भाजपा के अपने कार्यकर्ता निराश हैं असंतुष्ट हैं उदास हैं फिर भी मोदी मोदी मोदी बोल रहे हैं फिर भी उनकी कदर नहीं है जिसने कल तक दुदकारा है उन्हें गले लगाया जा रहा है!
इसीप्रकार से केजरीवाल की देखा देखी भाजपा वाले भी टोपी लगाकर राजघाट पर धरना देने पहुँचे आखिर क्यों?क्या केजरीवाल की सफलता का राज उनकी टोपियों में छिपा है आज सपा की हरी टोपी भाजपा की भगवा बसपा चाहेगी
तो वो भी नीली पहनेगी और आम आदमी पार्टी तो इस युग में साक्षात टोपी जनक ही
है!
भाजपा की टोपियाँ देखकर लगभग हर किसी ने कहा या सोचा कि
भाजपा केजरी वाल की नक़ल कर रही है मीडिया ने भी इस बात को इसी ढंग से लिया
है इन तर्कों का खंडन करने के लिए भाजपा के पास कुछ भी नहीं था क्योंकि
सम्भवतः यही सोचकर भाजपा ने टोपी कार्यक्रम चलाया ही होगा किन्तु
क्यों ?खैर;न जाने क्यों और कब तक भाजपा अपनी भद्द यों ही पिटवाती रहेगी
!क्या इससे केजरीवाल के उस बयान को बल नहीं मिला है जिसमे उन्होंने कहा
था कि इन नेताओं को राजनीति करना हम सिखाएँगे तब तो ये छोटे मुख बड़ी बात लग
रही थी किन्तु भाजपा के टोपी कार्यक्रम ने केजरी वाल के उस बयान को सच
करके दिखा दिया है !
इसमें एक बात और सामने आई है कि भाजपा को संघ ने
नसीहत दी है कि आम आदमी पार्टी को
गम्भीरता से लिया जाना चाहिए !यदि ऐसा हुआ भी हो तो इसका मतलब क्या है कि
आम आदमी पार्टी की देखा देखी टोपी लगानी शुरू कर दी जाएँ ! आखिर जनता को
क्या समझ रही है भाजपा ?क्या उसे ऐसा लग रहा है कि जनता केजरी वाल की टोपी
पर फिदा होकर उसका समर्थन करती चली जा रही है! यदि ऐसा है तो वास्तव में
भाजपा वालों के साथ साथ हमारे जैसे उसके समर्थकों का प्रबल दुर्भाग्य है
कि उसकी आशा की किरण भाजपाके नेता लोग अब कल के नेता केजरीवाल से
टोपियाँ लगाना सीख रहे हैं !यदि टोपियाँ लगाकर ऐसा ही कोई राजनैतिक
ड्रामा करना था तो जनता के बीच जाना था राजघाट जाने का आखिर औचित्य क्या
था? यदि कोई कार्यक्रम ही देना था आखिर चुनावों का समय है इसमें हर
कार्यक्रम जनता से जुड़ा होना चाहिए टोपियाँ लगाने एवं राजघाट पर बैठ कर
क्या सिद्ध करना चाहती थी भाजपा ?
यह चुनावी समय है भाजपा को जनता से जुड़े मुद्दे
उठा कर जनता में फैलाने चाहिए साथ ही यह वह समय है जिसमें भाजपा को अपने
कार्यक्रम जन जन तक पहुँचाने चाहिए कि यदि वह सत्ता में आई तो दूसरी
पार्टियों की अपेक्षा क्या और अधिक उत्तम कार्यक्रम जनता को देगी अर्थात
भाजपा जनता को वह सेवा सुख देगी जो अन्य दल नहीं दे सकते! किन्तु यह इसलिए
आसान नहीं होगा क्योंकि उस सेवा की पुष्टि उसे अपने पिछले शासन काल से
करनी होगी अन्यथा प्रश्न उठने लगेंगे कि जब आप पहले सत्ता में थे तब ऐसा
क्यों नहीं किया था उसके जवाब भी ढूंढने होंगे जो परिश्रम पूर्वक ही किया
जा सकेगा जिसका अभ्यास अब भाजपा को बिलकुल नहीं रहा है क्योंकि भाजपा वालों
ने जनता की ओर दिमाग लगाना ही वर्षों पहले छोड़ दिया था । किसी वार्षिक
मेले की धार्मिक मूर्तियों की तरह ही चुनावों के समय अपनी पार्टी को धो
पोछकर चुनावों में उतार देती है भाजपा जनता के बीच । जनता को जो समझ में
आता है वह भी कुछ वोट भाजपा की झोली में भी अपनी श्रद्धानुशार डाल देती है
उसी में संतोष कर के शांत होकर अगले चुनावों की आशा में बैठ जाती है भाजपा
। इसके आलावा जनता से सीधे जुड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं दिखाई पड़ा है।
भाजपा के द्वारा बिगत कुछ वर्षों से कभी कोई आंदोलन प्रभावी रूप से नहीं
चलाया जा सका है ।भाजपा की रणनीति इतनी कमजोर होती है कि जनता के बीच
जाने से पहले ही हर मुद्दे की पोल खुल जाती है और समाज यह समझ कर करने
लगता है उपहास कि भाजपा का यह चुनावी हथकंडा है क्योंकि दुर्भाग्य से भाजपा
जनता के दुखते घावों को सहलाने का कोई विश्वसनीय कार्यक्रम बना ही नहीं पा
रही है !
