन को और अधिक बल मिल सकता है जिसके द्वारा प्राकृतिक अनुसंधानों का आधार और अधिक मजबूत किया जा सकता है !
- समयविज्ञान के सिद्धांत का अनुसंधान करने पर पता लगा कि संसार में जितने प्रकार की घटनाएँ हो सकती हैं उन सभी के लिए समय निश्चित होता है इसीलिए तो सर्दी गर्मी वर्षा आदि के लिए अलग अलग ऋतुएँ हैं और सबके लिए अलग अलग समय बना हुआ है कौन ऋतु किस ऋतु के आगे या पीछे होगी !उसी प्रकार से अन्य जीवन या प्रकृति से संबंधित घटनाओं के घटित होने का समय निश्चित है !
- किसी वर्ष महीने या दिन में वर्षा होने या अधिक वर्षा बाढ़ सूखा आदि होने का समय होता है तो ऐसे वर्ष महीने या दिन में कई देशों स्थानों पर उस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं !इसी प्रकार से आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि जिन दिनों में घटित होना होता है उन दिनों में कई जगह एक साथ घटित होता है !जिन दिनों में भूकंप आना होता है उन दिनों में कई देशों शहरों आदि में भूकंप घटित होते देखा जाता है!
- यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने का जो महीना दिन आदि समय होता है वो उसीसमय कुछ देशों शहरों आदि में एक साथ वायुप्रदूषण खूब बढ़ता है !दिल्ली पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश बिहार आदि भारत के कई प्रदेशों में तथा चीन आदि देशों में एक साथ फैलते देखा गया था वायुप्रदूषण !
- सन 2016 मई जून मेंबहुत अधिक आग लगने का समय था तो कई देशों प्रदेशों में जिलों में उसी निश्चित समय में हजारों जगहों पर आग लगने की घटनाएँ घटित हुईं !ऐसे ही कुछ दिन होते हैं !17 दिसंबर 2018 को एक ही दिन में करीब 20 जगह एक से एक बड़ी आग लगने की घटनाएँ होते देखी गईं !
- सन 2018 में आँधी आने का समय था तो कई प्रदेशों देशों में आँधी तूफ़ान का भयंकर प्रकोप देखने को मिला !
- ओले गिरने या बिजली गिरने का समय भी एक साथ कई स्थानों पर आता है !
- वाहनदुर्घटनाओं का जो दिन होता है उसदिन एक साथ कई शहरों में घटित होती हैं बाहन दुर्घटनाएँ ! बाहनों के खाई में गिरने का जो दिन होता है उस दिन कई बाहन खाई में गिर जाते हैं !
- डेंगू जैसे सामूहिक रोग जब फैलते हैं तब कई देशों प्रदेशों जिलों आदि में एक साथ फ़ैल जाते हैं !
- मानसिक पागलपन फैलने या हिंसा का समय आता है उस समय आतंक वादी हिंसा की घटनाओं को अंजाम देते हैं !
- उन्माद का समय आता है तो कश्मीर में कुछ लोग पत्थरबाजी करते हैं छात्र किसान और राजनैतिकदल आंदोलन कर रहे होते हैं सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं !
इस प्रकार से घटनाओं का सीधा संबंध समय से होने के हमारे पास और भी बहुत सारे उदाहरण हैं ! इतना ही नहीं अपितु ऐसी बहुत सारी घटनाओं के पूर्वानुमान लगाकर मैंने प्रकाशित भी किए जो सही घटित हुए हैं !
जो तूफान चक्रवात आदि इस वर्ष आया है उसका आना न जाने कितने करोड़ वर्ष पहले निश्चित हो चुका था !यही स्थिति बाढ़ आदि सभी प्राकृतिक आपदाओं की है किसी के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं है !
जिस प्राकृतिक सिद्धांत से सूर्य चंद्र आदि ग्रहण घटित होते हैं उसी से तो वर्षा बाढ़ आँधी तूफान आदि भी घटित होते हैं ऐसे में गणित ही एक मात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसी गणित विज्ञान के माध्यम से ही अनुसन्धान पूर्वक मौसम का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !
इसीलिए जिस दिन वर्षा होती है उस दिन कई जगह वर्षा होते देखी जाती है बाढ़ आती है तो कई देशों में उसी एक समय पर आती है !आँधी तूफ़ान होता है तो कई जगहों पर एक साथ होता है !और नहीं होती है तो नहीं होती है !आँधी भूकंप आता है देखा जाए की दृष्टि से सभी प्रकार की घटनाओं का समय निश्चित होता है इसीलिए एक प्रकार की अनेकों घटनाएँ अलग अलग स्थानों पर एक साथ घटित होते देखी जाती हैं !
ऐसी परिस्थिति में गणित विज्ञान के माध्यम से जिस चक्रवात का पूर्वानुमान लगाकर उसके विषय में महीनों पहले से अनुभव जुटाए जाने लगते हैं !इसके बनने का प्रारम्भिक असर उस क्षेत्र के लता वृक्षों बनस्पतियों पर पड़ने लगता है !मनुष्य आदि जीव जंतुओं समेत समस्त जीवधारियों के शरीरों और स्वभावों पर उसका असर पड़ने लगता है !उस तरह के रोग होने लगते हैं !ऐसे बदलावों लक्षणों का अध्ययन करते करते उस पूर्वानुमान पर विश्वास और अधिक बढ़ता जाता है इसके बाद वो तूफान बनना प्रारंभ होता है जिसका इतने लंबे समय से इन्तजार रहा होता है !गणितविज्ञान के द्वारा उस तूफ़ान के विषय में अध्ययन करने का इतना लम्बा अनुभव मिल जाता है !इसके बाद जब वह तूफान अपना स्वरूप बढ़ाने लगता है उस समय आधुनिक वैज्ञानिकों के राडार उसे पहचान पाते हैं तब तक बहुत दूर हो चुकी होती है !ऐसा सभी प्राकृतिक घटनाओं के साथ होता है !
ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी घटनाओं का गणितविज्ञान के द्वारा यदि पूर्वानुमान लगा लिया जाए और इसके बाद उनका परीक्षण आधुनिक वैज्ञानिक रडारों से करते रहा जाए तो पूर्वानुमान के क्षेत्र में बड़ी क्रांति ले जा सकती है !इससे भूकंप जैसी उन घटनाओं के विषय में भी अध्ययन को और अधिक बल मिल सकता है जिसके द्वारा प्राकृतिक अनुसंधानों का आधार और अधिक मजबूत किया जा सकता है !
घटनाएँ -
प्रकृति में या जीवन में प्रत्येक घटना समय के कारण घटित हो रही है मनुष्य के प्रयासों से इसमें बहुत बड़ा परिवर्तन होना संभव नहीं है किंतु किसी भी क्षेत्र में जैसा हम चाहते हैं जब वैसा ही हो जाता है तो उसे हम अपने प्रयासों का फल और अपने को कर्ता मान लेते हैं किंतु हमारे प्रयास करने के बाद भी जब वैसा नहीं होता है जैसा हम चाहते हैं कई बार तो उसके विरुद्ध भी हो जाता है ऐसी परिस्थिति में उसे किसके प्रयासों का फल माना जाए अर्थात उसका कर्ता कौन होगा ! ऐसे स्थलों पर लगता है कि अपनी इच्छा के अनुशार काम हो जाने के कारण मैंने अपने को कर्ता मान लिया था किंतु यदि मैं कर्ता होता और कार्य मेरे अनुशार या मेरे प्रयास के अनुरूप हो रहा होता तो जैसा हम चाह रहे थे कार्य वैसा होना चाहिए था यदि वैसा नहीं हुआ तो कम से कम उसके विरुद्ध तो नहीं ही होना चाहिए था किंतु वैसा हुआ इसका मतलब कर्ता कोई और दूसरा है किंतु कौन है ये पता नहीं होता है !इस शंका का समाधान तब होता है जब आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ देखी जाती हैं जिनका किसी के प्रयासों से घटित होना संभव ही नहीं है !वे भी घटित हो ही रही हैं उनका कर्ता कौन है ?यदि उस कर्ता और उसके स्वभाव एवं उसकी कार्यशैली को समझ पाना किसी भी प्रकार से संभव हो तभी प्रकृति या जीवन से संबंधित किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
गणित और समय - भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों ने सभी प्रकार की घटनाओं का कारण समय को माना है और समय को ही वास्तविक कर्ता माना गया है !क्योंकि किसी कार्य के लिए प्रयास किए जाएँ अथवा न किए जाएँ किंतु वो कार्य होगा या नहीं होगा या जो सोचकर प्रयास किया जा रहा है उसके विरुद्ध होगा ये समय पर आश्रित है और समय को समझने के लिए गणित के अलावा कोई दूसरा माध्यम है ही नहीं !
समय का जीवन एवं प्राकृतिक घटनाओं के साथ होता है सीधा संबंध -
प्राकृतिक घटनाओं में ग्रहण एक बड़ी घटना है!ये प्रकृति समय और गणित के आपसी संबंध का अत्यंत सटीक उदाहरण है ! ग्रहण का समय जब आता है ग्रहण तभी घटित होता है !चूँकि ग्रहण समय के आधीन है और समय की गणना करना गणित के द्वारा संभव है !इसी कारण से कौन ग्रहण कब पड़ेगा और कहाँ कितना दिखाई देगा !इसका पूर्वानुमान सैकड़ों हजारों वर्ष पहले गणित के द्वारा लगा लिया जाता है !कुल मिलाकर प्रकृति समय और गणितके आपसी संबंध का यह उत्कृष्ट उदाहरण है !
मैथ और मौसम का संबंध-
जिस प्रकार से शदियों पहले समय के द्वारा ये निश्चित कर लिया जाता है कि आज के सौ वर्ष बाद अमावस्या या पूर्णिमा को इस समय से इस समय तक सूर्य चंद्र और पृथ्वी तीनों ही इस इस प्रकार से एक सीधी लाइन में अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे!समय के आदेश को मान कर सौ वर्ष पहले निश्चित किए गए समय पर सूर्य चंद्र और पृथ्वी उसी प्रकार से आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं जैसा कि शादियों पहले समय ने निर्णय लिया था !समय के निर्णय को केवल गणित से समझा जा सकता है इसीलिए गणित के द्वारा हजारों वर्ष पहले ग्रहण का पूर्वानुमान गणित के द्वारा लगा लिया जाता है !
समय के आदेश का पालन करने के लिए जब निश्चित समय में इतने इतने बड़े सूर्य चंद्र और पृथ्वी एक सीध में न केवल आ जाते हैं अपितु निश्चित समय तक उसी स्थिति में रहते भी हैं ऐसी परिस्थिति में गणित के द्वारा यदि इस बात का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता है तो फिर वर्षा बादल बाढ़ आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण भूकंप आदि घटनाएँ भी समय के द्वारा बहुत पहले निश्चित की जा चुकी होती हैं ऐसी परिस्थिति में इनका पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि गणित का सहयोग लिया जाए तो प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है ! सूर्य चंद्र और पृथ्वी के इतने विशाल विशाल पिंडों के सामने इन छोटी छोटी प्राकृतिक घटनाओं का आस्तित्व ही क्या है !
ऐसा विचार करके मैंने मैथ के द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के विषय में अनुसंधान करना प्रारंभ किया !
घटनाओं के कारणों की खोज -
किस प्राकृतिक घटना के घटित होने का क्या कारण है इसकी खोज होनी बहुत आवश्यक है इसे खोजे बिना वास्तविक कारण तक पहुँच पाना बहुत कठिन होता है और कारण को समझे बिना उसका पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है !कारण मन गढंत या तीर तुक्के नहीं होने चाहिए ऐसा होने से उसके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं !आधुनिक विज्ञान अभी तक अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं के कारण खोजने में सफल नहीं हो पाया है !यही कारण है है किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने का वे जो कुछ भी कारण बताते हैं उसके आधार पर उनके द्वारा बताए गए पूर्वानुमानों पर वे कारण सही एवं सटीक घटित नहीं हो पाते हैं !
भूकंप के घटित होने का कारण धरती के अंदर की प्लैटों का खिसकना या धरती के अंदर भरी गैसों के दबाव को बताया जाता है ! यदि ये बातें सही हैं तो इनके आधार पर भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए और उसे सही घटित होना चाहिए यदि उसके आधार पर पूर्वानुमान घटित नहीं होता है इसका मतलब कारणों को समझने में कहीं गलती हुई है !
वायुप्रदूषण के कारणों की खोज -
हवा में व्याप्त प्रदूषण दिनोंदिन जान लेवा होता जा रहा है इसके वास्तविक कारण चिन्हित करने में प्रदूषणविद वैज्ञानिकों को अभी तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लग पाई है!ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण को घटाने के लिए समाज यदि सरकार की मदद करना चाहे तो कैसे करे !देशवासी जानना चाहें कि वे क्या क्या करना छोड़ दें जिससे वायु प्रदूषण घट जाएगा जनता वो छोड़ने को तैयार है !ऐसी परिस्थिति में सरकार के पास इस बात के कोई ठोस आधार नहीं हैं जिससे सरकार जनता को अवगत करा सके कि आप ऐसा ऐसा करना छोड़ दीजिए उससे प्रदूषण घट जाएगा !मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा प्रदूषण के विषय में दिए जाने वाले तर्क -
1. सर्दी में तो हवा में आर्द्रता अधिक बढ़ जाने के कारण वायु भारी हो जाती है इसलिए वायु प्रदूषण बढ़ जाता है
2. गर्मी में वायु हल्की होजाती है अतः उसमें धूल कण विद्यमान रहते हैं इसलिए वायु प्रदूषण बढ़ जाता है !
3. दशहरे के बाद दिल्ली में प्रदूषण पहुँचा खतरनाक स्तर तक !वैज्ञानिकों ने कहा कि रावण दहन के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
3. दीपावली में प्रदूषण बढ़ जाता है तो पटाकों के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
4. अक्टूबर में प्रदूषण बढ़ जाता है तो किसानों के पराली जलाने के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
5. इसके अलावा कभी भी प्रदूषण बढ़ जाता है तो भवन निर्माण कार्यों को ,उद्योगधंधों को,बाहनों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !
6 . यहाँ तक कि महिलाओं के अधिक श्रृंगार एवं स्प्रे आदि को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !
प्रदूषण वैज्ञानिकों का यह भ्रम समाज के लिए दो तरफ से नुकसान पहुँचाता है !जनता एक ओर तो प्रदूषण से जूझ रही होती है तो दूसरी ओर प्रदूषण फैलाने के नाम पर सरकार उन्हीं का चालान कर रही होती है ऑड इवन लगा रही होती है !उद्योगधंधे बंद करवाए जा रहे होते हैं !वैज्ञानिकों के भ्रम का शिकार बन रहा है समाज !इसलिए सरकार को चाहिए कि पहले वायु प्रदूषण संबंधी कारणों की खोज करे और बाद में जनता से सहयोग की आशा करे !
वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के कारणों की खोज -
वर्षा होने का कारण क्या है न होने का कारण क्या है ,एवं वर्षा कम होने का कारण क्या है और वर्षा अधिक होने का कारण क्या है इसकी खोज किए बिना वर्षा और बाढ़ के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर तीर तुक्के मारने लगना ठीक नहीं है!इनके लिए जिम्मेदार जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें यदि सच्चाई होती तो उनके आधार पर बताए जाने वाले पूर्वानुमान भी सच होते !
