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Wednesday, December 4, 2019

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                                            मौसमविज्ञान का सारांश 
       मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दो प्रमुख विधाएँ हैं एक वेदविज्ञान के आधार पर मौसम पूर्वानुमान लगाया जाता है तो दूसरा बाइबल के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाता है |वेदविज्ञान मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया है !
      वेदविज्ञान के आधार पर महीनों वर्षों पहले के प्राकृतिक लक्षणों को देखकर उसके अनुसार या फिर गणित के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिया जाता है यह गणित के आधार पर लगाया जाने वाला मौसम संबंधी पूर्वानुमान ग्रहण की तरह ही सैकड़ों वर्ष पहले भी लगाया जा सकता है जो सही एवं सटीक निकलता है |
      बाइबल में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने का जो वर्णन  मिलता है इसके अनुशार बाइबल के ज़माने में आँखों को जो नज़र आता था, उसी से मौसम का अनुमान लगाया जाता था। (मत्ती 16:2,3)
      आधुनिक मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बाइबल की इसी दृष्टि का अनुगमन करती है जो दिखेगा वो माना जाएगा | किसी ट्रेन की गति देखकर ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस समय कहाँ पहुँचेगी |ऐसे ही नहर में छोड़े गए पानी या नदी में आने वाली बाढ़ के पानी को देखकर यह अंदाजा लगा लेना कि यह पानी किस दिन कहाँ पहुँचेगा उसी तरह की आधुनिक विज्ञान के द्वारा मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया है |
   बाइबिल के मत से बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ एक जगह घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लेने मात्र को भविष्यवाणी मान लिया जाता है| बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ देखने के लिए यंत्रों की आवश्यकता पड़ी तो दो ढाई सौ वर्ष पूर्व ऐसे यंत्रों का निर्माण किया गया |यंत्रों से प्राप्त जानकारी सुरक्षित रखने के लिए बीसवीं शती के उत्तरार्ध में कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ | कुछ ज़रूरी यंत्रों से वायु दाब, तापमान, नमी और हवा को मापा जाता है।
      इस समय मौसम कैसा है यह जानना काफी आसान है। लेकिन, इसकी तुलना में अगले घंटे, दिन या सप्ताह का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान लगाना इतना आसान नहीं है।
    द वर्ल्ड बुक इंसाइक्लोपीडिया कहती है, “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”इसे वास्तविकता समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए | 
      संभवतः इसीलिए इस बाइबल पद्धति से की जाने वाली मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं | इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं का  पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक असंभव बना हुआ है | वैज्ञानिक न इनके कारण बता पाते हैं और न ही पूर्वानुमान !एक आध तीर तुक्कों को छोड़ दिया जाए तो इस प्रक्रिया में मौसम पूर्वानुमान के लिए कुछ भी नहीं है या यूँ कह लिया जाए कि आधुनिक मौसम विज्ञान पद्धति में विज्ञान का एक छोटा से छोटा अंश भी नहीं है |
      अब बाद वेद विज्ञान की इसके आधार पर जो मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाता है इस प्रक्रिया में जो दिखाई पड़ता है उसके विषय में तो पूर्वानुमान लगाया ही जाता है जो नहीं दिखाई पड़ता है उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है वो विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है वो आज भी सही एवं सटीक घटित हो रहा है | ग्रहण संबंधी सौ वर्ष पूर्व का पूर्वानुमान लगाते समय उस समय की संभावित सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि की परिस्थिति देख पाना बिल्कुल संभव नहीं होता है इसके बाद भी इसके बाद भी ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक निकलते हैं |
    भारत सरकार का मौसमविज्ञान विभाग वेद विज्ञान को विज्ञान मानता ही नहीं है  जबकि उसकी अपनी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ  गलत निकल जाती हैं |
     आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में चूँकि भविष्य झाँकने की कोई विधि  ही नहीं है और किसी भी घटना का पूर्वानुमान जानने के लिए भविष्य विज्ञान एक मात्र विकल्प है !इसके बिना आधुनिक विज्ञान के द्वारा भविष्य के विषय में किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं  है |
  मौसमसंबंधी समाचारों को ही मौसमसंबंधी भविष्यवाणी कहा जाता है !
     आधुनिक विज्ञान प्रक्रिया में तो केवल मौसमसंबंधी समाचार बाचन किया जाता है | जिसमें अन्य समाचारों की तरह ही आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त करनी होती हैं जिनके गलत होने के बाद भी उनकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है |
     राजनैतिक या सामाजिक समाचारों की प्रक्रिया भी तो यही है कि वहाँ ऐसा ऐसा हुआ है और यदि वहाँ ऐसा हो रहा है तो यहाँ भी ऐसा होने की संभावना या आशंका है | यहाँ सांप्रदायिक दंगा भड़का है तो ये पूरे देश में फैल सकता है | इस वर्ष महँगाई बढ़ सकती है | मद्यावधि चुनाव हो सकते हैं !इस पार्टी की सरकार बन सकती है | उस पार्टी में फूट पड़ने की आशंका है एक नया गठबंधन तैयार होने की आशंका है | आगामी सत्र में सरकार इस प्रकार का बिल ला सकती है !इस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है |
     ऐसी आशंकाओं संभावनाओं को यदि राजनीति और समाज में भविष्यवाणी नहीं माना जाता है तो मौसम के क्षेत्र में ऐसे समाचारों को भविष्यवाणी कैसे माना जा सकता है जिनका कोई आधार या अनुसंधान प्रक्रिया ही न हो किसी की जवाबदेही न हो केवल आशंकाओं संभावनाओं की भरमार हो |
      इस वर्ष सर्दी  ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने उतने वर्ष का और वर्षा ने इतने दशकों का तोड़ा !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई वहाँ इस नाम का तूफ़ान आया | तीन दिनों तक वर्षा हो सकती है उसके बाद कह दिया जाता है दो दिनों तक और वर्षा हो सकती है इसके बाद फिर कह दिया जाता है तीन दिन और वर्षा हो सकती है जैसी जय वर्षा आँधी तूफ़ान आदि होने की घटनाएँ घटित होते जाते हैं वैसी वैसी आशंकाएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त करते जाते हैं ऐसी मौसमी भविष्यवाणियों और राजनैतिक समाचारों में क्या अंतर है |
     वर्षा अधिक हो सकती है या गर्मी अधिक पड़ने की संभावना है या सर्दी कम या अधिक पड़ने की आशंका या संभावना है ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वालों की न तो कोई जवाबदेही होती है और न ही इनके गलत हो जाने के बाद उनसे जवाब भी नहीं माँगा जा सकता कि ये गलत क्यों हो गईं !यदि जवाब माँगा भी जाए तो जवाब दिया भी क्या जाएगा जब ऐसी भविष्यवाणियों का कोई आधार ही नहीं है |यदि आधार हो तब भविष्यवाणियों के गलत होने पर त्रुटियाँ खोजी जा सकती हैं कि आखिर हमसे गलती कहाँ छूट गई है किंतु आधार विहीन भविष्यवाणियों के गलत होने पर केवल यह कह दिया जाएगा कि इसमें रिसर्च की आवश्यकता है !ऐसे समय बरका देने के अतिरिक्त और दूसरा विकल्प बचता भी क्या है ? 
       राजनैतिक भविष्यवाणियों में जिस प्रकार से कुछ लक्षणों संकेतों संपर्कों के आधार पर राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरणों के विषय में आवश्यकताएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त की जाती हैं ऐसा हो सकता है वैसा होने की आशंका है सरकार बनने की संभावना है  किंतु राजनीति में कई बार कुछ घटनाएँ अचानक घटित हो जाती हैं जो क्रमिक प्रक्रिया में नहीं होती हैं इसलिए उनके विषय में किसी को कानोकान कोई खबर नहीं होती है | इसलिए ऐसी ख़बरों के विषय में कोई आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है | बिना किसी सुगबुगाहट के किसी सरकार के गिरने की घोषणा हो जाए या बन जाए तो राजनैतिक पत्रकारों या भविष्य वक्ताओं के पास कोई जवाब नहीं होता है वे केवल आश्चर्य प्रकट कर रहे होते हैं |
        राजनैतिक भविष्यवाणियों की तरह ही मौसम के क्षेत्र में जब ऐसी कोई प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जो क्रम से अलग हटकर होती हैं इसीलिए उनके विषय में भी आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है  तो ऐसी घटनाओं को आधुनिक मौसमविज्ञान की भाषा में अप्रत्याशित बता दिया जाता है और ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन बता दिया जाता है | 
        कुलमिलाकर ये राजनैतिक समाचारों की तरह ही मौसमसंबंधी समाचार ही हैं जिन्हें मौसम पूर्वानुमान या भविष्यवाणियों के नाम पर परोसा जाता है और समाज को स्वीकार करना पड़ता है |

