भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Pages
▼
Monday, March 31, 2014
19.6.2014 से 14.7.2015 इस समय सांप्रदायिक उन्माद से माहौल बिगड़ भी सकता है - ज्योतिष
श्री राम की जन्म कुंडली में भवन सुख भाव में शनि होने से भवन होने के बाद भी भवनसुख का योग मध्यम एवं संघर्ष पूर्ण है।इसीलिए बचपन में पहले पिता के साथ रहते रहे। 15 वर्ष की उम्र में विश्वामित्र जी ले गए फिर विवाह के बाद राज्य मिलना था तो बनवास हो गया । वहाँ जाकर जंगल में जब कुटी बनाई तो सीता हरण हो गया।जब बन से वापस आए तो सीता जी को बनवास हो गया।इसप्रकार जब गृहणी ही चली गई तो गृह सुख की आशा ही क्या बची ?
यदि थोड़ी सी ज्योतिषीय सावधानी राम भक्तों के द्वारा बरती गई तो मंदिर बनने को रोका नहीं जा सकता बनेगा जरूर! और भव्य श्री राम मंदिर बनेगा यह भी निश्चित है।सर्व सम्मति से बनने के योग हैं। इसलिए रामभक्तों को निराश या हताश नहीं होना चाहिए और प्रयास करके तनाव नहीं बढ़ने देना चाहिए ।
चूँकि उस मस्जिद तोड़ी जा सकी थी इससे यह प्रमाणित भी होता है कि वह मुहूर्त मकान टूटने का ही था तो ऐसे समय में मकान बनाना कैसे प्रारम्भ किया जा सकता था?
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
अन्नाहजारे की तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
Sunday, March 30, 2014
बलात्कार रोकने के रास्ते ज्योतिष की दृष्टि में !
बलात्कार रोकने के लिए शक्त कानून की आवश्यकता तो है ही किन्तु कितना शक्त कानून हो !उसमें अधिक से अधिक फाँसी की सजा होगी इससे अधिक क्या होगा किन्तु असफल प्रेमी प्रेमिकाएँ इतना निराश हताश होते हैं कि आत्म हत्या तो वे वैसे भी कर लेते हैं फिर इन्हें फाँसी जैसी कठोर सजा से कितना भयभीत किया जा सकता है और यदि यह भी न किया जाए तो इससे बड़ी दूसरी सजा और होती कौन है?बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को रोकने के लिए दण्डित तो किया ही जाना चाहिए !मैं यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि जो लोग बलात्कारी को फाँसी की सजा की माँग इसलिए करते हैं कि ये महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से अच्छा कदम होगा किन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस बलात्कारी को फाँसी की सजा हुई होती है वह तो मरकर चला जाता है किन्तु वास्तविक सजा उसके परिजनों को आजीवन भोगनी पड़ती है समाज की जलालत ,उपेक्षा,गरीबी और वियोगजन्य पीड़ा तो होती ही है !वास्तव में बलात्कारी के आश्रित लोग ही भोगते हैं वास्तविक दंड !जिनका उस बलात्कार से कोई सम्बन्ध नहीं होता है और वो चाह कर भी इस घटना को रोक नहीं सकते थे ऐसे पीड़ितों में भी कई स्त्री जाति से सम्बंधित भी होती हैं जैसे बलात्कारी के माता -पिता, भाई - बहनें,कई बार तो पत्नी बेटा बेटियाँ आदि भी होते हैं !इसलिए बलात्कारियों को फाँसी देने का मतलब महिला सुरक्षा कैसे हो सकता है !
इसलिए आप सभी सुबुद्ध विद्वान बंधुओं से मेरा निवेदन है कि सबको मिलकर कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि किसी बलात्कारी के आश्रितों को उसके किए की सजा भोगनी पड़े !इसके तीन प्रमुख मार्ग हैं उनमें पहला तो यह है कि देश और समाज में सात्विकता का वातावरण बने जिससे आध्यात्मिकता का विकास हो मन सतोगुणी हो जाए और किसी की रूचि ही बलात्कारों की ओर न जाए !किन्तु ऐसा करेगा कौन?क्योंकि आधुनिक कलियुगी संतों का मन साधना और सात्विकता से बहुत दूर होता जा रहा है वो संपत्ति प्रिय होते जा रहे हैं राजनीति प्रिय होते हैं अपने मन के व्यक्तियों को प्रधान मंत्री बनाकर फिर लूटते हैं देश के आस्थावान लोगों को !समाज के दिखावे में तो ये विदेशों से काला पीला धन लाने की बात करते रहेंगे किन्तु निशाना अपनी संपत्ति संग्रह एवं व्यापारिक सुरक्षा आदि आदि होता है!इसलिए ऐसे बाबाओं से समाज को संस्कार देने की उमींद की भी कैसे जाए जिनके अपने संस्कार ही बिगड़े चल रहे हों !इनके अलावा भी जो चरित्रवान विरक्त संत हैं भी वो अपनी साधना में लगे रहते हैं उनके पास समय कहाँ होता है जो समाज सुधार कार्यों में वे रूचि लें !
वस्तुतः काम (सेक्स) पीड़ा से परेशान लोगों को सुधरने के चाहिए भोजन सात्विक करें रहन सहन भी ऐसा ही बनाएँ और धीरे धीरे अपने मन पर नियंत्रण करने की कोशिश करें !पहले के लोग मन को सभी प्रकार से संयम देते थे
उस समय इतना विचार रखने
लायक कहाँ होता है कि कुछ
सोचने समझने की स्थिति में हो!ऐसे लोग मनोरोगी होते हैं इनकी बात मानने
वाले लड़के लड़कियाँ जान बूझ कर कूदते हैं इस आग में!यद्यपि ये लोग भरोसे
लायक होते नहीं हैं।
जब कोई लड़का किसी लड़की से प्रेम करने का नाटक करे इसी प्रकार लड़की भी तो समझ लेना चाहिए कि ये सेक्स पीड़ा से परेशान है।अभी कुछ दिन पहले ही विदेश में घटी एक घटना अखवार में पढ़ी जब किसी प्रेमी ने किसी एकांत जगह पर प्रेमिका को बुलाया किन्तु किसी कारण से वो आ नहीं सकी तो उस प्रेमी ने घोड़ी के साथ सेक्स किया !