जो पूर्वानुमान मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा बताए भी जा रहे हैं वे यदि सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और न सही निकल जाएँ तो जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग जैसी न जाने कितनी झूठी कहानियाँ गढ़कर जनता पर थोप दी जाती हैं !आँधी तूफानों के विषय में भी पूर्वानुमानों का खेल ऐसे ही खेला जाता है !किसी वर्ष किसी क्षेत्र में गर्मी ,सर्दी ,वर्षा, बाढ़,आँधी तूफ़ान या बर्फ गिरने की घटनाएँ कम या अधिक हों या वैसी न घटित हों मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा जैसे तीर तुक्के लगाए गए हैं तो वो अपनी बात गलत होने का सारा दोष जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग ,पश्चिमी विक्षोभ जैसी मनगढंत कहानियों के मत्थे मढ़ देते हैं और अपने को बचा ले जाते हैं !
इसलिए भिन्न भिन्न प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले कारणों को सही तब माना जाए जब वे प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान की कसौटी पर खरे उतर सकें अन्यथा उन्हें गलत माना जाए !
जलवायुपरिवर्तन,ग्लोबलवार्मिंग का असर ग्रहण और ज्वार भाँटा जैसी प्राकृतिक घटनाओं पर क्यों नहीं पड़ा ?
वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान यदि वायु प्रदूषण के कारण गलत हो सकते हैं तो हैं घटित होती हैं तो इसी प्रकृति में तो सूर्य ,चंद्र ,पृथ्वी एवं समुद्र आदि भी तो हैं इन्होंने तो अपनी क्रियाएँ नहीं बदली हैं सैकड़ों वर्ष पहले जिन सूर्य चंद्र ग्रहणों का पूर्वानुमान गणित के द्वारा किया गया था वे आज भी एक एक सेकेण्ड सही घटित हो रहे हैं ! समुद्र में ज्वार भाँटा आज भी समय पर घटित हो रहे हैं !वृक्ष अपनी अपनी ऋतुओं में फूलते फलते हैं सूर्योदय के समय कमल पहले खिलता था आज भी खिल रहा है !सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का क्रम जो पहले चल रहा था वही आज चल रहा है!इनका असर कभी किसी क्षेत्र में कुछ कम और कभी कुछ अधिक दिखना ये जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग नहीं अपितु ये तो ऋतुओं का स्वभाव है जो हजारों वर्ष से इसी क्रम में चलता चला आ रहा है !
किस वर्ष सर्दी गर्मी वर्षा आदि का असर कहाँ कम होना है और कहाँ अधिक ये हजारों वर्ष पहले से सुनिश्चित होता है इसीलिए तो इनका पूर्वानुमान गणित के द्वारा बहुत पहले लगा लिया जाता रहा है और वो सही निकलता रहा है!जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई प्रक्रिया यदि ऋतुओं के असर को घटा बढ़ा सकता होता तब तो हजारों वर्ष पहले से चला आ रहा ऋतुओं का क्रम अव्यवस्थित हो जाता !
प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में आवश्यक अदृश्य कारण -
प्रकृति परिवार के कुछ ऐसे सदस्य होते हैं जो सामने भले ही न दिखाई पड़ते हों किंतु कई बड़ी घटनाओं में उनकी अहम् भूमिका होती है !वस्तुतः पारिवारिक सदस्यों की तरह ही सर्वांग प्रकृति एक दूसरे से संबंद्ध है प्रकृति की प्रत्येक घटना में कई दूसरी घटनाओं प्राकृतिक तत्वों का भी योगदान हो रहा होता है !इसीलिए प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उन सभी गतिविधियों का अध्ययन करना होता है तब पूर्वानुमान सही घटित होता है ! यदि सूर्य ग्रहण का पूर्वानुमान लगाना होता है तो सूर्य के साथ साथ पृथ्वी और चंद्र का भी अध्ययन करना पड़ता है!जबक सामने केवल सूर्य दिखाई पड़ रहा होता है इसी प्रकार से चंद्र ग्रहण का अध्ययन करते समय सूर्य और पृथ्वी का भी अध्ययन किया जाता है जबकि सामने केवल चंद्र दिखाई पड़ रहा होता है !यद्यपि सूर्य चंद्र और पृथ्वी आपस में सब एक दूसरे से बहुत दूर दूर होते हैं फिर भी एक दूसरे को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं !इन तीनों का अध्ययन से करके इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि कब कौन ग्रहण कितने समय के लिए पड़ेगा !
इस प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं का भी संपूर्ण अध्ययन भी गणित की प्रक्रिया से किया जाना चाहिए जिससे ग्रहणों की तरह ही प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों में दो बड़े सुधार लाए जा सकते हैं एक तो ऐसे पूर्वानुमान घटना घटने के बहुत पहले से लगाए जा सकते हैं और दूसरे इनकी सत्यता का प्रतिशत अधिक होगा !
वर्तमान पद्धति में भूकंप के विषय में रिसर्च करने के लिए ध्यान केवल धरती पर ही केंद्रित रखा जाता है धरती के अंदर ही गढ्ढे खोदे जाते हैं उसी में मशीनें फिट की जाती हैं उन्हीं से भूकंप पर रिसर्च किया जा रहा होता है रिसर्च का केंद्र केवल धरती होती है इसीलिए यह रिसर्च जहाँ से चला था आज भी वहीँ खड़ा है एक तिल भर भी तो आगे नहीं बढ़ सका है !
इसी प्रकार से वर्षा से सम्बंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल बादल देखना होता है जिस दिशा में जा रहे होते हैं उसे देखकर और जितनी उनकी गति होती है इसके आधार पर अंदाजा लगाकर वर्षा की भविष्यवाणी कर दी जाती है !कुल मिलाकर ध्यान केवल बादलों पर केंद्रित रखा जाता है!
इसी प्रकार से कहीं उठे आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि को देखकर उसकी तीव्रता दिशा आदि को देखकर आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसमें ध्यान केवल उसी आँधी तूफान आदि पर रखना होता है !
ऐसे ही वायु प्रदूषण कहीं बढ़ते देखा तो जहाँ जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती हुई दिखाई देती है या उड़ने की संभावना होती है उन सबको वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !जबकि भवनों का निर्माण ,वाहन , उद्योग धंधे आदि तो हमेंशा चलने वाली प्रक्रिया है फिर प्रदूषण कभी कभी क्यों बढ़ जाता है ?वायु प्रदूषण के प्रत्यक्ष कारणों से अलग हट कर गणित आदि अन्य विधाओं से भी प्रदूषण के विषय में अनुसंधान किया जाना चाहिए !
अनुसंधान का दायरा यदि इतना संकीर्ण न हो अपितु प्रकृति के संबद्ध समस्त पक्षों का सूक्ष्म अध्ययन किया जाए तो प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान और अधिक सटीक हो सकते हैं!
यदि ऐसे पूर्वानुमानों के लिए गणितविधा का उपयोग किया जाए तो इनमें और अधिक सत्यता ले जा सकती है !
आधार पर को देखकर ही मौसम पूर्वानुमान किया जा सकता है ! इसी प्रकार से आँधी तूफान चक्रवात आदि कहीं उठा देखा तो उसकी दिशा और गति का अंदाजा लगाकर कर दिए जाते हैं आँधी तूफान चक्रवात आदि के पूर्वानुमान !
प्रकृति को समझने में गणित सबसे सटीक माध्यम !
गणित के माध्यम से प्रकृति की कई बड़ी घटनाओं के रहस्य खोले जा सकते हैं !प्रकृति में ऐसी कई महत्त्वपूर्ण बड़ी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !जिनका आधुनिक विज्ञान की पद्धति में पूर्वानुमान लगाने का कोई आधार ही नहीं होता है !जो कारण वो लोग बताते भी हैं उसमें कोई सच्चाई भी नहीं होती है!ऐसी घटनाओं की जाँच या रिसर्च करने करवाने की बात करके वो उस समय उत्तर देने में बच जाते हैं किंतु इस प्रकार से किसी सच्चाई का गला घोटना ठीक नहीं है !24 घंटे,48 घंटे और 72 घंटे के लिए बताए जाने वाले पूर्वानुमानों को पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता है ! कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं -
सन 2016 के मई जून महीनों में लगभग आधे भारत में गर्मी ने रौद्र रूप धारण कर लिया था कुएँ तालाब आदि सूख गए थे कुछ क्षेत्रों में पीने का पानी सप्लाई करने के लिए पहली बार ट्रेन भेजनी पड़ी !इतना ही नहीं उस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हुईं जितनी इतिहास में कभी नहीं हुईं !इसीलिए बिहार सरकार ने इतिहास में पहली बार जनता से अपील की कि वे दिन में चूल्हा न जलावें और हवन न करें !
ऐसी और भी अचानक घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में गणित विज्ञान के द्वारा हमारे यहाँ बहुत पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसके साथ ही उसे प्रकाशित भी कर दिया जाता है इसके विषय में हमारे पास पर्याप्त प्रमाण हैं !
किस प्राकृतिक घटना के घटित होने का क्या कारण है इसकी खोज होनी बहुत आवश्यक है इसे खोजे बिना वास्तविक कारण तक पहुँच पाना बहुत कठिन होता है और कारण को समझे बिना उसका पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है !कारण मन गढंत या तीर तुक्के नहीं होने चाहिए ऐसा होने से उसके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं !आधुनिक विज्ञान अभी तक अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं के कारण खोजने में सफल नहीं हो पाया है !यही कारण है है किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने का वे जो कुछ भी कारण बताते हैं उसके आधार पर उनके द्वारा बताए गए पूर्वानुमानों पर वे कारण सही एवं सटीक घटित नहीं हो पाते हैं !
भूकंप के घटित होने का कारण धरती के अंदर की प्लैटों का खिसकना या धरती के अंदर भरी गैसों के दबाव को बताया जाता है ! यदि ये बातें सही हैं तो इनके आधार पर भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए और उसे सही घटित होना चाहिए यदि उसके आधार पर पूर्वानुमान घटित नहीं होता है इसका मतलब कारणों को समझने में कहीं गलती हुई है !
वायुप्रदूषण के कारणों की खोज -
हवा में व्याप्त प्रदूषण दिनोंदिन जान लेवा होता जा रहा है इसके वास्तविक कारण चिन्हित करने में प्रदूषणविद वैज्ञानिकों को अभी तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लग पाई है!ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण को घटाने के लिए समाज यदि सरकार की मदद करना चाहे तो कैसे करे !देशवासी जानना चाहें कि वे क्या क्या करना छोड़ दें जिससे वायु प्रदूषण घट जाएगा जनता वो छोड़ने को तैयार है !ऐसी परिस्थिति में सरकार के पास इस बात के कोई ठोस आधार नहीं हैं जिससे सरकार जनता को अवगत करा सके कि आप ऐसा ऐसा करना छोड़ दीजिए उससे प्रदूषण घट जाएगा !मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा प्रदूषण के विषय में दिए जाने वाले तर्क -
1. सर्दी में तो हवा में आर्द्रता अधिक बढ़ जाने के कारण वायु भारी हो जाती है इसलिए वायु प्रदूषण बढ़ जाता है
2. गर्मी में वायु हल्की होजाती है अतः उसमें धूल कण विद्यमान रहते हैं इसलिए वायु प्रदूषण बढ़ जाता है !
3. दशहरे के बाद दिल्ली में प्रदूषण पहुँचा खतरनाक स्तर तक !वैज्ञानिकों ने कहा कि रावण दहन के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
3. दीपावली में प्रदूषण बढ़ जाता है तो पटाकों के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
4. अक्टूबर में प्रदूषण बढ़ जाता है तो किसानों के पराली जलाने के कारण प्रदूषण बढ़ा है !
5. इसके अलावा कभी भी प्रदूषण बढ़ जाता है तो भवन निर्माण कार्यों को ,उद्योगधंधों को,बाहनों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !
6 . यहाँ तक कि महिलाओं के अधिक श्रृंगार एवं स्प्रे आदि को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !
प्रदूषण वैज्ञानिकों का यह भ्रम समाज के लिए दो तरफ से नुकसान पहुँचाता है !जनता एक ओर तो प्रदूषण से जूझ रही होती है तो दूसरी ओर प्रदूषण फैलाने के नाम पर सरकार उन्हीं का चालान कर रही होती है ऑड इवन लगा रही होती है !उद्योगधंधे बंद करवाए जा रहे होते हैं !वैज्ञानिकों के भ्रम का शिकार बन रहा है समाज !इसलिए सरकार को चाहिए कि पहले वायु प्रदूषण संबंधी कारणों की खोज करे और बाद में जनता से सहयोग की आशा करे !
वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के कारणों की खोज -
वर्षा होने का कारण क्या है न होने का कारण क्या है ,एवं वर्षा कम होने का कारण क्या है और वर्षा अधिक होने का कारण क्या है इसकी खोज किए बिना वर्षा और बाढ़ के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर तीर तुक्के मारने लगना ठीक नहीं है!इनके लिए जिम्मेदार जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें यदि सच्चाई होती तो उनके आधार पर बताए जाने वाले पूर्वानुमान भी सच होते !
जो पूर्वानुमान मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा बताए भी जा रहे हैं वे यदि सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और न सही निकल जाएँ तो जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग जैसी न जाने कितनी झूठी कहानियाँ गढ़कर जनता पर थोप दी जाती हैं !आँधी तूफानों के विषय में भी पूर्वानुमानों का खेल ऐसे ही खेला जाता है !किसी वर्ष किसी क्षेत्र में गर्मी ,सर्दी ,वर्षा, बाढ़,आँधी तूफ़ान या बर्फ गिरने की घटनाएँ कम या अधिक हों या वैसी न घटित हों मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा जैसे तीर तुक्के लगाए गए हैं तो वो अपनी बात गलत होने का सारा दोष जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग ,पश्चिमी विक्षोभ जैसी मनगढंत कहानियों के मत्थे मढ़ देते हैं और अपने को बचा ले जाते हैं !
इसलिए भिन्न भिन्न प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले कारणों को सही तब माना जाए जब वे प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान की कसौटी पर खरे उतर सकें अन्यथा उन्हें गलत माना जाए !
जलवायुपरिवर्तन,ग्लोबलवार्मिंग का असर ग्रहण और ज्वार भाँटा जैसी प्राकृतिक घटनाओं पर क्यों नहीं पड़ा ?
वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान यदि वायु प्रदूषण के कारण गलत हो सकते हैं तो हैं घटित होती हैं तो इसी प्रकृति में तो सूर्य ,चंद्र ,पृथ्वी एवं समुद्र आदि भी तो हैं इन्होंने तो अपनी क्रियाएँ नहीं बदली हैं सैकड़ों वर्ष पहले जिन सूर्य चंद्र ग्रहणों का पूर्वानुमान गणित के द्वारा किया गया था वे आज भी एक एक सेकेण्ड सही घटित हो रहे हैं ! समुद्र में ज्वार भाँटा आज भी समय पर घटित हो रहे हैं !वृक्ष अपनी अपनी ऋतुओं में फूलते फलते हैं सूर्योदय के समय कमल पहले खिलता था आज भी खिल रहा है !सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का क्रम जो पहले चल रहा था वही आज चल रहा है!इनका असर कभी किसी क्षेत्र में कुछ कम और कभी कुछ अधिक दिखना ये जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग नहीं अपितु ये तो ऋतुओं का स्वभाव है जो हजारों वर्ष से इसी क्रम में चलता चला आ रहा है !
