भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
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Thursday, January 30, 2014
काँग्रेस राहुल और सरकार का 'कृपा कारोबार' आखिर कब तक सहा जाएगा ?
यदि राहुल इतने ही काबिल हैं तो स्वयं क्यों नहीं सँभालते हैं देश की कमान आखिर क्या भय है उन्हें ?जनता के प्रति कोई तो जवाबदेय होता आज
तो कोई नहीं है!ये तो नरसिंहा राव जी की तरह ही होगा कि सारे अप्रिय
निर्णयों का ठीकरा मनमोहन सिंह जी पर फोड़ा जाएगा और खानदान विशेष की
स्वच्छता पवित्रता बचा लेंगे ऐसे दुमदार चाटुकार लोग !
यदि यह सब कुछ ऐसा ही है तो इसे लोकतंत्र कहना कहाँ तक ठीक होगा !क्या इस देश का यही लोकतंत्र है जिस पर गर्व किया जाए !खैर ,और जो भी हो ठीक ही है मेरा निवेदन मात्र इतना है कि देशवासी भी यदि आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान पूर्वक जीवन जीना चाहते हैं तो उनकी भी कुछ जिम्मेदारी बनती ही है उन्हें भी सोचना होगा कि देश की आजादी पर केवल किसी एक व्यक्ति या परिवार का ही अधिकार तो नहीं है और न ही केवल एक परिवार की ही कुर्वानियों से आजादी मिली है! इस देश को अपना समझकर ही इसे स्वतन्त्र कराने के लिए सारे देशवासियों ने अपने अपने बलिदान दिए थे उनका कतई उद्देश्य नहीं रहा होगा कि उनकी संतानों को गैस सिलेंडरों जैसी छोटी एवं सर्वाधिक जरूरी चीजों के लिए के कोई राहुल इस प्रकार का खिलवाड़ या अपनी मन मानी करेगा!
Tuesday, January 28, 2014
अभिवादन पूर्वक कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आपका बहुत बहुत आभार !
बाबा विश्वनाथ जी की कृपा से आगामी चुनावों में भारतीय संस्कृति ,संस्कारों एवं सात्विक सरकारों के सृजन जैसे पुण्य प्रयासों के द्वारा आपका अमित यशोविस्तार होवे !
ईश्वर आपको वह शक्ति एवं सात्विकता प्रदान करे जिससे कि असंख्य असहायों की जीवनदायिनी माता काशी की पुण्य भूमि तथा गंगा यमुना के पवित्र प्रवाह से सुसिंचित पावन हो चुका अपना पुण्यप्रदेश आपके अवतरण तथा आचार विचार व्यवहार एवं कर्तव्य निष्ठा पर गर्व कर सके!
हर हर महादेव !जय जय काशी विश्वनाथ !जय माँ अन्नपूर्णा ,जयतु पुण्य सलिला उत्तर वाहिनी माँ गंगा !!
बाबा विश्वनाथ जी की कृपा से आगामी चुनावों में भारतीय संस्कृति ,संस्कारों एवं सात्विक सरकारों के सृजन जैसे पुण्य प्रयासों के द्वारा आपका अमित यशोविस्तार होवे !
ईश्वर आपको वह शक्ति एवं सात्विकता प्रदान करे जिससे कि असंख्य असहायों की जीवनदायिनी माता काशी की पुण्य भूमि तथा गंगा यमुना के पवित्र प्रवाह से सुसिंचित पावन हो चुका अपना पुण्यप्रदेश आपके अवतरण तथा आचार विचार व्यवहार एवं कर्तव्य निष्ठा पर गर्व कर सके!
हर हर महादेव !जय जय काशी विश्वनाथ !जय माँ अन्नपूर्णा ,जयतु पुण्य सलिला उत्तर वाहिनी माँ गंगा !!
Thursday, January 23, 2014
अमर सिंह एवं अमिताभ बच्चन का ज्योतिषीय विवाद !
अमिताभबच्चन एवं अमरसिंह की मधुर मित्रता आज भी चल सकती है !
चूँकि अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- आजमखान अमिताभबच्चन अनिलअंबानी अभिषेक बच्चन आदि।
यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।
जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।
अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
इसीप्रकार जैसे -
अन्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी
जब को एक साथ नहीं रखा जा सका तो नितीशकुमार-नरेंद्रमोदी-नितिनगडकरी को एक साथ कैसे रखा जा सकता था? मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही नितिनगडकरी को पहले ही इसी के तहत अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था ।इसके अलावा जो कारण बनाए गए वो सब तो राजनीति में चला ही करता है।
इसीप्रकार फिर मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही नितीशकुमार जी को भी राजग से हटना पड़ सकता है। अभी भी समय है नितीशकुमार जी एवं नरेंद्रमोदी जी को आमने सामने पड़ने एवं पारस्परिक वाद विवाद से बचाया जाना चाहिए।श्री शरद यादव जी एवं श्री राजनाथ सिंह जी को आगे आकर आपसी बातचीत से राजग की रक्षा कर लेनी चाहिए!
इसी प्रकार जैसे भारत वर्ष में भाजपा राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या वाले एवं अटलजी से कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बनते रहे हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं ।जैसे - दिल्ली में ही देखें भाजपा के चार विजयों के समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य के लिए चिंता प्रद हैं।इसी कारण से पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है। विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
इसी प्रकारऔर भी उदहारण हैं -
कलराजमिश्र-कल्याण सिंह
ओबामा-ओसामा
अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी
मायावती-मनुवाद
नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद
परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान
भाजपा-भारतवर्ष
मनमोहन-ममता-मायावती
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव
अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन
प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन आदि और भी हैं -
अन्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी -
अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे,
अरविंदकेजरीवाल,असीमत्रिवेदी एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त
किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के
विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास
हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से
अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी
नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात
पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही
नहीं थी। दूसरी ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन
है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक
रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे। अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले
लोग ही अन्नाहजारे से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग
ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
रामदेव -
रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।
दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया।
इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय प्राचीन विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी लेना चाह रहे हों।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है
Monday, January 20, 2014
प्यार के नाम पर गंदे लड़कों का साथ क्यों देती हैं लड़कियाँ ?प्रेमी लड़कों के द्वारा की गई अश्लील हरकतों का लड़कियाँ क्यों नहीं करती हैं विरोध ?
विवाह ,उपविवाह(प्यार) इसी प्रकार मैरिज और सब मैरिज लड़कियों के सहयोग के बिना संभव ही नहीं हैं और उसमें किसी भी प्रकार का संकट होते ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है संपूर्ण पुरुष समाज और उठने लगती है महिलाओं की सुरक्षा की माँग आखिर क्यों ?
हर क्षेत्र में तरक्की करने वाली लड़कियाँ इस तथाकथित प्यार इस क्षेत्र में भी पीछे नहीं हैं फिर दोषी केवल पुरुष समाज ही क्यों ?वस्तुतः प्यार (उपविवाह या सबमैरिज) आवश्यकता पूर्ति के लिए किया गया समझौता मात्र है जो दोनों ओर से किया जाता है जब जिसकी आपूर्ति का कोई वैकल्पिक साधन भी बनने लगता है तब आपस में भड़कती बिनाश बह्नि वो कितना बड़ा बिनाश करे ये किसी के बश में नहीं है फिर तो सहना ही होता है किंतु कहाँ कितना और कैसे बिनाश संभव है और उससे बचा कैसे जाए इसे जानने का केवल एक ही रास्ता है या तो किसी एक समझदार शुभ चिंतक की शरण में ठहर कर अपने घाव सहलाते हुए संतोष करने का प्रयास करे इसके साथ साथ या अलावा बचाव का दूसरा सबसे अधिक कारगर एक और उपाय है उसे जानने के लिए पढ़ें यह लिंक-seemore... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/03/blog-post_52.html
तथाकथित प्यार में आपसी सहमति के नाम पर सेक्स में सहमति क्यों ?आखिर विवाह तक की सबर क्यों नहीं होती ?दुनियाँ के सबसे बड़े हितैषी माता पिता से भी आखिर क्यों छिपाया जाता है जीवन का इतना बड़ा फैसला ?जो अपने माता पिता के विश्वास को तोड़ सकता है वो किसी और को बक्सेगा क्या ?युवा अवस्था की पीड़ा से परेशान तरुणाई विवाह होने तक के लिए करती है एक उपविवाह(प्यार) अर्थात sub marriage इसके द्वारा शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है और शिक्षा या व्यापार में सुस्थापित स्तर हो जाने के बाद होता है उस उपविवाह का विसर्जन किसी किसी का विवाह बाद भी विसर्जन होते देखा गया है कुछ लोगों का यही विसर्जन बलिप्रथा तक पहुँच जाता है कई लोग उपविवाह में भी च्वाइस खोजते हैं ऐसे लोग वास्तविक विवाहों तक पहुँचते पहुँचते कई बार कर चुके होते हैं उपविवाहों का विसर्जन और ले दे चुके होते हैं एक दूसरे की अपनी या उनके अपनों की बलि !
