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Thursday, February 29, 2024

साक्ष्य आधारित अनुमान पूर्वानुमान प्रणाली मतलब क्या ?

                                                                 दो शब्द

                                         


               

 


                                                             भूमिका

                                                महामारी का कड़वा सच !

      


                                      संक्रमितों पर औषधियों के प्रभाव का परीक्षण !

    किसी रोग की चिकित्सा करने या उससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधि निर्माण करने के लिए सबसे पहले उस रोग को समझना होता है | उस रोग की प्रकृति को समझना होता है | उसके लक्षणों से उस रोग की पहचान करनी होती है |सभीप्रकार से रोग का परीक्षण करने के बाद ही उसकी चिकित्सा का निर्णय लिया जाता है |किसी कारण से रोग का परीक्षण किया जाना यदि संभव न हो तो चिकित्सा के विषय में निर्णय लिया जाना भी बहुत कठिन होता है |ऐसे समय अनुमान के आधार पर कई प्रकार की औषधियाँ अलग अलग दे देकर देखा है कि किससे कितना लाभ हो रहा है और किससे नहीं हो रहा है | कई बार रोगी के स्वस्थ होने का कारण कुछ और होता है किंतु चिकित्सकों के द्वारा उस समय जो औषधि चलाई जा रही होती है | रोगी के स्वस्थ होने का श्रेय उसी औषधि को दे दिया जाता है | ऐसा अक्सर प्राकृतिक रोगों में होते देखा जाता है |

                                          अनुभव विहीन शिक्षा से संबंधित अनुसंधान !

      पानी पर तैरना सीखना है तो तैरने का अनुभव करने के लिए पानी में घुसकर तैरना पड़ेगा |  जिस प्रकार से पानी में जाकर तैरना सीखे बिना तैरने का अनुभव नहीं मिल सकता, उसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में रहे बिना प्रकृति के विषय में अनुभव नहीं मिल सकता ! जिस प्रकार से कृत्रिम स्वीमिंग पुलों में तैरना सीखकर नदियों समुद्रों में तैरने की कठिनाइयों का अनुभव नहीं किया जा सकता ! उसीप्रकार से थोड़े बहुत दिन प्राकृतिक वातावरण में रहकर उन परिवर्तनों का अनुभव नहीं किया जा सकता ,जो प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में सहायक होते हैं | जिस प्रकार से किसी नौका या पनडुब्बी में बैठकर पानी पर तैरने  का सुख तो मिल सकता है किंतु  तैरने का अनुभव नहीं मिल सकता | उसी प्रकार से उपग्रहों रडारों से बादलों या आँधीतूफानों को कुछ पहले से देखकर कुछ दुर्घटनाओं में संभावित जनधन हानि को टाल भले लिया जाए किंतु इससे मौसम विशेषज्ञ नहीं बना जा सकता है | इससे प्राकृतिक वातावरण का वास्तविक अनुभव किया जाना संभव नहीं है | 

   प्रकृति विषयक अनुसंधानों में कठिनाई ये आ रही है कि विज्ञान संबंधी शिक्षा किंतु प्रकृति विषयक व्यक्तिगत अनुभवों का अभाव है |वैज्ञानिक बनने के लिए महँगी शिक्षा में भाग लेना गरीब विद्यार्थियों के बश की बात नहीं होती है | प्रायः सुख सुविधा पूर्ण संपन्न परिवारों में पले बढ़े विद्यार्थी महँगी शिक्षा लेकर उन सर्वोच्च निर्णायक पदों पर पहुँच पाते हैं किंतु प्राकृतिक वातावरण से उनका कभी सीधा सामना न  हो पाने के कारण यंत्रों प्राप्त आँकड़ों के आधार पर ही उन्हें निर्णय लेने होते हैं |ऐसे आँकड़ों का प्राकृतिक घटनाओं के साथ तालमेल प्रायः कम ही बैठ पाता है |

    दूसरी ओर परंपराओं से प्राप्त ज्ञान विज्ञान है | जिसके आधार पर  प्राकृतिक वातावरण में स्वयं रहकर  जो अनुभव प्राप्त किए जाते हैं |उनका प्राकृतिक घटनाओं के साथ प्रत्यक्ष संबंध होने से प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव अधिक सही होता है | ऐसे अनुभव  देश और समाज के हित में उस संकटकाल में उपयोगी हो सकते हैं| प्राचीन काल में ऋषि पुनि महात्मा विद्वान किसान ग्रामीण बनवासी आदि ऐसे प्राकृतिक अनुभवों के आधार पर बड़ी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |

   वर्तमान समय में भी जंगलों में रहने वाले बनबासी आदिवासी आदि को  सुनामी आने से पहले सुरक्षित स्थानों पर चले जाते देखा गया है | भूकंप आने के कुछ सप्ताह पहले से कई पशु पक्षी आदि जीवजंतु अपना व्यवहार बदल लेते हैं |वर्षा होने से पहले अनेकों जीवजंतुओं  का व्यवहार बदल जाता है | ऐसे ही ग्रामीणों कृषकों बनबासियों को उनके अनुभवों के आधार पर आगे से आगे वर्षा होने का पूर्वाभास हो जाता है | ऐसे जीवों जंतुओं मनुष्यों ने किसी भी विश्वविद्यालय से संबंधित विषय में कोई डिग्री नहीं ली होती है ,फिर भी उनका अनुभव सही घटित होता है | 

     बाराहमिहिर जैसे विद्वानों  ने तो ऐसे अनुभवों का संग्रह करके  बृहदसंहिता जैसे बड़े बड़े ग्रंथ लिखे हैं | जिनमें पशु पक्षियों की चेष्टाओं ,प्राकृतिक परिवर्तनों,के आधार पर भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है |जो अभी भी सही घटित होती है |ऐसे ही  उत्तरभारत  के प्रसिद्ध  महाकवि घाघ के अनुभव अभी भी जन जन के जीवन में सही घटित हो रहे हैं |प्रबुद्ध किसानों के द्वारा उनका  अनुभव एवं उपयोग अभी भी किया जाता है |

      वर्तमान समय में  प्रकृति और जीवन के विविध क्षेत्रों से संबंधित ऐसे प्राकृतिक अनुभव संपन्न विद्वानों का जनहित में कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है | इसीलिए परंपराओं से प्राप्त उस  प्राचीन ज्ञान विज्ञान को जानने समझने एवं अनुभव करने वाले प्रकृति चिंतकों की संख्या बहुत कम रह गई है | ऐसे प्राकृतिक विषयों के विद्वान निरंतर अपनी उपेक्षा सहते सहते थक हार कर अब अपने अपने विषयों से उपरत होने लगे हैं | बड़े त्याग तपस्या पूर्वक किए गए अपने अनुभवों के संग्रह को बेबशीपूर्वक समेटे  हुए अपना जीवन पूरा करते जा रहे हैं |अत्याधुनिक बुद्धिवाद ने न जाने कितने प्राचीन भारतीय ज्ञानविज्ञान के बड़े बड़े मनीषियों चिंतकों को यूँ खो दिया है | उनके अनुभवों का महामारियों तथा  प्राकृतिक आपदाओं के विषय में यदि उपयोग किया गया होता तो महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय वैश्विक समाज की समस्याओं का कुछ समाधान तो खोजा जा चुका होता | 

                     


                                                          


                                   घटनाओं को ही मान लिया जाता है जिम्मेदार !

     साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में घटना घटित होने का कारण प्रत्यक्ष दिखना होता है | जो नहीं दिखता है उसे नहीं माना जाता है | इसीलिए ऐसे अनुसंधानों में घटनाओं के वास्तविक कारण खोजे जाने संभव नहीं होते | साक्ष्यों के अभाव के कारण घटनाओं के विषय में अनुसंधान किया जाना संभव नहीं होता है | इसीलिए उसके द्वारा होने वाली समस्याओं के विषय में अनुसंधान शुरू कर दिए जाते हैं | 

     कम समय में अचानक यदि अधिक वर्षा हो जाए तो बाढ़ आनी स्वाभाविक है | इसमें बाढ़ आने का कारण कम समय में अधिक वर्षा होना है| इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ उस कारण को खोजा जाना चाहिए | इसके लिए कोई वैज्ञानिकअनुसंधान पद्धति न होने के कारण कम समय में अधिक वर्षा होने की खोज तो जलवायुपरिवर्तन के नाम पर रोक दी जाती है |जलनिकासी के ठीक प्रबंध न होने को बाढ़ आने के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |बाढ़ के कारण जनधन हानि हुई है और बाढ़ जलनिकासी के ठीक प्रबंध न होने के कारण आई है | इस प्रकार से प्रत्यक्ष साक्ष्य एक दूसरे से जोड़कर अनुसंधानों को पूर्ण मान लिया जाता है | 

   इसमें ध्यान दी जाने वाली विशेष बात यह है कि जल निकासी का प्रबंध तो हर वर्ष की तरह इस वर्ष में भी था किंतु हर वर्ष बाढ़ नहीं आती थी !बाढ़ तो इसी वर्ष आई है |इसका मतलब स्पष्ट है कि इस बार कम समय में अधिक वर्षा होना ही बाढ़ आने का मुख्यकारण रहा है |अनुसंधानों के द्वारा खोज उसी की होनी चाहिए कि इस वर्ष इतने कम समय में इतनी अधिक वर्षा होने का कारण क्या रहा है |  

     ऐसे ही कभी कभी तेज भूकंप आने से घरों को गिरते देखा जाता है | इस वर्ष इतने तेज भूकंप क्यों आ रहे हैं यह खोज का विषय होना चाहिए,किंतु इस बार इतना तेज भूकंप आने का कारण और पूर्वानुमान खोजने की वैज्ञानिक विधि न होने के कारण मकानों के कमजोर बने होने को उनके गिरने का कारण मान लिया जाता है | 