किस वर्ष सर्दी गर्मी वर्षा आदि का असर कहाँ कम होना है और कहाँ अधिक ये हजारों वर्ष पहले से सुनिश्चित होता है इसीलिए तो इनका पूर्वानुमान गणित के द्वारा बहुत पहले लगा लिया जाता रहा है और वो सही निकलता रहा है!जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई प्रक्रिया यदि ऋतुओं के असर को घटा बढ़ा सकता होता तब तो हजारों वर्ष पहले से चला आ रहा ऋतुओं का क्रम अव्यवस्थित हो जाता !
प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में आवश्यक अदृश्य कारण -
प्रकृति परिवार के कुछ ऐसे सदस्य होते हैं जो सामने भले ही न दिखाई पड़ते हों किंतु कई बड़ी घटनाओं में उनकी अहम् भूमिका होती है !वस्तुतः पारिवारिक सदस्यों की तरह ही सर्वांग प्रकृति एक दूसरे से संबंद्ध है प्रकृति की प्रत्येक घटना में कई दूसरी घटनाओं प्राकृतिक तत्वों का भी योगदान हो रहा होता है !इसीलिए प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उन सभी गतिविधियों का अध्ययन करना होता है तब पूर्वानुमान सही घटित होता है ! यदि सूर्य ग्रहण का पूर्वानुमान लगाना होता है तो सूर्य के साथ साथ पृथ्वी और चंद्र का भी अध्ययन करना पड़ता है!जबक सामने केवल सूर्य दिखाई पड़ रहा होता है इसी प्रकार से चंद्र ग्रहण का अध्ययन करते समय सूर्य और पृथ्वी का भी अध्ययन किया जाता है जबकि सामने केवल चंद्र दिखाई पड़ रहा होता है !यद्यपि सूर्य चंद्र और पृथ्वी आपस में सब एक दूसरे से बहुत दूर दूर होते हैं फिर भी एक दूसरे को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं !इन तीनों का अध्ययन से करके इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि कब कौन ग्रहण कितने समय के लिए पड़ेगा !
इस प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं का भी संपूर्ण अध्ययन भी गणित की प्रक्रिया से किया जाना चाहिए जिससे ग्रहणों की तरह ही प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों में दो बड़े सुधार लाए जा सकते हैं एक तो ऐसे पूर्वानुमान घटना घटने के बहुत पहले से लगाए जा सकते हैं और दूसरे इनकी सत्यता का प्रतिशत अधिक होगा !
वर्तमान पद्धति में भूकंप के विषय में रिसर्च करने के लिए ध्यान केवल धरती पर ही केंद्रित रखा जाता है धरती के अंदर ही गढ्ढे खोदे जाते हैं उसी में मशीनें फिट की जाती हैं उन्हीं से भूकंप पर रिसर्च किया जा रहा होता है रिसर्च का केंद्र केवल धरती होती है इसीलिए यह रिसर्च जहाँ से चला था आज भी वहीँ खड़ा है एक तिल भर भी तो आगे नहीं बढ़ सका है !
इसी प्रकार से वर्षा से सम्बंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल बादल देखना होता है जिस दिशा में जा रहे होते हैं उसे देखकर और जितनी उनकी गति होती है इसके आधार पर अंदाजा लगाकर वर्षा की भविष्यवाणी कर दी जाती है !कुल मिलाकर ध्यान केवल बादलों पर केंद्रित रखा जाता है!
इसी प्रकार से कहीं उठे आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि को देखकर उसकी तीव्रता दिशा आदि को देखकर आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसमें ध्यान केवल उसी आँधी तूफान आदि पर रखना होता है !
ऐसे ही वायु प्रदूषण कहीं बढ़ते देखा तो जहाँ जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती हुई दिखाई देती है या उड़ने की संभावना होती है उन सबको वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है !जबकि भवनों का निर्माण ,वाहन , उद्योग धंधे आदि तो हमेंशा चलने वाली प्रक्रिया है फिर प्रदूषण कभी कभी क्यों बढ़ जाता है ?वायु प्रदूषण के प्रत्यक्ष कारणों से अलग हट कर गणित आदि अन्य विधाओं से भी प्रदूषण के विषय में अनुसंधान किया जाना चाहिए !
अनुसंधान का दायरा यदि इतना संकीर्ण न हो अपितु प्रकृति के संबद्ध समस्त पक्षों का सूक्ष्म अध्ययन किया जाए तो प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान और अधिक सटीक हो सकते हैं!
यदि ऐसे पूर्वानुमानों के लिए गणितविधा का उपयोग किया जाए तो इनमें और अधिक सत्यता ले जा सकती है !
आधार पर को देखकर ही मौसम पूर्वानुमान किया जा सकता है ! इसी प्रकार से आँधी तूफान चक्रवात आदि कहीं उठा देखा तो उसकी दिशा और गति का अंदाजा लगाकर कर दिए जाते हैं आँधी तूफान चक्रवात आदि के पूर्वानुमान !
प्रकृति को समझने में गणित सबसे सटीक माध्यम !
गणित के माध्यम से प्रकृति की कई बड़ी घटनाओं के रहस्य खोले जा सकते हैं !प्रकृति में ऐसी कई महत्त्वपूर्ण बड़ी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !जिनका आधुनिक विज्ञान की पद्धति में पूर्वानुमान लगाने का कोई आधार ही नहीं होता है !जो कारण वो लोग बताते भी हैं उसमें कोई सच्चाई भी नहीं होती है!ऐसी घटनाओं की जाँच या रिसर्च करने करवाने की बात करके वो उस समय उत्तर देने में बच जाते हैं किंतु इस प्रकार से किसी सच्चाई का गला घोटना ठीक नहीं है !24 घंटे,48 घंटे और 72 घंटे के लिए बताए जाने वाले पूर्वानुमानों को पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता है ! कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं -
सन 2016 के मई जून महीनों में लगभग आधे भारत में गर्मी ने रौद्र रूप धारण कर लिया था कुएँ तालाब आदि सूख गए थे कुछ क्षेत्रों में पीने का पानी सप्लाई करने के लिए पहली बार ट्रेन भेजनी पड़ी !इतना ही नहीं उस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हुईं जितनी इतिहास में कभी नहीं हुईं !इसीलिए बिहार सरकार ने इतिहास में पहली बार जनता से अपील की कि वे दिन में चूल्हा न जलावें और हवन न करें !
- सन 2016 के मई जून महीनों में लगभग आधे भारत अर्थात पूर्वी भारत में वर्षात ने रौद्र रूप धारण कर रखा था असम आदि भीषण बारिस और बाढ़ से जूझ रहे थे किंतु मौसम विभाग ने इसके लिए भी पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं दिया था !
- सन 2018 के मई जून में भीषण आंधी तूफान आदि की घटनाएँ घटित हुईं जिनसे जनधन की भारी हानि हुई !किंतु वैज्ञानिकों के द्वारा इसका कोई कभी पूर्वानुमान नहीं दिया गया और जो देने की हिम्मत की भी उस दिन भारत सरकार ने स्कूल कालेज सभी बंद कर दिए !किंतु उस दिन आँधी तूफान नहीं आए जिससे मौसम विभाग की भारी भद्द पिटी !"7 मई 2018 के लिए मौसम विभाग की चेतावनी - दिल्ली एनसीआर के इलाके में तेज़ हवाओं के साथ भारी बारिश की आशंका है. ये तेज़ हवाएं उत्तर भारत से बढ़ती हुई उत्तर पूर्वी भारत की ओर बढ़ रही हैं.इस भविष्यवाणी के मद्देनज़र दिल्ली-एनसीआर के इलाके में कई स्कूल बंद कर दिए गए. दिल्ली पुलिस ने अपनी तरफ से लोगों को सलाह देते हुए एडवाइज़री जारी कर दी कि बहुत ज़रूरी काम न हो तो लोग घर से बाहर न निकलें.दिल्ली मेट्रो की तरफ से कहा गया कि अगर हवा की रफ़्तार 90 किलो मीटर होगी, तभी मेट्रो सेवा बाधित रह सकती है.लेकिन तमाम इंतज़ाम धरे के धरे रह गए."इसके बाद ये पूर्वानुमान गलत सिद्ध हुआ !फिर मौसम विभाग के द्वारा कहा गया कि इसी वर्ष इतने आँधी तूफ़ान क्यों घटित हुए इस पर अनुसन्धान किया जाएगा !किंतु अभी तक ऐसे किसी अनुसन्धान की रिपोर्ट देखने सुनने को तो मिली नहीं संभवतः कभी मिलेगी भी नहीं !
- 3 अगस्त 2018 में मौसम विभाग ने दीर्घकालीन मौसम पूर्वानुमान बताते हुए कहा कि अगस्त सितम्बर में माध्यम बारिस होगी !इसके अलावा और कुछ नहीं !किंतु 7 अगस्त 2018 से दक्षिण भारत में वो भीषण बरसात हुई जिससे केरल में बड़ी जनधन हानि हुई !जिसका मौसम विभाग के द्वारा बताए जाने वाले किसी पूर्वानुमान में कहीं कोई जिक्र तक नहीं था !
- 22 दिसंबर 2018 को इंडोनेशिया में सुनामी आई जिससे भीषण जनधन की हानि हुई किंतु ये सुनामी क्यों आई इसका मौसम वैज्ञानिकों के पास कोई न उत्तर था और न ही इसके विषय में कोई पूर्वानुमान ही था !किंतु वैज्ञानिक होने के नाते प्रत्येक प्राकृतिक घटना पर कुछ बोलना होता है इसलिए कह दिया गया कि वहाँ एक ज्वाला मुखी का विस्फोट हुआ था इसलिए सुनामी आई किन्तु ऐसा कहने के लिए उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं थे !
ऐसी और भी अचानक घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में गणित विज्ञान के द्वारा हमारे यहाँ बहुत पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसके साथ ही उसे प्रकाशित भी कर दिया जाता है इसके विषय में हमारे पास पर्याप्त प्रमाण हैं !
पूर्वानुमान लगाना नहीं है आधुनिकविज्ञान के वश की बात !
आधुनिक विज्ञान के आधार पर किए जाने वाले अभी तक के पूर्वानुमान जनता की अपेक्षाओं से बहुत पीछे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौसम विभाग के द्वारा किए गए दीर्घावधि पूर्वानुमान 13 वर्षों में केवल 5 वर्षों के ही सही सिद्ध हो पाए हैं इससे कृषि कार्यों के लिए किसानों को लाभ नहीं पहुँचाया जा सकता है अपितु किसान इससे नुकसान उठा जाते हैं !संभव है किसानों की आत्म हत्याओं का एक कारण ये भी हो !चूँकि किसानों को फसल योजना बनाने एवं अन्न संरक्षण के लिए कुछ महीने पूर्व के मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है !जो दे पाने में मौसम विभाग न केवल अभी तक असफल रहा है अपितु भविष्य में भी कभी मौसम विभाग के द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी दीर्घकालिक भविष्यवाणियाँ सही हो पाएँगी मुझे इस पर भी संदेह है !
वस्तुतः आधुनिक विज्ञान के पास ऐसी कोई तकनीक ही नहीं है जिसके आधार पर वे मौसम का पूर्वानुमान लगा सकें !उनकी इस कमजोरी की भरपाई एक नहीं सैकड़ोंआकृष्ट किया जाट गुना अधिक एडवांस सुपर कम्प्यूटर भी नहीं कर सकते हैं !हाँ इतना अवश्य है कि ऐसी सभी गतिविधियों से कुछ समय और पार किया जा सकता है जिससे मौसम विभाग के पूर्वानुमान भी कभी सच हो सकते हैं इस भ्रम को कुछ दिन और बनाए रखा जा सकता है !
मौसमविज्ञान के निरर्थक बयान !
पूर्वानुमान की अपेक्षा बीते हुए समय के विषय में अधिक बताया करता है मौसम विज्ञान !ऐसी निरर्थक बयानबाजी करके समाज का ध्यान भटका देता है मौसम विज्ञान !कहाँ कब कितने मिली मीटर बारिस हुई थी वर्षा सर्दी गर्मी प्रदूषण आदि ने कब कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा ऐसी निरर्थक बातें बता बता कर समय पास किया करता है मौसम विज्ञान ! आखिर ऐसी बातों का किसके जीवन में क्या उपयोग हो सकता है ! दूसरी बात प्रकृति जिस ओर मुड़ती है मौसमविभाग वाले लोग भी उसी ओर अपना रुख न केवल मोड़ लेते हैं अपितु मोड़ते चले जाते हैं !वर्षा होने लगी तो अभी दो दिन और होगी या तीन दिन और होगी बस दो दो तीन तीन दिन कर कर के समय पास करते चले जाते हैं बिच में अचानक धूप निकल आई तो धूप धूप करने लग जाते हैं !यही स्थिति आँधी तूफानों की होती है प्रदूषण बढ़ने या भूकंप आने पर भी यही ट्रिक अपनाया जाता है !
3 मई 2018 को अचानक भयंकर आँधी आई जिसके विषय में किसी मौसम विज्ञान ने कोई पूर्वानुमान नहीं दिया था किंतु आंधी आनेके बाद तो मौसम विभाग बस आँधी आँधी के ही गीत गाने लगा !5 मई में आंधी आने की भविष्यवाणी कर डाली इसके बाद 7 मई को भीषण आँधी तूफ़ान की भविष्यवाणी कर डाली जिससे घबड़ाकर सरकार ने स्कूलों में छुट्टी कर दी किंतु कोई आँधी तूफान नहीं आया !
इन्हीं अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि आधुनिक विज्ञान के पास अभी तक अपनी ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं या प्राकृतिक आपदओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके !
गणितविज्ञान के द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का लगा लिया जाता है बहुत पहले पूर्वानुमान !
गणित पद्धति के द्वारा किए जाने वाले ऐसे पूर्वानुमान लगातार सही सिद्ध होते जा रहे थे ऐसा विचार करके अपनी बात ऊपर तक पहुँचाने के लिए मैंने सरकार के कई विभागों मंत्रियों मीडिया के लोगों से संपर्क किया जहाँ सफलता नहीं मिली अंत में मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि आप प्रत्येक महीने के मौसम पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर डालते जाओ आगे हम देखेंगे क्या कुछ किया जा सकता है !ऐसा समझकर मैं प्रत्येक महीना बीतने के अंतिम दिनों में अगले महीने के गणितविज्ञान के द्वारा प्राप्त पूर्वानुमान मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब के जीमेल पर डाल दिया करता था!इसके बाद स्काइमेट में संपर्क किया तो उन्होंने भी कहा कि अपने पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर डाल दिया करो तो मैंने उनके जीमेल पर भी डालना शुरू कर दिया !सही होने का मिलान मैं अखवारों एवं मीडिया की वेवसाइटों में छपी मौसम संबंधी खबरों से किया करता था !जिसमें गणितागत मौसम संबंधी पूर्वानुमान 80 प्रतिशत से भी अधिक सही सिद्ध हुए हैं !
