Pages

Tuesday, July 30, 2019

भूकंप विचार

       वैदिकविज्ञान निसंदेह अत्यंत समृद्ध है जो हजारों लाखों वर्षों से स्वयं प्रमाणित है आधुनिक चिंतन की दृष्टि से देखें तो जब लोगों को ज्ञान नहीं था विज्ञान नहीं था संसाधन नहीं थे अभी की तरह यंत्रों का आविष्कार नहीं हुआ था !रडार या उपग्रह जैसी सुविधाएँ नहीं थीं सूर्य चंद्र एवं पृथ्वी के अत्यंत विशालकाय पिंडों को देख पाना संभव न था उनके विस्तार के विषय में अंदाजा लगा पाना संभव न था सूर्य और चंद्र पर पहुँच पाना तो संभव था ही नहीं !ऐसी परिस्थिति में इनके संचार के विषय में अंदाजा लगा पाना कितना कठिन रहा होगा !
      ऐसी परिस्थिति में ग्रहण जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी इसके बाद भी प्राचीनभारतवर्ष के जिन वैदिकवैज्ञानिकों ने न केवल ग्रहण जैसी घटनाओं के कारणों की खोज की अपितु उसका पूर्वानुमान लगाने में भी सफलता प्राप्त की थी !जो  पूर्वानुमान न केवल एक एक मिनट सही घटित होते हैं अपितु सैकड़ों वर्ष पहले लगाए जा सकते हैं ,जिन्हें आज भी सही घटित होते देखा जा रहा है!मेरी समझ से इनकी  प्रामाणिकता में किसी को कोई संशय नहीं रह जाना चाहिए है !
       ऐसी परिस्थिति में जिस गणितविज्ञान के द्वारा ग्रहण जैसी बड़ी प्राकृतिक घटना का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगा लिया जाता है उसी गणितविज्ञान के द्वारा वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान भी लगा पाना यदि संभव हो पावे तो इसमें आश्चर्य क्या है !
        सिद्धांत रूप में यदि देखा जाए तो ग्रहणविज्ञान की तरह इतना सही एवं सटीक न तो आँधी तूफानों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो पाया है और न ही वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो पाया है वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगा पाने में तो बिलकुल ही सफलता नहीं मिल सकी है!भूकंपों से संबंधित किसी भी प्रकार की ऐसी कोई अनुसंधान प्रक्रिया अभी तक खोजी नहीं जा सकी है जिससे प्रमाणपूर्वक भूकंप आने के कारणों पर से आवरण हटाया जा सके !
      सन 2018 के मई जून में बार बार आँधीतूफान आए जिनके विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर किसी प्रकार से कोई सूचना नहीं दी जा सकी थी अंत में ऐसा होने के लिए जिम्मेदार कारण के रूप में ग्लोबल वार्मिंग को बताया गया !पूर्वानुमान पता न लग पाने के कारण ही 'चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !' जैसी बातें अखवारों में छापी जाने लगीं !
     इसी प्रकार से 3 अगस्त सन 2018 को भारत सरकार के द्वारा जो अगस्त सितंबर से संबंधित वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रकाशित किए जाते हैं उनमें बताया गया कि अगस्त सितंबर महीने में सामान्य वर्षा होगी !किंतु उसके ठीक तीन दिन बाद अर्थात 7 अगस्त सन 2018 से 15 अगस्त सन 2018तक दक्षिण भारत में इतनी अधिक वर्षा हुई कि बीते सौ वर्षों में इतनी अधिक बारिश नहीं हुई !इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ! इसका कारण उन्हीं मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जलवायुपरिवर्तन को बताया गया है |
    ऐसे ही भूकंप क्यों आते हैं इसके लिए पृथ्वी के अंदर संग्रहीत गैसों का दबाव एवं काल्पनिक प्लेटों का टकराया जाना बताया जा रहा है!गैसों का दबाव कब बढ़ जाएगा और कब प्लेटें टकरा जाएँगी इसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है !
      वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में बड़े सारे कारण गिनाए जा रहे हैं जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है ऐसा जिम्मेदार लोगों के द्वारा बताया जा रहा है !उनमें से अधिकाँश कारण मनुष्यकृत माने जा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में इनसे संबंधित पूर्वानुमान पता लगने का कोई प्रश्न ही नहीं है कि वायु प्रदूषण की मात्रा कब कहाँ कितनी बढ़ जाएगी !
      ऐसी परिस्थिति में यदि गंभीरता पूर्वक विचार किया जाए तो अतीत में घटित हुई ऐसी प्राकृतिक परिस्थितियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि  आँधीतूफ़ान ,वर्षा ,बाढ़, सूखा,भूकंप और वायु प्रदूषण बढ़ने आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |ये विशेष घटनाएँ हैं जिनके द्वारा इनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया का परीक्षण किया जा सकता था क्योंकि जो घटनाएँ प्रचलित प्रक्रिया से कुछ अलग हटकर घटित होती हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान यदि किसी प्रक्रिया से पता लगा पाना संभव हो तभी ऐसे पूर्वानुमानों की वैज्ञानिकता प्रमाणित हो पाएगी !जहाँ तक सामान्य घटनाओं की बात है उनका पूर्वानुमान लगाकर ऐसे पूर्वानुमानों की वैज्ञानिकता प्रमाणित करना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि वर्षा सर्दी गर्मी वर्षा आदि जो ऋतुएँ हैं उनमें उन उन ऋतुओं के लक्षण तो प्रकट होंगे ही !