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Sunday, May 25, 2014

नरेंद्र मोदी जी की 'न' अक्षर वाले नितीश से पटरी नहीं खाई तो नवाज से कैसे खाएगी ?

   रेंद्र मोदी जी और वाजशरीफ के बीच सकारात्मक परिणाम निकलने की सम्भावनाएँ बहुत कम हैं यदि प्रारम्भ में कुछ बातचीत बनते भी दिखाई दे तो भी प्रक्रिया पर बहुत अधिक भरोसा नहीं किया जाना चाहिए !

राजग टूटने का कारण-

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-रेंद्रमोदी 

   इन तीनों में किसी एक की प्रमुखता दूसरे को बर्दाश्त नहीं हो पाती इसलिए राजग टूटना ही था ! 

  एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी ही रहती है, अर्थात जिस पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि आदि को इनमें से कोई एक प्राप्त करना चाहेगा उसी को पाने की ईच्छा दूसरा भी रखता है,उसी तरह की भी नहीं बल्कि वही चीज चाहिए होती है ऐसे लोगों को जो किसी दूसरे के पास होती है।चूँकि एक ही चीज एक समय पर किन्हीं दो या दो से अधिक के पास कैसे  रह सकती है! यही कारण है कि उसे पाने के लिए उस तरह के लोग एक दूसरे का नुकसान किसी भी स्तर तक गिरकर कर सकते हैं और उस पद-प्रतिष्ठा-और प्रसिद्धि को भी नष्ट कर देते हैं, अर्थात जो मुझे नहीं मिली वो किसी और को नहीं मिलने देंगे।

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंआदि इसीप्रकार 

अब राजनाथ सिंह जी को ही लें -        'रा'

राजनाथ सिंह जी -रामदेव

राजनाथ सिंह जी-रामविलासपासवान

राजनाथ सिंह जी-  रामकृपाल यादव

राजनाथ सिंह जी-  राज ठाकरे

 इसीप्रकार से -

राम देव का अपना आन्दोलन बिगड़ने का कारण भी यही  'रा' अक्षर ही था

  रामदेव के साथ हवाई अड्डे पर पहले तो मंत्रियों का ब्यवहार ठीक था किन्तु रामलीला मैदान पहुँचकर बात बिगड़ी ऊपर से राहुल गाँधी का हस्त क्षेप !

      रामदेव -रामलीला मैदान -राहुल गाँधी 

     होने के कारण पिटना पड़ा दूसरी बार काफिला लेकर ये राजीव गाँधी स्टेडियम कि ओर जा रहे थे वहाँ भी यही हो सकता था किन्तु सौभाग्य से म्बेडकर स्टेडियम बीच में पड़  गया 'अ'अक्षर बीच में आ जाने से बचाव हो गया!

       रामदेव -राजीव गाँधी स्टेडियम-राहुल गाँधी

       रामदेव -म्बेडकर स्टेडियम -राहुल गाँधी 

     जहाँ तक भाजपा के रामदेव जी के सम्बन्धों की बात है सब कुछ सामान्य नहीं कहा जा सकता है -              इस लिंक को जरूर  देखें -"रविवार, 5 जनवरी 2014 बाबा के बहाव में बहते बहते बच गई भाजपा !एजेंडे के खींच तान में उलझा भाजपा हाईकमान !http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_5.html"
     इसलिए भाजपा को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि जिन दो लोगों के  नाम का पहला अक्षर एक ही है इनसे न तो भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह जी को यश मिलना है और न ही सम्मान !और कब कितना बड़ा आरोप लगाकर छोड़ दें इनका साथ यह भी कह पाना बहुत कठिन होगा !राजनाथ सिंह जी से छूटेंगे ये सभी लोग अंतर तो बस इस बात में हो सकता है कि कौन कितना बड़ा दुःख देकर छूटेगा !

