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Monday, March 31, 2014

19.6.2014 से 14.7.2015 इस समय सांप्रदायिक उन्माद से माहौल बिगड़ भी सकता है - ज्योतिष

  इस समय सभी दलों राजनेताओं पत्रकार बंधुओं एवं समाज के सभी वर्गों को शांति  सद्भावना बनाए रखने का प्रयास करते रहना चाहिए !सामाजिक उन्माद बढ़ाने वाले किसी भी बात व्यवहार से बचा जाना चाहिए !

     इस समय सांप्रदायिक उन्माद से बचा जाना चाहिए अन्यथा ज्योतिषीय दृष्टि से सन 1988 से 1992  जैसा समय एक बार फिर लौट रहा है उस समय केंद्र में काँग्रेस या काँग्रेस समर्थित सरकार थी  एवं उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी आज भी केंद्र से प्रदेश तक सब कुछ वैसा ही चल रहा है ठीक उसी तरह तब काँग्रेस की कमान युवा राजीव  गाँधी  के हाथ में थी अब युवा राहुल के हाथ में है तब केंद्र सरकार पर राजीव गाँधी जी का नियंत्रण था अब राहुल गाँधी का है ।तब केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे थे अब भी सब कुछ वैसा ही चल रहा है ! 

       वहीँ दूसरी तरफ तब उत्तरप्रदेश की कमान युवा मुलायम सिंह जी के हाथों में थी अब युवा अखिलेश यादव के हाथों  में है । जैसे तब देश के आर्थिक हालात गड़बड़ा रहे थे वैसे ही आज भी रुपए की हालत खस्ता है।उधर तब भाजपा में अटल जी की छवि को आगे करके चुनावों में जाने की तैयारी की जा रही थी अब नरेन्द्र मोदी जी की छवि को आगे करके चुनावों में जाने की तैयारी की जा रही है। जैसे तब अटल जी साथ समूचा संघ परिवार अपने सारे आयामों के साथ खड़ा था वही सौभाग्य आज  मोदी जी को प्राप्त है।जैसे तब हिंदुत्व मुद्दा बना था वैसे अब हिंदुत्व मुद्दा बनेगा जैसे तब श्री राम मंदिर निर्माण का राग अलापा गया था वैसे अब श्री राम मंदिर निर्माण के लिए आन्दोलन चलाए जाएँगे। जैसे तब भाजपा अध्यक्ष की लोकप्रियता अटल जी से कमजोर थी वैसे अब भाजपा अध्यक्ष की लोकप्रियता मोदी  जी से कमजोर है वो अटल जी का गुण गान कर रहे थे ये मोदी जी का कर रहे हैं जैसे अटल जी को प्रधान मंत्री बनने में लगभग आठ साल लग गए थे वैसे ही मोदी जी को भी प्रधान मंत्री बनने में लगभग आठ साल लग ही जाएँगे सन2021 से 2022 के आस पास जो चुनाव होंगे उसमें मोदी जी सर्व स्वीकार्य होकर प्रधान मंत्री अवश्य बनेंगे।

       इस प्रकार से सबकुछ बिलकुल वैसा ही दिखता है जैसा  सन 1988 से 1992 के बीच हुआ था । ईश्वर से प्रार्थना है कि उस समय जैसा जो कुछ हुआ था सो और सब भले हो किन्तु उस समय कुछ विशेष अप्रिय घटनाएँ भी  घटी थीं उनका पुनरावर्तन न हो ।उसी समय कारसेवकों का दुर्दमन किया गया,विवादित ढाँचा ढहाया गया उसके बाद दंगे हुए और श्री राजीव जी के साथ अत्यंत दुखद घटना घटी ये सब असह्य वेदनाएँ देश को सहनी पड़ी थीं। 

  इसलिए सभी राजनैतिक दलों एवं राजनेताओं से प्रार्थना है कि जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर पारस्परिक सद्भाव पूर्वक केवल विकास के नाम पर इन चुनावों को लड़ा  जाना चाहिए तो अच्छा होगा अन्यथा ज्योतिषीय दृष्टि से (1989-92)की तरह का ही समय होने के कारण ऐसे किसी भी प्रकार के विवाद की छोटी सी चिनगारी भी  कोई बड़ा स्वरूप धारण कर सकती है समाज को भी चाहिए कि ऐसे समय में अत्यंत शांति और संयम का परिचय दे!

     उसी प्रकार का समय होने के कारण इस बात की भी प्रबल सम्भावना है कि इन चुनावों में भी अचानक कुछ ऐसा घटित हो कि बुद्दि पक्ष की परवाह न करते हुए हृदय पक्ष से ही  काम चलाना पड़े और विकास के नाम पर चुनाव लड़े जाने की वर्षों से की जा रही सारी तैयारी समेट कर रख देनी पड़े !इस समय सबसे अधिक ध्यान देने लायक यह है कि किसी अत्यंत विशिष्ट एवं लोकप्रिय नेता की सुरक्षा में चूक न होने पाए!

    साथ ही 19.6.2014 से 14.7.2015 तक का समय श्री राम मंदिर के निर्माण की दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है इस लिए इस बात की भी प्रबल सम्भावना है कि श्री राम मंदिर निर्माण की इच्छा रखने वाला वर्ग भी अभी से सक्रिय  हो उठे !

     एक और राजनैतिक विशेष बात यह है कि सत्ता विरोधी लहर होने के कारण इन चुनावों में काँग्रेस से क्रुद्ध जनता काँग्रेस के विरोध में तो जाना चाहती है किन्तु विपक्षी पार्टी भाजपा की प्रतिपक्षी निष्क्रियता से भी जनता खुश नहीं है इसलिए ऐसा नहीं है कि काँग्रेस से असंतुष्ट सारा वोट भाजपा को ही मिलेगा दिल्ली चुनावों में भी तो ऐसा ही हुआ है और आम आदमी पार्टी आस्तित्व में आ गई!

     देश में कई बड़े घोटाले हुए,महँगाई बढ़ी,गैस सिलेंडरों में कटौती की गई,लोकपाल का मुद्दा महिला सुरक्षा आदि और भी कई बड़े मुद्दे जिन पर जनता काँग्रेस पर क्रोध करके तिलमिला रही थी उसे विरोधी पार्टियों को जो सहयोग मिलना चाहिए था वो नहीं मिल सका अर्थात भाजपा उस घड़ी में जनता की आवाज नहीं बन सकी !भाजपा की तरफ से आज जो प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी हैं तब उन्हें भी अपने ही प्रदेश की जनता से फुरसत नहीं मिली कि वो गुजरात के साथ साथ शेष भारत वासियों की भी कभी तो सुध लेते! उनके मन में देश वासियों पर आज अचानक जो प्यार उमड़ा है जनता उस पर कितना भरोसा करेगी देखना यह भी तो है क्योंकि वो यदि वास्तव में देश वासियों के हमदर्द और देश की जनता की पीड़ा से परेशान थे तो तभी आकर कूदना था राष्ट्रीय राजनीति में और गुजरात की जिम्मेदारी देते किसी और को !किन्तु तब तो ऐसा नहीं ही हो सका और आज भी ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है क्योंकि अभी भी वो गुजरात के ही यशस्वी मुख्यमंत्री हैं अभी भी वो देश की जनता के साथ एक अघोषित डील के साथ जुड़े हैं कि यदि आपने केंद्र की सत्ता दी तो तुम हमारे और हम तुम्हारे और किसी कारण से यदि ऐसा नहीं हो सका तो हम गुजरात के और गुजरात हमारा ऐसी परिस्थिति में ये कैसे भरोसा किया जाए कि एक प्रतिशत भी यदि ऐसी परिस्थिति बन ही जाती है कि भाजपा सरकार नहीं बन पाती है तो आप गुजरात लौट जाएँगे कार्यकर्ता थकावट उतारेंगे रही बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उसमें फिर कुछ फेर बदल होगा जिससे फिर कुछ लोग रूठेंगे मनाए जाएँगे देश की जनता फिर अकेले की अकेले जिसकी सरकार बनेगी मिलाएगी उसी की हाँ में हाँ 19.6.2014 से 14.7.2015 से प्रारम्भ हो सकती हैं श्री राम मंदिर निर्माण की तैयारियाँ जनता उसमें व्यस्त हो जाएगी।वैसे इस विषय में हमारा यह लेख भी पढ़ना चाहिए-2014 चुनावों में मोदी जी बन पाएँगे पी.एम.http://snvajpayee.blogspot.in/2013/09/2014.html


  अब भाजपा को सोचना यह है कि यदि चुनावी परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं भी आते हैं तो भी पार्टी में कोई जनता एवं उसके दुःख दर्द से जुड़ा रह पाएगा क्या !क्योंकि इतनी सहन शीलता और उत्साह कम ही देखा जाता है पार्टी कार्यकर्ताओं में !अभी तो चुनावों का समय है रैलियों में पार्टी कार्यकर्ताओं की ही इतनी बड़ी  भीड़  हो जाती है इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता ही इतना शोर मचा लेते हैं कि यह अपनी  भीड़ और अपना शोर ही टेलीवीजन पर देखकर फीलगुड होना स्वाभाविक ही है!इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आम जनता  नहीं आती है आम जनता की भीड़ भी बहुत आती है और शोर भी बहुत मचाती है किन्तु जनता तो हर दूकान देखती है किन्तु सामान हर जगह नहीं खरीदती है और जिसका जितना विज्ञापन उसकी उतनी भीड़ !इसलिए जनता ऐसी सभी बातों का जब मूल्यांकन करेगी उसमें भाजपा को कितने नंबर मिलेंगे सरकार तो उसके आधार पर बनेगी ! अभी तो वह दशा है कि चुनावों के समय नेता शोर मचाते हैं शेष समय जनता किन्तु न जनता का शोर नेता ध्यान से सुनते हैं और न नेताओं का शोर जनता ध्यान से सुनती है नेता हर किसी को आश्वासन देते हैं जनता भी हर किसी को आश्वासन ही देती है उसी में जिसने जितनी जोड़ तोड़ कर ली उसकी सरकार बन जाती है बाकी लोग देखते रह जाते हैं यदि ऐसा न होता तो जनता किसी को स्पष्ट बहुमत भी तो दे सकती थी ! मेरा यह लेख भी इस विषय में पढ़ना चाहिए -कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?ज्योतिषभविष्य वाणियाँ राजनेताओं के विषय में ! http://snvajpayee.blogspot.in/2013/10/sunday-september-17-1950-time-of-birth.html

    इस सबसे ऊपर उठाकर भगवान् से इतनी प्रार्थना अवश्य करना चाहता हूँ कि मंदिर निर्माण के लिए न हो श्री राम भक्तों पर अब न हो गोलीबारी बस इतना अवश्य हो !अब देखना है कि समय पास करने वाले प्रधान मंत्री नरसिंहा राव द्वितीय का उदय कब कहाँ और कैसे होगा कैसा होगा उनका कार्यकाल !!!

