चूँकि आपराधिक सोच मन का विषय है इस पर नियंत्रण कैसे हो ?
महिला दिवस के दिन कुछ महिलाओं को पुरस्कार देने की बात इसलिए हुई कि अपने अधिकारों का संघर्ष उन्होंने किसी पुरुष से जीता था या किसी अन्य प्रकार से कोई बहादुरी का काम किया था?इस प्रकार के बहादुरी के काम तो चलो मान भी लिए जाएँ किन्तु दिसंबर २०१२ दिल्ली की बस में एक बलात्कार हुआ था इसमें किसी की बहादुरी क्या थी? शिथिल कानून व्यवस्था के कारण इसमें कुछ अपराधियों के द्वारा एक लड़की को जघन्यतम पीड़ा दी गई और सरकार के लाखों प्रयासों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका इससे न केवल भारत वर्ष अपितु समग्र विश्व दुखी है।
इसमें अपराधीगण अपराध भावना से मरने मारने पर तुले हुए थे ये लोग भी बचाव में हाथ पाँव मार रहे होंगे फिर भी वो कई लोग थे दुर्भाग्य से फिर भी उस लड़की का बच पाना संभव नहीं हो सका!हर प्रकार के अपराध का शिकार कोई भी स्त्री पुरुष हाथ पैर तो मारता ही है वो यहाँ भी मारे गए। देश हित समाज हित या किसी और की सुरक्षा में चोट खा जाना बहादुरी हो सकती है किन्तु कानून व्यवस्था की कमजोरी से बलात्कार का शिकार हो जाना इसमें बहादुरी किस बात की? ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण दुर्घटनाएँ रोकने के बजाए पीड़िता को वीर सिद्ध किया जाना या उसकी वीरता की प्रशंसा किया जाना ये केवल मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने के अलावा और क्या था !वस्तुतः ये लचर कानून व्यवस्था का मुद्दा बनता है जिसे और अधिक शक्त करना आवश्यक था।शिक्षा में नैतिकता,सदाचार, संयम आदि सिखाने समझाने के विषय में समझाने की जरूरत है।
चूँकि आपराधिक सोच मन का विषय है समाज के मन को सदाचारी बनाने के लिए धर्माचार्यों से अपील या प्रार्थना करने की आवश्यकता है कि वे धन कमा कमाकर बड़े बड़े आश्रम बनाने के बजाए प्रयत्नशील होकर समाज का हित साधन करें !उनके माया मोह छोड़ने के उपदेश आखिर क्यों मायामोह पकड़ने में तब्दील होते जा रहे हैं आश्रम एवं निरोग या योग पीठें बनाने के लालची लोगों के अलावा आज भी श्रद्धेय विरक्त संत इस तरह की आपराधिक सोच पर नियंत्रण कर सकते हैं।जो व्यापारी लोग अपना व्यापार चमकाने के लिए अपने को रंग पोत कर सधुअई के धंधे में सम्मिलित हो गए हैं ऐसे लोग समाज को भ्रष्टाचार के विरुद्ध माया मोह से दूर रहकर अपराध मुक्त आचरण किस मुख से सिखा सकेंगे?इसलिए मैं केवल साधु वेष में शरीर लिपेटने वालों की बात नहीं करता हूँ अपितु समाज सुधारने के लिए विरक्त एवं चरित्रवान संतों से समाज सुधार की प्रार्थना करना चाहता हूँ।इससे इस तरह के अपराधों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
इसी प्रकार सदाचारी शिक्षकों से भी ऐसा ही विनम्र निवेदन किया जाना चाहिए समाज सुधारने में चरित्रवान शिक्षक भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
फ़िल्म निर्माताओं से भी ऐसी ही प्रार्थना की जानी चाहिए सेंसर बोर्ड के नियम शक्त होने चाहिए। कला के नाम पर कपड़े उतार कर फेंक देने वाले अभिनेता लड़के लड़कियों को समाज हित में अपने परिश्रमपूर्वक कमाकर खाने के लिए प्रेरित किया जाए!
