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Saturday, July 6, 2013

जल प्रलय का कारण माता का क्रोध !

      उत्तराखंड की तवाही के लिए जिम्मेदार कौन ?

 

 

   माता धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया है या  माता धारी देवी को  हटाया गया है? यह बहुत बड़ा प्रश्न है यह ठीक उसी तरह का प्रश्न है कि उत्तराखंड की जलप्रलय में  हजारों लोग मरे हैं या हजारों लोगों के शरीर ?चूँकि वहाँ पहुँचे सभी श्रद्धालु प्राणवान थे अपने पैरों से चलकर पहुँचे थे सभी सजीव थे अब जिनमें वो सजीवता नहीं दिखती है वो लोग निष्प्राण हो गए हैं ऐसा माना जा रहा है।ठीक उसी प्रकार से जहाँ माता धारी देवी का दरवार सजा हुआ था।

 प्रतिदिन हर्ष एवं उत्साह के साथ वहाँ आरती एवं पूजा पाठ होता था हजारों लाखों श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूर्ण होती थीं यह सब माता धारी देवी की कृपा का ही प्रभाव था जिन्हें मूर्ति(निष्प्राण अर्थात निर्जीव) समझ कर वहाँ से हटाया गया है।इस जलप्रलय के द्वारा माता धारी देवी ने समझाया है कि वहाँ कोई मूर्ति या प्रतिमा न होकर अपितु मैं स्वयं थी जिन्हें हटाने का दुस्साहस किया गया है क्योंकि केवल मूर्ति या प्रतिमा यह कैसे कर सकती थी वह तो निष्प्राण होती है किन्तु यहाँ तो नित्य पूजा पाठ होता ही था जो मूर्ति नहीं माता समझकर ही किया जाता था !फिर मूर्ति समझकर उन्हें वहाँ से हटाने की भूल क्यों की गई ? 

    इनकी सजीवता का एक और बड़ा प्रमाण है।  इस इलाके में धारी देवी की बहुत मान्यता इसलिए भी है. लोगों की धारणा है कि धारी देवी की प्रतिमा में उनका चेहरा समय के साथ बदला है. एक लड़की से एक महिला और फिर एक वृद्ध महिला का चेहरा बना !

        वहाँ प्रचलित पुरानी धारणा है कि एक बार भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी धारो गाँव  में बची रह गई थी. गाँव वालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए. यही कारण है कि धारी देवी की प्रतिमा को उनके मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था. यह मंदिर श्रीनगर से 10 किलोमीटर   दूर पौड़ी गाँव  में स्थित है। 

 
 

    माता धारी देवी देश के नास्तिक लोगों को समझाना चाहती थीं कि हिमालय और यहाँ  की नदियों को ना छुआ जाए और देवी देवताओं की गरिमा को ध्यान रखा जाए !

      माता धारी देवी की मूर्ति को नहीं हटाया गया है अपितु माता धारी देवी को  हटाया गया है किसी भी देवी देवता की मूर्ति को मूर्ति तब तक कहा जा सकता  है जब तक प्राण प्रतिष्ठा न हो या फिर पूजी न गई हो पूजे जाने के बाद तो उसमें उसी देवी देवता का प्राण होने के कारण वह प्रतिमा साक्षात उस देवी देवता का स्वरूप ही हो जाती है जिसे स्थापित स्थान से हटाया नहीं जा सकता है!चल प्रतिष्ठा में या अचल प्रतिष्ठा में भी किसी मूर्ति को स्थापित स्थान से हटाने का अलग से शास्त्रीय विधान है किन्तु  मूर्ति स्वरूप में स्वयंभू प्रकट हुए देवी देवता को हटाया नहीं जा सकता इसी प्रकार अधिक वर्षों से पूजे जा रहे किसी भी देवी देवता को नहीं हटाया जाना चाहिए !क्या यह पावर प्रोजेक्ट बनाना इतना जरूरी हो गया था क़ि इसके लिए माता धारी देवी के मंदिर को हटाया जाए !