     कुल मिलाकर ऐसे गठबंधनों से केवल इतनी उम्मींद रखनी चाहिए कि जितना नुक्सान नहीं होगा उसी को फायदा गिना जाएगा !यदि इतना धैर्य हो तभी केवल नुक्सान पाने के लिए ऐसे गठबंधन बनाए और चलाए जा सकते हैं इससे न केवल दोनों पक्ष असंतुष्ट रहते हैं अपितु दोनों ही प्रभावित भी होते हैं दोनों को लगा करता है कि मैं ठगा गया हूँ !इसलिए फिरहाल  भाजपा को अब तो सतर्क रहना ही चाहिए !अन्यथा एक ज्योतिषी होने के नाते अभी ही हमें बहुत कुछ हासिल होते नहीं दिखता है !ज्योतिष  के इस दोष के कारण और भी कई सामाजिक एवं राजनैतिक बड़े संगठन,परिवारों के आपसी सम्बन्ध टूट गए हैं एवं व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ गए हैं!भाजपा का भी समय समय पर इस दोष ने बड़ा नुक्सान किया है कई बड़े बड़े प्रतिष्ठित राजनेताओं के व्यक्तित्व का बलिदान इसी कारण से ब्यर्थ चला गया है-

        जैसे  आखिर क्या कारण है कि अटल जी जैसे विराट व्यक्तित्व के रहते हुए भी भारतवर्ष  में भाजपा  अपने बल और अपने नाम पर भारत के सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुँच पाई इसीलिए उसे राजग का गठन करना पड़ा जबकि भाजपा से कम सदस्य संख्या वाले अन्यलोग  पहले भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं यही नहीं कई प्रान्तों में भाजपा की सरकारें सफलता पूर्वक चल रही हैं किंतु क्या कारण है कि केंद्र में ऐसा संयोग नहीं बन पाता है!

     दिल्ली प्रदेश के पिछले चुनावों में इसी दोष के कारण भाजपा हार गई अन्यथा काँग्रेस बहुत अच्छा काम नहीं  करती  रही है भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे महँगाई भी बढ़ती रही फिर भी लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता में काँग्रेस बनी रही अबकी बार भी दिल्ली में काँग्रेस यदि भाजपा के कारण हारी होती तो भाजपा को मिलती सत्ता अन्यथा जिसके कारण हारी उसे सत्ता सुख मिला वो भले कम दिनों का रहा हो !    

भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण

दिल्ली भाजपा  का    राजनैतिक भविष्य ? 

 दिल्ली में भाजपा के चार विजयों  का एक  समूह एवं  पाँचवाँ नाम विजय शर्मा जी का है- 

                                     विजय शर्मा जी 

                        विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी

 ये पाँच वि एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम नहीं कर सकते या एक साथ रह नहीं सकते!जब से ये एक साथ एक जगह भाजपा में एकत्रित हुए तब से भाजपा का विकास रुक गया!

इसी प्रकार -

उत्तर प्रदेश में भाजपा

लराजमिश्र-कल्याण सिंह 

इसी प्रकार अबकी बार के चुनावों में त्तर प्रदेश से 

उमाभारती  को खाली हाथ लौटना पड़ा-

माभारती -   त्तर प्रदेश

     जिन प्रदेशों में ऐसा नहीं है वहाँ भाजपा का जनता में  ठीक ठीक विश्वास जमा हुआ है !

      राजग टूटने का मुख्य कारण भी यही है जिसके लिए एक वर्ष पहले के इसी ब्लॉग पर प्रकाशित कई लेख हैं  ये लिंक जरूर पढ़ें -

Thursday, 18 October 2012  Delhi V.J.P. ke 4 Vijay ' V'http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/delhi-vjp-ke-4-vijay.html

 Monday, 22 October 2012भारतवर्ष में भाजपा के भविष्य पर ज्योतिषीय शंका ?http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/bhajapa-bharat.html

Monday, 22 October 2012   राजग कब तक? नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी की निभी तब तक http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/rajag-kab-tak.html

-अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण भी यही है ?ये लिंक अवश्य पढ़ें -

Thursday, 18 October 2012 अन्ना और अरविन्द में आपसी दूरी क्यों ?क्यों बिगड़े अन्ना और अरविन्द के आपसी सम्बन्ध ?http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/anna-arvind-ki-aapasi-duri-kyon.html

  अमर सिंह और मुलायम सिंह में क्यों हुआ मतभेद ?  आदि आदि !पढ़ें ध्यान से -

   ज्योतिष के अनुशार एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों का एक साथ काम कर पाना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है उसी का दंड भोग रही है भाजपा और राजग!   