यह वो विकृत भावना है जो प्रेमी प्रेमिकाओं के मन में एक दूसरे के प्रति होती है ऊपरी मन से एक दूसरे को चाहने का झूठा नाटक किया से करते हैं। यदि इनमें वास्तव में दूसरे से प्रेम होता तो एक दूसरे से विश्वासघात, हत्या या सम्बन्ध विच्छेद जैसी दुर्घटनाएँ घटती ही नहीं!
मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से ज्योतिष सम्बंधित विषय में पीएच. डी. की है इसलिए एक और सच्चाई सामने आई है कि पूर्व जन्म के कर्मानुशार जिसके भाग्य में पत्नी या पति से सेक्स का सुख नहीं बदा होता है वही सेक्स की तलाश में बचपन से भटकने लगते हैं वो इस पर उतारू होते हैं कि कहीं मिले किसी से मिले कैसे भी मिले कितना भी झूठ बोलकर मिले बच्चे से मिले बूढ़े से मिले,सेक्स के लिए ये बिलकुल पशुओं जैसा व्यवहार करने लगते जैसे कुत्ते बन्दर आदि कहीं किसी सार्वजनिक स्थान पर टाँग फँसा कर खड़े हो जाते हैं ठीक इसी प्रकार से ऐसे लड़के लड़की भी सामाजिक शर्म की भावना छोड़ चुके होते हैं ये अपने घर से पड़ोस से नाते रिश्तेदारी या स्कूल तक में किसी से भी कहीं भी टाँगें फँसाना शूरू कर देते हैं।पार्कों, मैट्रोस्टेशनों, पर्किंगों, रेस्टोरेंटों, बसों जैसी सार्वजनिक जगहों पर ही दोनों एक दूसरे को चिपटने चाटने लगते हैं।खैर! मरता क्या न करता वाली स्थिति होती है।ये अर्द्धनग्न कपड़े,माथे पर बाल आदि ऐसी वेष भूषा बना लेते हैं ताकि समाज के आम लोगों की अपेक्षा ये कुछ अलग और उस तरह के लगें जिन्हें वो लोग आसानी से पहचान कर कमेंट मार सकें और लीला आगे बढ़ सके! ऐसे लोग छोटे छोटे बच्चों , पागलों,एवं अपाहिजों को भी अपनी हबस का शिकार बना लेते हैं।यदि इनके भाग्य में ही सेक्स को लेकर अपमान सहना न लिखा होता तो सेक्स सुख तो वैसे भी विवाह हो जाने पर भी मिलता किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनी रहती जो इनके ग्रहों को मंजूर नहीं था।इसलिए हित चाहने वालों को चाहिए कि ऐसी ऊटपटांग वेषभूषा बनाकर रहने वालों से अपने बच्चों को बचाकर रखना चाहिए।
बढ़ते बलात्कारों का एक और बड़ा कारण यह भी कि जैसी शिक्षा वैसे संस्कार नैतिक शिक्षा से नैतिक लोग होंगे। सामान्य शिक्षा से सामान्य विचारधारा के लोग होंगे और सेक्स एजुकेशन से सेक्सुअल लोग होंगे इस प्रकार के सरकारी प्रयासों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं जिनसे सारा विश्व चिंतित दिखने लगा है ।
वैसे तो हर किसी को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए यदि यह संभव न हो सके तो शिक्षा सबके लिए अत्यंत आवश्यक है ही किन्तु अब तो शिक्षा का अभाव ही है !अक्सर देखा गया कि बलात्कार के अनेक केसों में लड़के या लड़कियाँ अशिक्षित होते हैं।इसलिए बढ़ते बलात्कारों का एक बड़ा कारण अशिक्षा भी है।
आम आदमी के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वह अपने बच्चों को प्राइवेट में पढ़ा सकें और सरकारी विद्यालयों में आजकल शिक्षा की जितनी दुर्दशा है वहाँ बच्चों को कुछ पढ़ाया नहीं जाता कभी कभी कोई कोई शिक्षक क्लास ।हमारी सरकार के पास नैतिक शिक्षा का कोई कार्यक्रम ही नहीं है। शिक्षा की दुर्दशा यह है कि उनके प्राथमिक विद्यालयों को प्राइवेट विद्यालय पीटते जा रहे हैं सरकार के अपने कर्मचारी एवं अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ाते हैं सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की बात और क्या होगी ?
जहाँ तक महिला सुरक्षा के विषय की बात है। मैंने एक कथानक सुना है कि श्री राम के राज्य में हाथी और सिंह एक घाट पर पानी पीते थे किसी को किसी से कोई भय नहीं होता था फिर भी वो हाथी एक घाट पर पानी भले पीते थे किन्तु सिंह के स्वभाव में चूँकि हिंसा है इसलिए उसके साथ निश्चित दूरी बनाकर रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि अहिंसा या हिंसा का निर्णय तो सिंह के ऊपर है वह हिंसा का पालन करे या अहिंसा का व्रत ले! अथवा अहिंसा का व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे।ये उसी को पता है।ऐसी परिस्थिति में व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे तो हाथी की जान पर बन आएगी। इसलिए सिंह जैसे चाहे वैसे रहे किन्तु हाथी को अपनी ओर से सावधानी तो रखनी ही चाहिए। ये उदाहरण अहिंसक समाज का है।
Saturday, March 29, 2014
बनारस कोई चुनाव लड़ने का अखाड़ा नहीं है यह बाबा विश्वनाथ जी की राजधानी है !
काशी बाबा विश्वनाथ जी की राजधानी है उसे शिव भक्तों ने अखाड़ा नहीं बनने दिया वहाँ तो मोदी जी श्रद्धा पूर्वक बाबा के द्वार पर सेवा माँगने गए बाबा ने उन्हें निराश नहीं किया !
वाराणसी के गौरव के विरुद्ध बढ़ रही राजनैतिक बयानबाजी रुकनी चाहिए थी नहीं रुकी तो जनता ने सिखाया ऐसे प्लास्टिकी नेताओं को सबक !