गर्मी में गर्मी होगी ही सर्दी में सर्दी होगी ही ऐसे ही वर्षा में वर्षा होगी ही !कम होगी अधिक होगी कहाँ होगी कहाँ नहीं होगी आदि तो प्रतिवर्ष कहीं न कहीं होता ही रहता है इसलिए इनके विषय में किए जाने वाले पूर्वानुमानों के नाम पर अक्सर तीर तुक्के भी घटित होते देखे जाते हैं किंतु 7 अगस्त सन 2018 से 15 अगस्त सन 2018तक दक्षिण भारत में आई भीषण बाढ़ या सन 2018 के मई जून में उत्तर भारत में बार बार आए हिंसक आँधीतूफानों को सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है क्योंकि ऐसा प्रतिवर्ष नहीं होता है यदि कभी कभी होता है तो उन वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि इतनी भीषण प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुईं जिनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !इससे एक बात यह भी प्रमाणित हो गई कि केवल भूकंप ही नहीं अपितु वर्षा और आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता को अभी तक विकसित नहीं किया जा सका है अंतर केवल इतना है कि प्रकृति से संबंधित छोटी घटनाओं के विषय में जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं उनसे जनता का अधिक हानि लाभ नहीं होता है इसलिए उधर लोगों का ध्यान कम जाता है इसलिए उनमें तो गलत सही सभी प्रकार की भविष्यवाणियाँ सही ही सिद्ध कर दी जाती हैं किंतु जो बड़ी घटनाएँ घटित होती हैं जिनसे समाज का हानि लाभ होने की संभावना होती है उनमें जनता का ध्यान आसानी से चला जाता है उनसे संबंधित पूर्वानुमानों पर जनता गंभीरता से बिचार और समीक्षा भी करती है !जिनमें गलत और सही पूर्वानुमानों का मिलान हो जाता है !ऐसी घटनाओं के लिए ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता है किंतु सैद्धांतिक रूप से ये गलत है !
       कुछ प्रकरणों में आँधी तूफ़ान या वर्षा से संबंधित दो चार दिन पहले बताए जाने वाले कुछ पूर्वानुमान सही भी हो जाते हैं किंतु उनकी संख्या बहुत कम होती है यदि इसे तीर तुक्का मानकर चला जाए तब तो जो सही होती हैं वही ठीक हैं किंतु यदि ऐसे पूर्वानुमानों को वैज्ञानिक पूर्वानुमान माना जाए तब तो आधे से अधिक पूर्वानुमान सही घटित होने ही चाहिए जबकि ऐसा होता नहीं है !
     वर्तमान समय में मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए अनेकों विधि व्यवस्थाएँ हैं वो कितनी सही सटीक  एवं उपयोगी हैं इसका अंदाजा तो मौसम संबंधी पूर्वानुमान का मौसम संबंधी घटनाओं के साथ मिलान करने से ही लगाया जा सकता है !प्रायः समुद्र से निर्मित होकर बादल या आँधी तूफ़ान जब चलते हैं तब उनकी दिशा और गति के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं उसी के आधार पर भविष्यवाणी कर दी जाती है किंतु इस प्रकार रडारों उपग्रहों की मदद से बादलों या आँधी तूफानों की जासूसी करके जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं पहली बात तो वे वैज्ञानिक नहीं हैं वे केवल एक अंदाजा मात्र हैं वे पूर्वानुमान नहीं हैं !
      वस्तुतः जिन प्राकृतिक घटनाओं का घटित होना किसी  भी रूप में प्रारंभ हो चुका होता है उनके चिन्हों को  प्रत्यक्ष रूप में यदि किसी भी प्रकार से देख लिया गया है इसके बाद यदि उससे संबंधित पूर्वानुमान बताए जाते हैं तो वे पूर्वानुमान नहीं अपितु अंदाजे होते हैं !ऐसी घटनाओं के लक्षण यदि किसी भी रूप में प्रकट न हुए हों उनके भविष्य में घटित होने की भविष्यवाणी की जाए तो वे पूर्वानुमान माने जा सकते हैं !भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के साथ उनका मिलान करने पर वे जितने प्रतिशत सही एवं सटीक बैठती हैं !उतने प्रतिशत उन पूर्वानुमानों को सही माना जाना चाहिए !
      कई बार जंगल या समुद्र में बारिश या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उन्हें देखकर उनकी गति या दिशा के आधार पर ये अंदाजा लगा लेना कि ये कितने समय में किस दिशा के किन देशों प्रदेशों या शहरों आदि तक जा सकती हैं!उसी हिसाब से की गई आँधी तूफानों या वर्षा आदि की भविष्यवाणियों को भविष्यवाणी नहीं माना जा सकता है !इसी प्रकार से आकाश में छाए हुए बादलों को देखकर ये कहना कि आज बारिश होगी या कल बारिस होगी | भविष्यवाणी करने का ये ढंग ठीक नहीं है !दूसरी बात किन्हीं 5 दिनों के विषय में यदि कोई एक भविष्यवाणी कर दी गई है तो उसके बाद उन पाँच दिनों के विषय में कुछ और  बदलाव नहीं किया जाना चाहिए !
        कई बार वर्षा होते देखकर कुछ दिनों तक वर्षा और अधिक होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है किंतु उस अवधि के बीच  में ही यदि धूप निकल आती है तो धूप निकलने गर्मी होने की भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं ऐसा होते कई बार देखा जाता है कि पहले की गई भविष्यवाणियों के विपरीत कुछ घटनाएँ घटित होने लगती हैं तो वैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर ये सब कुछ ठीक नहीं है !भविष्यवाणियों के  अनुशार घटनाएँ घटित होती हैं तब तो ठीक है किंतु घटनाओं के अनुशार भविष्यवाणियाँ करना उचित नहीं है !