श्रद्धेय अटल जी के कार्यक्रमों में झलकती थी लोक
पीड़ा! उनकी बोली भाषा भाषणों आचरणों में झलका करती थी लोक सेवा की भावना
!आखिर आज भी उनसे सम्बंधित खबरें कितनी श्रद्धा से सुनते हैं लोग !आखिर
क्या सुगंध है उस महापुरुष के व्यवहार में कि गैर राजनैतिक लोग भी उनकी उन
से हुई मुलाकातों बातों भाषणों की याद कर कर के अभी भी आँखे भर लेते हैं!
मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि हर किसी को अटल जी के जीवनादर्शों में कुछ न
कुछ मिला जरूर है उसी याद को सँजोए हुए राजनीति में या विशेषकर भाजपा में
आदर्श ढूँढ रहे हैं लोग!संघ और भाजपा में और भी ऐसे अनेक महामनीषी हुए हैं
जिनकी आवाज में सुनाई पड़ती थी जन पीड़ा ! । एक और बड़ी
बात कि जिसके पास अटल जी जैसे जनता से जुड़े नेताओं के आचरण शैली की विराट
सम्पदा हो वह उसे भूलकर केजरीवाल की देखा दूनी टोपी लगाते घूम रहे हैं
क्या इसे जनता से जुड़े मुद्दों के आभाव में अथवा घबड़ाहट में किया गया आचरण
नहीं माना जाना चाहिए ?
भाजपा अभी तक जनता से जुड़े कोई मुद्दे नहीं उठा
पाई है ऐसी कोई बात जनता के सामने नहीं रख पा रही है जो जनता के हृदय से
जुड़ी हो जिसे जनता सीधे स्वीकार कर सके अर्थात जो सीधे जनता के हृदयों तक
उतर जाए, जैसे भाजपा के बयोवृद्ध नेताओं की बातें उतरती रही हैं उसी
प्रकार से वही शैली आज केजरी वाल ने अपना रखी है किन्तु भाजपा उस शैली की
खोज में तो है नहीं अपितु टोपी पहनती घूम रही है कितना हल्का बच्चों जैसा
आदर्श है यह !
भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर आज जिसे अपनी नैया
का खेवन हर बना रखा है भाजपा के उस महान मनीषी के भाषणों को सुनकर जनता
के हृदयों में उतरने की कभी कोई गम्भीर कोशिश दिखाई ही नहीं दे रही है ।
उनके भाषणों में भारी भ्रम है कि वो प्रधान मंत्री का चुनाव लड़ रहे हैं या
कि मुख्य मंत्री का !यदि वो अपने को वास्तव में भाजपा का प्रधानमंत्री का
प्रत्याशी मानते हैं तो उन्हें हम और हमारे प्रदेश के भाषणों से बाहर
निकलना होगा अपितु अपनी पार्टी के आदर्श प्रधानमंत्री अटल जी केआदर्शों
योजनाओं कार्यक्रमों को लेकर समाज में जाना होगा जिनसे समाज सुपरिचित है
उन्हें वह जानता भी है मानता भी है उनसे वह प्रभावित भी रहा है वही वो आज
सुनना भी चाह रहा है जिसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं की जा पा रही है भाजपा
के द्वारा !जो कर रहे हैं केजरीवाल वो भाजपा के विकास के लिए भी अत्यंत
आवश्यक है !जिसे भाजपा भी अपने प्रारंभिक काल में अपनाती रही है वह सादगी
चाहिए जनता को !उसमें दिखता है देशवासियों को अपनापन। इसलिए पार्टी के
पी.एम.प्रत्याशी जी को चाहिए कि आप भले ही किसी प्रदेश के मुख्य मंत्री भी
हैं जो नहीं होना चाहिए था किन्तु यदि हैं ही तो अपने प्रदेश के विकास की
चर्चा करते समय आपकी पार्टी से शासित अन्य प्रदेशों को भी वही
प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जिसका नितांत अभाव रहता है आपके भाषणों में ।
अपने और अपने प्रदेश की चर्चा के अलावा सारी चर्चाएं खानापूर्ति मात्र
होती हैं । दूसरी बात आपके भाषणों में प्रहार भ्रष्टाचार पर होना चाहिए और
जनता के हृदयों तक उतरने वाले मुद्दे उठाए जाने चाहिए किन्तु प्रहार
राहुल गाँधी पर क्यों वो हैं क्या ?यदि पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकी इस
प्रकार की न होती तो उनकी निजी क्षमता क्या है किन्तु आपने अपने को अपने
त्याग और परिश्रम से बुना है इसलिए आपके सामने उनका व्यक्तित्व कहीं ठहरता
भी नहीं है फिर आप अपनी वाणी का विषय उन्हें क्यों बनाते हैं ?निजी तौर पर
जिनका सामाजिक या राजनैतिक कोई वजूद ही नहीं दिखता है!
