दिल्ली भाजपा का कैसा है आगामी चुनावी भविष्य ?
ज्योतिषीय दृष्टि से इस चुनावी समर में भाजपा के पाँच विजयों का
एक साथ संगठित होकर चुनावी विजय के लिए विशेष परिश्रम पूर्वक काम करके
सफलता हासिल कर पाना यदि असंभव नहीं तो असंभव जैसा जरूर होगा।
वैसे भी दिल्ली भाजपा जब तक अपने पाँचों बिजय बीरों को दिल्ली में एक साथ लगभग समान अधिकारों के साथ जमाए रखेगी तब तक दिल्ली भाजपा के हाथ में मुख्यमंत्री पद पहुँचना अत्यंत कठिन लगता है !श्रीमान साहब सिंह वर्मा जी के बाद दिल्ली भाजपा में कोई सर्वसम्मान्य नेता उभर ही नहीं पाया।दिल्ली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर इन पाँचों बिजय बीरों की समान सहभागिता के कारण आपसी खींचतान से जूझ रही पार्टी का कोई प्रमुख चेहरा नहीं बन पाया जिसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर जनता उनके पक्ष में मतदान करे।यही वो प्रमुख कारण है जिससे दिल्ली भाजपा लम्बे समय से दिल्ली की सत्ता से बाहर है अन्यथा सोच कर देखा जाए तो अतीत में भाजपा से ऐसी कौन सी बड़ी भूल हुई है जिसका दंड भाजपा को आज तक सत्ता से दूर रहकर मिल रहा है?
जनता में भाजपा के विरुद्ध कोई आक्रोश भी नहीं दिखता है भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाकर भी भाजपा को सत्ता से नहीं हटाया गया था।केवल आलू प्याज की महँगाई पर भाजपा को सत्ता छोडनी पड़ी थी।यदि यही एक कारण भाजपा के सत्ता से हटने का था तो दिल्ली के काँग्रेस शासन में तो ऐसा अक्सर होता रहता है वर्तमान में भी महँगाई चर्म सीमा पर है फिर भी इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहे काँग्रेस शासन के विरुद्ध कोई लहर बनती नहीं दिख रही है!आखिर इसका कारण क्या है क्यों दिल्ली में भाजपा रही अब तक सत्ता से दूर और आगे आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए क्या विशेष हो पाएगा?
(इस विषय में और अधिक जानकारी के लिए Delhi V.J.P. ke 4 Vijay नाम से हमारा लेख Google पर सर्च करके पढ़ा जा सकता है।)
अतःकहा जा सकता है कि भाजपा की दिल्ली विजय के लिए आवश्यक है कि इन विजयों में से कुछ विजय महानुभावों का कार्यस्थल बदला जाना चाहिए! भले ही उन्हें भाजपा अपने केन्द्रीय कार्यक्रमों में उनकी सेवाओं का सदुपयोग करे।
दूसरा एक उपाय और है कि इन पाँचों विजय महानुभावों से वरिष्ठ,प्रभावी,लोकप्रिय एवं जनता की दृष्टि में विश्वसनीय कोई ऐसा व्यक्ति केंद्रीय भाजपा की ओर से आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया जाए जिसके तत्वाधान में प्रसन्नता पूर्वक पाँचों विजय पूर्ण मनोयोग से काम करने को तैयार हो जाएँ तो आगामी चुनावों में विजयी हो सकती है भाजपा !यह भी संभव है कि ये लोग ज्योतिष की महत्ता को समझते हुए निजी महत्वाकांक्षाएँ छोड़कर निजी भेदभाव भूल कर केवल पार्टी को विजय दिलाने के लिए कार्य करें तो भी आ सकती है सत्ता में भाजपा? यदि इस प्रकार के तालमेल पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो दिल्ली के आगामी चुनावों में भाजपा की सफलता संदेहास्पद मानी जानी चाहिए!
इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दिल्ली के पाँचों विजयों को एक साथ दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया नहीं जा सकता और इनमें से आगे पीछे कोई बनना नहीं चाहेगा!यदि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आगे लाया जाएगा तो ये पाँचों विजय उसका दोष भी आपस में ही एक दूसरे पर ही मढेंगे जिसका चुनावी नुकसान भाजपा को ही होगा और फायदा विरोधी पार्टी अर्थात कांग्रेस को होगा इसलिए भाजपा की ओर से इन पाँचों विजयों को पार्टी के प्रति समर्पित करने के लिए यदि गंभीर प्रयास नहीं किए जाते तो काँग्रेस अर्थात शीला दीक्षित जी को पराजित कर पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा!
वैसे भी ज्योतिषीय दृष्टि से शीला दीक्षित जी का कई वर्ष तक अच्छा ही अच्छा समय है। इनकी अपनी ग्रहस्थिति के अनुशार साधारण तैयारी के द्वारा इन्हें चुनावी समर में पराजित कर पाना विरोधियों के लिए अत्यंत कठिन होगा।
दूसरी बात आम आदमी पार्टी की है इस पार्टी में अरविंद जी के विरोध में भड़कने वाले असंतोष के कारण इस दल का कोई सबल आस्तित्व बन पाने से पहले ही काल्पनिक ईमानदार वाद बिखर जाएगा! दिल्ली के चुनावों में उनकी सामर्थ्य उनकी आशा की अपेक्षा बन भी सकती है फिर भी उसे बरक़रार रख पाना कठिन होगा।इसलिए ज्योतिषीय दृष्टि से इनसे भयभीत होने की आवश्यकता भाजपा को नहीं है किन्तु लौकिक दृष्टि से ये लोग भी वोट तो भाजपा का ही काटेंगे ये भाजपा का निजी नुकसान आम आदमी पार्टी के कारण होगा!
इन सभी बातों को भाजपा अपनी संगठनात्मक कमजोरियों के कारण ही श्रीमती शीला दीक्षित जी से आगामी चुनावों में पिछड़ते हुए फिलहाल अभी तो दिख रही है।यदि ऐसा हो ही गया तो इसका श्रेय मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित जी की कार्यकुशलता को कम एवं विपक्षी दलों की शिथिल चुनावी तैयारियों को अधिक देना होगा ।
वैसे भी दिल्ली भाजपा जब तक अपने पाँचों बिजय बीरों को दिल्ली में एक साथ लगभग समान अधिकारों के साथ जमाए रखेगी तब तक दिल्ली भाजपा के हाथ में मुख्यमंत्री पद पहुँचना अत्यंत कठिन लगता है !श्रीमान साहब सिंह वर्मा जी के बाद दिल्ली भाजपा में कोई सर्वसम्मान्य नेता उभर ही नहीं पाया।दिल्ली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर इन पाँचों बिजय बीरों की समान सहभागिता के कारण आपसी खींचतान से जूझ रही पार्टी का कोई प्रमुख चेहरा नहीं बन पाया जिसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर जनता उनके पक्ष में मतदान करे।यही वो प्रमुख कारण है जिससे दिल्ली भाजपा लम्बे समय से दिल्ली की सत्ता से बाहर है अन्यथा सोच कर देखा जाए तो अतीत में भाजपा से ऐसी कौन सी बड़ी भूल हुई है जिसका दंड भाजपा को आज तक सत्ता से दूर रहकर मिल रहा है?
जनता में भाजपा के विरुद्ध कोई आक्रोश भी नहीं दिखता है भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाकर भी भाजपा को सत्ता से नहीं हटाया गया था।केवल आलू प्याज की महँगाई पर भाजपा को सत्ता छोडनी पड़ी थी।यदि यही एक कारण भाजपा के सत्ता से हटने का था तो दिल्ली के काँग्रेस शासन में तो ऐसा अक्सर होता रहता है वर्तमान में भी महँगाई चर्म सीमा पर है फिर भी इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहे काँग्रेस शासन के विरुद्ध कोई लहर बनती नहीं दिख रही है!आखिर इसका कारण क्या है क्यों दिल्ली में भाजपा रही अब तक सत्ता से दूर और आगे आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए क्या विशेष हो पाएगा?