कहीं और ही क्यों न घटित हो रही हों ऐसी घटनाओं का घटित होना यदि प्रारंभ हो चुका है भले ही वे जंगल में या समुद्र में ही क्यों न घटित हो रही हों !

जो घटना घटित होना किसी भी रूप में प्रारंभ हो ही गई हो भले उसका वो सूक्ष्म रूप ही क्यों न हो किंतु उसे देखकर लगाया गया अंदाजा पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है !
     पूर्वानुमान की कसौटी ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान है जिसमें किसी भी रूप में घटना के घटित होने से पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है और बाद में उस ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी के अनुशार ही एक एक मिनट सही समय पर ग्रहण घटित होता है !
       वर्षा और आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ  भी जब तक इस कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं तब तक उन्हें न तो पूर्वानुमान माना जा सकता है और न ही विज्ञान सम्मत ही माना जा सकता है ! !

किसी विषय के विज्ञान होने का प्रमाणपत्र कौन देगा ?

     उस युग में आधुनिक विज्ञान के पूर्वजों का भी ही कहीं अता पता नहीं था जिसने बिना किसी यंत्र की सहायता के भी केवल गणित के द्वारा ही सैकड़ों वर्ष पहले की ग्रहण जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर लाखों वर्ष पहले अपनी क्षमता को प्रस्तुत कर चुका था !
    भूकंप आने के अनेकों कारण होते हैं जिन पर वैदिक विज्ञान की दृष्टि से अनुसंधान किया जाना आवश्यक  है जो अत्यंत कठिन काम है वो भी तब जब कि आधुनिक विज्ञान के इस युग में आधुनिक विज्ञान जिसे प्रमाणत करता है उसे ही विज्ञान मानने की परंपरा प्रचलित हो चली है !जिन विषयों को आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में विषय ही नहीं माना जाता है तो उन्हें विज्ञान मानने का कोई औचित्य ही नहीं बचता है !


