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Monday, November 19, 2012

वास्तुविज्ञान क्या है ?

 

                 

                   वास्तुविज्ञान क्या है ?

 

 वास्तुविज्ञानः- ज्योतिष शास्त्र का ही एक प्रमाणित अंग है इसका वर्णन ज्योतिष के वृहत्संहिता, नरपतिजयचर्या, वृहत् वास्तुमाला, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त मार्तण्ड, गृहभूषण, वास्तुप्रबंध, मुहूर्त गणपति, रत्नमाला आदि ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है।
काकिणी बिचारः इससे यह देखा जाता है कि किस गाँव या शहर में रहना आपके लिए अनुकूल अच्छा रहेगा अर्थात् आपने भी कई बार देखा होगा कि कलकत्ते का आदमी दिल्ली में जूस की दुकान चला रहा है और दिल्ली का आदमी कलकत्ते में हलवाई का काम कर रहा है दोनों ही अपनी अपनी जगह खुश हैं सोचने की बात यह है कि दोनों शहरों में दोनों चीजें बिकती हैं दोनों ही अपने अपने शहर में भी अपना अपना काम फैला सकते थे। दोनों चीजों की खपत दोनों जगह होती है, किन्तु ऐसा न हो सका इसका कारण वास्तुशास्त्र का ‘काकिणी दोष’ होता है।
    दूसरी बात है जगह की, जहाँ घर बनाना है वह जगह कैसी हो उसे पहचानना कि किस प्रकार के काम के लिए किस प्रकार की भूमि शुभ होती है जैसे काली मिट्टी पर बना घर शिक्षा संबंधी कार्य के लिए शुभ नहीं होता, इसी प्रकार और भी है। इसके बाद प्लाट का ढलान किधर हो? दरवाजा किधर होगा ? आदि गृहपिण्ड बनाना एक बड़ा काम है जो प्लाट की लंबाई चौड़ाई के आधार पर निश्चित किया जाता है। वास्तु में सबसे बड़ा काम होता है शल्यानयन, अर्थात जमीन के अंदर से जीवित हड्डी निकालना।

              जीवित हड्डी किसे कहते हैं ?

 

     किसी बच्चे के भाग्य में यदि अस्सी वर्ष की आयु लिखी हो और वह पंद्रह वर्ष की उम्र में किसी के द्वारा मार दिया जाता है, तो मरने के बाद भी शेष 65 वर्ष उसकी अस्थियाँ जीवित श्रेणी में आती हैं। ऐसी हड्डी जिस जगह गड़ी होती है। वहाँ घर बनाने से बड़ी हानि होती है यह शास्त्र मान्यता है ऐसी परिस्थिति में प्लाट का परीक्षण करना चाहिए इस जगह कहीं जीवित शल्य (हड्डी) तो नहीं गड़ी है। यदि है तो प्लाट के किस भाग में कितनी गहराई पर है इसे ज्योतिषी के द्वारा पता लगाकर निकलवाकर जमीन शुद्ध करना विद्वान ज्योतिषी के ही बश की बात है। जो लोग बिना ज्योतिष पढ़े ही अपने को वास्तु के जानकार या वास्तु स्पेशलिस्ट कहते हैं वो झूठे हैं। वो कैसे शुद्ध कर सकते हैं वास्तु भूमि? ऐसे लोग अज्ञान  वश घर का सामान इधर-उधर रखवाना,दीवालें तोडवाना,खिड़की लगवाना,अपने पेन्डुलम,यन्त्र,तन्त्र ,ताबीज, बाँधना, रखना, गाड़ना आदि को ही वास्तु समझते हों न समझते हों किन्तु इनके मोटे मोटे पैसे जरूर ले लेते हैं। इससे आगे बेचारों को पता ही नहीं है? यह कोई जादू टोना नहीं है।

     अहिबलचक्र, धरा चक्र आदि प्रमुख ग्रंथ ज्योतिष के हैं जो इन्हीं विषयों से संबंधित हैं।इसी प्रकार जमीन के अंदर छिपा धन भी पता लगाकर निकाला जाता है। शीशा, बाल, कोयला आदि के निकालने की भी यही प्रक्रिया है क्योंकि ये चीजें भी वास्तु भूमि को दूषित करने वाली होती हैं।
     जिन्हें अपनी जिन्दगी चलाने के लिए  पढ़ाई-लिखाई आदि काम धंधा कुछ भी हाथ नहीं लगा वे क्या सिख या कर सकेंगे?आप स्वयं सोचिए वास्तु में ही वे फिट हो सकते हैं। कौन चीज जमीन के अंदर कहाँ कितनी गहराई पर है एवं जमीन के किस भाग में कितना और कैसा पानी है? इसका पता लगाने के लिए ज्योतिष का ही एक ग्रंथ दकार्गल चक्र है। 