सितम्बर के महीने में हिमाचल में लगातार भारी बारिस कई दिनों से हो रही थी जिससे हिमाचल भीषण बाढ़ का सामना कर रहा था !इसी बीच घनघोर घटाएँ घिरी हुई थीं पानी बरस रहा था मौसम विभाग हमेंशा की तरह दो दो दिन करके अपने पूर्वानुमान आगे बढ़ाए जा रहा था तभी 24-9-2018 दोपहर 2. 22 बजे अचानक हिमाचल में भूकंप आया !जिस भूकंप का निर्माण सूर्यकिरणों से हुआ था इसलिए इसमें गर्मी होनी स्वाभाविक थी इसका सीधा आदेश हिमाचल में वर्षा बंद करना था इस भूकम्पीय आदेश को शक्ति पूर्वक लागू होना ही था इसलिए मैंने उसी समय स्काईमेट को फ़ोनकरके इसकी तुरंत सूचना दी एवं मौसम विभाग में भी संपर्क किया किंतु वहाँ मेरा फ़ोन नहीं उठा तो मैंने अपने पास प्रमाण रखने के लिए उन दोनों के जीमेल पर तुरंत यह संदेशा डाल दिया -
9 सितंबर 2018 को दिल्ली हरियाणा मेरठ आदि में जो भूकंप आया उसका केंद्र 'झज्झर' था !यह भूकंप इस क्षेत्र में गला स्वाँस खाँसी संबंधी रोगों के बढ़ने की सूचना देने आया था !इसलिए भूकम्पीय क्षेत्र में ही गलाघोंटू बीमारी हुई थी जिसका दुष्प्रभाव 30 दिनों तक रहा था !इसे भी मैंने प्रकाशित किया था जिसके हमारे पास प्रमाण हैं !उस प्रकाशित पूर्वानुमान का एक अंश -
"इस भूकंप का निर्माण सूर्य की किरणों के द्वारा हुआ है इसलिए 'सूर्यज' भूकंप होने के कारण भूकंपीय क्षेत्र के वातावरण में सीमा से अधिक गरमी बढ़नी स्वाभाविक है ! यहाँ सूखीखाँसी, साँस लेने की समस्या एवँ आँखों में जलन आदि जानलेवा होती जाएगी !गर्मी की अधिकता से होने वाले और रोग भी अधिक बढ़ेंगे !"
इस प्रकार से हमने सैकड़ों भूकम्पों के आधार पर प्राप्त पूर्वानुमानों को लिखा है जो बहुत सटीक सिद्ध हुए हैं !भारत पाक जैसे संबंधों पर भूकम्पों ने अत्यंत सटीक सूचनाएँ दी हैं जिन्हें बाद में घटित होते देखा गया !ऐसी सभी बातों के हमारे पास मजबूत प्रमाण हैं !
नेपाल में 25 अप्रैल 2015 सुबह 11:56पर जो भूकंप आया था उस भूकंप का कारण था उससे तीन दिन पहले 22-4 -2018 आया भयंकर तूफान जिसमें नेपाल के साथ साथ भारत के भी बिहार आदि प्रांतों में भारी जनधन की हानि हुई थी !इस तूफ़ान का केंद्र भी नेपाल का वही स्थान था जो बाद में 25 अप्रैल 2015 को भूकंप का भी केंद्र बना था !
इसी प्रकार से 22-12-2018 में इंडोनेशिया में आई बिना भूकंप की सुनामी भी हवाओं की उसी ग्रंथि भेदन का परिणाम था !बंगाल की खाड़ी में उठा जो चक्रवाती तूफान 'पेथाई' 17 दिसंबर 2018 को आज आंध्र प्रदेश के तट से टकरा गया था इसके बाद गणित विज्ञान की दृष्टि से वही तूफान दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ते हुए आकाश में घनी भूत हो गया पुनः विस्तारित होकर तीव्रता पूर्वक हवाओं ने तीव्रता पूर्वक समुद्री जल में प्रहार किया जिससे वे उच्च लहरें उठीं जो जकार्ता सुमात्रा के मध्य से निकल सकती थीं किंतु इसी प्रवाह में इंडोनेशिया का पश्चिमी क्षेत्र विशेष अधिक प्रभावत हुआ था चक्रवाती तूफान की हवाओं का वेग तो शांत हो गया किंतु अत्यंत तीव्र बारिस होने लगी !
भूकंपों के द्वारा राजनैतिक घटनाओं का पूर्वानुमान -
भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे और बुरे संबंधों की भूकंप हमेंशा से सटीक सूचना देते रहे हैं जिस मैंने उसी समय प्रकाशित भी किया है !
गणित पद्धति के द्वारा किए जाने वाले ऐसे पूर्वानुमान लगातार सही सिद्ध होते जा रहे थे ऐसा विचार करके अपनी बात ऊपर तक पहुँचाने के लिए मैंने सरकार के कई विभागों मंत्रियों मीडिया के लोगों से संपर्क किया जहाँ सफलता नहीं मिली अंत में मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि आप प्रत्येक महीने के मौसम पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर डालते जाओ आगे हम देखेंगे क्या कुछ किया जा सकता है !ऐसा समझकर मैं प्रत्येक महीना बीतने के अंतिम दिनों में अगले महीने के गणितविज्ञान के द्वारा प्राप्त पूर्वानुमान मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब के जीमेल पर डाल दिया करता था!इसके बाद स्काइमेट में संपर्क किया तो उन्होंने भी कहा कि अपने पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर डाल दिया करो तो मैंने उनके जीमेल पर भी डालना शुरू कर दिया !सही होने का मिलान मैं अखवारों एवं मीडिया की वेवसाइटों में छपी मौसम संबंधी खबरों से किया करता था !जिसमें गणितागत मौसम संबंधी पूर्वानुमान 80 प्रतिशत से भी अधिक सही सिद्ध हुए हैं !
सितम्बर के महीने में हिमाचल में लगातार भारी बारिस कई दिनों से हो रही थी जिससे हिमाचल भीषण बाढ़ का सामना कर रहा था !इसी बीच घनघोर घटाएँ घिरी हुई थीं पानी बरस रहा था मौसम विभाग हमेंशा की तरह दो दो दिन करके अपने पूर्वानुमान आगे बढ़ाए जा रहा था तभी 24-9-2018 दोपहर 2. 22 बजे अचानक हिमाचल में भूकंप आया !जिस भूकंप का निर्माण सूर्यकिरणों से हुआ था इसलिए इसमें गर्मी होनी स्वाभाविक थी इसका सीधा आदेश हिमाचल में वर्षा बंद करना था इस भूकम्पीय आदेश को शक्ति पूर्वक लागू होना ही था इसलिए मैंने उसी समय स्काईमेट को फ़ोनकरके इसकी तुरंत सूचना दी एवं मौसम विभाग में भी संपर्क किया किंतु वहाँ मेरा फ़ोन नहीं उठा तो मैंने अपने पास प्रमाण रखने के लिए उन दोनों के जीमेल पर तुरंत यह संदेशा डाल दिया -
"rajnish.ranjan, Ramesh
डॉ.साहब सादर नमस्कार !
इस समय हिमाचल में घनघोर वर्षा हो रही है उसी बीच आज दोपहर 24-9-2018
दोपहर 2. 22 बजे शिमला में भूकंप आया है जिस भूकंप का निर्माण सूर्य से
हुआ था अतएव अब शिमला में सूर्य का प्रभाव बढ़ेगा जिससे बर्फ पिघलेगी
वातावरण बदलेगा तापमान बढ़ेगा और शिमला में चल रही घोर बारिस तत्काल बंद
होने की सूचना देता है यह भूकंप ! इसलिए वर्षा आज से अचानक बंद हो जाएगी !
केवल इसी बात की घोषणा करने आया था यह भूकंप !"
इसके बाद 25 सितम्बर को हिमाचल में वर्षा तो नहीं ही हुई अपितु मौसम भी साफ हो गया खुली धूप निकली थी !इसके भी मेरे पास प्रमाण हैं ! भूकंपों के आने पर गणितविज्ञान से लगाए जा सकते हैं कई प्रकार के पूर्वानुमान !
प्रकृति के द्वारा भेजी गई कोई न कोई सूचना देने आते हैं भूकंप !किसी क्षेत्र विशेष में कोई विशेष घटना घटित होने को होती है उसकी सूचना उस क्षेत्र में अत्यंत शीघ्र देनी आवश्यक होती है तब वहाँ आता है भूकंप !यदि उस भूकंप का अनुसंधान उसी समय किया जाए तब वहां आते हैं भूकंप भूकंप प्रकृति की किसी आकस्मिक अचानक घटित होने वाले भूकंपों एवं अन्य प्राकृतिक घटनाओं का गणित विज्ञान के
द्वारा अनुसन्धान करके मैंने कई बार कई प्रकार के पूर्वानुमान लगाकर प्रकाशित किए हैं जो सही घटित हुए हैं ऐसी प्राकृतिक घटनाओं में कई बार आँधी तूफान ने भूकंप के आने की सूचना दी है !कई बार भूकंप ने किसी क्षेत्र में आतंकी हमला सामाजिक विद्वेष सामाजिक उन्माद किसी प्रदेश में सरकार बदलने या किसी रोग विशेष के फैलने की सूचना दी है !किन्हीं दो देशों के बीच आपसी मित्रता शत्रुता बढ़ने की सूचना दी है अपने देश के साथ हो रही किसी सूचना की साजिश दी है !मैंने उसे भी प्रकाशित किया और चमत्कार के रूप में वैसा घटित हुआ ! 9 सितंबर 2018 को दिल्ली हरियाणा मेरठ आदि में जो भूकंप आया उसका केंद्र 'झज्झर' था !यह भूकंप इस क्षेत्र में गला स्वाँस खाँसी संबंधी रोगों के बढ़ने की सूचना देने आया था !इसलिए भूकम्पीय क्षेत्र में ही गलाघोंटू बीमारी हुई थी जिसका दुष्प्रभाव 30 दिनों तक रहा था !इसे भी मैंने प्रकाशित किया था जिसके हमारे पास प्रमाण हैं !उस प्रकाशित पूर्वानुमान का एक अंश -
"इस भूकंप का निर्माण सूर्य की किरणों के द्वारा हुआ है इसलिए 'सूर्यज' भूकंप होने के कारण भूकंपीय क्षेत्र के वातावरण में सीमा से अधिक गरमी बढ़नी स्वाभाविक है ! यहाँ सूखीखाँसी, साँस लेने की समस्या एवँ आँखों में जलन आदि जानलेवा होती जाएगी !गर्मी की अधिकता से होने वाले और रोग भी अधिक बढ़ेंगे !"
इस प्रकार से हमने सैकड़ों भूकम्पों के आधार पर प्राप्त पूर्वानुमानों को लिखा है जो बहुत सटीक सिद्ध हुए हैं !भारत पाक जैसे संबंधों पर भूकम्पों ने अत्यंत सटीक सूचनाएँ दी हैं जिन्हें बाद में घटित होते देखा गया !ऐसी सभी बातों के हमारे पास मजबूत प्रमाण हैं !
इस प्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों जैसी कई अन्य प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर भी पर्वानुमान
किया जाता है !भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ निरर्थक कभी नहीं आती हैं वे उस
क्षेत्रवासियों के लिए कोई न कोई संदेशा अवश्य लाती हैं वो प्रकृति से जुड़ा हो या जीवन से किंतु वो तत्काल प्रभाव से लागू होता है !कई बार आतंक वादियों के हमलों से संबंधित सूचनाएँ भूकंपों ने दी हैं जिनके अभिप्राय को गणित विज्ञान के द्वारा मैंने समझकर उन्हें न केवल प्रकाशित किया अपितु सरकार के विविध माध्यमों को सूचित करने की भी कोशिश की बाद में वे घटनाएँ वैसी ही घटित हुईं !
कुछ भूकंप चंद्र किरणों से बनते हैं कुछ सूर्य किरणों से बनते हैं कुछ हवा के दो समूहों में गाँठ लग जाने से बनते हैं हवा के उस घनीभूत स्वरूप के फैलते ही उसका विस्तार इतना अधिक हो जाता है कि वहाँ भूकंप आ जाता है !नेपाल में 25 अप्रैल 2015 सुबह 11:56पर जो भूकंप आया था उस भूकंप का कारण था उससे तीन दिन पहले 22-4 -2018 आया भयंकर तूफान जिसमें नेपाल के साथ साथ भारत के भी बिहार आदि प्रांतों में भारी जनधन की हानि हुई थी !इस तूफ़ान का केंद्र भी नेपाल का वही स्थान था जो बाद में 25 अप्रैल 2015 को भूकंप का भी केंद्र बना था !
इसी प्रकार से 22-12-2018 में इंडोनेशिया में आई बिना भूकंप की सुनामी भी हवाओं की उसी ग्रंथि भेदन का परिणाम था !बंगाल की खाड़ी में उठा जो चक्रवाती तूफान 'पेथाई' 17 दिसंबर 2018 को आज आंध्र प्रदेश के तट से टकरा गया था इसके बाद गणित विज्ञान की दृष्टि से वही तूफान दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ते हुए आकाश में घनी भूत हो गया पुनः विस्तारित होकर तीव्रता पूर्वक हवाओं ने तीव्रता पूर्वक समुद्री जल में प्रहार किया जिससे वे उच्च लहरें उठीं जो जकार्ता सुमात्रा के मध्य से निकल सकती थीं किंतु इसी प्रवाह में इंडोनेशिया का पश्चिमी क्षेत्र विशेष अधिक प्रभावत हुआ था चक्रवाती तूफान की हवाओं का वेग तो शांत हो गया किंतु अत्यंत तीव्र बारिस होने लगी !
भूकंपों के द्वारा राजनैतिक घटनाओं का पूर्वानुमान -
भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे और बुरे संबंधों की भूकंप हमेंशा से सटीक सूचना देते रहे हैं जिस मैंने उसी समय प्रकाशित भी किया है !
- 26 -10-2015 को भारत पाकिस्तान दोनों में भूकंप आया !इस भूकंप का अनुसन्धान हमने गणित विज्ञान से किया तो पता लगा कि ये भूकंप भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी संबंधों में सुधार करवाना चाहता है !तो मैंने ये सन्देश उसी दिन प्रकाशित कर दिया -"
"इस क्षेत्र के लोगों में आपसी शांति का कारक होगा देशों एवं लोगों के बीच आपसी सौमनस्य का निर्माण करेगा और इस सात्विक सोच का असर वर्तमान भारत पाक संबंधों में भी सकारात्मक दिखेगा आपसी संबंध सामान्य बनाने के प्रयास फलीभूत होंगे ! इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !इसमें भारत पाक संबंधों को सामान्य बनाने के सफल प्रयास होंगे"
- 25-12 -2015 को मोदी जी पाकिस्तान गए उस पर विपक्ष ने पाकिस्तान के विश्वासघात का हवाला देते हुए तमाम हो हल्ला किया तो उसी रात को भारत पाकिस्तान के बीच संयुक्त भूकंप आया !जिसका गणित विज्ञान से अनुसन्धान करने पर पता लगा कि ये भूकंप भी भारत पकिस्तान के संबंधों में सुधार के संकेत देने आया था !मैंने भूकम्प के द्वारा दी गई इस सूचना को भी प्रकाशित किया था !-
- 2 जनवरी 2016 पाकिस्तान से आतंकवादी आए और पठान कोट में हमला किया इससे शक होना स्वाभाविक था कि पाकिस्तान ने धोखा किया है !इस शंका को समाप्त करने के लिए उसी दिन तुरंत भूकंप आया !मैंने उस भूकंप के सन्देश का अध्ययन किया और उसे प्रकाशित किया था !
