शोभन सरकार निःसंदेह अवतारी सिद्ध पुरुष हैं
मेरी
जन्मभूमि चूँकि शोभन आश्रम के पास ही इन्दलपुर नामक गाँव में है इसलिए
बचपन से ही शोभन सरकार के बारे में बहुत कुछ सुनते आया हूँ कई बार उनके
दर्शन का सौभाग्य भी मिला है कई बार तो जीवन से जुड़ी जो बातें हुईं या यूँ
कह लें कि शोभन सरकार ने जो उपदेश किया उसने हमारे जीवन को बहुत प्रभावित
किया है।
शोभन सरकार निःसंदेह अवतारी सिद्ध पुरुष हैं उनके किए हुए चमत्कार
असंख्य हैं ऐसे ऐसे असंभव कार्यों को उन्होंने किया है जिन्हें एकबार में
बताया भी नहीं जा सकता है और जिसने देखा नहीं है वो तो उन बातों पर बिलकुल
ही भरोसा नहीं करेगा!वो भी ऐसे समय जब एक भोग गुरु कामदेव,एक तमाशा राम
जैसे अधर्म गुरुओं में या ऐसे ही और बहुत सारे बहुरुपिया आडम्बरी बाबा
बबाइनों ने नाचने गाने मुख मटकाने कमर हिलाने या पेट हिलाकर धन जुटाने वाला
संन्यास ले रखा हो!इन बावली बाबाओं ने इतनी फिसलन पैदा कर दी है कि चरित्र
वां संतों पर अंगुलियाँ उठने लगी हैं!
अपने को संन्यासी बताने वाले कुछ तो ऐसे बन्दर हैं जो काला पीला धन
ढूँढ़ते फिर रहे हैं किन्तु अपनी अधर्म की कमाई को सुरक्षित रखने के लिए
राजनैतिक जगत में घुसपैठ करने पर अमादा हैं अपने पाप की पोल खुलने से बचाने
के लिए राजनैतिक पार्टी प्रधानों के गुण गाते घूम रहे हैं ऐसे बाबाओं से
पूछा जा सकता है कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!
बंधुओं,बाबाओं का काम होता है अपने सदच्र्नो से समाज को बदलना और जब
समाज बदलेगा तो सत्ता और शासन दोनों बदल जाएँगे किन्तु जब समाज की मानसिकता
ही नहीं बदलेगी तो कोई कितना भी इमानदार व्यक्ति प्रधान मंत्री बन जाए
क्या कर लेगा कितने अपराधियों को जेल में डाला जाएगा कितनों को फाँसी की
सजा दी जाएगी !इसलिए समाज में संस्कार भरने की आवश्यकता है जिसमे पाखंडी
बाबा लोग असफल रहे हैं जो योग के नाम पर भोग पीठें बनाते घूम रहे हैं
संन्यासी अर्थात सब कुछ छोड़ देने वाला सारे माया मोह से दूर रहने की सौगंध
लेने वाले लोग अरबों की संपत्ति जोड़ने में लगे हुए हैं संन्यास धर्म की
परिभाषा के अनुशार तो ऐसे बाबाओं का सारा धन ही काल धन है वो किसी और का
काला धन किस मुख से खोजते घूम रहे हैं उन्हें इसका अधिकार ही कहाँ है?
