जिन अफसरों ने अवैध कब्जे करवाए वही उन्हें तोड़ने पहुँच रहे हैं | उन्हें जो तोड़े सो शासक अन्यथा सत्ता के दलाल !
जिसकी समस्या उसे समाप्त होने का इंतजार ही राजनीति है! गरीबी हटाने का नारा जब जिन्हें दिया गया था अब वे नहीं हैं किंतु गरीबी अभी भी है |
दलितों को दुत्कारते रहने वाले लोग ही दलितों के मसीहा बने हैं उन्होंने देखा है कि उनके पुरखों ने किसे कितना लूटा है !
ये बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतनी ही भलाई है !
अमृत और मृत्यु- दोनों ही इस शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है।
समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है।
परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है।
इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है।
जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है।
जैसे पके हुए फलों को गिरने के सिवा कोई भय नहीं वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं।
भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु दूसरों का अधिकार भोगने से होत
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