- "- दो जनवरी को आने वाला भूकंप मात्र इस बात का संकेत था कि पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने भारत को जो भयंकर चोट दी है सैनिकों के बहुमूल्य जीवन खोने पड़े हैं इस असह्य आपदा से घबड़ाकर भारत शांति के प्रयासों से अपने कदम कहीं पीछे न खींच ले !इसलिए उस दिन आए भूकंप के प्रभाव से पाकिस्तान को इतनी सद्बुद्धि आएगी कि वो भारत की भावनाओं के अनुरूप ब्यवहार करेगा !" आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय भारत और पाकिस्तान को आपस में मिलाने में ये भूकंप भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं !पहली बार 26 अक्टूबर 2015 को गीता भारत आई तो उसी दिन भूकंप आया दूसरी बार 25 दिसंबर 2015 को मोदी जी पाकिस्तान गए तो उसी रात में भूकम्प आया !तीसरी बार 2 जनवरी 2016 पाकिस्तान से आतंकवादी आए तो भूकंप आया !
10-4-2016 को भूकंप आया था उस भूकंप से प्राप्त सन्देश का अनुसंधान करने से मुझे पता लगा कि पाकिस्तान की भावना अब भारत के प्रति विश्वसनीय नहीं है उससे भारत को कैसा भी और कितना भी बड़ा धोखा मिल सकता है !उसे मैंने तुरंत प्रकाशित किया -"भारत और पकिस्तान के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन अत्यंत तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में भारत पाक के बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता इतनी अधिक बढ़ती चली जाएगी कि अभी से सतर्कता बरती जानी बहुत आवश्यक है ।इसलिए उचित होगा कि भारत पड़ोसी देश पर कम से कम अक्टूबर 2016 तक विश्वास करना बिलकुल बंद कर दे पड़ोसी के द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !" इस भूकंप आने के एक दिन बाद ही एक भारतीय को पाकिस्तान में फाँसी दी गई !इसके साथ ही अगले 6 महीनों तक पाकिस्तान भारत के विरुद्ध तमाम विश्वास घात करता रहा हमारे सैनिकों पर क्रूर हमले किए गए आदि और भी दिनोंदिन संबंध तनावपूर्ण होते चले गए !
- 10-4-2016 को आए भूकंप का अनुसन्धान करने से मुझे पता लगा कि इस समय ज्वलन शील गैस पृथ्वी पर विचरण कर रही है जिससे कभी भी कहीं भी आग लग सकती है एवं कुएँ नदी तालाब आदि सूखते चले जाएँगे मैंने भूकंप से प्राप्त इस सन्देश को भी तुरंत प्रकाशित किया -
" इस भूकंप के कारण पड़ेगा भीषण सूखा, बढ़ेंगे अग्निकांड और बिगड़ेंगे पाकिस्तान के साथ संबंध !3-4-2016 से 10-4-2016 तक हवा में मिली हुई थी आग जो भूकंप की अग्रिम सूचना दे रही थी । अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ और अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि अबकी बार बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे !"
इसी भूकंप के बाद से आग लगने की शुरुआत हुई थी इतिहास में पहली बार आग लगने की ऐसी भीषण एवं इतनी अधिक दुर्घटनाएँ देखने को मिली थीं !लातूर में ट्रेन से पानी की सप्लाई की गई थी !आग लगने की घटनाओं से तंग आकर बिहार सरकार ने दिन में चूल्हा न जलाने एवं हवन करने की अपील की थी !
13 -04-2016 को भूकंप आया उसका अनुसंधान करने से पता लगा कि भारत और चीन के संबंध मधुर होंगे तथा चीन और पूर्वी भारत में भीषण बारिश होगी तो इसे मैंने तुरंत प्रकाशित किया था -
"भूकंप (13 -04-2016) के प्रभाव से भारत और चीन के आपसी संबंध होंगे मधुर !
13 -04-2016 को 19. 28 बजे देश के पूर्वोत्तर में आया था भूकंप ! इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अति शीघ्र अधिक वर्षा बाढ़ से हो सकती भारी क्षति !जबकि समाज में व्याप्त असंतोष एवं आपसी बैर विरोध की भावना घटेगी और भाईचारे का वातावरण बनेगा ! 10-4-2016 को आए भूकंप से जो जो हानियाँ होती दिख रहीं थीं13-04-2016को आए भूकंप से वो सबकुछ सामान्य होते दिख रहा है इस भूकंप के द्वारा प्रकृति ने अपने को संतुलित किया है इस भूकंप का ये सबसे बड़ा लाभ है!भारत वर्ष के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों में जहाँ (10-4-2016) के भूकंप प्रभाव से भीषण सूखा पड़ेगा , अग्निकांड बढ़ेंगे और पाकिस्तान के साथ संबंध बिगड़ेंगे!गरमी संबंधी बीमारियाँ बढेंगी, वहीँ दूसरी ओर देश के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में13-04-2016 को आए भूकंप के प्रभाव से अधिक वर्षा की संभावना है और भारत के पूर्वोत्तर के पड़ोसी देशों के साथ संबंध मधुर होंगे और उन्हीं क्षेत्रों में अधिक वर्षा की भी सम्भावना बनती है । "इस भूकंप के तुरंत बाद चीन की पहली यात्रा पर मनोहर परिकर गए थे जहाँ आपसी वातावरण काफी सौहार्द्र पूर्ण रहा था !इस भूकंप के तुरंत बाद ही असम अरुणाचल सहित पूर्वी 6 प्रदेशों में ,चीन में 2 महीने तक भीषण बारिश होती रही थी !जिससे जनधन की काफी हानि हुई थी !कोसी नदी के अनियंत्रित प्रवाह से बिहार के कई जिले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। पटना से उत्तरपूर्व में 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पूरा त्रिवेणीगंज भी बाढ़ के पानी में डूब चुका था।
- भूकंप 13 -3-2017 को 15.52 बजे बनासकांठा जिले में 4.4 की तीव्रता वाला 'वातज'भूकंप जिसमें उस क्षेत्र में दंगे भड़कने की सूचना थी जिसे मैंने प्रकाशित भी किया था !-" पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस करेंगे ।ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !"इसी भूकंप के बाद गुजरात के पाटन में दंगा, दो की मौत: 5000 लोगों की भीड़ ने बोला हमला, 20 घर फूंके, कई मुस्लिम परिवारों ने छोड़ा गांव!
2016-08-31 सुबह तड़के PAK और चीन में संयुक्त भूकंप आया था जिसका सन्देश था कि भारत को चोट पहुँचाने के उद्देश्य से चीन और पाक संयुक्त प्रयास करेंगे जिसे मैंने प्रकाशित भी किया था और बाद में वैसा ही हुआ भी था !
- इसी प्रकार से प्रधानमंत्री की एक चुनावी सभा होनी थी वहीँ पर प्रातः भूकंप आ गया था !जो आतंकवादी हमलों का संकेत दे रहा था इसे भी मैंने प्रकाशित किया था !उसी दिन वहां दो बन विस्फोट हुए थे !
- 11 -12 -2016 को पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में संयुक्त भूकंप आया था वो वहाँ उन्माद एवं हिंसा भड़कने का सन्देश दे रहा था जिसे मैंने प्रकाशित भी किया था !इस भूकंप के बाद मणिपुर आदि में पहले से चली आ रही हिंसक घटनाएँ बहुत अधिक बढ़ गई थीं !
प्रकृति में हो या जीवन में अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं जो अलग अलग समयों पर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग जीवन में घटित होती दिख रही होती हैं जबकि ये आपस में एक दूसरे से वैसे ही जुड़ी होती हैं जैसे ग्रहण के समय सूर्य चंद्र और पृथ्वी !
सूर्य चंद्र और पृथ्वी तीनों आपस में एक दूसरे से बहुत दूर
होने के कारण एक साथ दिखाई भले न पड़ रहे हों किंतु प्रभाव उन तीनों का
तीनों पर ही पड़ता है !ग्रहण के घटित होने में उन तीनों की भूमिका बराबर की
होती है ! उन तीनों के संयुक्त प्रभाव से ही ग्रहण जैसी घटनाएँ घटित
होती हैं !यदि सूर्य ग्रहण हो तो चंद्र और पृथ्वी भी उसमें उतना ही
सम्मिलित होते हैं जितना कि सूर्य !इसी प्रकार से जब चंद्र ग्रहण घटित हो
रहा होता है तब सूर्य और पृथ्वी भी उतना ही सम्मिलित होते हैं जितना कि
चंद्र !
इसलिए सूर्यग्रहण हो या कि चंद्रग्रहण इन दोनों में से किसी एक के विषय
में भी यदि पूर्वानुमान लगाना हो कि कब होगा कितना ग्रहण होगा आदि जानने के लिए
केवल सूर्य का अध्ययन करना पर्याप्त नहीं होगा अपितु जैसे सूर्य के साथ साथ
चंद्र और पृथ्वी का भी अध्ययन करना होता है ऐसे ही चंद्र ग्रहण के लिए
चंद्र के साथ साथ सूर्य और पृथ्वी का भी अध्ययन करना होता है !तभी ग्रहण के
विषय में पूर्वानुमान लगाकर उसे सही सिद्ध किया जा सकता है !
इसी प्रकार से मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए जो प्रत्यक्ष कारण हैं उनका अनुसंधान तो किया ही जाना चाहिए इसके साथ ही जो अप्रत्यक्ष कारण हैं उनका भी अनुसंधान किया जाना चाहिए क्योंकि अप्रत्यक्ष कारणों का अनुमान लगाए बिना प्रत्यक्ष कारणों को समझ पाना आसान नहीं है और इसके बिना प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है !
आधुनिकविज्ञान के बश की बात ही नहीं है मौसम का पूर्वानुमान !- प्राकृतिक घटनाओं के कारणों की खोज !
किसी भी घटना में सम्मिलित कुछ कारण होते हैं उन सभी कारणों के एक साथ मिलजाने से कोई घटना घटित हो जाती है !कोई मकान बने या खाने के लिए कोई व्यंजन बने उसमें कुछ वस्तुएँ एक निश्चित प्रक्रिया के द्वारा एक साथ मिलानी होती हैं इसी प्रकार से किसी गाड़ी का निर्माण करने के लिए उसके कुछ पुर्जे होते हैं जिन्हें विशेष प्रक्रिया के तहत एक दूसरे से जोड़ना होता है जिससे गाड़ी निर्माण संबंधी घटना घटित हो जाती है! कई बार घटनाएँ जहाँ घटित हो रही होती हैं कारण वहाँ नहीं होते अपितु कारण कहीं दूर स्थित होकर वहीँ से घटनाओं के घटित होने में अपनी बड़ी भूमिका अदा रहे होते है !
इन्हें एक साथ मिलाने वाला कोई लौकिक घटक होता है जो निर्माण कार्य के लिए प्रयास करते हुए दिखता है किंतु उस निर्माण कार्य के लिए किए गए प्रयास को सफल या असफल बनाने की क्षमता उस लौकिक कर्ता में नहीं होती है उसकी सीमाएँ जहाँ तक प्रयास किया जा सकता है वहीँ तक सीमित होती हैं!इसके बाद उस प्रयास की भी वागडोर समय के हाथ में ही पहुँच जाती है क्योंकि मुख्य घटक तो समय ही होता है जो प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ते हुए भी प्रत्येक घटना के घटित होने न होने में मुख्य भूमिका निभाता है !किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए आवश्यक प्रयास करने के अलावा कोई कुशल चिकित्सक भी उस रोगी का हित चाहकर भी कुछ कर सकने की स्थिति में ही नहीं होता है क्योंकि प्रयास करने वाले के हाथ उसकी सीमाओं से बँधे होते हैं !इसके बाद वो भी समय भाग्य कुदरत आदि की ओर देखते हुए अपनी लाचारी व्यक्त कर देता है !
इसलिए कर्ता दिखाई पड़े या न पड़े किंतु यदि काम होता दिख रहा है जैसा कि प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के समय होते देखा जाता है !तो ये मानना पड़ेगा कि समय ही ऐसी घटनाओं का कर्ता है इसीलिए तो बड़े बड़े आँधी तूफान वर्षा बाढ़ भूकंप आदि घटित होते जा रहे होते हैं ऐसी घटनाओं की वागडोर सीधे समय के हाथ में ही होती है !
कुलमिलाकर समय के प्रभाव से प्रकृति के कुछ घटक तत्व एक दूसरे को प्रभावित करने लगते हैं उनसे प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं का निर्माण होता है !
यही स्थिति जीवन या प्रकृति से संबंधित प्रत्येक घटना की होती है !ऐसी परिस्थिति में वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल आकाश में उड़ते हुए बादलों को देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बताने पर विपरीत दिशा में यदि हवा का प्रवाह अधिक हो जाता है तो वह पूर्वानुमान गलत हो जाता है !इसी प्रकार से आँधी तूफान को उठा हुआ देखकर उसकी गति और दिशा के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान ऐसी परिस्थिति में गलत होने की सम्भावना अधिक बनी रहती है !भूकंप आने के बाद पृथ्वी में गड्ढे कर कर के उन गड्ढों से भूकंप खोजने लगना तथा आकाश को देखकर वायुप्रदूषण का अंदाजा लगा लेने का उद्घोष करना कोरी कल्पना है !ये बिल्कुल उसी प्रकार का झूठ है जैसे कोई चंद्र ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने के लिए चंद्र में गड्ढे करे और सूर्य ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने के लिए सूर्य का परीक्षण किया जाने लगे !
ऐसे प्रयासों को तब तक अनुसंधान कैसे माना जा सकता है जब तक इनके कारणों तक न पहुँचा जा सके !क्योंकि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के कारणों का ज्ञान होते ही उनका पूर्वानुमान करना आसान हो जाएगा एवं उनके निवारण का रास्ता साफ होता चला जाएगा किंतु कारणों को खोजने के लिए किए जा रहे प्रयास इतने कमजोर हैं कि उससे कुछ हासिल नहीं हो पा रहा है !ऐसा लगता है कि प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में सब कुछ दिखावा हो रहा है !भूकंप का पूर्वानुमान लगाने के लिए कुछ गड्ढे खोदे गए फिर उनमें मिट्टी भर दी गई और ये समझ लिया गया कि भूकंप धरती के अंदर भरी गैसों के दबाव एवं प्लेटों के टकराने से आते हैं !किंतु ऐसी बातें कहने से पूर्व ये बातें प्रामाणिक हैं भी कि नहीं इनका परीक्षण करने के लिए इन गैसों के प्रेशर का अध्ययन होता और पता लगाया जाता कि ये प्रेसर यदि इतने दबाव को क्रास कर जाएगा तो भूकंप आने की संभावना बन जाएगी इस आधार पर कुछ पूर्वानुमान लगाए जाते उनके सही निकलने पर ये मान लिया जाता कि अनुसंधान की इस पद्धति में सच्चाई है !अनुसन्धान के लिए और भी कोई गंभीर प्रयास किए बिना कभी कोई कह देता है कि अब कोई बड़ा भूकंप आएगा तो कभी कोई दूसरा बोल देता है कि हिमाचल में कोई बहुत बड़ा भूकंप आएगा वहाँ गैसें भरी हैं आदि आदि !ऐसी बिना सर पैर की बातें अक्सर गलत होने के लिए ही कही जाती हैं !
जहाँ तक प्राकृतिक घटनाओं के कारणों के जानने की बात है तो सुदूर आकाश में हवा के झोंकों से उड़कर इधर से उधर चले जाने वाले बादलों के बनने बिगड़ने आने जाने के कारणों की खोज कौन करेगा !कौन खोजेगा धरती के अधिक गहराई में छिपे भूकंप के कारणों को !क्योंकि ये बहुत बड़े काम हैं और इनके लिए बहुत बड़े बड़े प्रयास करने होंगे !
