महिलाएँ एवं महिला संगठन भी जिम्मेदारी निभाएँ
देश की राजधानी दिल्ली में एक लड़के लड़की का जोड़ा जिस तरह से कुछ अपराधियों के अत्याचार का शिकार हुआ वह अत्यंत शर्मनाक है।निःसंदेह
ऐसे किसी भी दुर्व्यवहार की न केवल निंदा करनी चाहिए अपितु कठोर से कठोर
कानूनी कार्यवाई भी होनी चाहिए जिसे देख सुनकर ऐसे अपराधियों के हृदय हिल
जाएँ।आखिर यह क्या हो रहा है अपने देश में?कौन है इस बिगड़ती कानून व्यवस्था का जिम्मेदार ! यदि संभव हो तो ऐसी किसी भी अप्रिय वारदात की पुनरावृत्ति रोकी ही जानी चाहिए ।
ऐसे जोड़े में चलने वाले लड़के लड़कियों से भी यहाँ मेरा एक निवेदन है कि पार्कों,बाजारों, रेस्टोरेंटों,मैट्रो स्टेशनों एवं मैट्रो जैसी
सार्वजनिक जगहों पर जितने ऐसे तथाकथित प्रेमी
प्रेमिका होते हैं इन्हें भी अत्यंत संयम से मर्यादा पूर्वक रहना चाहिए। कई बार ये लोग भी अपने आचार व्यवहार में सारी
मर्यादा की सीमाएँ लाँघ जाते हैं और इनके पारस्परिक बात व्यवहार में
बहुत शिथिलता होती है जिसे ये लोग मानते हैं कि कोई देख ही नहीं रहा है
किन्तु देखने सुनने वाले देख सुन रहे होते हैं।दोनों एक दूसरे को नोंचने
खोचने चिपटने चाटने में इतना समर्पित होते हैं कि इन्हें खुद होश नहीं
होता है कि ये कर क्या रहे हैं।सच्चाई ये है कि विवाहित लोग भी इतने
स्नेह से
कमरे के अन्दर भी कम ही देखे जाते होंगे जितने स्नेह से ऐसे विवाहेतर संबंधी या अविवाहित
लोग रहते हैं। दोनों का दोनों के प्रति पूर्ण समर्पण होता है।दोनों इतना खुश होते हैं कि वे एक नहीं सात नहीं सात सौ जन्म भी एक साथ
रहने का वायदा करते देखे जा सकते हैं।
ऐसे दृश्य देखने
सुनने वाले कुछ तो फैशन, जमाना, या आधुनिकता को गालियाँ दे रहे
होते हैं।कुछ आनंद ले रहे होते हैं कुछ पागल हो रहे होते हैं।और कुछ
उसे पाने के
लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हो रहे होते हैं।ऐसे लोग या तो कुछ
लोगों के साथ होते हैं या तो कुछ लोगों को साथ बुला लेते हैं और किसी बहाने से उस अकेले प्रेमी से झगड़ा करते हैं वो बेचारा अकेला क्या करे?चूँकि
हमला करने वाले कई होते हैं तो उन्हें जीतना ही होता है।और उनके जीतने का
मतलब कम से कम प्रेमी का पिटना और प्रेमिका से सामूहिक बलात्कार होता
है।क्योंकि वे होते ही समूह में हैं और ऐसे किसी उन्मादी से अच्छे आचरण की उम्मींद
ही क्यों करनी?उन उन्मादियों में भी कोई ईमानदार, चरित्रवान,दयालु आदि होगा ऐसी आशा ही क्यों करनी ?सरकार के बस में होता तो अब तक नियंत्रण हो जाता किन्तु घटनाएँ घटती चली जा रही हैं।आखिर सरकार को केवल कोसने से भी बात बनते नहीं दिख रही है ।
बेबस पुलिस
ऐसी प्रेमी प्रेमिका के प्रसंग से जुड़ी किसी अप्रिय घटना के घटने से पहले यदि पुलिस शिकंजा कसने लगे तो प्यार पर पहरा नाम का शोर मचता है बाद में पुलिस पहुँचे तो क्राइम रोक पाने में नाकाम पुलिस नाम का शोर
मचता है। इसलिए हमें भी शर्दी गर्मी बरसात में दिन और रात में जहाँ पुकारो
