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Friday, March 22, 2013

प्यार और बलात्कार के प्रकरणों में लड़के अधिक दोषी तो हो सकते हैं किन्तु पूरी तरह निर्दोष तो लड़कियाँ भी नहीं होतीं ।

     बलात्कारों की शुरुआत लगभग प्यार से होती है और प्यार का खेल लड़के लड़कियाँ मिलजुलकर खेलते हैं और जब बात बिगड़ती है तो दुर्घटनाएँ दो में से किसी के भी साथ घट सकती हैं कई बार लड़के के साथ घटती हैं कई बार इसी प्रकार से कई बार दोनों के साथ भी घट सकती हैं किन्तु दोषारोपण केवल पुरुषों पर ही क्यों गलती तो महिलाओं से भी हो सकती है और अच्छे तो पुरुष भी हो सकते हैं ! 

   जब लड़के-लड़कियाँ दोनों एक जैसे हैं और दोनों बराबर हैं और दोनों मिलजुलकर खेलते हैं प्यार का खेल तो सुरक्षा की माँग केवल लड़कियों के लिए ही क्यों लड़कों के लिए क्यों नहीं आखिर वो भी तो किसी के पुत्र भाई पति पिता आदि हो ही सकते हैं । 

    आज समाज में महिलाओं के लिए बन रहे असुरक्षित वातावरण की जितनी भी निंदा की जाए कम होगी जिसमें छोटी छोटी बच्चियों के साथ जो अत्याचार हो रहा है वो तो बिलकुल असह्य है,ऐसे अपराधियों की पहचान करने की प्रक्रिया पारदर्शी एवं विश्वसनीय होनी चाहिए।उन लड़का लड़की या स्त्री पुरुषों में जिसका भी अपराध सिद्ध हो ऐसे अपराधियों को अपराध निरोधक कठोरतम दंड की व्यवस्था होनी ही  चाहिए।

     प्यार हो या बलात्कार लड़के हों या लड़कियाँ दोनों करते हैं मौज मस्ती दोनों तरफ से चलता है शह और मात का खेल ,दोनों ही आपस में पूरी तरह  झूठ बोलते हैं और दोनों ही कहीं भी खड़ेहोकर लिपटचिपटकर करने लगते हैं चूमाचाटी!अपने इन्हीं कर्मों के कारण लोगों के द्वारा इतनी बार मारे भगाए और गरिआये जा चुके होते हैं कि ये पूरी तरह बेशर्म हो चुके होते हैं और इसमें लड़के हों या लड़कियाँ कोई किसी से पीछे नहीं है अगर लड़के जिगोलो बनते हैं तो लड़कियाँ कालगर्ल ,गर लड़के प्यार के नाम पर किसी को शरीर सौंप देतेहैं तो लड़कियाँ भी,पार्कों मेट्रो स्टेशनों या मेट्रो में कूड़ा दानों के पास किसी से चिपक कर खड़े होते तो लड़कियाँ भी चिपक रही होती हैं यदि लड़के नशा करते हैं तो लड़कियाँ भी करती हैं !फिर सुरक्षा की जरूरत अकेले लड़कियों को ही क्यों है 

     आप कल्पना कीजिए कि किसी एकांत जगह में धनबल पर यदि कोई लड़का सेक्स के लिए किसी  लड़की को कहीं बुला ले जाता है तो लड़की चली जाती है किन्तु लड़के कुछ लोग धोखा करते हैं वो कंट्रीब्यूशन करके सामूहिक रूप से पैसे देते हैं और सामूहिक रूप से सेक्स करते हैं किन्तु लड़की को बताया एक लड़का जाता है उसी के हिसाब से पैसे तय किए जाते हैं और दिए भी उसी हिसाब से जाते हैं किन्तु बाद में कई लड़के सम्मिलित कर लिए जाते हैं चूँकि वो लड़की अकेली होती है ऐसे में उसका पीड़ित होना स्वाभाविक है । ऐसी परिस्थितियों में भी उस लड़की को आधा अधूरा पेमेंट मिलने के कारण उसे गैंग रेप  बता कर प्रचारित किया  जाए ये कहाँ तक उचित है ! और क्या इसे कानून का दुरूपयोग नहीं माना जाना चाहिए !