    इसमें विशेष ध्यान दी जाने वाली बात यह है मकान तो बहुत पहले से बने खड़े हुए थे | भूकंप पहले भी आते रहे थे तब तो इतने मकान नहीं गिरते थे |इस बार ही इतनी अधिक संख्या में मकान गिरने का कारण भूकंप की गति अधिक होना ही रहा है !इसलिए अनुसंधानों के द्वारा खोज इसी की होनी चाहिए कि इस बार इतनी तेज भूकंप आने का कारण क्या रहा है | 

     इसीप्रकार से महामारी आने वाली है या आ गई है | यह लोगों को संक्रमित होते या मृत्यु को प्राप्त होते देखकर पता लग पाता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से महामारी आने का कारण या पूर्वानुमान खोजने के बजाए मनुष्यों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी को जिम्मेदार मान लिया जाता है | प्रतिरोधक क्षमता तो वैसे भी  बढ़ती घटती रहती होगी किंतु इतनी बड़ी संख्या में वैसे तो इतने लोग एक साथ बीमार नहीं होते हैं |  

   महामारी में प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने का प्रत्यक्ष कारण स्वास्थ्य के प्रतिकूल आहार विहार रहन सहन,मानसिकतनाव, आर्थिकपरेशानी, नींद का अभाव, प्रदूषित स्थलों में रहन सहन प्रदूषित भोजन जलपान आदि से प्रतिरोधकक्षमता  कम होती है | ऐसा बताया जाता है किंतु यदि इस बात को आधार माना जाए तब तो  अभावग्रस्त लोगों की प्रतिरोधक क्षमता संपन्न लोगों की अपेक्षा अधिक कम  होनी चाहिए | इस दृष्टि से देखा जाए तो अभावग्रस्त लोगों की अपेक्षा साधनसंपन्नवर्ग के लोग महामारी में अधिक काल कवलित हुए हैं | 

     कुलमिलाकर जनधन हानि से बचाव की दृष्टि से देखा जाए तब तो जलनिकासी की व्यवस्था ठीक रखने पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए ,किंतु इसे भूलना नहीं चाहिए कि बाढ़ का मुख्यकारण कम समय में अधिक वर्षा होना है | इसबार ऐसा क्यों हुआ है उन कारणों की खोज की जानी चाहिए | एवं ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए | 

   ऐसे ही  भूकपों के आने पर नुक्सान कम से कम हो इसकेलिए भूकंपरोधी भवनों का निर्माण किया ही जाना चाहिए, किंतु ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि नुक्सान होने का कारण कारण तो भूकंप आना ही है | इसलिए भूकंपों की बढ़ती गति और आवृत्तियाँ चिंता का विषय हैं | इसके विषय में भी कुछ गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |  

      इसीप्रकार से महामारी जैसी आपदाओं का संक्रमण के बढ़ने पर लोगों की सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिरोधक क्षमता का परीक्षण भले कर लिया जाए | उसे सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक प्रयत्न भी कर लिए जाएँ !किंतु इस बात को भी याद रखा जाना चाहिए कि नुक्सान महामारी आने से हुआ है | इसलिए महामारी को समझने एवं इसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लगाने के लिए प्रभावी अनुसंधान किए जाने की भी आवश्यकता है | 

                          साक्ष्य आधारित अनुमान पूर्वानुमान प्रणाली मतलब क्या ?

    इस विधा में सबकुछ प्रत्यक्ष दिखाई देना होता है | सभी प्राकृतिक घटनाओं की श्रृंखला एक दूसरे से जुड़ती दिखाई पड़नी होती है |
      साक्ष्य तो तभी मिल सकते हैं जब जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते दिखाई दें तब तैसी भविष्यवाणी कर दी जाए ,तो वे प्रत्यक्ष साक्ष्य की श्रेणी में आ जाएँगे | उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा होने की आँधी तूफ़ान देखकर आँधी तूफ़ान आने के विषय में बता दिया जाए तो वे प्रत्यक्ष साक्ष्य हो सकते हैं | ऐसे ही महामारी से लोग संक्रमित होते या मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई दें तो महामारी आने का पूर्वानुमान व्यक्त कर दिया जाए | संक्रमितों की संख्या बढ़ते दिखाई दे तो नई  लहर आने की और संक्रमितों की संख्या घटती दिखाई दे तो लहर समाप्त होने की एवं संक्रमितों की संख्या अधिक तेजी से घटती दिखाई  दे तो महामारी समाप्त होने की भविष्यवाणी कर दी जाए | साक्ष्य आधारित अनुसंधानों के लिए जिन प्रतीकों का चयन किया जाए उनका एक दूसरे से जुड़ते दिखाई पड़ना चाहिए | भूकंप के समय धरती हिलने का कारण प्रत्यक्ष दिखना चाहिए |ये सब तो  ठीक है किंतु भूकंपों के आने का कारण भूगर्भगत लावा पर तैरती टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को या फिर धरती के अंदर संचित ऊर्जा के बाहर  निकलने को जिम्मेदार मानने की कल्पना कर ली जाती है | प्रत्यक्ष न तो टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को किसी ने देखा है और न ही ऊर्जा निकलने को !ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष साक्ष्य तो ये भी नहीं हुए |ये तो केवल कल्पना है | जो तभी तक टिकेगी जब तक सच्चाई सामने नहीं आती है सच्चाई सामने आते ही ऐसी कल्पनाओं का कोई आस्तित्व नहीं रह  जाता है | 