राजनीति में भी बलि प्रथा का महत्त्व है जब किसी राजनैतिक दल को अपने पाप
कर्म छिपाने की गुंजाइस नहीं दिखती है वो जनता के क्रोध को झेल नहीं पाते
हैं तो भगवान् से मनाने लगते हैं अपने किसी बड़े नेता की या उसके व्यक्तित्व की बलि इसीलिए उन नेता या नेता पुत्रों को देवी देवताओं की तरह बहुत पूजते हैं और छोटे बड़े की आन बान मर्यादा भूल कर बस केवल पूजते हैं।ये राजनीति है जो न करावे सो थोड़ा!चुनावी महोत्सव की वैतरणी उसी सिम्पैथी के आधार पर तर जाया
करते हैं।इसीप्रकार कुछ राजनैतिक दल अपनी चुनावी बकरीद में देते हैं कुछ
बकड़ा बाबाओं की सामाजिक बलि और जीत लेते हैं चुनाव! ये बकड़े चुनाव के पहले
बहुत मिमियाते फिरते हैं किन्तु चुनाव बीतते ही शांत हो जाते हैं
बेचारे!इनके हाथ कुछ नहीं लगता है ।
इसी प्रकार चुनाव आने से
पूर्व साधुओं सा स्वरूप धारण करने वाले कुछ बाबा बबाइनें अपना माथा लीप
पोतकर निकलते हैं मीडिया या टी.वी.चैनलों की तलाश में।ऐसे भोजन और भोगों
के लोभी बाबा बबाइनों को टी.वी.चैनलों से प्यार सा हो जाता है वो धार्मिक
टाइप के लोग मीडिया में छाने के लिए या टी.वी.चैनलों पर बैठकर चरित्रवान
साधू संतों,शास्त्रों की छीछा लेदर करने के लिए मीडिया की बिना शिर पैर
की बातों के समर्थन में हाँ में हाँ मिलाया करते हैं और बड़ी बेशर्मी की
हँसी हँसते हुए धर्म एवं धार्मिकों की बेइज्जती कराया करते हैं।उनकी
टी.वी.चैनलों पर बैठने की भूख शांत करने के लिए शहीद हो रहा होता है
धर्म!इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मीडिया से जुड़े लोग उन्हीं बहुरूपियों
की तरह का दुर्व्यवहार ही चरित्रवान संतों एवं धार्मिक लोगों के साथ भी करने लगते हैं जो घातक होता है। मीडिया की इसी प्रवृत्ति के शिकार हो रहे हैं पूज्य शोभन स्वामी जी भी !
शोभन स्वामी जी को या तो क्षेत्र वासी लोग जानते हैं या जिनका वहाँ आना जाना किसी न किसी रूप में रहा हो वे
जानते हैं!कुल मिलाकर उनकी तपस्या से प्रभावित होकर ही लोग उन्हें
श्रृद्धा पूर्वक सरकार कहने लगे उनकी बड़ी से बड़ी बीमारियों, मनोरोगों,
आर्थिक आदि परिस्थिति यों से उत्पन्न दुःख तकलीफों को दूर करने में महराज
जी की बहुत बड़ी कृपा रही है उस क्षेत्र का विकास करने में उनका अद्भुत
योगदान रहा है साधनापथ में उनकी गंभीर गति है वो जन्मजात सिद्ध हैं उन्हें
महात्मा साधू संत आदि कहते समय सतयुगी सिद्ध संतों की छवि मन में रख कर ही
सोचना चाहिए वास्तव में वो तपोमूर्ति हैं न केवल इतना अपितु इस युग में
उनके जैसे सिद्ध महापुरुष दुर्लभ ही नहीं अलभ्य भी हैं।वो इस युग में
अतुलनीय एवं अनुपमेय भी हैं।
कानपुर के मैथा ब्लॉक के
शुकुलनपुरवा के एक परिवार में शोभन सरकार का जन्म हुआ था।मेरी जानकारी के
अनुशार वह मंधना के बीपीएमजी इंटर कालेज में पढ़ते थे।शोभन सरकार का बचपन
से ही अध्यात्म की ओर विशेष झुकाव था बाद में सरकार ने घर छोड़ दिया।
किशोरावस्था (15 वर्ष) में गुरु स्वामी सत्संगानंद जी की शरण में आ गए
आश्रम से जुड़े लोग बताते हैं कि स्वामी सत्संगानंद जी बड़े स्वामी के नाम
