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Sunday, June 29, 2014

     यदि ऐसा मान लिया जाए कि किसी का बाप  किसी कारण से उसकी माँगें पूरी नहीं पा रहा हो और पड़ोसी उसकी माँगें पूरी करने लगे अर्थात जो मँगावे सो लाकर  देने लगे तो क्या अपने बाप को छोड़कर उस पड़ोसी को मान लिया जाना चाहिए अपना बाप ?

      यदि नहीं तो जोलोग कहते हैं कि किसी बुड्ढे को पूजने से उसकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं इसका मतलब क्या उसे भगवान बना लिया जाए !छिः ! हम इतने स्वार्थी हो गए ! हमें धिक्कार है !

       ऐसे तो कल पड़ोसी देश के लोग हमें कुछ लालच देकर हमें अपना लेंगें तो हम उनके प्रति समर्पित  हो जाएँगे ! आखिर कहाँ तक उचित है हमारा भिखारी बनकर जीना ? धिक्कार है हमें !भगवान हमें कुछ दे नहीं सके इसलिए भगवान बदल लिया !

          जब भगवान नहीं दे सके तो वो बुड्ढा क्या दे सकेगा बने रहो भ्रम देखो कब तक अपनों को छोड़कर पड़ोसियों को पूजोगे !

Monday, June 23, 2014

साईंबाबा को भगवान बताने वालों को शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !

   अब अयोध्या में श्री राम मंदिर बनने  की जगह साईं राम मंदिर बनेगा  क्या !      
    साईं के नाम पर केवल सनातन धर्म की ही छीछालेदर क्यों की जा रही है किसी मस्जिद में साईं की मूर्ति क्यों नहीं है किसी गुरुद्वारे में साईं की मूर्ति क्यों नहीं है किसी चर्च में साईं की मूर्ति क्यों नहीं है फिर साईं बाबा का  सभी धर्मों में सम्मान कैसे मान लिया जाए ! 
     दूसरी बात साईं बाबा के नाम के साथ साईं राम ही क्यों कहा जाता है साईं अल्ला या साईं ईसामसीह क्यों नहीं कहा जाता है !
     साईंआरती ही क्यों ? साईं नमाज या साईं मिसा(धर्म विशेेष की प्रार्थना)  आखिर क्यों नहीं ?
     साईं गायत्री ही क्यों साईं कुछ अन्य धर्मों का क्यों नहीं !
  (श्री राम चरित्र मानस की नक़ल करते हुए) साईं चरित्र  ही क्यों ? साईं कुरान, बाइबिल,गुरुग्रंथ साहब आदि क्यों नहीं ?
    साईं पादुका पूजन ही क्यों ? ये केवल सनातन धर्मियों की परंपरा में है ! 
     अधिकाँश साईं मंदिरों में ब्राह्मण पुजारी ही क्यों किसी अन्य धर्म का क्यों नहीं ?
        देवी जागरण की ही तरह साईं जागरण ही क्यों ? किसी अन्य धर्म का अनुगमन क्यों नहीं !
      सनातन धर्मियों की ही पूजा की नक़ल करते हुए प्रसाद या लड्डुओं का भोग आखिर क्यों किसी अन्य धर्म में भी ऐसा देखा गया है क्या ?
     इस प्रकार से सारी  सनातन धर्मियों की पूजा पद्धति की सारी नक़ल करके करते हुए भोले भाले सनातन धर्मियों को समझाया गया है कि साईं बाबा भी भगवान ही हैं उन्होंने वहाँ जाकर देखा तो अकल लगाकर सारी नक़ल अपने ही धर्म की गई थी इसलिए उन्हें संशय नहीं हो सका ये उनके साथ छल हुआ है इसीलिए सनातन धर्मियों का साईं बाबा की ओर ध्यान  डाइवर्ट  हो जाना स्वाभाविक था आज भी वो अपना सनातन धर्म का देवी देवता मानकर ही साईं बाबा पर आस्था रखते हैं न कि सर्व धर्म समभाव के कारण !साईं बाबा को भगवान मानने को लेकर जो हिन्दू भ्रमित किए गए हैं उन्हें आज भी सच्चाई से दूर रखा जा रहा है !ये अत्यंत चिंतनीय है !
      गंगा जमुनी तहजीव या हिन्दू मुश्लिम एकता के नाम पर केवल हिन्दी धर्म की ही छीछालेदर क्यों की जा रही है आखिर अन्य धर्म भी तो हैं थोड़ी बहुत जिम्मेदारी उनकी भी होगी !आखिर देश की एकता और अखंडता के नाम पर केवल सनातन धर्मी  ही क्यों अपने वेद पुराण एवं धर्मशास्त्रों के सिद्धांतों को छिन्न भिन्न हो जाने दें !
     सनातन धर्म न तो साईं बाबा को भगवान मानता है और न ही साईं बाबा की पूजा प्रक्रिया में सनातन शास्त्रों की पद्धति की नक़ल ही बर्दाश्त करेगा !
    वेद पुराण एवं धर्मशास्त्रों के सिद्धांतों को छोड़कर केवल साईंबाबा  के रूप में ही साईंबाबा की प्रतिष्ठा बनाई जाए तो उसमें हमें या किसी को कोई आपत्ति नहीं होनई चाहिए ! तभी स्पष्ट रूप से यह पता चल पाएगा कि साईंबाबा के अपने अनुयायिओं की वास्तविक संख्या उनके अपने बल पर कितनी है अभी तक की संख्या को उनके अनुयायिओं की वास्तविक संख्या इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि वो संख्या सनातन धर्मपर आस्थावान लोगों की है ।  
    

    जब हमारे सनातन धर्म के सर्व सम्मान्य प्रतिनिधि जगद्गुरु अपने रहन सहन त्याग तपस्या एवं सनातन धर्म एवं धर्म शास्त्रों के प्रति समर्पित होकर समय समय पर जनता को जागरूक और प्रभावित करते रहें तब तो संभव है कि इस तरह की धार्मिक स्मगलिंग रोकी जा सके अन्यथा ऐसे लोग अपनी धार्मिक शरारतों से बाज नहीं आएँगे !

    आज सारे देश में मानव मंदिर बनाए जा रहे हैं । मैं बात साईं बाबा जी के विषय में भी कह रहा हूँ आज उनकी आरतियों में पूजा में उनकी तुलना श्री राम और कृष्ण से की जाती है ये सब शास्त्रीय है क्या !हो सकता है कि साईं बाबा के नाम पर किया जा रहा भारी भरकम धन संग्रह एवं योजना बद्ध ढंग से धर्म स्थलों पर या मंदिर मंदिर में रखवाई जा रही मूर्तियाँ सनातन धर्म को पूरी तरह नष्ट करने की केवल साजिश ही न हों अपितु इसमें थोड़ी बहुत सच्चाई भी हो किन्तु इनके अनुयायियों के द्वारा उनके विषय में अपनाई जा रही गतिविधियाँ एवं फैलाई जा रही भ्रांतियाँ सच्चाई कम एवं सनातन धर्म को नष्ट करने की साजिश अधिक लगती हैं! क्योंकि इनका कोई प्रमाणित इतिहास नहीं मिलता है और इनके विषय में कोई प्रमाणित विचारधारा नहीं मिलती है इनके कार्य नहीं मिलते हैं इन्होंने धर्म के विषय में कुछ लिखा हो वो नहीं मिलता है इनका कोई संप्रदाय रहा हो वो नहीं मिलता है । वो बात और है कि सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों से एवं महापुरुषों के जीवन वृत्तों से पूजने पुजाने लायक आख्यानों की चोरी करके उनका एक पोथा साईं  बाबा के नाम से तैयार कर दिया गया और आगे भी जो जो कुछ धर्म के नाम पर अच्छा होता जाएगा वो सब साईं व्यापारी सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए साईं बाबा के चरित्रों में जोड़ते जाएँगे !जब झूठ ही लिखना है तो उसके विषय में प्रमाण क्या खोजना !इन्हीं साईं बाबा को श्री राम बताया जाएगा इन्हीं को श्री कृष्ण इन्हीं को शिव शंकर भी बता दिया जाएगा इन्हें ही रुक्मणी और श्री राधा जी का पति अर्थात श्री कृष्ण बताया जाएगा इन्हीं साईं बाबा के मुख में बाँसुरी लगाई जाएगी और इन्हीं की अँगुली पर गोबर्धन रखा जाएगा और इन्हीं को श्री सीता पति भी कहा जाएगा इन्हीं साईं बाबा से साईं पाखंडी धनुष तोड़वाएँगे और रावण मरवाएँगे!ये रखेंगे हिन्दुओं के ही पैरों पर पैर!यही लोग साईं बाबा  को ही पार्वती पति शिव शम्भो भी बताएँगे इन्हें ही कैलास पर बैठाया जाएगा और धन के बल पर इन्हीं के शिर से गंगा बहाई जाएँगी! यदि सनातन धर्मी सचेत नहीं हुए तो श्री राम नवमी, श्री कृष्ण जन्माष्टमी,शिवरात्रि और दशहरा दीपावली जैसे सारे प्रमुख त्योहारों को साईं लीलाओं से जोड़ा जाएगा और पीछे का सारा इतिहास पुराण वेदादिकों के ज्ञान की बातें धन के बल पर झूठी सिद्ध कर दी जाएँगी !इस प्रकार से जब वेदों पुराणों की बातें ही भ्रम सिद्ध कर दी जाएँगी और मंदिरों में केवल साईं बाबा पूजे जाएँगे इन्ही की पाँच आरतियाँ गाई जाएँगी इन्हीं पर चढ़ावा चढ़ेगा बाक़ी देवी देवता घमा रहे होंगे ! श्री सीता और श्री राधा जी की जगह भी  इन्हीं साईं को फिट करने की साजिश की जाएगी जैसे - जय श्री सीताराम की जगह जय श्री साईं राम  एवं जय श्री राधाकृष्ण की जगह  जय श्री साईंकृष्ण का प्रचार किया जाएगा यदि ध्यान से देखा जाए तो सनातन धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने की तैयारी है, पैसे के बल पर साईं को ही टेलिवीजनों पर दिखाया जाएगा यही अखवारों में लिखवाया  जाएगा ! 