    यही वो मजबूत कारण है जिसका दंड दिल्ली भाजपा को सत्ता से दूर रह कर पिछले दसों वर्षों से झेलना पड़ रहा है।चूँकि साहब सिंह वर्मा जी के बाद दूसरा  जनाधार वाला जो भी नेता दिल्ली भाजपा के शीर्ष पदों पर आया उसका नाम वि से प्रारंभ हुआ जो आपसी खींच तान में उलझ कर रह गया!इस अक्षर के अलावा आने वाला कोई और नाम यदि आया तो आम जनता में उसकी वैसी पकड़ नहीं बन सकी जैसी  राजनैतिक सफलता के लिए आवश्यक होती है,इस लिए उसे वैसी सफलता भी नहीं मिल सकी जैसी उसके लिए जरूरी थी।परिणाम स्वरूप दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काँग्रेस  के सदस्य के रूप में शीला दीक्षित जी ही  सुशोभित होती  रहीं! बात और है कि काँग्रेस इसे अपनी उत्तम प्राशासनिक क्षमता का परिणाम मानती हो किंतु ज्योतिषी सच्चाई यही है कि विपक्षी पार्टी भाजपा जनाधार संपन्न, लोकप्रिय, एवं स्वदल में अधिकाधिक स्वीकार्य नेता  दिल्ली  की  जनता के सामने उपस्थित कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो सकी है ।पहले वाले दिल्ली के चुनावों में पराजित हो चुकी भाजपा अभी भी उसी काम चलातू तैयारी के सहारे ही आगे बढ़ रही है!जो दिल्ली भाजपा के आगामी चुनावी  भविष्य के लिए चिंताप्रद है,साथ ही उसका यह तर्क कि इतने दिन तक लगातार काँग्रेस दिल्ली की सत्ता में रहने के कारण अलोकप्रिय हो चुकी है इसलिए जनता अबकी बार भाजपा को मौका देगी ही !मेरा विनम्र निवेदन है कि भाजपा के इस दावे या सोच में कोई दम नहीं है।इसलिए भाजपा को दिल्ली की चुनावी विजय के लिए चाहिए कि इन पाँचों विजयों की कार्य कुशलताओं का अन्य दूसरी तीसरी जगहों पर उपयोग करना चाहिए किन्तु दिल्ली के चुनावी मैदान में कोई एक विजय या किसी और नाम वाले व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए !अन्यथा आने वाले चुनावों में शीला दीक्षित जी की संभावित विजय को रोका नहीं जा सकेगा क्योंकि -

       अरविन्द केजरीवाल का म आदमी पार्टी

 में कोई भविष्य नहीं है जब से यह पार्टी बनी है तब सेरविन्द जी की लोकप्रियता घटी ही है बढ़ी तो है ही नहीं !म आदमी पार्टीवातावरण बिगड़ता ही जा रहा है।स्थिति कुछ दिनों में और साफ हो जाएगी। इसी नाम समस्या के कुछ और ज्वलंत उदाहरण हैं-

         अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण 

  न्नाहजारे-रविंदकेजरीवाल-सीमत्रिवेदी-   अग्निवेष- रूण जेटली - भिषेकमनुसिंघवी

                    सपा में फूट का कारण

  अमरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

      इसीप्रकार  और भी उदाहरण हैं ----

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद

रूण जेटली- भिषेकमनुसिंघवी 

  बामा-सामा 

  मायावती-मनुवाद

रसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी

 रवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

  नमोहन-मता-मायावती    

मरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन

 जैसे - अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे , अरविंदकेजरीवाल एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
    अन्नाहजारे की तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
       चूँकि अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। 

जैसेः- आजमखान अमिताभबच्चन  अनिलअंबानी  अभिषेक बच्चन आदि।

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