   आखिर दूसरी और क्या वजह हो सकती है कि अचानक एक ग्लेशियर फटा और उसी दौरान गौरीकुंड और रामबाड़ा के बीच एक बादल भी फट गया। वह क्या वजह थी कि केदारनाथ के आसपास का सबकुछ तबाह हो गया सिर्फ केदारनाथ के मंदिर को छोड़कर? इसे भी क्या केवल संयोग ही कहा जाएगा कि 16 जून को शाम छह बजेमाता  धारी देवी को हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था?इसका सीधा सा अर्थ क्या यह नहीं है कि जैसे ही माता धारी देवी को हटाया गया था वैसे ही प्रलय प्रारंभ हो गया जिसका दुष्प्रभाव दिखते दिखते दो घंटे लग गए!

     यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में जो  जलप्रलय हुआ वो  निश्चित रूप से धारी देवी का ही प्रकोप है। भक्तों एवं विद्वानों का मानना है कि अगर माता धारी देवी को नहीं हटाया गया होता तो यह हादसा नहीं होता!अनंत काल से माता धारी देवी अलकनंदा नदी के बीच बैठकर नदी की धार को नियंत्रण  में रखती थीं। 16 जून को स्थानीय लोगों के विरोध और हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ धारी देवी का मंदिर नदी के बीच से हटाया गया। 16 जून की शाम यानि तकरीबन उसी वक्त जब केदारनाथ में बादल फटा।इसलिए विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि जल प्रलय के पीछे माता धारी देवी  को हटाया जाना ही है। इस विनाशलीला के पीछे माता धारी देवी का ही प्रकोप है इसमें और किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं पाला जाना चाहिए। सरकार अपनी तथा कथित धर्मनिरपेक्षता की साख  बनाने और बचाने या दैवी आस्था को अंध विश्वास मानने वाले लोग कभी भी कहीं भी किसी भी देवी देवता के साथ खिलवाड़ करने को तैयार हो जाते हैं।  उधर राम सेतु तोड़ने से रोका जा रहा था वो नहीं तो ये सही !आखिर इस विषय में देश के धर्माचार्यों से सलाह मशविरा किए बिना सरकार को ऐसा कोई कदम उठाना ही नहीं चाहिए था न ही किसी धार्मिक व्यक्ति को इस कृत्य का समर्थन करने का शास्त्रीय अधिकार ही है!न जाने किस लिए इतना बड़ा अपराध कर बैठी सरकार जिसका दंड पूरे देश को भोगना पड़ा! यह भी सच है कि यदि माता धारी देवी ने इतना तांडव न किया होता तो उनके भक्त समस्त सनातन हिन्दू समुदाय को पता कैसे लग पाता कि उनके देवी देवताओं के साथ ये धर्म विरोधी सरकारें कितनी आसानी से क्या कुछ कर बैठती हैं!सनातन हिन्दुओं को जगाने के लिए झकझोरा है माता धारी देवी ने !

    अरे हिन्दुओं !अपने धार्मिक मान विन्दुओं के लिए तुम इतने उदासीन हो कि जगत जननी को विस्थापित किया जा रहा है और तुम्हें पता तक नहीं लगा!ऐसी बातों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है ताकि ऐसी दुर्घटनाएँ भविष्य के लिए रोकी जा सकें। 

     यहाँ वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए सबसे जरूरी कुछ और भी विशेष बातें  हैं वो ये कि सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के साथ खिलवाड़ किसी के भी द्वारा नहीं किया जाना चाहिए!जबसे केदार नाथ धाम में यह घटना घटी है तब से कई लोगों के द्वारा  कई जरूरी या गैर जरूरी विवाद उठाए गए हैं अभी उनसे बचा जाना चाहिए क्योंकि अपनों को खोजने,पाने की लालषा में अभी पूरा देश तन्मय है, सहमा हुआ है, अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा सह नहीं पा रहा है,इसलिए सब के मन में प्रश्न तो बहुत हैं उठेंगे भी और उठने भी चाहिए इस पक्ष में मैं भी हूँ इतनी बड़ी घटना को यों ही नहीं जाने दिया जाएगा इसमें किससे क्या चूक हुई है उसे चिन्हित जरूर किया जाना चाहिए किसकी क्या गलती है वह जिम्मेदारी जरूर तय हो मुख छिपाने से तो बात नहीं ही बनेगी!कुछ प्रश्न हमारे भी हैं-

प्रश्न- केदार नाथ धाम में भगवान शिव की पूजा कब कहाँ और कैसे हो ?