 मेरे इस ज्योतिषीय लेख को भी अवश्य पढ़ें -श्री राम मंदिर बनेगा कैसे ? ज्योतिष ! http://snvajpayee.blogspot.in/2013/08/drvajpayee.html

          श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर 

 


    काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में श्री रामचरित मानस और ज्योतिष पर ही हमारी पी.एच.डी.की थीसिस थी।जिसे पूरा करने के बाद इन विषयों पर खोज पूर्ण कई ग्रन्थ लिखे हैं।जिसका कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत करता हूँ।

  श्री राम की जन्म कुंडली में भवन सुख भाव में शनि होने से भवन होने के बाद भी भवनसुख का योग मध्यम एवं संघर्ष पूर्ण है।इसीलिए बचपन में पहले पिता के साथ रहते रहे। 15 वर्ष की उम्र में  विश्वामित्र जी ले गए फिर विवाह के बाद राज्य मिलना था तो बनवास हो गया । वहाँ जाकर जंगल में जब कुटी बनाई तो सीता हरण हो गया।जब बन से वापस आए तो सीता जी को बनवास हो गया।इसप्रकार जब गृहणी ही चली गई तो गृह सुख की आशा ही क्या बची ?  
     ज्योतिष की दृष्टि से यहाँ एक बात अवश्य है कि भवन भाव में  शनि उच्च राशि का है एवं भवनेश शुक्र भाग्य स्थान में उच्च राशि का है इसलिए राम जी कहाँ कितने दिन रह पाए या उन्हें गृहसुख कितना मिला या नहीं मिला  ये अलग बात है किन्तु उन्हें रहने के लिए जो  भवन या राज्य मिले वो एक  से एक भव्य अर्थात सुन्दर थे।अयोध्या का राज्य तो अपना था ही लंका और किष्किन्धा भी लोग देने को तैयार थे किन्तु श्री राम ने जीते हुए देश भी लिए ही नहीं।

     यहाँ ज्योतिष की एक बात विशेष ध्यान देने लायक यह है कि 

        जैसे अयोध्या का राज्य मिलने से पहले भी गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ श्री राम को  खुले आसमान में ही बितानी पड़ी थीं अब फिर से अस्थाई श्री राम मंदिर में गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ खुले आसमान में ही प्रभु श्री राम  को बितानी पड़ रही हैं।

    इसी प्रकार उस समय भी श्री राम को चौदह वर्षों तक तपस्या करनी पड़ी थी अब भी सन दो हजार चौदह तक फिर से प्रभु श्री राम को खुले आसमान में ही  अस्थाई श्री राम मंदिर में तपस्या करते रहना होगा।       

     जैसे उस समय चौदह वर्ष पूर्ण होने से चौदह महीने बारह दिन  पूर्व सीता हरण हुआ था उसके बाद से ही असुरों के संहार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी। असुर आतंकियों को कठोर सजा देने का काम अब भी लगभग चौदह महीने पहले ही शुरू हो सका है।           

    आतंकियों को कठोर सजा देने का चिर प्रतीक्षित काम भी सन दो हजार बारह के नवंबर मास के अंत से ही करना प्रारंभ किया जा सका  है। यहाँ से लेकर सन दो हजार चौदह प्रारंभ तक भी वही लंका वाले लगभग चौदह महीने ही हो पाएँगे।

    यही चौदह महीने पहले सीता हरण से ही  नारियों की सुरक्षा के लिए जन जागरण वहाँ प्रारंभ हुआ था। अब भी 16 दिसंबर 2012 से अर्थात चौदह महीने पहले से ही यहाँ भी नारियों की सुरक्षा के लिए उसी तरह का  जन जागरण  प्रारंभ हुआ है। 

     इसी समय में  यदि इसीप्रकार से सज्जन समाज को पीड़ा पहुँचाकर समाज को पीड़ित करने वाले किसी भी जाति, समुदाय, संप्रदाय आदि के जो भी लोग हैं ऐसे असुर आतंकियों के साथ निपटने में यदि सरकार सफल हुई तो निराश हताश समाज के मन में फिर से प्रशासकों के प्रति विश्वास बढ़ेगा।सभी प्रकार के कठोर कानूनों के सफल क्रियान्वयन से  भ्रष्टाचार आदि आपदाओं से देश मुक्त होगा। भ्रष्टाचार मिटते ही न केवल आपराधिक वारदातों में कमी  आएगी अपितु महँगाई में भी लगाम लगेगी ।सभी देश वासियों की सुरक्षा का वातावरण बनेगा।

     जैसे बिना विवाद के सम्मान पूर्वक  श्री राम का राज्याभिषेक वहाँ हुआ था उसी प्रकार बिना विवाद के सम्मान पूर्वक यहाँ भी  श्री राम का भव्य मंदिर निर्माण सभी की सहमति से होगा ।  इसलिए

     19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक

    यदि थोड़ी सी ज्योतिषीय सावधानी राम भक्तों के द्वारा बरती गई तो मंदिर बनने को रोका नहीं जा सकता बनेगा जरूर! और भव्य श्री राम मंदिर बनेगा यह भी निश्चित है।सर्व सम्मति से बनने के योग हैं। इसलिए रामभक्तों को निराश या हताश नहीं होना चाहिए और प्रयास करके तनाव नहीं बढ़ने देना चाहिए ।
    ज्योतिष के कुछ अन्य योगों पर भी यहाँ ध्यान देना आवश्यक है। वैसे तो धरती पर करोड़ों श्री राम मंदिर होंगे किन्तु जो भगवान श्री राम का वास्तविक भवन है जिसे हम सभी लोग श्री राम मंदिर कहते हैं उसके बनने में रुकावट का एक कारण  ज्योतिष भी हो सकता है।

     दूसरी बात यह है कि जब बाबरी मस्जिद तोड़ी गई थी उस समय क्षिप्र संज्ञक अश्वनी था।इसमें अस्थाई काम तो किए जा सकते थे जैसे दुकान करना या कोई भी कला संबंधी कार्य कर पाना संभव था।इसी प्रकार मस्जिद का भी भविष्य कुछ भी नहीं था इसलिए वह भी टूट गईयहाँ विशेष बात यह है कि उसी समय मंदिर निर्माण के लिए चबूतरा या अस्थाई मंदिर  बना दिया गया था किन्तु जो  महूर्त तोड़ने का था उसी मुहूर्त में शिलान्यास कैसे किया जा सकता था? तोड़ने के मुहूर्त में किसी चीज का जोड़ना कैसे संभव हो सकता है। मत्स्य वेध करके अर्जुन ने द्रोपदी के साथ विवाह किया था।इसीप्रकार धनुष तोड़कर श्री राम ने सीता जी से विवाह किया था। इसलिए अर्जुन और द्रोपदी एवं श्री राम और सीता जी का सम्पूर्ण जीवन भटकते हुए संघर्ष पूर्वक बीता।

   जैसे धनुष तोड़ने का काम वर्षों से चल रहा था किन्तु कोई तोड़ नहीं पा रहा था उसीप्रकार बाबरी मस्जिद भी विवादित चल रही थी। धनुष तोड़ने का काम भी अश्वनी नक्षत्र में हुआ था और बाबरी मस्जिद भी अश्वनी नक्षत्र में ही तोड़ी जा सकी थी ।अंतर इतना रहा कि वशिष्ठ आदि ऋषियों ने धनुष टूटने के बाद उसके बारहवें दिन शुभ मुहूर्त विवाह नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी  में श्री राम और सीता का विवाह करवाया गया था। इस कारण दोष कुछ टल गया था फिर भी बहुत कुछ सहना पड़ा था।उसका कारण था कि धनुष टूटने के साथ ही विवाह मान लिया गया था टूटतही धनुभयउविवाहू।सुरनरनाग विदित सब काहू