आप स्वयं देखिए कि लड़कियाँ लड़कों से कहाँ पीछे हैं ?      

  कौन कहता है कि लड़कियाँ लड़कों से पीछे हैं आप भी देखिए -


कितना  कठिन होता है बलात्कारों का शुरूआती अभ्यास !

 

    यहॉं केवल पुरुष या लड़के ही अपराधी होंगे ऐसी सोच ही क्यों? रखना आखिर वे भी इसी समाज के अंग हैं!महिलाओं की तरह ही सभी पुरुष  भी अपराधी नहीं हो सकते।जिस प्रकार हर महिला किसी न किसी पुरुष  की मॉं बहन बेटी होती है उसी प्रकार हर पुरुष  भी किसी न किसी महिला का पिता भाई पति पुत्र आदि होता है। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर ऐसे अपने पिता, भाई, पुत्र आदि को निरपराध दंडित होते देख कर कोई महिला या लड़की क्या अपने को सुरक्षित अनुभव कर सकेगी? समाज एक शरीर की तरह होता है किसी एक हाथ में चोट लगने पर क्या दूसरे हाथ को इसकी पीड़ा नहीं होती।इसी प्रकार पुरुषों को दंडित होते देखकर उससे संबंधित  कोई भी महिला प्रसन्न या सुरक्षित नहीं हो सकती। जो सुरक्षा उसे पिता भाई पति एवं पुत्र से मिल सकती है वो पुलिस कैसे दे सकती है।पुलिस या प्रशासन  किसी महिला के लिए जान पर नहीं खेल सकते हैं जबकि पिता भाई पति एवं पुत्र आदि ऐसा करते देखे गए हैं। इसलिए महिलाओं की सुरक्षा का अर्थ पुरुष विरोध नहीं होना चाहिए।

     आज सभी क्षेत्रों की तरह ही आपराधिक प्रवृत्तियों में भी महिलाओं की भागीदारी बहुत बढ़ती जा रही है अक्सर समाचारों में देखने सुनने पढ़ने को मिलता है कि प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या या नए प्रेमी के साथ मिलकर पुराने प्रेमी की हत्या या किसी साजिश के तहत ससुराली परिवार को ही समाप्त करवा देना। इस प्रकार की भी घटनाएँ अक्सर देखने सुनने को मिलती हैं की अपनी रोजी रोजगार,सामाजिक या राजनैतिक पद प्रतिष्ठा बनाने या बढ़ाने के लिए कई बार अपने पिता, भाई, पति, पुत्रआदि से छिप कर किसी पुरुष से सम्बन्ध बनाए जाते  हैं चूँकि प्यार नामक खेल में सब कुछ झूठ ही बोला जाता है जिस दिन उस झूठ की पोल खुलती है उस दिन तक प्यार एवं इसके बाद का बलात्कार मानकर उसे दंडित करवाती हैं!ये कहाँ का न्याय है?मैं विश्वास से  कह सकता हूँ कि लगभग हर प्रकार के अपराध में जुड़ी  महिलाओं का अनुपात पुरुषों की अपेक्षा बेशक कम हो किन्तु भागीदारी से इनकार नहीं किया जा सकता है।दोनों बढ़ चढ़ कर अपने अपने हिस्से का कर रहे होते हैं अपराध  ! स्त्री, पुरुष,  हिंदू मुश्लिम,हरिजन सवर्ण आदि कुछ भी होने से कोई अपराधी नहीं होता है।अपराधी हर जगह हैं  हर वर्ग में हैं।  