    ऐसे ही मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने के लिए,वायुप्रदूषण या तापमान बढ़ने घटने के लिए,जिन कारणों की कल्पना की गई है ,उनका घटनाओं के साथ प्रत्यक्ष संबंध नहीं दिखाई पड़ता है | ऐसे ही महामारी के समय  लॉकडाउन एवं कोविडनियमों से लेकर जितने भी प्रकार की चिकित्सा की परिकल्पना की गई | उनमें प्रत्यक्ष साक्ष्य किसी के भी नहीं थे और न ही अनुमानों के अनुशार परिणाम ही निकले हैं |महामारी के आने एवं उसकी लहरों के बार बार आने और जाने के लिए जो भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे वे सच नहीं निकलते रहे | उनका कोई साक्ष्य युक्त वैज्ञानिक आधार नहीं था |                                       

                                महामारी मुक्त समाज का निर्माण संभव है !भूमिका

      जिसप्रकार से किसी व्यापार या बाजार को शुरू करने के लिए क्रेता और विक्रेता दोनों का होना आवश्यक होता है |उनके बीच आपस में क्रय विक्रय होना भी आवश्यक है | बाजार में व्यापारी लोग दूकान लगाकर सामान बेचने के लिए बैठ भी जाएँ ग्राहक भी आवें किंतु सामान न खरीदें तो व्यापार कैसे संभव है | सामान ही नहीं बिकेगा तो दूकान चलेगी कितने दिन !यदि दूकानें ही नहीं चलेंगी तो बाजार स्वयं ही बंद हो जाएगा |

     इसीप्रकार से महामारी शुरू होने लायक समय चाहिए !बीमार होने लायक लोग चाहिए इसके बात ही साथ बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी होने चाहिए जो उसी समय अपनी आयु पूरी कर चुके हों | इन तीनों के संयोग से महामारी घटित होती है | यदि महामारी आवे लेकिन रोगी होने लायक लोग न मिलें या लोगों की आयु पूरी न हुई हो,तो महामारी आने पर भी न लोग रोगी होंगे और न ही मृत्यु को प्राप्त होंगे !ऐसे समय महामारी आकर खाली हाथ लौट जाएगी |

    बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ पैदा होती हैं और अपने अपने बुरे समय के प्रभाव से लोग संक्रमित होते हैं | और जिनकी आयु पूरी हो रही होती है वही मृत्यु को प्राप्त होते हैं |  इसीलिए महामारी के समय संक्रमितों के बीच रहकर भी सभी लोग संक्रमित नहीं होते हैं और न ही सभी लोग मृत्यु को ही प्राप्त होते हैं | केवल वही संक्रमित होते हैं जिनका अपना भी बुरा समय चल रहा होता है |मृत्यु उन्हीं की होती है जिनकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | 

     साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में तो  मृत्यु के समय जो घटना घटित हो रही होती है उसे ही मृत्यु का कारण मान लिया जाता है |जो व्यक्ति मृत्यु के समय किसी दुर्घटना का शिकार हुआ तो उसकी मृत्यु का कारण दुर्घटना को मान  लिया गया | जो मृत्यु के समय  भूकंप से गिरे मकान के मलबे में दबा था तो उसकी मृत्यु का कारण उस मलबे में दबा होना मान लिया गया | जो व्यक्ति मृत्यु के समय रोगी या संक्रमित था तो उसकी मृत्यु का कारण उसका रोग या संक्रमण मान लिया गया | 

     विशेष बात यह है कि बिल्कुल ऐसी ही घटनाएँ कुछ दूसरे लोगों के साथ भी घटित हुईं किंतु उन घटनाओं से उनकी मृत्यु तो नहीं होती है | मृत्यु का कारण यदि ऐसी घटनाओं को माना जाए तब तो उन घटनाओं में उनकी भी मृत्यु होनी चाहिए थी ,किंतु ऐसा नहीं हुआ  | इसका मतलब मृत्यु का कारण वैसी कुछ घटनाएँ न होकर कुछ और है जिसे अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए |

      मृत्यु के विषय में लोग ऐसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं कि मृत्यु तभी होती है जब कोई भयानक या हिंसक घटना घटित होती है |इसीलिए जिसकी मृत्यु का समय आने पर अचानक कोई भयानक हिंसक घटना घटित होने लगे तो  उसकी  मृत्यु का कारण उस भयानक घटना कोई तो मान लिया जाता है किंतु किसी की मृत्यु का समय जब आवे उस समय वो किसी अच्छी घटना में सम्मिलित हो उस समय अचानक मृत्यु हो जाए तो भरोसा नहीं होता कि इस घटना से भी मृत्यु हो सकती है क्या ? 