सहमति से सेक्स को पुलिस रोके तो 'प्यार पर पहरा' और यदि न रोके और कोई दुर्घटना घट जाए तो 'बलात्कार या गैंगरेप' पुलिस आखिर करे तो क्या करे ?जब जब समाज में इस तरह की बहस चलती है तब तब सहमति से सेक्स करने वाले लोग फैशन के नाम पर इसके समर्थन में उतर जाते हैं दूसरे लोग इसकी बुराई करने लगते हैं इनका काम तो केवल चर्चा करना होता है इसलिए चर्चा की और शांत हो गए किन्तु पुलिस क्या करे उसे तो प्रत्यक्ष रूप से कुछ करके दिखाना होगा वो क्या करे इन्हें रोके या न रोके !
सहमति से सेक्स या अश्लील हरकतें करने वाले जोड़े खोजकर ऐसी जगह में ही बैठते हैं जो बिलकुल सुनसान हो इसलिए वहाँ पुलिस आदि का तो छोड़िए आम आदमी का जाना आना ही नहीं होता होगा ऐसी जगहों पर वो लड़का प्यार करे या बलात्कार या हत्या ही कर दे तो कौन है उसे देखने या रोकने वाला ?तो ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियां उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?
ये तथाकथित प्यार के सम्बन्ध दोनों तरफ से झूठ बोलकर ही बनाए गए होते हैं इसलिए दो में से किसी का झूठ जब खुलने लगता है तो वो कुछ और दबाते दबाते कब गला ही दबा दे किसी का क्या भरोस ?अन्यथा यदि सच बोलते तो या तो प्यार नहीं होता या फिर सीधे विवाह ही होता तब तक वो अपनी बहती सेक्स भावना को रोक कर रखते किन्तु सेक्स के लिए बिल बिलाते घूमते जवान जोड़े आम समाज की परवाह किए बगैर ही राहों चौराहों गली मोहल्लों पार्कों ,मेट्रोस्टेशनों आदि सार्वजनिक जगहों पर भी कुत्ते बिल्लियों की तरह बेशर्मी पूर्वक वो सब किया करते हैं जो देखने वालों की दृष्टि से सभ्य समाज को शोभा नहीं देता है किन्तु इन्हें समझावे या रोके कौन ?
गैंग रेप की घटनाएँ भी आजकल अधिक रूप में घटने लगीं हैं जो घोर निंदनीय हैं और रोकी जानी चाहिए । इसमें कुछ और भी कारण सामने आए हैं जो विशेष चिंतनीय हैं एक तो वो जो लड़कियाँ सामूहिक जगहों पर अपनी सहमति से अपने साथ किसी प्रेमी नाम के लड़के को अश्लील हरकतें करने देती हैं या हँसते हँसते सहा करती हैं उन्हें देखने वाले सब नपुंसक नहीं होते ,सब संयमी नहीं होते ,सब डरपोक नहीं होते कई बार देखने वाले कई लोग एक जैसी मानसिकता के भी मिल जाते हैं वो यह सब देखकर कुछ करने के इरादे से उनका पीछा करते हैं मैटो आदि सामूहिक जगहों से हटते ही वो कई लड़के मिलकर उन्हें दबोच लेते हैं वो अकेला प्रेमी नाम का जंतु क्या कर लेगा फिर उस लड़की से उसका कोई विवाह आदि सामाजिक सम्बंध तो होता नहीं है जिसके लिए वो अपनी कुर्बानी दे वो तो थोड़ी देर आँख मीच कर या तो निकल जाता है या समय पास कर लेता है।अगले दिन सौ पचास रुपए किसी डाक्टर को देकर ऐसी ऐसी जगहों पर पट्टियाँ करा लेता है ताकि लड़की को दिखा सके कि उसके लिए वो कितना लड़ा है ऐसी दुर्घटनाएँ घटने के बाद यदि अधिक तकलीफ नहीं हुई तो ऐसे प्रेम पाखंडी बच्चे डर की वजह से घरों में बताते भी नहीं हैं और जो बताते भी हैं तो कुछ अन्य कारण बता देते हैं!
ऐसी घटनाएँ कई बार देर सबेर कारों में लिफ्ट लेने,या ऑटो पर बैठकर,या सूनी बसों में बैठकर,या अन्य सामूहिक जगहों पर की गई प्रेमी प्रेमिकाओं की आपसी अश्लील हरकतें देखकर घटती हैं यह नोच खोंच देखते ही जो लोग संयम खो बैठते हैं उनके द्वारा घटती हैं ये भीषण दुर्घटनाएँ !इनमें सम्मिलित लोग अक्सर पेशेवर अपराधी नहीं होते हैं।ये सब देख सुनकर ही इनका दिमाग ख़राब होता है ।
एक बात और सामने आई है कि आज कुछ लड़कियाँ कुछ निश्चित समय के लिए निश्चित एमाउंट अर्थात घंटों के हिसाब से धन लेकर शारीरिक सेवाएँ देने के लिए सहमति पूर्वक किसी लड़के के साथ जाती हैं उसमें उस नियत समय के लिए वह ग्राहक रूप लड़का लगभग स्वतन्त्र होता है उन्हें कहीं ले जाने के लिए! किन्तु उतने समय में उसे छोड़ना होता है। ऐसी परिस्थितियों में उस लड़की को बिना बताए ही वह लड़का उस समय में ही कंट्रीब्यूशन के लिए अपने साथी कुछ और लड़कों को साझीदार बना लेता है जिससे वो लड़के आपस में आर्थिक कंट्रीब्यूशन कर लेते हैं और कम कम पैसों में निपट जाते हैं किन्तु पहले करार इस प्रकार का न होने के कारण उस लड़की को बुरा लगना स्वाभाविक ही है उसके सामने दो विकल्प होते हैं या तो वह चुप करके घर बैठ जाए या फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए कानून की शरण में जाए यदि वह कानून की शरण में जाती है तो सारी कार्यवाही गैंग रेप की तरह ही की जाती है यहाँ तक कि चिकित्सकीय रिपोर्ट भी उसी तरह की बनती है मीडिया में भी इसी प्रकार का प्रचार होता है!
इसीप्रकार आजकल कुछ छोटी छोटी बच्चियों के साथ किए जाने वाले बलात्कार नाम के जघन्यतम अत्याचार देखने सुनने को मिल रहे हैं जिनका प्रमुख कारण अश्लील फिल्में तथा इंटर नेट आदि के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही अश्लील सामग्री आदि है आज जो बिलकुल अशिक्षित मजदूर आदि लड़के भी बड़ी स्क्रीन वाला मोबाईल रखते हैं भले ही वह सेकेण्ड हैण्ड ही क्यों न हो ?होता होगा उनके पास उसका कोई और भी उपयोग !क्या कहा जाए!
इसीप्रकार के कुछ मटुक नाथ टाइप के ब्यभिचारी शिक्षकों ने प्यार की पवित्रता समझा समझाकर बर्बाद कर डाला है बहुतों का जीवन !
बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में पी.एच.डी. जैसी डिग्री हासिल करने के लिए लड़कियों को कई प्रकार के समझौते करने पड़ते हैं यदि गाईड संयम विहीन और पुरुष होता है तो !क्योंकि शोध प्रबंध उसके ही आधीन होता है वो जब तक चाहे उसे गलत करता रहे !वह थीसिस उसी की कृपा पर आश्रित होती है ।
ज्योतिष के काम से जुड़े लोग पहले मन मिलाकर सामने वाले के मन की बात जान लेते हैं फिर उसका मिस यूज करते देखे जाते हैं।
चिकित्सक लोग बीमारी ढूँढने के बहाने सब सच सच उगलवा लेते हैं फिर ब्लेकमेल करते रहते हैं ।इसी प्रकार से कार्यक्षेत्र में कुछ लोग अपनी जूनियर्स को डायरेक्ट सीनियर बनाने के लिए कुछ हवाई सपने दिखा चुके होते हैं उन सपनों को पकड़कर शारीरिक सेवाएँ लेते रहते हैं उनकी !किन्तु जब महीनों वर्षों तक चलता रहता है ऐसा घिनौना खेल, किन्तु दिए गए आश्वासन झूठे सिद्ध होने लगते हैं तब झुँझलाहट बश जो सच सामने निकल कर आता है उनमें आरोप बलात्कार का लगाया जाता है किन्तु किसी भी रूप में आपसी सहमति से महीनों वर्षों तक चलने वाले शारीरिक सम्बन्धों को बलात्कार कहना कहाँ तक उचित होगा ?ऐसे स्वार्थ बश शरीर सौंपने के मामले राजनैतिकादि अन्य क्षेत्रों में भी घटित होते देखे जाते हैं वहाँ भी वही प्रश्न उठता है कि ऐसी परिस्थितियों में कैसे रुकें बलात्कार ?
भ्रष्टाचार समाप्त होता नहीं है या किया नहीं जाता है या करने की इच्छा ही नहीं है !
जाति क्षेत्र सम्प्रदाय देखकर गरीबत नहीं आती है तो इनके आधार पर आरक्षण क्यों दिया जाता है ?
सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं जो जाँच कर रहे होते हैं इसलिए क्लीनचिट देने में ही भलाई होगी और जब विभागीय जाँच में ही कुछ नहीं निकला तो उस जाँच को बेकार में आगे क्यों बढ़ाना ?
इसी प्रकार हर प्रदेश की सरकारें अपने अपने यहाँ अपने अपने हिसाब से भ्रष्टाचार की जाँच करवाती हैं वो भी क्लीन चिट देती हैं अन्यथा उसके छींटे उन सरकारों तक पहुँचने लगते हैं इसीप्रकार केंद्र सरकार ऐसे ही छीटों से खुद बचती रहती है आखिर वो लोग भी तो समझदार हैं !हमारे कहने का अभिप्राय है कि हर विभाग में भ्रष्टाचार है और मजे की बात ये है कि ये बात सबको पता है फिर भी जाँच होती है उस पर होने वाला खर्च ही बचा लिया जाना चाहिए जब यह पहले से ही सबको पता है कि इसमें निकलना कुछ है नहीं!आखिर भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए जाँच का ड्रामा होता ही क्यों है यदि इरादे वास्तव में भ्रष्टाचार समाप्त करने के हों तो बिना किसी बड़ी कार्यवाही के हर विभाग में औचक निरिक्षण क्यों नहीं किया जाता !या हर विभाग में उसके कस्टमर बन कर क्यों नहीं भेजे जाते हैं अधिकारी या अन्य जिम्मेदार लोग !किन्तु लाख टके का सवाल ये है कि तब भ्रष्टाचार की जाँच के लिए होने लगेगा भ्रष्टाचार!उसके लिए फिर कराइ जाए एक और जाँच !
भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण सरकारी विभागों में अयोग्य लोगों को योग्य जगह बैठाया जाना है इसकी जड़ में जाति क्षेत्र सम्प्रदायों के आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण है !आरक्षण के द्वारा गधों को घोड़े बनाने का खेल जब तक चलता रहेगा तब तक कैसे और क्यों बंद होगा भ्रष्टाचार ! वस्तुतः जब जाति क्षेत्र सम्प्रदाय देखकर गरीबत नहीं आती तो इनके आधार पर आरक्षण क्यों दिया जाता है ? कोई अँधा बहरा लंगड़ा लूला अपाहिज चलने फिरने में असमर्थ बीमार बूढ़ा आदि हो तो चलो उसका सहयोग किया जाना जरूरी है किन्तु आरक्षण उनको जो सबकुछ कर सकते हैं किन्तु करना नहीं चाहते हैं आखिर क्यों करें जब सरकारें उनको सब कुछ देने हेतु हराम में आरक्षण देने के लिए उतावली जो घूम रही हैं इसलिए आरक्षण की अवधारणा ही भ्रष्टाचार पर आधारित है !
आरक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं वो तथ्य हीन हैं जैसे कि पुराने समय में दलितों का शोषण किया गया था !किन्तु कब कितना और किसके द्वारा किया गया था इसका कोई उत्तर नहीं मिलता है दूसरी बात जो दलित वर्ग सवर्णों की अपेक्षा बहुत अधिक संख्या में तब भी रहा होगा उसने अपना शोषण सहा क्यों होगा ?यदि सहा तो उसके कारण क्या थे ?वैसे भी आज बाप का कर्जा तो बेटा देता नहीं है तो पुरानी पीढ़ियों का कर्ज क्यों चुकावे सवर्ण समाज !ऐसे काल्पनिक ऋण को आरक्षण नीति के द्वारा जबर्दस्ती क्यों वसूला जा रहा है !इसलिए किसी भी कामचोर व्यक्ति का भिक्षा देकर पेट तो भरा जा सकता है किन्तु सम्मान पाने के लिए उसे अपना ही बलिदान करना पड़ेगा !
कुल मिलाकर आरक्षण नाम का इतना बड़ा भ्रष्टाचार जब सरकारी नीतियों में सम्मिलित किया जा सकता है तब भ्रष्टाचार समाप्त करने का ड्रामा भले ही कोई सरकार करे किन्तु इसे समाप्त कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी होगा !
आज कुछ सरकारी कर्मचारियों ने अपने को देश वासियों से बिलकुल अलग कर रखा है भ्रष्टाचार का कोई भी मौका मिलते ही उन्हें डसने में देर नहीं करते हैं इसके बाद भी उन्हें महँगाई ,भत्ता और भी जाने क्या क्या दिया करती हैं सरकारें !उनका बेतन आम जनता की आमदनी की अपेक्षा इतना अधिक होता है फिर और भी बढ़ाया करती हैं सरकारें! न जाने उनके किस आचरण पर फिदा रहती हैं भारतीय सरकारें ? ये सरकारों के दुलारे लोग ऐसे धन से चौड़े हो रहे हैं विभागों में कुछ काम धाम तो करते नहीं हैं वहाँ कोई देखने सुनने वाला ही नहीं होता है हो भी तो कोई कहे ही क्यों उसका अपना कोई नुकसान तो हो नहीं रहा है भुगतना जनता को पड़ता है ! जहाँ इतनी ऐशो आराम हो फिर भी काम न करना पड़े तो वो लोग कुछ तो करेंगे ही!
कभी यूनिअन बनाएँगे धरना प्रदर्शन करके अपनी ऊल जुलूल माँगे मनवाएँगें!सरकार मानती भी है इससे उनका हौसला और बढ़ता है ।
यदि सरकार वास्तव में भ्रष्टाचार ख़त्म करना ही चाहती है तो सरकारी कर्मचारियों के ऐसे सभी संगठनों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए न केवल इतना ही अपितु गैर कानूनी घोषित कर देना चाहिए आखिर वो लोग सैलरी यूनियन बनाने ,धरना प्रदर्शन करने की लेते हैं या काम करने की !और उन्हें सीधे तौर पर बता दिया जाना चाहिए कि सरकारी व्यवस्था जो आपको दी जा रही है वो समझ में आवे तो काम करो अन्यथा घर बैठो !