    वैसे भी प्यार नाम का कारोबार करने वाले जिन लड़के लड़कियों ने प्यार के नाम पर  किसी एक लड़की या लड़के के लिए अपने माता पिता एवं स्वजनों को छोड़ा हो वे  मूत्रता गर्भित  मित्रता कितने दिन निभा पाएँगे ?जहाँ झूठ का परिचय झूठ की पहचान झूठ की पद प्रतिष्ठा एवं झूठ का आश्वासन तथा झूठ का ही लेना देना होता है। ऐसे प्यार पर विश्वास करने वाले झूठे एवं अविश्वसनीय होते हैं। भले लोग ऐसे लोगों का भरोस ही नहीं करते हैं। इनके साथ उठना बैठना आना जाना तक पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि इन्हें अपनी नाते रिश्तेदारी परिचित पट्टीदारों प्रियजनों हेती व्यवहारियों के यहाँ के ही लड़के लड़कियाँ प्यार नामक खेल खेलने को मिलते हैं।जैसे हर तरबूज लाल नहीं निकलता उसी प्रकार हर लड़के या लड़की की ओर बढ़ाया गया प्रेम नाम की  बासना का हाथ हर बार सफल होकर ही नहीं लौटता है जहाँ असफल हुआ तो बलात्कार नामकी दुर्गन्ध सारी समाज में फैल जाती है।इसलिए शर्म छोड़ चुके ऐसे युवा जोड़ों के मिलने -बिछुड़ने,घात प्रतिघात  में कौन कितना दोषी है?इसका मूल्यांकन कैसे किया जाए?एक बात तो सच है कि विश्वास न करने योग्य तो दोनों होते हैं।  

    जिन माता पिता ने जन्म दिया पालन पोषण किया और आज तक सुख दुःख में साथ खड़े रहे हों ऐसे निस्वार्थ प्रेम करने वाले माता पिता का जो न हो सका या सकी हो जो अपने माता पिता एवं स्वजनों की आशाओं पर खरे  न उतर सके हों !

   इसीप्रकार जिन लड़के लड़कियों के जन्म के समय से ही माता-पिता,भाई-बहन, बुआ-मामा-मौसी आदि स्वजनों ने जिसके विवाह के लिए अपने अपने सपने सजा रखे हों, कोई छोटी बड़ी भेंट विवाह के शुभ समय में आशीर्वाद रूप में जिसे  देने के लिए अपने पास सँभालकर रखी हुई हो। बूढ़े दादा दादी जिसका विवाह देखने के लिए ही अपनी जिंदगी सँभालकर बैठे हुए हैं

     ऐसे समस्त स्वजनों के संबंधों को अकारण ही सस्पेंड करके जो आधुनिक प्रेमी जोड़े आधे अधूरे कपड़े पहने या उन्हें भी  उतार कर गली मोहल्लों, चौराहों, पार्कों में एक दूसरे के मुख में मुख रगड़ रहे हों?एक दूसरे के साथ विवाह करने का आश्वासन दे रहे हों,कह रहे हों कि मैं तुम्हारे लिए सबको छोड़ दूँगा किन्तु तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।अपने भविष्य का भला या शुभ चाहने वाले लड़के लड़की को

ऐसे मक्कारों,झुट्ठों,लप्फाजों की बातों पर कभी किसी  विश्वास नहीं करना चाहिए।जो अपनों का नहीं हुआ वो तुम्हारा कब और क्यों   होगा?आवश्यकताएँ परिस्थियाँ परिवर्तन शील होती हैं जिनसे प्रेरित होकर आज तुम्हारे सामने गिड़ गिड़ा रहा है कल कहीं किसी और के द्वार पर प्यार नाम का कटोरा लिए गिड़गिड़ाता मिलेगा !

     ऐसे लोगों से क्यों न पूछा जाए कि तुम्हारे अपनों से ऐसा क्या अपराध हुआ है जो किसी एक लड़के  या लड़की के लिए तुम उन्हें छोड़ने को तैयार हो गए ,क्या उन्होंने तुम्हें बहुत सताया या परेशान किया है? क्या वो तुम्हारा विवाह नहीं करना चाहते हैं? या किसी गंदे कुरूप बीमार अयोग्य लड़के  या लड़की को तुम्हारा जीवन साथी बनाना चाहते हैं, आखिर उनसे ऐसा क्या अपराध हुआ है, जो उन्हें छोड़ने को तैयार हो?वो भी मेरे लिए!आखिर जो तुम्हारे अपने लोग तुम्हें नहीं दे सकते हैं और हमारे आपके कुछ समय के सामान्य अनुभव एवं परिचय के बलपर हमसे वह पा लेना चाहते हो मुझमें ऐसा क्या देखा?जिस लालच में भूल जाना चाहते हो अपने  गौरव मय अतीत के सगे संबंधी ?