उत्तर-इस विषय में सनातन धर्म के सर्व स्वीकृत शंकराचार्य श्रद्धेय स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज इसका निर्णय लेने में सक्षम हैं उनके साथ सनातन धर्म से सम्बंधित शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान में सक्षम विद्वत सभाएँ एवं उच्चकोटि के विद्वान् भी हैं सारा सनातन जगत उनके साथ खड़ा हुआ है तभी वो हमारे जगद्गुरु हैं फिर उनके लिए गए निर्णय में किन्तु परन्तु करना ही क्यों ?फिर भी यदि किसी के मन में कोई बात है तो उसका निवेदन उनसे ही किया जा सकता है वो विचार करेंगे वो सबकी सहमति एवं शास्त्र की आज्ञा से काम करने वाले हैं। उन्हीं का निर्णय सर्व मान्य माना जाना चाहिए !

प्रश्न-मौसम विभाग ने अधिक वर्षा की जो भी चेतावनी दी थी उस पर अमल क्यों नहीं किया गया?  

उत्तर-मौसम विभाग को यह बात सरकार के कान में कहने की जरूरत क्या थी कि अधिक वर्षा की  संभावना है इतनी महत्वपूर्ण बात को जिसमें लाखों लोगों के जीवन का सवाल हो मीडिया के भी माध्यम से इस बात को उठाया जाना चाहिए था तब तो बहुत लोग अपने आप से भी समय रहते वहाँ निकल भी सकते थे और निकाले भी जा सकते थे। 

  प्रश्न - ज्योतिष शास्त्र से जुड़े लोगों को इस विषय में पहले से वर्षा की भविष्यवाणी क्यों नहीं करनी चाहिए थी?सरकारी मौसम विभाग के पीछे छिप कर मुख छिपाकर जीना कहाँ तक न्यायोचित है? वैसे तो ज्योतिष की भविष्य वाणी के नामपर टेलीविजन में बैठ बैठ कर झुट्ठे लोग दिन दिन भर ज्योतिषीय बकवास किया करते हैं ? 

उत्तर -चलो यह भी ठीक हुआ इसी बहाने ज्योतिष को दूषित करने वाले झुट्ठे लोगों की पहचान तो हो गई सारे समाज को अब तो समझ ही लेना चाहिए कि पवित्र ज्योतिष शास्त्र  को कैसे जमूरों ने पकड़ रखा है यदि ये इतने ही काबिल थे तो टेलीविजन पर बेकार की बकवास करने के बजाए केदार नाथ में हुई दुर्घटना की क्यों नहीं कर सके भविष्य वाणी ?

     कहाँ गए ब्रह्म ज्ञानी तमाशा राम?कहाँ हैं लुटे पिटे फिल्मी अभिनेताओं को समेटे फिरने वाले स्वामी कुमार के मंतर बीज ? कहाँ गई खटमल बाबा की पूड़ी पकौड़ी वाली कृपा? किसी को नहीं पता लगा कि क्या होने जा रहा है उत्तरा खंड में ? आखिर कहाँ गए समाज को बरगलाकर रखने वाले ये कलियुगी सिद्ध होने का पाखंड करने वाले लोग ? कहाँ गई योगगुरु कामदेव की योगशक्ति? जिस योगशक्ति के बल पर योगी लोग भूत भविष्य वर्तमान में घटने वाली घटनाओं का पहले ही पता लगा लेते हैं किन्तु जो योगी  नहीं  अपितु ढोंगी थे तो उनसे भूत भविष्य वर्तमान  जानने की आशा भी नहीं की जानी चाहिए हमें तो पहले भी नहीं थी ये बात अब समाज को भी पता चल जानी चाहिए कि आपसे धन लेने के लिए लोग साधू के पवित्र वेष में कैसे कैसे नाटक करते घूमते हैं?ऐसे लोगों से क्यों नहीं पूछा जाता कि आप यदि साधू हो तो राहत सामग्री आपके पास कहाँ से आई वैसे भी यह काम तो कोई  धनी व्यक्ति कर सकता है किन्तु जो आप को करना चाहिए था वो तो आप कर नहीं सके !राहत सामग्री बाँटने के बहाने  क्यों मुख छिपाते घूम रहे हो ?बाबाजी !!!

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