चूँकि            रहेउ विवाह चाप आधीना   

     इसीलिए 

गुरु वशिष्ठ से पंडित ग्यानी शोधि केलगन धरी ।

                             फिर भी 

सीता हरण मरण दशरथ को बन में बिपति परी ।।

 चूँकि धनुष टूटते हीश्री राम और सीता का विवाह हो गया था इसलिए वशिष्ठ जी का प्रयास विशेष कारगर सिद्ध नहीं हो सका, किन्तु बाबरी मस्जिद टूटने के साथ ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं जुड़ी थी ।यहाँ तुरन्त शिलान्यास न करके यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता तो संभव है कि मंदिर बनने का अबतक कोई समाधान निकल ही जाता।चूँकि इस्वी सन 1527 में सनातन हिंदुओं ने विजय दशमी,दीपावली और रामनवमी  पर्व बहुत बड़े जन समूह के साथ उमड़ घुमड़ कर अत्यंत धूम धाम से मनाए थे।श्रीराम प्रभु के प्रति हिन्दुओं की इतनी श्रृद्धा देखकर ये विधर्मी सह नहीं सके थे इसलिए श्रीराम  मंदिर तोड़कर उसी पर बाबरी मस्जिद बना डाली ।चूँकि उन्होंने भी मंदिर तोड़ने के साथ ही उसी पर मस्जिद का निर्माण किया था तोड़ने के साथ ही जोड़ने का अर्थ होता है कि इसका कोई स्थायित्व नहीं होगा ये कभी भी तोड़ी जा सकती है इस कारण बाबरी मस्जिद बनने के साथ ही उसका विध्वंस जुड़ा था।उसीप्रकार यदि इसी अस्थाई श्री राम चबूतरे पर ही यदि मंदिर बना दिया गया तो

बाबरी मस्जिद विध्वंस का कुयोग श्री मंदिर के साथ भी आरम्भ से ही जुड़ जाएगा।इसलिए इससे बचा जाना चाहिए । 

      चूँकि उस मस्जिद तोड़ी जा सकी थी इससे यह प्रमाणित भी होता है कि वह मुहूर्त मकान  टूटने का ही था तो ऐसे समय में मकान बनाना कैसे प्रारम्भ किया जा सकता था?
      इसलिए  श्री राम मंदिर निर्माण के लिए  कोई और मुहूर्त देख कर उसमें शिलान्यास करने से मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार किया जा  सकता है

  यहाँ एक विशेष बात का ध्यान और रखा जाना चाहिए कि इस देश की दो सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियों के प्रमुखों के नाम रा अक्षर से प्रारंभ होते हैं राजनाथ और राहुल ये दोनों से  ही रा मंदिर में ईमानदारी पूर्वक   समर्पणात्मक सहयोग की आशा नहीं की जानी चाहिए।

        यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है। 

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।

  रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण  मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।

   दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और  लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया। 

     इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

 दिल्ली भाजपा के चार विजयों  के  समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना   आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य  के लिए चिंता प्रद हैंइसी कारण से पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है।                         

                         विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी

     इसी प्रकार भारत वर्ष में  भाजपा राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या वाले एवं अटलजी से  कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बने हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं ।       


   कलराजमिश्र-कल्याण सिंह  

  ओबामा-ओसामा   

  अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी

  मायावती-मनुवाद

नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी 

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद 

 परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

 भाजपा-भारतवर्ष  

 मनमोहन-ममता-मायावती    

   उमाभारती -   उत्तर प्रदेश 
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव 

 अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन 

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी    प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन अन्नाहजारे-अरविंदकेजरीवाल-असीम त्रिवेदी-अग्निवेष- अरूण जेटली - अभिषेकमनुसिंघवी   

  न्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे न्ना हजारे, रविंदकेजरीवाल,सीमत्रिवेदी एवं ग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें ग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से भिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता रूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए भिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर रूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।

       अन्नाहजारे की तरह ही मर सिंह जी भी अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल जमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु खिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही मरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब खिलेश के साथ जमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
     चूँकि मरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- जमखान मिताभबच्चन  निलअंबानी  भिषेक बच्चन आदि।

  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

बलात्कार रोकने के रास्ते ज्योतिष की दृष्टि में !

      बलात्कार रोकने के लिए शक्त कानून की आवश्यकता तो है ही किन्तु कितना शक्त कानून हो !उसमें अधिक से अधिक फाँसी की सजा होगी इससे अधिक क्या होगा किन्तु असफल प्रेमी प्रेमिकाएँ इतना निराश हताश होते हैं कि आत्म हत्या तो वे वैसे भी कर लेते हैं फिर इन्हें फाँसी जैसी कठोर सजा से कितना भयभीत किया जा सकता है और यदि यह भी न किया जाए तो इससे बड़ी दूसरी सजा और होती कौन है?बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को रोकने के लिए दण्डित तो किया ही जाना चाहिए !मैं यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि जो लोग बलात्कारी को फाँसी की सजा की माँग इसलिए करते हैं कि ये महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से अच्छा कदम होगा किन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस बलात्कारी को फाँसी  की सजा हुई होती है वह तो मरकर चला जाता है किन्तु वास्तविक सजा उसके परिजनों को आजीवन  भोगनी पड़ती है समाज की जलालत ,उपेक्षा,गरीबी और वियोगजन्य पीड़ा तो होती ही है !वास्तव में बलात्कारी के आश्रित लोग ही भोगते हैं वास्तविक दंड !जिनका उस बलात्कार से कोई सम्बन्ध नहीं होता है और वो चाह कर भी इस घटना को रोक नहीं सकते थे ऐसे पीड़ितों में भी कई स्त्री जाति से सम्बंधित भी होती  हैं जैसे बलात्कारी के माता -पिता, भाई - बहनें,कई बार तो पत्नी बेटा बेटियाँ आदि  भी होते हैं !इसलिए बलात्कारियों को फाँसी देने का मतलब महिला सुरक्षा कैसे हो सकता है ! 

       इसलिए आप सभी सुबुद्ध विद्वान बंधुओं से मेरा निवेदन है कि सबको मिलकर कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि किसी  बलात्कारी के आश्रितों को उसके किए की सजा  भोगनी पड़े !इसके तीन प्रमुख मार्ग हैं उनमें पहला तो यह है कि देश और समाज में सात्विकता का वातावरण बने जिससे आध्यात्मिकता का विकास हो मन सतोगुणी हो जाए और किसी की रूचि ही बलात्कारों की ओर न जाए !किन्तु ऐसा करेगा कौन?क्योंकि आधुनिक कलियुगी संतों का मन साधना  और सात्विकता से बहुत दूर होता जा रहा है वो संपत्ति प्रिय होते जा रहे हैं राजनीति प्रिय होते हैं अपने मन के व्यक्तियों को प्रधान मंत्री बनाकर फिर लूटते हैं देश के आस्थावान लोगों को !समाज के दिखावे में तो ये विदेशों से काला पीला धन लाने की बात करते रहेंगे किन्तु निशाना अपनी संपत्ति संग्रह एवं व्यापारिक सुरक्षा आदि आदि होता है!इसलिए ऐसे बाबाओं से समाज को संस्कार देने की उमींद की भी कैसे जाए जिनके अपने संस्कार ही बिगड़े चल रहे हों !इनके अलावा भी जो चरित्रवान विरक्त संत हैं भी वो अपनी साधना में लगे रहते हैं उनके पास समय कहाँ होता है जो समाज सुधार कार्यों में वे रूचि लें !

        वस्तुतः काम (सेक्स) पीड़ा से परेशान लोगों को सुधरने के चाहिए भोजन सात्विक करें रहन सहन भी ऐसा ही बनाएँ और धीरे धीरे अपने मन पर नियंत्रण करने की कोशिश करें !पहले के लोग मन को सभी प्रकार से संयम देते थे

उस समय इतना विचार रखने लायक कहाँ होता है कि कुछ सोचने समझने की स्थिति में हो!ऐसे लोग मनोरोगी होते हैं इनकी बात मानने वाले लड़के लड़कियाँ जान बूझ कर कूदते हैं इस आग में!यद्यपि ये लोग भरोसे लायक होते नहीं हैं।

      जब कोई लड़का किसी लड़की  से प्रेम करने का नाटक करे इसी प्रकार  लड़की भी तो समझ लेना चाहिए कि ये सेक्स पीड़ा से परेशान है।अभी कुछ दिन  पहले ही विदेश में घटी एक घटना अखवार में पढ़ी जब किसी प्रेमी ने किसी एकांत जगह पर प्रेमिका को बुलाया किन्तु किसी  कारण से वो आ नहीं सकी तो उस प्रेमी ने घोड़ी के साथ सेक्स किया !

     यह वो विकृत भावना है जो प्रेमी प्रेमिकाओं के मन में  एक दूसरे के प्रति होती है ऊपरी मन से एक दूसरे को चाहने का झूठा नाटक किया  से  करते हैं। यदि इनमें वास्तव में दूसरे से प्रेम होता तो एक  दूसरे  से विश्वासघात, हत्या या सम्बन्ध विच्छेद जैसी दुर्घटनाएँ  घटती ही   नहीं! 

       मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से ज्योतिष सम्बंधित विषय में पीएच. डी. की है इसलिए एक और सच्चाई सामने आई है कि पूर्व जन्म के कर्मानुशार  जिसके भाग्य में पत्नी या पति से सेक्स  का सुख नहीं बदा होता है वही सेक्स की तलाश में बचपन से भटकने लगते हैं वो इस पर उतारू होते हैं कि कहीं मिले किसी से मिले कैसे भी मिले कितना भी झूठ बोलकर मिले बच्चे से मिले बूढ़े से मिले,सेक्स के लिए ये बिलकुल पशुओं जैसा व्यवहार करने लगते जैसे कुत्ते बन्दर आदि कहीं किसी सार्वजनिक स्थान पर टाँग फँसा कर खड़े हो जाते हैं ठीक इसी प्रकार से ऐसे लड़के लड़की  भी सामाजिक शर्म की भावना छोड़ चुके होते हैं ये अपने घर से पड़ोस से नाते रिश्तेदारी या स्कूल तक  में किसी से भी कहीं भी  टाँगें फँसाना शूरू कर देते हैं।पार्कों, मैट्रोस्टेशनों, पर्किंगों,  रेस्टोरेंटों,  बसों  जैसी  सार्वजनिक  जगहों  पर ही दोनों एक दूसरे को चिपटने चाटने लगते हैं।खैर! मरता क्या न करता वाली स्थिति होती है।ये अर्द्धनग्न कपड़े,माथे पर बाल आदि ऐसी वेष भूषा बना लेते हैं ताकि समाज के आम लोगों की अपेक्षा ये कुछ अलग और उस तरह के लगें जिन्हें वो लोग आसानी से पहचान कर कमेंट मार सकें और लीला आगे बढ़ सके! ऐसे लोग छोटे छोटे बच्चों , पागलों,एवं अपाहिजों को भी अपनी हबस का शिकार बना लेते हैं।यदि इनके भाग्य में ही सेक्स को लेकर अपमान सहना न लिखा होता तो सेक्स सुख तो वैसे भी विवाह हो जाने पर भी मिलता किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनी रहती जो इनके ग्रहों को  मंजूर नहीं था।इसलिए हित चाहने वालों को चाहिए कि ऐसी ऊटपटांग  वेषभूषा  बनाकर  रहने वालों से  अपने बच्चों को बचाकर रखना चाहिए।

      बढ़ते बलात्कारों का एक और बड़ा कारण यह भी कि जैसी शिक्षा वैसे संस्कार नैतिक शिक्षा से नैतिक लोग होंगे। सामान्य शिक्षा से सामान्य विचारधारा के लोग होंगे और सेक्स एजुकेशन से सेक्सुअल लोग होंगे इस प्रकार के सरकारी प्रयासों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं जिनसे सारा विश्व चिंतित दिखने लगा है ।      

     वैसे तो हर किसी को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए  यदि यह संभव न हो सके तो शिक्षा सबके लिए अत्यंत आवश्यक है ही किन्तु अब तो  शिक्षा का अभाव ही है !अक्सर देखा गया कि बलात्कार के अनेक केसों में लड़के या लड़कियाँ अशिक्षित होते हैं।इसलिए बढ़ते बलात्कारों का एक बड़ा कारण अशिक्षा भी है।  

      आम आदमी के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वह अपने बच्चों को प्राइवेट में पढ़ा सकें और सरकारी विद्यालयों में आजकल  शिक्षा की  जितनी दुर्दशा है वहाँ बच्चों को कुछ पढ़ाया नहीं जाता कभी कभी कोई कोई शिक्षक क्लास ।हमारी सरकार के पास नैतिक शिक्षा का कोई कार्यक्रम ही नहीं है। शिक्षा की  दुर्दशा यह है कि उनके प्राथमिक विद्यालयों को प्राइवेट विद्यालय पीटते जा रहे हैं सरकार के अपने कर्मचारी एवं अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ाते हैं सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की बात और क्या होगी ?  

     जहाँ तक महिला सुरक्षा के विषय की बात है।  मैंने एक कथानक सुना है कि श्री राम के राज्य में हाथी और सिंह एक घाट पर पानी पीते थे किसी को किसी से कोई भय नहीं होता था फिर भी वो हाथी एक घाट पर पानी  भले पीते थे किन्तु सिंह के स्वभाव में चूँकि हिंसा है इसलिए उसके साथ निश्चित दूरी बनाकर रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि अहिंसा या हिंसा का निर्णय तो सिंह के ऊपर है वह हिंसा का पालन करे या अहिंसा का व्रत ले! अथवा अहिंसा का व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे।ये उसी को पता है।ऐसी परिस्थिति में व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे तो हाथी की जान पर बन आएगी। इसलिए सिंह जैसे चाहे वैसे रहे किन्तु हाथी को अपनी ओर से  सावधानी तो रखनी ही चाहिए। ये उदाहरण अहिंसक समाज का है।


Saturday, March 29, 2014

बनारस कोई चुनाव लड़ने का अखाड़ा नहीं है यह बाबा विश्वनाथ जी की राजधानी है !

    काशी बाबा विश्वनाथ जी की राजधानी है उसे शिव भक्तों ने अखाड़ा  नहीं बनने दिया वहाँ तो मोदी जी श्रद्धा पूर्वक बाबा के द्वार पर सेवा माँगने गए बाबा ने उन्हें निराश नहीं किया !

   वाराणसी के गौरव के विरुद्ध बढ़ रही राजनैतिक बयानबाजी रुकनी चाहिए थी नहीं रुकी तो जनता ने सिखाया  ऐसे प्लास्टिकी नेताओं को सबक !

    लालू ने कहा कि मोदी की राजनैतिक कब्र बनेगा बनारस! तो  केजरीवाल बोले कि मोदी की चुनौती स्वीकार !तो रशीद अल्वी भी चुनाव लड़ने को तैयार थे  और चिदंबरम साहब का भी कहना था कि वो  यदि हिंदी में अपाहिज न होते तो मोदी के सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत जरूर  बाँधते !और दिग्विजय सिंह जी का नाम भी चर्चा में आ चुका था आश्चर्य है बनारस का चुनाव !!! 

   माता काशी को कोटिशः नमन !

   मैं  निवेदन करना चाहता  हूँ   कि काशी कोई सामान्य शहर भर नहीं है जो नेता लोग आधार हीन ऊल जुलूल वक्तव्य देते चले जा रहे हैं!उन्हें समझ लेना चाहिए कि काशी में केवल बाबा विश्वनाथ जी का ही हुक्म चलेगा यहाँ चुनौतियों का क्या मतलब?यहाँ आकर शास्त्रार्थ के लिए तो कोई ललकार नहीं सका फिर चुनाव के लिए कोई चुनौती देगा!जिस किसी का भाग्य ही ख़राब होगा तो ऐसा करेगा! यहाँ तो बाबा विश्वनाथ जी से श्रद्धा पूर्वक सेवा माँगी जा सकती है शासन नहीं !कोई केवल सांसद बनने के अहंकार में काशी में प्रवेश ही क्यों करे ?जब उसे काशी के प्रति आस्था न हो सेवा भावना न हो!

     पता लगा है कि कोई प्लास्टिक का ईमानदार वहाँ भी पहले जनमत संग्रह करने का ड्रामा करना चाह रहा है बाद में लड़ेगा चुनाव !उसे यह नहीं पता है कि बाबा विश्वनाथ जी से मोदी जी पहले ही सेवा माँग आए हैं तो क्या काशी की जनता बाबा विश्वनाथ जी के आशीर्वाद से अलग चली जाएगी !ऐसी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए पवित्र काशीवासी काशी में जाकर चुनौती देने वालों से एवं काशी को कब्र बनाने वालों से शक्तिपूर्वक  निपटना जानते हैं।जहाँ का कंकर कंकर शंकर हो वहाँ किसी की तानाशाही कैसे चलेगी सम्भव ही नहीं है!और मोदी जी से भी निवेदन है कि काशी में चुनाव लड़ने की भावना ही न रखें वहाँ तो शिवद्वार के भिक्षुक बनकर  श्रद्धा पूर्वक जाएँ बाबा विश्वनाथ जी किसी को निराश नहीं करते उन्हें भी नहीं करेंगे!

        काशी के  विषय में एक बात और ध्यान रखी जानी चाहिए कि काशी में झूठे आश्वासनों से बचा जाना चाहिए क्योंकि "काशी क्षेत्रे कृतं पापं बज्रलेपो भविष्यति।"                  

   कुछ सत्तालोलुप नेताओं की ऊट पटांग बातें सुनकर लगता है भारत में रहकर ये बेचारे इतने नादान हैं ये काशी के गौरव से बिलकुल अनजान हैं क्या !सम्पूर्ण भारत वर्ष में काशी ही ऐसी दिव्यतमा पुरी है जिसका सम्मान प्रकृति भी करती है! भगवान शिव का बॉस उत्तर दिशा है इसलिए माँ गंगा भी काशी में पहुँचकर  अपनी दिशा बदल लेती हैं और बहने लगती हैं उत्तरमुखी होकर !और राजघाट के पुल के पास से फिर पूर्व मुखी होकर बहने लगती हैं।जिस काशी का प्रलयकाल में भी विनाश नहीं होता है भगवान् शिव जिसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं ऐसी शास्त्र मानता है !  काशी कोई सामान्य शहर नहीं है- 

        काश्यां ही काशते काशी काशी सर्व प्रकाशिका। 

        सा काशी विदिता येन तेन प्राप्त ही काशिका॥ 

   सभी जातियों सभी समुदायों सम्प्रदायों के गरीब अमीरों  की समान रूप से जीवन संजीवनी माता काशी कभी किसी की कब्रगाह नहीं हो सकती !जिन बड़े बड़े दीन हीन अकिंचनों स्वजनों से उपेक्षितों आश्रय हीनों ने भी माता अन्नपूर्णा का प्रसाद पाकर भगवान विश्वनाथ बाबा की चरण शरण में प्राणयात्रा प्रारम्भ की है आज आजीविका के लिए वो देश के विभिन्न भागों में जीवन यापन भले ही कर रहे हैं किन्तु आज भी काशी के दर्शन एवं चर्चा टी.वी.चैनलों पर देख सुन कर उनकी आँखें भर आती हैं जो आज भी काशी की गरिमा का पोषण अपने प्राणों से करते हैं  उनसे पूछो क्या बीतती है उन पर! शूल से चुभते हैं उनके वे शब्द जिनसे कोई काशी के गौरव के साथ खिलवाड़ करता है ।काशी पर लोग कितना गर्व करते हैं ये वही जानता है जो कभी भगयवश काशीवासी बनकर रहा है !