   चूँकि मंदिरों में हिन्दुओं की आस्था बहुत अधिक होती है इसलिए साईं के अधिक से अधिक मंदिर बनवाए जाएँगे अन्यथा सनातन धर्म के प्राचीन मंदिरों में ही मूर्तियाँ रख दी जाएँगी !चूँकि ब्राह्मण पंडित पुजारियों की बातें समाज श्रद्धा पूर्वक मान लेता है इसलिए इनकी पूजा में भी ब्राह्मण पंडित पुजारी ही रख कर उनसे ही साईं चरित नाम का झूठ बोलवाया जाएगा ।

    कुल मिलाकर साईंबाबा नाम के आर्थिक आंदोलन को आगे बढ़ाने एवं सनातन शास्त्रों मर्यादाओं को ध्वस्त करने के लिए अभी तक जो गतिविधियाँ सामने आई हैं वे सनातन धर्मी समाज के लिए बहुत भयावह हैं इन पर यदि समय रहते लगाम न लगाई गई तो अयोध्या में श्री राम मंदिर न बनकर साईं राम मंदिर ही बन पाएगा !क्योंकि उसे भी ये लोग साईं राम की जन्म भूमि सिद्ध करने का प्रयास करेंगे !
       मंदिर तो केवल देवी देवताओं के ही बन सकते हैं वैसे भी मूर्तियाँ भी केवल देवताओं की ही पूजनीय हो सकती हैं क्योंकि मूर्ति में जब तक प्राण प्रतिष्ठा न की जाए तब तक वो पत्थर ही मानी जाती है और प्राण प्रतिष्ठा वेदमंत्रों के द्वारा की जाती है जिन देवी देवताओं के जो मन्त्र होते हैं उन्हीं से उनकी प्रतिष्ठा हो सकती है किन्तु जिसके मन्त्र ही नहीं होंगे उसकी  कैसे की जा सकती है ?मुख्य बात यह है कि जब वेद लिखे गए थे तब साईं बाबा नाम ही नहीं था तो उनके मन्त्र कैसे लिखे जा सकते थे और जब उनके मन्त्र ही नहीं हो सकते तो उनकी प्रतिष्ठा कैसे की जा सकती है !अर्थात की ही नहीं जा सकती है जिसके मन्त्र नहीं हैं उसकी प्रतिष्ठा कैसी ? यदि मान भी लिया जाए कि इस नाम से कोई संत पहले कभी हुए ही होंगें तो वो अपना बुत पूजन करने के लिए किसी को क्यों प्रेरित करेंगे!संत तो भगवान की पूजा करने वाले होते हैं न कि अपनी पूजा करवाने वाले ! इसलिए ऐसे संतों महापुरुषों की मूर्तियों को पूजने पुजाने  का औचित्य ही क्या है ?और इसे सनातन धर्म को नष्ट करने  की  साजिश क्यों न माना जाए ! इस पर जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी के वक्तव्य को श्रद्धा पूर्वक स्वीकारते हुए इसपर नियंत्रण यथा सम्भव किया ही जाना चाहिए यही उचित है। 

      जहाँ तक साईं बाबा को भगवान् कहने की बात है ये धर्म का विषय है इसे हमारे शास्त्रीय धर्माचार्यों पर छोड़ा जाना चाहिए न कि साईं षडयंत्र करने वालों पर ! भगवान् न तो कोई बन सकता है और न ही बनाया जा सकता है ये बनने बनाने का खेल ही नहीं है वह परं प्रभु तो ("चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्" "स्वे महीम्नि महीयते" आदि आदि )अपनी महिमा में महिमान्वित् एवं स्वयं सिद्ध स्वामी हैं उनकी तुलना किसी मनुष्य से करनी ही क्यों ?   

              भगवान कौन होता है ?         

      ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः ।

    ज्ञानवैराग्ययोश्चैव  षण्णां   भग   इतीरणा ॥

    समग्र ऐश्वर्य, शौर्य, यश, श्री, ज्ञान, और वैराग्य आदि । ये जिनमें एक साथ हों वो भगवान होता है यथा -
 1. समग्र ऐश्वर्य- शक्ति संपन्न ,योग्य ,समर्थ,धनाढ्य, स्वामी आदि अर्थ होते हैं। 

2.शौर्य-बहादुर, वीर, पराक्रमी आदि ।    

3.यश-प्रसिद्धि ,ख्याति,कीर्ति, विश्रुति आदि । 

4.श्री-असीम धन,समृद्धि,सौभाग्य ,गौरव ,महिमा ,प्रतिष्ठा ,सुंदरता श्रेष्ठता समझ अति मानवीय शक्ति सम्पन्नता आदि । 

5.ज्ञान-विद्या प्रवीणता ,समझ,परिचय,चेतना आदि। 

6.वैराग्य-सभी प्रकार के सांसारिक सुख की इच्छाओं का अभाव। 

      ये छहो  गुण एक साथ जिसमें होते हैं वो भगवान् होता है ! जो ईश्वर के बिना किसी और में सम्भव ही नहीं हैं फिर बात बात में जिस पर जिसकी आस्था श्रद्धा विश्वास हो जाए  वह उसका आस्था पुरुष हो सकता है किन्तु भगवान् नहीं !

     सभी सनातन धर्मावलम्बियों से प्रार्थना है कि अपने भगवान् और सभी देवी- देवताओं, वेदों ,शास्त्रों, पुराणों ,तथा समस्त पवित्र ग्रंथों ,तीर्थों, नदियों  ऋषियों ,विद्वानों ,वीरों समेत सभी सदाचारी स्त्री पुरुषों का गौरव घटने नहीं देना चाहिए क्योंकि इनका गौरव बचने से समाज और देश बच पाएगा अपने धार्मिक प्रतीकों ,शब्दों कथानकों का प्रयोग हर किसी को हर जगह प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । ऐसे तो कोई साईं भगवान हो जाएगा तो कोई क्रिकेट का भगवान् होगा तो कोई कुस्ती का तो कोई किसी और कला का भगवान हो जाएगा !आखिर हमारी आत्माओं, हृदयों, प्राणों को आनंदित कर देनेवाले ईश्वर की तुलना किसी मनुष्य से कैसे की जा सकती है ?ये गलत है भ्रम है आडम्बर है साजिश है इसे समय रहते ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए !संत रूप में सम्मान किसी का भी किया जा सकता है किन्तु भगवान हम उसी को मान सकते हैं जिनके विषय में वेदों पुराणों में वर्णन मिलता हो इसके अलावा सारी साजिश एवं षड्यंत्र है !