लालू ने कहा कि मोदी की राजनैतिक कब्र बनेगा बनारस! तो केजरीवाल बोले कि मोदी की चुनौती स्वीकार !तो रशीद अल्वी भी चुनाव लड़ने को तैयार थे और चिदंबरम साहब का भी कहना था कि वो यदि हिंदी में अपाहिज न होते तो मोदी के सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत जरूर बाँधते !और दिग्विजय सिंह जी का नाम भी चर्चा में आ चुका था आश्चर्य है बनारस का चुनाव !!!
माता काशी को कोटिशः नमन !
मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि काशी कोई सामान्य शहर भर नहीं है जो नेता लोग आधार हीन ऊल जुलूल वक्तव्य देते चले जा रहे हैं!उन्हें समझ लेना चाहिए कि काशी में केवल बाबा विश्वनाथ जी का ही हुक्म चलेगा यहाँ चुनौतियों का क्या मतलब?यहाँ आकर शास्त्रार्थ के लिए तो कोई ललकार नहीं सका फिर चुनाव के लिए कोई चुनौती देगा!जिस किसी का भाग्य ही ख़राब होगा तो ऐसा करेगा! यहाँ तो बाबा विश्वनाथ जी से श्रद्धा पूर्वक सेवा माँगी जा सकती है शासन नहीं !कोई केवल सांसद बनने के अहंकार में काशी में प्रवेश ही क्यों करे ?जब उसे काशी के प्रति आस्था न हो सेवा भावना न हो!
पता लगा है कि कोई प्लास्टिक का ईमानदार वहाँ भी पहले जनमत संग्रह करने का ड्रामा करना चाह रहा है बाद में लड़ेगा चुनाव !उसे यह नहीं पता है कि बाबा विश्वनाथ जी से मोदी जी पहले ही सेवा माँग आए हैं तो क्या काशी की जनता बाबा विश्वनाथ जी के आशीर्वाद से अलग चली जाएगी !ऐसी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए पवित्र काशीवासी काशी में जाकर चुनौती देने वालों से एवं काशी को कब्र बनाने वालों से शक्तिपूर्वक निपटना जानते हैं।जहाँ का कंकर कंकर शंकर हो वहाँ किसी की तानाशाही कैसे चलेगी सम्भव ही नहीं है!और मोदी जी से भी निवेदन है कि काशी में चुनाव लड़ने की भावना ही न रखें वहाँ तो शिवद्वार के भिक्षुक बनकर श्रद्धा पूर्वक जाएँ बाबा विश्वनाथ जी किसी को निराश नहीं करते उन्हें भी नहीं करेंगे!
काशी के विषय में एक बात और ध्यान रखी जानी चाहिए कि काशी में झूठे आश्वासनों से बचा जाना चाहिए क्योंकि "काशी क्षेत्रे कृतं पापं बज्रलेपो भविष्यति।"
कुछ सत्तालोलुप नेताओं की ऊट पटांग बातें सुनकर लगता है भारत में रहकर ये
बेचारे इतने नादान हैं ये काशी के गौरव से बिलकुल अनजान हैं क्या !सम्पूर्ण
भारत वर्ष में काशी ही ऐसी दिव्यतमा पुरी है जिसका सम्मान प्रकृति भी करती
है! भगवान शिव का बॉस उत्तर दिशा है इसलिए माँ गंगा भी काशी में पहुँचकर
अपनी दिशा बदल लेती हैं और बहने लगती हैं उत्तरमुखी होकर !और राजघाट के पुल
के पास से फिर पूर्व मुखी होकर बहने लगती हैं।जिस काशी का प्रलयकाल में भी
विनाश नहीं होता है भगवान् शिव जिसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं ऐसी
शास्त्र मानता है ! काशी कोई सामान्य शहर नहीं है-
काश्यां ही काशते काशी काशी सर्व प्रकाशिका।
सा काशी विदिता येन तेन प्राप्त ही काशिका॥
सभी जातियों सभी समुदायों सम्प्रदायों के गरीब अमीरों की समान रूप से जीवन संजीवनी माता काशी कभी किसी की कब्रगाह नहीं हो सकती !जिन बड़े बड़े दीन हीन अकिंचनों स्वजनों से उपेक्षितों आश्रय हीनों ने भी माता अन्नपूर्णा का प्रसाद पाकर भगवान विश्वनाथ बाबा की चरण शरण में प्राणयात्रा प्रारम्भ की है आज आजीविका के लिए वो देश के विभिन्न भागों में जीवन यापन भले ही कर रहे हैं किन्तु आज भी काशी के दर्शन एवं चर्चा टी.वी.चैनलों पर देख सुन कर उनकी आँखें भर आती हैं जो आज भी काशी की गरिमा का पोषण अपने प्राणों से करते हैं उनसे पूछो क्या बीतती है उन पर! शूल से चुभते हैं उनके वे शब्द जिनसे कोई काशी के गौरव के साथ खिलवाड़ करता है ।काशी पर लोग कितना गर्व करते हैं ये वही जानता है जो कभी भगयवश काशीवासी बनकर रहा है !
दो. चना चबेना गंगजल जो देवे करतार ।
काशी कबहुँ न छोड़हीं विश्वनाथ दरवार ॥
प्रेम से बोलो हर हर महादेव !
यह लिंक भी पढ़ें ---
केजरीवाल जी कहते हैं कि मोदी के प्रचार में जुटा है मीडिया ! लेकिन क्यों ?
केजरीवाल जी !केवल पुण्यवान व्यक्ति के ही झूठ को भी समर्थन मिलता है वह भी तब तक जब तक पुण्य पास होते हैं किन्तु वास्तव में पूजा तो सदैव सत्य ही जाता है !
अरविन्द केजरीवाल जी! इसमें आश्चर्य क्या है ! सच का साथ सभी हमेंशा देते हैं see more…snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_6595.html
Friday, March 28, 2014
ये क्या धर्म का उपहास नहीं है क्यों नहीं किया जाता ऐसी बकवासों का विरोध !
