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Saturday, April 20, 2013

पाँच वर्ष की बेटी से ऐसा भयंकर दुर्व्यहार !

    आधुनिकता के नाम पर कहाँ जा रहा है समाज !

 इतनी छोटी बिटिया के साथ पड़ोसी लड़के की इतनी घिनौनी करतूत!इसे केवल रेप कैसे कहा जाए? यह तो भयंकर अत्याचार है।यह दुष्टों के द्वारा बच्चों, कन्याओं  एवं  मानव  जाति  के  विरुद्ध    छेड़ा गया युद्ध है।ये प्रचंड अपराध है।अपनी समाज में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं!

    ऐसे प्रकरणों में या ऐसी विकृतमानसिकता के पीछे  निम्न लिखित कुछ प्रमुख बिंदु हैं - 

1. शिक्षा का अभाव 

2. सेक्स शिक्षा का  दुष्प्रभाव

3. ब्लू फिल्में एवं इंटर नेट पर पड़े सेक्स वीडियो

4. धार्मिक एवं आध्यात्मिकमूल्यों में भारी गिरावट 

5. आधुनिकता के  अंधानुकरण में भागता समाज 

6.लोकतांत्रिक  भावनाओं का समाप्त होता असर 

 यदि उस अपराधी में भी इन्सान का हृदय होता तो  इतने छोटे बच्चे को वात्सल्य से चूम लेने को उसका भी मन मचलता भुजाएँ फड़क उठतीं!छोटे बच्चे तो पशु पक्षियों के भी हमारे यहाँ  खूब खिलाए जाते हैं। वह तो अपनी बिटिया है।

      कन्या पूजने  वाले देश की धरती में पावन नवरात्रों की मधुरिम बेला में  कन्या पूजन के महान पर्व  पर वो हो रहा है जो राक्षसों में भी कभी नहीं देखा सुना गया था। कंस और रावण ने भी ऐसा कभी नहीं किया था । जो हमारे समय हुआ है। 

      हम भी भारत  माता की संतान एवं सनातन संस्कृति से सम्बंधित हैं । इस  नाते मैं भी अपने हिस्से का अपराध न केवल स्वीकार करता हूँ  अपितु  जीवन मृत्यु के संघर्ष से जूझ रही उस भारत  माता की देवी रूपी दुलारी गुड़िया से क्षमा माँगता हूँ कि बच्चियों की सुरक्षा के लिए हम लोग  भी तो कुछ नहीं कर सक!

      हमारी इतनी शिक्षा का क्या लाभ मिला इस अपने देश एवं समाज को ?हमारे  स्वस्थ होने का क्या लाभ हुआ!केवल हमारे साधु ,संत ,महात्मा, साधक या सदाचारीहोने  से  देश का क्यालाभ ?अकेले हम प्रतिदिन गंगा जमुना में शरीर धोते फिरें! अकेले हम तीर्थों  में  टहलते फिरें या बड़े बड़े जागरण, चौकी, आदि उत्सव मनाते रहें।कथा,कीर्तन,प्रवचन,भंडारा करते फिरें । मंदिरों  एवं धार्मिक सत्संगों,सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहकर भी समाज के लिए हम आखिर क्या कर पा रहे हैं।यदि हमारा  सारा  धर्म कर्म केवल हम एवं हमारों तक ही सीमित रह गया है तो हमारे समाज के लिए हमारा क्या कोई कर्तव्य नहीं बनता है ?

    पेड़ पौधे भी अपने आस पास का वातावरण स्वयं शुद्ध कर लेते हैं उनसे भी छाया और फल फूल मिलते  हैं  समाज को !मनुष्यों में वो भी नहीं !

        मैंने शास्त्रीय आख्यानों में पढ़ा  एवं समाज में देखा तथा सुना है की पशु पक्षियों के भी आहार बिहार के कुछ तो नियम संयम होते ही  हैं मनुष्यों में तो वो भी नहीं हैं !