इस प्रकार से उन्हें हटाकर नई नियुक्तियां कर देनी चाहिए जिससे बेरोजगारी घटेगी नए जरूरतवान् लोगों को काम मिलेगा वो उसकी कदर भी करेंगे मन लगाकर कामभी करेंगे इससे समाज का भी लाभ होगा काम की गुणवत्ता में सुधार होगा साथ ही छुट्टी करके गए पुराने कर्मचारियों का भी भला होगा उनके पास पैसा तो होता ही है उस पैसे से वो कोई धंधा व्यापार कर लेंगे काम करने के कारण वे भी शुगर आदि बीमारियों से बचेंगे भ्रष्टाचार में कमी आएगी समाज में एक दूसरे के प्रति सामंजस्य बढ़ेगा आदि आदि ।
इन विषयों में आप हमारे ये लेख जरूर पढ़ें -
दलितों के लिए आरक्षण या सम्मान?दोनों किसी को नहीं मिलते !
दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?
समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या? वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html
आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?
4 घंटे अधिक काम करने का ड्रामा !
आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !
जिसमें चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण
माँगेगा ही क्यों ?उसे अपनी कमाई और योग्यता का भरोसा होगा किसी और की
कमाई की ओर देखना ही क्यों? आरक्षण इससे ज्यादा कुछ है भी नहीं !
चूँकि राजनैतिक दलों को पता है कि देश में आरक्षण समर्थकों के वोट अधिक हैं औरsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html
अथ श्री आरक्षण कथा !
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख मिलेगी ?
चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैं।इस दृष्टि से भीख में दाल रोटी तो मिल सकती है किन्तु कोई
घी लगा लगा कर रोटी दे ऐसा उसे कैसे बाध्य किया जा सकता है।इसी प्रकार
शर्दी में ठिठुरते देखकर किसी को कुछ कपड़े तो भीख या सहयोग में मिल सकते
हैंsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख मिलेगी ?
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो । दूसरी ओर कुछ लोग सारी मुशीबत उठाकर भी ऊँचा पद पाने के लिए कठोर परिश्रम कर रहे हों ! ऐसे संघर्ष शील वर्ग को आरक्षण के माध्यम से आगे बढ़ने से रोकना न केवल अन्याय अपितु अपराध भी माना जाना चाहिए ।यदि यही छेड़खानी शिक्षा
को लेकर चलती रही तो क्यों कोई पढ़ेगा ?आखिर जो जिस लायक है उसे वो मिलना
नहीं है और जो जिसsee
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पहले नेताओं की संपत्ति जाँच तब हो आरक्षण की बात!
प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था कि आरक्षण एक प्रकार
की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के
पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना
चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।
यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html
आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की जाँच होनी चाहिए !
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख मिलेगी ?
प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था कि आरक्षण एक प्रकार
की भीख है किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के
पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना
चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।
यह बात सच है कि अमीर गरीब आदि सभीप्रकार के लोग हर वर्ग
में होते हैं।दुनियाँ में वैसे सभी काम सभी के लिए कठिन होते हैं
किंतु पढ़ाई उनमें सबसे कठिन काम है।जो लोग ईमानदारी से पढ़ाई करते हैं। मन
को सारे विकारों से दूर रखकर शिक्षा की ओर ले जाना कोई हँसी खेल नहीं है।और
काम तो विकारों के साथ भी कुछsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_4640.html
Monday, January 13, 2014
आम आदमी पार्टी को अरविन्द स्वयं छोड़ देंगे अन्यथा हटा दिए जाएँगे - डॉ. एस .एन.वाजपेयी-'ज्योतिष वैज्ञानिक' !!!
ज्योतिषीय कारणों से ध्वस्त होता दिख रहा है आम आदमी पार्टी के किले में अरविन्द का भविष्य!
जिस 'अ' अक्षर से अरविन्द केजरीवाल का नाम प्रारंभ होने के कारण सारे अ अक्षर वाले उन्हें बहुत अच्छे लगेंगे प्रारम्भ में पटरी भी अच्छी खाएगी और बाद में तगड़ी चोट देकर जाएंगे !जैसे - अमित त्रिवेदी ,अग्निवेष,अन्ना हजारे दूर हुए और जन लोक पाल बिल लोकसभा में पास होकर राज्य सभा में लटक गया क्योंकि वहाँ सत्ता पक्ष के अभिषेक मनु सिंघवी और विपक्ष के अरुण जेटली जी से अरविन्द या अन्ना को कोई उम्मीद करनी ही नहीं चाहिए थी फिर जब अरविंदर सिंह लवली के समर्थन से सरकार बनाई उससे भी अपयश ही होना था मैंने निजी तौर पर कई पत्र भी लिखे थे किन्तु कोई जवाब नहीं मिला इसके बाद जब आशुतोष, आदर्श शास्त्री,अलका लाम्बा ,अशोक अग्रवाल,अश्विनी उपाध्याय वा इनके अलावा और भी कई प्रभावी कार्यकर्ता अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाले साथ लिए गए हैं सबसे बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी का नाम भी अ अक्षर से ही प्रारम्भ है!एक ज्योतिष वैज्ञानिक होने के नाते ज्योतिष शास्त्रीय दृष्टि से मैं मान चुका हूँ कि इन सब अ अक्षरों के बीच अपमानित होते होते अरविन्द केजरी वाल जैसे नौकरी छोड़ आए सरकार छोड़ दी वैसे ही अपनी बनाई हुई पार्टी भी अतिशीघ्र ही छोड़ देंगे !
अरविन्द केजरी वाल के जीवन में कुछ और भी ऐसे ज्योतिष शास्त्रीय दोष हैं जिनके दुष्प्रभाव से उन्हें सतर्क रहना चाहिए !उचित होता कि इस दोष की शान्ति करा दी जाती और कुछ ज्योतिष शास्त्रीय सावधानियाँ भी बरती जातीं तो काफी कुछ सुधार सम्भव है !
वैसे भी अ अक्षर वालों के साथ अरविन्द अधिक दिन नहीं रह सकते अरविन्द को आम आदमी पार्टी में ज्योतिष की दृष्टि से समस्याएँ ही समस्याएँ हैं यहाँ तक कि अरविन्द स्वयं अपनी पार्टी के लिए किसी समस्या से कम नहीं हैं इसी प्रकार से पार्टी भी अरविन्द के लिए बहुत बड़ी समस्या है जब से पार्टी बनी तब से अरविन्द का सार्वजनिक गौरव गिरा है !और यदि 'अ' अक्षर से प्रारम्भ नाम वालों की संख्या आम आदमी पार्टी में बढ़ती है तो अरविन्द एवं उन अ अक्षर वालों के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी अ वालों की इस बर्चस्व की लड़ाई को शांत करने के लिए किसी निर्जीव विचार वाले या शिखंडी टाइप के विचार और स्वाभिमान विहीन व्यक्ति को सौंपा जाएगा पार्टी प्रमुख का पद जिसका कोई भविष्य ही नहीं होगा! इस बर्चस्व की लड़ाई में अरविन्द की उपेक्षा का मतलब होगा पार्टी की पूर्णाहुति के प्रयास !
(ज्योतिष वैज्ञानिकों की सलाह न मानने का कठिन दंड कई बड़ी राज नैतिक पार्टियाँ भोग रही हैं किन्तु योग्य ज्योतिष वैज्ञानिकों से मिलने में उन्हें शर्म लग रही है ज्योतिष के नाम पर शौकिया ज्योतिषी या पंडित पुजारियों ने उनका मन बहला रखा है और ऐसे चालाक नेता लोग गंगा नदी की जगह नालों में नहा कर खुश हो रहे हैं !मैं भी भविष्यवाणियाँ महीनों वर्षों पहले ब्लॉग पर लिख कर डाल चुका हूँ!)