श्री आसारामायण - Shri Asaramayan गुरु चरण रज शीष धरि, हृदय रूप विचार।
श्रीआसारामायण कहौं, वेदान्त को सार।।
धर्म कामार्थ मोक्ष दे, रोग शोक संहार।
भजे जो भक्ति भाव से, शीघ्र हो बेड़ा पार।।
भारत सिंधु नदी बखानी, नवाब जिले में गाँव बेराणी।
रहता एक सेठ गुण खानि, नाम थाऊमल सिरुमलानी।। आज्ञा में रहती मेंहगीबा, पतिपरायण नाम मंगीबा।
चैत वद छः उन्नीस अठानवे, आसुमल अवतरित आँगने।।
माँ मन में उमड़ा सुख सागर, द्वार पै आया एक सौदागर।
लाया एक अति सुन्दर झूला, देख पिता मन हर्ष से फूला।।
सभी चकित ईश्वर की माया, उचित समय पर कैसे आया।
ईश्वर की ये लीला भारी, बालक है कोई चमत्कारी।। संत की सेवा औ' श्रुति श्रवण, मात पिता उपकारी।
धर्म पुरुष जन्मा कोई, पुण्यों का फल भारी।।
सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी।
समाज में थी मान्यता जैसी, प्रचलित एक कहावत ऐसी।।
तीन बहन के बाद जो आता, पुत्र वह त्रेखन कहलाता।
होता अशुभ अमंगलकारी, दरिदता लाता है भारी।। विपरीत किंतु दिया दिखाई, घर में जैसे
लक्ष्मी आयी।
तिरलोकी का आसन डोला, कुबेर ने भंडार ही खोला।
मान प्रतिष्ठा और बड़ाई, सबके मन सुख शांति छाई।।
तेजोमय बालक बढ़ा, आनन्द बढ़ा अपार।
शील शांति का आत्मधन, करने लगा विस्तार।। एक दिना थाऊमल द्वारे, कुलगुरु परशुराम पधारे।
ज्यूँ ही बालक को निहारे, अनायास ही सहसा पुकारे।।
यह नहीं बालक साधारण, दैवी लक्षण तेज है कारण।
नेत्रों में है सात्विक लक्षण, इसके कार्य बड़े
विलक्षण।।
यह तो महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा। सुनी गुरु की भविष्यवाणी, गदगद हो गये सिरुमलानी।
माता ने भी माथा चूमा, हर कोई ले करके घूमा।।
ज्ञानी वैरागी पूर्व का, तेरे घर में आय।
जन्म लिया है योगी ने, पुत्र तेरा कहलाय।।
पावन तेरा कुल हुआ, जननी कोख कृतार्थ।
नाम अमर तेरा हुआ, पूर्ण चार पुरुषार्थ।। सैतालीस में देश विभाजन, पाक में छोड़ा भू पशु औ' धन।
भारत अमदावाद में आये, मणिनगर में शिक्षा पाये।।
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति, आसुमल की आशु
युक्ति।
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता, त्वरित कार्य औ'
सहनशीलता।। आसुमल प्रसन्न मुख रहते, शिक्षक हँसमुखभाई कहते।
पिस्ता बादाम काजू अखरोटा, भरे जेब खाते भर पेटा।।
दे दे मक्खन मिश्री कूजा, माँ ने सिखाया ध्यान औ' पूजा।
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे, रहे न मछली जल बिन जैसे।।
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे, वही है
विद्या या विमुक्तये। बहुत रात तक पैर दबाते, भरे कंठ पितु आशीष पाते।।
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम।
लोगों के तुम से सदा, पूरण होंगे काम।।
सिर से हटी पिता की छाया, तब माया ने जाल फैलाया।
बड़े भाई का हुआ दुःशासन, व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन।।
छूटा वैभव स्कूली शिक्षा, शुरु हो गयी अग्नि परीक्षा। गये सिद्धपुर नौकरी करने, कृष्ण के आगे बहाये झरने।।
सेवक सखा भाव से भीजे, गोविन्द माधव तब रीझे।
एक दिन एक माई आई, बोली हे भगवन सुखदाई।।
पड़े पुत्र दुःख मुझे झेलने, खून केस दो बेटे जेल में।
बोले आसु सुख पावेंगे, निर्दोष छूट जल्दी आवेंगे।
बेटे घर आये माँ भागी, आसुमल के पाँवों लागी।। आसुमल का पुष्ट हुआ, अलौकिक प्रभाव।
वाकसिद्धि की शक्ति का, हो गया प्रादुर्भाव।।
बरस सिद्धपुर तीन बिताये, लौट अमदावाद में आये।
करने लगी लक्ष्मी नर्तन, किया भाई का दिल
परिवर्तन।।
दरिद्रता को दूर कर दिया, घर वैभव भरपूर कर दिया। सिनेमा उन्हें कभी न भाये, बलात् ले गये रोते आये।।
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया, उसको ही अब रोना आया।
माँ करना चाहती थी शादी, आसुमल का मन वैरागी।।
फिर भी सबने शक्ति लगाई, जबरन कर दी उनकी सगाई।
शादी को जब हुआ उनका मन, आसुमल कर गये पलायन।।
पंडित कहा गुरु समर्थ को, रामदास सावधान। शादी फेरे फिरते हुए, भागे छुड़ाकर जान।।
करत खोज में निकल गया दम, मिले भरूच में अशोक
आश्रम।
कठिनाई से मिला रास्ता, प्रतिष्ठा का दिया वास्ता।।
घर में लाये आजमाये गुर, बारात ले पहुँचे आदिपुर।
विवाह हुआ पर मन दृढ़ाया, भगत ने पत्नी को समझाया।। अपना व्यवहार होगा ऐसे, जल में कमल रहता है जैसे।
सांसारिक व्यौहार तब होगा, जब मुझे साक्षात्कार होगा।
साथ रहे ज्यूँ आत्माकाया, साथ रहे वैरागी माया।।
अनश्वर हूँ मैं जानता, सत चित हूँ आनन्द।
स्थिति में जीने लगूँ, होवे परमानन्द।।
मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु, संस्कृत भाषा है एक सेतु। संस्कृत की शिक्षा पाई, गति और साधना बढ़ाई।।
एक श्लोक हृदय में पैठा, वैराग्य सोया उठ बैठा।
आशा छोड़ नैराश्यवलंबित, उसकी शिक्षा पूर्ण
अनुष्ठित।।
लक्ष्मी देवी को समझाया, ईश प्राप्ति ध्येय बताया।
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा, लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा।।
केदारनाथ के दर्शन पाये, लक्षाधिपति आशिष पाये।
पुनि पूजा पुनः संकल्पाये, ईश प्राप्ति आशिष पाये।।