      वास्तव में आपका प्रेम तो बहाना है वस्तुतः यह सेक्स पीड़ा की परेशानी है जिसका तत्कालीन  समाधान तब तक के लिए आप हम में देख रहे हैं जब तक कि हमसे अच्छा कोई और साथी आपको मिल न जाए!इसके बाद  हमारी भी दुर्दशा इससे ज्यादा होनी है यह भी मुझे पता है।ऐसा करते ही उसकी  हकीकत  सामने  आ  जाएगी !

   इसलिए अपराधी केवल अपराधी होता है वह स्त्री पुरुष  हिंदू मुश्लिम,हरिजन सवर्ण आदि कुछ भी नहीं होता है।इनकी संख्या बहुत कम है किन्तु ये सक्रिय हैं जिस दिन समाज भी सक्रिय और सतर्क हो जाएगा उस दिन अपराध मुक्त समाज की संरचना प्रारंभ  हो जाएगी।

     इसलिए किसी घटना के घटने पर उस क्षेत्र,जाति समुदाय सम्प्रदाय स्त्री पुरुष  आदि समूचे वर्ग को कोसने की शैली ठीक नहीं है।इससे अपराधी को बच निकलने का रास्ता मिल जाता है उस वर्ग के लोग उसका साथ देने लगते हैं।इससे मीडिया को शोर मचाने में सुविधा भले होती हो किंतु कुछ लाभ न होकर उसके नुकसान अवश्य उठाने पड़ते हैं।उस वर्ग के भले लोग जो उस तरह के अपराध को रोकने में अपनी अपनी शक्ति सामर्थ्य  के अनुशार सहयोग भी करना चाहते हैं उन्हें भी शर्मिंदगी के कारण दूरी बनाए रखनी पड़ती है।
    आज वातावरण ऐसा बनता जा रहा है कि पार्कों आदि सामूहिक जगहों में जिन जगहों पर जितना अधिक लुकने छिपने का बहाना होता है वहॉं उतनी बेशर्मी से युवा लड़के लड़कियों के शिथिल आचरण देखे जा सकते हैं। रेस्टोरेंटों, पार्कों ,पिच्चरहालों, मैट्रो  स्टेशनों आदि सामूहिक जगहों पर अक्सर युवा लड़के लड़कियों को लिपटते चिपटते चूमते चाटते देखा जा सकता है।दोनों प्रसन्न दिखते हैं दोनों बड़ी बड़ी बातें करते देखे सुने जा सकते हैं।यदि इन दो में से किसी एक के जीवन में कोई तीसरा नया आया तो तकरार शुरू होती है।वह कहीं तक भी जा सकती है।कई बार बड़े बड़े अपराध तक होते देखे जाते हैं।चूँकि ये सार्वजनिक जगहें होती हैं जहॉं बहुत सारे लोग देख रहे होते हैं ये बात अलग है कि वे देखने वाले ज्यादातर अपरिचित लोग होते हैं किंतु वो भी स्त्री पुरुष लड़के लड़कियॉं आदि ही होते हैं उनके भी मन उसी प्रकार की बासना के भाव से भावित होते हैं।जिसे उन्होंने संयमपूर्वक रोक रखा होता है। जिसमें जो अविवाहित युवा लड़का या लड़की है वो इनका काम कौतुक देखकर भी अपने मन पर कितना संयम रख पाएगा ये उसके अपने संयम के अभ्यास सदाचरण एवं माता पिता परिवार आदि के संस्कारों पर निर्भर करता है। इनमें भी जो अविवाहित युवा लड़का या लड़की अपने जीवन में एक बार किसी से बासनात्मक सुख ले चुके होते हैं ऐसे  लड़के  लड़कियाँ  सामूहिक स्थलों पर चल रही रास लीला देखकर वो अपने को नियंत्रित रख पाएँगे इसकी संभावना बहुत कम होती है अर्थात वो कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं।

काम शास्त्र एवं साहित्य शास्त्र में वर्णन मिलता है      ज्ञातः स्वादुः विवृत जघना कः बिहातुं समर्थः?      अर्थात एक बार बासनात्मक सुख का स्वाद पता लग जाने पर फिर उस तरह की परिस्थिति देखकर भी कौन छोड़ पाने में समर्थ हो सकेगा ?

