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Saturday, March 2, 2013

आखिर क्यों आ गई है बलात्कारों की बाढ़ ?

    बड़ी सामाजिक बीमारी का नाम है बलात्कार!
  भारत में  पवित्र प्रेम की पवित्र परंपरा तो रही है किन्तु बलात्कारों का हमारी संस्कृति में कभी कोई स्थान नहीं रहा।बलात्कार तो एक साजिश है जो किसी ने द्वेष बश संस्कारों के साथ खेली है प्रेम की पवित्रता को प्रदूषित किया है। 
   जैसे
जिसे रसगुल्ला पसंद हों वह और कुछ खाए या  ना खाए किन्तु रसगुल्ला अवश्य खाएगा ऐसा अनुमान होता है । इसीलिए हत्यारे लोग  हमेंशा प्रिय वस्तु में मिलाकर 
ही जहर देते हैं।जैसे किसी को जहर देकर मारना हो तो उसे खाने में जो चीज सबसे अधिक पसंद हो उसी में जहर मिलाते हैं ताकि वो उसे खाए ही।धोखे से भी जो जहर खा लेता  है वह तड़प  तड़प  कर मरने लगता है लेकिन आप बीती कभी किसी को बता नहीं पाता है क्योंकि वह इतना शिथिल हो जाता है कि आप बीती किसी को बताने लायक रह ही नहीं जाता है।    
       इसीप्रकार  विश्व को संस्कारों की शिक्षा देने वाला भारतीय समाज दुर्भाग्य बश बलात्कार नाम के ऐसे ही जहर की चपेट में  आज आ गया  है।
     प्रेम तो भारत का प्राण है इसलिए प्रेम प्रधान संबंधों का अत्यंत प्राचीन काल से ही भारत में महत्त्व रहा है जिसमें सबका प्रेम सबसे हो सकता था।  मनुष्यों का  प्रेम पशु पक्षियों से भी होता  रहा  है और ऐसे संबंधों का सफलता पूर्वक निर्वाह भी करते रहे हैं।इसी  प्रेम को लोग परमात्मा स्वरूप मानते रहे हैं। इसी माध्यम से लोग एक दूसरे से गाँव गली पड़ोस नाते रिश्ते दारी आदि के संबंधों में प्रेम के प्रभाव से जुड़ते चले जाते थे जिससे शुभ चिंतकों का बहुत बड़ा परिवार बना लिया करते थे। सभी लोग एक दूसरे के सुख दुःख में एक दूसरे के काम आया करते थे लोग अपने मन की दबी छिपी बात अपनों में बता कर मन हल्का कर लिया करते थे।एक दूसरे के सहारे अपनी बहन बेटियों को सुरक्षित मान लिया करते थे।  दूर दूर के परिचितों में लोग राखियाँ बँधवा कर भाई बहन के सम्बन्ध को गौरव पूर्ण ढंग से चलाते थे।ऐसा मजबूत आपसी विश्वास था।आज हर आदमी  अपने में अकेला हो गया है। हर कोई भयभीत है कि न जाने कब कौन सगा  सम्बन्धी उसकी बाहू बेटी के साथ प्यार का खेल खेल  कर उसके हँसते खेलते घर को तवाह कर दे। छोटे छोटे बच्चे बिना माता पिता के भटकते फिरने लगें ये अविश्वास का सबसे बड़ा संकट आज समाज को खाता  जा रहा है।
      भारत की  पावन परम्पराओं को किसी दुश्मन देश की नजर लग गई और उसने यहाँ के संस्कारों में जहर  घोलने के उद्देश्य से यहाँ के पवित्र प्रेम को प्रदूषित कर दिया है उसने प्रेम की नई परिभाषा गढ़ दी है कि जहाँ मूत्रता अर्थात सेक्स के सम्बन्ध बन सकते हैं वहीं मित्रता और जहाँ मूत्रता नहीं वहाँ मित्रता नहीं।
     इसलिए अब मनुष्यों का  प्रेम पशु पक्षियों से नहीं होता है अब लोग एक दूसरे से गाँव गली पड़ोस नाते रिश्ते दारी आदि के संबंधों में प्रेम के प्रभाव से नहीं जुड़ पा रहे हैं इसलिए किसी का कोई    शुभ चिंतक नहीं रहा है हर काम पैसे से हो रहा है।  अब लोग एक दूसरे के सुख दुःख में एक दूसरे के काम नहीं आना चाहते। लोग अपने मन की दबी छिपी बात किससे बता कर मन हल्का करें।किसके सहारे अपनी बहन बेटियों को सुरक्षित मानें?
       इस प्रकार मित्रता के नाम पर मूत्रता का प्रचार प्रसार बड़े जोर शोर से होने  लगा और मित्रता तथा  मूत्रता के बीच का अंतर समाप्त होने लगा धीरे धीरे मूत्रता की तलाश में मित्रता के ड्रामे दिखाई पड़ने लगे। हर रिश्ते,नाते,परिचित,पड़ोस,स्कूल से लेकर नौकरी आदि हर जगह  सुन्दर लड़के लड़की के बहाने बस  मूत्रता की तलाश.....! राखी बाँधना बँधवाना भी इसी दृष्टि से देखा जाने लगा।काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के एक हास्टल में मैं रहता था रक्षा बंधन का त्योहार आया मैं घर की याद में थोड़ा परेशान बैठा हुआ था इसी बीच कुछ लड़के राखी बाँध कर आए तो मुझे लगा कि इनकी कोई नाते रिश्तेदारी होगी जहाँ से राखी बँधवाकर आए हैं। पूछने पर पता चला कि लड़कियों वाले हास्टल में जाकर वहाँ की लड़कियों से राखी बँधवाकर आए हैं।मेरी दृष्टि में तो ये और अच्छा हुआ किन्तु इसी बीच उनमें से एक लड़के ने कहा कि लड़कियाँ पटाने का सबसे अच्छा राखी का ही दिन होता है जब बेरोक टोक किसी से राखी बँधवाने के बहाने घुल मिल कर बात चीत करके राखी बँधवाकर  उसे पटाया जा  सकता है। वैसे भी जो लड़की  दिन में दीदी बनने को तैयार हो गई वो रात में बीबी बन ही जाएगी! दूसरे लड़के ने कहा कि इसीलिए दूसरे बेलेंटाइन डे की तरह ही हम लोग रक्षा बंधन का त्योहार राखी बँधवाकर धूम धाम पूर्वक मनाते हैं।यह सब सुन कर मुझे घोर आश्चर्य हुआ !