 

 इसी विषय में पढ़िए हमारे ये लेख भी -

       साईं बाबा के विषय में शंकाराचार्य जी के बयान का विरोध क्यों ?आखिर इस समस्या का स्थाई समाधान क्यों न निकाला जाए !
        धर्म के विषय में यदि कुछ लोग अपने शाही इमाम की बात को प्रमाण मानते हैं और कुछ लोग अपने  पोप की बात को प्रमाण मानते हैं तो हिन्दू अपने शंकाराचार्य की बात को प्रमाण न मानकर क्या साईं बाबा के चमचों को प्रमाण मान लें जिन्होंने  वेद पढ़े न पुराण और न ही धर्मशास्त्र !जिनका सब कुछ मन गढंत है ऐसे अँगूठाटेक धार्मिक लोग ही बचे हैं अब हमारे धर्म का निर्णय करने को क्या ?see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/saain.html

     साईंबाबा को भगवान ही क्यों मान लिया जाए अल्ला और ईसामसीह क्यों नहीं ?   साईंबाबा की मूर्तियों को केवल मंदिरों में ही क्यों रखा जाए !गुरूद्वारे गिरिजाघर और मस्जिदों में क्यों नहीं ?
     जब साईं बाबा के किसी आचार व्यवहार से ये सिद्ध ही नहीं होता है कि साईं बाबा सनातन धर्मी हिन्दू थे तो फिर केवल हिन्दुओं के मत्थे ही क्यों मढ़ा जा रहा है उन्हें ? अगर साईंबाबा see more.....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_24.html 

 


Sunday, June 22, 2014

...जब टॉपलेस हुईं बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियां...aaj tak


...जब टॉपलेस हुईं बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियां...aaj tak
ये टॉप की टॉप लेस .अभिनेत्रियों का ही तो कमाल है कि बलात्कार रोके नहीं रुक रहे हैं और जैसे ही रुकने लगतेहैं वैसे ही ये अभिनेत्रियां.फिर टॉप लेस हो जाती हैं लगता है कि बिना बलात्कारी खबरों के इनसे रहा ही नहीं जाता है !यही वो टॉप लेस हैं जिन्हें देखकर उत्तेजित हुए लड़के अपनी गली मोहल्ले की लड़कियों को टॉप लेस करने लगते हैं किन्तु उनके लिए तो फाँसी जैसा कठोर कानून बना है सो तो ठीक है किन्तु उन लड़कों की मानसिक मदद करने वाली इन टॉप लेस अभिनेत्रियों के लिए भी कोई कानून होना चाहिए या नहीं .या इनका सब कुछ चलेगा भले ही इनकी टॉप लेसनेस से बलात्कार कितने भी क्यों न बढ़ते जाएँ किन्तु टॉपलेस होने में ये अभिनेत्रियां  भारत का गौरव हमेंशा बढाती रहेंगी बल्कि महिलाओं के नाम पर इन्हें सुरक्षा भी चाहिए !

Saturday, June 21, 2014

कलराज मिश्र जी का अयोध्या दर्शन !

मैं अयोध्या सिर्फ राम के दर्शन करने आया हूं, कोई राजनीतिक अर्थ ना निकालें: कलराज मिश्र -ABP NEWS

       किन्तु ये क्या कह रहे हैं कलराज जी !आप सिर्फ दर्शन करने क्यों आए हैं !जब आपकी सरकार नहीं बनती है तब कहते हैं कि सरकार बनेगी तब मंदिर बनाएँगे और जब सरकार बन जाती है तो पूर्ण बहुमत मिलेगा तब मंदिर बनाएँगे और जब पूर्ण बहुमत मिल गया तब.… ! ये तो कभी नहीं कहा था कि तब केवल दर्शन करने जाएँगे ।

     आखिर अब आपकी क्या मजबूरी मानी जाए क्यों नहीं कर रहे हैं श्री राम मंदिर निर्माण की घोषणा !जिस पार्टी का आस्तित्व  ही श्री राम पर केंद्रित हो और जिसके लाखों लाख कार्यकर्ताओं ने श्री राम मंदिर निर्माण की कसमें खाई हैं जब उन्हें पूरा करने का समय आया और आप से पूछा जा रहा है कि आखिर कब बनेगा श्री राम मंदिर तो आपको इसमें राजनीति दिखाई पड़ती है !कलराज जी !आप मंदिर निर्माण की खुश खबरी लिए बिना सिर्फ दर्शन करने के लिए अयोध्या  गए ही क्यों? न जाते न प्रश्न उठता, जाओगे तो प्रश्न उठेगा जरूर ,जनता का काम है आपकी बातों को आपको याद दिलाना और राजनीति का काम है कहकर पलट जाना अब ये आपको देखना है कि आप अयोध्या भक्त बनकर गए थे या नेता !

पढ़ें हमारा यह लेख भी -

श्री राममंदिर के निर्माण के लिए ही भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला है इसलिए भाजपा शीघ्र ही तारीख की घोषणा करे -

    इसी ब्लॉग पर   Saturday, 24 August 2013 को प्रकाशित हमारी ज्योतिषीय भविष्यवाणी -(अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण का उपयुक्त समय और ज्योतिष -(19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर        (19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)हो सकता है अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण !!!)see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/08/blog-post_24.html
श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर  (19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)हो सकता है अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण !!! see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/05/19.html


Thursday, June 19, 2014

सरकार के मंत्री कैसे होने चाहिए बूढ़े या जवान ?

बूढ़े लोगों की उपेक्षा और जवान लोगों को मंत्रीपद दिए जाने का लाभ और हानियाँ !

     किसी भी सरकार के मंत्रियों में तीन गुण अवश्य देखे जाने चाहिए-1. अनुभव 2. सम्मान 3. संयम (चरित्र)

 बूढ़े लोगों को मंत्री बनाए जाने से इन तीनों गुणों का  स्वाभाविक लाभ होता है । 

    वहीँ दूसरी ओर  युवावस्था के मंत्रियों में अनुभव की कमी होती है और उन्हें मंत्री होने का सम्मान देना तो पड़ता है किन्तु ऐसे लोगों को सहज सम्मान नहीं मिलता है और रही बात चरित्र की तो युवा  अवस्था में गलतियाँ तो हो ही सकती  हैं ! इसीलिए जवानी प्रिय सरकारों का पाँच वर्षीय कार्यकाल तो सीखने सिखाने और आरोपों का सामना करने एवं सफाई देने में ही निकल जाता है !

     बूढ़े लोग यदि मंत्री बनाए जाएँ तो सरकारों को ऐसी समस्याओं का सामना ही नहीं करना पड़ता है वैसे भी मंत्रियों को तो विचार ही देने होते हैं कोई युद्ध तो लड़ना नहीं होता है जो उनमें जवानी की जरूरत हो !इसलिए बूढ़े मंत्रियों के होने से कई लाभ होते हैं -

1. अनुभवी होने के कारण वो समस्याओं का समाधान शीघ्र खोज लेते हैं ।       

2. बयोवृद्ध होने के कारण हर कोई उन्हें स्वाभाविक सम्मान देता ही है ।

3. बुढ़ापे के कारण लोग उनके चरित्र पर संदेह नहीं करते हैं क्योंकि उनका इन्द्रिय निग्रह स्वाभाविक रूप से होने लगता है !

    इसीलिए रामायण में भी कहा गया है कि - 

            "जाम्बवंत मंत्री अति बूढ़ा"

   इसीप्रकार से रावण का मंत्री माल्यवान उसका नाना होने के कारण बूढ़ा ही रहा होगा!

