श्री राम मंदिर कब बनेगा?
यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं
दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे
सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत
अधिक खराब हो जाते हैं,क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है।इसलिए कोई सामान्य
मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या
शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि।
इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।यहाँ श्री राम मंदिर निर्माण के संबंध में एक विशेष बात का ध्यान और रखा जाना चाहिए कि इस देश की दो सबसे बड़ी
राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों के प्रमुखों के नाम रा अक्षर से प्रारंभ होते हैं राजनाथ और राहुल इन दोनों से ही रा अक्षर से प्रारंभ होने वाले राममंदिर निर्माण कार्य में ईमानदारी पूर्वक समर्पणात्मक सहयोग की आशा नहीं की जानी चाहिए।राजनैतिक कारणों से दूसरों की देखा देखी पक्ष या विपक्ष में खड़े हो जाएँ ये और बात है ! और यदि ये राममंदिर निर्माण कार्य में सहयोग करना भी चाहें तो उसके परिणाम अंततः सुखद नहीं होंगे!प्रयास तो श्री राजीव गाँधी जी ने भी किए थे किन्तु परिणाम क्या निकला! चूँकि उनका नाम भी रा अक्षर से ही था!अधिक क्या कहा जाए श्री राम मंदिर निर्माण कार्य के लिए समर्पित भक्त श्री रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज के प्रयासों का परिणाम भी बहुत उत्साह जनक नहीं रहा ।
सन 1990 में श्री राम मंदिर निर्माण कार्य के प्रमुख श्रद्धेय श्री रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज थे दूसरी ओर वहाँ उस समय के डी.एम. रामशरण
श्रीवास्तव जी थे चूँकि इन तीनों का नाम भी रा अक्षर से ही था! इसलिए इन तीनों का आपसी तालमेल अच्छा
नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा
में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है?
रामदेव प्रकरण में भी इसी रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।
दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया।
श्री राम मंदिर निर्माण कार्य की सबसे बड़ी बाधा यह है कि पहले रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया और श्री राम मंदिर निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका अब अ अक्षर वालों ने अ अक्षर वालों का साथ देना बंद कर दिया है -
उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सरकार है और इसके मंत्री आजम खान हैं उधर दूसरी ओर विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल जी हैं और चौथा नाम अयोध्या का है जहाँ श्री राम मंदिर बनना है इन चारों के नाम का पहला अक्षर अ है इसलिए यदि ये लोग आमने सामने आकर कोई रास्ता निकालना चाहेंगे तो कोई शांति पूर्ण समझौता हो ही नहीं सकता!
पहले का इतिहास भी ऐसा ही है जब सपा में अखिलेश यादव कम सक्रिय रहे होंगे तब अमर सिंह जी की पटरी मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही किन्तु अ अक्षर वाले आजमखान
साहब से ही उनको समस्या होनी थी तो आजमखान
साहब को बाहर जाना पड़ा किंतु अ अक्षर वाले अखिलेश यादव का प्रभाव बढ़ते ही
अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के
साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर
प्रदेश में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है अखिलेश यादवसरकार के लिए ये कोई न कोई समस्या जरूर खड़ी करते रहेंगे !
ऐसी परिस्थिति में अखिलेश एवं उनके मंत्री आजम खान विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल जी के द्वारा चलाए जा रहे अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण अभियान में कैसे और क्यों साथ देंगे ? दूसरा उदाहरण -
अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे,
अरविंदकेजरीवाल,असीमत्रिवेदी एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त
किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए।अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल असीमत्रिवेदी सब अलग अलग हो गए और सारा आन्दोलन ध्वस्त हो गया!अन्नाहजारे की
तरह ही अमरसिंह जी के मित्र अमिताभबच्चन अनिलअंबानी अभिषेक बच्चन आदि सब अलग अलग हो गए!
इसी बात का सबसे बुरा असर दिल्ली भाजपा पर पड़ रहा है -
दिल्ली भाजपा के पाँच विजयों के समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करने से दिल्ली के दो चुनाव हार चुकी भाजपा तीसरे चुनाव की तैयारी में है!आगामी चुनावों में भी भाजपा के राजनैतिक भविष्य के लिए चिंता प्रद हैं।इसी कारण तमाम कमियों के होने पर भी पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है-
विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी -विजय शर्मा जी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
इसी प्रकार भारत वर्ष में भाजपा
राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या
वाले एवं अटलजी से कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बनते रहे
हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं
।
कलराजमिश्र-कल्याण सिंह
ओबामा-ओसामा
अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी
मायावती-मनुवाद
नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद
परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान
भाजपा-भारतवर्ष
मनमोहन-ममता-मायावती
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव
अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन
नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन अन्नाहजारे-अरविंदकेजरीवाल-असीमत्रिवेदी-अग्निवेष- अरूण जेटली - अभिषेकमनुसिंघवी
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