आम आदमी पार्टी क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में सफल हो पाएगी ?अब इसका हल ज्योतिष से सोचना है आम आदमी पार्टीं में अभी तक के प्रकाश में आए नामों के अनुशार मनीष सिसोदिया एवं योगेन्द्र यादव ये दो लोग तो हर
परिस्थिति में अरविंद
केजरी वाल का सहयोग करते रहेंगे हाँ इतना अवश्य है कि ये अपना मन दबाकर साथ नहीं दे पाएँगे जहाँ तक इनका सम्मान सुरक्षित रहता जाएगा
वहाँ तक ये किन्तु परन्तु नहीं करेंगे इसलिए इनके साथ अरविन्द को लम्बी
योजनाएँ बनानी चाहिए ।
जहाँ तक बात प्रशांत भूषण और कुमार विश्वास की है इन दोनों लोगों की राजनैतिक तथा सामाजिक गम्भीरता के अभाव में अपनी कही हुई बातों एवं अपने अलोक प्रिय व्यवहारों के कारण ये न तो अरविन्द जी के साथ चल पाएंगे और न ही आम आदमी पार्टी के लिए ही हितकर रहेंगे !अपितु अरविन्द केजरीवाल के लिए समस्याएँ ही पैदा करते रहेंगे!
जहाँ तक बात संजय सिंह की है उनके साथ अरविन्द केजरीवाल जी का ताल मेल तभी तक चल पाएगा जब तक वो उनकी अच्छी बुरी हर बात में अपनी मोहर लगाते रहेंगे!वैसे भी ये अपना तो पूरा सम्मान चाहेंगे ही और अपनी हठवादिता का भी पूरा सम्मान कराना चाहेंगे यही स्थिति गोपाल राय जैसे महत्वांकांक्षी लोगों की भी है इन लोगों के साथ किसी संगठन को सफलता पूर्वक चला पाना अरविन्द जी के लिए बहुत टेढ़ी खीर होगी इनके मन में असंतोष होते ही ये चुप नहीं बैठेंगे उससे जो लपटें निकलेंगी उनसे अपने व्यक्तित्व को संवार सुधार कर सफलता पूर्वक आगे बढ़ाते रह पाना अरविन्द जी के लिए काफी कठिन होगा विशेष संयम पूर्वक ही उस स्थिति से निपट पाना सम्भव हो पाएगा!
इसके बाद एक जो सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी के लिए होगी वह है अ अक्षर! अर्थात अ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले नामों वाले लोगों का विरोध बहुत भारी री पड़ेगा यद्यपि भारी तो अन्य लोगों का विरोध भी पड़ेगा
अ अक्षर का विरोध दूसरे ढंग का होगा अर्थात अ अक्षर वाले जितने भी प्रभावी लोग आम आदमी पार्टी में जुड़ते जाएँगे पार्टी के उतने टुकड़े होते चले जाएँगे क्योंकि न तो वे आम आदमी पार्टी के सगे होंगे और न अरविन्द केजरीवाल के ही होंगे तथा न ही दूसरे अ अक्षर वालों के ही यहाँ तक कि अरविन्द केजरीवाल जी स्वयं आम आदमी पार्टी के विरुद्ध आचरण करते करते स्वयं एक दिन पार्टी पर न केवल बोझ बन जाएँगे अपितु कोई बड़ी बात नहीं होगी कि वे स्वयं ही पार्टी छोड़ कर चले जाएँ !
वह है आम आदमी पार्टी एवं उसके सर्वे सर्वा श्री अरविन्द केजरीवाल जी के साथ का तालमेल बनाना सबके साथ नहीं बन सकते हैं अरविन्द जी के ताल मेल।इसमें सबसे बड़ी कठिनाई उनसे होगी जिनका नाम अ - आ अक्षर पर है जैसे -अलका लाम्बा ,आदर्श शास्त्री ,आशुतोष, अशोक अग्रवाल एवं और भी वे लोग जिनका नाम अ - आ से प्रारम्भ होता है ये अरविन्द जी के लिए उस तरह की परेशानी पैदा करेंगे जैसी अरविन्द जी ने अन्ना हजारे जी के लिए खड़ी की थीं ये भी एक एक सिद्धांत बघारते हुए कब अपनी अपनी ढपली बजाते हुए अपनी अपनी दुकान अलग अलग खोलने लगें कुछ कहा नहीं सकता।
अन्ना आंदोलन के समय ही इंडियन पीस टाइम्स में मेरा एक लेख छपा था कि इस अन्ना आंदोलन को तीन जगहों से खतरा है अर्थात इसके तीन जोड़ हैं एक तो अन्ना-अरविन्द का ,तो दूसरा अन्ना - अग्निवेश का, तीसरा अन्ना- अमित त्रिवेदी का आदि आदि! यदि देखा जाए तो अन्ना के आंदोलन में ये तीन लोग ही विशेष चर्चित रहे और अलग हुए।अबकी बार अन्ना ने किसी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाले को मुख नहीं लगाया इसीलिए वो जो लक्ष्य लेकर आगे बढ़े थे उसे पूरा कर पाने में कामयाब रहे !
सम्भवतः यही कारण है कि अबकी बार अरविन्द केजरी वाल दिल्ली के चुनावों में अपने मिशन में कामयाब रहे क्योंकि उनके पास अभी तक कोई प्रभावी साथी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाला नहीं था !
अब अरविन्द केजरी वाल के लिए आवश्यक है कि यदि वो चाहते हैं कि उनके आमआदमी पार्टी आंदोलन को शाश्वत रूप से चलाया जा सके तो उन्हें भी अपने यहाँ बर्चस्व की लड़ाई नहीं पनपने देनी चाहिए साथ ही याद रखकर अपने अंदर की बातों को कम से कम चालीस प्रतिशत तक रहस्यमय बनाकर रखना चाहिए इस गैप को केवल और केवल अपनी आध्यात्मिकता से भरने का प्रयास करते रहना चाहिए!
वैसे भी आम आदमी पार्टी में स्वयं अरविन्द केजरी वाल ही संतुष्ट नहीं रहेंगे कोई बड़ी बात नहीं है कि उन्हें ही कोई और विकल्प चुनना पड़े !और अपनी ही बनाई हुई पार्टी के अंतर्कलह से ऊभ कर उन्हें खुद ही पार्टी छोड़नी पड़ती है !अभी तो यहाँ उनका मन इस कारण से भी लगा हुआ है कि दिल्ली के चुनावों में भाजपा की ज्योतिषीय लापरवाही उन्हें कुछ सीटें अधिक मिल गईं हैं जिससे देश विदेश में आम आदमी पार्टी एवं अरविन्द केजरी वाल का प्रचार प्रसार हो गया है इससे आम आदमी पार्टी वालों को लगने लगा है कि हमारी साख विशेष बढ़ गई है इससे हम लोक सभा चुनावों भी बहुत कुछ करने में सफल हो जाएँगे किन्तु ये आसान नहीं होगा क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी योग्यता के परिणाम स्वरूप नहीं जीती है इसमें प्रमुख दो कारण हैं एक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध आप का अन्ना के साथ चलाया गया आंदोलन से हुआ जन जागरण दूसरा लम्बे समय से सत्ता में रही कांग्रेस से लोगों का मोह भंग होना और विपक्षी दल भाजपा का आपसी कलह में जूझने के कारण सक्षम विकल्प न बन पाना इससे नाराज होकर जनता ने अपने वोट को किसी कुएँ में डालने की अपेक्षा आम आदमी पार्टी को भी टेस्ट करना चाहा है। यहाँ तक तो आम आदमी पार्टी की कोई अच्छाई दिखाई नहीं पड़ती है यदि इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी गुडबिल बनाने एवं बचाने में सफल हो जाती है जिसकी सम्भावनाएँ अत्यंत कम हैं फिर भी यदि ऐसा हो ही जाता है तो यह उसकी अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और उस पर खड़ा हो पाएगा उसका अपना मजबूत भविष्य !