      श्री राम जी के मंत्री सुमंत जी भी बूढ़े थे लिखा गया है कि सुमन्त जी की आयु 9 हजार 9 सौ 99 वर्ष 11 महीने थी यथा -

सुमन्त जन्मपट्टे तस्यायुः संख्यां ददर्श सः |

जन्म कालात्सहस्राणि नव नव शतानि च||

 नव नवति वर्षाणि मासस्त्वैकादशैव हि||

     बूढ़े लोगों  को मंत्री बनाए जाने के पीछे एक और बड़ा कारण था कि वो लोग आयु एवं अनुभव वृद्ध होने के कारण अप्रिय लगने वाली भी हितकारी राय वो बड़ी ही निर्भीकता पूर्वक मंत्री मंडल में विचारार्थ रख  दिया करते थे जो न चाहते हुए भी सम्पूर्ण मंत्रिमंडल को सहनी एवं माननी पड़ती थी। 

     वैसे भी कहा गया है कि सत्ता के जिस शीर्ष नेतृत्व को उसके मंत्री लोग ही  भयभीत होकर या सशंकित रहकर या  चाटुकारिता पूर्वक अपनी सलाह देने लगें तो ऐसे अहंकारी राजा का पतन निश्चित होता है यथा -

   दो. सचिव वैद्य गुरु तीन जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।

        अर्थ धर्म  तन  तीन  कर  होहि   बेगिहीं  नास ॥

                                              -राम चरित मानस

    यह तब और अधिक चिंतनीय हो जाता है जब सत्ता के सर्वे सर्वा प्रमुख पुरुष को पता चल जाए कि हमारे मंत्री हमसे इतने अधिक भयभीत  रहने लगे हैं कि वो हमें खुश करने के लिए हमारे पैर छू रहे  हैं और ऐसी परिस्थिति में उन्हें पैर छूने से रोका  जाना चाहिए किन्तु लाख टके का सवाल यह है कि पैर छूने को भले ही रोक दिया जाए किन्तु वो डरते हैं इस बात  से इनकार कैसे किया जा सकता है और जिसके मंत्री ही अपने शीर्ष नेतृत्व से डरते हों ऐसी सत्ता सुयश  कैसे प्रदान कर सकती है !  

     किसी भी सरकार के बनने में जवान  लोग  जब मंत्री बनाए जाएँगे तो उन पर बलात्कार और मार पीट के आरोप तो लग ही सकते हैं गाली गलौच से लेकर  बलात्कार तक के आरोप भी तो लगभग  युवाओं पर ही लगाए  जाते हैं किन्तु इसकी सफाई कैसे दी जाए और यदि सफाई ही देनी पड़ी तो मंत्री पद का सम्मान कैसा और यदि सम्मान ही नहीं रहेगा तो जनता विश्वास कैसे करेगी जबकि जनता  का विश्वास सबसे अधिक जरूरी है ।

     बूढ़ों पर कोई बलात्कार का संदेह नहीं करेगा,उनका सभी लोग सम्मान करते हैं उनके पास सारे जीवन का अनुभव होता है वैसे भी  मंत्रियों को युद्ध तो लड़ना नहीं होता है उन्हें अपने विचार ही देने होते हैं और सारे जीवन के अनुभव से विचार तो बुढ़ापे में ही परिपक्व होते हैं इसलिए बूढ़े लोग किसी भी संगठन का मेरु दंड होते हैं क्योंकि उनमें इन्द्रिय निग्रह स्वाभाविक होता है इसलिए उन पर कोई बलात्कार का संदेह भी नहीं करेगा,और उनका सम्मान भी सभी लोग करते हैं ।   

  पढ़ें हमारा यह लेख भी -

पैर छूने से परहेज करने वाली सरकार को पसंद नहीं हैं चाटुकार !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_30.html

Saturday, June 14, 2014

दिल्ली की जनता से सच बोलना कब शुरू करेंगे अरविंद केजरीवाल ?

आम आदमी पार्टी अपने उसूलों से समझौता नहीं कर सकती: अरविंद केजरीवाल 

    अरविंद केजरीवाल जी !  दिल्ली के लोग आपके इसी जुमले से चोट खाए हुए हैं अब और अधिक अविश्वसनीय बातें मत बोलिए! आपको को सच्चा एवं ईमानदार समझकर ही आप पर भरोसा किया गया था किन्तु आपको दिल्ली की सत्ता पाकर भी संतोष नहीं हुआ आपके पास कुछ अच्छा करके  दिखाने का एक अवसर मिला था जिसे आपने छोड़ दिया ! दिल्ली वालों ने आप पर विश्वास किया उसे आपने तोड़ दिया!

      जैसे  पहले आप ने राजनीति में नहीं जाने को कहा था किन्तु आपने पार्टी बनाई फिर आपने कांग्रेस से समर्थन  न लेने को कहा फिर लिया आपने ,सी.एम.नहीं बनने को कहा फिर बने आप,दिल्ली की सेवा करने को कहा फिर अकारण छोड़कर चल दिए आप !आप आम आदमियों के अपने बनने चले थे फिर आप अपने साथ लंच करने के इच्छुक लोगों से पैसे माँगने  लगे !अरविन्द जी , आपको राजनीति में इतनी जल्दी सफलता मिलती चली गई और आप लोग मंत्री मुख्यमंत्री आदि बनते चले गए यह देख कर कई पढ़े लिखे लोगों की आत्माएँ उन्हें धिक्कारने लगीं वो भी नौकरी छोड़ छोड़ कर अरविंद केजरीवाल बनने भाग आए, तमाम नचैया गवैया आदि हर फील्ड के लोग भी अपना अपना पेशा छोड़ छोड़कर आपसे प्रभावित होने लगे आपके साथ उनके सपने तो बहुत कुछ थे किन्तु अब बेचारे बेरोजगार हो गए अब वो अपनी पीड़ा किसी से कह भी नहीं पा  रहे हैं और सह भी नहीं पा रहे हैं उधर  लज्जा के कारण वापस नौकरियों में भी नहीं जा पा रहे हैं अतः वो प्रत्यक्ष खुद तो आगे नहीं आ रहे हैं किन्तु दूसरों को आपस में लड़वा रहे हैं उनका सोचना संभवतः यह होगा कि यदि हमारा कैरियर ख़त्म हुआ तो कम से कम मैं भी यह पार्टी ही समाप्त करके चलूँ इससे वो लोग ये कहने लायक तो हो जाएंगे कि जब पार्टी ही नहीं रही तो मैं वापस सर्विस में आ गया !उधर आपका मन एक बार फिर मचल उठा है दिल्ली वालों की सेवा करने को किन्तु राजनैतिक दुकानदारी आपकी चल नहीं पा रही है उधर दूसरी पार्टियाँ अपने संभावित सी. एम. प्रत्याशियों को दूध पिला पिलाकर गधे से घोड़ा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं यहाँ तक कि जिन पदों पर पहुँचने की उनकी अपनी कभी कल्पना ही नहीं रही होगी वहाँ वो इसीलिए न बैठाए जा रहे हैं ताकि दिल्ली की जनता समझ सके कि वो कितने अधिक समझदार हैं !

   अरविंद केजरीवाल जी !ऐसे में ईमानदारी पूर्वक जनता का विश्वास जीतने के अलावा आपके पास और कोई विकल्प भी नहीं  है आप अब  दिल्ली वासियों की सेवा तो करना चाह रहे हैं किन्तु उन्हें  उचित स्पष्टीकरण भी देना जरूरी नहीं समझ रहे हैं कि आप उनसे दूर क्यों हुए ! और आप जो कुछ बोल पा रहे हैं उस पर दिल्ली वाले भरोसा नहीं कर पा रहे हैं  ऊपर से आप कह रहे हैं कि 'आम आदमी पार्टी अपने उसूलों से समझौता नहीं कर सकती' आखिर ऐसे कैसे कर पाएँगे आप अपना राजनैतिक  विकास और अपने राजनैतिक 

प्रतिद्वंद्वियों  का सामना ?

   केजरीवाल जी !आपको अन्ना जी का शाप तो नहीं लग गया है !