     दो.   चना  चबेना  गंगजल  जो  देवे  करतार । 

           काशी कबहुँ न छोड़हीं विश्वनाथ दरवार ॥

                      प्रेम से बोलो हर हर महादेव !

यह लिंक  भी पढ़ें ---

केजरीवाल जी कहते हैं कि मोदी के प्रचार में जुटा है मीडिया ! लेकिन क्यों ?

    केजरीवाल जी !केवल पुण्यवान व्यक्ति के ही झूठ को भी समर्थन मिलता है वह भी तब तक जब तक पुण्य पास  होते हैं किन्तु वास्तव में पूजा तो सदैव सत्य ही जाता है !

    अरविन्द केजरीवाल जी! इसमें आश्चर्य क्या है ! सच का साथ सभी हमेंशा देते हैं see more…snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_6595.html

 

 

Friday, March 28, 2014

ये क्या धर्म का उपहास नहीं है क्यों नहीं किया जाता ऐसी बकवासों का विरोध !



श्री आसारामायण - Shri Asaramayan गुरु चरण रज शीष धरि, हृदय रूप विचार।
श्रीआसारामायण कहौं, वेदान्त को सार।।
धर्म कामार्थ मोक्ष दे, रोग शोक संहार।
भजे जो भक्ति भाव से, शीघ्र हो बेड़ा पार।।
भारत सिंधु नदी बखानी, नवाब जिले में गाँव बेराणी।
रहता एक सेठ गुण खानि, नाम थाऊमल सिरुमलानी।। आज्ञा में रहती मेंहगीबा, पतिपरायण नाम मंगीबा।
चैत वद छः उन्नीस अठानवे, आसुमल अवतरित आँगने।।
माँ मन में उमड़ा सुख सागर, द्वार पै आया एक सौदागर।
लाया एक अति सुन्दर झूला, देख पिता मन हर्ष से फूला।।
सभी चकित ईश्वर की माया, उचित समय पर कैसे आया।
ईश्वर की ये लीला भारी, बालक है कोई चमत्कारी।। संत की सेवा औ' श्रुति श्रवण, मात पिता उपकारी।
धर्म पुरुष जन्मा कोई, पुण्यों का फल भारी।।
सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी।
समाज में थी मान्यता जैसी, प्रचलित एक कहावत ऐसी।।
तीन बहन के बाद जो आता, पुत्र वह त्रेखन कहलाता।
होता अशुभ अमंगलकारी, दरिदता लाता है भारी।। विपरीत किंतु दिया दिखाई, घर में जैसे
लक्ष्मी आयी।
तिरलोकी का आसन डोला, कुबेर ने भंडार ही खोला।
मान प्रतिष्ठा और बड़ाई, सबके मन सुख शांति छाई।।
तेजोमय बालक बढ़ा, आनन्द बढ़ा अपार।
शील शांति का आत्मधन, करने लगा विस्तार।। एक दिना थाऊमल द्वारे, कुलगुरु परशुराम पधारे।
ज्यूँ ही बालक को निहारे, अनायास ही सहसा पुकारे।।
यह नहीं बालक साधारण, दैवी लक्षण तेज है कारण।
नेत्रों में है सात्विक लक्षण, इसके कार्य बड़े
विलक्षण।।
यह तो महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा। सुनी गुरु की भविष्यवाणी, गदगद हो गये सिरुमलानी।
माता ने भी माथा चूमा, हर कोई ले करके घूमा।।
ज्ञानी वैरागी पूर्व का, तेरे घर में आय।
जन्म लिया है योगी ने, पुत्र तेरा कहलाय।।
पावन तेरा कुल हुआ, जननी कोख कृतार्थ।
नाम अमर तेरा हुआ, पूर्ण चार पुरुषार्थ।। सैतालीस में देश विभाजन, पाक में छोड़ा भू पशु औ' धन।
भारत अमदावाद में आये, मणिनगर में शिक्षा पाये।।
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति, आसुमल की आशु
युक्ति।
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता, त्वरित कार्य औ'
सहनशीलता।। आसुमल प्रसन्न मुख रहते, शिक्षक हँसमुखभाई कहते।
पिस्ता बादाम काजू अखरोटा, भरे जेब खाते भर पेटा।।
दे दे मक्खन मिश्री कूजा, माँ ने सिखाया ध्यान औ' पूजा।
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे, रहे न मछली जल बिन जैसे।।
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे, वही है
विद्या या विमुक्तये। बहुत रात तक पैर दबाते, भरे कंठ पितु आशीष पाते।।
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम।
लोगों के तुम से सदा, पूरण होंगे काम।।
सिर से हटी पिता की छाया, तब माया ने जाल फैलाया।
बड़े भाई का हुआ दुःशासन, व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन।।
छूटा वैभव स्कूली शिक्षा, शुरु हो गयी अग्नि परीक्षा। गये सिद्धपुर नौकरी करने, कृष्ण के आगे बहाये झरने।।
सेवक सखा भाव से भीजे, गोविन्द माधव तब रीझे।
एक दिन एक माई आई, बोली हे भगवन सुखदाई।।
पड़े पुत्र दुःख मुझे झेलने, खून केस दो बेटे जेल में।
बोले आसु सुख पावेंगे, निर्दोष छूट जल्दी आवेंगे।
बेटे घर आये माँ भागी, आसुमल के पाँवों लागी।। आसुमल का पुष्ट हुआ, अलौकिक प्रभाव।
वाकसिद्धि की शक्ति का, हो गया प्रादुर्भाव।।
बरस सिद्धपुर तीन बिताये, लौट अमदावाद में आये।
करने लगी लक्ष्मी नर्तन, किया भाई का दिल
परिवर्तन।।
दरिद्रता को दूर कर दिया, घर वैभव भरपूर कर दिया। सिनेमा उन्हें कभी न भाये, बलात् ले गये रोते आये।।
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया, उसको ही अब रोना आया।
माँ करना चाहती थी शादी, आसुमल का मन वैरागी।।
फिर भी सबने शक्ति लगाई, जबरन कर दी उनकी सगाई।
शादी को जब हुआ उनका मन, आसुमल कर गये पलायन।।
पंडित कहा गुरु समर्थ को, रामदास सावधान। शादी फेरे फिरते हुए, भागे छुड़ाकर जान।।
करत खोज में निकल गया दम, मिले भरूच में अशोक
आश्रम।
कठिनाई से मिला रास्ता, प्रतिष्ठा का दिया वास्ता।।
घर में लाये आजमाये गुर, बारात ले पहुँचे आदिपुर।
विवाह हुआ पर मन दृढ़ाया, भगत ने पत्नी को समझाया।। अपना व्यवहार होगा ऐसे, जल में कमल रहता है जैसे।
सांसारिक व्यौहार तब होगा, जब मुझे साक्षात्कार होगा।
साथ रहे ज्यूँ आत्माकाया, साथ रहे वैरागी माया।।
अनश्वर हूँ मैं जानता, सत चित हूँ आनन्द।
स्थिति में जीने लगूँ, होवे परमानन्द।।
मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु, संस्कृत भाषा है एक सेतु। संस्कृत की शिक्षा पाई, गति और साधना बढ़ाई।।
एक श्लोक हृदय में पैठा, वैराग्य सोया उठ बैठा।
आशा छोड़ नैराश्यवलंबित, उसकी शिक्षा पूर्ण
अनुष्ठित।।
लक्ष्मी देवी को समझाया, ईश प्राप्ति ध्येय बताया।
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा, लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा।।
केदारनाथ के दर्शन पाये, लक्षाधिपति आशिष पाये।
पुनि पूजा पुनः संकल्पाये, ईश प्राप्ति आशिष पाये।।
आये कृष्ण लीलास्थली में, वृन्दावन की कुंज गलिन में।
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला, वे जा पहुँचे नैनिताला।।
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित, स्वामी लीलाशाह प्रतिष्ठित।
भीतर तरल थे बाहर कठोरा, निर्विकल्प ज्यूँ कागज
कोरा।
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी, ब्रह्मस्थित
आत्मसाक्षात्कारी।।
ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान। ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान।।
जानने को साधक की कोटि, सत्तर दिन तक हुई
कसौटी।
कंचन को अग्नि में तपाया, गुरु ने आसुमल बुलवाया।।
कहा गृहस्थ हो कर्म करना, ध्यान भजन घर ही करना।
आज्ञा मानी घर पर आये, पक्ष में मोटी कोरल धाये।। नर्मदा तट पर ध्यान लगाये, लालजी महाराज आकर्षाये।
सप्रेम शीलस्वामी पहँ धाये, दत्तकुटीर में साग्रह लाये।।
उमड़ा प्रभु प्रेम का चसका, अनुष्ठान चालीस दिवस का।
मरे छः शत्रु स्थिति पाई, ब्रह्मनिष्ठता सहज समाई।।
शुभाशुभ सम रोना गाना, ग्रीष्म ठंड मान औ' अपमाना।
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास, महल औ' कुटिया आसनिरास।
भक्तियोग ज्ञान अभ्यासी, हुए समान मगहर औ'
कासी।।
भव ही कारण ईश है, न स्वर्ण काठ पाषान।
सत चित्त आनंदस्वरूप है, व्यापक है भगवान।।
ब्रह्मेशान जनार्दन, सारद सेस गणेश। निराकार साकार है, है सर्वत्र भवेश।।
हुए आसुमल ब्रह्माभ्यासी, जन्म अनेकों लागे बासी।
दूर हो गई आधि व्याधि, सिद्ध हो गई सहज समाधि।।
इक रात नदी तट मन आकर्षा, आई जोर से आँधी वर्षा।
बंद मकान बरामदा खाली, बैठे वहीं समाधि लगा ली।।
देखा किसी ने सोचा डाकू, लाये लाठी भाला चाकू। दौड़े चीखे शोर मच गया, टूटी समाधि ध्यान खिंच गया।।
साधक उठा थे बिखरे केशा, राग द्वेष ना किंचित् लेशा।
सरल लोगों ने साधु माना, हत्यारों ने काल ही जाना।।
भैरव देख दुष्ट घबराये, पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाये।
कामीजनों ने आशिक माना, साधुजन कीन्हें परनामा।।
एक दृष्टि देखे सभी, चले शांत गम्भीर। सशस्त्रों की भीड़ को, सहज गये वे चीर।।
माता आई धर्म की सेवी, साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी।
दोनों फूट-फूट के रोई, रुदन देख करुणा भी रोई।।
संत लालजी हृदय पसीजा, हर दर्शक आँसू में भीजा।
कहा सभी ने आप जाइयो, आसुमल बोले कि भाइयों।।
चालीस दिवस हुआ न पूरा, अनुष्ठान है मेरा अधूरा। आसुमल ने छोड़ी तितिक्षा, माँ पत्नी ने
की परतीक्षा।।
जिस दिन गाँव से हुई विदाई, जार जार रोय लोग-लुगाई।
अमदावाद को हुए रवाना, मियाँगाँव से किया पयाना।।
मुंबई गये गुरु की चाह, मिले वहीं पै लीलाशाह।
परम पिता ने पुत्र को देखा, सूर्य ने घटजल में पेखा।। घटक तोड़ जल जल में मिलाया, जल प्रकाश आकाश में
छाया।
निज स्वरूप का ज्ञान दृढ़ाया, ढाई दिवस होश न आया।।
आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार। हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार।।
परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया, जीव गया और शिव को पाया।
जान लिया हूँ शांत निरंजन, लागू मुझे न कोई बन्धन।।
यह जगत सारा है नश्वर, मैं ही शाश्वत एक अनश्वर।
दीद हैं दो पर दृष्टि एक है, लघु गुरु में वही एक है।।
सर्वत्र एक किसे बतलाये, सर्वव्याप्त कहाँ आये जाये। अनन्त शक्तिवाला अविनाशी,
रिद्धि सिद्धि उसकी दासी।।
सारा ही ब्रह्माण्ड पसारा, चले उसकी इच्छानुसारा।
यदि वह संकल्प चलाये, मुर्दा भी जीवित हो जाये।।
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष।
मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश।। पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान।
आसुमल से हो गये, साँई आसाराम।।
जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते, ब्रह्मानन्द का आनन्द लेते।
खाते पीते मौन या कहते, ब्रह्मानन्द मस्ती में रहते।।
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश, गृहस्थ साधु करो उपदेश।
किये गुरु ने वारे न्यारे, गुजरात डीसा गाँव पधारे। मृत गाय दिया जीवन दाना, तब से लोगों ने पहचाना।।
द्वार पै कहते नारायण हरि, लेने जाते कभी मधुकरी।
तब से वे सत्संग सुनाते, सभी आर्ती शांति पाते।।
जो आया उद्धार कर दिया, भक्त का बेड़ा पार कर दिया।
कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य
छुड़ाये।। एक दिन मन उकता गया, किया डीसा से कूच।
आई मौज फकीर की, दिया झोपड़ा फूँक।।
वे नारेश्वर धाम पधारे, जा पहुँचे नर्मदा किनारे।
मीलों पीछे छोड़ा मन्दर, गये घोर जंगल के अन्दर।।
घने वृक्ष तले पत्थर पर, बैठे ध्यान निरंजन का घर।
रात गयी प्रभात हो आई, बाल रवि ने सूरत दिखाई।। प्रातः पक्षी कोयल कूकन्ता, छूटा ध्यान उठे तब संता।
प्रातर्विधि निवृत्त हो आये, तब आभास
क्षुधा का पाये।।
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा।
जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्त्ता खुद लायेगा।।
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये, त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये। दोनों सिर बाँधे साफा, खाद्यपेय लिये दोनों हाथा।।
बोले जीवन सफल है आज, अर्घ्य स्वीकारो महाराज।
बोले संत और पै जाओ, जो है तुम्हारा उसे खिलाओ।।
बोले किसान आपको देखा, स्वप्न में मार्ग रात को देखा।
हमारा न कोई संत है दूजा, आओ गाँव करें तुमरी पूजा।।
आसाराम तब में धारे, निराकार आधार हमारे। पिया दूध थोड़ा फल खाया, नदी किनारे जोगी धाया।।
गाँधीनगर गुजरात में, है मोटेरा ग्राम।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का, यहीं है पावन धाम।।
आत्मानंद में मस्त हैं, करें वेदान्ती खेल।
भक्तियोग और ज्ञान का, सदगुरु करते मेल।।
साधिकाओं का अलग, आश्रम नारी उत्थान। नारी शक्ति जागृत सदा, जिसका नहीं बयान।।
बालक वृद्ध और नरनारी, सभी प्रेरणा पायें भारी।
एक बार जो दर्शन पाये, शांति का अनुभव हो जाये।।
नित्य विविध प्रयोग करायें, नादानुसन्धान बतायें।
नाभि से वे ओम कहलायें, हृदय से वे राम कहलायें।।
सामान्य ध्यान जो लगायें, उन्हें वे गहरे में ले जायें। सबको निर्भय योग सिखायें, सबका आत्मोत्थान
करायें।।
हजारों के रोग मिटाये, और लाखों के शोक छुड़ाये।
अमृतमय प्रसाद जब देते, भक्त का रोग शोक हर लेते।।
जिसने नाम का दान लिया है, गुरु अमृत का पान किया है।
उनका योग क्षेम वे रखते, वे न तीन तापों से तपते।। धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते, आपद रोगों से बच जाते।
सभी शिष्य रक्षा पाते हैं, सूक्ष्म शरीर गुरु आते हैं।।
सचमुच गुरु हैं दीनदयाल, सहज ही कर देते हैं निहाल।
वे चाहते सब झोली भर लें, निज आत्मा का दर्शन कर लें।।
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे।
गंगाराम शील है दासा, होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा।। वराभयदाता सदगुरु, परम हि भक्त कृपाल।
निश्छल प्रेम से जो भजे, साँई करे निहाल।।
मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत।
हमको इतना दीजिए, रहे चरण में प्रीत।।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Monday, March 24, 2014


हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु किसी को क्रिकेट का भगवान् कहना कहाँ तक उचित है ?see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html

 

हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु

हर हर मोदी कहना गलत है किन्तु लालू चालीसा लिखी गई तब किसी को बुरा क्यों नहीं लगा !see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html

हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु

आंध्र प्रदेश के विधायक ने जब सोनियाँ गांधी का मंदिर बनवाया तब किसी को बुरा क्यों नहीं लगा ?see
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हर हर मोदी कहना बुरा है तो सोनियाँ का मंदिर, सचिन का मंदिर ,अमिताभ का मंदिर ,नेताओं की चालीसा और बाबाओं की आरती बुरी क्यों नहीं लगती ? see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html

हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु

कलकत्ता का अमिताभ बच्चन मंदिर ठीक है क्या? see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html


हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु

बिहार का सचिन तेंदुलकर मंदिर ठीक है क्या ?see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html

हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु

आशाराम समेत तमाम बाबा बबाइनों की आरतियाँ गाई जाती हैं  वे बुरी क्यों नहीं लगती हैंsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html

हर हर मोदी कहना तो गलत है किन्तु श्रद्धेय साईं बाबा जी की आरतियों में पूजा में उनकी तुलना श्री राम और कृष्ण से की जाती है ये सब शास्त्रीय है क्या !see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html 

 

 

 

हर हर मोदी कहना गलत है किन्तु खिलाड़ियों को भगवान् कहना कितना उचित है ?

  हर हर मोदी की इतनी चर्चा क्यों? किसी खिलाड़ी को भगवान् कहा जाना बुरा क्यों नहीं लगा ? 

     अब मेरा विनम्र प्रश्न जगदगुरू जी से है कि यदि हर हर मोदी आपको बुरा लग सकता है तो लगना ही चाहिए किन्तु जब किसी खिलाड़ी को क्रिकेट का भगवान् कहा गया जब किसी अभिनेता का मंदिर बनाया गया या जब किसी नेता की चालीसा लिखी गई या जब किसी बाबा की आरती गाई गई या जब किसी धार्मिक संत के मंदिर बनाए जाने लगे तब आपको बुरा क्यों नहीं लगा !