से भी जाने जाते थे शोभन सरकार ने 8 वर्ष लगातार उनके सानिध्य में तप किया।
गुरु जी बड़े स्वामी के आदेश पर ही शोभन सरकार ने पहले बागपुर (कानपुर
देहात) फिर कानपुर के शिवली स्थित शोभन में जाकर आश्रम का निर्माण
कराया।जहाँ स्वामी रघुनन्दन दास जी महाराज की अभी भी समाधी बनी हुई है।
शोभन मंदिर के आसपास के गांवों को जोड़ने के लिए स्वामी जी ने सड़कें
बनवाईं।पांडुनगर पर निगोहा, बागपुर, सिंहपुर और प्रतापपुर आदि में पुल बनाकर शोभन से कई
गांवों को जोड़ा। मंदिर के चारों ओर तालाब का निर्माण कराया। इसमें पांडु
नदी से आई धारा भी मिलती है।
तालाब में पानी भरने के कई सबमर्सिबल लगे हैं। तालाब ओवर फ्लो होने पर खेतों तक पानी जाता है।
पौराणिक मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति और एक हाल था।अब यह मंदिर विशालकाय
रूप ले चुका है। यहां प्रसाद या पैसा नहीं चढ़ता है। मंदिर में रोज हजारों
लोगों का भोजन बनता है।
इसलिए शोभन सरकार की सच्चाई पर
संदेह किया ही नहीं जा सकता वो इस तरह की असंख्य परीक्षाएँ दे चुके हैं
जिनका साक्ष्य स्थानीय समाज है किन्तु इस प्रकरण में वो स्वयं सामने नहीं
आए हैं क्या वो कह रहे हैं क्या बीच वाले लोग या समाज कह रहा है वो स्पष्ट
नहीं है चूंकि भारत की प्राचीन परम्परा में इस तरह असंख्य उदाहरण मिलते हैं
वो लोग इन बातों पर भरोसा भी करते थे तब आधुनिकता का अंधापन कम था जब से
इस प्रकार के अंधों की संख्या बढी वे इसे अंध विश्वास कहने लगे तो कहें
समझने वाले को समझदारी से काम लेना चाहिए अर्थात वे स्वयम् समझनें में
सक्षम हैं और अंधों की आशंका पर भरोसा ही नहीं करना चाहिए !
शोभन सरकार निःसंदेह अवतारी सिद्ध पुरुष हैं
मेरी
जन्मभूमि चूँकि शोभन आश्रम के पास ही इन्दलपुर नामक गाँव में है इसलिए
बचपन से ही शोभन सरकार के बारे में बहुत कुछ सुनते आया हूँ कई बार उनके
दर्शन का सौभाग्य भी मिला है कई बार तो जीवन से जुड़ी जो बातें हुईं या यूँ
कह लें कि शोभन सरकार ने जो उपदेश किया उसने हमारे जीवन को बहुत प्रभावित
किया है।
शोभन सरकार निःसंदेह अवतारी सिद्ध पुरुष हैं उनके किए हुए चमत्कार
असंख्य हैं ऐसे ऐसे असंभव कार्यों को उन्होंने किया है जिन्हें एकबार में
बताया भी नहीं जा सकता है और जिसने देखा नहीं है वो तो उन बातों पर बिलकुल
ही भरोसा नहीं करेगा!वो भी ऐसे समय जब एक भोग गुरु कामदेव,एक तमाशा राम
जैसे अधर्म गुरुओं में या ऐसे ही और बहुत सारे बहुरुपिया आडम्बरी बाबा
बबाइनों ने नाचने गाने मुख मटकाने कमर हिलाने या पेट हिलाकर धन जुटाने वाला
संन्यास ले रखा हो!इन बावली बाबाओं ने इतनी फिसलन पैदा कर दी है कि चरित्र
वां संतों पर अंगुलियाँ उठने लगी हैं!
अपने को संन्यासी बताने वाले कुछ तो ऐसे बन्दर हैं जो काला पीला धन
ढूँढ़ते फिर रहे हैं किन्तु अपनी अधर्म की कमाई को सुरक्षित रखने के लिए
राजनैतिक जगत में घुसपैठ करने पर अमादा हैं अपने पाप की पोल खुलने से बचाने
के लिए राजनैतिक पार्टी प्रधानों के गुण गाते घूम रहे हैं ऐसे बाबाओं से
पूछा जा सकता है कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!