जानीहि सत्यं जगत् सारमेतत्
मृषा भाषितं यद् भवान् पुण्य क्षीणः |
इयं केजरीवाल जी कालक्रीडा
सदा क्षीणपुण्यं देवतापि त्यजन्ति ||
-डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
केजरीवाल जी! आप तो सुशिक्षित हैं आपको पता ही होगा कि जो आपके द्वारा जाने अनजाने में उन अन्ना जी को ठेस लगी होगी जो आपको ही सब कुछ मानते थे, इसी प्रकार से जनता को जो आश्वासन जिस रूप में आपने दिए वे पूरे नहीं कर सके इसीप्रकार से सादा जीवन जीने की प्रतिज्ञा करके जो बिलासिता के वैभव एकत्रित करने लगे इन सब बातों से झूठ और छल नाम का जो दोष आपको लगा है उससे आपके संचित पुण्य क्षीण हुए हैं। महोदय !ये सब तो समय और उन्हीं पुण्यों का ही खेल है इसमें मीडिया का क्या दोष ?पुण्य क्षीण होने पर तो देवता भी साथ छोड़ देते हैं मीडिया किस खेत की मूली है !

see more ……इस लिंक को जरूर पढ़ें -

मीडिया और भ्रष्टाचार --कविता, गॉंधी जी के तीन बंदरों कीsnvajpayee.blogspot.in/2013/09/blog-post_29.html

 

Sunday, June 8, 2014

आम कार्यकर्ता किससे कहे अपनी व्यथा ?उत्साह बर्द्धन तो उसका भी जरूरी है !

    राजनीति में आम कार्यकर्ता को भी मिलना चाहिए अपने शीर्ष नेताओं का हेल्प लाइन नंबर ताकि वो अपनी बात भी पहुँचा सके अपने शीर्ष नेतृत्व तक और सुनी जाए उसकी भी आवाज !कार्यकर्त्ता चुनावों के समय पार्टी के पक्ष में केवल वातावरण तैयार करने के लिए ही नहीं होता है अपितु उसकी भी कुछ इच्छा आवश्यकता मजबूरियाँ परेशानियाँ आदि हो सकती हैं उन्हें क्यों न सुना जाए ! 
       वैसे भी अब तो चुनाव भी हो गए अपनी पार्टी सत्ता में भी आ गई अब तो आम कार्यकर्ताओं को भी लोग बताने लगे हैं अपने जरूरी काम और घर वाले भी पूछने लगे हैं उनसे हिसाब किताब कि जिसे जो बनना था सो तो बन गया जो रह गया सो अब बन जाएगा किन्तु पार्टी की नज़रों में तुम कहाँ हो.……!       

      राजनैतिक लोगों या दलों के विषय में  कई बार ग्रामीण लोग भी बड़ी अच्छी समीक्षा कर लेते हैं। कानपुर के एक वृद्ध से किसी कोल्ड स्टोरेज में मेरी एक सामान्य मुलाकात हुई, कुछ और लोग भी वहीं  बैठ गए।राजनैतिक चर्चाएँ चलने लगीं, सब लोग अपनी अपनी बात बोलने लगे, बहस बढ़ने लगी, इसी बीच उन वृद्ध जन ने बोलते हुए कहा कि कार्य कर्ताओं का सबसे अधिक प्रोत्साहन समाज वादी पार्टी करती है। उसका कार्यकर्ता कितनी भी बड़ी गलती कर के आवे तो वो पार्टी अपने कार्य कर्ता को कभी दुदकारती  या धिक्कारती नहीं है अपितु मुशीबत में उसकी मदद करती है भले वह गलत ही क्यों न हो!आप स्वयं देख लेना कि सपा अपने बाहुबली विधायक एवं मंत्री रह चुके  अपने सहयोगी को इस मुशीबत  में कितनी भी बड़ी कुर्वानी करके उसे कानून की नजरों से बचाकर निकाल कर ले आएगी और लोग एवं पार्टियाँ देखती रह जाएँगी।वैसे भी वो उस पार्टी के ऐसे विधायक हैं जो जेल मंत्री रह कर जेलों  के लिए जो सुख सुविधाएँ जुटाते उन्हें चेक करने के लिए कुछ दिन के लिए जेल चले भी जाते हैं इस रूप में भी वह सरकार और पार्टी का ही काम करते हैं।   
     सपा के बाद नंबर दो पर अपने कार्य कर्ताओं का  सबसे अधिक संरक्षण एवं प्रोत्साहन बहुजन समाज पार्टी  करती है। उसका कार्यकर्ता कितनी भी बड़ी गलती कर के आवे तो भी वह अपने कार्य कर्ता को कभी दुदकारती या धिक्कारती नहीं है अपितु मुशीबत में उसकी अधिक मदद भले ही न कर पावे किन्तु वह अपने कार्यकर्ता के साथ खड़ी जरूर होती है और उसे विश्वास दिलाती है कि जब वो सत्ता में आएँगे तो उसके अपमान का बदला जरूर लेंगे और वे लेते भी हैं, भले वह गलत ही क्यों न हो !
        कांग्रेस अपने कार्यकर्ता को बिना कोई आश्वासन दिए बेशक सामाजिक रूप से उसका पक्ष ले न ले  कई मुद्दों पर भले उसकी निंदा आलोचना ही करना पड़े  किन्तु मदद जरूर करती है तथा कभी भी अपने कार्यकर्ता का मनोबल नहीं टूटने देती है एवं अपने कार्यकर्ता पर कभी संदेह नहीं करती है। उसके ऐसा करने  का विश्वास कार्यकर्ता को भी होता है इसी बल पर वो अपनी बात पर डटा रहता है।  
     जहाँ तक भाजपा की बात है तो  भारतीय जनता पार्टी का निरपराध कार्यकर्ता भी यदि किसी गलत आरोप में भी फँसाया गया हो  और वह यदि अपनी पार्टी के  अपने आकाओं के पास मदद के लिए पहुँचे,तो वे नेता लोग उस मुद्दे पर अपने कार्यकर्ता का मनोबल तोड़ते हुए उससे किनारा करने की नियत से उसकी बात पहले तो उपेक्षा पूर्ण ढंग से सुनते हैं फिर उसी की बातों से कुछ उसकी गलतियाँ  ढूँढ़ कर उसे लज्जित तथा जलील करते हैं।  पहले तो उसे धमकाते हैं फिर कानून व्यवस्था का भय दिखाकर इसमें उसका कैसे कैसे नुकसान हो सकता है और उसे  कितनी कठोर सजा हो सकती है ये सब बढ़ा चढ़ा कर समझाते डरवाते हैं,और पार्टी की प्रतिष्ठा न गिरने पाए यह भी उसे बताते हैं। कुछ ले देकर काम निकालने की सलाह भी देते हैं कि इससे पार्टी की प्रतिष्ठा भी बची रहेगी और काम भी हो जाएगा।जब वह कार्यकर्ता ले देकर काम करने को तैयार हो जाता है,तब उसकी सेटिंग करवाने के नाम पर वही धर्म शास्त्री नेता कमीशन न लेकर  किसी और के बहाने से उससे सहयोग राशि रूपी  धन ले लेते हैं और उसका काम करवा देते हैं इस प्रकार से जब काम हो जाता है तो उसके ऊपर अहसान करने लगते हैं किन्तु वह कार्यकर्ता सब कुछ समझ चुका होता है। चूँकि जिन कार्यकर्ताओं के परिश्रम और पसीने से चुनाव जीतने वाले अधिकांश पार्षद से लेकर सांसद तक;मंत्रियों का मुझे पता नहीं है बाकी अपना एवं अपने नाते रिश्तेदारों के अलावा जो पैसा दे उसका काम कराने में रूचि ले रहे होते हैं या जिसके लिए पार्टी आला कमान जिसके लिए डंडा दे उसका काम होता है।इसके अलावा विरोधी पार्टियों के लोगों का काम होता है केवल इस लालच में कि जब हम हार जाएँगे तब ये लोग तो काम आएँगे ही अपने एवं अपने नाते रिश्तेदारों के काम तो होते रहेंगे ही। इसप्रकार सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित होकर चलते हैं अपनी धर्मशास्त्री पार्टी के नेता!कई लोगों की तो कोशिश यही होती है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे चरित्रवान परिश्रमी कार्य कर्ताओं को आगे बढ़ने ही न दिया जाए अन्यथा उनकी शिक्षा एवं ईमानदारी अपनी कार्यशैली में बाधक बनेगी !और यदि वो आगे बढ़ेंगे तो अपने लिए घातक होंगें इसलिए अपने विरोधी एवं पार्टी के हितैषी कार्यकर्ताओं को अक्सर यह कहकर संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है कि वो तो अहंकारी हैं या कुछ अन्य सतहे आरोप लगा दिए जाते हैं ।अतः उस कार्यकर्ता को भी बेशक बाद में पार्टी से निकाल ही दिया जाए किन्तु उसकी अपनी प्रिय पार्टी कम से कम अंतिम बार ही सही बात तो उसकी भी सुनने की कोई व्यवस्था करे ! उसे उन्हीं की कृपा का मोहताज बनाकर न छोड़ा जाए जो उस पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के नाम पर पार्टी से बाहर करना चाह रहे हैं इसलिए कुछ तो ऐसा हो कि जिससे पार्टी का कोई अनुशासित सिपाही किसी सीनियर के द्वारा कही गई पार्टीहित से अलग उसके निजी स्वार्थों की पूर्ति सम्बन्धी बात मानने के लिए सम्पूर्ण रूप से बाध्य न रहे !