होली में होली जलने के कारण दिवाली में पटाखे छूटने के कारण ,दशहरा में रावण जलाए जाने के कारण ,धान काटते समय पराली जलाने के कारण सर्दी में हवाओं में नमी बढ़कर उनकी गति मंद हो जाने के कारण ,गर्मियों में हवाओं की गति तीव्र हो जाने से उसके साथ धूल उड़ने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है ऐसा कह दिया जाता है ! कुछ न हो तो घरों के निर्माण से उड़ने वाली धूल के कारण, बाहनों और उद्योंगों से निकलने वाले के धुएँ के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !एक वक्तव्य तो ऐसा भी मिला जिसमें कहा गया कि महिलाओं के स्प्रे में होने वाले कैमिकलों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !
वायुप्रदूषण के लिए जिम्मेदार इतने कारणों में से क्या सबको जिम्मेदार मान लिया जाए आखिर जनता क्या क्या करना बंद कर दे तो वायु प्रदूषण घट सकता है इस विषय में निश्चित तौर पर कोई कुछ बताने के लिए तैयार नहीं है !जहाँ प्रदूषण का न कारण पता लग पा रहा हो और न ही निवारण !आखिर ऐसे अनुसंधानों रिसर्चों से पर्यावरण का क्या लाभ !ये घटनाएँ एक दूसरे को प्रभावित कर रही होती हैं !जब आकाश में ग्रहण पड़ता है!तो दिखाई केवल वही पड़ता है जिसमें वो ग्रहण पड़ रहा होता है सूर्य ग्रहण के समय आकाश में केवल सूर्य और चंद्र ग्रहण में केवल चंद्र दिखाई पड़ रहा होता है !जबकि ग्रहण घटित होने में भूमिका तो इसी प्रकार से
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान मैथ अर्थात गणित के द्वारा कैसे संभव है ऐसा प्रश्न तो हर किसी के मन में उठ सकता है !जिसमें केवल आधुनिक वैज्ञानिक सोच रखने वाले लोगों के मन में ऐसी शंका होना अधिक स्वाभाविक है !क्योंकि आधुनिकविज्ञान प्रत्यक्ष या यंत्र सिद्ध को मानता है !मैथ को तो हर कोई मानता है किंतु मैथ की भूमिका मौसम के विषय में भी कुछ हो सकती है इसे बहुत कम लोग स्वीकार कर पाते हैं !
प्राचीन काल में भारत का विज्ञान अत्यंत विकसित था प्रकृति हो या जीवन तथा मौसम हो या स्वास्थ्य ऐसे किसी भी क्षेत्र में पूर्वानुमान लगाने की परंपरा भारत वर्ष में अत्यंत प्राचीनकाल से थी !पूर्वानुमान लगाने के लिए लोग अनेकों प्रकार के रीति रिवाज प्रक्रियाएँ आदि अपनाया करते थे !शकुन और अपशकुन जैसी परंपराएँ भी पूर्वानुमान लगाने के लिए ही बनाई गई थीं!इसके अलावा गणित विज्ञान सबसे सबल साधन था जिसके द्वारा मौसम समेत सभी प्रकार के अत्यंत सटीक पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे !
आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि प्राकृतिक घटनाएँ कब किस प्रकार की घटित होंगी !किस क्षेत्र में कब किस प्रकार के रोग फैलेंगे ! कौन कब किस प्रकार के रोगों से या मानसिक तनावों से पीड़ित होगा तथा किस प्रकार के रोगी कब किस प्रकार के चिकित्सकीय प्रयासों से कब स्वस्थ होंगे आदि बातों का पूर्वानुमान लगाने की अनेक विधाएँ थीं उन सब में सबसे अधिक सटीक गणितविज्ञान की विधा ही थी जिसका वर्णन आयुर्वेद के चरक सुश्रुत आदि ग्रंथों में मिलती है !
ग्लोबलवार्मिंग और गणितविज्ञान
किसी का स्वास्थ्य और कहीं का मौसम एक जैसा कभी नहीं रहता है इसमें छोटे बड़े बदलाव तो हमेंशा होते रहते हैं यही तो प्रकृति का कर्म है !छोटे काल खंड में छोटे बदलाव होते हैं और बड़े कालखंड में बड़े बदलाव होते हैं !
प्रातः काल में वातावरण ठंडा रहता है किंतु दोपहर तक तापमान क्रमशः बढ़ता चला जाता है और दोपहर के बाद में उसी क्रम में घटता चला जाता है !इसी प्रकार से थोड़े बड़े कालखंड अर्थात एक वर्ष का उदाहरण लेते हैं !इसमें जनवरी फरवरी आदि में वातावरण बहुत ठंडा रहता है !मई जून में बहुत गर्म रहता है इसके बाद नवम्बर दिसंबर में फिर ठंडा हो जाता है !इसी प्रकार से और बड़े कालखंड का उदाहरण लेने पर कुछ सौ वर्ष वातावरण ठंडा फिर कुछ सौ वर्ष गर्म उसके बाद फिर कुछ सौ वर्ष तक ठंडा हो जाता है !ऐसे ही प्राकृतिक घटनाएँ और अधिक बड़े कालखंड में घटित हुआ करती हैं इसका अंतराल हजारों वर्षों का होता है !इसलिए ये बदलाव भी क्रमशः हजारों वर्षों में ही घटित होते हैं !आम तौर पर इन परिवर्तनों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को लंबी अवधि में विभाजित करके किया जा सकता है।प्रकृति और जीवन उन बदलावों को सहने के लिए साथ साथ उसी के अनुरूप तैयार होता चलता है !ऐसे बदलावों को प्रकृति और प्राणी स्वतः स्वीकार करते जाते हैं और अपने को वैसे ही ढालते चले जाते हैं !पृथ्वी पर स्थित वृक्षों बनस्पतियों तथा जीवजंतुओं का स्वभाव एवं शरीरों का तापमान उसके अनुरूप ढलता चला जाता है !इसी पृथ्वी पर कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ का तापमान काफी अधिक होने से वहाँ गर्मी अधिक पड़ती है फिर भी वहाँ पेड़ पौधे एवं जीवन है एवं ऐसे ही कुछ क्षेत्र बहुत ठंडे होते हैं वहाँ भी पेड़ पौधे और जीवन देखा जाता है !इसलिए प्रकृति में जो परिवर्तन होते हैं उन्हें पेड़ पौधों एवं प्राणियों के अनुरूप बनाना ये प्रकृति की अपनी जिम्मेदारी है जिसका निर्वाह प्रकृति स्वतः करती रहती है !
इसलिए ऐसे बदलावों को देखकर ग्लोबलवार्मिंग जैसी बड़ी बड़ी बातों से भय पैदा करना ठीक नहीं है ये सोचना बिल्कुल उचित नहीं है कि तापमान बढ़ेगा तो बर्फ पिघल जाएगी समुद्रों का जल बढ़ जाएगा आदि !ऐसी काल्पनिक बातों का क्या औचित्य !
ये तो उसी तरह की बात हुई कि प्रातः काल के तापमान को देखकर दोपहर तक के बढ़ते तापमान का अध्ययन करके ये निष्कर्ष निकाल लिया जाए कि सुबह से दोपहर तक इतने घंटों में तापमान यदि इतना बढ़ गया है दो दोपहर बाद के घंटों में इसी अनुपात में यदि बढ़ता चला गया तो रात तक का तापमान न जाने कितना बढ़ जाएगा !आदि निराधार निरर्थक काल्पनिक बातों से बचा जाना चाहिए !
इसी प्रकार से यदि किसी का जन्म जनवरी फरवरी में हुआ हो वो यदि तापमान का अनुभव कर पाने में सक्षम हो तो वो मार्च अप्रैल मई जून आदि के तापमान को बढ़ता देखकर अज्ञानवश ये सोच सकता है कि इसीक्रम में तापमान यदि बढ़ता चला गया तो अगले छै आठ महीनों में बढ़कर न जाने कहाँ तक पहुँचेगा !जबकि जिसे वर्षक्रम का ज्ञान है उसे ये पता है कि सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ क्रमशः अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं !इसलिए उस ज्ञानवान व्यक्ति को ऐसे बदलाव से कोई भय नहीं होता है !
इसी प्रकार से कहने को तो मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक आधुनिक मौसम विज्ञान के क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हो सकी थी।उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से संबंधित आँकड़ा जुटाना आसान होने लगा !किंतु इतने कम समय के अपरिपक्व अनुभवों के आधार पर मौसम के विषय में ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई राय बना लेना ठीक नहीं है !ऐसा कहना आधुनिक मौसम विज्ञान का अभी तो बचपना है इसलिए ग्लोबलवार्मिंग जैसी धारणा आधुनिक मौसम विज्ञान के द्वारा बचपने में प्रकट की गई अदूरदर्शितापूर्ण गैरजिम्मेदार अपरिपक्व धारणा है !क्योंकि तर्कों के द्वारा इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है !
जलवायुपरिवर्तन -
यह सच है कि प्रत्येक वर्ष में 6 प्रमुख ऋतुएँ होती हैं जिनमें सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रमुख ऋतुओं का स्पष्ट अनुभव मिलता है इनमें सर्दी गर्मी वर्षा तीनों का क्रम एक जरूर रहता है किंतु तीनों का प्रभाव हर वर्ष एक जैसा नहीं रहता है प्रत्येक ऋतु का प्रभाव किसी वर्ष घट जाता है और कभी बढ़ जाया करता है !किसी वर्ष किसी क्षेत्र में वर्षा अधिक हो जाती है तो बाढ़ आने लगती है तो किसी वर्ष वर्षा बिल्कुल नहीं या मात्रा से बहुत कम होती है अर्थात सूखा पड़ जाता है !किसी वर्ष में वर्षा अच्छी हो जाती है !यही स्थिति सर्दी गर्मी जैसी अन्य ऋतुओं की भी है कुल मिलाकर परिस्थिति वहाँ भी बदलती रहती है !आदि काल से ऋतुओं के प्रभाव का प्रदर्शन हमेंशा से इसी प्रकार का न्यूनाधिक ही होता रहा है इसके प्रभाव की मात्रा को पहले भी कभी किसी निश्चित सीमा में बाँधा नहीं जा सका है और न ही आगे कभी बाँधा जा सकता है !ऋतुएँ अपने प्रभाव का प्रदर्शन करने में हमेंशा से स्वतंत्र रही हैं !आयुर्वेद में ऋतुओं की इसी प्रकार की व्यवहार प्रक्रिया को हीनयोग मिथ्यायोग एवं अतियोग के नाम से बताया गया है जो अनादि काल से चलता चला आ रहा है !ऋतुओं की इसी बिषमता से अन्न जल आदि दूषित होते हैं जिससे तरह तरह के रोग एवं प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेते हैं !
1. माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं और इसका नवीनतम उदाहरण है 2016 में गर्मी के मौसम की तपत 2015 से ज्यादा होना है । ऐसा माना जाता है कि यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है।
2. बताया जा रहा है कि उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों, उत्तरी यूरोप के हिस्सों और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश बढ़ रही है जबकि भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सूखा की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
3. गर्म हवाएं और गर्म दिन अधिक हो रहे हैं जबकि ठंडे दिन और ठंडी रातें बहुत कम हो गई हैं।
4. अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान में वृद्धि ने कई तूफानों की तीव्रता को जन्म दिया है !
5. उत्तरी गोलार्ध में बर्फबारी, आर्कटिक महासागर में बर्फ पिघलना और सभी महाद्वीपों में ग्लेशियरों के अप्रभावी बारिश तथा ज्वालामुखी विस्फोट। 6. वर्षा आदि में परिवर्तन, मृदा क्षमता,बाढ़, सूखा आदि की बढ़ती घटनाएँ 7. बारिश और हिमपात में अंतर देखा जा सकता है। उत्तर-दक्षिण अमेरिका, यूरोप और उत्तर-मध्य एशिया में अधिक बारिश हो रही है। इसी समय मध्य अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका, भूमध्य सागर और दक्षिण एशिया सागर सूख रहे हैं। अफ्रीका में साहेल ने दशकों से सूखे का अनुभव किया है। हैरानी की बात है कि इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश भी हुई है।
इस प्रकार से जिन संकेतों से यह माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है इस कारण ऐसा हो रहा है इनमें कोई तर्क युक्त सच्चाई न होकर अपितु अनादि काल से चली आ रही मौसम की ऐसी ही लय को न समझ पाने के कारण जलवायुपरिवर्तन जैसे निराधार आडंबर को ओढ़ा जा रहा है जिसका कोई आस्तित्व ही नहीं है !
वस्तुतः इनमें से कई ऐसी घटनाएँ हैं जिनके प्रमाणित कारण कुछ और हैं उन्हें न समझ पाने के कारण इसके लिए जलवायु परिवर्तन नाम की निराधार धारणा को जन्म देकर काल्पनिक आशंकाएँ पैदा करके समाज को डरवाया जाना ठीक नहीं है !
इनमें से कई घटनाएँ तो ऐसी हैं जिनके घटित होने से कई दिन पहले ही उनके घटित होने के पूर्वानुमान गणितविज्ञान के द्वारा लगाकर मैंने प्रकाशित कर दिए थे !बाद में वे घटनाएँ वैसी ही घटित हुई हैं !इसका सीधा सा मतलब है कि जलवायु परिवर्तन जैसी यदि कोई चीज होती तो हमारे द्वारा लगाए जाने वाले वे पूर्वानुमान गलत सिद्ध होने चाहिए थे किंतु ऐसा नहीं हुआ जिन्हें मैं स्वीकार करने योग्य प्रमाणों के साथ कहीं भी प्रस्तुत कर सकता हूँ ! जलवायु परिवर्तन
जीवन प्रातः काल में जितना सहज था दोपहर में तापमान बढ़ने पर भी उतना ही सहज बना रहता है और सायं काल पुनः तापमान घटने पर भी उतना ही सहज बना रहता है !
आधुनिक विज्ञान का जब जन्म ही नहीं हुआ था उस प्राचीनभारत में भी गणितविज्ञान पूर्णरूप से विकसित था !इसी गणितविज्ञान के द्वारा उस समय सूर्य और चंद्रमा के ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था कि कौन ग्रहण कब कितने बजे पड़ेगा कहाँ दिखाई देगा कहाँ नहीं !तथा कितने समय से कितने समय तक पड़ेगा !इस प्रकार से सैकड़ों वर्ष पहले गणितविज्ञान के द्वारा लगाए गए ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान तबसे लेकर अभी तक कभी गलत नहीं निकले !
इसी गणितविज्ञान के द्वारा ही उसयुग में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान भी महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता था वह भी सही घटित होता था ! ऐसी अन्य भी सभी आकाशीय एवं प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान गणित के द्वारा महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता था !वह भी सही निकलता था ! इसीलिए तब वर्षा, बाढ़, आँधी, तूफान,चक्रवात आदि से संबंधित घटनाएँ कब कहाँ कैसी घटित होंगी उससे जनधन की संभावित हानि की अनुमानित मात्रा कितनी होगी आदि बातों का सटीक पूर्वानुमान लगाकर उससे बचाव के प्रयास समय रहते प्रारंभ कर लिए जाते थे !
वर्तमान समय में भी उसी गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक हमारे यहाँ वर्षा, बाढ़, आँधी, तूफान,चक्रवात आदि प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है ! पिछले कुछ दशकों से देखा जा रहा है कि अनुसंधान कार्य चलाया जा रहा है आज भी उसके परिणाम काफी सही एवं सटीक सिद्ध होते देखे जा रहे हैं !