बंधुओं,बाबाओं का काम होता है अपने सदच्र्नो से समाज को बदलना और जब
समाज बदलेगा तो सत्ता और शासन दोनों बदल जाएँगे किन्तु जब समाज की मानसिकता
ही नहीं बदलेगी तो कोई कितना भी इमानदार व्यक्ति प्रधान मंत्री बन जाए
क्या कर लेगा कितने अपराधियों को जेल में डाला जाएगा कितनों को फाँसी की
सजा दी जाएगी !इसलिए समाज में संस्कार भरने की आवश्यकता है जिसमे पाखंडी
बाबा लोग असफल रहे हैं जो योग के नाम पर भोग पीठें बनाते घूम रहे हैं
संन्यासी अर्थात सब कुछ छोड़ देने वाला सारे माया मोह से दूर रहने की सौगंध
लेने वाले लोग अरबों की संपत्ति जोड़ने में लगे हुए हैं संन्यास धर्म की
परिभाषा के अनुशार तो ऐसे बाबाओं का सारा धन ही काल धन है वो किसी और का
काला धन किस मुख से खोजते घूम रहे हैं उन्हें इसका अधिकार ही कहाँ है?
राजनीति में भी बलि प्रथा का महत्त्व है जब किसी राजनैतिक दल को अपने पाप
कर्म छिपाने की गुंजाइस नहीं दिखती है वो जनता के क्रोध को झेल नहीं पाते
हैं तो भगवान् से मनाने लगते हैं अपने किसी बड़े नेता की या उसके व्यक्तित्व की बलि इसीलिए उन नेता या नेता पुत्रों को देवी देवताओं की तरह बहुत पूजते हैं और छोटे बड़े की आन बान मर्यादा भूल कर बस केवल पूजते हैं।ये राजनीति है जो न करावे सो थोड़ा!चुनावी महोत्सव की वैतरणी उसी सिम्पैथी के आधार पर तर जाया
करते हैं।इसीप्रकार कुछ राजनैतिक दल अपनी चुनावी बकरीद में देते हैं कुछ
बकड़ा बाबाओं की सामाजिक बलि और जीत लेते हैं चुनाव! ये बकड़े चुनाव के पहले
बहुत मिमियाते फिरते हैं किन्तु चुनाव बीतते ही शांत हो जाते हैं
बेचारे!इनके हाथ कुछ नहीं लगता है ।
इसी प्रकार चुनाव आने से
पूर्व साधुओं सा स्वरूप धारण करने वाले कुछ बाबा बबाइनें अपना माथा लीप
पोतकर निकलते हैं मीडिया या टी.वी.चैनलों की तलाश में।ऐसे भोजन और भोगों
के लोभी बाबा बबाइनों को टी.वी.चैनलों से प्यार सा हो जाता है वो धार्मिक
टाइप के लोग मीडिया में छाने के लिए या टी.वी.चैनलों पर बैठकर चरित्रवान
साधू संतों,शास्त्रों की छीछा लेदर करने के लिए मीडिया की बिना शिर पैर
की बातों के समर्थन में हाँ में हाँ मिलाया करते हैं और बड़ी बेशर्मी की
हँसी हँसते हुए धर्म एवं धार्मिकों की बेइज्जती कराया करते हैं।उनकी
टी.वी.चैनलों पर बैठने की भूख शांत करने के लिए शहीद हो रहा होता है
धर्म!इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मीडिया से जुड़े लोग उन्हीं बहुरूपियों
की तरह का दुर्व्यवहार ही चरित्रवान संतों एवं धार्मिक लोगों के साथ भी करने लगते हैं जो घातक होता है। मीडिया की इसी प्रवृत्ति के शिकार हो रहे हैं पूज्य शोभन स्वामी जी भी !
