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Thursday, February 28, 2013

पैंट शर्ट पहनने वाले ज्योतिषियों की मजबूरी आखिर क्या है क्यों गंदी करते घूम रहे हैं ज्योतिष की परंपराएँ !

जिन्हें ज्योतिष विद्वानों जैसे कपड़े  पहनने में इतनी शर्म लगती है उन्हें ज्योतिष की किताबें छूने में कितनी बेइज्जती लगती होगी !
 धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों पर  लोग पैंट शर्ट  पहनकर  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! वो किसी के फैशन से प्रभावित होकर अपनी ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल क्यों रखाते?शास्त्रीय विद्वानों की सबसे बड़ी पहचान यह भी है कि वो शास्त्रीय परम्पराओं एवं वेष भूषा से अकारण समझौता नहीं करते!ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत जिसने की होगी हो सकता है उसकी कोई मजबूरी रही हो! हो सकता है कि उसे ऐसा त्वचा से सम्बंधित रोग रहा हो जिसे  देख कर लोग घृणा करते हों उसे ढकने के लिए उसने ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत की हो किन्तु आज बहुत लोग ऐसा करने लगे हैं ये देखा देखी बन्दर बनने की परंपरा ठीक नहीं है जिसे अपनी परंपरा एवं  शास्त्रीय प्रमाणों से अथवा अपने ठोस तर्कों से प्रमाणित न किया जा सकता हो!नकलची बंदरों की तरह यदि हम भी केक काटने लगें आखिर क्यों?क्या हमें अपनी संस्कृति का स्वाभिमान नहीं होना चाहिए?हम अपने को इतना गया गुजरा क्यों समझें? हैपी बर्थ डे  आखिर क्या मतलब है इसका? बर्थ डे तो साल में एक दिन आएगा साल 365 दिनों में किसी एक दिन प्रसन्नता की और 364 दिनों के विषय में अनहैपीनेस की कितनी घटिया सोच होती है किसी के भविष्य के विषय में यह सोच?
      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या? कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उसे  मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा! यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।
       इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता,चीटी,चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं, साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।
     जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है,ताकि समाज सच्चाई समझ कर ऐसे भोंदुओं को रिजेक्ट न कर दे।  
 



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