यहाँ तक कि वायु प्रदूषण कब कितना बढ़ेगा इसका पूर्वानुमान भी इसी गणितविज्ञान के द्वारा आसानी से लगा लिया जा रहा है!
वर्षा ,गर्मी सर्दी आदि की मात्रा कब कितनी कम या अधिक होगी इसका भी न केवल सही पूर्वानुमान लगा लिया जा रहा है अपितु उसे सही घटित होते भी देखा जा रहा है !
इस गणितविज्ञान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भविष्य में घटित होने वाली मौसम संबंधी किसी भी घटना का पूर्वानुमान गणित के द्वारा महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता है !जिन्हें परीक्षण के लिए भारत सरकार के मौसमविज्ञान विभाग में प्रतिमाह भेजा जाता रहा है ! !
कृषि कार्यों के लिए वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता सबसे अधिक होती है किंतु किसानों को कृषि कार्यों से संबंधित फसल योजनाएँ महीनों पहले बनानी होती हैं इसलिए दो चार दिन पहले उन्हें बताया जाने वाला वर्षा संबंधी पूर्वानुमान उनके लिए विशेष लाभप्रद नहीं हो पाता है !ऐसी परिस्थिति में इस गणितविज्ञान के द्वारा महीनों पहले सुलभ हो जाने वाले वर्षा संबंधी पूर्वानुमान कृषिकार्यों के लिए अधिक सहायक होते हैं !
गणितविज्ञान के अलावा अन्य प्रकारों से वर्षा आदि से संबंधित जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उनके गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन का भ्रम होने लगता है जबकि गणितविज्ञान के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान अधिक मात्रा में सही होते हैं इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसे भ्रम नहीं होते हैं !
किसी वर्ष में गर्मी बहुत अधिक पड़ती है तो किसी में सर्दी बहुत अधिक या कम होती है किसी में वर्षा बहुत अधिक या बहुत कम होती है किसी में आँधी तूफान बहुत अधिक देखे जाते हैं ऐसा होता क्यों है और भविष्य के किस वर्ष इनमें से किस प्रकार का असर बहुत कम या बहुत अधिक होगा इसका पूर्वानुमान केवल गणित विज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है !
वर्तमान समय में जिस अन्वेषण का परीक्षण यंत्रों से किया जा सकता है उसे ही विज्ञान मानने की परंपरा सी बनती दिखाई दे रही है !इस मानसिकता के कारण भारत के संपूर्ण प्राचीनविज्ञान को वैज्ञानिक मानने में सँकोच किया जाने लगा !दुर्भावनावश ऐसे विषयों की उपेक्षा की गई इनके प्रति अरुचि एवं घृणा पैदा की गई इन्हें उपहास का विषय बना लिया गया !इसकारण ऐसे प्राचीन वैज्ञानिक विषयों की सरकारी स्तर पर उपेक्षा की जाने लगी ! ऐसे विषयों का पठन पाठन अध्ययन अनुसंधान आदि बाधित होता चला गया !
कुछ सरकारों ने यदि प्राचीन वैज्ञानिक विषयों के अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि में रूचि लेनी शुरू भी की और अनुदान आदि देकर सहयोग करना भी चाहा और किया भी तो उसका सदुपयोग प्राचीनविज्ञान से संबंधित विद्वानों ने इन वैज्ञानिक विषयों के प्रत्यक्ष अनुसंधान में न करके अपितु उससे कुछ नए शोधप्रबंध लिखकर कर तैयार कर दिए जिसमें अपना कुछ नया अनुसंधान न होकर अपितु कुछ ग्रंथों विद्वानों के कुछ कुछ मतों का संग्रह मात्र होता था !इस प्रकार से अनुसंधान भावना से विहीन ऐसे वेदविद्वानों ने वेदविज्ञान की प्रतिष्ठा को अधिक क्षति पहुँचाई है !इससे अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें ही बल मिला जो वेद विज्ञान का उपहास उड़ाया करते थे !
किसी भी घटना में सम्मिलित कुछ कारण होते हैं उन सभी कारणों के एक साथ मिलजाने से कोई घटना घटित हो जाती है !कोई मकान बने या खाने के लिए कोई व्यंजन बने उसमें कुछ वस्तुएँ एक निश्चित प्रक्रिया के द्वारा एक साथ मिलानी होती हैं इसी प्रकार से किसी गाड़ी का निर्माण करने के लिए उसके कुछ पुर्जे होते हैं जिन्हें विशेष प्रक्रिया के तहत एक दूसरे से जोड़ना होता है जिससे गाड़ी निर्माण संबंधी घटना घटित हो जाती है! कई बार घटनाएँ जहाँ घटित हो रही होती हैं कारण वहाँ नहीं होते अपितु कारण कहीं दूर स्थित होकर वहीँ से घटनाओं के घटित होने में अपनी बड़ी भूमिका अदा रहे होते है !
इन्हें एक साथ मिलाने वाला कोई लौकिक घटक होता है जो निर्माण कार्य के लिए प्रयास करते हुए दिखता है किंतु उस निर्माण कार्य के लिए किए गए प्रयास को सफल या असफल बनाने की क्षमता उस लौकिक कर्ता में नहीं होती है उसकी सीमाएँ जहाँ तक प्रयास किया जा सकता है वहीँ तक सीमित होती हैं!इसके बाद उस प्रयास की भी वागडोर समय के हाथ में ही पहुँच जाती है क्योंकि मुख्य घटक तो समय ही होता है जो प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ते हुए भी प्रत्येक घटना के घटित होने न होने में मुख्य भूमिका निभाता है !किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए आवश्यक प्रयास करने के अलावा कोई कुशल चिकित्सक भी उस रोगी का हित चाहकर भी कुछ कर सकने की स्थिति में ही नहीं होता है क्योंकि प्रयास करने वाले के हाथ उसकी सीमाओं से बँधे होते हैं !इसके बाद वो भी समय भाग्य कुदरत आदि की ओर देखते हुए अपनी लाचारी व्यक्त कर देता है !
इसलिए कर्ता दिखाई पड़े या न पड़े किंतु यदि काम होता दिख रहा है जैसा कि प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के समय होते देखा जाता है !तो ये मानना पड़ेगा कि समय ही ऐसी घटनाओं का कर्ता है इसीलिए तो बड़े बड़े आँधी तूफान वर्षा बाढ़ भूकंप आदि घटित होते जा रहे होते हैं ऐसी घटनाओं की वागडोर सीधे समय के हाथ में ही होती है !
कुलमिलाकर समय के प्रभाव से प्रकृति के कुछ घटक तत्व एक दूसरे को प्रभावित करने लगते हैं उनसे प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं का निर्माण होता है !
यही स्थिति जीवन या प्रकृति से संबंधित प्रत्येक घटना की होती है !ऐसी परिस्थिति में वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल आकाश में उड़ते हुए बादलों को देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बताने पर विपरीत दिशा में यदि हवा का प्रवाह अधिक हो जाता है तो वह पूर्वानुमान गलत हो जाता है !इसी प्रकार से आँधी तूफान को उठा हुआ देखकर उसकी गति और दिशा के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान ऐसी परिस्थिति में गलत होने की सम्भावना अधिक बनी रहती है !भूकंप आने के बाद पृथ्वी में गड्ढे कर कर के उन गड्ढों से भूकंप खोजने लगना तथा आकाश को देखकर वायुप्रदूषण का अंदाजा लगा लेने का उद्घोष करना कोरी कल्पना है !ये बिल्कुल उसी प्रकार का झूठ है जैसे कोई चंद्र ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने के लिए चंद्र में गड्ढे करे और सूर्य ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने के लिए सूर्य का परीक्षण किया जाने लगे !
ऐसे प्रयासों को तब तक अनुसंधान कैसे माना जा सकता है जब तक इनके कारणों तक न पहुँचा जा सके !क्योंकि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के कारणों का ज्ञान होते ही उनका पूर्वानुमान करना आसान हो जाएगा एवं उनके निवारण का रास्ता साफ होता चला जाएगा किंतु कारणों को खोजने के लिए किए जा रहे प्रयास इतने कमजोर हैं कि उससे कुछ हासिल नहीं हो पा रहा है !ऐसा लगता है कि प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में सब कुछ दिखावा हो रहा है !भूकंप का पूर्वानुमान लगाने के लिए कुछ गड्ढे खोदे गए फिर उनमें मिट्टी भर दी गई और ये समझ लिया गया कि भूकंप धरती के अंदर भरी गैसों के दबाव एवं प्लेटों के टकराने से आते हैं !किंतु ऐसी बातें कहने से पूर्व ये बातें प्रामाणिक हैं भी कि नहीं इनका परीक्षण करने के लिए इन गैसों के प्रेशर का अध्ययन होता और पता लगाया जाता कि ये प्रेसर यदि इतने दबाव को क्रास कर जाएगा तो भूकंप आने की संभावना बन जाएगी इस आधार पर कुछ पूर्वानुमान लगाए जाते उनके सही निकलने पर ये मान लिया जाता कि अनुसंधान की इस पद्धति में सच्चाई है !अनुसन्धान के लिए और भी कोई गंभीर प्रयास किए बिना कभी कोई कह देता है कि अब कोई बड़ा भूकंप आएगा तो कभी कोई दूसरा बोल देता है कि हिमाचल में कोई बहुत बड़ा भूकंप आएगा वहाँ गैसें भरी हैं आदि आदि !ऐसी बिना सर पैर की बातें अक्सर गलत होने के लिए ही कही जाती हैं !
जहाँ तक प्राकृतिक घटनाओं के कारणों के जानने की बात है तो सुदूर आकाश में हवा के झोंकों से उड़कर इधर से उधर चले जाने वाले बादलों के बनने बिगड़ने आने जाने के कारणों की खोज कौन करेगा !कौन खोजेगा धरती के अधिक गहराई में छिपे भूकंप के कारणों को !क्योंकि ये बहुत बड़े काम हैं और इनके लिए बहुत बड़े बड़े प्रयास करने होंगे !
उसका गणित के द्वारा
पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसके लिए सूर्य ,चंद्र पृथ्वी आदि तीनों की
गति युति आदि गणित के द्वारा निकाली जाती है कि कौन किस दिन कितना कितना
किस किस ओर चलकर किस दिन कितने बजकर कितने मिनट और कितने सेकेण्ड पर तीनों
एक सीध में आ जाएँगे और ग्रहण शुरू हो जाएगा !इसमें से किसका कितना भाग
ग्रहण में प्रभावित होगा यह भी उसी गणित के द्वारा पता लगा लिया जाता है
!कौन ग्रहण पृथ्वी के किस भाग से कितना दिखाई पड़ेगा कहाँ से नहीं दिखाई
पड़ेगा इस बात को गणित के द्वारा ही उस युग में निकाल लिया जाने लगा था जब
आधुनिक विज्ञान का न जन्म हुआ था और न ही उसके विषय में किसी ने सोचा भी था
!
सच्चाई तो ये है कि मौसम के पूर्वानुमान की आशा ऐसे किसी से कैसे की जाए जो लोग आज तक ये ही नहीं बता सके कि वायु प्रदूषण के बढ़ने का कारण क्या है ?जिससे प्रदूषण बढ़ता है उस समय जो तिथि त्यौहार होते हैं या जो फसलें कट रही होती हैं या जो घरों का निर्माण कार्य हो रहा होता है या जो वाहन चल रहे होते हैं अथवा जहाँ जाम लग रहा होता है !इनमें से किसी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !होली में होली जलने के कारण दिवाली में पटाखे छूटने के कारण ,दशहरा में रावण जलाए जाने के कारण ,धान काटते समय पराली जलाने के कारण सर्दी में हवाओं में नमी बढ़कर उनकी गति मंद हो जाने के कारण ,गर्मियों में हवाओं की गति तीव्र हो जाने से उसके साथ धूल उड़ने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है ऐसा कह दिया जाता है ! कुछ न हो तो घरों के निर्माण से उड़ने वाली धूल के कारण, बाहनों और उद्योंगों से निकलने वाले के धुएँ के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !एक वक्तव्य तो ऐसा भी मिला जिसमें कहा गया कि महिलाओं के स्प्रे में होने वाले कैमिकलों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !
वायुप्रदूषण के लिए जिम्मेदार इतने कारणों में से क्या सबको जिम्मेदार मान लिया जाए आखिर जनता क्या क्या करना बंद कर दे तो वायु प्रदूषण घट सकता है इस विषय में निश्चित तौर पर कोई कुछ बताने के लिए तैयार नहीं है !जहाँ प्रदूषण का न कारण पता लग पा रहा हो और न ही निवारण !आखिर ऐसे अनुसंधानों रिसर्चों से पर्यावरण का क्या लाभ !ये घटनाएँ एक दूसरे को प्रभावित कर रही होती हैं !जब आकाश में ग्रहण पड़ता है!तो दिखाई केवल वही पड़ता है जिसमें वो ग्रहण पड़ रहा होता है सूर्य ग्रहण के समय आकाश में केवल सूर्य और चंद्र ग्रहण में केवल चंद्र दिखाई पड़ रहा होता है !जबकि ग्रहण घटित होने में भूमिका तो इसी प्रकार से
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान मैथ अर्थात गणित के द्वारा कैसे संभव है ऐसा प्रश्न तो हर किसी के मन में उठ सकता है !जिसमें केवल आधुनिक वैज्ञानिक सोच रखने वाले लोगों के मन में ऐसी शंका होना अधिक स्वाभाविक है !क्योंकि आधुनिकविज्ञान प्रत्यक्ष या यंत्र सिद्ध को मानता है !मैथ को तो हर कोई मानता है किंतु मैथ की भूमिका मौसम के विषय में भी कुछ हो सकती है इसे बहुत कम लोग स्वीकार कर पाते हैं !
प्राचीन काल में भारत का विज्ञान अत्यंत विकसित था प्रकृति हो या जीवन तथा मौसम हो या स्वास्थ्य ऐसे किसी भी क्षेत्र में पूर्वानुमान लगाने की परंपरा भारत वर्ष में अत्यंत प्राचीनकाल से थी !पूर्वानुमान लगाने के लिए लोग अनेकों प्रकार के रीति रिवाज प्रक्रियाएँ आदि अपनाया करते थे !शकुन और अपशकुन जैसी परंपराएँ भी पूर्वानुमान लगाने के लिए ही बनाई गई थीं!इसके अलावा गणित विज्ञान सबसे सबल साधन था जिसके द्वारा मौसम समेत सभी प्रकार के अत्यंत सटीक पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे !
आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि प्राकृतिक घटनाएँ कब किस प्रकार की घटित होंगी !किस क्षेत्र में कब किस प्रकार के रोग फैलेंगे ! कौन कब किस प्रकार के रोगों से या मानसिक तनावों से पीड़ित होगा तथा किस प्रकार के रोगी कब किस प्रकार के चिकित्सकीय प्रयासों से कब स्वस्थ होंगे आदि बातों का पूर्वानुमान लगाने की अनेक विधाएँ थीं उन सब में सबसे अधिक सटीक गणितविज्ञान की विधा ही थी जिसका वर्णन आयुर्वेद के चरक सुश्रुत आदि ग्रंथों में मिलती है !
ग्लोबलवार्मिंग और गणितविज्ञान
किसी का स्वास्थ्य और कहीं का मौसम एक जैसा कभी नहीं रहता है इसमें छोटे बड़े बदलाव तो हमेंशा होते रहते हैं यही तो प्रकृति का कर्म है !छोटे काल खंड में छोटे बदलाव होते हैं और बड़े कालखंड में बड़े बदलाव होते हैं !
