पांडव केवल अपने को ईमानदार नहीं समझते थे और न ही उन्होंने ईमानदारी की कोई टोपी लगा रखी थी फिर भी उनकी ईमानदारी की मिशाल आज तक दी जाती है उन्होंने तो भिक्षा के सहारे जीवन यापन की बात तक सोच ली थी किन्तु भाइयों से युद्ध टालना चाहते थे फिर भी माता की बात मान कर उन्होंने राज्याधिकार के लिए अपना रुख शक्त किया था! किन्तु यहाँ अरविन्द जी के विरोध में ऐसी हवा बनती दिख रही है कि जैसे अरविन्द केजरीवाल एवं उनकी सारी रामलीला मंडली जो सारी बातें अब कह रही है वो एक नई आशंका को जन्म दे रही हैं ।
अब ऐसा लगने लगा है कि आम आदमी पार्टी सत्ता के लिए बहुत परेशान है उसकी बेचैनी इस बात से भी समझ में आ रही है कि दुर्योधनी अहंकार में डूबे इन सत्तालु लोगों ने उस समय सीधे साधे अन्ना हजारे को बरगलाकर जन लोक पाल के नाम पर उनसे ऐसी ऐसी शर्तें रखवाई थी जिनका एक बार में ही पालन सम्भव न था ये उस तरह का प्रयोग है कि न शर्तें पूरी होंगी और न लोकपाल बन पाएगा औरयदि ऐसा न हो पाया तो हम लोग सभी राजनैतिक दलों को चोर चोर चिल्लाएँगे जनता उस पर भरोसा कर लेगी और आम आदमी पार्टी जीत जाएगी !सम्भवतः इसीलिए अन्ना हजारे,किरण वेदी आदि की परवाह न करते हुए वो प्रयोग दिल्ली चुनावों में इन्होंने किया भी जिसमें वे सफल भी हुए! अब इसके बाद वो सफलता इनसे सँभाली नहीं जा रही शर्तों के लती इन शर्तासुरों ने लोकपाल की ही तरह ही फिर न पूरी होने वाली अठारह शर्तें रखीं यहाँ भी वही भावना कि जो पार्टी इन्हें अपना समर्थन देना चाहे वो पहले मुद्दों सहित अपनी आत्म हत्या कर ले इसके बाद इन शर्तासुरों को समर्थन दे ऐसा कोई क्यों करे किसी की क्या मजबूरी है लिहाजा प्रदेश दूसरे चुनावी खर्चों से जूझने के लिए तैयार है यदि दूसरे चुनावों में भी निर्णय न हो सका तो तीसरा आदि आदि !क्या यह व्यवहारिक है ?
अन्ना हजारे की परवाह न करते हुए जैसे इन्होंने राजनैतिक पार्टी बना ली चुनाव लड़ा फिर किरण वेदी की सरकार बनाने सम्बन्धी सलाह को न मानना,प्रशांत भूषण कि बात को उनकी निजी राय
जिससे करने उनके आचरण और व्यवहार
अब ऐसा लगने लगा है कि आम आदमी पार्टी सत्ता के लिए बहुत परेशान है उसकी बेचैनी इस बात से भी समझ में आ रही है कि दुर्योधनी अहंकार में डूबे इन सत्तालु लोगों ने उस समय सीधे साधे अन्ना हजारे को बरगलाकर जन लोक पाल के नाम पर उनसे ऐसी ऐसी शर्तें रखवाई थी जिनका एक बार में ही पालन सम्भव न था ये उस तरह का प्रयोग है कि न शर्तें पूरी होंगी और न लोकपाल बन पाएगा औरयदि ऐसा न हो पाया तो हम लोग सभी राजनैतिक दलों को चोर चोर चिल्लाएँगे जनता उस पर भरोसा कर लेगी और आम आदमी पार्टी जीत जाएगी !सम्भवतः इसीलिए अन्ना हजारे,किरण वेदी आदि की परवाह न करते हुए वो प्रयोग दिल्ली चुनावों में इन्होंने किया भी जिसमें वे सफल भी हुए! अब इसके बाद वो सफलता इनसे सँभाली नहीं जा रही शर्तों के लती इन शर्तासुरों ने लोकपाल की ही तरह ही फिर न पूरी होने वाली अठारह शर्तें रखीं यहाँ भी वही भावना कि जो पार्टी इन्हें अपना समर्थन देना चाहे वो पहले मुद्दों सहित अपनी आत्म हत्या कर ले इसके बाद इन शर्तासुरों को समर्थन दे ऐसा कोई क्यों करे किसी की क्या मजबूरी है लिहाजा प्रदेश दूसरे चुनावी खर्चों से जूझने के लिए तैयार है यदि दूसरे चुनावों में भी निर्णय न हो सका तो तीसरा आदि आदि !क्या यह व्यवहारिक है ?
अन्ना हजारे की परवाह न करते हुए जैसे इन्होंने राजनैतिक पार्टी बना ली चुनाव लड़ा फिर किरण वेदी की सरकार बनाने सम्बन्धी सलाह को न मानना,प्रशांत भूषण कि बात को उनकी निजी राय
जिससे करने उनके आचरण और व्यवहार
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