   दुर्घटना के समय मृत्यु होने का कारण दुर्घटना को , किसी रोग के समय मृत्यु होने का कारण उस रोग को,  इसी प्रकार से महामारी से संक्रमित होते समय मृत्यु होने के लिए महामारी जनित संक्रमण को  यदि जिम्मेदार मान लिया जाएगा तब तो  पूजा पाठ करते समय हुई मृत्यु का कारण पूजा पाठ करने को ,आराम करते समय मृत्यु होने का कारण आराम करने को मानना होगा |ऐसे ही मृत्यु का समय आने पर कुछ लोग नहा धो या खा पी रहे होते हैं ,सो या जाग रहे होते हैं, कुछ तो पूजा पाठ कर रहे होते हैं, कुछ आराम कर रहे होते हैं, कुछ लोग नाच या गा रहे होते हैं | उसी समय आयु पूरी हो जाने के कारण उनकी मृत्यु उसी समय हो जाती है | इसका मतलब ये तो नहीं कि उनकी मृत्यु नहाने धोने खाने पीने पूजा पाठ आदि करने से हो गई है !साक्ष्य आधारित अनुसंधान प्रणाली में तो साक्ष्यों की श्रृंखला  इसी प्रकार से जोड़ी जाती है | 

    परंपरा विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो  मृत्यु के कारण सबके अपने अपने होते हैं | उसके लिए किसी भी रोग महारोग घटना या दुर्घटना को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था |

    किसी मकान की आयु यदि उसी समय पूरी हो रही थी जिस समय भूकंप को आना था !ऐसे ही किसी  आयु उसी समय पूरी हुई जब भूकंप आया | इन तीनों घटनाओं के घटित होने का समय अवश्य एक था किंतु ये तीनों घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग हैं | भूकंप अपने समय से आया,मकान अपने समय से गिरा , उस मलबे में दबे हुए व्यक्ति की मृत्यु उसके अपने मृत्यु के समय पर हुई है |

     वस्तुतः प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का अपना अपना समय होता है |जिस प्रकार से भूकंप का आना  प्राकृतिक घटना है उसी प्रकार से मकान का गिरना एवं उसमें  दबकर मनुष्य का मृत्यु को प्राप्त होना ये तीनों ही प्राकृतिक घटनाएँ हैं |भूकंप में कुछ दूसरे मकान नहीं गिरे वही क्यों गिरा | उस मलबे में दबे कुछ दूसरे लोग मृत्यु को नहीं प्राप्त हुए | उस एक व्यक्ति की ही मृत्यु कैसे हुई ! इस रहस्य को परंपराविज्ञान के द्वारा समझा जा सकता है |         

                                                          भूमिका

                                   महामारी किसी के रोगी होने का कारण नहीं है !