                    भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान     

     भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।उसी के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ सफलता पूर्वक की जाती रही हैं |इसमें प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं जो सही सटीक घटित होती थीं | वेदों उपनिषदों दार्शनिक विवेचनों में बादलों के गठन और बारिश के विषय में वर्णन मिलता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ऋतुचक्र की प्रक्रिया के बारे में  गंभीर चर्चा की गई है !500 ईस्वी के लगभग वाराहमिहिर द्वारा निर्मित वृहद्संहिता इस बात का सुपुष्ट प्रमाण है कि वायु मंडलीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान उस समय भी आस्तित्व में था !कहा गया है - आदित्याज्जायते वृष्टिः अर्थात सूर्य से वर्षा का  निर्माण होता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देश के राजस्व और राहत कार्य के लिए वर्षा के वैज्ञानिक मापन और उसके उपयोग की सूची सम्मिलित है ! सातवीं शताब्दी के आसपास कालिदास ने अपने महाकाव्य 'मेघदूत' के माध्यम से भारत के मध्य भाग में मानसून आने के समय का संकेत किया है एवं बादलों के मार्ग का भी वर्णन किया है !1753 में महान मौसम वैज्ञानिक महाकवि 'घाघ' हुए जिनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों से प्रभावित जन जन की जबान पर घाघ की कहावतें विद्यमान हैं |कुलमिलाकर भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत अत्यंत प्राचीन काल में हो गई थी |
 विदेशों में भी यंत्रों के बिना ही मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते थे ! 
      उस समय विदेशी विद्वान भी बिना यंत्रों के ही मौसमसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगाया करते थे | विदेशी विद्वानों में भी 350 ईसा पूर्व में अरस्तु ने मौसम विज्ञान पर लिखा था।15अक्टूबर 1987 को ब्रिटेन में एक औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है। लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया: “चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी इंग्लैंड पर ऐसा भयंकर तूफान आया जिससे भारी जनधन की हानि हुई |
      ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करे। लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था |इसलिए उनकी वो प्रक्रिया प्रचलन में नहीं आ सकी !किंतु गणित से मौसम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसा वे भी मानते थे |
     स्वदेश से लेकर विदेश तक जिस प्रक्रिया के द्वारा हजारों वर्षों तक मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे और समाज उससे संतुष्ट भी था यदि ऐसा न होता तो मध्य भारत में घाघभंडरी की कहावतें आज जन जन की वाणी पर नहीं होतीं !वे अनुभव आज भी उनके काम आया करते हैं |वो मौसम संबंधी अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया जो अब तक प्रचलित रही वो अचानक गलत कैसे हो गई !
      कुल मिलाकर भारतवर्ष में ऋषियों मुनियों ने सदियों पहले ही वो ज्ञान अर्जित कर लिया था जिससे मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जाती रही है जिन दिनों योरोप ने मौसम विज्ञान की ओर  पहला कदम भी नहीं बढ़ाया था जब अमेरिका में विज्ञान का कोई नाम लेवा भी नहीं था तब ही घाघ जैसे मौसम वैज्ञानिक ने संसार के सर्वाधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक वर्षा वेत्ता की ख्याति अर्जित कर ली थी वे सटीक एवं अचूक भविष्यवाणी किया करते थे |
      प्राचीन ऋषियों की विशेषता एक और थी जब कोई प्राकृतिक घटना क्रम से अलग घटित होती थी तो उसका पूर्वानुमान लगाना भी वे आवश्यक समझा करते थे इसलिए उसके विषय में भी अनुसंधान पूर्वक न केवल पूर्वानुमानलगाते थे अपितु वैसा होने के पीछे के कारण खोजकर उस घटना को भी नियमबद्ध कर दिया करते थे |
     प्रकृति में चंद्रमा का थोड़ा थोड़ा घटना या बढ़ना रहा हो या सूर्य चंद्र ग्रहण की घटनाएँ या फिर समुद्र में उठने वाला ज्वार भाँटा हो ये घटनाएँ प्रतिदिन नहीं घटित होती हैं कभी कभी घटित होने के बाद भी उन्होंने अनुसंधान पूर्वक इस बात की खोज कर ली कि ये कब कब किन किन तिथियों में घटित होती हैं | ज्वार भाँटा प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा को भले घटित होता हो किंतु ग्रहण अमावस्या पूर्णिमा में घटित होने के बाद भी प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होते कभी कभी घटित होते हैं उनका पूर्वानुमान लगाने में एवं ऐसी घटनाओं को भी गणित बढ़ करने में उन्होंने अनुसंधान पूर्वक सफलता प्राप्त की थी |
    आधुनिक मौसम विज्ञान में भी यदि वैज्ञानिकता का थोड़ा भी अंश होता तो भूकंपों के घटित होने के कारण और पूर्वानुमान खोजकर उन्हें भी नियमबद्ध या गणितबद्ध करने के विषय में कोई न कोई सफल अनुसंधान हो चुका होता इसके साथ ही अलनीनो ,लानीना, जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग एवं वायु प्रदूषण के होने न होने या बढ़ने घटने के विषय में खोज की जा चुकी होती एवं मौसम पर पड़ने वाले इनके प्रभाव के विषय में अब तक कोई न कोई सफल अनुसंधान कर लिया गया होता !कब अर्थात किस वर्ष ऐसी घटनाएँ घटित होंगी कब नहीं घटित होंगी आदि के पूर्वानुमान लगाने की विधि खोज ली गई होती उसे नियमबद्ध या गणितबद्ध कर दिया गया होता ताकि भावी पीढ़ियों को वर्तमान समय की तरह भ्रम की स्थिति से नहीं जूझना पड़ता |
         आधुनिक मौसम विज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
 