दिल्ली के चुनावों में जो सकारात्मक परिस्थिति आम आदमी पार्टी को मिली वो अन्य जगह मिलना सम्भव नहीं हो पाएगा इसलिए वहाँ सफलता की आशा इतनी त्वरित नहीं की जानी चाहिए फिर भी शुरुआत बहुत अच्छी नहीं तो अच्छी जरूर है ! लोक सभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी अपनी शाख उतनी तेजी से बढ़ा एवं बचा पाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता है । अन्य पार्टियों से आए हुए नेता लोग आम आदमी पार्टी के लिए विशेष विश्वसनीय नहीं होंगे क्योंकि उनके मन में यदि त्याग की ही भावना होती तो वहीँ जमे रहते किन्तु वहाँ उनका कोई न कोई स्वार्थ बाधित जरूर हुआ है जिस लिए उन्होंने आप से संपर्क साधा है !
आगे पढ़ें -
क्या है अरविन्द का भविष्य आम आदमी पार्टी में ?see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/12/blog-post_7.html
Sunday, January 12, 2014
महिलाओं की सुरक्षा में चाहिए महिलाओं साथ ! ऐसे कैसे होगी सुरक्षा ?
महिलाओं की सुरक्षा पर सबका ध्यान कैसे बचे जान और कैसे सम्मान ?
महिलाओं के रहन सहन या खुले पन पर रोक के लिए किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो मीडिया से लेकर महिलाओं तक में बवाल मच जाता है आखिर क्यों ?कहने के लिए तो इतने तर्क दे दिए जाते हैं कहा जाता है कि महिलाओं की वेष भूषा पर किसी को आपत्ति क्यों होती है जबकि पुरुष वर्ग के लोग जब जहाँ जैसे चाहें वैसे या वैसी पोशाक पहनकर रह या जा सकते हैं उनसे कोई कुछ नहीं कहता !इस पर मेरा निवेदन है कि यदि पुरुषों से बराबरी ही करनी है तो ध्यान रखना चाहिए कि पुरुष अपनी सुरक्षा की मांग भी कभी नहीं करते हैं फिर महिलाओं को असुरक्षा का भय क्यों होता है ?हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि जिसे सुरक्षा दी जाती है उसे अपनी तरफ से भी सतर्क रहना होता है तब तो उसकी सुरक्षा हो भी सकती है किन्तु जो जैसे चाहे वैसे रहे जो चाहे सो पहने तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सरकार के साथ साथ उसकी भी होती है । एक छोटा सा उदहारण लेते हैं कि यदि कोई कीमती ज्वेलरी देर सबेर पहनकर किसी एकांतिक जगह पर जाता है तो माना कि उसकी सुरक्षा का दायित्व सरकार का ही होता है किन्तु किसी कारण से यदि सरकार न सुरक्षा दे सके तो अपने को भी इतनी गुंजाइस हो कि यदि कोई हमला कर ही देगा तो सह जाएंगे खो जाएगी तो भी सह जाएंगे जो इसके लिए तैयार होते हैं वे कहीं भी कैसे भी जाएं किसी को क्या आपत्ति ?उनके लिए तो ठीक है किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो उसे भी अपनी सीमा में रहकर ही व्यवहार करना चाहिए ताकि अनचाही पीड़ा से बचा जा सके ! ऐसे किसी भी नागरिक के लिए सरकार क्या करे!उसका अपना भी तो कुछ दायित्व होता है !
आज कालगर्ल,या सभी प्रकार के नाच गायन में रूचि लेने वाली तथा प्यार के कारोबार में सम्मिलित लड़कियों या महिलाओं की सुरक्षा कैसे की जाए इसका कोई उपाय ही नहीं सूझ रहा है । इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसे अधिकाँश केसों में ऐसी लड़कियों का शत्रु वही होता है जिस पर वे विश्वास करने लगती हैं जिस दिन इनका आपसी विश्वास टूटता है उसी दिन ये एक दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं इसलिए वो एक दूसरे के विरुद्ध कब कितना घातक आचरण करने लगें कैसे समझा जाए दूसरा किसका किससे कब विश्वास टूटा और वह उससे अपना बदला किस प्रकार से लेना चाहता है या लेगा इसकी जानकारी प्रशासन पहले से कैसे करे और कैसे करे उस पर नियंत्रण ?इन चित्रों को ही देखिए अपनी अपनी इच्छाओं की तृप्ति में लगे जोड़े क्या सरकार से पूछकर इस तरह की गतिविधियों में सम्मिलित होते दिख रहे हैं। इन्हें देखकर ये कैसे समझ लिया जाए कि इस तरह की गतिविधियों से केवल लड़के ही आनंदित हो रहे हैं है लड़कियों का कोई लेना देना ही नहीं है !मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि इन जोड़ों में अपने अपने घर से यहाँ एकांतिक मौज मस्ती के लिए लड़के लड़कियां अपनी अपनी इच्छा से समझौता पूर्वक आए हैं दोनों बराबर मस्ती कर रहे हैं दोनों के लिए बराबर रिस्क है फिर सुरक्षा की मांग केवल लड़कियों के लिए क्यों ?और इनकी सुरक्षा के लिए सरकार कहाँ कहाँ किस किस प्रकार से चौकीदार लगा दे?
सन 2013 की बहुत बड़ी पीड़ा रही हैं बलात्कारों की घटनाएँ! इसमें नेता ,उद्योग पति ,न्याय प्रणाली से जुड़े लोग,पत्रकारिता से जुड़े लोग ,पुलिस विभाग से जुड़े लोग हों या आम जनता से जुड़े लोग आदि तो मिल ही जाते हैं जिनमें सबसे जघन्यतम चिंतनीय घटनाओं में से एक धर्म से जुड़े लोगों का भी इन्हीं आरोपों में आरोपित होना है। इस तरह की दुर्घटनाओं का प्रचार प्रसार भी इस प्रकार से हुआ है कि सम्पूर्ण वर्ष में बलात्कार से जुडी ख़बरें प्रमुखता से दिखाई सुनाई एवं छापी जाती रही हैं।जन जागरण भी खूब हुआ आम समाज से लेकर प्रशासन से जुड़े लोग ,राज नेता लोग युवा वर्ग आदि सभी स्त्री पुरुष मय समाज इन बलात्कारों की समाप्ति के लिए सुचिंतित भी दिखा !न केवल इतना अपितु बलात्कारों को रोकने के लिए कठोर कानून भी बनाया गया !ये सब तो ठीक ही है । मुझे भी विभिन्न शहरों शिक्षण संस्थानों समाजों में रहने के अवसर मिले!जिसमें ज्योतिष एवं धर्म तथा समाज सुधार सम्बंधित कार्यों से जुड़े होने के नाते इसी विषय से जुड़े हमारे अनुभव में जो आम समाज में से दबे छिपे कुछ तथ्य सामने आए हैं वो मैं आप सभी के सम्मुख रखना चाह रहा हूँ। जहाँ तक मुझे लगता है कि जैसे किसी जीवित व्यक्ति के वजन को एक आदमी भी उठा सकता है किन्तु प्राण हीन शरीर वजनीला होने के कारण उठाया नहीं जाता है।
इसी प्रकार से हम सभी लोग यदि अपनी अपनी जीवन शैली में सुधार नहीं करते हैं और चाहते हैं कि सरकार हमें रखाती घूमे ऐसा कैसे सम्भव है !कहने का मतलब अपना स्वेच्छाचार जारी रखते हुए केवल पुलिस और कानून के भरोसे अपने को छोड़ देना ठीक नहीं होगा। अपनी सुरक्षा के लिए हमारी अपनी भी कुछ जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें हमें भी न केवल समझना होगा अपितु अपने रहन सहन बात व्यवहार वेष भूषा आदि में भी आवश्यक संयम बनाए रखना होगा तभी पुलिस और कानून से सुरक्षा की आशा रखना ठीक होगा ।
बनारस की बात है वर्षों से टूटी पड़ी एक बिल्डिंग थी, भूत प्रेत के भय से उसके अंदर कोई जाता आता नहीं था। एक दिन एक लड़की लड़के का जोड़ा एकांत की तलाश में उसके अंदर घुसा और उस एकांत से बड़ा प्रभावित हुआ!इसलिए उनका वहाँ अक्सर आना जाना होने लगा!ऐसे में यदि वहाँ उस लड़की के साथ कोई दुर्घटना घट ही जाती तो क्या कर लेती पुलिस !और ऐसी एकांतिक जगहों पर प्रशासन कितनी रखे निगरानी ?कोई लड़का यदि किसी अत्यंत एकांत स्थान में किसी लड़की को ले भी जाना चाहता है तो क्या उसकी बात मान लेनी चाहिए !यदि हाँ तो पुलिस क्या करे ?आखिर वे भी इंसान हैं और हमें भी रामराज्य की आशा नहीं करनी चाहिए !