     लोग कई बार सस्ती मिलने वाली विवादित जमीनें खरीद कर फिर उन्हें विवाद मुक्त बनाने के लिए अपने आश्रित कार्यकर्ताओं का उपयोग करते हैं ऐसा देखा जाता है जिससे न पार्टी का कोई हित  होता है और न उस कार्यकर्ता का कोई लालच किन्तु यदि वो उनकी बात न माने तो क़तर दिए जाते हैं उसके पर आखिर किससे कहे वो अपने मन की व्यथा ?

     कई बार तो चुनाव जिताने के लिए जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं ने उन विरोधियों से लड़ाई मोल ली थी और अपने प्रत्याशी के जीत जाने के बाद भी उन विरोधियों के द्वारा वो पार्टी कार्यकर्ता पिट रहे होते हैं किन्तु अपना विजयी प्रत्याशी या तो मौन होता है, या अपने क्षेत्र के विकास करने की बातें करने लगता है या अपनी व्यस्तता बताने लगता है। कई बार तो विरोधियों के द्वारा पिटे अपने कार्यकर्ता अपने विजयी प्रत्याशी के पास सिफारिश के लिए आते हैं तो वो अपने चुनावी विरोधियों के साथ अन्दर बैठकर न केवल चाय नास्ता कर रहे होते हैं अपितु अपने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा या किसी बहाने से उनसे मिलने को मना करके और  अपने विरोधियों के समर्थन में सिफारिशी फोन तक कर रहे होते हैं।
      वो निराश  हताश कार्यकर्त्ता अपने गेहूँ धान बेच बेचकर या ब्याज पर पैसे ले लेकर करा रहे होते हैं अपनी जमानत!ऐसा कार्य कर्ता  सभी प्रकार से बेइज्जत होने के बाद मौन होकर सुनता है पड़ोसियों के ब्यंग! घर वालों के आवारागर्दी के आरोप!चूँकि समाज में रहना सभी के साथ साथ होता है इसलिए बात बात में विरोधियों के द्वारा किया गया अपमान  सहना पड़ता है, अपने विजयी प्रत्याशी की गाड़ियों में बैठकर विरोधियों को जाते देखकर असह्य पीड़ा होती है जो सहने को मजबूर होता है कभी समर्पित रह चुका पार्टी कार्यकर्ता!अब वह अपनी छतों पर लगे हुए अपनी प्रिय पार्टी के झंडे उतार देता है और फाड़ देता है अपनी प्रिय पार्टी के बैनर पोस्टर!और तमाम प्रकार से बेईज्जत होकर भारी मन से अपनी ही  पार्टी से किनारा करने लगता है और करने लगता है अपने ही प्रिय नेताओं की बुराई!उधर हनीमून पीरियड खतम होते ही अब अपने विजयी प्रत्याशी की ओर से बुलावा भेजा जाता है मिलने के लिए!दुर्भाग्य से  तब तक उस  कार्यकर्ता का मन इतना मर चुका होता है कि वो चाह कर भी मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। इस बीच उसे विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की याद आती है कि काश!मैं भी वहाँ या उस पार्टी में होता तो मेरी भी इतनी बेइज्जती नहीं होती ! और मुशीबत में पार्टी हमारे भी साथ खड़ी होती। इस प्रकार वह पुरानी पार्टी छोड़ कर किसी  दूसरी पार्टी में सम्मिलित हो जाता है। ऐसी मठाधीशी के कारण खदेड़ दी जाती है कई प्रदेशों  से भारतीय जनता पार्टी !इसलिए अबकी बार के विश्वास  को बरकरार रखने का सामूहिक प्रयास हो तो अच्छा है !
       अक्सर देखा जाता है कि जिस प्रत्याशी की विजय हुई होती है वो दंद फंद घूस घोटाले करके पैसे कमा लेना चाहता है इमेज बिगड़ेगी तो अधिक से अधिक अगले चुनाव में पार्टी टिकट नहीं देगी तो पैसे के बलपर किसी और जिताऊ पार्टी से टिकट खरीद लाएँगे,
किन्तु जो कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के लिए समर्पित है उसके खून में भाजपा के आदर्श सिद्धांत हैं उसके हृदय पर भाजपा अंकित है ऐसे कर्तव्यनिष्ठ एवं पार्टी के प्रति दृढ़ संकल्पी कार्यकर्ता पार्टी की हार्दिक धरोहर हैं संपत्ति हैं जिन्हें ठेस लगने पर संगठन तिल तिल करके टूटने लगता है पता भले चुनावी परिणाम आने के बाद  लगता हो ! इसलिए ऐसे भाजपा साधकों की साधना का स्थाई सम्मान हो जिनके जाने से पार्टी का स्थाई नुकसान होता है । ऐसे  विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को अपनाने एवं उनकी शिकायतें दूर करने के लिए पार्टी को सर्व सुलभ हेल्प लाइन नंबर जारी करना चाहिए जिससे  पार्टी का आम कार्यकर्ता अपनी पीड़ा अपने सम्मानित शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचा सके। जिससे कि हर कार्यकर्ता की क्षमता का देश हित एवं पार्टी हित में उपयोग किया जा सके। और अटल जी,अडवाणी जी या नरेन्द्र मोदी जी ही क्यों हर कार्यकर्ता अपने प्रति समाज का विश्वास जीत सकने में सफल हो सके।
       इस प्रकार से उसी कोल्ड स्टोरेज में बैठे  एक दूसरे किसान महोदय ने  हमारा परिचय पूछा और कहने लगे कि भैया !भाजपा को समझाओ कि वो अपने कार्यकर्ताओं को अपनी विश्वसनीयता एवं अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने को बाध्य करें जिससे वो हमेशा ही कार्यकर्ताओं एवं समाज के साथ अच्छा  व्यवहार करेंगे अन्यथा वो केवल चुनावों के समय सक्रिय होते हैं बाक़ी तो उनकी ही नहीं सुनी जाती है तो वो बेचारे जनता की क्या सुनें !उनके कार्यकर्ताओं को एक गलत फहमी हमेंशा रहती है कि चुनावों के समय पार्टी कोई अच्छा चेहरा एवं दमदार धार्मिक या ऐतिहासिक मुद्दा ढूँढ़ कर लाएगी जिसे देखसुन कर  लोग अपने आपसे बोट देंगे या फिर चुनावों के समय कोई हैवीवेट प्रत्याशी उतार देगी इस भ्रम में वो उतनी तैयारी वास्तव में कर नहीं पा जितने की उसको आवश्यकता होती है। 

      इसी प्रकार एक और बुजुर्ग बैठे थे उन्होंने कहा कि  मैं बात बताता हूँ साफ कि भाजपा चुनावों के समय किसी ऐतिहासिक, धार्मिक  या   धार्मिक महापुरुष के व्यक्तित्व की बलि देकर चुनाव जीतेगी हर चुनाव  में उसे कोई न कोई बलि पशु  मिल ही जाता है किन्तु जनता अब सब समझने लगी है।
     ऐसे ही देश में एक और बड़ी पार्टी है उसके बड़े बूढ़े कार्यकर्ता लोग भी अपना ज्ञान,गरिमा,शिक्षा ,उम्र,अनुभव आदि सारी मर्यादा भूल कर जिसकी ओर दंडवत लेटने,प्रणाम करने या जिसे पूजने लगते हैं वह उनका अपना बलिपशु होता है जब पार्टी की छबि घोटालों के कारण बहुत खराब हो जाती है तब इसी  बलि के बल पर उन्हें चुनाव जीतने  में कोई खास दिक्कत नहीं उठानी पड़ती है। इस प्रकार से उस पार्टी के कार्य कर्ता बेझिझक होकर  सत्ता  सुख भोगते रहते हैं । उन्होंने अपनी विजय का यही मूलमंत्र मान रखा  है।     

       इस प्रकार उन लोगों  की बातें सुनकर इसमें हमें   भी न केवल कुछ सच्चाई लगी अपितु लगा कि यदि वास्तव में ऐसा ही है तो भाजपा को भी चाहिए कि वो अपने कार्यकर्ताओं  के समर्पण को उनकी मजबूरी न समझे अपितु उनका सम्मान करे।
      
     
 

Friday, June 6, 2014

भारत के साल रूपी उपहार के बदले पाकिस्तान ने भेजी साड़ी या भेंट ! किन्तु भेंट तो पहले ....... !