     उन दिनों मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें नहीं थीं फिर भी महाकवि घाघ ने प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप के बिना प्रकृति को पढ़ने की व्यवस्था खोज ली थी |इसप्रकार से अपने देश में ही मानसून की चाल को सही सही पढ़ने वाला विज्ञान विद्यमान है फिर भी भारत में इन दिनों पाश्चात्य जगत के विज्ञान का अंधानुशरण हो रहा है मानसून के मन में क्या है इसे जानने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में बनी मशीनों का उपयोग हो रहा है |
     इसके आधार पर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जाता है तब बूंदाबांदी होकर निकलजाता है कई बार बूँदा बाँदी की भविष्यवाणी की जाती है और मूसलाधार बारिश हो जाती है | कई बार आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाती है किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आता है कई बार बिना किसी भविष्यवाणी के ही भीषण आँधी तूफ़ान आ जाता है |
       निकट समय में घटित हुई ऐसी ही कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -

       ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -

  1. केदारनाथ जी में  16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए  किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! 
  2. 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
  3.  बनारस में 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को भीषण बारिश हुई जिसके कारण बनारस में संभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की सभाएँ लगातार दो करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में पहले कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
  4. सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में कई दिनों तक लगातार भीषण बारिश हुई थी जिसके कारण मद्रास में भीषण बाढ़ से त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
  5.  सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने की घटना घटित हुई थी  नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में  आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन  न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा इस वर्ष हुआ क्यों?इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहीं बताया जा सका था | 
  6.  2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | 
  7.   7 और 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई थी  जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए थे किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई  ऐसा कई बार हुआ क्यों ? 
  8. केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 15 अगस्त 2018 तक  केरल में भीषण बरसात हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |बाद में भी इसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया था |  
  9.  17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था ! 
  10. सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटित हुई जिसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है | इस भीषण बारिस का पूर्वानुमान एवं ऐसा होने का विश्वसनीय कारण मौसम विभाग के द्वारा न बता पाने एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों से निराश मुख्यमंत्री एवं केंद्र के एक राज्यमंत्री ने ऐसी भीषण बारिश होने का कारण  हथिया नक्षत्र को बताया था !
       ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था | 
     मानसून आने जाने की तारीखें एक आध बार छोड़कर कभी सच नहीं हुईं अब कहा जा रहा है मौसम चक्र बदल गया है इसलिए मानसून आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जाएगा | ऐसा ही सभी जगह किया जाता है | 

                मौसमपूर्वानुमान के अभाव से होने वाले नुक्सान !


       वर्षा के बिना सरकारें नहीं चलती हैं देश की आयव्यय का लेखा जोखा वजट का पूरा तामझाम  मौसम की मर्जी पर निर्भर करता है | विज्ञान मौसम की चाल को पढ़ने का सही एवं सटीक विज्ञान नहीं खोज पाया है जिसके कारण कृषि योजना बनाने में किसानों को कठिनाई आती है इसलिए किसानों का हर वर्ष नुक्सान होता है इसीलिए हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या करते हैं | 