आये कृष्ण लीलास्थली में, वृन्दावन की कुंज गलिन में।
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला, वे जा पहुँचे नैनिताला।।
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित, स्वामी लीलाशाह प्रतिष्ठित।
भीतर तरल थे बाहर कठोरा, निर्विकल्प ज्यूँ कागज
कोरा।
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी, ब्रह्मस्थित
आत्मसाक्षात्कारी।।
ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान। ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान।।
जानने को साधक की कोटि, सत्तर दिन तक हुई
कसौटी।
कंचन को अग्नि में तपाया, गुरु ने आसुमल बुलवाया।।
कहा गृहस्थ हो कर्म करना, ध्यान भजन घर ही करना।
आज्ञा मानी घर पर आये, पक्ष में मोटी कोरल धाये।। नर्मदा तट पर ध्यान लगाये, लालजी महाराज आकर्षाये।
सप्रेम शीलस्वामी पहँ धाये, दत्तकुटीर में साग्रह लाये।।
उमड़ा प्रभु प्रेम का चसका, अनुष्ठान चालीस दिवस का।
मरे छः शत्रु स्थिति पाई, ब्रह्मनिष्ठता सहज समाई।।
शुभाशुभ सम रोना गाना, ग्रीष्म ठंड मान औ' अपमाना।
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास, महल औ' कुटिया आसनिरास।
भक्तियोग ज्ञान अभ्यासी, हुए समान मगहर औ'
कासी।।
भव ही कारण ईश है, न स्वर्ण काठ पाषान।
सत चित्त आनंदस्वरूप है, व्यापक है भगवान।।
ब्रह्मेशान जनार्दन, सारद सेस गणेश। निराकार साकार है, है सर्वत्र भवेश।।
हुए आसुमल ब्रह्माभ्यासी, जन्म अनेकों लागे बासी।
दूर हो गई आधि व्याधि, सिद्ध हो गई सहज समाधि।।
इक रात नदी तट मन आकर्षा, आई जोर से आँधी वर्षा।
बंद मकान बरामदा खाली, बैठे वहीं समाधि लगा ली।।
देखा किसी ने सोचा डाकू, लाये लाठी भाला चाकू। दौड़े चीखे शोर मच गया, टूटी समाधि ध्यान खिंच गया।।
साधक उठा थे बिखरे केशा, राग द्वेष ना किंचित् लेशा।
सरल लोगों ने साधु माना, हत्यारों ने काल ही जाना।।
भैरव देख दुष्ट घबराये, पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाये।
कामीजनों ने आशिक माना, साधुजन कीन्हें परनामा।।
एक दृष्टि देखे सभी, चले शांत गम्भीर। सशस्त्रों की भीड़ को, सहज गये वे चीर।।
माता आई धर्म की सेवी, साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी।
दोनों फूट-फूट के रोई, रुदन देख करुणा भी रोई।।
संत लालजी हृदय पसीजा, हर दर्शक आँसू में भीजा।
कहा सभी ने आप जाइयो, आसुमल बोले कि भाइयों।।
चालीस दिवस हुआ न पूरा, अनुष्ठान है मेरा अधूरा। आसुमल ने छोड़ी तितिक्षा, माँ पत्नी ने
की परतीक्षा।।
जिस दिन गाँव से हुई विदाई, जार जार रोय लोग-लुगाई।
अमदावाद को हुए रवाना, मियाँगाँव से किया पयाना।।
मुंबई गये गुरु की चाह, मिले वहीं पै लीलाशाह।
परम पिता ने पुत्र को देखा, सूर्य ने घटजल में पेखा।। घटक तोड़ जल जल में मिलाया, जल प्रकाश आकाश में
छाया।
निज स्वरूप का ज्ञान दृढ़ाया, ढाई दिवस होश न आया।।
आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार। हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार।।
परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया, जीव गया और शिव को पाया।
जान लिया हूँ शांत निरंजन, लागू मुझे न कोई बन्धन।।
यह जगत सारा है नश्वर, मैं ही शाश्वत एक अनश्वर।
दीद हैं दो पर दृष्टि एक है, लघु गुरु में वही एक है।।
सर्वत्र एक किसे बतलाये, सर्वव्याप्त कहाँ आये जाये। अनन्त शक्तिवाला अविनाशी,
रिद्धि सिद्धि उसकी दासी।।
सारा ही ब्रह्माण्ड पसारा, चले उसकी इच्छानुसारा।
यदि वह संकल्प चलाये, मुर्दा भी जीवित हो जाये।।
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष।
मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश।। पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान।
आसुमल से हो गये, साँई आसाराम।।
जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते, ब्रह्मानन्द का आनन्द लेते।
खाते पीते मौन या कहते, ब्रह्मानन्द मस्ती में रहते।।
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश, गृहस्थ साधु करो उपदेश।
किये गुरु ने वारे न्यारे, गुजरात डीसा गाँव पधारे। मृत गाय दिया जीवन दाना, तब से लोगों ने पहचाना।।
द्वार पै कहते नारायण हरि, लेने जाते कभी मधुकरी।
तब से वे सत्संग सुनाते, सभी आर्ती शांति पाते।।
जो आया उद्धार कर दिया, भक्त का बेड़ा पार कर दिया।
कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य
छुड़ाये।। एक दिन मन उकता गया, किया डीसा से कूच।
आई मौज फकीर की, दिया झोपड़ा फूँक।।
वे नारेश्वर धाम पधारे, जा पहुँचे नर्मदा किनारे।
मीलों पीछे छोड़ा मन्दर, गये घोर जंगल के अन्दर।।
घने वृक्ष तले पत्थर पर, बैठे ध्यान निरंजन का घर।
रात गयी प्रभात हो आई, बाल रवि ने सूरत दिखाई।। प्रातः पक्षी कोयल कूकन्ता, छूटा ध्यान उठे तब संता।
प्रातर्विधि निवृत्त हो आये, तब आभास
क्षुधा का पाये।।
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा।
जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्त्ता खुद लायेगा।।