मीडिया के महापुरुषों से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि किसी मुद्दे को उठाने से पूर्व समाज के हित का ध्यान जरूर रखा जाए।
आज सरकार आपसी सहमति से होने वाले सेक्स की उम्र सीमा घटाने पर विचार कर रही है। साथ ही यह भी सुना है कि सरकार सेक्स एजुकेशन की व्यवस्था भी कर रही है।आखिर क्या जरूरत है सेक्स सुविधाएँ देने की?क्या ऐसी व्यवस्थाएँ करने से फिर नहीं घटेंगी ऐसी घनघोर घटनाएँ !निजी तौर पर मेरा अपना मानना है कि प्रज्ज्वलित आग की लव को जैसे तेल डाल कर नहीं बुझाया जा सकता है उसी प्रकार सरकार द्वारा किए जा रहे इन सारे उपायों का प्रभावी असर होते कम से कम हमें तो नहीं ही दिखता है।बाकी सरकार जाने !इतना ज़रूर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार के इन तथाकथित प्रेम के पाखंडों पर यदि सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जाए तो संभव है कि ऐसे घोर घृणित अपराधों में लगाम लगाई जा सके,किन्तु अपने अपने मोर्चे पर फेल लोगों ने बलात्कार पीड़िता के कल्पित नाम का पूजन भजन करके उसे देवी देवताओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है !
इससे जिम्मेदार लोगों को मुख्य विषयों से समाज का ध्यान भटकाने में सफलता मिली और धूपबत्ती मोमबत्तियों श्रृद्धांजलियों पुरुस्कारों में समेट दिया गया सारा जनजागरण! देश का हर छोटा बड़ा नेता अफसर आम आदमी समाज सुधारक आदि इस प्रकरण से चिंतित दिखा, प्रधान मंत्री जी दलबल के साथ एयरपोर्ट पहुँचे, देश की सबसे अधिक शक्तिशाली महिला पीड़ित परिवार से जाकर मिलीं।इसप्रकार जिस मुद्दे पर सारा देश उबल पड़ा हो आखिर इन सबका फल क्या हुआ रुपया,पैसा,पुरुस्कार आदि? क्या इसीलिए ये सबकुछ हुआ था?
महिला दिवस के दिन कुछ महिलाओं को पुरस्कार देने की बात इसलिए हुई कि अपने अधिकारों का संघर्ष उन्होंने किसी पुरुष से जीता था या किसी अन्य प्रकार से कोई बहादुरी का काम किया था?इस प्रकार के बहादुरी के काम तो चलो मान भी लिए जाएँ किन्तु दिसंबर २०१२ दिल्ली की बस में एक बलात्कार हुआ था इसमें किसी की बहादुरी क्या थी? शिथिल कानून व्यवस्था के कारण इसमें कुछ अपराधियों के द्वारा एक लड़की को जघन्यतम पीड़ा दी गई और सरकार के लाखों प्रयासों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका इससे न केवल भारत वर्ष अपितु समग्र विश्व दुखी है।
इसमें अपराधीगण अपराध भावना से मरने मारने पर तुले हुए थे ये लोग भी बचाव में हाथ पाँव मार रहे होंगे फिर भी वो कई लोग थे दुर्भाग्य से फिर भी उस लड़की का बच पाना संभव नहीं हो सका!हर प्रकार के अपराध का शिकार कोई भी स्त्री पुरुष हाथ पैर तो मारता ही है वो यहाँ भी मारे गए। देश हित समाज हित या किसी और की सुरक्षा में चोट खा जाना बहादुरी हो सकती है किन्तु कानून व्यवस्था की कमजोरी से बलात्कार का शिकार हो जाना इसमें बहादुरी किस बात की? ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण दुर्घटनाएँ रोकने के बजाए पीड़िता को वीर सिद्ध किया जाना या उसकी वीरता की प्रशंसा किया जाना ये केवल मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने के अलावा और क्या था !वस्तुतः ये लचर कानून व्यवस्था का मुद्दा बनता है जिसे और अधिक शक्त करना आवश्यक था।शिक्षा में नैतिकता,सदाचार, संयम आदि सिखाने समझाने के विषय में समझाने की जरूरत है।