       नरेंद्र मोदी जी ने नवाज शरीफ  की माँ के लिए शपथ ग्रहण उत्सव पर उपहार स्वरूप साल दिया था उसके   बाद नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी जी की माँ के लिए साड़ी भेजी है। लेकिन मित्रो ! ध्यान रहे कि यह साड़ी उपहार नहीं है यह तो मात्र एक साड़ी भर है ! जबकि साल उपहार में दी गई थी , यह बदला इतनी जल्दी चुकाना जरूरी था क्या ? इसके बाद क्या कोई ऐसा अवसर नहीं आता जब हमारे उपहार को उपहार स्वरूप में ही दिया जाता तो शिष्टाचार का कितना अच्छा उदाहरण होता ! सामान्य संबंधों में हम जिसके साथ लम्बा सम्बन्ध नहीं चलाना चाहते हैं उसे इसीप्रकार से हाथ के हाथ निपटा देते हैं ! आखिर इस साडी को इतनी जल्दी भेजना इतना आवश्यक तो नहीं था !

        जब नवाज शरीफ को पहले से पता था कि मोदी जी की माता जी हैं यदि उनके मन में शिष्टाचार बश ही सही मोदी जी की माता जी के प्रति कोई सम्मान था और उनके लिए वो कुछ उपहार स्वरूप देना ही चाहते थे तो शपथ ग्रहण महोत्सव में ही भेंट रूप में लेकर आए होते और सादर सप्रेम दी गई होती यह भेंट तो वहाँ इसकी कोई कीमत नहीं होती अपितु यह बहुमूल्य उपहार होता और इस प्रकार के उपहार की शोभा उस समय बहुत अधिक हो जाती !क्योंकि उत्सव में दिया गया सम्मान सहित कुछ भी सामान उपहार होता है और उत्सव के बाद  दिया गया सामान केवल सामान होता है या फिर दिए गए उपहार को सामान समझ कर उसके बदले में दिया गया सामान होता है । 

      शिष्टाचार के सिद्धांतों के अनुशार प्रधानमंत्री पद पर अभी नवाज साहब का  कार्यकाल लम्बा है और इधर मोदी जी की तो अभी शुरुआत ही है , नवाज साहब चाहते तो किसी उत्सव पर आमंत्रित कर लेते हमारे प्रधानमंत्री जी को और तब  जो देना होता दे देते जो उपहार भावना से लेने में हमें भी हमारी पहल के अनुरूप उत्साह बर्द्धक लगा होता ! 

     यदि इसीप्रकार से हमारे उपहारों का बदला  सामानों से दिया जाता रहेगा  तो यह बदले की भावना हमारे और आपके बीच विश्वास को बढ़ने नहीं देगी ! नवाज साहब ! यदि इस शिष्टाचार के व्यवहार को प्रतीक मान लिया जाए तो पहले पहल मोदी जी ने की है उन्होंने  ही आपको बुलाया तो आप चले आए और उन्होंने पहले उपहार स्वरूप साल दिया तो आपने साड़ी भेजी है । नवाज साहब! इसमे आपको ऐसा क्यों नहीं लग रहा है कि भारत के साथ स्नेह का हाथ बढ़ाने में आप कुछ संकुचित से लग रहे हैं !

      ये तो रही बात माता के सम्मान की अब बात भारत माता के सम्मान की ! नवाज साहब ! क्या इसमें भी हर पहल भारत को ही करनी पड़ेगी और भारत जैसा जैसा व्यवहार करता जाएगा पाकिस्तान भी संकोच बश ही वैसा वैसा करेगा अपने मन से कोई कदम आगे नहीं बढ़ाएगा !

 


 

 

बलात्कार बंद करने के लिए प्यार की सार्वजनिक गतिविधियों पर लगाया जाए प्रतिबन्ध !

जो जिसे चाहता है वो यदि उसे पाने में सफल हो जाए  तो विवाह और यदि ऐसा न हो तो रेप, गैंग रेप, हत्या या आत्महत्या आदि कुछ भी … ! इसलिए प्यार की सार्वजनिक  प्रक्रिया पर ही क्यों न लगाया जाए प्रतिबन्ध !
    आधुनिक  प्यार में प्यार जैसा कुछ होता नहीं है ये तो मूत्रता के लिए बनाई गई छद्म मित्रता होती है जहाँ सबकुछ झूठ पर आधारित होता है इसलिए आधुनिक  प्यार और बलात्कार दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि प्यार चलता रहे और बलात्कार बंद हो जाए !बंद होंगे तो दोनों और चलेंगें तो दोनों !अभी सरकार एवं आधुनिक समाज प्यार के समर्थन में है किन्तु बलात्कार रोकना चाहता  है 
    "आधुनिक प्यार नामक गुलाब के फूल में ही बलात्कार नाम का काँटा होता है "
एक संग नहीं होंहिं भुआलू ।हँसब ठठाइ फुलाउब गालू ॥

    जैसे खूब जोर से ठहाका मारकर हँसना और गाल फुलाना दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते ।

     सी प्रकार से बलात्कार को रोकने के लिए आधुनिक प्यार की गतिविधियों को रोकना ही चाहिए ! कोई भी बलात्कारी पहले किसी न किसी से प्यार जरूर कर चुका होता है  चूँकि प्यार करने की शुरुआत में रूठने मनाने के झटके झेल चुका होता है काफी संघर्ष के बाद धीरे धीरे सौदा पट ही जाता है!इसी आशा में कि  बाद में तो मामला पट ही जाएगा कोई भी कामी (प्रेमी)  पटने पटाने में देरी या मना होने पर कर बैठता  है  बलात्कार हत्या या कुछ और ! 

      जैसे लाल और मीठे तरबूज की चाहत में कई तरबूज काटने और छोड़ने पड़ते हैं तब जाकर कहीं कोई एक तरबूज अपने मन का अर्थात मीठा और लाल मिल पाता है उसी प्रकार से अपने लिए अच्छा प्रेमी या प्रेमिका की खोज करने में भी कई कई लड़के लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करनी पड़ती है तब जाकर कहीं हो पाता है किसी का किसी से अपने मन मुताबिक प्यार ! इस पथ पर धोखा खाए हुए लोग घायल सिंह की तरह इतने अधिक हिंसक हो जाते हैं कि वो रेप करें या गैंगरेप तथा  हत्या करें या आत्महत्या कहाँ होता है उनका उनके मन पर इतना नियंत्रण!वो तो यही सोचते हैं कि जब मेरे साथ बुरा हुआ है तो मैं बुरा करने से क्यों डरूँ !

     इसलिए इस प्रकार के लगभग सभी अपराधों में सम्मिलित लोग प्यार नाम का खेल खेलते खेलते किसी न किसी की जिंदगी से खुला खिलवाड़ कर चुके होते हैं इसमें सम्मिलित भी दोनों पक्ष होते हैं इसके लाभ हानि भी दोनों को होते हैं और दोषी भी दोनों पक्ष होते हैं इसलिए सजा भी दोनों को समान रूप से होनी चाहिए !

