केवलभोजनसेभलानहीं होता शिक्षा बहुत जरूरी है !!!
पूर्वी दिल्ली के एक सरकारी विद्यालय में मैं अपनी बच्चियों के एडमीशन के
लिए
गया तो वहाँ के जो अनुभव हुए हैं वे शिक्षा के लिए अत्यंत भयावह हैं।यह
हालत देखकर मुझसे रहा न गया और मैंने बीस से अधिक विद्यालयों में जा जाकर
पता किया, सबका मिलाजुला वही वातावरण मिला।
मैंने जो
देखा सुना समझा उसके निष्कर्ष रूप में हम इतना तो कह ही सकते हैं कि
सरकारी स्कूलों को बनाने के पीछे सरकार का उद्देश्य जो भी रहा हो
किन्तु समाज को साक्षर बनाना तो हो ही नहीं सकता और यह बात भी मैं विश्वास
के साथ कह सकता हूँ कि वहाँ बेशक भोजन बाँटा जाता होगा कुछ पैसे दिए जाते
होंगे किन्तु शिक्षक नाम के स्कूली कर्मचारी बस केवल नाम से जाने पहचाने
जाते हैं उनके काम और आचरण से वे अपने अध्यापक होने का एहसास नहीं करा
पाते हैं।एक आध अध्यापक छोड़कर बाकी उनके चेहरों पर कहीं भी इस बात की ग्लानि नहीं दिखी कि जिन बच्चों की जिंदगी बनाने के लिए हमारी नियुक्ति हुई है जिस लिए हम
सैलरी लेते हैं वह काम हमें क्यों नहीं करना चाहिए? सरकार और अभिभावकों
ने बच्चों की जिंदगी बनाने की जो जिम्मेदारी शिक्षकों पर भरोसा करके छोड़ी
है वो उसमें कितना खरे उतर पा रहे हैं!
यहाँ विशेष ध्यान देने लायक बात यह भी है कि शिक्षकवर्ग अपने जिस कर्तव्य
का पालन करके बड़ी संख्या में बच्चों का भविष्य जितनी ऊँचाई पर ले जा सकता
है उसी प्रकार से कर्तव्य का पालन न करने वाले शिक्षकों से पढ़ने वाले
बच्चों का समूचा भविष्य गड्ढे में जा सकता है जिसके जिम्मेदार केवल और
केवल शिक्षक ही माने जाने चाहिए।क्योंकि बच्चों के माता पिता एवं सरकार ने तो शिक्षकवर्ग
की छत्रछाया में ही अपने बच्चे पढ़ने के लिए छोड़ रखे होते हैं। यदि
शिक्षकवर्ग पढ़ाने में रूचि नहीं लेता है तो खाली दिमाग शैतान का होता है वे
कुछ न कुछ तो सिखेंगे ही भले वो अपराध ही क्यों न हो ?
इसलिए शिक्षकों के लिए भी यह आवश्यक है कि जिस काम के लिए उन्हें सैलरी
मिलती है वह काम करने से उन्हें पहली बात तो जिन बच्चों का जीवन सँवरता है
वे अपराधी तो नहीं ही बनेंगे अपितु उनका नाम भी रोशन करेंगे।दूसरी बात ऐसे
शिक्षकों की प्रतिष्ठा हमेंशा बनी रहती है। तीसरी बात ऐसे परिश्रम से
प्राप्त सैलरी रूपी धन से घर में बरक्कत होती रहेगी। अपने बच्चे सदाचारी
बनेंगे।सात्विक धन से बीमारी आरामी का सामना नहीं या कम करना पड़ेगा ।
सबसे बड़ी बात जब थाल में भोजन परोस कर सामने आएगा और आप भोजन का ग्रास हाथ
में तोड़ेंगे तो आपको आपकी आत्मा यह कह कर धिक्कारेगी नहीं कि छोड़ दे यह
ग्रास! इस भोजन पर तेरा
अधिकार नहीं है।क्योंकि यह भोजन जिस पैसे से बना है वह पैसा उस शिक्षक
सैलरी का है जो बच्चों को पढ़ाने के बदले आपको मिलता है किन्तु आप बच्चों को
पढ़ाते नहीं हैं। इसलिए इस भोजन पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है।
यह सैलरी उस मध्यम एवं उच्च वर्गीय लोगों के द्वारा जमा किए गए टैक्स के पैसे से दी जाती है जो जिन भर धक्के खाकर बड़े परिश्रम पूर्वक जो धन कमाते हैं उससे टैक्स रूप में जो धन सरकार को देते हैं वही सैलरी रूप में बाँटा जाता है वे लोग भी चाहते हैं कि उनके धन का भी सदुपयोग देश की स्थिति सुधारने में हो और बच्चों का भविष्य बने देश की गरीबत दूर हो !