जहाँ तक बात राहुल की है यदि वो अपने पैतृक व्यवसाय
को आगे बढ़ा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा
है जब नहीं मिलेगा तो कुछ और धंधा सोचेंगे इसी प्रकार सोनियां गांधी जी को
क्यों केंद्रित करना? वो जिनकी पत्नी हैं उनका जो व्यापार होता उसे
संभालतीं चूँकि उनका व्यवसाय ही राजनीति है तो वो उसे न संभालें तो करें
क्या ?लोक तंत्र में जनता ही मालिक होती है उसने उन्हें लगाम सौंपी है
इसलिए उनकी आलोचना करने का मतलब जनता के निर्णय को चुनौती देना है इसलिए
उनकी आलोचना न करके उनके किए गए भ्रष्टाचारी कार्यों की ही आलोचना की जानी
चाहिए और अपने भावी कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने चाहिए आगे का निर्णय जनता
का है !
एक और बात है कि अपनी विनम्र शैली से जनता के
सामने अपनी योजनाएं प्रस्तुत की जानी चाहिए किन्तु ऐसा नहीं हो पा रहा है,
कैसे कैसे वीर रस के नाम रखे जाते हैं रैलियों के !हुंकार रैली, ललकार
रैली, दुदकार रैली फुंकार रैली,शंख नाद रैली आदि आदि बारे नाम! कितने
कर्णप्रिय हैं ये शब्द कितना सुन्दर है इनमें सन्देश ? क्या यही हैं संघ के
संस्कार! किन्तु ये सारी चुनौतियाँ किसको दी जा रहीं हैं जनता को या
विरोधी पार्टियों को? अजीब सी बात है कि केजरीवाल जहाँ विनम्रता का प्रयोग
कर रहे हैं भाजपा वहाँ वीर रस का प्रयोग करे और टोपी पहनकर बराबरी करने से
भाजपा का कुछ लाभ हो पाएगा क्या ? केजरी वाल हाथ जोड़े घूम रहे हैं जनता पर
असर उनका अधिक होना स्वाभाविक है ।
भाजपा वाले बताते घूम रहे हैं कि हमें 272 + सीटें
लेनी हैं जैसे जबरजस्ती लेनी हैं! जनता को बताते घूम रहे हैं कि
प्रधानमंत्री भाजपा का बन रहा है एक बड़बोले स्वयंभू जोगी एवं स्वयंभू
प्रवक्ता अपनी चुलबुलाहट रोक नहीं सके और छत्तीसगड़ में बता आए कि भाजपा
को तीन सौ सीटें मिल रही हैं !जनता भी सोच लेगी कि जब इन्हें तीन सौ सीटें
मिल ही रही हैं तो हम अपना वोट बर्बाद क्यों करें हम किसी और को दे देंगे
!इसलिए आखिर समाज में काल्पनिक चुनावी परिणाम बताते घूमने की जल्द बाजी
क्यों है ?दूसरी ओर केजरी वाल अपने कार्यक्रमों को परोस रहे हैं और हाथजोड़
कर जनता से सहयोग मांग रहे हैं जनता उनकी इस शैली को पसंद कर रही है वोट
जनता से ही मिलना है। पैसे के बल पर भाड़े के प्रशंसा कर्मी कितने भी रख लिए
जाएं और कराइ जाए अपनी जय जय कार किन्तु वो वोट तो नहीं पैदा कर देंगे
!वोट तो जनता ही देगी ।
आज केजरीवाल ने अपनी हालत ऐसी बना रखी है कि "रावण रथी विरथ रघुवीरा " अर्थात रणस्थल में रावण के पास रथ है किन्तु राम जी के पास नहीं है जनता
का स्नेह श्री राम जी को उनकी सादगी के कारण मिला रावण पराजित हुआ
इसी आर्थिक अहंकार से केजरीवाल अपने को अलग रखते दिखाई पडने का प्रयास कर
रहे हैं जबकि भाजपा आर्थिक अहंकार की ओर बढ़ती हुई दिख रही है।
भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक है कि
वो अपने वोटर से संपर्क करें उसके सुख दुःख सुनें उसका सहयोग भी करें
किन्तु दुर्भाग्य से वो टिकट पाने के लिए कुछ टिकट माँगने लायक बनने के लिए
प्रयास किया करते हैं हमेंशा जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं कभी केंद्रीय
नेताओं के पास तो कभी प्रांतीय नेताओं के पास भाग दौड़ में लगे रहते हैं कौन
जाए जनता के पास या जनता के दुःख दर्द टटोलने समय कहाँ होता है कभी कोई
क्षेत्रीय कार्यकर्ता मिल भी गया तो उसे बता दिया कि अबकी अपनी सरकार बनने
जा रही है। जिससे वोट माँगने हैं उसे चुनाव परिणाम बताने जाते हैं जबकि
अरविन्द केजरीवाल अपने कार्यकर्ताओं को जनता की समस्याओं के समाधान के लिए
जनता से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं ऐसी परिस्थिति में भाजपा अपने
कार्यकर्ताओं को आम जनता के दुःख दर्द टटोलने के लिए क्यों नहीं प्रेरित
करती है !
कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में अपने अपने
समर्थकों सहित आम जनता के विश्वास को जीतने का प्रय़ास क्यों नहीं करते हैं
उनके साथ घुलमिलकर रहने में अपना अपमान क्यों समझते हैं कुछ भाजपा के
कार्यकर्ताओं में मानवता का क्षरण इतनी तेजी से हो रहा है कि आम जनता से वे
स्वयं तो संपर्क करते ही नहीं हैं अपितु जो लोग स्वयं जुड़ने आते हैं उनसे
मिलते नहीं हैं यदि मिले तो उनकी बात नहीं सुनते हैं यदि बात सुनी तो उनकी
मदद तो नहीं ही करते हैं अपितु उसकी समस्याओं के समाधान के लिए काम न करना
पड़े इसलिए उस प्रकरण में उसी व्यक्ति की इतनी गलतियां निकाल देंगे कि
जिससे वह मदद माँगने लायक ही न रह जाए !
कुछ बड़े बड़े भाजपाइयों को शिष्टाचार का भी अपमान
करते देखा जाता है वो इतने नमस्ते चोर हो गए हैं कि अपने बराबर वालों को तो
छोड़िए अपने से बड़े बुजुर्गों के नमस्ते का भी जवाब नहीं देते हैं शिर तक
नहीं हिलाते हैं दिल्ली में ही भाजपा के जिन बड़े कार्यकर्ताओं को साफ सुथरी
छवि के नाम से पार्टी पर प्रोत्साहन मिलता है उन बड़ों में यह शिष्टाचार
नहीं होता है कि उनके पैर छूने वाले अपने कार्यकर्ताओं या आम लोगों के लिए
दो शब्द ही प्रेम से बोल दें लोगों से हंसकर बात करने में तो मानों अपनी
बेइज्जती ही समझते हैं ऐसे स्वच्छ पवित्र नेताओं को अबकी बार दिल्ली के
विधान सभा के चुनाओं के बाद केजरीवाल से लिपट चिपट कर मिलते एवं हंस हंसकर
बातें करते देखा गया तब उनके अपने विश्वसनीय कई लोगों के फोन भी मेरे पास
आए उन लोगों ने बड़ा आश्चर्य जताया कि यार अपने विधायक जी भी तो हंस बोल
लेते हैं हो सकता है कि हमें इस लायक ही न समझते हों !इसलिए क्या भाजपा को
अपनी दिल्ली पराजय से कुछ सीखने की भी जरूरत है? यद्यपि जिन प्रदेशों में
भाजपा की विजय हुई है वहाँ कार्यकर्ताओं की भावनाओं के सम्मान करने की
परंपरा भी होगी अन्यथा जनता का इतना अपार स्नेह उनको कैसे मिल पाता ?ऐसी
जगहों पर भाजपा के पैर हिला पाना बहुत कठिन होगा वो अरविन्द केजरीवाल ही
क्यों न हों !
इस लिए मेरा निवेदन है कि भाजपा को घबड़ाहट में टोपी
पहनकर अपना उपहास कराने की जरूरत नहीं है अपितु आवश्यकता इस बात की है कि
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करे कि वे लोग सभी वर्गों के मान
सम्मान की सुरक्षा के लिए सेवा पूरी भावना के साथ उनसे जुड़ें ।यदि ऐसा कर
पाना किसी भी प्रकार से सम्भव हुआ तो कहा जा सकता है कि भारत का अगला प्रधान मंत्री भाजपा से ही होगा!
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