  जैसे- चातक पक्षी केवल स्वाती नक्षत्र में बरषने वाली  जल की बूँद ही पीकर रहता है यह नक्षत्र हर  वर्ष   24 अक्टूबर से 6 नवम्बर तक रहता है।यदि इन दिनों में वर्षा न हो तो वह प्यासा चातक फिर अगले वर्ष की स्वाती बूँद की आशा लगाकर बैठ जाता  है ये उसका नियम है ।

      इसी  प्रकार हमें  भी चाहिए कि  रोजी रोजगार एवं धर्म कर्म आदि  करने के साथ साथ हमें भी  नियम संयम एवं सदाचरण का व्रत स्वयं लेना चाहिए  तथा स्वजनों को भी इसके लिए प्रेरित करें । इस प्रकार से यदि हम अपने जीवन में सदाचरण व्रत का परिपालन करते हुए कुछ और लोगों के जीवन में सदाचरण व्रत उतार सके तभी हमारा मानव जीवन सफल हो सकता है। हमें प्रयास तो प्रारम्भ करना चाहिए । 

  भारत जागरण संस्थान का आह्वान - 

    अश्लीलता का खेल खेलने वाले सीरियल्स  ,फ़िल्में ,वीडियो, कामेडी प्रोग्राम, फैशन शो, बेलेंटाइन डे,और गली मोहल्लों चौराहों, पार्कों,स्कूलों एवं मेट्रो स्टेशनों जैसी सार्वजनिक जगहों पर जिन लड़के लड़कियों के द्वारा असमाजिक या अश्लील आचरण किए जाते दिखाई पड़ें! प्यार के नाम पर खेले जा रहे ऐसे पापी पाखंड एवं पाखंडियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए । दूसरे की माता बहन बेटियों  के सम्मान के प्रति समाज में फिर से पवित्र वातावरण बनाया जाए!

    प्यार नाम की पापी निगाह रखने वालों का एवं इनका समर्थन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। प्यार  की ईच्छा रखने वाला या वाली एक एक करके कई कई लड़के लड़कियों के जीवन में घुसते हैं उनमें से किसी को धोखा देते हैं तो किसी से धोखा खाते हैं तब कहीं किसी एक जगह सेटिंग बन पाती है उसके साथ जुड़ जाते हैं।

      इसप्रकार तथाकथित प्यार के पथ पर  जिन्हें धोखा दे आये या जिनसे धोया खा आए ये दोनों ही स्त्री पुरुष तथा लड़का लड़की लोग आपस में एक दूसरे के शत्रु हो जाते हैं इसके बाद जो जब जहाँ जैसा समय पाते  हैं  वैसी  वहाँ शत्रुता निभा लिया या करते हैं।इस लिए इस समस्त अपराध  के पीछे प्यार नाम का भ्रष्ट आचरण है। समाज को इससे मुक्ति दिलाने के लिए हर किसी को हर स्तर पर संगठित रूप से  प्रयास करना  चाहिए।

    भारत जागरण संस्थान इसके लिए सभी का आह्वान करता है कि आप अपने इस संगठन से जुड़कर  इसके तत्वावधान में संगठित होकर समाज में सभीप्रकार  के अपराधों  के विरुद्ध जन जागरण करें।  