इसप्रकार धनी लोगों के द्वारा दिए जाने वाले टैक्स का देश के विकास में सदुपयोग होता है जो देना उनका
कर्तव्य भी है।उस टैक्स का दूसरा उपयोग आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आगे
लाने के लिए होता है यह उन गरीबों पर कृपा पूर्ण ऋण होता है वह भी इस
उद्देश्य से कि आपके बच्चे भी पढ़ लिखकर कल उन्नति करेंगे इसी प्रकार उनके
द्वारा भी टैक्स में दिया गया पैसा कुछ और गरीब बच्चों की उन्नति में
सहायक होगा इस प्रकार धीरे धीरे देश की सामाजिक स्थिति में सुधार होगा।
वे बच्चे भी कभी इस देश की दशा को सुधारने के लिए सहयोग देने में सहायक
हो सकते हैं।
आज एक सच्चाई है कि मैं कहूँ कुछ भी कोई माने या न माने ये उसकी ईच्छा
किन्तु सरकारी शिक्षा में आज बहुत लापरवाही हो रही है इसी परिणाम स्वरूप
प्राइवेट वाले मनमानी लूट रहे हैं।
मैं अपने बच्चों के एडमीशन के समय बीस से अधिक सरकारी स्कूलों में
गया जहाँ शिक्षक लोगों के बिचार मिले जुले कुछ इस रूप में देखने सुनने को
मिले-
अलग अलग स्कूलों के अध्यापक या अध्यापिकाओं ने मिल जुल कर सरकारी शिक्षा व्यवस्था एवं
अपने अधिकारियों को जमकर अपशब्द कहे। उन्होंने
भोजन और पैसे बाँटने को गलत बताया ।कोर्स में पढ़ाई जाने वाली किताबों को
गंदा एवं बकवास कहा। उन्होंने हमें बताया कि इसीलिए इन सरकारी किताबों को हमलोग पढ़ाते नहीं हैं।वहाँ पढ़ने आने
वाले बच्चों को दुर्गन्धित शरीर वाले एवं उनके माता पिता को अकर्मण्य और
निकम्मा बताया और साफ साफ कहा गया कि आपको यदि अपने बच्चे का एडमीशन कराना
ही है तो करा भले लो, पढ़ाई की आशा हमसे मत करना! बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी जब तक मैं क्लास में रहूँगी तब तक मेरी इसके बाद आप जानें आपका काम !मैंने पूछा आप क्लास में कब कब रहेंगी ?हँसते हुए उन्होंने कहा हमारे भी तो छोटे छोटे बच्चे हैं इसलिए मेरा स्कूल में रुक पाना बहुत कठिन होता है।
मैंने कहा कि आगे चलकर अपने बच्चों को हमें प्रतिभा विकास विद्यालय में पढ़ाना है इसलिए यहाँ इंग्लिश मीडियम में कराना
चाह्ता हूँ।यह
सुनकर सबने मिलकर हमारी खूब हँसी उड़ाई और समझाया कि कुछ कमाया धमाया भी
करो क्या करते हैं आप? यदि वास्तव में अपने बच्चे को पढ़ाने की ईच्छा रखते हो तो प्राइवेट में
पढ़ा लो सेंट जोसफ में मेरे बच्चे पढ़ते हैं।मैंने कहा कि फ्री शिक्षा देती
है सरकार तो वहाँ क्यों पढ़ा लूँ ?यहाँ ही पढ़ाऊँगा यह सुनकर उन्होंने कहा कि
कहीं भी पढ़ा लो पढ़ने वाला पढ़ ही लेता है वैसे फ्री में शिक्षा क्या मिट्टी
भी नहीं मिलती है। मैंने कहा किन्तु यह तो सरकार की शिक्षा व्यवस्था है तो
उन्होंने कहा यह तो ठीक है किन्तु यदि शिक्षक पढ़ाएँगे ही नहीं तो क्या कर
लेगी सरकार?पढ़ाना तो हमें ही है हम आपको सही सलाह दे रहे हैं फ़िर भी यदि आपको समझ में नहीं आता है तो पढ़ा लीजिए न !!!
इसलिए पढ़ने वाला अच्छा होना चाहिए कहीं भी पढ़ लेगा एडमीशन आप करवा लो पढ़ाई के लिए ट्यूशन लगवा देना।
खैर, मेरी और कोई जिम्मेदारी नहीं है हाँ, पास जरूर करवा दूँगी सरकार का
आदेश है कि किसी को भी फेल नहीं करना है!!!यह सब सुनकर अत्यंत तनाव में मैं घर चला आया।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
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