चूँकि आपराधिक सोच मन का विषय है समाज के मन को सदाचारी बनाने के लिए धर्माचार्यों से अपील या प्रार्थना करने की आवश्यकता है कि वे धन कमा कमाकर बड़े बड़े आश्रम बनाने के बजाए प्रयत्नशील होकर समाज का हित साधन करें !उनके माया मोह छोड़ने के उपदेश आखिर क्यों मायामोह पकड़ने में तब्दील होते जा रहे हैं आश्रम एवं निरोग या योग पीठें बनाने के लालची लोगों के अलावा आज भी श्रद्धेय विरक्त संत इस तरह की आपराधिक सोच पर नियंत्रण कर सकते हैं।जो व्यापारी लोग अपना व्यापार चमकाने के लिए अपने को रंग पोत कर सधुअई के धंधे में सम्मिलित हो गए हैं ऐसे लोग समाज को भ्रष्टाचार के विरुद्ध माया मोह से दूर रहकर अपराध मुक्त आचरण किस मुख से सिखा सकेंगे?इसलिए मैं केवल साधु वेष में शरीर लिपेटने वालों की बात नहीं करता हूँ अपितु समाज सुधारने के लिए विरक्त एवं चरित्रवान संतों से समाज सुधार की प्रार्थना करना चाहता हूँ।इससे इस तरह के अपराधों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
इसी प्रकार सदाचारी शिक्षकों से भी ऐसा ही विनम्र निवेदन किया जाना चाहिए समाज सुधारने में चरित्रवान शिक्षक भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
फ़िल्म निर्माताओं से भी ऐसी ही प्रार्थना की जानी चाहिए सेंसर बोर्ड के नियम शक्त होने चाहिए। कला के नाम पर कपड़े उतार कर फेंक देने वाले अभिनेता लड़के लड़कियों को समाज हित में अपने परिश्रमपूर्वक कमाकर खाने के लिए प्रेरित किया जाए!
मीडिया के महापुरुषों से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि किसी मुद्दे को उठाने से पूर्व समाज के हित का ध्यान जरूर रखा जाए।
आज सरकार आपसी सहमति से होने वाले सेक्स की उम्र सीमा घटाने पर विचार कर रही है। साथ ही यह भी सुना है कि सरकार सेक्स एजुकेशन की व्यवस्था भी कर रही है।आखिर क्या जरूरत है सेक्स सुविधाएँ देने की?क्या ऐसी व्यवस्थाएँ करने से फिर नहीं घटेंगी ऐसी घनघोर घटनाएँ !निजी तौर पर मेरा अपना मानना है कि प्रज्ज्वलित आग की लव को जैसे तेल डाल कर नहीं बुझाया जा सकता है उसी प्रकार सरकार द्वारा किए जा रहे इन सारे उपायों का प्रभावी असर होते कम से कम हमें तो नहीं ही दिखता है।बाकी सरकार जाने !इतना ज़रूर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार के इन तथाकथित प्रेम के पाखंडों पर यदि सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जाए तो संभव है कि ऐसे घोर घृणित अपराधों में लगाम लगाई जा सके,किन्तु अपने अपने मोर्चे पर फेल लोगों ने बलात्कार पीड़िता के कल्पित नाम का पूजन भजन करके उसे देवी देवताओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है !
इससे जिम्मेदार लोगों को मुख्य विषयों से समाज का ध्यान भटकाने में सफलता मिली और धूपबत्ती मोमबत्तियों श्रृद्धांजलियों पुरुस्कारों में समेट दिया गया सारा जनजागरण! देश का हर छोटा बड़ा नेता अफसर आम आदमी समाज सुधारक आदि इस प्रकरण से चिंतित दिखा, प्रधान मंत्री जी दलबल के साथ एयरपोर्ट पहुँचे, देश की सबसे अधिक शक्तिशाली महिला पीड़ित परिवार से जाकर मिलीं।इसप्रकार जिस मुद्दे पर सारा देश उबल पड़ा हो आखिर इन सबका फल क्या हुआ रुपया,पैसा,पुरुस्कार आदि? क्या इसीलिए ये सबकुछ हुआ था?
बलात्कारों और अपराधों की संख्या उसके बाद कई गुना अधिक बढ़ी है।इसका कारण ढूँढे जाने की शक्त आवश्यकता है।आखिर क्या कारण है कि अपराधियों को नेताओं पर विश्वास एवं कानून का भय नहीं रहा है?
बलात्कारों की लंबी श्रृंखला में केवल एक यही बलात्कार है जो न केवल
मीडिया से लेकर सभी पार्टी के नेताओं अपितु विश्व के कई देशों में अभी तक
चर्चित है कुछ देश तो उसे मरणोपरांत सम्मान भी दे रहे हैं ऐसा ही स्वदेश
में भी बहुत कुछ हो रहा है खैर होना भी चाहिए। इसमें किसी को भला क्या
आपत्ति हो सकती है?
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