हमारे संस्थान के द्वारा इस विषय में जहाँ तहाँ से लिए गए ये तथाकथित लव के लिए लव लवाते लड़के लड़कियों के चित्र हैं जो ऊपर दिए गए हैं जिनमें हर लड़की अपनी सम्पूर्ण रूचि के साथ इन लड़कों का साथ देती दिख रही होती है।इन लड़कों की सामूहिक हरकतों का न तो कोई विरोध कर रही होती है और न कोई शोर मचाया जा रहा होता है और न ही उन लड़कों के साथ कोई गिरोह या हथियार ही दिख रहे होते हैं और न ही कहीं किसी को कैद कर के रखा दिखाई पड़ रहा होता है ऐसी परिस्थिति में यदि वह लड़का विश्वास घात कर ही देता है और कुछ नहीं तो गला ही दबा दे तो उस समय कैसे सुरक्षा कर लेगी पुलिस?और गला दबाने से पहले यदि किसी दुर्घटना की आशंका से पुलिस वाले लोग इन्हें रोकने की कोशिश करें तो प्यार पर पहरा कहकर मीडिया शोर मचाने लगता है।आखिर लड़कियों की सुरक्षा के लिए किया क्या और कैसे जाए!आखिर प्यार की गलत फहमी में इंद्रियों की भूख मिटाने लिए कितनी लड़कियों के जीवन से खेलने की यों ही आजादी मिलती रहेगी और इसे रोकने के लिए इस प्यार के खेल में सम्मिलित बच्चों के लिए कठोर कानून के नाम पर क्या फाँसी ही एक मात्र विकल्प है! क्या ये हमारी समाज के चिंतकों लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए ? कि हमें अपने बच्चों के लिए इतने कठोर दंड के विषय में निर्णय लेना पड़ा! आखिर ऐसे लड़के लड़कियों के माता पिता समेत समस्त परिवार वालों का दोष क्या है जो उन्हें उनकी आँखों के सामने अपने बच्चों के साथ हुई इस प्रकार की अप्रिय वारदातें सुननी सहनी पड़ती हैं, क्या उन्मुक्त आधुनिकता के उत्कट समर्थकों के पास है कोई मध्यम मार्ग जिससे ऐसे युवक युवतियों के माता पिता को यह दुस्सह पीड़ा कभी न सहनी पड़े!इस विषय में मेरा एक और निवेदन है कि कानूनी स्तर पर जब तक ऐसे यौवनोन्मादी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर ली जाती है तब तक के लिए ऐसे खुलेपन को विराम क्यों न दे दिया जाए!आखिर कैसे टाली जाएँ ये दुर्घटनाएँ?
ऐसे खुलेपन को रोकने की बात उठते ही न जाने क्यों कुछ विदेशी संस्कृति परस्त लोग,समलैंगिक वर्ग के साथ साथ और भी लिंगजीवी वर्ग अर्थात केवल लैंगिक सुखों के लिए जीवन धारण करने वाला शरारती वर्ग भी शोर मचाने लगता है। नाच गाकर भागवत के नाम पर भोगवत बाँचने वाला आम समाज या साधू समाज ये लोग भी रासलीला के नाम पर खूब दुष्कर्म करते देखे सुने जा रहे हैं। ये सब टी.वी.चैनलों पर भी बैठ बैठ कर शोर मचाने लगते हैं आखिर क्यों न पूछा जाए उन्हीं से ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने का उपाय ?
इस प्रकार से प्यार के नाम पर जब तक मेट्रो ,पार्कों,पार्किंगों जैसी सामूहिक जगहों पर आपसी सहमति से भी ये शरीर घर्षण होते रहेंगे तब तक बलात्कारों का बंद होना कठिन ही नहीं असम्भव भी लगता है।यदि सच है कि ये युवा वर्ग बासना की बेदना सहने में सक्षम नहीं है तो शारीरिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए इनकी शादी क्यों नहीं कर दी जानी चाहिए? इससे इन युवकों की भी सामाजिक साख सुरक्षित बनी रहे एवं समाज का वातावरण भी न बिगड़े और युवक युवतियों की जिंदगी भी सुरक्षित बनी रहे !
ये लोग खुद तो बर्बाद होते ही हैं और देखने वालों को भी बर्बाद कर रहे होते हैं जो ऐसे असामाजिक कृत्यों में सम्मिलित हो जाते हैं या होना चाहते हैं या हो चुके होते हैं वे इन्हें प्रेम या प्यार कहने लगते हैं बाकी लोग तो घृणा करते ही हैं।जब तक ऐसे असामाजिक कृत्य सामूहिक रूप से होते रहेंगे तब तक बलात्कारों का बंद होना मेरी अपनी समझ में कठिन ही नहीं असम्भव सा भी लगता है।
प्रेम या प्यार जैसे ऐसे कुकृत्यों में सम्मिलित लोग केवल एक दूसरे की जिंदगी से खेल रहे होते हैं अर्थात दोनों दोनों के साथ जब एक बार पूरी तरह एक दूसरे की अंतरंगता में सहभागी हो चुके होते हैं फिर उन दोनों में किसी एक का प्यार नाम का सौदा कहीं दूसरी जगह उससे अच्छा पट जाता है तो वो पहले वाले को छोड़ना चाहता है इसके लिए उन दोनों के बीच हर प्रकार के अपराध की गुंजाइस रहती है इसमें हत्या और आत्म हत्या तक होते देखी जाती हैं!
यहाँ एक विशेष बात ध्यान देनी होगी कि जो युवा वर्ग इस तरह की गतिविधियों में सम्मिलित है वो शादी होने तक इतना बेकार हो चुका होता है कि शादी शुदा जीवन या तो सुखमय नहीं होता या नाना प्रकार की दवाएँ लेकर काम चलातू माहौल तैयार किया जाता है फिर भी काम संतोष जनक न हुआ तो तलाक होता है
ये तलाक शुदा लोग या तो कार्य क्षेत्र में कोई साथी ढूँढते हैं यदि नौकरी पेशा या विशेष बाहर जाने आने वाले न हुए तो कोई बाबा ,मुल्ला ,फादर, पंडित आदि धार्मिक लोगों से जुड़ते हैं जिन्हें जब अपने घर बुलाना चाहें बुला लें या उनके पास जब जाना चाहें तब किसी बहाने से चले जाएँ ! अपने दाम्पत्यिक जीवन से असंतुष्ट लोगों की विशेष भर्ती सत्संग या योग शिविरों में ही होती देखी जाती है जिनके लिए घर गृहस्थी में विशेष विरोध भी नहीं झेलना पड़ता है !इसके बाद आना जाना प्रारम्भ हो जाता है!अन्यथा कथा सत्संगों में उमड़ने वाली भीड़ें यदि चरित्र सुधरने तथा सुधारने एवं साधना के लिए जातीं तो इसका असर समाज में भी दिखाई पड़ता किन्तु सुधारने के ठेकेदार खुद बलात्कारों में लिपटे घूम रहे हैं। धर्म क्षेत्र में जो व्यभिचारी वर्ग है वो शास्त्रों को न तो पढ़ा होता है न पढ़ता है न उनकी बात मानना होता है जैसे मन आता है वैसे रहता है और जो मन आता है वो खाता है जैसा मन होता है वैसा श्रृंगार करता है प्रायः ऐसे मजनूँ ही धर्म की आड़ में दुष्कर्म करते घूम रहे हैं!
