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Sunday, November 24, 2013

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से प्रश्न ! जरूर पढ़ें -

     माननीय मनमोहन सिंह जी से विनम्र निवेदन !

   आपके मंत्रिमंडल के द्वारा पास किए गए किसी बिल को बकवास बताते हुए राहुल गाँधी जी ने जिस दिन सरकार को लताड़ लगाई थी जिसके बाद सरकार का दिमाग कुछ ठनका और अपना बिल वापस ले लिया किन्तु शिक्षा से जुड़े होने के नाते व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में वो ढंग बहुत बुरा लगा हो सकता है कि सबको ही लगा हो या कुछ लोगों को अच्छा भी लगा हो मैं नहीं जानता !

      आप जैसे सुयोग्य व्यक्ति के निर्णय को मीडिया के सामने जितने  अपमान पूर्ण ढंग से न केवल नकारा  गया अपितु बिना किसी ना नुकुर के आपको उस निर्णय से पीछे हटने के लिए बाध्य किया गया और आप बिना किसी सामाजिक प्रतिक्रिया के हटे भी !यह सब मैं क्या किसी भी आत्म सम्मान से जीने की ईच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए सुनना सहना सब कुछ बहुत कठिन था, हो सकता है कि आप ऐसी परिस्थितियों के पहले से ही अभ्यासी रहे हों किन्तु मीडिया के सामने पहली बार इस रूप में यह सब देखकर बुरा लगना  स्वाभाविक था!इन परिस्थितियों से प्रकटे प्रश्नों को शिक्षित भारतीय नागरिक होने के नाते मैं सामजिक रूप से आपसे पूछना चाहता हूँ !

   प्रधानमंत्री जी ! क्या कभी आपको ऐसा नहीं लगता कि आप अपने बल बूते पर यदि ग्राम प्रधानी का चुनाव भी जीतने की हैसियत नहीं रखते हैं तो फिर दूसरे के कह देने मात्र से आपको अचानक ऐसा क्यों लग गया कि आपको  प्रधानमंत्री बन जाना चाहिए!यह कितना और कहाँ तक उचित है? जब सोनियाँ जी को ही  देखकर लोग  वोट देते हैं आपको तो देते नहीं हैं फिर आप बीच में क्यों टपक पड़ते हैं! इसलिए आप लोकतांत्रिक दृष्टि से चुने गए जनता के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री कैसे कहे या माने जा सकते हैं?

    माना कि प्रधानमंत्री ऐसा नाम रखने के लिए सोनियाँ जी को तलाश थी किसी  दबे- कुचले,लाचार बेचारे,स्वाभिमान विहीन और उनके प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति की,जिसका नाम प्रधानमंत्री रखकर वो इसी नाम से उसे पुकार सकें ताकि उनकी अपनी चौधराहट चलती रहे यहाँ तक तो ठीक है किन्तु उनकी आधीनता इस प्रकार से स्वीकार करने की आप की मजबूरी क्या थी मान्यवर ?

    आप तो सुशिक्षित हैं लोग आपको ईमानदार  मानते हैं और आप हैं भी!वैसे भी आप जैसे भले व्यक्ति के लिए ईश्वर का दिया हुआ इतना सुयश जीने के   लिए पर्याप्त नहीं था क्या कि आपकी सरकार पर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लगे जिनमें  कुछ मंत्रियों को जेल भी जाना पड़ा, फिर भी लोग आज भी आपकी ईमानदारी पर भरोसा करते हैं ?

    आदरणीय  प्रधानमंत्री जी ! आखिर क्या और कितना जरूरी था सोनियाँ जी के द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री नामकरण संस्कार में अकारण इस प्रकार से आपका आत्म समर्पण कर देना ?

     खैर, और जो हो सो हो आप कुछ तो सोच कर ही सम्मिलित हुए होंगे किन्तु एक बात तो है ही  कि यदि आप प्रधानमंत्री न बने होते तो आप में जो सद्गुण हैं उनके बल से आयु पूर्ण होने पर आप गौरव पूर्वक मर भी सकते थे किन्तु आप ऐसे लोगों के कुसंग का शिकार बने कि अब आपको वह सौभाग्य भी नसीब होते नहीं दिख रहा है !आपको भी इन बातों का पश्चात्ताप रहेगा ही ! 

     आखिर ऐसा हो भी क्यों न !आपका बुढ़ापा था आपने तो चाटुकारिता पूर्वक या जैसे तैसे हाथ पैर जोड़ते हुए मानापमान सहकर भी  काट लिया अपना बुढ़ापा प्रधानमंत्री कहलाकर ही सही !किन्तु आपके इस शासन काल में आपकी प्राशासनिक क्षमता के आभाव में जिनकी जवानी बर्बाद हुई वे आपको क्यों नहीं कोसेंगे आखिर दस वर्ष का समय थोड़ा तो नहीं होता आपकी अक्षमता के कारण बढ़ी महँगाई में जिन बच्चों  का बचपन बर्बाद हुआ, मान्यवर!  वे क्यों न  कोसें आपको?जो बलात्कारों के शिकार हुए वे कैसे भूल जाएँ अपनी पीड़ा ?

   आपकी कृपा पूर्ण अक्षमता से  देश में बलात्कार ,भ्रष्टाचार आदि सब कुछ तो छाए रहे! सैनिकों के शिर काटे गए!क्या क्या नहीं हुआ आपके कलुषित  शासन काल में ?महोदय, आपके रूप में सारे देश ने देखा है कि स्वाभिमान विहीन जब एक सुशिक्षित सिंह लाचार और बेचारा होता है तो उसके दुष्परिणाम किस किस रूप में भोगने पड़ते हैं देश और समाज को!धन्यवाद !!!

                            - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान


  

 


 

 



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