मुंबई के एक पुलिसआयुक्त ने कहा कि "सेक्स शिक्षा के विषय में सावधानी से सोचा जाना चाहिए | सेक्स शिक्षा के नाम पर छात्रों को बस संसर्ग के बारे में सिखाया जा
रहा है " एक सर्वेक्षण के अनुसार, बलात्कार धूम्रपान से ज्यादा आम हो गया है।
उन्होंने कहा कि नैतिक शिक्षा पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है. टेलीविजन धारावाहिकों में खुले आम विवाह पूर्व और विवाहेतर सेक्स शो. देखे तथा दिखाए जाते हैं । इसके अलावा वर्तमान पीढ़ी के लिए अश्लील वेबसाइटों ने और अधिक आसानी कर दी है। उन्होंने कहा कि आज सेल फोन में भी इंटरनेट सुविधा मिलने लगी है ।
मुंबई के एक पुलिसआयुक्तजी का यह कथन मैंने इंटरनेट से साभार उद्धृत किया है ।
इस विषय में समाज से मेरा सविनय निवेदन है कि हमें इस प्रकार की बातों बिचारों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने का समय आ गया है ।यदि नैतिकता का वातावरण बनेगा तभी सामाजिक अपराध में कमी आएगी । ऐसे किसे किसे कहाँ कहाँ कैसे कैसे कितनी कितनी सुरक्षा दे पाना संभव है कहाँ से आएगा इतना सुरक्षा बल?
नैतिक मूल्यों का क्षरण होते ही बलात्कार भ्रष्टाचार आदि अपराध होने लगते हैं किन्तु कहाँ से आवें नैतिक मूल्य ?
मुख्य बात तो यह है कि टी.वी. चैनलों आदि के कारण आज मीडिया का खर्चा भी
पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गया है,तो पैसे के लिए काम करना मीडिया की भी
मजबूरी मानी जा सकती है,किंतु केवल पैसे के लिए नहीं। आज धार्मिक वर्ग में
एक होड़ सी लगी है कि अच्छा महात्मा,
योगी से लेकर आयुर्वेदज्ञ तांत्रिक मांत्रिक, सिद्ध,साधक ज्योतिषी ,
वास्तुविद् आदि झूठ सॉंच भविष्य भाषण, नाच, गाना, कथा- प्रवचन, निर्मलबाबागिरी, साधु, संतगिरी, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वरगिरी गुरु जगद्गुरुगिरी आदि
क्षेत्रों में चाहें जितनी बड़ी मात्रा में नकली लोगों को असली बनाने में या
यूँ कह लें कि डालडा को देशी घी बनाने में मीडिया की कृपा की बहुत बड़ी
आवश्यकता होती है।आखिर फर्जी डिग्रीवाले ज्योतिषी लोग भी तो मीडिया की
कृपा से ही सारी दुनियॉं में छाए हुए हैं।आज भागवत पढ़ने के लिए लोग काशी वृन्दावन आदि जगह नहीं जाते हैं वो संगीत सीखते हैं और टी.वी. चैनलों पर
पहुँचने के लिए पैसे इकट्ठे करते हैं।ऐसे में उन्हें भी पैसे निकालने होते
हैं तो धर्म और मूल्यों की बात जब उन्होंने स्वयं ही नहीं समझी तो समझाएँगे
क्या? आखिर हमारे पुराने चरित्रवान कथाबाचकों ने कथाओं में कभी नाच गाने
का प्रयोग नहीं किया था क्या समझा जाए कि उस समय वो लोग संगीत जानते नहीं
थे!या संगीत सीख नहीं सकते थे?वो बहुत समझदार लोग थे उन्हें पता था कि
भागवत आदि ग्रंथों का उद्देश्य जिस आत्मरंजन का है संगीतमय कथाबाचन से यह
मनोरंजन तक ही सीमित रह जाएगा।जिससे समाज में शास्त्रीय मूल्यों की स्थापना
करना कठिन हो जाएगा।जो आज हो रहा है।
धार्मिक मूल्यों का क्षरण होते ही बलात्कार भ्रष्टाचार आदि बढ़ने लगे। इसमें
फिल्मों की नग्नता का उतना दुष्प्रभाव नहीं है जितना धार्मिक लोगों के पतन
से नुकसान हो रहा है।पहले धार्मिक लोग अपनी मर्यादा का पालन करते थे तो
फिल्मी दुनियॉं से जुड़े लोग भी नाचने गाने के मनोरंजन तक की मर्यादा का
पालन करते थे।अब नाचने, गाने, थिरकने, कमर हिलाने ,मुख मटकाने, कामेडी
करने या मनोरंजन करने का काम जब धार्मिक कथाबाचक करने लगे तो फिल्म
निर्माता अपने कलाकारों के कपड़े उतराने लगे।आखिर बढ़ते बलात्कारों के लिए
उन्हें या विदेशी संस्कृति को क्यों कोसना? जब विदेशी लोग इस धरती पर शासन
करते थे तब तो वो अपनी छाप नहीं छोड़ पाए, आज हमारा चरित्र हमारी धार्मिक
मर्यादाओं के टूटने से बिगड़ा है हमें किसी और पर अँगुली उठाना शोभा नहीं
देता ।हमारे धार्मिक लोग जब से धनलोभी एवं सुखभोगी हो गए तब से वो ईमानदारी
पूर्वक जीवन के शास्त्रीय सूत्र स्वयं समझ पाने एवं समाज को समझा पाने में
असफल हुए हैं। तब से धर्म एवं देश की दिनों दिन दुर्दशा होती जा रही है।
इसी कारण बलात्कार आदि कुसंस्कार बढ़ रहे हैं।यदि फिल्मों के कारण होता तो
पहले भी तो एक से एक सुंदर अप्सराएँ नृत्यांगनाएँ होती थीं किंतु तब
धार्मिक समाज में जो चरित्र था आज वो मिट रहा है। यह सबसे बड़ी चिंता की बात
है। हमारे धार्मिक, महापुरुषों, कथा, कीर्तनों तथा उपदेशों का समाज पर यह और
इतना बुरा असर है कि बस में बलात्कार हो रहा है! इसका यह कतई मतलब नहीं है
कि पंडित महात्माओं की शास्त्रीय बातें लोग मान नहीं रहे हैं यदि ऐसा होता
तो साधुओं सत्संगियों के पास संपत्ति कहॉं से एकत्रित होती ? आखिर इसी समाज
की दी हुई संपत्ति है।इसका सीधा अर्थ है कि समाज पर धर्म का जादू अभी भी
पूरी तरह से चल रहा है किंतु धर्माचार्यों की ओर से संस्कार सुधारने की
दृष्टि से कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहा है।
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