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये, त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये। दोनों सिर बाँधे साफा, खाद्यपेय लिये दोनों हाथा।।
बोले जीवन सफल है आज, अर्घ्य स्वीकारो महाराज।
बोले संत और पै जाओ, जो है तुम्हारा उसे खिलाओ।।
बोले किसान आपको देखा, स्वप्न में मार्ग रात को देखा।
हमारा न कोई संत है दूजा, आओ गाँव करें तुमरी पूजा।।
आसाराम तब में धारे, निराकार आधार हमारे। पिया दूध थोड़ा फल खाया, नदी किनारे जोगी धाया।।
गाँधीनगर गुजरात में, है मोटेरा ग्राम।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का, यहीं है पावन धाम।।
आत्मानंद में मस्त हैं, करें वेदान्ती खेल।
भक्तियोग और ज्ञान का, सदगुरु करते मेल।।
साधिकाओं का अलग, आश्रम नारी उत्थान। नारी शक्ति जागृत सदा, जिसका नहीं बयान।।
बालक वृद्ध और नरनारी, सभी प्रेरणा पायें भारी।
एक बार जो दर्शन पाये, शांति का अनुभव हो जाये।।
नित्य विविध प्रयोग करायें, नादानुसन्धान बतायें।
नाभि से वे ओम कहलायें, हृदय से वे राम कहलायें।।
सामान्य ध्यान जो लगायें, उन्हें वे गहरे में ले जायें। सबको निर्भय योग सिखायें, सबका आत्मोत्थान
करायें।।
हजारों के रोग मिटाये, और लाखों के शोक छुड़ाये।
अमृतमय प्रसाद जब देते, भक्त का रोग शोक हर लेते।।
जिसने नाम का दान लिया है, गुरु अमृत का पान किया है।
उनका योग क्षेम वे रखते, वे न तीन तापों से तपते।। धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते, आपद रोगों से बच जाते।
सभी शिष्य रक्षा पाते हैं, सूक्ष्म शरीर गुरु आते हैं।।
सचमुच गुरु हैं दीनदयाल, सहज ही कर देते हैं निहाल।
वे चाहते सब झोली भर लें, निज आत्मा का दर्शन कर लें।।
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे।
गंगाराम शील है दासा, होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा।। वराभयदाता सदगुरु, परम हि भक्त कृपाल।
निश्छल प्रेम से जो भजे, साँई करे निहाल।।
मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत।
हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
श्रीआसारामायण कहौं, वेदान्त को सार।।
धर्म कामार्थ मोक्ष दे, रोग शोक संहार।
भजे जो भक्ति भाव से, शीघ्र हो बेड़ा पार।।
भारत सिंधु नदी बखानी, नवाब जिले में गाँव बेराणी।
रहता एक सेठ गुण खानि, नाम थाऊमल सिरुमलानी।। आज्ञा में रहती मेंहगीबा, पतिपरायण नाम मंगीबा।
चैत वद छः उन्नीस अठानवे, आसुमल अवतरित आँगने।।
माँ मन में उमड़ा सुख सागर, द्वार पै आया एक सौदागर।
लाया एक अति सुन्दर झूला, देख पिता मन हर्ष से फूला।।
सभी चकित ईश्वर की माया, उचित समय पर कैसे आया।
ईश्वर की ये लीला भारी, बालक है कोई चमत्कारी।। संत की सेवा औ' श्रुति श्रवण, मात पिता उपकारी।
धर्म पुरुष जन्मा कोई, पुण्यों का फल भारी।।
सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी।
समाज में थी मान्यता जैसी, प्रचलित एक कहावत ऐसी।।
तीन बहन के बाद जो आता, पुत्र वह त्रेखन कहलाता।
होता अशुभ अमंगलकारी, दरिदता लाता है भारी।। विपरीत किंतु दिया दिखाई, घर में जैसे
लक्ष्मी आयी।
तिरलोकी का आसन डोला, कुबेर ने भंडार ही खोला।
मान प्रतिष्ठा और बड़ाई, सबके मन सुख शांति छाई।।
तेजोमय बालक बढ़ा, आनन्द बढ़ा अपार।
शील शांति का आत्मधन, करने लगा विस्तार।। एक दिना थाऊमल द्वारे, कुलगुरु परशुराम पधारे।
ज्यूँ ही बालक को निहारे, अनायास ही सहसा पुकारे।।
यह नहीं बालक साधारण, दैवी लक्षण तेज है कारण।
नेत्रों में है सात्विक लक्षण, इसके कार्य बड़े
विलक्षण।।
यह तो महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा। सुनी गुरु की भविष्यवाणी, गदगद हो गये सिरुमलानी।
माता ने भी माथा चूमा, हर कोई ले करके घूमा।।
ज्ञानी वैरागी पूर्व का, तेरे घर में आय।
जन्म लिया है योगी ने, पुत्र तेरा कहलाय।।
पावन तेरा कुल हुआ, जननी कोख कृतार्थ।
नाम अमर तेरा हुआ, पूर्ण चार पुरुषार्थ।। सैतालीस में देश विभाजन, पाक में छोड़ा भू पशु औ' धन।
भारत अमदावाद में आये, मणिनगर में शिक्षा पाये।।
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति, आसुमल की आशु
युक्ति।
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता, त्वरित कार्य औ'
सहनशीलता।। आसुमल प्रसन्न मुख रहते, शिक्षक हँसमुखभाई कहते।
पिस्ता बादाम काजू अखरोटा, भरे जेब खाते भर पेटा।।
दे दे मक्खन मिश्री कूजा, माँ ने सिखाया ध्यान औ' पूजा।
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे, रहे न मछली जल बिन जैसे।।
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे, वही है
विद्या या विमुक्तये। बहुत रात तक पैर दबाते, भरे कंठ पितु आशीष पाते।।
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम।
लोगों के तुम से सदा, पूरण होंगे काम।।
सिर से हटी पिता की छाया, तब माया ने जाल फैलाया।
बड़े भाई का हुआ दुःशासन, व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन।।
छूटा वैभव स्कूली शिक्षा, शुरु हो गयी अग्नि परीक्षा। गये सिद्धपुर नौकरी करने, कृष्ण के आगे बहाये झरने।।
