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Saturday, March 2, 2013

शिक्षा क्या है जीवन में इसका क्या महत्त्व है ?

   शिक्षित व्यक्ति सदाचारी होता है शिक्षा मानव जीवन का आवश्यक अंग है पुराने ऋषि तो  कहा करते थे कि   
                       विद्या विहीनः पशुः
     अर्थात बिना पढ़े लिखे व्यक्ति की तुलना पशुओं से की गई है।एक जगह तो यहाँ तक लिखा गया कि ऐसे लोग धरती का बोझ हैं   
                     ते मृत्यु लोके भुवि भार भूता
     यहाँ एक बात ध्यान देने लायक अवश्य है कि चारित्रिक संयम सदाचार आदि गुणों को अपने जीवन में स्वयं संग्रह करना चाहिए।शिक्षा ली ही इसीलिए  जाती  है यही शिक्षा का फल भी है जो लोग पढ़ लिख कर भी बलात्कार करते हैं, बेलेन्टाइन डे मनाते या तथाकथित प्यार का खेल खेलते घूमते हैं। ये उनके शिक्षित होने का फल नहीं है, क्योंकि यदि आप किसी की बहन बेटी के साथ प्यार का खेल खेलेंगे तो कोई आपकी बहन बेटी को भी अपनी हबस का शिकार बनाएगा।यदि उसको अपने  गुणों से नहीं प्रभावित कर पायेगा तो दुर्गुणों से करेगा,बलात्कार करेगा।आखिर उसे भी अपनी बहन बेटी के साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला जो लेना है।बहन बेटी की इज्जत को वो अपने स्वाभिमान या आत्म सम्मान से जोड़कर देखता है।ये भारत वर्ष है यहाँ अभी भी लोग इतने बेशर्म नहीं हुए हैं कि बलात्कार और बेलेन्टाइन डे के नाम पर अपनी  बहन बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड़ होने दें । ये भारत वर्ष का इतिहास रहा है इसी भावना पर हजारों राजा महाराजा शहीद हो गए।हजारों रियासतें तवाह हो गईं।यह हर किसी को  अपनी  बहन बेटी के साथ होता देखकर बहुत  बुरा लगता है।ऐसी स्थिति में लोग मार पीट से लेकर हत्या तक सब कुछ कर देना चाहते हैं।ऐसी परिस्थिति में एक व्यक्ति की चारित्रिक  गड़बड़ी  के कारण  बलात्कार से लेकर  हत्या तक सब कुछ तो हो गया।ऐसी बदले की भावना के विरुद्ध फाँसी जैसी सजा का भी कोई भय नहीं होगा।इसलिए यह मानना चाहिए कि  विद्या का फल इतना डरावना कभी हो ही नहीं सकता है। विद्या तो सुख शांति संयम सदाचार आदि गुणों से संपन्न करती है।विद्या तो सेक्स अर्थात बासना पर आत्म नियंत्रण  की क्षमता प्रदान करती है। 
        इस समय सेक्स एजूकेशन देने की बात चल रही  है यह समझ में नहीं आता है कि एजूकेशन से सेक्स का सम्बन्ध आखिर क्या है?सेक्स तो एजूकेशन  का विरोधी है फिर इसकी एजूकेशन  क्या होगी।कुत्ते बिल्लियों से लेकर सभी पशु पक्षी तक अनादि काल से बिना एजूकेशन  के सेक्स कर रहे हैं सबके समय से बच्चे हो रहे हैं किसी को कोई तकलीफ नहीं हैं।जो जितना नंगा हो वह उतना फैशनेबल या उतना बड़ा कलाकार इसीप्रकार जितना अधिक अश्लील बोल ले उतना बड़ा कामेडियन आदि माना जाता है।इसमें मनुष्य तो डर डर कर थोड़े  थोड़े कपड़े उतार रहा है किन्तु  पशु पक्षी तो पहनते ही नहीं हैं वो हमसे कितने आगे निकल गए हैं कुत्ते बन्दर बिल्ली तो झाड़ी जंगल भी नहीं ढूंढते  उन्हें तो जहाँ कहीं प्यार लगा वहीं शांत कर लेते हैं।जिसमें कुत्ते तो लोगों को दिखा दिखाकर कई कई घंटे प्यार करते हैं।इसके बेलेन्टाइन डे की बराबरी कैसे की जा सकती है? सेक्स एजूकेशन के कम्पटीशन में कुत्ते और बन्दर सबसे पहले विजयी हो सकते हैं क्योंकि शास्त्रों ने इन्हें सबसे अधिक कामी माना है।इसलिए इनके बेलेन्टाइन डे की बराबरी बेचारा मनुष्य सौ साल बाद भी नहीं कर सकता है। मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि जिस रेस में हम पशु पक्षियों से भी हारेंगे ही जब यह निश्चित ही है तो उस रेस में भाग लेना हमारी बुद्धिमानी नहीं है।इसलिए हमें मनुष्य बनने में ही भलाई है।यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें पशु पक्षी हमारी बराबरी नहीं कर सकते हैं।मनुष्यता आवे न आवे कम से कम  उनसे हारने से तो बच ही जाएँगे।यही सब सोचकर हम प्रेम वेम पर भरोसा नहीं करते और अपनी इज्जत बचाए अपने घर बैठे रहते हैं और जिसको जैसा लगे वो वैसा करे हमारी किसी से कोई शिकायत नहीं है ये सब तो मैंने अपने मन की अपनी बातें रखी हैं।कोई सहमत या असहमत होने के लिए स्वंतत्र है।फिलहाल अब मैं मनुष्य बनने के सूत्र ढूंढ़ रहा हूँ।इस विषय में महात्मा वाल्मीक ने तो यहाँ तक कहा है कि                   
                   तपः स्वाध्याय निरतम्  


    अर्थात् सम्पूर्ण मनुष्योचित गुणों के विकास के लिए शिक्षा और तपस्या दोनों ही अत्यंत आवश्यक हैं।संभवतः उनका उद्देश्य रहा होगा तप प्रभाव से पढ़ने लिखने वाले या पढ़े लिखे लोग बलात्कार जैसी जघन्य वारदातों में सम्मिलित नहीं होंगे आजकल अक्सर  कई बड़े बड़े पदों पर बैठे लोग भी बलात्कार या व्यभिचार में सम्मिलित पाए जाते हैं। कुछ पकड़ जाते हैं बाकी सबकी मुंदी ढकी चलती रहती है।उसका कारण है कि बड़े पदों पर बैठे लोगों का  व्यभिचार तो तब तक पवित्र रहता है जब तक वो जिसे जो काम करवाने का आश्वासन या लालच देते हैं वो करा पाते हैं फिर उन्हें उसके साथ कुछ भी कर लेने का अधिकार हो जाता है यद्यपि उसे  बलात्कार  नहीं तो व्यभिचार तो कहा ही जा सकता है किन्तु वो लोग इस व्यभिचार को प्यार नाम से प्यारपूर्वक  बुलाते हैं जो कहने सुनने में अच्छा लगता है।


     राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ  

यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी बनावटी ब्रह्मज्ञानी ढोंगी बनावटी तान्त्रिक बनावटी ज्योतिषी योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।
       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपने पन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना बाँटना  और सही जानकारी देना। 

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