    वर्तमान वैज्ञानिक मानसून का तिलस्म नहीं तोड़ पाए हैं और न ही मौसम विज्ञान का मर्म ही समझ पाए हैं | कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव ही नहीं है |महावैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अकाल और सुकाल सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की थी !देश वासी इस पर विश्वास  करते हैं किंतु सरकार इसे नहीं मानती है  प्राचीन विज्ञान के हिसाब से पूर्वानुमान लगाया जाता तो हजारों किसानों  की जान बच सकती थी |
     आपदा प्रबंधन  की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए !
      विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
      किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है | 

     5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |
  
ऐसी परिस्थिति में वेद विज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी अनुसंधान सरकार की देख रेख में पुनः प्रारंभ किए जाएँ तो इससे मौसम संबंधी पूर्वानुमान  में क्रांति लाई जा सकती है | 


              मेरे द्वारा किए गए कुछ पूर्वानुमान -

  मैं प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पूर्व अगले महीने के पूर्वानुमान पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी के जीमेल पर भेज दिया करते थे उन्होंने कहा था कि हमारे पूर्वानुमान यदि सही निकलेंगे तो वो मुझे लिखित फीडबैक देंगे !इसलिए अपने पूर्वानुमान परीक्षणार्थ मैं उन्हें भेज रहा था जो सही निकलते जा रहे थे !इसी विषय में मेरी उनसे अक्सर बात भी होती थी | इसी क्रम में अगस्त 2018 के विषय में मैंने जुलाई में ही उनके जीमेल पर पूर्वानुमान डाल दिया था जिसमें 1 से 11 और 7 से 14 अगस्त में बीच दक्षिण भारत में भीषण वर्षात होने का पूर्वानुमान लिखा था जिसमें कुछ दशकों का रिकार्ड टूटने की बात भी लिखी थी | जबकि मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी उसमें अगस्त और सितम्बर में सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी | जबकि इसी बीच केरल आदि दक्षिण भारत में बहुत अधिक वर्षा हुई थी | भारतीय मौसम विज्ञानविभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी वो भविष्यवाणी गलत हो गई थी मेरे द्वारा अपनी भविष्यवाणी की  तुलना उससे किए जाने के कारण उनसे  हमारी बातचीत बंद हो गई | ये दोनों जीमेल मैं आपको भेज रहा हूँ | इसके विषय में उन्होंने जो फीडबैक दिया है भले उसमें हमारी भविष्यवाणियों को सही न स्वीकार किया गया हो किंतु मैं उन्हें आपको भेज रहा हूँ | 
       इसी विषय में मैं एक दिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री जी से मिला उन्होंने मुझे सेकेटरी साहब के पास यह कहते हुए भेजा कि यदि कुछ हो सकता होगा तो वही करेंगे !मैं राजीवन जी के पास गया तो उन्होंने एडवाइजर गोपाल रमन जी से मिलाया और हमारी बात सुनने को कहा | गोपाल रमन जी ने हमसे वो तकनीक और वह प्रक्रिया लिखकर देने के लिए कहा जिसके आधार पर और जिस प्रकार से मैं पूर्वानुमान लगाता हूँ !मैंने ज्योतिष आदि गणित पक्ष को उद्धृत  किया तो वहाँ ज्योतिष के कुछ पंचांग रखे हुए थे उनकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अमावस्या संक्रांति के आसपास वर्षा होती है इसके अलावा  मौसम का पूर्वानुमान तुम कैसे लगाते हो !इससे लगा कि वहाँ पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष पंचांगों का उपयोग तो किया जाता है किंतु स्वीकार नहीं किया जाता है कि यह भी विज्ञान है | 
     इसके  अतिरिक्त स्काई मेट के  वैज्ञानिक डॉ रजनीश जी को भी मैं पूर्वानुमान भेजता था !उन्होंने मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमानों की सच्चाई स्वीकार करते हुए  आपदा प्रबंधन विभाग को एक पत्र भी लिखा था मैं वो भी संलग्न कर रहा हूँ | 
    मैंने वायु प्रदूषण के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे भी काफी हद तक सही निकले हैं जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि वायु प्रदूषण बढ़ने में समय की भी बड़ी भूमिका है | मैं वो मेल भी आपको भेज रहा हूँ | 
     आँधी तूफानों एवं चक्रवातों के विषय में मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान लगभग सच सिद्ध हो रहे हैं | 
   इसके अतिरिक्त मैं दिसंबर 2019 महीने के विषय में भी पूर्वानुमान आपके पास भेज रहा हूँ | 
        आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इस विधा पर भी विचार करें एवं इसी विषय में मुझे मिलने के लिए समय दें !


 

 

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