      ऐसी परिस्थिति में आधुनिकविज्ञान के अतिरिक्त प्राचीनविज्ञान से संबंधित यदि कोई ऐसा रास्ता मिले भी या किसी अन्य विधा से कोई रास्ता मिले भी जिसके द्वारा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधान करने की दृष्टि से कोई मदद मिल भी सकती हो तो उसे विज्ञान न मानकर उससे संबंधित अनुसंधानों को अनुसंधान न मानकर ऐसे रहस्य को उद्घाटित करने की दृष्टि से हमेंशा के लिए ताला लगा दिया गया है !
    इसकारण अब परिस्थिति ऐसी पैदा हो गई है कि आधुनिक वैज्ञानिक जिस विषय को विज्ञान मानेंगे उसी विषय को विज्ञान माना जाएगा अन्यथा कोई दूसरा विषय विधा या विज्ञान आदि ऐसे विषयों में यदि कोई अपनी भी वैज्ञानिक दृष्टि रखते हों तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा !इसमें ध्यान देने की बात यह है कि आधुनिक विज्ञान का इतिहास बहुत कम समय का है उस पर बिना की उपलब्धि ,अनुसंधान या परीक्षण के इतना बड़ा विश्वास किस आधार पर कर लिया जाना चाहिए कि वे जो बोलेंगे वही सही होगा उसके अतिरिक्त सबकुछ अविश्वसनीय होगा !
      प्रत्येक देश की सरकारों ने प्राकृतिक घटनाओं के क्षेत्र में मंत्रालय और विभाग बना रखे हैं उन विषयों से संबंधित अनुसंधान उन्हीं से करवाए जाते हैं !उन विषयों में वे लोग जो जो कुछ करते हैं सरकारें  उसे अनुसंधान करना मानती हैं वो जो कुछ कहते हैं सरकारें उसे उनकी उस विषय से संबंधित खोज मानती हैं !जो लोग ऐसा कर रहे होते हैं सरकारें उन्हें उन विषयों का वैज्ञानिक मानने लगती हैं !वे ऐसा करने में जिस विधा का उपयोग कर रहे होते हैं!सरकारें उसी विषय को उससे संबंधित विज्ञान मानने लगती हैं!वही विषय विज्ञान के रूप में शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करके पढ़ाया जाने लगता है जिसे हजारों लाखों विद्यार्थी पढ़लिखकर पास होते हैं बड़ी बड़ी डिग्रियाँ प्राप्त करते हैं उन्हीं के आधार पर उन्हें नौकरी मिलती है वे रीडर प्रोफेसर आदि बड़े बड़े वैज्ञानिक बनते हैं !उनके अनुसंधानों एवं अनुसंधान संसाधनों पर तथा उनकी सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर सरकारें भारी भरकम धनराशि खर्च करती है ! ऐसे लोग वैज्ञानिकों जैसी सारी सुख विधाएँ सम्मान पद प्रतिष्ठा पाकर आजीवन सफल गिने जाते रहे उनके मरने के बाद उनकी संताने उन्हें उन विषयों का वैज्ञानिक बता बता कर उनके हिस्से का सम्मान पाती रहती हैं !
     कई बार लगता है कि जिन्होंने अपने अपने विषयों में वैज्ञानिकों जैसा कुछ किया ही नहीं है या कर ही नहीं पाए या ऐसा करने की उनमें योग्यता का अभाव था या वो उस संबंधित विषय का विज्ञान जिस प्रक्रिया को मान रहे थे वो उस विषय का विज्ञान ही नहीं था !उस समय उन विद्यार्थियों का क्या होगा जो ऐसे विषयों को पढ़ने में समर्पण पूर्वक लगे हुए हैं जब वो उन्हीं विषयों में पढ़लिखकर तैयार होंगे उसी समय उनका विषय यदि उसी अनुसंधान से संबंधित वैज्ञानिक कसौटियों पर अयोग्य सिद्ध कर दिया जाएगा उस समय उन युवाओं का क्या होगा और उन विषयों वैज्ञानिकों का क्या होगा जिन्हें सरकारों ने बिना किसी आधार के इतना महिमा मंडित कर रखा होता है !
     ऐसा होने की संपूर्ण संभावना इसलिए भी है क्योंकि भूकंप जैसे जिन विषयों के अनुसंधान कुछ काल्पनिक कथा कहानियों के अतिरिक्त अभी तक कुछ प्राप्त नहीं हो सका है। ....

