परिवार हो कि सरकार सबकी थू थू
अरविंद केजरीवाल सफल सॅपेरे हैं जिस तरह उन्होंने भ्रष्टाचार रूपी सर्प का फन पकड़ा है यह सबसे उचित ढंग है। इस प्रकार के प्रयास इस देश को महॅंगाई एवं अपराधों से मुक्ति दिला सकते हैं ऐसा लगता है।उनके प्रमाणित तर्क ,शालीन व्यवहार एवं संयमित शब्दावली प्रशंसनीय है। दूसरी ओर से भोंड़े तर्क, अशालीन भाषा, प्रमाणहीन वक्तव्य एवं घमंडी भाव भंगिमाएँ ठीक नहीं लग रही थीं वो भी भाषायी आक्रोश ऐसा लग रहा था जैसे किसी को दिखाने के लिए चाटुकारितावश सब कुछ केवल बका जा रहा था।हृदय एवं मन का पक्ष उन वक्ताओं के साथ है ऐसा नहीं लग रहा था। जैसे उनकी आत्मा ऐसा कहने करने को रोक रही हो वे बेचारे बरबस कुछ कहने के लिए मजबूर से दिखाई दे रहे थे। पत्रकारों के प्रश्नों से आहत रोने सी सकल वाले उन सरकारी महारथियों को देख कर हर किसी को दया आ रही थी। मीडिया कर्मी तो कर्तव्य से बॅधे थे।
लोकतांत्रिक तर्क वितर्क प्रणाली को ध्वस्त करने से बात बनने वाली नहीं है। वैसे भी सरकारी पक्ष एवं पार्टी के लिए ये आक्रोष बिल्कुल उचित नहीं था। अगर आपका दामन पाक साफ होता उसमें कोई खरोंच न होती तब तो ऐसा कहते हो सकता है अच्छा भी लगता किंतु जिस सरकार की प्रसिद्धि ही भ्रष्टाचार
महॅंगाई अपराधियों से सॉंठ गॉंठ आदि बातों से हो उसे इतना तुनक मिजाज बनना ठीक नहीं है। जबकि बढ़ती महॅंगाई रोकने में सरकार लगातार विफल होती जा रही हो तो जनता में से ही निकल कर कोई अरविंद केजरीवाल जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति यदि यह जानना चाहते हैं कि ये लोग सरकार चला नहीं पा रहे हैं या अपने वा अपने नाते रिश्तेदारों के लिए सरकार चला रहे हैं तो किसी को बुरा क्यों लग रहा है? आखिर वोट देकर सरकार बनवाई गई है देश बेच तो नहीं दिया गया है कि अब कुछ कहा ही नहीं जा सकता है। साथ ही सरकार में बैठे किसी व्यक्ति को ही देश की चिंता है बाकी किसी को हो ही नहीं सकती है और बाकी किसी के पास देश को चला सकने की क्षमता ही नहीं है।
चलो, जीजा साले की मिली भगत से सब कुछ हो रहा है। ऐसे लोग क्या समझाना चाहते हैं ?ऐसी बातों पर गर्व करना चाहिए। बक बक कर वोट मॉंगने वाली पार्टियों की शीर्ष वक्ता मंडली ऐसे प्रकरणों पर मौन क्यों है? वो सब विषयों पर सब जगह जा जा कर बोल रहे हैं लेकिन जिस मुद्दे पर लोग शब्द सुमन सुनने को तरस रहे हैं उस पर नहीं बोल रहे हैं। इसका एक कारण तो ये है कि मौनं स्वीकार लक्षणम् ये लोग स्वीकार कर चुके हैं कि ये सब हुआ है कोई क्या कर लेगा? ऐसे घोटाले पहले भी हो चुके हैं लोग भूल चुके हैं ये भी भूल जाएँगे इसीलिए टीम केजरीवाल की बातों को महत्त्व नहीं दे रहे हैं। आखिर इतनी बड़ी बात है केजरीवाल जी आरोप पर आरोप लगाते एवं प्रमाण पर प्रमाण देते जा रहे हैं किंतु उत्तर देने के लिए वो लोग सामने आ रहे हैं जिनका उन लोगों के दिमाग में कोई वजूद नहीं हैं जिनकी वो सफाई दे रहे हैं।इसी लिए वो केवल बोल रहे हैं बता नहीं पा रहे हैं कि वास्तव में हुआ क्या है? ये कितने आश्चचर्य की बात है?
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