      जिस प्रकार से भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जो समय समय पर घटित हुआ करती है | इसमें कुछ नया नहीं है ये प्रकृति का स्वभाव है भूकंपों में मकान गिरना या न गिरना मकानों की अपनी समस्या है | जिससे भूकंपों का कोई लेना देना नहीं है |इसीप्रकार से महामारी के समय में किसी के संक्रमित होने या न होने से महामारी का कोई लेना देना नहीं है | ये मनुष्यों की अपनी समस्या है |               
    जिस प्रकार से अधिक सर्दी या अधिक गर्मी बहुत लोग सह लेते हैं कुछ लोग नहीं भी सह पाते हैं | जो नहीं सहपाते उनमें कुछ लोग रोगी होते हैं उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु भी हो जाती है | 
      इसी प्रकार से कभी कभी कुछ ऐसा वातावरण प्राकृतिकरूप से  बन जाता है | जिसे सह पाना हर किसी के वश की बात नहीं होती है | उसे कुछ लोग सह पाते हैं कुछ नहीं सहपाते तो रोगी हो जाते हैं | उनमें से कुछ की  मृत्यु होते देखी जाती है |   
      जिस प्रकार से सर्दी गर्मी आदि अचानक नहीं आते ! संबंधित ऋतुओं में इनका प्रभाव धीरे धीरे बढ़ता जाता है | उसी अनुपात में लोगों की सहनशीलता बढ़ती जाती है |जिससे ऋतुओं के प्रभाव को वे धीरे धीरे सहते चले जाते हैं | इसीक्रम में सर्दी और गर्मी संबंधीऋतुओं का प्रभाव धीरे धीरे अपने चरम पर पहुँच जाता है और लोग सह जाते हैं |इसीलिए भीषण सर्दी या गर्मी के समय भी गरीबों ग्रामीणों किसानों बनवासियों आदि को ऋतुओं का प्रचंड प्रभाव सहने में भी अधिक कठिनाई नहीं होती है|
     जिस प्रकार से पठनशील विद्यार्थी का कुछ दिन क्लास छूट जाए तो वह पढ़ने में पिछड़ जाता है कई बार परिश्रम पूर्वक उसे पूरा कर लेता है ,कई बार नहीं पूरा कर पाता है ,तो परीक्षा में अनुत्तीर्ण (फेल) भी होना पड़ता है |
    इसी प्रकार से जो लोग गर्मी का प्रभाव सहते सहते धीरे धीरे पंखे, कूलर या एसी आदि का सहारा लेने लगते हैं | ऐसे ही सर्दी में रूमहीटर आदि का सेवन करने लगते हैं |वे उतने समय के लिए प्राकृतिक कक्षा से अलग हो जाते हैं |इसलिए वे ऋतुप्रभाव सहने की क्षमता से बंचित हो जाते हैं |सुख सुविधाओं में पले बढ़े ऐसे लोग इसीलिए गरीबों ग्रामीणों किसानों बनवासियों आदि की अपेक्षा प्राकृतिक परिवर्तनों के समय अधिक रोगी होते देखे जाते हैं | 
     प्रकृति में समय समय पर होते रहने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों की तरह ही महामारी भी वातावरण में हुए एक प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन का ही परिणाम है | ऐसा परिवर्तन प्रकृति में वर्षों से धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था |जिसका स्वास्थ्य पर प्रभाव भी  पड़ रहा था | जिसे गरीब ग्रामीण किसान मजदूर बनवासी आदिवासी आदि प्राकृतिक जीवन जीने वाले लोग धीरे धीरे सहते जा रहे थे | इसलिए उन्हें अधिक परेशानी नहीं हुई | 
      दूसरे प्राकृतिक वातावरण से एक सीमा तक अलग रहने वाले लोग सुख सुविधापूर्ण जीवन जीने वाले लोग ऐसे प्राकृतिक बदलावों के अचानक सह नहीं पाए और रोगी होने लगे | यही वर्ग कोरोना महामारी के समय में भी सबसे अधिक संक्रमण का शिकार हुआ है | 
      कुछ लोग सामूहिक रूप से किसी यात्रा पर गए हों तो गाड़ी का ड्राइवर रास्ता भटक भी जाए तो पता खोजने में यात्रियों को अधिक कठिनाई नहीं होती ,किंतु उस समूह के कुछ लोग यदि गाड़ी से उतर कर रास्ता भटक जाएँ तो उन्हें अधिक परेशानी का अनुभव होता है |  
       इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में सम्मिलित लोगों में से जो लोग सुविधाओं के  बलपर प्राकृतिक वातावरण से  जितने अलग हुए वे परिवर्तित प्राकृतिक वातावरण को सहने में उतने अक्षम हुए | जिससे वे उतने ही अधिक रोगी होते चले गए | कोरोना  महामारी के समय ऐसा सभी जगह होते अनुभव भी हुआ है |
      वैसे भी किसी के संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने का कारण यदि केवल महामारी ही होती तो महामारी का प्रभाव सभी पर एक जैसा ही पड़ रहा था | उसके परिणाम भी सभी पर एक जैसे ही दिखाई देने चाहिए थे | एक जैसी परिस्थिति में रहकर किसी का संक्रमित होना और किसी का संक्रमित न होना और किसी का संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाना | ऐसे तीन प्रकार के परस्पर विरोधी परिणामों के लिए केवल महामारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है | ऐसा होने के पीछे सबके अपने अपने व्यक्तिगत कारण होते जिनका निवारण करके महामारीमुक्त समाज की संरचना की जा सकती है |
     महामारी एक प्राकृतिक घटना है इसे आने जाने से रोका नहीं जा सकता है ,किंतु अपने शरीरों को दुर्बल करके हमें महामारी के सहायक होने से बचना चाहिए | 
     महामारी की तुलना यदि आग की चिनगारी से की जाए तो आग की चिनगारी कितने ही घरों में क्यों न फेंक दी जाए किंतु आग केवल उन्हीं घरों में जलेगी जिनमें उस चिनगारी को जलने लायक ईंधन मिलेगा | जिन घरों में ईंधन नहीं मिलेगा उनमें फेंकी गई चिनगारी बिना कुछ जलाए स्वयं ही बुझ जाएगी | इसलिए महामारी से रोगी होने लायक अपने शरीरों में ईंधन इकट्ठा करने से बचना चाहिए | महामारी का ईंधन क्या है इसकी  चर्चा हम आगे करेंगे | 