(इस विषय में और अधिक जानकारी के लिए Delhi V.J.P. ke 4 Vijay नाम से हमारा लेख Google पर सर्च करके पढ़ा जा सकता है।)
अतःकहा जा सकता है कि भाजपा की दिल्ली विजय के लिए आवश्यक है कि इन विजयों में से कुछ विजय महानुभावों का कार्यस्थल बदला जाना चाहिए! भले ही उन्हें भाजपा अपने केन्द्रीय कार्यक्रमों में उनकी सेवाओं का सदुपयोग करे।
दूसरा एक उपाय और है कि इन पाँचों विजय महानुभावों से वरिष्ठ,प्रभावी,लोकप्रिय एवं जनता की दृष्टि में विश्वसनीय कोई ऐसा व्यक्ति केंद्रीय भाजपा की ओर से आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया जाए जिसके तत्वाधान में प्रसन्नता पूर्वक पाँचों विजय पूर्ण मनोयोग से काम करने को तैयार हो जाएँ तो आगामी चुनावों में विजयी हो सकती है भाजपा !यह भी संभव है कि ये लोग ज्योतिष की महत्ता को समझते हुए निजी महत्वाकांक्षाएँ छोड़कर निजी भेदभाव भूल कर केवल पार्टी को विजय दिलाने के लिए कार्य करें तो भी आ सकती है सत्ता में भाजपा? यदि इस प्रकार के तालमेल पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो दिल्ली के आगामी चुनावों में भाजपा की सफलता संदेहास्पद मानी जानी चाहिए!
इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दिल्ली के पाँचों विजयों को एक साथ दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया नहीं जा सकता और इनमें से आगे पीछे कोई बनना नहीं चाहेगा!यदि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आगे लाया जाएगा तो ये पाँचों विजय उसका दोष भी आपस में ही एक दूसरे पर ही मढेंगे जिसका चुनावी नुकसान भाजपा को ही होगा और फायदा विरोधी पार्टी अर्थात कांग्रेस को होगा इसलिए भाजपा की ओर से इन पाँचों विजयों को पार्टी के प्रति समर्पित करने के लिए यदि गंभीर प्रयास नहीं किए जाते तो काँग्रेस अर्थात शीला दीक्षित जी को पराजित कर पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा!
वैसे भी ज्योतिषीय दृष्टि से शीला दीक्षित जी का कई वर्ष तक अच्छा ही अच्छा समय है। इनकी अपनी ग्रहस्थिति के अनुशार साधारण तैयारी के द्वारा इन्हें चुनावी समर में पराजित कर पाना विरोधियों के लिए अत्यंत कठिन होगा।
दूसरी बात आम आदमी पार्टी की है इस पार्टी में अरविंद जी के विरोध में भड़कने वाले असंतोष के कारण इस दल का कोई सबल आस्तित्व बन पाने से पहले ही काल्पनिक ईमानदार वाद बिखर जाएगा! दिल्ली के चुनावों में उनकी सामर्थ्य उनकी आशा की अपेक्षा बन भी सकती है फिर भी उसे बरक़रार रख पाना कठिन होगा।इसलिए ज्योतिषीय दृष्टि से इनसे भयभीत होने की आवश्यकता भाजपा को नहीं है किन्तु लौकिक दृष्टि से ये लोग भी वोट तो भाजपा का ही काटेंगे ये भाजपा का निजी नुकसान आम आदमी पार्टी के कारण होगा!
इन सभी बातों को भाजपा अपनी संगठनात्मक कमजोरियों के कारण ही श्रीमती शीला दीक्षित जी से आगामी चुनावों में पिछड़ते हुए फिलहाल अभी तो दिख रही है।यदि ऐसा हो ही गया तो इसका श्रेय मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित जी की कार्यकुशलता को कम एवं विपक्षी दलों की शिथिल चुनावी तैयारियों को अधिक देना होगा ।
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