      कोई पार्क आज भले स्त्री पुरूषों  के लिए घूमने लायक नहीं बचा है।प्रायःपार्कों में शाम को साढ़े छै बजे से साढ़े आठ बजे के बीच अपने अपने कार्यक्षेत्रों से मुक्त होकर बासना ब्याकुल तरूणाई योजनाबद्ध ढंग से निकलती है पार्कों या अन्य सुनसान स्थलों की तलाश में घंटों भटकते हैं जोड़े ।कुछ को तो तय शुदा जगहों पर पहुँचने तक की भी तशल्ली  नहीं होती है।  रास्ते में ही बहुत कुछ निपटा रहे होते हैं,कारें तो सबसे सुरक्षित साधन हैं।लाल बत्तियों पर खड़ी मोटर साइकिलों में बैठे जोड़े दोनों के मुख ढके होते हैं और न भी ढके हों तो कोई कर क्या लेगा?सरकार,पत्रकार,फिल्म एवं फैशनाचार्यों का सहयोग मिलता रहे तो क्या कर लेंगे माता,पिता टाइप के रूढ़िवादी लोग !जबकि सच यह है कि सरकार,पत्रकार,फिल्म एवं फैशनाचार्य लोग तभी तक साथ देते हैं जब तक कोई आपराधिक केस नहीं बनता और जैसे ही प्यार करने के प्रयास की पहल को सामने वाला जो चाहे सो कहकर आरोपित कर  सकता है वह कितना भी गंभीर आरोप लगा दे तब यही फिल्म एवं फैशनाचार्य लोगों से लेकर और भी इस तरह के   प्यार के शिकार एवं समर्थक लोग साथ नहीं देते हैं तब सारे लोग फाँसी की सजा की माँग कर रहे होते हैं साथ खड़े होते हैं तो केवल माता,पिता !

     प्राचीन जीवन शैली के विय में घोर घृणा फैलाने वाले लोगों की ईच्छा आखिर क्या है?वो क्या चाहते हैं कि भारतवर्ष की  पुरानी पहचान ही मिट जाए ? क्या भारत का हर आदमी पश्चिमी देशों का पिछलग्गू बन जाए? हर कोई कपड़े उतार कर घूमने लगे हर आदमी बेलेंटाइन डे मनावे और गली मोहल्लों चौराहों, पार्कों में एक दूसरे के मुख में मुख रगड़े ? इस तरह की तड़पन का इलाज क्यों नहीं ढूँढा जा रहा है।आखिर कौन जिम्मेदार है इस सामाजिक त्रासदी का?।
     कोई पार्क आज भले स्त्री पुरूषों  के लिए घूमने लायक नहीं बचा है।प्रायःपार्कों में शाम को साढ़े छै बजे से साढ़े आठ बजे के बीच अपने अपने कार्यक्षेत्रों से मुक्त होकर बासना ब्याकुल तरूणाई योजनाबद्ध ढंग से निकलती है पार्कों या अन्य सुनसान स्थलों की तलाश में घंटों भटकते हैं जोड़े ।कुछ को तो तय शुदा जगहों पर पहुँचने तक की भी तशल्ली  नहीं होती है।  रास्ते में ही बहुत कुछ निपटा रहे होते हैं,कारें तो सबसे सुरक्षित साधन हैं।लाल बत्तियों पर खड़ी मोटर साइकिलों में बैठे जोड़े दोनों के मुख ढके होते हैं और न भी ढके हों तो कोई कर क्या लेगा?सरकार,पत्रकार,फिल्म एवं फैशनाचार्यों का सहयोग मिलता रहे तो क्या कर लेंगे माता,पिता टाइप के रूढ़िवादी लोग !जबकि सच यह है कि सरकार,पत्रकार,फिल्म एवं फैशनाचार्य लोग तभी तक साथ देते हैं जब तक कोई आपराधिक केस नहीं बनता और जैसे ही प्यार करने के प्रयास की पहल को सामने वाला जो चाहे सो कहकर आरोपित कर  सकता है वह कितना भी गंभीर आरोप लगा दे तब यही फिल्म एवं फैशनाचार्य लोगों से लेकर और भी इस तरह के   प्यार के शिकार एवं समर्थक लोग साथ नहीं देते हैं तब सारे लोग फाँसी की सजा की माँग कर रहे होते हैं साथ खड़े होते हैं तो केवल माता,पिता आदि स्वजन संबंधी जिनसे लुक छिप कर प्यार नाम का खेल खेला जा रहा था वही रोते बिलखते चीखते चिल्लाते हैं अपने बच्चों को बचाने के लिए किस किस के सामने आँचल नहीं फैलाते हैं।जवान होने के कारण स्वतंत्र निर्णय लेने के समर्थक समाज शत्रु लोग ये नहीं समझते कि जवान क्या बूढ़ा भी हो जाए तो माता पिता की बराबरी कैसे कर सकता है ? माता पिता का तिरस्कार करके प्यार खेलने वाले ऐसे भटके लोगों को कभी शांति नहीं मिलती है।