     महामारी को यदि हम भूकंप मान लें तो भूकंप तो एक जैसी गति से आने पर भी कुछ भवन गिरते हैं और कुछ नहीं गिरते हैं |यदि कुछ मकानों के  गिरने का कारण भूकंप है तो जो नहीं गिरे उनके न गिरने का कारण क्या है | कुछ मकानों के न गिरने का कारण यदि उन मकानों की अपनी मजबूती है तो जो गिर गए इसे उनकी अपनी कमजोरी माना जाए | यदि वे अपनी ही कमजोरी से गिरे हैं तो इतने कमजोर भवन  बिना भूकंप के भी तो गिर सकते थे | इसलिए भूकंपों से अधिक  ध्यान भवनों को मजबूत बनाने में दिया  जाना चाहिए | 

इसमें विशेष बात ये है कि कुछ  मकान चूँकि भूकंप के समय गिरे हैं इसका मतलब वे कमजोर ही रहे होंगे | ये इस आधार पर मानना अनुसंधान की दृष्टि से उचित नहीं होगा ! कोरोना महामारी के समय भी यही होता रहा -चूँकि कुछ लोग संक्रमित हुए हैं इसका मतलब उनकी इम्युनिटी ही कमजोर रही होगी |


    कई बार भूकंप आने के साथ कोई मकान गिरता है और उसके मलबे में घर के कुछ सदस्य दब जाते हैं | वे निकाले गए तो पूरी तरह से स्वस्थ और सुरक्षित निकले ! उसी समय संयोगवश उस मलबे में कोई ऐसा बाहरी व्यक्ति दब गया जो वहाँ से निकल रहा था और अचानक उस मलबे की चपेट में आ गया |इससे  उसकी मृत्यु हो गई | इसका मतलब ये तो नहीं निकाला जा सकता कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हो गई वह कमजोर रहा होगा या उसकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर रही होगी |  जो मलबे में दबकर भी सुरक्षित निकल आए उनके शरीर मजबूत रहे होंगे और उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही होगी |

     इसलिए भूकंपों के समय मकानों के गिरने का कारण उनकी कमजोरी न होकर अपितु उनकी आयु पूरी होनी ही है |मकान की आयु पूरी हुई इसलिए मकान गिरा ,उसमें वह बाहरी व्यक्ति भी दबा हुआ था अन्य लोगों की तरह वह भी सुरक्षित निकल सकता था किंतु इसी समय उसकी आयु पूरी हो गई और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया |

    भूकंपों को जिम्मेदार इसलिए नहीं ठहराया जा सकता है,क्योंकि भूकंप आना तो पृथ्वी का अपना विकार है मकान पृथ्वी पर बनते हैं इसलिए पृथ्वी के विकारों को भी सहना ही  होगा | 


                  कोरोना संक्रमितों के स्वस्थ होने का कारण समय का प्रभाव है या औषधि का  ?

    पहली लहर : देश में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को केरल में सामने आया था. पहली लहर का पीक 17 सितंबर 2020 को आया था. उस दिन करीब 98 हजार केस सामने आए थे|16 फरवरी 2021 को पहली लहर के सबसे कम 9,121 मामले आए थे | 
दूसरी लहर  :17 फरवरी 2021 से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी | 6 मई 2021 भारत में संक्रमण के क़रीब 4,14,000 नए मामले दर्ज किए गए थे. महामारी के दौरान एक दिन में संक्रमितों की ये सबसे अधिक संख्या थी.20 दिसंबर 2021 को सबसे कम 5336 मरीज पाए गए थे। यहाँ से  दूसरी लहर पूरी तरह से खत्म हुई |
तीसरी लहर :देश में 27 दिसंबर 2021 से कोरोना की तीसरी लहर शुरू हुई | 21 जनवरी 2022 को 3,47,000 मामले सामने आए थे जो तीसरी लहर की सबसे अधिक संख्या थी | इसके बाद फरवरी 2022 में ये लहर शान हो गई थी |
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                    बचाव के लिए उपाय नंबर -1 कोविड नियमों का अनुपालन  

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                                                   लॉकडाउन:
 लॉकडाउन का पार्ट-1 : 24 मार्च 2020 से 15  अप्रैल 2020 तक 21 दिनों के लिए |
 लॉकडाउन का पार्ट-2 :15 अप्रैल 2020 से  3मई  2020 तक 19 दिनों के लिए !
 लॉकडाउन का पार्ट-3 :3मई  2020 से  17 मई  2020 तक 14  दिनों के लिए !
 लॉकडाउन का पार्ट-4 : 18 मई 2020 से 31मई  2020 तक 14  दिनों के लिए !
इसके बाद धीरे धीरे चरण बढ़ ढंग से अनलॉक किया जाना शुरू हुआ |

  अनलॉक:- अनलॉक पहला .0 (1-30 जून),अनलॉक दूसरा .0 (1-31 जुलाई), अनलॉक तीसरा .0 (1-31 अगस्त)अनलॉक चौथा .0 (1-30 सितंबर) अनलॉक पाँचवाँ .0 (1-31 अक्टूबर) अनलॉक छठवाँ .0 (1-30 नवंबर) हुआ | 

 विशेष बात :1 सितंबर 2020 ( 2020-09 ... इसमें कहा गया , ''कंटेनमेंट जोन में 30 सितंबर 2020 तक लॉकडाउन लागू रहेगा।
दूसरी लहर : दिल्ली में 6 अप्रैल 2021 को नाइट कर्फ्यू लगाया गया था|नाइट कर्फ्यू के अलावा दिल्ली में 15 अप्रैल 2021 को वीकेंड कर्फ्यू का ऐलान किया गया था |19 अप्रैल को दिल्ली में लॉकडाउन लगाया गया था |

तीसरी लहर : 4 जनवरी 2022 को लगा वीकेंड कर्फ्यू 

                                                 दोगज दूरी ,मास्क जरूरी  !