  इसी प्रकार फिल्मों सीरियलों में जो जितने सेक्स के पकौड़े कला रूपी   कड़ाही में जितनी  चालाकी से तल सके उतनी ही वह फिल्म सफल है अपने मल मूत्र संस्थानों को जो जितने बड़े जन समुदाय में लुका छिपाकर दिखाए तकाए झंकाए  वो उतना बोल्ड हॉट आदि आदि जो मानो सो ! जो इनका समर्थन करे वो पढ़ा,लिखा,फैशन,पसन्द,आधुनिक सोच वाला समझदार आदि आदि है। जो विश्व विद्यालय या विद्यालयों में अध्यापक इस रासलीला में सम्मिलित होकर बेशर्मी पूर्वक इस मूत्रता की तलाश में लग जाए वो मटुक नाथ टाईप से पहचाना जाता है।सरकार को भी ये बात समझ में आ गई और  सेक्स एजुकेशन जैसा तोहफा समाज को मिला!

    कुछ धार्मिक लोगों को भी ये बात समझ में आ गई उन्होंने भी जहाँ जैसे जितने पाए उतने हाथ मारे एक दिन किसी अखवार में एक चित्र देखने को मिला  वो चित्र मैं साभार यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ इनकी भावना जो भी हो उससे हमारा अभिप्राय नहीं है वो आप लोग समझें ..हमारा अभिप्राय मात्र इतना है कि समाज पर इन बातों का भी असर पड़ता है इस चित्र पर मैं केवल इतना ही कहूँगा ।