प्रातः काल में वातावरण ठंडा रहता है किंतु दोपहर तक तापमान क्रमशः बढ़ता चला जाता है और दोपहर के बाद में उसी क्रम में घटता चला जाता है !इसी प्रकार से थोड़े बड़े कालखंड अर्थात एक वर्ष का उदाहरण लेते हैं !इसमें जनवरी फरवरी आदि में वातावरण बहुत ठंडा रहता है !मई जून में बहुत गर्म रहता है इसके बाद नवम्बर दिसंबर में फिर ठंडा हो जाता है !इसी प्रकार से और बड़े कालखंड का उदाहरण लेने पर कुछ सौ वर्ष वातावरण ठंडा फिर कुछ सौ वर्ष गर्म उसके बाद फिर कुछ सौ वर्ष तक ठंडा हो जाता है !ऐसे ही प्राकृतिक घटनाएँ और अधिक बड़े कालखंड में घटित हुआ करती हैं इसका अंतराल हजारों वर्षों का होता है !इसलिए ये बदलाव भी क्रमशः हजारों वर्षों में ही घटित होते हैं !आम तौर पर इन परिवर्तनों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को लंबी अवधि में विभाजित करके किया जा सकता है।प्रकृति और जीवन उन बदलावों को सहने के लिए साथ साथ उसी के अनुरूप तैयार होता चलता है !ऐसे बदलावों को प्रकृति और प्राणी स्वतः स्वीकार करते जाते हैं और अपने को वैसे ही ढालते चले जाते हैं !पृथ्वी पर स्थित वृक्षों बनस्पतियों तथा जीवजंतुओं का स्वभाव एवं शरीरों का तापमान उसके अनुरूप ढलता चला जाता है !इसी पृथ्वी पर कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ का तापमान काफी अधिक होने से वहाँ गर्मी अधिक पड़ती है फिर भी वहाँ पेड़ पौधे एवं जीवन है एवं ऐसे ही कुछ क्षेत्र बहुत ठंडे होते हैं वहाँ भी पेड़ पौधे और जीवन देखा जाता है !इसलिए प्रकृति में जो परिवर्तन होते हैं उन्हें पेड़ पौधों एवं प्राणियों के अनुरूप बनाना ये प्रकृति की अपनी जिम्मेदारी है जिसका निर्वाह प्रकृति स्वतः करती रहती है !
इसलिए ऐसे बदलावों को देखकर ग्लोबलवार्मिंग जैसी बड़ी बड़ी बातों से भय पैदा करना ठीक नहीं है ये सोचना बिल्कुल उचित नहीं है कि तापमान बढ़ेगा तो बर्फ पिघल जाएगी समुद्रों का जल बढ़ जाएगा आदि !ऐसी काल्पनिक बातों का क्या औचित्य !
ये तो उसी तरह की बात हुई कि प्रातः काल के तापमान को देखकर दोपहर तक के बढ़ते तापमान का अध्ययन करके ये निष्कर्ष निकाल लिया जाए कि सुबह से दोपहर तक इतने घंटों में तापमान यदि इतना बढ़ गया है दो दोपहर बाद के घंटों में इसी अनुपात में यदि बढ़ता चला गया तो रात तक का तापमान न जाने कितना बढ़ जाएगा !आदि निराधार निरर्थक काल्पनिक बातों से बचा जाना चाहिए !
इसी प्रकार से यदि किसी का जन्म जनवरी फरवरी में हुआ हो वो यदि तापमान का अनुभव कर पाने में सक्षम हो तो वो मार्च अप्रैल मई जून आदि के तापमान को बढ़ता देखकर अज्ञानवश ये सोच सकता है कि इसीक्रम में तापमान यदि बढ़ता चला गया तो अगले छै आठ महीनों में बढ़कर न जाने कहाँ तक पहुँचेगा !जबकि जिसे वर्षक्रम का ज्ञान है उसे ये पता है कि सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ क्रमशः अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं !इसलिए उस ज्ञानवान व्यक्ति को ऐसे बदलाव से कोई भय नहीं होता है !
इसी प्रकार से कहने को तो मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक आधुनिक मौसम विज्ञान के क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हो सकी थी।उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से संबंधित आँकड़ा जुटाना आसान होने लगा !किंतु इतने कम समय के अपरिपक्व अनुभवों के आधार पर मौसम के विषय में ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई राय बना लेना ठीक नहीं है !ऐसा कहना आधुनिक मौसम विज्ञान का अभी तो बचपना है इसलिए ग्लोबलवार्मिंग जैसी धारणा आधुनिक मौसम विज्ञान के द्वारा बचपने में प्रकट की गई अदूरदर्शितापूर्ण गैरजिम्मेदार अपरिपक्व धारणा है !क्योंकि तर्कों के द्वारा इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है !
जलवायुपरिवर्तन -
यह सच है कि प्रत्येक वर्ष में 6 प्रमुख ऋतुएँ होती हैं जिनमें सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रमुख ऋतुओं का स्पष्ट अनुभव मिलता है इनमें सर्दी गर्मी वर्षा तीनों का क्रम एक जरूर रहता है किंतु तीनों का प्रभाव हर वर्ष एक जैसा नहीं रहता है प्रत्येक ऋतु का प्रभाव किसी वर्ष घट जाता है और कभी बढ़ जाया करता है !किसी वर्ष किसी क्षेत्र में वर्षा अधिक हो जाती है तो बाढ़ आने लगती है तो किसी वर्ष वर्षा बिल्कुल नहीं या मात्रा से बहुत कम होती है अर्थात सूखा पड़ जाता है !किसी वर्ष में वर्षा अच्छी हो जाती है !यही स्थिति सर्दी गर्मी जैसी अन्य ऋतुओं की भी है कुल मिलाकर परिस्थिति वहाँ भी बदलती रहती है !आदि काल से ऋतुओं के प्रभाव का प्रदर्शन हमेंशा से इसी प्रकार का न्यूनाधिक ही होता रहा है इसके प्रभाव की मात्रा को पहले भी कभी किसी निश्चित सीमा में बाँधा नहीं जा सका है और न ही आगे कभी बाँधा जा सकता है !ऋतुएँ अपने प्रभाव का प्रदर्शन करने में हमेंशा से स्वतंत्र रही हैं !आयुर्वेद में ऋतुओं की इसी प्रकार की व्यवहार प्रक्रिया को हीनयोग मिथ्यायोग एवं अतियोग के नाम से बताया गया है जो अनादि काल से चलता चला आ रहा है !ऋतुओं की इसी बिषमता से अन्न जल आदि दूषित होते हैं जिससे तरह तरह के रोग एवं प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेते हैं !
1. माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं और इसका नवीनतम उदाहरण है 2016 में गर्मी के मौसम की तपत 2015 से ज्यादा होना है । ऐसा माना जाता है कि यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है।
2. बताया जा रहा है कि उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों, उत्तरी यूरोप के हिस्सों और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश बढ़ रही है जबकि भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सूखा की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
3. गर्म हवाएं और गर्म दिन अधिक हो रहे हैं जबकि ठंडे दिन और ठंडी रातें बहुत कम हो गई हैं।
4. अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान में वृद्धि ने कई तूफानों की तीव्रता को जन्म दिया है !
5. उत्तरी गोलार्ध में बर्फबारी, आर्कटिक महासागर में बर्फ पिघलना और सभी महाद्वीपों में ग्लेशियरों के अप्रभावी बारिश तथा ज्वालामुखी विस्फोट। 6. वर्षा आदि में परिवर्तन, मृदा क्षमता,बाढ़, सूखा आदि की बढ़ती घटनाएँ 7. बारिश और हिमपात में अंतर देखा जा सकता है। उत्तर-दक्षिण अमेरिका, यूरोप और उत्तर-मध्य एशिया में अधिक बारिश हो रही है। इसी समय मध्य अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका, भूमध्य सागर और दक्षिण एशिया सागर सूख रहे हैं। अफ्रीका में साहेल ने दशकों से सूखे का अनुभव किया है। हैरानी की बात है कि इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश भी हुई है।
इस प्रकार से जिन संकेतों से यह माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है इस कारण ऐसा हो रहा है इनमें कोई तर्क युक्त सच्चाई न होकर अपितु अनादि काल से चली आ रही मौसम की ऐसी ही लय को न समझ पाने के कारण जलवायुपरिवर्तन जैसे निराधार आडंबर को ओढ़ा जा रहा है जिसका कोई आस्तित्व ही नहीं है !
वस्तुतः इनमें से कई ऐसी घटनाएँ हैं जिनके प्रमाणित कारण कुछ और हैं उन्हें न समझ पाने के कारण इसके लिए जलवायु परिवर्तन नाम की निराधार धारणा को जन्म देकर काल्पनिक आशंकाएँ पैदा करके समाज को डरवाया जाना ठीक नहीं है !
इनमें से कई घटनाएँ तो ऐसी हैं जिनके घटित होने से कई दिन पहले ही उनके घटित होने के पूर्वानुमान गणितविज्ञान के द्वारा लगाकर मैंने प्रकाशित कर दिए थे !बाद में वे घटनाएँ वैसी ही घटित हुई हैं !इसका सीधा सा मतलब है कि जलवायु परिवर्तन जैसी यदि कोई चीज होती तो हमारे द्वारा लगाए जाने वाले वे पूर्वानुमान गलत सिद्ध होने चाहिए थे किंतु ऐसा नहीं हुआ जिन्हें मैं स्वीकार करने योग्य प्रमाणों के साथ कहीं भी प्रस्तुत कर सकता हूँ ! जलवायु परिवर्तन
जीवन प्रातः काल में जितना सहज था दोपहर में तापमान बढ़ने पर भी उतना ही सहज बना रहता है और सायं काल पुनः तापमान घटने पर भी उतना ही सहज बना रहता है !
आधुनिक विज्ञान का जब जन्म ही नहीं हुआ था उस प्राचीनभारत में भी गणितविज्ञान पूर्णरूप से विकसित था !इसी गणितविज्ञान के द्वारा उस समय सूर्य और चंद्रमा के ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था कि कौन ग्रहण कब कितने बजे पड़ेगा कहाँ दिखाई देगा कहाँ नहीं !तथा कितने समय से कितने समय तक पड़ेगा !इस प्रकार से सैकड़ों वर्ष पहले गणितविज्ञान के द्वारा लगाए गए ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान तबसे लेकर अभी तक कभी गलत नहीं निकले !
इसी गणितविज्ञान के द्वारा ही उसयुग में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान भी महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता था वह भी सही घटित होता था ! ऐसी अन्य भी सभी आकाशीय एवं प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान गणित के द्वारा महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता था !वह भी सही निकलता था ! इसीलिए तब वर्षा, बाढ़, आँधी, तूफान,चक्रवात आदि से संबंधित घटनाएँ कब कहाँ कैसी घटित होंगी उससे जनधन की संभावित हानि की अनुमानित मात्रा कितनी होगी आदि बातों का सटीक पूर्वानुमान लगाकर उससे बचाव के प्रयास समय रहते प्रारंभ कर लिए जाते थे !
वर्तमान समय में भी उसी गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक हमारे यहाँ वर्षा, बाढ़, आँधी, तूफान,चक्रवात आदि प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है ! पिछले कुछ दशकों से देखा जा रहा है कि अनुसंधान कार्य चलाया जा रहा है आज भी उसके परिणाम काफी सही एवं सटीक सिद्ध होते देखे जा रहे हैं !
यहाँ तक कि वायु प्रदूषण कब कितना बढ़ेगा इसका पूर्वानुमान भी इसी गणितविज्ञान के द्वारा आसानी से लगा लिया जा रहा है!
वर्षा ,गर्मी सर्दी आदि की मात्रा कब कितनी कम या अधिक होगी इसका भी न केवल सही पूर्वानुमान लगा लिया जा रहा है अपितु उसे सही घटित होते भी देखा जा रहा है !
इस गणितविज्ञान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भविष्य में घटित होने वाली मौसम संबंधी किसी भी घटना का पूर्वानुमान गणित के द्वारा महीनों वर्षों पहले लगा लिया जाता है !जिन्हें परीक्षण के लिए भारत सरकार के मौसमविज्ञान विभाग में प्रतिमाह भेजा जाता रहा है ! !
कृषि कार्यों के लिए वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता सबसे अधिक होती है किंतु किसानों को कृषि कार्यों से संबंधित फसल योजनाएँ महीनों पहले बनानी होती हैं इसलिए दो चार दिन पहले उन्हें बताया जाने वाला वर्षा संबंधी पूर्वानुमान उनके लिए विशेष लाभप्रद नहीं हो पाता है !ऐसी परिस्थिति में इस गणितविज्ञान के द्वारा महीनों पहले सुलभ हो जाने वाले वर्षा संबंधी पूर्वानुमान कृषिकार्यों के लिए अधिक सहायक होते हैं !
गणितविज्ञान के अलावा अन्य प्रकारों से वर्षा आदि से संबंधित जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उनके गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन का भ्रम होने लगता है जबकि गणितविज्ञान के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान अधिक मात्रा में सही होते हैं इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसे भ्रम नहीं होते हैं !
किसी वर्ष में गर्मी बहुत अधिक पड़ती है तो किसी में सर्दी बहुत अधिक या कम होती है किसी में वर्षा बहुत अधिक या बहुत कम होती है किसी में आँधी तूफान बहुत अधिक देखे जाते हैं ऐसा होता क्यों है और भविष्य के किस वर्ष इनमें से किस प्रकार का असर बहुत कम या बहुत अधिक होगा इसका पूर्वानुमान केवल गणित विज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है !
वर्तमान समय में जिस अन्वेषण का परीक्षण यंत्रों से किया जा सकता है उसे ही विज्ञान मानने की परंपरा सी बनती दिखाई दे रही है !इस मानसिकता के कारण भारत के संपूर्ण प्राचीनविज्ञान को वैज्ञानिक मानने में सँकोच किया जाने लगा !दुर्भावनावश ऐसे विषयों की उपेक्षा की गई इनके प्रति अरुचि एवं घृणा पैदा की गई इन्हें उपहास का विषय बना लिया गया !इसकारण ऐसे प्राचीन वैज्ञानिक विषयों की सरकारी स्तर पर उपेक्षा की जाने लगी ! ऐसे विषयों का पठन पाठन अध्ययन अनुसंधान आदि बाधित होता चला गया !
कुछ सरकारों ने यदि प्राचीन वैज्ञानिक विषयों के अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि में रूचि लेनी शुरू भी की और अनुदान आदि देकर सहयोग करना भी चाहा और किया भी तो उसका सदुपयोग प्राचीनविज्ञान से संबंधित विद्वानों ने इन वैज्ञानिक विषयों के प्रत्यक्ष अनुसंधान में न करके अपितु उससे कुछ नए शोधप्रबंध लिखकर कर तैयार कर दिए जिसमें अपना कुछ नया अनुसंधान न होकर अपितु कुछ ग्रंथों विद्वानों के कुछ कुछ मतों का संग्रह मात्र होता था !इस प्रकार से अनुसंधान भावना से विहीन ऐसे वेदविद्वानों ने वेदविज्ञान की प्रतिष्ठा को अधिक क्षति पहुँचाई है !इससे अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें ही बल मिला जो वेद विज्ञान का उपहास उड़ाया करते थे !