   वस्तुतः कोविडनियमों के पालन का मतलब ही था कि  एक दूसरे को छूना नहीं है - "दो गज दूरी मास्क जरूरी" 

इसीलिए भारत में सर्वप्रथम पहले 22 मार्च 2020 को 14 घंटों के लिए जनता कर्फ्यू किया गया था।

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                    बचाव के लिए उपाय नंबर - 2       प्लाज्मा प्रयोग   

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                    बचाव के लिए उपाय नंबर -3
रेमडेसिविर प्रयोग

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   बताया जाता है कि दिसंबर 2020  में कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने कोरोना वायरस से संक्रमित और कमजोर इम्युन सिस्टम वाले एक मरीज को रेमडेसिविर दवा दी थी। इलाज के दौरान पाया गया कि उस मरीज के स्वास्थ्य में जबरदस्त सुधार हुआ है |  यही नहीं, उसके शरीर से कोरोना वायरस का खात्मा भी हो गया। इस अध्ययन को नेचर कम्युनिकेशन्स ने प्रकाशित किया था। उसी के बाद भारत सहित कई देशों में रेमडेसिविर के इस्तेमाल की खबरें आईं। रेमडेसिविर पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा था कि यदि संक्रमण के आरम्भिक चरण में इसे मरीज को दिया जाए तो उस समय यह अधिक कारगर होती है।


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                    बचाव के लिए उपाय नंबर -
4 वैक्सीन प्रयोग

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वैक्सीन :भारत ने 16 जनवरी 2021 को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोविशील्ड) और स्वदेशी कोवैक्सीन के साथ अपना टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया ।बाद में, स्पुतनिक वी और मॉडर्ना वैक्सीन को भी आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई।30 जनवरी 2022 को, भारत ने घोषणा की कि उसने टीकों की लगभग 1.7 अरब खुराकें दीं और 720 मिलियन से अधिक लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया।
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                                     बचाव के लिए कुछ अन्य उपाय

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   संक्रमितों पर रेमडेसिविर,प्लाज्माथैरेपी, वैक्सीन, आदि के प्रयोग के साथ साथ टोसिलीजुमैब इंजेक्शन,  डेक्सामेथासोन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन  आदि औषधियों का प्रयोग किया गया | कोविडनियमों का पालन करवाया गया | उपायों को लेकर चिकित्सकीय बयानों में विरोधाभास रहा ! आइवरमेक्टिन दवा पर तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि गोवा और उत्तराखंड में इसे लाभप्रद समझा जाता  रहा था |

  महामारी संक्रमितों की संख्या घटते समय जो औषधि दी जाए उसे परीक्षण में सफल मान लिया जाए और वही औषधि संक्रमितों की संख्या बढ़ते समय दी जाए तो उसी औषधि को अनुपयोगी मानकर चिकित्सा के प्रयोग से बाहर कर दिया जाए |

    ये सर्व विदित है कि भारत में मई 2020 की शुरुआत से जुलाई 2020 तक संक्रमितों की संख्या घटने का समय चल रहा था | इस समय बिना किसी औषधि के संक्रमितों को स्वस्थ होते देखा जा रहा था |इसी समय अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा वैक्सीनों का ट्रायल चलाया जा रहा था |उसमें भी सफलता मिलते देखी जा रही थी  | जिससे विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बना लेने के दावे करने शुरू कर दिए !जबकि संक्रमितों के स्वस्थ होने का कारण अच्छे  समय का प्रभाव था |
                                             महामारी और प्रतिरोधक क्षमता : 
    कोरोना महामारी के विषय में एक बात समझ में नहीं आती है कि लोग कोरोना महामारी से संक्रमित हो रहे हैं या इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण ! वैक्सीन लगने के बाद भी जब लोग संक्रमित होने लगे तो कहा गया कि इम्युनिटी समय के साथ कमज़ोर हो जाती है?  यदि समय के साथ कमज़ोर हो ही जाती है तो हमेंशा तो वैक्सीन नहीं लगती है इसलिए उसे बार बार संक्रमित होते रहना चाहिए |



समय सबसे बड़ी शक्ति है जो स्वयं दिखाई नहीं पड़ती है परंतु उसके कारण सबकुछ दिखाई पड़ता है | जो समय को समझ लेता है है वो सब कुछ समझ जाता है |