शोभन स्वामी जी को या तो क्षेत्र वासी लोग जानते हैं या जिनका वहाँ आना जाना किसी न किसी रूप में रहा हो वे
जानते हैं!कुल मिलाकर उनकी तपस्या से प्रभावित होकर ही लोग उन्हें
श्रृद्धा पूर्वक सरकार कहने लगे उनकी बड़ी से बड़ी बीमारियों, मनोरोगों,
आर्थिक आदि परिस्थिति यों से उत्पन्न दुःख तकलीफों को दूर करने में महराज
जी की बहुत बड़ी कृपा रही है उस क्षेत्र का विकास करने में उनका अद्भुत
योगदान रहा है साधनापथ में उनकी गंभीर गति है वो जन्मजात सिद्ध हैं उन्हें
महात्मा साधू संत आदि कहते समय सतयुगी सिद्ध संतों की छवि मन में रख कर ही
सोचना चाहिए वास्तव में वो तपोमूर्ति हैं न केवल इतना अपितु इस युग में
उनके जैसे सिद्ध महापुरुष दुर्लभ ही नहीं अलभ्य भी हैं।वो इस युग में
अतुलनीय एवं अनुपमेय भी हैं।
कानपुर के मैथा ब्लॉक के
शुकुलनपुरवा के एक परिवार में शोभन सरकार का जन्म हुआ था।मेरी जानकारी के
अनुशार वह मंधना के बीपीएमजी इंटर कालेज में पढ़ते थे।शोभन सरकार का बचपन
से ही अध्यात्म की ओर विशेष झुकाव था बाद में सरकार ने घर छोड़ दिया।
किशोरावस्था (15 वर्ष) में गुरु स्वामी सत्संगानंद जी की शरण में आ गए
आश्रम से जुड़े लोग बताते हैं कि स्वामी सत्संगानंद जी बड़े स्वामी के नाम
से भी जाने जाते थे शोभन सरकार ने 8 वर्ष लगातार उनके सानिध्य में तप किया।
गुरु जी बड़े स्वामी के आदेश पर ही शोभन सरकार ने पहले बागपुर (कानपुर
देहात) फिर कानपुर के शिवली स्थित शोभन में जाकर आश्रम का निर्माण
कराया।जहाँ स्वामी रघुनन्दन दास जी महाराज की अभी भी समाधी बनी हुई है।
शोभन मंदिर के आसपास के गांवों को जोड़ने के लिए स्वामी जी ने सड़कें
बनवाईं।पांडुनगर पर निगोहा, बागपुर, सिंहपुर और प्रतापपुर आदि में पुल बनाकर शोभन से कई
गांवों को जोड़ा। मंदिर के चारों ओर तालाब का निर्माण कराया। इसमें पांडु
नदी से आई धारा भी मिलती है।
तालाब में पानी भरने के कई सबमर्सिबल लगे हैं। तालाब ओवर फ्लो होने पर खेतों तक पानी जाता है।
पौराणिक मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति और एक हाल था।अब यह मंदिर विशालकाय
रूप ले चुका है। यहां प्रसाद या पैसा नहीं चढ़ता है। मंदिर में रोज हजारों
लोगों का भोजन बनता है।
इसलिए शोभन सरकार की सच्चाई पर
संदेह किया ही नहीं जा सकता वो इस तरह की असंख्य परीक्षाएँ दे चुके हैं
जिनका साक्ष्य स्थानीय समाज है किन्तु इस प्रकरण में वो स्वयं सामने नहीं
आए हैं क्या वो कह रहे हैं क्या बीच वाले लोग या समाज कह रहा है वो स्पष्ट
नहीं है चूंकि भारत की प्राचीन परम्परा में इस तरह असंख्य उदाहरण मिलते हैं
वो लोग इन बातों पर भरोसा भी करते थे तब आधुनिकता का अंधापन कम था जब से
इस प्रकार के अंधों की संख्या बढी वे इसे अंध विश्वास कहने लगे तो कहें
समझने वाले को समझदारी से काम लेना चाहिए अर्थात वे स्वयम् समझनें में
सक्षम हैं और अंधों की आशंका पर भरोसा ही नहीं करना चाहिए !
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