सेवक सखा भाव से भीजे, गोविन्द माधव तब रीझे।
एक दिन एक माई आई, बोली हे भगवन सुखदाई।।
पड़े पुत्र दुःख मुझे झेलने, खून केस दो बेटे जेल में।
बोले आसु सुख पावेंगे, निर्दोष छूट जल्दी आवेंगे।
बेटे घर आये माँ भागी, आसुमल के पाँवों लागी।। आसुमल का पुष्ट हुआ, अलौकिक प्रभाव।
वाकसिद्धि की शक्ति का, हो गया प्रादुर्भाव।।
बरस सिद्धपुर तीन बिताये, लौट अमदावाद में आये।
करने लगी लक्ष्मी नर्तन, किया भाई का दिल
परिवर्तन।।
दरिद्रता को दूर कर दिया, घर वैभव भरपूर कर दिया। सिनेमा उन्हें कभी न भाये, बलात् ले गये रोते आये।।
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया, उसको ही अब रोना आया।
माँ करना चाहती थी शादी, आसुमल का मन वैरागी।।
फिर भी सबने शक्ति लगाई, जबरन कर दी उनकी सगाई।
शादी को जब हुआ उनका मन, आसुमल कर गये पलायन।।
पंडित कहा गुरु समर्थ को, रामदास सावधान। शादी फेरे फिरते हुए, भागे छुड़ाकर जान।।
करत खोज में निकल गया दम, मिले भरूच में अशोक
आश्रम।
कठिनाई से मिला रास्ता, प्रतिष्ठा का दिया वास्ता।।
घर में लाये आजमाये गुर, बारात ले पहुँचे आदिपुर।
विवाह हुआ पर मन दृढ़ाया, भगत ने पत्नी को समझाया।। अपना व्यवहार होगा ऐसे, जल में कमल रहता है जैसे।
सांसारिक व्यौहार तब होगा, जब मुझे साक्षात्कार होगा।
साथ रहे ज्यूँ आत्माकाया, साथ रहे वैरागी माया।।
अनश्वर हूँ मैं जानता, सत चित हूँ आनन्द।
स्थिति में जीने लगूँ, होवे परमानन्द।।
मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु, संस्कृत भाषा है एक सेतु। संस्कृत की शिक्षा पाई, गति और साधना बढ़ाई।।
एक श्लोक हृदय में पैठा, वैराग्य सोया उठ बैठा।
आशा छोड़ नैराश्यवलंबित, उसकी शिक्षा पूर्ण
अनुष्ठित।।
लक्ष्मी देवी को समझाया, ईश प्राप्ति ध्येय बताया।
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा, लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा।।
केदारनाथ के दर्शन पाये, लक्षाधिपति आशिष पाये।
पुनि पूजा पुनः संकल्पाये, ईश प्राप्ति आशिष पाये।।
आये कृष्ण लीलास्थली में, वृन्दावन की कुंज गलिन में।
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला, वे जा पहुँचे नैनिताला।।
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित, स्वामी लीलाशाह प्रतिष्ठित।
भीतर तरल थे बाहर कठोरा, निर्विकल्प ज्यूँ कागज
कोरा।
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी, ब्रह्मस्थित
आत्मसाक्षात्कारी।।
ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान। ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान।।
जानने को साधक की कोटि, सत्तर दिन तक हुई
कसौटी।
कंचन को अग्नि में तपाया, गुरु ने आसुमल बुलवाया।।
कहा गृहस्थ हो कर्म करना, ध्यान भजन घर ही करना।
आज्ञा मानी घर पर आये, पक्ष में मोटी कोरल धाये।। नर्मदा तट पर ध्यान लगाये, लालजी महाराज आकर्षाये।
सप्रेम शीलस्वामी पहँ धाये, दत्तकुटीर में साग्रह लाये।।
उमड़ा प्रभु प्रेम का चसका, अनुष्ठान चालीस दिवस का।
मरे छः शत्रु स्थिति पाई, ब्रह्मनिष्ठता सहज समाई।।
शुभाशुभ सम रोना गाना, ग्रीष्म ठंड मान औ' अपमाना।
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास, महल औ' कुटिया आसनिरास।
भक्तियोग ज्ञान अभ्यासी, हुए समान मगहर औ'
कासी।।
भव ही कारण ईश है, न स्वर्ण काठ पाषान।
सत चित्त आनंदस्वरूप है, व्यापक है भगवान।।
ब्रह्मेशान जनार्दन, सारद सेस गणेश। निराकार साकार है, है सर्वत्र भवेश।।
हुए आसुमल ब्रह्माभ्यासी, जन्म अनेकों लागे बासी।
दूर हो गई आधि व्याधि, सिद्ध हो गई सहज समाधि।।
इक रात नदी तट मन आकर्षा, आई जोर से आँधी वर्षा।
बंद मकान बरामदा खाली, बैठे वहीं समाधि लगा ली।।
देखा किसी ने सोचा डाकू, लाये लाठी भाला चाकू। दौड़े चीखे शोर मच गया, टूटी समाधि ध्यान खिंच गया।।
साधक उठा थे बिखरे केशा, राग द्वेष ना किंचित् लेशा।
सरल लोगों ने साधु माना, हत्यारों ने काल ही जाना।।
भैरव देख दुष्ट घबराये, पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाये।
कामीजनों ने आशिक माना, साधुजन कीन्हें परनामा।।
एक दृष्टि देखे सभी, चले शांत गम्भीर। सशस्त्रों की भीड़ को, सहज गये वे चीर।।
माता आई धर्म की सेवी, साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी।
दोनों फूट-फूट के रोई, रुदन देख करुणा भी रोई।।
संत लालजी हृदय पसीजा, हर दर्शक आँसू में भीजा।
कहा सभी ने आप जाइयो, आसुमल बोले कि भाइयों।।
चालीस दिवस हुआ न पूरा, अनुष्ठान है मेरा अधूरा। आसुमल ने छोड़ी तितिक्षा, माँ पत्नी ने
की परतीक्षा।।
जिस दिन गाँव से हुई विदाई, जार जार रोय लोग-लुगाई।
अमदावाद को हुए रवाना, मियाँगाँव से किया पयाना।।
मुंबई गये गुरु की चाह, मिले वहीं पै लीलाशाह।
परम पिता ने पुत्र को देखा, सूर्य ने घटजल में पेखा।। घटक तोड़ जल जल में मिलाया, जल प्रकाश आकाश में
छाया।
निज स्वरूप का ज्ञान दृढ़ाया, ढाई दिवस होश न आया।।
आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार। हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार।।
परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया, जीव गया और शिव को पाया।
जान लिया हूँ शांत निरंजन, लागू मुझे न कोई बन्धन।।
यह जगत सारा है नश्वर, मैं ही शाश्वत एक अनश्वर।
दीद हैं दो पर दृष्टि एक है, लघु गुरु में वही एक है।।
सर्वत्र एक किसे बतलाये, सर्वव्याप्त कहाँ आये जाये। अनन्त शक्तिवाला अविनाशी,
रिद्धि सिद्धि उसकी दासी।।
सारा ही ब्रह्माण्ड पसारा, चले उसकी इच्छानुसारा।
यदि वह संकल्प चलाये, मुर्दा भी जीवित हो जाये।।
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष।
मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश।। पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान।
आसुमल से हो गये, साँई आसाराम।।
जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते, ब्रह्मानन्द का आनन्द लेते।
खाते पीते मौन या कहते, ब्रह्मानन्द मस्ती में रहते।।
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश, गृहस्थ साधु करो उपदेश।
किये गुरु ने वारे न्यारे, गुजरात डीसा गाँव पधारे। मृत गाय दिया जीवन दाना, तब से लोगों ने पहचाना।।
द्वार पै कहते नारायण हरि, लेने जाते कभी मधुकरी।
तब से वे सत्संग सुनाते, सभी आर्ती शांति पाते।।
जो आया उद्धार कर दिया, भक्त का बेड़ा पार कर दिया।
कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य
छुड़ाये।। एक दिन मन उकता गया, किया डीसा से कूच।
आई मौज फकीर की, दिया झोपड़ा फूँक।।
वे नारेश्वर धाम पधारे, जा पहुँचे नर्मदा किनारे।
मीलों पीछे छोड़ा मन्दर, गये घोर जंगल के अन्दर।।
घने वृक्ष तले पत्थर पर, बैठे ध्यान निरंजन का घर।
रात गयी प्रभात हो आई, बाल रवि ने सूरत दिखाई।। प्रातः पक्षी कोयल कूकन्ता, छूटा ध्यान उठे तब संता।
प्रातर्विधि निवृत्त हो आये, तब आभास
क्षुधा का पाये।।
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा।
जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्त्ता खुद लायेगा।।
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये, त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये। दोनों सिर बाँधे साफा, खाद्यपेय लिये दोनों हाथा।।
बोले जीवन सफल है आज, अर्घ्य स्वीकारो महाराज।
बोले संत और पै जाओ, जो है तुम्हारा उसे खिलाओ।।
बोले किसान आपको देखा, स्वप्न में मार्ग रात को देखा।
हमारा न कोई संत है दूजा, आओ गाँव करें तुमरी पूजा।।
आसाराम तब में धारे, निराकार आधार हमारे। पिया दूध थोड़ा फल खाया, नदी किनारे जोगी धाया।।
गाँधीनगर गुजरात में, है मोटेरा ग्राम।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का, यहीं है पावन धाम।।
आत्मानंद में मस्त हैं, करें वेदान्ती खेल।
भक्तियोग और ज्ञान का, सदगुरु करते मेल।।
साधिकाओं का अलग, आश्रम नारी उत्थान। नारी शक्ति जागृत सदा, जिसका नहीं बयान।।
बालक वृद्ध और नरनारी, सभी प्रेरणा पायें भारी।
एक बार जो दर्शन पाये, शांति का अनुभव हो जाये।।
नित्य विविध प्रयोग करायें, नादानुसन्धान बतायें।
नाभि से वे ओम कहलायें, हृदय से वे राम कहलायें।।
सामान्य ध्यान जो लगायें, उन्हें वे गहरे में ले जायें। सबको निर्भय योग सिखायें, सबका आत्मोत्थान
करायें।।
हजारों के रोग मिटाये, और लाखों के शोक छुड़ाये।
अमृतमय प्रसाद जब देते, भक्त का रोग शोक हर लेते।।
जिसने नाम का दान लिया है, गुरु अमृत का पान किया है।
उनका योग क्षेम वे रखते, वे न तीन तापों से तपते।। धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते, आपद रोगों से बच जाते।
सभी शिष्य रक्षा पाते हैं, सूक्ष्म शरीर गुरु आते हैं।।
सचमुच गुरु हैं दीनदयाल, सहज ही कर देते हैं निहाल।
वे चाहते सब झोली भर लें, निज आत्मा का दर्शन कर लें।।
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे।
गंगाराम शील है दासा, होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा।। वराभयदाता सदगुरु, परम हि भक्त कृपाल।
निश्छल प्रेम से जो भजे, साँई करे निहाल।।
मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत।
हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
Monday, March 24, 2014
हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु किसी को क्रिकेट का भगवान् कहना कहाँ तक उचित है ?see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html
हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु
हर हर मोदी कहना गलत है किन्तु लालू चालीसा लिखी गई तब किसी को बुरा क्यों नहीं लगा !see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.htmlहर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु
आंध्र प्रदेश के विधायक ने जब सोनियाँ गांधी का मंदिर बनवाया तब किसी को बुरा क्यों नहीं लगा ?seemore...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html
हर हर मोदी कहना बुरा है तो सोनियाँ का मंदिर, सचिन का मंदिर ,अमिताभ का मंदिर ,नेताओं की चालीसा और बाबाओं की आरती बुरी क्यों नहीं लगती ? see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html