वहाँ हाजिर होने वाली पुलिस पर भी हमेंशा नकारात्मक आरोप लगाकर उनका मनोबल
नहीं गिराना चाहिए ,अपितु अपराध रोकने के लिए हमें अपने भी
सकारात्मक सुझाव देकर अपराध मुक्त समाज बनाने में सहयोग करना चाहिए।
खैर और
सब कुछ हो या न हो इसमें सबका अपना अपना मत हो सकता है।जहाँ तक कानून
व्यवस्था की बात है वह चुस्त दुरुस्त होनी ही चाहिए यह भी सच है किन्तु
अपनी सुरक्षा के लिए अपनी तरफ से भी सामाजिक मर्यादाओं के परिपालन का ध्यान भी लड़के लड़कियों की तरफ से रखा जाना चाहिए ।
आखिर यहॉं या ऐसे ऐकान्तिक मामलों में क्या करे सरकार?कितनी कितनी,
किसको किसको, कहॉं कहॉं, क्या क्या, कैसे कैसे सुरक्षा मुहैया करावे सरकार?
आखिर मर्यादा लाँघते समय ये तो उन जोड़ों को भी पता होता है कि हम शरीरों की नुमाईश बनाने जा रहे हैं फिर क्या करे
सरकार?
विज्ञापनों में महिला शरीर
इसी तरह किसी भी प्रकार
की किसी भी चीज के विज्ञापनों में, कोई प्रोडक्ट बेचने के लिए महिलाओं के
शरीरों को भड़कीला बनाकर अर्द्धवस्त्रों में उन शरीरों को दर्शनार्थ परोसकर
अपने प्रोडक्ट बेच रहे होते हैं लोग। क्या ये गलत नहीं है ?क्या
महिला माने केवल शरीर एवं शारीरिक सुन्दरता ही है जिसे दिखा कर सामने वाले
के मन को आकर्षित करके अपना प्रोडक्ट बेच लेना।आखिर इससे बचेगा नारी
सम्मान क्या?
ऐसे आधे अधूरे कपड़ों में शरीर लपेट कर रहने वाली सुंदरियॉं पूरे होश हवाश में अपने शरीरों
के शिथिल प्रदर्शन का बाकायदा तय शुदा पेमेंट लेती हैं। जो लोग देखकर पागल
होते हैं और पैसा खर्च करते हैं कुछ लोग प्रोडक्ट खरीदने में, कुछ उस विज्ञापिका को
देखने छूने एवं पाने के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं।कोई इसप्रकार का अपना
पागलपन किसी और पर निकालता है जो जब जहॉं शिकार बनता है वो सरकार को
दोषी ठहराता है। क्या करे सरकार, क्या करे कानून व्यवस्था ? आखिर ये तो
उसे भी पता है कि हम शरीर की नुमाईश बनाने जा रहे हैं फिर क्या करे
सरकार?कितनी कितनी किसको किसको, कहॉं कहॉं, क्या क्या, कैसे कैसे, सुरक्षा
मुहैया करावे सरकार ?
रिसेप्सनों पर कोई न कोई सुंदर युवा लड़की
लगभग हर संस्था रिसेप्सन पर कोई न कोई सुंदर युवा लड़की न केवल बैठाती हैं बल्कि उसकी वेष भूषा ऐसी रखती हैं ताकि उसे देखने वाले लोगों को पूरा
दर्शन सुख मिले।
बाबाओं ज्योतिषियों की सहायता में ----
आज बाबाओं को भी आगे बढ़ने के लिए सुंदरियों की जरूरत पड़ती
है जब तक ऐसी वैसी कुछ सुंदरी नायिकाएँ योग सीखने नहीं आती हैं तब तक
बाबाजी अच्छे योगी नहीं माने जाते हैं । जब तक सुंदर चेली साथ में न हो तब
तक साधुता जमती नहीं है इसी प्रकार ज्योतिष आदि को भी व्यवसाय की दृष्टि
से देखने वाले लोग भी केवल अपनी विद्या के बल पर समाज में नहीं उतरते
हैं।उन्हें भी इस तरह के ग्लेमर की जरूरत पड़ती है।वो भी विज्ञापनीय झूठ
बोलने के लिए एक ऐसी लड़की साथ लिए बिना आगे नहीं बढ़ते हैं।
कामेडी में महिलाएँ !