    आज सारे देश में मानव मंदिर बनाए जा रहे हैं । मैं बात श्रद्धेय साईं बाबा जी के विषय में कह रहा हूँ आज उनकी आरतियों में पूजा में उनकी तुलना श्री राम और कृष्ण से की जाती है ये सब शास्त्रीय है क्या !हो सकता है कि यदि वो आज होते तो उन्हें भी बुरा लग रहा होता किन्तु उनके अनुयायी मानने को तैयार नहीं होंगे!आखिर उन्हें यह समझाने का प्रयास कभी क्यों नहीं किया गया कि मंदिर केवल देवताओं के बन सकते हैं वैसे भी मूर्तियाँ भी केवल देवताओं की ही पूजनीय हो सकती हैं क्योंकि मूर्ति में जब तक प्राण प्रतिष्ठा न की जाए तब तक वो पत्थर ही मानी जाती है और प्राण प्रतिष्ठा वेदमंत्रों के द्वारा की जाती है जब वेद लिखे गए थे तब जो लोग थे ही नहीं तब उनके मन्त्र कैसे लिखे जा सकते थे और जिसके मन्त्र नहीं हैं उसकी प्रतिष्ठा कैसी ?फिर ऐसे संतों महापुरुषों की मूर्तियों को पूजने का औचित्य ही क्या है ?   

    जहाँ तक बात हर हर मोदी कहने की है यह तो गलत है ही इसका मंडन नहीं किया जा सकता है क्योंकि  हर हर महादेव भगवान शिव के नाम का अमर उद्घोष है जिसे काशीबासी बड़ी श्रद्धा और विश्वास से बोलते हैं यही धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का प्रिय उद्घोष था !काशी नरेश डॉ.विभूति नारायण सिंह जी का भी ये इतना प्रिय उद्घोष था कि कोई उनको एक बार नमस्ते करे उसका जवाब वो दें न दें किन्तु हर हर महादेव कहने वाले को कभी निराश नहीं करते थे और उसके लिए हाथ उठाकर प्रत्युत्तर अवश्य करते थे ।

    चूँकि ये शब्द आस्था से जुड़े हैं इसलिए किसी भी मनुष्य के नाम के साथ उस ढंग से हर हर का प्रयोग करना उचित नहीं है। जैसे कई शब्द वैसे भी बोले जाते हैं किन्तु यदि उनके  ध्वन्यार्थ से किसी को ठेस लगती हो तो उसे न्याय संगत नहीं कहा जा सकता है जैसे हर हर मोदी कहने से  ठेस लगती है वैसे भी हर हर.…  के बाद किसी व्यक्ति का नाम लेने से भक्तों को ठेस लगना स्वाभाविक है और इसका ध्यान दिया भी जाना चाहिए इस पर जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी के वक्तव्य को श्रद्धा पूर्वक स्वीकारते हुए इसपर नियंत्रण यथा सम्भव किया ही जाना चाहिए यही उचित है और राजनैतिक भलाई भी इसी में है । 

       इस विषय में टी.वी.चैनलों पर बैठ कर परिचर्चा में कुछ नेता एवं चैनलों के द्वारा बाबा बना कर अकसर बैठा लिए जाने वाले बिना पढ़े लिखे अशास्त्रीय कुछ लोग किन्तु परन्तु लगाकर 'हर हर मोदी' में कुछ खास गलत नहीं देख रहे थे, रहा होगा उन बाबाओं  का अपने पापों का कुछ भय जो वो किसी राजनेता के संरक्षण में रहकर जारी रखना चाहते होंगे इसीलिए लिए वो मोदी जी को खुश करने के लिए  ऐसा कह रहे थे किन्तु उन टी.वी.चैनलीय बाबाओं के मुख से न कोई शास्त्रीय प्रमाण निकल रहा था और न कोई शास्त्रीय उदहारण अपितु कुछ शेरो शायरी बोलकर वो जनता को भटका रहे थे हाँ यदि वो लोग संत होते न होते हिन्दू ही होते तो भी उदहारण तो शास्त्रीय देते ही माना कि वे बाबा नाम केवलम रहे होंगे पढ़े लिखे होते तो शेरो शायरी की जगह रामचरित मानस की चौपाइयाँ तो बोल ही सकते थे किन्तु हो सकता है 'बन्दे मातरम'की तरह ही उनके धर्म में धार्मिक श्लोक सूक्तियाँ आदि भी बोलने में मनाही हो किन्तु वो महिला पत्रकार उन्हें हिन्दू संत ही कहकर संबोधित कर रही थीं फिर भी हिंदू संतों जैसी वेष भूषा के अलावा उनकी बाणी में हिन्दू धर्म की सुगंध बिलकुल नहीं थी। ऐसे लोग यदि हिन्दू धर्म की ठेकेदारी कर के हर हर मोदी का समर्थन करते हैं तो ऐसे छद्म संतों पर भरोसा करना घातक होगा !क्योंकि संत वही जो शास्त्रीय सच बोले उसे भय किस बात का ! 

    दूसरी बात यहीं पर एक राजनेता ने जगद्गुरु शंकराचार्य  जी के लिए काँग्रेसी होने का आरोप लगाया जो सर्वाधिक दुखद था जगद्गुरु जी के शास्त्रीय विचारों की आलोचना करना उस नेता की अभद्रता है अशिष्टता है असहनशीलता है या चाटुकारिता की चरमसीमा है !

    खैर , उस विषय में हमें कुछ नहीं कहना है किन्तु बिचार इस बात का करना बहुत आवश्यक है कि क्या मोदी जी को यह सब अच्छा लग रहा होगा आखिर वो भी हमारी आपकी तरह के ही धर्मवान प्राणी हैं वो भी बाबा विश्वनाथ पर उतनी ही आस्था रखते हैं जितनी कोई और रखता है फिर वो  इसबात का समर्थन कैसे कर सकते हैं कि उन्हें कोई हर हर मोदी कहे वैसे भी उन्हें यदि ऐसी ही शौक रही होती तो इसके पहले भी कहीं तो दिखाई पड़ी ही होती किन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ और जब से मोदी जी के बनारस से चुनाव लड़ने का निश्चय हुआ तभी से हर हर महादेव कहने के आदी  काशी वासी वही तुकबंदी लगाते हुए हर हर मोदी कहने लगे!वैसे भी नारे बनाए भी ऐसे ही जाते हैं किन्तु यहाँ तो बाबा विश्वनाथ जी का प्रश्न है इसलिए ठीक नहीं लगा जिसमें मोदी जी भी हम्हीं लोगों के साथ हैं अर्थात उन्हें भी अच्छा नहीं ही लगा होगा इस बात में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जाना चाहिए । 

     काशी के  धर्मवान एवं ज्ञानवान प्राणियों को जितना ये सब बुरा लग रहा है वो तो ठीक है किन्तु जो ज्ञानवान नहीं हैं उन्हें नहीं पता हैं ऐसी बातों के अर्थ उन्होंने तुकबंदी लगाई और बोलने लगे।  हर हर मोदी देखा देखी और लोग भी बोलने लगे वैसे भी गाने बजाने वाले लोग इतने अर्थ प्रेमी कहाँ होते हैं !एक दिन कोई आरती गाई जा रही थी उसमें एक जगह शब्द आता है कि 'तुम रक्षक मेरे'किन्तु बोलने वाले ने 'रक्षक' की जगह 'राक्षस' बोलना प्रारम्भ कर दिया तो सब उसी के पीछे हो लिए इसीलिए मैंने निवेदन किया कि गाने बजाने वाले लोग इतने अर्थ प्रेमी नहीं होते हैं जिस पर लय बनने लगे वही ठीक है!शास्त्रों में कहा भी गया है -

      " अपि मास मसं कुर्यात छन्दो भङ्गं न कारयेत् "

    जहाँ तक "हर हर "शब्द की बात है तो 'हर' शब्द का अर्थ 'महादेव' ऐसा किया गया है यही शब्द व्याकरण के अनुशार देखने पर लोट लाकर के मध्यम पुरुष का एक बचन है जिसका अर्थ होगा हरण करो किन्तु क्या हरण करो इसका कोई संकेत नहीं है किन्तु दुःख दर्द संकट आदि के हरण करने का भाव प्रकट होता है या उसका अद्याहार कर लिया जाता है ।

    वैसे भी टी.वी.चैनलों पर बैठ कर ऐसे वाक्यों की व्याख्या किसी की राजनैतिक चाटुकारिता की दृष्टि से नहीं की जा सकती ऐसे लोग बाबा ही क्यों न हों उन्हें भी उन्मत्त होकर नहीं बोलना चाहिए संयम से काम लेना चाहिए ये धार्मिक आस्था का प्रश्न है।बाबा लोग भी सर्व तंत्र स्वतन्त्र नहीं हैं!

      इसी प्रकार किसी खिलाड़ी को भगवान् कहना कितना उचित है !भगवान किसे कहते हैं क्या कभी जाना समझा है हम लोगों ने! इस विषय में क्या कहते हैं  हमारे  शास्त्र ?

      देश वासियों की सुरक्षा के लिए शिर कटाने वाले सैनिक यदि हमारे भगवान् नहीं हो सकते तो कोई खिलाड़ी भगवान् कैसे हो सकता !सम्मानीय हो जाए ये बात और है । 

        कुछ मीडिया के महापुरुषों  ने एक बाबा जी से जब तक विज्ञापन मिलते रहे तब तक उन्हें बे मतलब में सर्व शक्तिमान मलमल बाबा की तरह उनसे  उनकी  शक्तियों की कृपा लोगों पर लुटवाते रहे उन्हें अपने मन से धर्म गुरु और जाने क्या क्या बताते रहे और भी जितना चढ़ा सकते थे उतना चढ़ाया किन्तु जब वो अपने पत्र पत्रिकाएँ टी. वी.चैनल आदि खुद चलाने लगे तो इसी मीडिया ने न केवल उनके लिए अपितु समस्त धर्म एवं धर्माचार्यों के लिए क्या कुछ नहीं कहा !महीनों तक अपने अपने चैनलों पर बैठकर पानी पी पी कर खूब कोसते रहे बाक़ी सच्चाई तो ईश्वर ही जाने !मेरा उद्देश्य किसी का पक्ष लेना नहीं है ,किन्तु विज्ञापन का ये ढंग ठीक नहीं है गम्भीरता तो रखनी ही चाहिए । 

        हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि वह मीडिया यदि किसी मनुष्य को भगवान जैसे शब्दों से सम्बोधित करने भी लगे तो गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि अब मीडिया भी निष्पक्ष नहीं रहा है !