     इसी प्रकार आयुर्वेद में शरीर के तीन मुख्य उपस्तंभ बताए गए हैं भोजन, निद्रा और मैथुन। इनके कम और अधिक होते ही शरीर रोगी होने लगता है।इसलिए भोजन, नींद और बासनात्मक इच्छा रोक पाना अत्यंत कठिन होता है उसमें भी आज कल  विवाह बिलंब से होने लगे हैं।

     प्राचीन भारत में ऐसी ही परिथितियों से निपटने के लिए नियम, संयम, सदाचार, व्रत, उपवास, योगिक क्रियाएँ,प्राणायाम, वैराग्य बढ़ाने वाले साहित्य को पढ़ने की प्रेरणा दी जाती थी फिर भी वैराग्य या ब्रह्मचर्य में स्थित रह पाना अत्यंत कठिन होता था। विश्वामित्र पराशर आदि ऋषि  आखिर डिग ही गए,तो आज सब कुछ खाने, सब कुछ देखने एवं सब तरह का जीवन जीने वाले अविवाहित युवक युवतियों की  ब्रह्मचर्य जन्य संयम की परीक्षा ही क्यों लेनी?

    जहाँ तक कठोर कानून की बात है सरकारी स्तर से ऐसे प्रयास करने में बुराई नहीं है कुछ तो ऐसा करना ही पड़ेगा जिससे इसप्रकार के  स्वेच्छाचार पर नियंत्रण हो सके ।

   यहाँ एक बात और ध्यान देनी होगी कि अक्सर ऐसे मामलों में कदम रखने वाले युवक युवतियाँ  बासनात्मक पीड़ा से इतना अधिक परेशान होते हैं कि वो जिसे पाना चाहते हैं वो भाव नहीं देता है तो ये ऐसी कुंठा के शिकार हो जाते हैं कि अपनी जीवन लीला स्वयं ही समाप्त कर लेते हैं।कई बार ऐसे ही युवा लोग मैट्रो, माल,हॉस्पिटल,होटल, नदी,झील या अपने घरों के पंखों में ही लटक कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं।ये बातें अक्सर देखने सुनने को मिलती हैं।आखिर फाँसी पर कितने को लटकाया जाएगा? जबकि ऐसे मामलों में आत्म हत्या  के मामले बहुत अधिक मिलेंगे।इसलिए यदि मृत्यु दंड से बात बननी होती तो बहुत पहले बन गई होती।एक धर्माचार्य होने के नाते  मेरा मन ऐसे लड़के लड़कियों की होने वाली दुर्दशा से  बहुत आहत है। आखिर क्या अपराध उनके माता पिता का है जिनके बच्चे मारे जा रहे हैं, या आत्महत्या  करके मर रहे हैं, या मृत्यु दंड देकर मारे जाएँगे। यदि इन तीनों प्रकार के बच्चों के माता पिता के आँसू बहना रोका जा पाना संभव हो पाता तो सर्वोत्तम होता! आखिर जो  दुखद हुआ है वैसा दुबारा न हो, या जो हो रहा है वो अच्छा हो, और  जो आगे होगा वह भी राष्ट्रहित में हो ।

      उचित होगा यदि सार्वजनिक जीवन में फिल्म, सीरियल,हास्यब्यंगकार्यक्रमों,विज्ञापनों आदि की भाषा शैली एवं दृश्यों के सुधार पर ध्यान देकर शालीनता के द्वारा युवाओं के संस्कार सुधारने पर ध्यान दिया जाए !

