खैर, क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं
अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है।धार्मिक जगत तो ऐसा
फैशनोन्माद एवं अर्थ संचयोन्माद का शिकार हुआ है कि उसका समाज के चारित्रिक पतन के पक्ष पर ध्यान ही नहीं जा रहा है वे धनी और सुन्दर लोगों को मंडलेश्वर या महामंडलेश्वर बनाने पर अमादा हैं।जिनके विषय में मीडिया में कैसे कैसे वीडियो दिखाए गए हैं सारा विश्व साक्ष्य है!वैसे
भी भ्रष्टाचार में पकड़े गए नेता लोग कहा करते हैं कि यदि आरोप सिद्ध हो गए
तो हम संन्यास ले लेंगे। राधे माँ ,नित्यानंद टाईप के लोगों का यह सब देख
सुन कर लोग क्या सोचते होंगे कि संन्यासी और महामंडलेश्वर आदि सब ऐसे लोग ही बनाए जाते होंगे क्या?
धार्मिक मंडी में ऐसा माल भी है जिस दरवार में किसी का उद्धार गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर तथा दसबंद माँगकर किया जाता है! एक जगह और ऐसी ही ट्रेडिंग चलती है ये उस दसबंद माँगने वाले से से भी चार कदम आगे हैं,यहाँ कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी की जाती है फिर अपनी प्रशंसा में उनसे कुछ झूठ बोलवाया जाता है कुछ खुद झूठ बोलकर इस छलहीन सनातनी समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रबीज बोए जाते हैं ये सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं ये विदेशों से दंद फंद कर कुछ सम्मान खरीद या माँग लाते हैं फिर धन बल से भारतीय अखवारों के पूरे पेज इन्हीं गपोड़ शंखी बातों से भर दिए जाते हैं।किन्तु ये बेचारे इतने अधिक सम्मानित हैं कि मंत्र
को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर या बीज मंतर ही बोलते हैं ।
मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो
मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी
को क्या पता! खैर किसी का क्या दोष? ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । एक बात तो सच है साहब शिक्षा ,तपस्या आदि तो जो है सो है बल्कि धार्मिक जगत में भी अब आर्थिक गुंडा गर्दी जम कर हावी है।किसी ने यदि योग के नाम पर पेट हिलाकर या दिखाकर पैसे पैदा कर लिए हैं तो उसका चेहरा चमक जाता है और वह शिक्षित,तपस्वी,सदाचारी आदि सब कुछ मान लिया जाता है उसकी फोटो बिकने लगती हैं।एक उपदेशक तो इतने मुचंड हैं कि सामाजिक मर्यादा को भूल कर वो जनता को कुछ भी बका करते हैं और धर्म के नाम पर जनता सब कुछ सहा करती है! ऐसी सभी प्रकार की धार्मिक अवारा गर्दी का असर जनता पर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है और बसों में बलात्कार हो रहे हैं।
सनातन धर्म के श्रद्धेय सन्तान संतों ,तपस्वियों, सदाचारी, सज्जनों, विद्वानों ने जो छाप समाज पर छोड़ी है उसका असर अभी भी
समाज है किन्तु यदि पाखंड अधिक बढ़ ही गया तो आधुनिक पीढ़ी में वे प्राचीन
संस्कार कहाँ तक दम बाँधेंगे ?मुझे अभी भी भरोसा है कि हमारे शास्त्रीय संत
एवं विद्वान् मिलकर कोई मध्यम मार्ग निकालकर युवा पीढ़ी में सनातन शास्त्रीय संस्कारों का सृजन करेंगे जिससे युवाओं में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति पर न केवल लगाम लगेगी अपितु बहन बेटियों का सम्मान सुरक्षित होगा देश अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा ।
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