     माता,पिता आदि स्वजन संबंधियों से लुक छिप कर प्यार नाम का खेल खेलने वाले जवानी से परेशान जोड़े  और तो क्या कहें मैट्रो में घुसते ही शुरू कर देते हैं असमाजिक हरकतें! जोड़ों में न केवल  अपने हिसाब  की बात चीत अपितु एक दूसरे के साथ की जा रही हरकतें, एक दूसरे के प्रति हाव भाव, इशारे बाजी आदि , आम आदमी की परवाह किए बगैर एक दूसरे को छूने की अश्लील भावभंगिमाएँ आदि ये सब बातें न केवल एक दूसरे को उत्तेजित कर देने के लिए अपितु दर्शक रूपी किसी तीसरे को उत्तेजित कर देने के लिए

पर्याप्त होती हैं।

     अब तो बस मौके की तलाश होती है।मौका मिलते ही इन्हें कुछ क्षणों के वैवाहिक जीवन का अनुभव मिला बस सुखी हो जाते हैं बेचारे!इनमें बात बनी तो प्यार और बिगड़ी तो बलात्कार ।

      जब रूठे तो दोनों में से एक तो बलात्कार के केस  में फॅंसाने की तुरंत धमकी देती है दूसरा जान से मार देने की! दोनों अपने अपने स्तर से प्रयास भी करते हैं। दोनों की सोच अपराध की ओर मुड़ चुकी होती है।दोनों कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।इतनी जल्दी कौन सा कानून  या सरकार वहाँ  कैसे क्या व्यवस्था करे कि दोनों पक्षों की सुरक्षा हो सके  और यह फुर्ती कहाँ कहाँ कितनी जल्दी संभव हो सकती  है ?

      कई जगह तो लड़के लड़कियों की हत्या इतनी निर्ममता से हुई होती है कि लगता  ही नहीं है कि इनमें कभी प्यार छोड़ो परिचय भी रहा होगा। इनमें पीड़ित पक्ष के गार्जियन कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहे होते हैं न जाने क्यों वे यह भूल जाते हैं कि जब आप अपने छोटे से परिवार के बच्चों को सँभाल कर नहीं रख सके तो सरकार पूरे देश को कैसे और कितना सँभाले ?
     कानून के जिम्मेदार लोग विवश  हैं।उन्हें साफ साफ यही नहीं बताया जा रहा है कि उन्हें करना क्या है? दिल्ली के किसी पार्क में ऐसी ही कोई गतिविधि चल रही थी मैंने किसी से नंबर लेकर फोन करके बीट वाले सुरक्षा कर्मी को बुलाया जब वे पहुँचे तब तक जोड़ा जा चुका है।उन्होंने कहा कि तुमने झूठ काल की है, तुम थाने चलो मैं घर से किसी जरूरी काम के लिए निकला था खैर उन्हें मैंने अपना शैक्षणिक परिचय दिया तो उन्होंने हमें एक हिदायत देकर छोड़ दिया कि आप पढ़े लिखे लगते हो, आपको इस तरह के कामों से बचना चाहिए।मैंने कहा तो ऐसा देखकर भी न बोलें तो उन्होंने कहा कि बोलोगे तो पछताओगे  वैसे भी ये लोग चाकू तमंचा रखते हैं कब क्या कर दें किसका भरोस ? तुम तो अपना शांत ही रहो, जहॉं इस तरह कुछ दिखाई पड़े अपना वहॉं से हट जाओ!मैं साफ कह रहा हूँ  कि यदि वे मिल जाते तो भी मैं कुछ न करता, क्योंकि कोई घटना घटने से पहले हम पकड़ कर भगाना चाहें तो प्यार पर पहरा कह कर शोर मचाया जाएगा और घटना घटने के बाद ही पकड़ना है तो वो काम हम बाद में वैसे भी कर लेंगे।यह कहकर वो चले गए।

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