गैंग रेप की घटनाएँ भी आजकल अधिक रूप में घटने लगीं हैं जो घोर निंदनीय हैं और रोकी जानी चाहिए । इसमें कुछ और भी कारण सामने आए हैं जो विशेष चिंतनीय हैं एक तो वो जो लड़कियाँ सामूहिक जगहों पर अपनी सहमति से अपने साथ किसी प्रेमी नाम के लड़के को अश्लील हरकतें करने देती हैं या हँसते हँसते सहा करती हैं उन्हें देखने वाले सब नपुंसक नहीं होते ,सब संयमी नहीं होते ,सब डरपोक नहीं होते कई बार देखने वाले कई लोग एक जैसी मानसिकता के भी मिल जाते हैं वो यह सब देखकर कुछ करने के इरादे से उनका पीछा करते हैं मैटो आदि सामूहिक जगहों से हटते ही वो कई लड़के मिलकर उन्हें दबोच लेते हैं वो अकेला प्रेमी नाम का जंतु क्या कर लेगा फिर उस लड़की से उसका कोई विवाह आदि सामाजिक सम्बंध तो होता नहीं है जिसके लिए वो अपनी कुर्बानी दे वो तो थोड़ी देर आँख मीच कर या तो निकल जाता है या समय पास कर लेता है।अगले दिन सौ पचास रुपए किसी डाक्टर को देकर ऐसी ऐसी जगहों पर पट्टियाँ करा लेता है ताकि लड़की को दिखा सके कि उसके लिए वो कितना लड़ा है ऐसी दुर्घटनाएँ घटने के बाद यदि अधिक तकलीफ नहीं हुई तो ऐसे प्रेम पाखंडी बच्चे डर की वजह से घरों में बताते भी नहीं हैं और जो बताते भी हैं तो कुछ अन्य कारण बता देते हैं!
ऐसी घटनाएँ कई बार देर सबेर कारों में लिफ्ट लेने,या ऑटो पर बैठकर,या सूनी बसों में बैठकर,या अन्य सामूहिक जगहों पर की गई प्रेमी प्रेमिकाओं की आपसी अश्लील हरकतें देखकर घटती हैं यह नोच खोंच देखते ही जो लोग संयम खो बैठते हैं उनके द्वारा घटती हैं ये भीषण दुर्घटनाएँ !इनमें सम्मिलित लोग अक्सर पेशेवर अपराधी नहीं होते हैं।ये सब देख सुनकर ही इनका दिमाग ख़राब होता है ।
एक बात और सामने आई है कि आज कुछ लड़कियाँ कुछ निश्चित समय के लिए निश्चित एमाउंट अर्थात घंटों के हिसाब से धन लेकर शारीरिक सेवाएँ देने के लिए सहमति पूर्वक किसी लड़के के साथ जाती हैं उसमें उस नियत समय के लिए वह ग्राहक रूप लड़का लगभग स्वतन्त्र होता है उन्हें कहीं ले जाने के लिए! किन्तु उतने समय में उसे छोड़ना होता है। ऐसी परिस्थितियों में उस लड़की को बिना बताए ही वह लड़का उस समय में ही कंट्रीब्यूशन के लिए अपने साथी कुछ और लड़कों को साझीदार बना लेता है जिससे वो लड़के आपस में आर्थिक कंट्रीब्यूशन कर लेते हैं और कम कम पैसों में निपट जाते हैं किन्तु पहले करार इस प्रकार का न होने के कारण उस लड़की को बुरा लगना स्वाभाविक ही है उसके सामने दो विकल्प होते हैं या तो वह चुप करके घर बैठ जाए या फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए कानून की शरण में जाए यदि वह कानून की शरण में जाती है तो सारी कार्यवाही गैंग रेप की तरह ही की जाती है यहाँ तक कि चिकित्सकीय रिपोर्ट भी उसी तरह की बनती है मीडिया में भी इसी प्रकार का प्रचार होता है!
इसीप्रकार आजकल कुछ छोटी छोटी बच्चियों के साथ किए जाने वाले बलात्कार नाम के जघन्यतम अत्याचार देखने सुनने को मिल रहे हैं जिनका प्रमुख कारण अश्लील फिल्में तथा इंटर नेट आदि के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही अश्लील सामग्री आदि है आज जो बिलकुल अशिक्षित मजदूर आदि लड़के भी बड़ी स्क्रीन वाला मोबाईल रखते हैं भले ही वह सेकेण्ड हैण्ड ही क्यों न हो ?होता होगा उनके पास उसका कोई और भी उपयोग !क्या कहा जाए!
इसीप्रकार के कुछ मटुक नाथ टाइप के ब्यभिचारी शिक्षकों ने प्यार की पवित्रता समझा समझाकर बर्बाद कर डाला है बहुतों का जीवन !
बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में पी.एच.डी. जैसी डिग्री हासिल करने के लिए लड़कियों को कई प्रकार के समझौते करने पड़ते हैं यदि गाईड संयम विहीन और पुरुष होता है तो !क्योंकि शोध प्रबंध उसके ही आधीन होता है वो जब तक चाहे उसे गलत करता रहे !वह थीसिस उसी की कृपा पर आश्रित होती है ।
ज्योतिष के काम से जुड़े लोग पहले मन मिलाकर सामने वाले के मन की बात जान लेते हैं फिर उसका मिस यूज करते देखे जाते हैं।
चिकित्सक लोग बीमारी ढूँढने के बहाने सब सच सच उगलवा लेते हैं फिर ब्लेकमेल करते रहते हैं ।इसी प्रकार से कार्यक्षेत्र में कुछ लोग अपनी जूनियर्स को डायरेक्ट सीनियर बनाने के लिए कुछ हवाई सपने दिखा चुके होते हैं उन सपनों को पकड़कर शारीरिक सेवाएँ लेते रहते हैं उनकी !किन्तु जब महीनों वर्षों तक चलता रहता है ऐसा घिनौना खेल, किन्तु दिए गए आश्वासन झूठे सिद्ध होने लगते हैं तब झुँझलाहट बश जो सच सामने निकल कर आता है उनमें आरोप बलात्कार का लगाया जाता है किन्तु किसी भी रूप में आपसी सहमति से महीनों वर्षों तक चलने वाले शारीरिक सम्बन्धों को बलात्कार कहना कहाँ तक उचित होगा ?ऐसे स्वार्थ बश शरीर सौंपने के मामले राजनैतिकादि अन्य क्षेत्रों में भी घटित होते देखे जाते हैं वहाँ भी वही प्रश्न उठता है कि ऐसी परिस्थितियों में कैसे रुकें बलात्कार ?
कलह पूर्ण भाजपा बदलने के चक्कर में बिगड़ती जा रही है !
भाजपा के अपने कार्यकर्ता निराश हैं असंतुष्ट हैं उदास हैं फिर भी मोदी मोदी मोदी बोल रहे हैं फिर भी उनकी कदर नहीं है जिसने कल तक दुदकारा है उन्हें गले लगाया जा रहा है!
इसीप्रकार से केजरीवाल की देखा देखी भाजपा वाले भी टोपी लगाकर राजघाट पर धरना देने पहुँचे आखिर क्यों?क्या केजरीवाल की सफलता का राज उनकी टोपियों में छिपा है आज सपा की हरी टोपी भाजपा की भगवा बसपा चाहेगी
तो वो भी नीली पहनेगी और आम आदमी पार्टी तो इस युग में साक्षात टोपी जनक ही
है!
भाजपा की टोपियाँ देखकर लगभग हर किसी ने कहा या सोचा कि
भाजपा केजरी वाल की नक़ल कर रही है मीडिया ने भी इस बात को इसी ढंग से लिया
है इन तर्कों का खंडन करने के लिए भाजपा के पास कुछ भी नहीं था क्योंकि
सम्भवतः यही सोचकर भाजपा ने टोपी कार्यक्रम चलाया ही होगा किन्तु
क्यों ?खैर;न जाने क्यों और कब तक भाजपा अपनी भद्द यों ही पिटवाती रहेगी
!क्या इससे केजरीवाल के उस बयान को बल नहीं मिला है जिसमे उन्होंने कहा
था कि इन नेताओं को राजनीति करना हम सिखाएँगे तब तो ये छोटे मुख बड़ी बात लग
रही थी किन्तु भाजपा के टोपी कार्यक्रम ने केजरी वाल के उस बयान को सच
करके दिखा दिया है !