        
      कुल मिलाकर कर प्यार के नाम को पकड़ कर मूत्रता की तलाश में भटकते कुछ लोगों ने सारी समाज एवं सारे नाते रिश्तों को शर्मशार किया है इसी की छाया में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध हो रहे हैं।कुछ तो लव मैरिज के लालच में लव नाम का खेल खेलना प्रारंभ करते हैं किन्तु अक्सर वो प्रयास मैरिज के बजाए बलात्कार की ओर मुड़ जाता है।जहाँ अपने बराबर की परिस्थिति में ऐसे खेल खेले जाते हैं वहाँ तो विवाह तक बात पहुँचने की सम्भावना भी होती है बाकी नहीं। ऐसे खेल जब कई जगह खेले जाते हैं तब कहीं एक दो जगह लव  नाम का खेल सेट होता है बाकी सारे गेम असफल ही चले जाते हैं, असफल लोग हिंसक हो जाते हैं वो बलात्कार हिंसा  आदि तक भी पहुँच जाते हैं।ऐसी ही प्रदूषित  मानसिकता की उपज होते हैं ऐसे
बलात्कार जैसे अपराध!
     हमारा उद्देश्य संस्कारों का पुनर्जागरण करके बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई को समूल नष्ट करना है,साथ ही  नव युवक तथा नव युवतियों के बहुमूल्य जीवन की रक्षा करना एवं माता पिता को  संतानों के शोक में मरने से बचाना है।जिसके साथ बलात्कार हुआ वो मरा फिर जिसके लिए फाँसी या जो भी दंड हो उसे पीड़ा दोनों परिवार परेशान, सारा समाज परेशान, पूरा देश हैरान,पुलिस प्रशासन तो परेशान है ही कि  कहीं बलात्कार न हो जाए! इसप्रकार  सारा देश बिजी हो जाता है पुलिस प्रशासन का  ध्यान इधर बँटते ही आतंकवादी सक्रिय हो जाते हैं।इस प्रकार का खेल भारतीयों के संस्कारों के साथ खेला गया है अभी भी युवा पीढ़ी अपने मनो वेगों पर नियंत्रण करके संयम पूर्वक राष्ट्र के विकास में योग दान दे ताकि नीति नियामक लोग महँगाई से निपटते हुए देश के उत्थान के विषय में भी कुछ कर सकें, देश की मीडिया भी बलात्कार  की ख़बरों से मुक्त होकर समाज में संस्कारों के सृजन में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सके ।   

अब पवित्र प्रेम क्या होता है ?

   इस प्रकार  प्रेम का अर्थ शास्त्रों में तो बहुत कुछ अलग है जिसका अर्थ शास्त्रों में परमात्मा बताया गया है।नारद भक्ति सूत्रं में प्रेम के विषय में कहा गया है--
       गुणरहितं कामनारहितं बर्धमानं  अविच्छिन्नं सूक्ष्मतर अनुभव रूपं  प्रेम इति निगद्यते।
      इसका अर्थ होता है कि जो आपसे प्रेम करता है वो यदि आप के गुणों से प्रभावित नहीं है, वो आपसे किसी स्वार्थ से नहीं जुड़ना चाहता है,उसका प्रेम दिनों दिन बढ़ता है कभी कम नहीं होता है, आपके विरोध में कभी सोचता भी नहीं है, वो आपको कभी अहसास भी नहीं कराता है कि वो उसे चाहता है किन्तु फिर भी आपसे स्नेह करता है वो आपका सच्चा प्रेमी या प्रेमिका हो सकते हैं ।


       सेक्स के लिए चूमते चाटते घूमने वाले कामी हैं ये प्रेमी कैसे कहे जा सकते हैं?जो प्रेम करेगा वो सेक्स तो बहुत बड़ी बात है एक कण का भी स्वार्थ नहीं रखेगा क्योंकि स्वार्थ आते ही वह प्रेम पवित्र नहीं रह जाता है जो पवित्र नहीं है वह अपवित्र  प्रेम परमात्मा भी नहीं हो सकता है उसके परिणाम भी अच्छे नहीं होंगे स्वाभाविक है।

     आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी ने प्रेम की परिभाषा दूसरे ढंग से की है।उन्होंने कहा कि जब संसार के सभी जीवों से बिना पक्षपात के आप एक जैसा प्रेम करते हैं तो आप भक्त होते हैं।जब आप अपने घर के  या निजी संबंधों से जुड़े किसी व्यक्ति से प्रेम करते हो  वो आपसे करे या न करे तो इसे मोह कहते हैं।जब आप  किसी चीज से प्रेम करते हो इसे लोभ कहते हैं।

       इसीप्रकार जब आप किसी को चाहें और वो आपकी चाहत को माने ही न तो वह एकांगी प्रेम  होता है जैसे मछली पानी से प्रेम करती है किन्तु पानी मछली से प्रेम नहीं करता है इसी प्रकार पतिंगा दीपक से प्रेम करता है किन्तु दीपक तो पतिंगे से नहीं करता है। मछली अपने प्रेमी पानी से अलग होकर एवं पतिंगा अपने प्रेमी दीपक की आग से चिपक मर जाते हैं।बलात्कार में भी एकांगी प्रेम ही होता है एक ही के चाहने के कारण बस वही चिपक लगता है और ऐसे एकांगी प्रेम में प्रेमी से मिलकर भी मौत ही होती है ऐसे ही प्रेमी से बिछुड़कर भी मौत होती देखी जाती है।ऐसी परिस्थिति में बलात्कार को भी एकांगी प्रेम माना जाता है एकांगी प्रेम में मृत्यु होती ही है।किसी के ऊपर तेजाब आदि फेंकने की घटनाएँ भी इसी  एकांगी प्रेम का ही परिणाम होती हैं।इसीलिए भड़काऊ या अर्द्धनग्न शरीर वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

       क्या नग्नता का ही अर्थ प्यार है?यदि यह सच है तो प्यार करने वालों को फाँसी की माँग ही क्यों? किस्तों में कपड़े उतारने का नाम है प्यार, कला, कामेडी  और  फिल्म।यदि कोई अपनी सेक्स भावना को घर के अंदर अनुशासन में रखते हुए पत्नी तक सीमित रखता है तो वह सदाचारी गृहस्थ है।जो लोग अपनी सेक्स भावना की नदी को सँभाल नहीं पाते और यह भावनात्मिका नदी  घर से बह कर बाहर  निकल पड़ती है और  बाहर जाकर आफिस, पार्क, पार्किंगों, कालेजपरिषरों या किन्ही और शुनशान स्थलों में किसी सेक्सालु जीव से टकराती है तो प्यार उसे कहा  जाता है और किसी भले,चरित्रवान, ईमानदार स्त्री पुरुष से टकराई तो बलात्कार! क्योंकि वो मूल्यों के आधार पर जीवन जीने वाला होगा और कोई चरित्रवान स्त्री पुरुष क्यों सहेगा किसी का  प्यार वाला  प्यारा  प्यारा दुर्व्यवहार?यदि आप अपनी इसी  सेक्स  भावना  को अभिव्यक्ति  के  माध्यम  से  किसी   मंच  तक  पहुँचा  पाने  में सफल  हो  जाते  हैं  तो  लोग  आपको अश्लील फूहड़ बेशर्म आदि कुछ भी कहने लगते हैं किन्तु यही सेक्स भावना का  मंच यदि टी.वी.पर दिखाई पड़े तो ये कला का रूप धारण कर लेती है और यदि इसी भावना के प्रकटीकरण में सामाजिक मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हों तो इसे कामेडी प्रोग्राम कहते हैं।इन सब बातों व्यवहारों परिधानों को अभिनयात्मक किसी कहानी में गढ़ कर  प्रेरणा देने में यदि कोई सफल हो जाता  है तो इसे फ़िल्म कह लिया जाता है किन्तु इन सब बातों के मूल में भावना तो वही एक सेक्स भावना ही  है।इन सब झमेलों से बचने का एक मात्र साधन है उत्तम शिक्षा !


     राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ  

यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी बनावटी ब्रह्मज्ञानी ढोंगी बनावटी तान्त्रिक बनावटी ज्योतिषी योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।

       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपने पन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना बाँटना  और सही जानकारी देना।  


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