भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख !
विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
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Thursday, February 27, 2014
सरकारी कर्मचारी !
जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उन लोगों के साथ क्यों किया जा रहा है सौतेला व्यवहार ?
सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !आजादी की लड़ाई में उनके पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? नरेगा,मरेगा
एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है
उन्हें! जो चबा जाते हैं वही लोग जो या तो सरकार में हैं या सरकारी हैं आम
जनता तो बचा खुचा जो कुछ पा जाती है तो पा जाती है बाकी उसकी थाली में दो
रोटियाँ आगे पढ़ें … http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_5199.html
सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !
नरेगा,मरेगा
एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है क्या आम आदमी ?
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इस देश का तथाकथित लोकतंत्र जो
केवल गरीबों की सहनशीलता के कारण ही जीवित है बाकी इस देश में लोकतंत्र के
नाम पर कुछ भी बचा नहीं है गरीब लोग कल यदि अपने अधिकार माँगने लगें तो इस
तथाकथित शान्ति व्यवस्था के चीथड़े उड़ जाएँगे!
पचास
पचास हजार सैलरी लेकर सरकारी लोग यदि अपनी माँगे मनवाने के लिए अपना अपना
काम काज छोड़कर धरना प्रदर्शन कर सकते हैं तो आम आदमी ऐसी बाधा क्यों नहीं
खड़ी कर सकता है जिसे सरकार कुछ नहीं देती है !
पाँच
दस हजार सैलरी पाने वाले कोरियर कर्मचारी कितनी जिम्मेदारी से कितनी
ईमानदारी से कितने प्रेम से बात व्यवहार पूर्वक देते हैं अपनी सेवाएँ !और
बचाए हुए हैं उस डाक विभाग की इज्जत जिसके कर्मचारी पचासों हजार सैलरी लेकर
भी काम तो नहीं ही करते हैं सीधे मुख बात भी नहीं करते हैं आखिर क्यों ?
प्राइवेट मोबाईल कम्पनियाँ पाँच दस हजार सैलरी देकर कितनी जिम्मेदारी से
करा लेती हैं अपने काम सरकारी टेलीफोनों की फाल्ट महीनों महीनों तक चलती
रहती है आखिर क्यों ?क्या सैलरी उनसे कम मिलती है इन्हें ?
सरकार
और सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य लोगों के विषय में भी तो सोचिए
!क्या महँगाई उनके लिए नहीं है सरकारी कर्मचारियों की ऐसी विशेष कौन सी
आवश्यकताएँ हैं जो आम आदमी की नहीं होती हैं लेकिन सरकार मेहरबान केवल सरकारी
कर्मचारियों के प्रति रहती है क्यों?बाक़ी सब कहाँ जाएँ ?
प्राइवेट अस्पतालों में कितनी होती है साफ सफाई और कैसे दी जाती हैं
चिकित्सा सुविधाएँ! उन्होंने ढक रखी है सरकारी अकर्मण्यता की पोल पट्टी!
किन्तु सरकारी अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
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