     आजकल कामेडी शो  से लेकर अन्य फिल्म, सीरियल आदि जगहों  के हास्य ब्यंग एवं तथाकथित कवि सम्मेलनों में केवल लड़की,और लड़की पट गई या लड़की नहीं पटी,या सुहागरात,या बेलेंटाइन डे यही तो चर्चाएँ  तो होती हैं टॉफी गोली की तरह लड़कियॉं एवं उनकी शिथिल चर्चाएँ परोसी जा रही होती हैं।हर प्रकार के विज्ञापनों का यही हाल है।हर ज्योतिषी  ने एक सुंदर सी लड़की झूठी तारीफ करने के लिए अपने साथ बैठाई होती है कि  शायद इस लड़की के बहाने ही कुछ लोग हमें देख लें।    शरीरों पर ही हास्य ब्यंग हो रहे हैं सुंदर युवा शरीर पहले अर्द्धनग्न वेष  भूषात्मक अवस्था में खड़े किए जाते हैं फिर उनकी भाषात्मक छीछालेदर की जाती है।जिसे सुनकर तथाकथित राजा महराजा रूपी दर्शक यह सोचकर खुश हो रहे होते हैं कि हमारी बेटी के बिषय में तो कहा नहीं जा रहा है,इसलिए हॅंसो और हॅंसो, खूब हॅंसो, हॅंसने में क्या जाता है अपना? जिस दिन अपने और पराए की यह कलुषित  भावना छूट जाएगी उस दिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से समाज को मुक्ति मिलेगी।

    इसलिए रसिक युवा लड़के लड़कियों को सार्वजनिक जगहों पर लिपटने चिपटने चूमने चाटने जैसी आदतों पर भी नियंत्रण करके अपनी सुरक्षा की कुछ जिम्मेदारी स्वयं भी सॅंभालनी चाहिए।सरकार और कानून तो अपना काम करेगा ही किंतु केवल इसी के सहारे भी रहना ठीक नहीं है।

      कई बार इंटरनेट,ब्लू फिल्मों, या जनरल फिल्मों के बासना बढ़ाने वाले दृश्य संवाद आदि देखने सुनने याद करने पर मन भड़क उठता है। ऐसे समय पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिकाओं के हाथ चंचल हो उठते हैं और संयम का बॉंध टूट जाता है।दोनों में से कौन किसके कहॉं कैसे हाथ लगा रहा होता है कुछ देर के लिए यह विवेक दोनों को नहीं रह जाता है।कई बार फिल्म आदि देखकर निकले प्रेमी प्रेमिकाओं को रिक्सा या आटो पर भी शिथिल व्यवहार करते देखा जा सकता है।जिसका देखने वालों पर गलत असर पढ़ना स्वाभाविक है।उस क्रिया की प्रतिक्रिया कितनी बड़ी होगी कह पाना बड़ा कठिन है।उस प्रतिक्रिया के वेग को रोक पाना किसी के लिए बड़ा कठिन होता है फिर भी अपराध रोकने के लिए कठोर कानून तो बनें ही साथ साथ हमें भी अपने आचार व्यवहार में संयम से काम लेना चाहिए।
   राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख का यह बयान कि बलात्कार भारत में नहीं इंडिया में होते हैं।उनके कहने का अभिप्राय यह हो सकता है कि भारतीय संस्कारों में पली बढ़ी कोई युवा अविवाहित लड़की किसी अन्य लड़के के साथ फिल्म देखने जाएगी ही क्यों ?हो सकता है कि वहॉं न गई होती तो बचाव भी हो सकता था, किन्तु  यहॉं एक प्रश्न यह भी उठता है कि और कहीं भी गई होती, अपने दोस्त की जगह घर के किसी सदस्य के साथ ही गई होती तब भी तो यह सब कुछ होना संभव था,किंतु घर के सदस्य और दोस्त में अंतर होता है दोस्त एक सीमा तक साथ दे सकता है जबकि पति पिता पुत्र भाई आदि पारिवारिक संबंधों के समर्पण की बराबरी कोई और कैसे कर सकता है?फिर भी कौन किसका कैसा कितने दिन का कितना समर्पित दोस्त है यह उसे या उसके घर वालों को ही पता होगा। भारतीय संस्कारों की दृष्टि से तो यही कहा जा सकता है कि ऐसी लड़कियॉं तो अकेली और पूर्ण अकेली होती हैं उनका वहॉं कोई अपना नहीं होता है जहॉं अपराधी ऐसी घिनौनी वारदातों को अंजाम देते हैं।इसलिए उन्हें अपनों के साथ ही देर सबेर निकलने का प्रयास करना चाहिए ।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

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