हँसना हँसाना इतना ज़रूरी है क्या ?
साहित्य
शास्त्रों में कला की सीमा वहीं तक मानी गई है जहॉं तक बड़ी बडी़ बातें
गीतों और इशारों में ही होती हैं।जब खुला नंगपन शुरू हो जाए तो उसे कला
कैसे कहा जा सकता है?आज कॉमेडी के नाम पर जो कुछ भी
हो रहा है वो फूहड़पन के अलावा कुछ और दिखाई सुनाई ही नहीं देता है। अपनी
बीबी बेटी मॉं बाप भाई बहन का नाम किसी और के साथ बेशक मजाक में जोड़ दिया जाता है किंतु इससे क्या सिखाने का प्रयास किया जा रहा है?
इसीप्रकार टी.वी.
पर आने वाले कई कार्यक्रमों में लड़कियों को बहुत छिछले ढंग से प्रस्तुत
किया जा रहा होता है।वो भी हॅंसते हॅंसते वो रोल पैसे के कारण निभा रही होती
हैं।सोहागरात जैसे शब्द तो आम होते जा रहे हैं।एक लड़का कामेडी के नाम पर
दूसरी आधे अधूरे कपड़ों वाली लड़की की चिकनी टॉंगों की बात आसानी से बता रहा होता
है।लोग हँस रहे होते हैं केवल इसीलिए न वो किसी और की लड़की है कभी सोच के देखो अपनी होती तो निकल पाती हँसी ऐसी छिछली बातों पर !सोहागरात और सोहागरात पर दूध के गिलास की चर्चा तो धीरे धीरे अधिकांश
कार्यक्रमों में दिखने लगी है।कामेडी के नाम पर मिसे जा रहे होते हैं एक दूसरे
के शरीर, बोले जा रहे होते हैं एक दूसरे के माता, पिता, भाई, बहनों के विषय में अश्लील
वाक्य!मांसल मंथन इतना अधिक बोला जा रहा होता है कि उसमें कला तो कहीं
दिखाई सुनाई ही नहीं पड़ती है।सारी भाषा ही एक दूसरे को गाली गलौच देने की
होती जा रही है। अरे! यह कैसी कामेडी?यदि एक दूसरे को बेइज्जत करके ही हॅंसाना
जरूरी है तो यह तो आम चौराहों पर भी हो रहा है।
इसी प्रकार और जितने भी बासनात्मक व्यवसाय बना लिए गए हैं वहॉं भी लड़के
लड़कियॉं जो भी हों सब बॉंधकर ही नहीं लाए गए होते हैं।सब में मिलाजुला कुछ
ऐसा ही होता है लड़कियॉ स्वयं रुचि लेती दिखती हैं।
इन सारी बातों को
कहने के पीछे हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि स्वाभिमान एवं सदाचार प्रिय
महिलाएँ अपने शरीर की नुमाईस लगाकर उसे अर्थोपार्जन का माध्यम बनाती ही
क्यों हैं ?अपने गुणों एवं शिक्षा कला को आगे करके गौरव पूर्वक कमाएँ या आगे बढ़ें तो शायद ज्यादा
सुरक्षित रह सकती हैं ।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि
किसी को
केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय
प्राचीन
विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी नीतिगत पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई
जानकारी लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक
भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक
अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं
स्वस्थ समाज बनाने के लिए
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के
कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके
सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी
प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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