    इसी प्रकार से भूमि परीक्षण के बाद शिलान्यास पूजन है उसका अभिप्राय यह होता है कि जिस भूमि में घर बनाना है उसमें जमीन के नीचे जो भी देवी-देवता जीव-जंतु आदि रहते हैं उनकी प्रार्थना करके उनसे अपने रहने के लिए जगह माँगते हुए क्षमा याचना करना। अब बारी आती है कि घर के अन्दर किस दिशा में क्या बनाना है ? पूर्व और उत्तर शुद्ध दिशाएँ हैं इधर पूजा-पाठ आदि करने के लिए शुभ स्थान बनावें। दक्षिण पूर्व गरम है, यहाँ अग्नि संबंधी कार्य करें इसी प्रकार आगे दिशाओं का पालन करें । यदि पूर्णरूप से ऐसा न हो तो भी कोई विशेष बहम नहीं करना चाहिए आजकल वास्तु का उद्योग करने वाले  लोग घरों में तोड़-फोड़ करवाना प्रारंभ कर देते हैं, ये नहीं करना चाहिए। आप स्वयं सोचिए हर गरीब आदमी किसी शहर में पहली बार जाकर जिस एक कमरे में बसता है वहाँ वास्तु का कोई नियम पालन नहीं हो पाता है उनमें से बहुत लोग बाद में अरबों पति बने हैं। ऐसा कई लोगों का इतिहास है। यदि विकास का कारण वास्तु ही होता तो उनका विकास नहीं होना चाहिए। इसलिए वास्तु सहायक कारण है मुख्य तो भाग्य ही है भाग्यवान व्यक्ति जहाँ भी जैसे भी रहता है सफल ही होता है।पाखंडः- गाँव की एक कहावत है ‘‘गरीब आदमी की लुगाई सारे गाँव की भौजाई’’ अर्थात गरीब आदमी की स्त्री को सारा गाँव भाभी कहकर कैसी भी मजाक कर लेता है।सब यही सोचते हैं कि ये हमारा कर क्या लेगा ?

      उसी प्रकार आज वास्तु का हाल है, सारे बेरोजगार लोग इसे धंधा बनाकर इसमें बिना कुछ पढ़े-लिखे सोचे-समझे कूद गए हैं।  जो कल तक  कुछ और करते थे उन्हें अचानक सपना हुआ और वे वास्तु स्पेस्लिस्ट लिखने या कहने लगे।मेरे कहने का अभिप्राय ये ऐसे लोगों के लिए असंभव नहीं किन्तु अत्यंत कठिन जरूर है। शास्त्र की साधना किए बिना ये सब चीजें जान समझ पाना संभव नहीं है।

     उनका एक ही लक्ष्य है अपना घर बनाने के लिए औरों के घर तोड़वाना तथा घर का सामान कहाँ क्या रखा जाए सिखाना। जिन्हें अपनी जिंदगी चलाने के लिए पढ़ाई-लिखाई काम धंधा कुछ भी हाथ नहीं लगा वे आपको क्या सिखा सकेंगे आप स्वयं सोचिए? अपने बनाये हुए ड्रामेटिकल उत्पादन यह कहकर बेचना कि इससे वास्तु शुद्ध हो जाएगा।
विशेषः हर घर की अपनी एक अलग भी वास्तु होती है। 

जैसेः-भजन करने वाला माला अपने साथ लेकर सोएगा, विद्यार्थी किताबें कलम, लेखक डायरी लेकर, शराबी शराब की बोतल के साथ, क्रिमिनल हथियार के साथ सोएगा। जिसके पास जितनी और जैसी जगह या  आवश्यकता तथा धन है हर व्यक्ति अपने घर की वास्तु अपने हिसाब से वैसे ही व्यवस्थित करता है, किन्तु पाखंडियों ने इसमें भी अपना धंधा खोज लिया है। इस विषय में सही जाँच-परख करके ही कदम बढ़ाना चाहिए। वास्तु विजिट करके ये क्या देखते हैं क्या इनकी आँखों में दूरबीन लगी है जो जमीन के अंदर का दिख जाएगा। वास्तु ज्योतिष भी गणित ही है कहीं भी बैठकर समझा जा सकता है इसके रहस्य को। इसमें प्लाट पर जाना बहुत जरूरी नहीं होता है। जिस ज्योतिष से सूर्य चंद्र ग्रहण देखे जा सकते हैं उससे प्लाट क्यों नहीं?इसमें सम्बंधित जगह की मिट्टी जरूर देखनी होती है जिससे पता लगता है कि वास्तु की जगह शुद्ध है या नहीं ।यदि जमीन शुद्ध होगी तो वहाँ कैसे भी घर बनाया जाय अच्छा ही होगा।जब खोया चीनी अच्छी होगी तो आपस में कैसे भी मिला ली जाए स्वाद अच्छा ही होगा। यदि  खोया  ही  सिंथेटिक  होगा तो कितने भी अच्छे ढंग से मिलाओ या मीठा बनावो वो हानिकारक  ही होगा। जैसे मीठा बनाने  के लिए खोया शुद्ध लेना आवश्यक है उसीप्रकार अच्छा भवन बनाने के लिए जमीन का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक होता है।  


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