प्राचीन विद्याओं की उपेक्षा क्यों ?
आज लगभग सारे सामाजिक झगड़े प्राचीन विद्याओं से जुड़े होते हैं किंतु इन विषयों पर ध्यान बिलकुल नहीं दिया जाता है ऐसे कैसे चलेगा? आप स्वयं सोचिए धर्म से जुड़ी हर बात को अंध विश्वास कहने का तो आज फैशन सा बन गया है।तंत्र मंत्र के नाम पर यदि समाज में कहीं कुछ अपराध हो ही रहे हों तो इन्हें स्वतंत्र अपराध ही मानना चाहिए इसमें तंत्र मंत्र का क्या दोष? तंत्र मंत्र का तो प्राचीन विद्याओं में बड़ा गौरवपूर्ण स्थान रहा है। उस अत्यंत पवित्र शब्द का आज गाली की तरह प्रयोग किया जा रहा है।
इसी प्रकार ज्योतिष की स्थिति है इस शास्त्र के नाम पर कुछ बिना पढ़े लिखे लोगों ने ज्योतिष एवं वास्तु के नाम पर मन चाहे आडंबर फैला रखे हैं वो जिसके लिए जो चाहें सो कहें बकें या बहम डालें जिस पर कहीं कोई रोक टोक नहीं है। ज्योतिष की फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाकर कोई भी व्यक्ति टी.वी. पर बैठकर या वैसे समाज को मन चाहे ढंग से जब तक चाहे बेवकूफ बनाता रहे है कोई देखने सुनने रोकने टोकने वाला?आखिर मेडिकल की तरह के कठोर नियम ज्योतिष में क्यों नहीं लागू किए जा सकते हैं?
योग के नाम पर योगासनों का ड्रामा जम कर चला अरबों रुपए का कारोबार हो रहा है क्या किसी ने जानने की कोशिश की है कि ऐसे कार्यक्रम करने वालों के दावों में सच्चाई कितनी होती है?और होती भी है कि नहीं। इसकी जॉंच करने कराने का काम किसका था ?
इसी प्रकार आरक्षण के नाम पर चल रहे खिलवाड़ का जिम्मेदार आखिर कौन है?तथाकथित दलित जातियों का कब किसने कहॉं कैसे कितना शोषण किया था।उसमें दलितों की कितनी भागीदारी थी इसकी भी जॉंच होनी चाहिए थी,क्योंकि सवर्णों की अपेक्षा दलितों की जन संख्या अधिक थी तो यदि कोई शोषण करना भी चाह रहा था तो किसी ने सहा क्यों?आदि बातों की जॉंच होनी चाहिए थी।
इसी प्रकार जो परंपरा से हमारे साधुसंतों की श्रेणी में नहीं आते हैं वे भी साधुसंतई एवं कथा कीर्तन के नाम पर कोई कुछ भी करें कैसे भी पैसे इकट्ठा करके फिर उन पैसों से कुछ भी करें सब कुछ करने के बाद है कोई रोकटोक?
अन्य धर्मों में भी वही स्थिति है।वहॉं भी कहीं कोई रोक टोक नहीं है इसका सीधा मतलब क्या यह नहीं है कि धर्म का नाम लेकर कोई कुछ भी कर सकता है।
मेरा विशेष निवेदन मात्र इतना है कि ऐसे किसी भी विषय में किसीप्रकार से किसी एक अज्ञानी लोभी के द्वारा लोभ वश किए गए किसी अपराध में सारा धर्म एवं धार्मिक गतिविधि को अंध विश्वास कह कह कर बार बार ललकारा जाने लगता है जो ठीक नहीं है।
आखिर सरकारी खजाने से इन विद्याओं के प्रशिक्षण के लिए जो विश्व विद्यालय चलाए जा रहे हैं वो भी अंध विश्वास है क्या?और यदि नहीं तो ऐसे आरोप लगाने वालों के विरुद्ध भी तो कोई कार्यवाही होनी चाहिए।साथ ही ऐसे विशयों में अयोग्य लोगों को लेकर मीडिया में बहस चलाने वाले लोगों पर भी सरकारी नियंत्रण होना चाहिए।किसी भी बहस में यदि किसी अधिकृत संस्थान के चिकित्सक वैज्ञानिक आदि बुलाए जा सकते हैं तो अधिकृत प्राच्यविद्या विज्ञ क्यों नहीं? आखिर ये दोष किसका है?और नियंत्रण कौन करेगा?
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि
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केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय
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विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई
जानकारी लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक
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यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक
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सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी
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सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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