   जहाँ तक किसी को भगवान् कहने की बात है ये धर्म का विषय है इसे धर्माचार्यों पर छोड़ा जाना चाहिए साथ ही हमें एक बात और  ठीक तरह  से समझ लेनी चाहिए कि खेल या किसी कला में कोई कितना भी निपुण क्यों न हो जाए किन्तु उसे भगवान् नहीं कहा जा सकता ! भगवान् न तो कोई बन सकता है और न ही बनाया जा सकता है ये बनने बनाने का खेल ही नहीं है वह परं प्रभु तो ("चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्" "स्वे महीम्नि महीयते" आदि आदि )अपनी महिमा में महिमान्वित् एवं स्वयं सिद्ध स्वामी हैं उनकी तुलना किसी मनुष्य से करनी ही क्यों ?             

      ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः ।

    ज्ञानवैराग्ययोश्चैव  षण्णां   भग   इतीरणा ॥

    समग्र ऐश्वर्य, शौर्य, यश, श्री, ज्ञान, और वैराग्य आदि । ये जिनमें एक साथ हों वो भगवान होता है यथा -
 1. समग्र ऐश्वर्य- शक्ति संपन्न ,योग्य ,समर्थ,धनाढ्य, स्वामी आदि अर्थ होते हैं। 

2.शौर्य-बहादुर, वीर, पराक्रमी आदि ।    

3.यश-प्रसिद्धि ,ख्याति,कीर्ति, विश्रुति आदि । 

4.श्री-असीम धन,समृद्धि,सौभाग्य ,गौरव ,महिमा ,प्रतिष्ठा ,सुंदरता श्रेष्ठता समझ अति मानवीय शक्ति सम्पन्नता आदि । 

5.ज्ञान-विद्या प्रवीणता ,समझ,परिचय,चेतना आदि। 

6.वैराग्य-सभी प्रकार के सांसारिक सुख की इच्छाओं का अभाव। 

      ये छहो  गुण एक साथ जिसमें होते हैं वो भगवान् होता है ! जो ईश्वर के बिना किसी और में सम्भव ही नहीं हैं फिर बात बात में जिस पर जिसकी आस्था श्रद्धा विश्वास हो जाए  वह उसका आस्था पुरुष हो सकता है किन्तु भगवान् नहीं !

     सभी सनातन धर्मावलम्बियों से प्रार्थना है कि अपने भगवान् और सभी देवी- देवताओं, वेदों ,शास्त्रों, पुराणों ,तथा समस्त पवित्र ग्रंथों ,तीर्थों, नदियों  ऋषियों ,विद्वानों ,वीरों समेत सभी सदाचारी स्त्री पुरुषों का गौरव घटने नहीं देना चाहिए क्योंकि इनका गौरव बचने से समाज और देश बच पाएगा अपने धार्मिक प्रतीकों ,शब्दों कथानकों का प्रयोग हर किसी को हर जगह प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । ऐसे तो कोई क्रिकेट का भगवान् होगा तो कोई कुस्ती का तो कोई किसी और कला का भगवान हो जाएगा !आखिर हमारी आत्माओं, हृदयों, प्राणों को आनंदित कर देनेवाले ईश्वर की तुलना किसी मनुष्य से कैसे की जा सकती है ?

    वैसे भी सरकारें पुरस्कारों की स्वामिनी होती हैं वो इनका प्रयोग अपनी अपनी सुविधानुसार किया करती हैं अगर ईमानदारी,गुणगौरव,लोकप्रियता के आधार पर ये सम्मान दिए जाते होते तो अटल जी जैसे महापुरुष को क्यों नहीं दिए जा सकते थे? जिनके प्रशंसक हर दल ,वर्ग,समुदाय ,संप्रदाय ,क्षेत्रों में हैं जिनकी स्वच्छ छवि स्वदेश ही नहीं अपितु विदेशों तक विस्तारित है।यह समझ से बाहर की बात है कि सरकार आदरणीय अटल जी को इस सम्मान के योग्य क्यों नहीं मानती है?इस विषय पर यदि पूरे देश की राय शुमारी करा ली जाए तो पता चल जाएगा कि सरकार कितने गहरे पानी में है !   

  अब मैं खेल प्रिय समाज से क्षमा माँगते हुए खिलाड़ियों और देश के लिए समर्पित सैनिकों की तुलना करना चाहता हूँ ! देश के लोगों  का जो समर्पण खेल ,खेलों और खिलाडियों के एवं फ़िल्म से जुड़े लोगों के प्रति होता है काश! कम से कम उतना ही समर्पण राष्ट्र के प्रति समर्पित वीर सैनिकों के प्रति  भी होता तो क्यों झेलना पड़ता देश को आतंक वाद का कठिन दंश !

       विदेशों से जब खिलाड़ी खेलों में जीत कर आए होते हैं तो प्रधान मंत्री जी,मुख्यमंत्री जी फिल्मोद्योग से जुड़े लोग एवं बड़े बड़े उद्योग पति सब लोग कुछ न कुछ देने घोषणा कर रहे होते हैं !

        किन्तु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में शहीद हुए वीर सैनिकों  के लिए यह जोश क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ?जब उन सैनिकों के दुध मुए बच्चों के दूध की व्यवस्था एवं भविष्य सुधारने की व्यवस्था करने के लिए सरकारी आफिसों के चक्कर काटती फिरती हैं सैनिकों की विधवाएँ!  उन्हें  देखकर इन जोशीले नेताओं एवं धनियों की आत्माएँ इनको क्यों नहीं धिक्कारती हैं इनकी कुंद  जबान से क्यों नहीं निकलता कि  देवी ! तुम घर बैठो तुम्हारे बच्चों समेत तुम्हारे परिवार की चिंता हम उद्योग पतियों और सरकारों पर छोड़ दो !

       उनमें से जिन सैनिकों के परिजनों के लिए पेट्रोल पम्प देने की घोषणा सरकारों के द्वारा की भी जाती है उन्हें वे मिलते भी हैं कि नहीं है कोई देखने या पूछने वाला? उनकी विधवाओं को कागजों फाइलों अफ्सरों के नाम पर कितने चक्कर कटवाए जाते हैं वे छोटे छोटे बच्चे लेकर भटका करती हैं एक आफिस से दूसरी आफिस दूसरी से तीसरी आदि आदि !कितनी  निर्दयता का व्यवहार होता है उनके साथ ?

        जब किसी खिलाड़ी  भगवान की खेल जगत से बड़े धूम धाम पूर्वक विदाई देखता हूँ जिसमें बड़ी बड़ी स्वर कोकिलाओं के द्वारा प्रशंसा की गई होती है फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े बड़े महापुरुष वहाँ  पहुँच जाते हैं बड़े  बड़े तथाकथित युवराज ,मुख्य मंत्रियों समेत राजनैतिक जगत के बड़े  बड़े भाग्य विधाता पहुँचकर उस अवसर पर शोभा बढ़ा रहे होते हैं  बहुत अच्छा लगता है यह सब देखकर !

        दूसरी ओर  राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान  वीर सपूतों के शिर काट लिए जाते हैं बिना शिरों के शव पहुँचते हैं परिजनों के पास उस दुःख की घड़ी  में कोई नहीं पहुँचता है उन  प्रणम्य शहीद  वीर सैनिकों  के परिजनों को ढाढस बँधाने !यदि आत्मा का विज्ञान सच है तो यह सब देखकर उन शहीद सैनिकों की आत्माओं को कितना बड़ा आघात लगता होगा ?

      क्या तुलना नहीं की जानी  चाहिए एक खिलाडी की खेल जगत से की गई धूम धाम से विदाई, दूसरी ओर  राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान  वीर सपूतों की इस संसार से विदाई में बेरुखाई ही बेरुखाई!क्या किसी को नहीं लगना  चाहिए कि सैनिकों के परिजनों को न कुछ और तो सांत्वना ही दे आएँ !

        याद रखिए कि खेल कूद और नाच गाना आदि सारा मनोरंजन तभी तक अच्छा लगता है जब तक असंख्य सैनिक देश की  सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीना लगाए  खड़े हैं ,उन्हें भी बूढ़े माता पिता ,जवान पत्नी एवं छोटे छोटे बच्चों की याद आती होगी! प्रिय परिजन,  पुरबासी, खेत -खलिहान  समेत सभी स्मृतियाँ उन्हें भी सोने नहीं देती होंगी किन्तु राष्ट्र रक्षा की प्रबल भावना ने उन्हें बाँध रखा होता है देश की सीमा पर और यों ही बीत जाते हैं उनके सारे तिथि त्यौहार,सारे गाँव , घर खानदान के उत्सव !

      अपने प्रिय देश वासियों से मेरी प्रार्थना यही है कि सैनिकों के महान त्याग और बलिदान का सम्मान भी देश में कम से कम उतना तो हो ही जितना किसी और का होता है !!!

           (इस कारगिल विजय नामक काव्यात्मक पुस्तक की प्राप्ति के लिए हमारा वर्तमान पता है-)

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पांचजन्य में प्रकाशित अंश 



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