 विषय यदि वैज्ञानिक
     इस प्रक्रिया को स्वीकार करने में कठिनाई तब होती है जब यह पता लगता है कि


प्राकृतिक विषयों के अनुसंधान के नाम पर उन्हीं पर सरकार उनकी इच्छा के अनुशार धन खर्च करती है
ऐसी 

    आखिर भारत का सबसे प्राचीन इतिहास रहा है लोग तब भी तो जीवन जीते थे तब भी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुआ करती थीं !उन्होंने भी तो वर्तमान समय में घटित होते दिखने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कुछ सोचा होगा कुछ किया होगा उसकी उपेक्षा किस आधार जा रही है यह समझ के परे है!
      केवल आधुनिक विज्ञान ही नहीं अपितु अन्य विधाओं से भूकंप संबंधी किए जाने वाले सभी प्रकार के अनुसंधानों को करने के लिए भी उस विषय की उतनी ही शिक्षा विद्वत्ता अनुसंधान करने के प्रति समर्पित भावना समय श्रम आदि की आवश्यकता होती है !

 योग्यता चाहिए होती है ना ही प्रकार के कोई


 
     भूकंप कुछ प्राकृतिक कारणों से आते हैं कुछ सामाजिक कारणों से आते हैं किसी क्षेत्र विशेष में अधिक जीव हत्याएँ होने से कुछ भूकंप आते हैं !
     किसी क्षेत्र में अत्यंत उन्माद फैलने के कारण भूकंप आते हैं !सामूहिक संघर्ष या किसी बड़े आंदोलन के खड़े होने पर भूकंप आते हैं !कुछ भूकंप किसी क्षेत्र में आतंकवाद से संबंधित विस्फोटक सामग्री का संग्रह किए जाने पर ,जन संहार से संबंधित साजिश रचे जाने पर ,किसी क्षेत्र में आतंकवादियों का अड्डा बनने कर उस क्षेत्र में उस प्रकार के भूकंप आते हैं ! 
     किसी क्षेत्र में अधिक पानी बरसना, बादलफटना, आँधीतूफ़ान,बहुत अधिक गर्मी पड़ने लगना यहाँ तक कि कुँए तालाब आदि अचानक सूख जाएँ ऐसी परिस्थिति में वहाँ भूकंप आते  हैं !
       किसी विशेष प्रकार की कोई बीमारी जहाँ जन्म ले रही होती है वहाँ भूकंप आते हैं !
किन्हीं दो देशों में मित्रता या शत्रुता उन दोनों देशों के बीच में मित्रता या शत्रुता करवाने वाले भूकंप आते हैं !प्रधानमंत्री जैसे लोग कहीं सभा या सम्मेलन करने जाते हैं वहां यदि कोई अप्रिय घटना घटित होनी होती है तो भूकंप आते हैं

 विषय के रहस्य के उद्घाटन जो भी विषय कैसे जाता है किंतु प्रत्यक्ष तौर पर ऐसा कुछ होता कहीं दिख नहीं रहा है!

ऐसा कुछ होता कहीं में से कुछ कारण
  6 जुलाई 2019 धारा 370 हटने से पहले की आहटआधुनिक विज्ञान के इस युग में यहाँ आने वाले भूकंप बार बार दे रहे थे !
     1905 के बाद हिमाचल में 297 भूकंप के झटके दर्ज हुए हैं !जिनमें से केवल जनवरी 2019 से जुलाई 2019 के बीच ही केवल इतने समय में 14 झटके महसूस किए जा चुके हैं !चंबा जिला में 6 बार, किन्नौर में तीन बार, मंडी में दो बार, शिमला और कांगड़ा में एक-एक बार भूकंप दर्ज किए गए हैं।
     अतीत में राज्य में कई भूकंप दर्ज किए गए हैं और 1905 का कांगड़ा भूकंप इतिहास में अब तक का सबसे शक्तिशाली दर्ज किया गया है, जिसमें लगभग 20 हजार लोगों की जान गई और एक लाख से अधिक घर ढह गए। तब से राज्य में तीन मैग्निट्यूड के 297 भूकंप दर्ज किए गए। वर्ष 1975 किन्नौर में आया भूकंप प्रदेश के लिए एक और बढ़ा झटका था।

, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है।
१९९९ का चमोली भूकम्प २९ मार्च, १९९९ को भारत के उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखण्ड) राज्य के चमोली जिले में आया था। यह भूकम्प हिमालय की तलहटियों में ९० वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकम्प था। इस भूकम्प में लगभग १०३ लोग मारे गए।
1934 नेपाल-बिहार भूकंप या 1934 बिहार-नेपाल भूकंप नेपाल और बिहार, भारत के इतिहास में सबसे खराब भूकंप में से एक था। यह 8.0 परिमाण के भूकंप ०२:१३ के आसपास १५ जनवरी को आया था। इसमें 10000 लोग मारे गए थे !

No comments:

Post a Comment