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Wednesday, November 7, 2012

लालकिताबी ज्योतिष उपायों के आडंबर

         ज्योतिष उपायों के नाम पर मजाक करने लोग 

  ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व विद्यालयीय स्लेबस में कहीं  कोई उल्लेख ही नहीं है ऐसी कोई किताब है भी या नहीं  किन्तु कुछ लोगों ने कलरों पर किताबें लिखी या लिखाई हैं जैसे लाल किताब ऐसे  ही लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब लिखकर रख ली है ।इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी

अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो  जाएगा।  

     इसी प्रकार उपायों के नाम पर आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू, बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला, घास गोबर, नग, नगीने, यन्त्र-तन्त्र-ताबीजों आदि को तथाकथित लोग खाना, पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण? मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?
    क्या आपने कभी विचार किया कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष  है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध हम पिछले जन्म करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले ग्रहों को शान्त  करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु लम्बे समय तक चलता है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य  भोगने पड़ते हैं।
अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़  गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं? 

    जहाँ तक दान की बात है दान तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है । क्योंकि जहाँ आपका वश  नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।

    जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष  के ग्रन्थों में ग्रहों की मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से, उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो इतना उतना स्पष्ट प्रभाव नहीं दीख पड़ता जितना मन्त्रों का है। मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेदमंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है।
उपर्युक्त ऐसे लोगों में भ्रम का कारण समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं। ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो इन्हें आती नहीं है। ये लोग बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में रिसर्च की है। जो पढ़ा ही नहीं वो रिसर्च क्या करेगा खाक? कुंडली बनाना नहीं सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया। वेद मन्त्र पढ़ना नहीं आता इसलिए कुत्ते पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते हैं। यही पाखण्डियों की रिसर्च है। 

      बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में  ढूँढ़ना सिखा रहे हैं। ये कागजी शेर धन बल से विज्ञापनों में छाए हुए हैं। समाज इनसे छला जा रहा है ऐसे कलाकारों और ज्योतिष के विद्वानों में उतना ही अन्तर है जितना चमड़ा सिलने वाले मोची और हार्ट सर्जन में है। काटना सिलना तो दोनों जानते हैं किन्तु प्राण रक्षा तो कुशल सर्जन की हर सकता है मोची नहीं। सर्जन और मोची का अन्तर तो समाज को स्वयं ही करना होगा।

     ऐसे वायरस डेंगू मच्छर की तरह हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। डेंगू मच्छर मैंने इसलिए कहा जैसे ये मच्छर साफ पानी में ही पाए जाते हैं। उसी प्रकार ऐसे पाखण्डी लोग धार्मिक गतिविधियों के आस-पास ही पाए जाते हैं। जैसे गंदगी के मच्छरों की अपेक्षा डेंगू मच्छर अधिक घातक होते हैं। उसी प्रकार आतंकवाद आदि अपराधों से जुड़े लोगों की अपेक्षा धार्मिक पाखण्डी अधिक घातक होते हैं।
    जैसे नकली घी में असली घी से अधिक सुगंध होती है उसी प्रकार ये पाखण्डी लोग विद्वानों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा वेष धारण करते हैं। भड़काऊ वेष-भूषा, गाना बजाना, महँगे विज्ञापनों के माध्यम से बड़े-बड़े दावे करना आदि इन डेंगुओं के लक्षण हैं। इनके चेहरे से, गाने-बजाने, बोली भाषा से कहीं ज्ञान वैराग्य नहीं झलकते लेकिन ये लोग कहीं तो भागवत बाँच रहे हैं, कहीं ज्योतिष और उपाय बता रहे हैं, कहीं मन्त्रदीक्षा दे रहे हैं। कहीं अपने को ब्रह्म ज्ञानी सिद्ध करने में लगे हैं। कोई कोई अपने को योगी या सिद्ध कह रहा है। जो योग क्रियाएँ एकान्त में जंगल में एवं ब्रह्मचारियों के द्वारा ही करने योग्य कही गई हैं वे ही चैनलों पर देखने को मिलेंगी ये कल्पना ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इस युग में पैसे देकर मीडिया में कुछ भी बोला जा सकता है। मीडिया से अपने विषय में कुछ भी बुलवाया जा सकता है। ये कलियुग है सब कुछ चलता है।
    सत्संगों के नाम पर जितनी बड़ी-बड़ी रैलियाँ आज हो रही हैं। उनका यदि थोड़ा भी असर होता तो कन्या भ्रूण-हत्या, देहज के लिए हत्या, धन के लिए हत्या, जहरीले कैमिकल मिलाकर दूषित किए जा रहे फल आदि अन्य भोज्य पदार्थ, अपहरण, बलात्कार, आदि की दुर्घटनाओं में कुछ तो कमी आती, किन्तु ये पाखण्डी कलाकार बोलकर अपना समय पास करते हैं तो समाज सुनकर। लेकिन धर्म-कर्म को न तो ये लोग मानते हैं और ही सुनने वाले मानते हैं। दोनों ही दोनों को समझ रहे हैं। लेकिन दोनों के दोनों ने किसी जन्म के पापों के कारण एक दूसरे के साथ समझौता किया   हुआ है।
       ऐसी विषम परिस्थितियों  में धर्म का ही एकमात्र सहारा बचता है वो भी आज दूषित किया जा रहा है अब समाज किसकी ओर देखे ?

     ऐसे विषम  समय में  भी  राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान  व्यवसायिक भावना से ऊपर उठकर समाज के साथ खड़े होने को तैयार है जिसका विस्तार एवं प्रचार प्रसार तथा सफल संचालन के लिए आपके भी सभीप्रकार से  सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है। इसमें सभी प्रकार की पारदर्शिता बरती जाएगी साथ ही आपके सहयोग एवं सुझाव  आदि सादर आमंत्रित हैं ।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

 


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