     यहाँ दोनों का कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि जिसके साथ रेप या गैंग रेप हो वह दोषी है अपितु हमारा अभिप्राय  उन लड़के लड़कियों से है जो इस प्रकार के खुला खिलवाड़ में अपनी इच्छा से सम्मिलित होते हैं !  


  अन्यथा जिसने इस पंथ में कभी कदम ही न रखा हो उसमें प्यार और बलात्कार करने की हिम्मत ही कहाँ होती है !इसलिए बलात्कार रोकने के लिए प्यार की गतिविधियों में सम्मिलित जोड़ों की हरकतें रोकने के लिए शक्त कानून न केवल बनना चाहिए अपितु कड़ाई से उसका पालन भी होना चाहिए !बलात्कार होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जिनमें प्यार करने वालों की सार्वजनिक गतिविधियाँ भी प्रमुख कारण हैं ! 

         अन्यकारणों में छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाला अत्याचार या कई बार प्यार व्यार सम्बन्धी बातों से बिलकुल अनजान युवती लड़कियों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार एवं अपने को बिलकुल सुरक्षित समझते हुए अभिभावकों के साथ कहीं जाने आने वाली लड़कियों के साथ भी बलात्कार जन्य दुर्व्यवहार होता है इसी प्रकार से सामूहिक बलात्कारों में ऐसी सभी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित लोग विशुद्ध रूप से अपराधी होते हैं ये लोग जिस प्रकार से अन्य अपराध करते हैं उसी प्रकार से बलात्कार करते हैं क्योंकि इनके मन में नैतिकता या दया धर्म आदि नहीं होते हैं !ऐसे लोगों को रोकने का उपाय  सभी प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए कठोर बनाया जाना और फिर उसका कड़ाई से पालन हो जिससे अपराधियों के हौसले पस्त हों !

       रेप पर राजनीति क्यों ?मिलजुल कर प्यार का खेल खेलने वाले  जोड़ों को क्यों नहीं मिलना चाहिए समान दंड !स्त्री पुरुष का भेदभाव क्यों? 

 जिन केसों में प्रेमी प्रेमिकाओं ने प्यार किया और दोनों व्यभिचार के लिए समान रूप से दोषी हों यदि इनमें आपसी बात बिगड़ जाए तो भी केवल प्रेमी ही दोषी क्यों?ये कैसा न्याय है ?

    बलात्कार, गैंग रेप या किसी भी प्रकार से होने वाला महिलाओं का शील शोषण एवं सेक्स जैसी बातों से अनजान अबोध अविकसितांगी छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाले असह्य अत्याचारों से आहत होकर विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित लोगों से सम्पर्क करके मैंने इन विषयों पर अध्ययन करने का प्रयास किया है कि   इसमें कौन कितना दोषी होता है इसमें लड़की और उसके घर वाले इसी प्रकार से लड़का और उसके घर वाले समाज प्रशासन फैशन के नाम पर हमारा खुला रहन सहन या सरकारी ढिलाई इन सबमें से कमजोरी किसकी है क्यों घटित होते हैं ये बलात्कार जैसे जघन्य अपराध !और इन्हें रोकने के लिए कितनी उचित है फाँसी जैसी सजा? ऐसे कठोर कानूनों के प्रभावों से कितनी सफलता मिलने की उम्मीद है ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में ! मैंने अपनी विद्या बुद्धि के अनुशार प्रयास किया है इसे समझने का !जिसमें जो कुछ सामने आया उसका निवेदन इस प्रकार है !

    ऐसे केसों में यदि महिला सुरक्षा के नाम पर किसी पुरुष को फाँसी की सजा दे भी दी जाए तो क्या इससे हो पाएगी महिला सुरक्षा ?फाँसी की सजा पाने वाले की बूढी माँ,जवान पत्नी,बहनें,पुत्रियाँ आदि क्या महिलाएँ नहीं हैं !क्या उनके लिए भी कुछ बिचार नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा बलात्कारी को तो एक बार फाँसी लगती है और उसका जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु उसके परिजनों को भोगनी पड़ती हैं कठोर सामाजिक और आर्थिक यातनाएँ !नाते रिश्तेदारी में उनका बहिष्कार कर दिया जाता है बहन बेटियों के काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं क्या इन सब परिस्थितियों पर बिचार करने की हमारी कोई जिम्मेदारी होनी चाहिए ? आखिर उसके परिजनों का दोष क्या होता है जिसकी सजा भोगनी पड़ती है उन्हें ?

     अब बलात्कार पीड़िता की असह्य पीड़ा को भी समझना बहुत आवश्यक है इसमें तीन प्रकार के केस होते हैं एक वो जिसमें लड़कियों या महिलाओं की किसी प्रकार से कोई गलती ही नहीं होती है दूसरी छोटी छोटी बच्चियाँ जिनकी गलती होने की कोई संभावना ही नहीं होती है ऐसी प्रकरणों में बलात्कारी सम्पूर्ण रूप से दोषी होता है उसमें उसके पारिवारिक संस्कार,उसकी शिक्षा ,एवं आध्यात्मिक वातावरण की कमजोरी फैशन के नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता,तामसी खान पान का प्रभाव एवं कैरियर बनाने के चक्कर में विवाह जैसे अति आवश्यक विषय को अकारण टालते जाना है!जब आयुर्वेद मानता है कि भोजन निद्रा और मैथुन अर्थात सेक्स ये तीनो मनुष्य शरीर के उपस्तम्भ हैं इनके कम और अधिक होने से शरीर रोगी होता है तो ऐसी परिस्थिति में उनका यथा संभव शीघ्र विवाह किया जाना चाहिए  अन्यथा बेचैनी बढ़ती ही है जिसकी शांति के लिए साहित्य में कहा गया है कि कुँए का पानी,बरगद की छाया,युवा स्त्री पुरुषों के शरीर एक दूसरे के लिए,और ईंटों का घर ये शर्दी में गर्म और गरमी में ठंढे रहते हैं । इसलिए इनका सेवन करने से बेचैनी घटती और सुख मिलता है । ये रही बात चिकित्सा और साहित्य शास्त्र की अब बात करते हैं कोक शास्त्र की जहाँ भड़काऊ रहन सहन वेश भूषा आदि देखते स्पर्श होते ही अनियंत्रित हो उठता है मन ।जैसे किसी भी सार्वजनिक जगह पर एक दूसरे को चूमते चाटते या ऐसा ही और कुछ करते देखकर देखने वाले पागल हो उठते हैं और वो करने लगते हैं बलात्कार जैसे अक्षम्य अपराध !ऐसे काण्ड बेशर्म जोड़ों के द्वारा पार्कों में ,मेट्रो स्टेशनों या रेस्टोरेंटों, पार्किंगों ,या बस आदि सवारियों ,आटो  रिक्सों आदि पर अक्सर देखे  जा सकते हैं यहाँ तक की मोटर साइकिलों पर बैठे जोड़ों की अश्लील हरकतें विशेष कर लालबत्तियों पर खड़ी गाड़ियों पर साफ साफ देखी  जा सकती हैं । जिन्हें देखकर दर्शकों के मन पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है उसके लिए देखने वाले कितने जिम्मेदार हैं क्या उन्हें ऐसी सार्वजनिक जगहों पर नहीं जाना चाहिए या आँखें बंद करके जाना चाहिए या नपुसंक होने की दवा खाकर ही घर से निकलना चाहिए क्योंकि इसके अलावा वर्तमान परिस्थिति में उनसे बहुत बड़े ब्रह्मचर्य की आशा कैसे की जा सकती है !

      वैसे  भी ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंडों के आपसी संबंधों  में अक्सर विश्वास घात  होते देखा जा रहा है कई बार वह उनके द्वारा किया जाता  है कई बार उनके कारण होता है जैसे मेट्रो में खड़ा एक जोड़ा सबके सामने बड़ी बेशर्मी से आपस में अश्लील हरकतें करता और सहता रहा दोनों के दोनों पूरे के पूरे रंग में थे ! इन्हें देखने वाले देखते रहे वो नपुंसक रहे होंगे ऐसा सोचना ही क्यों !बाक़ी के लोग तो जहाँ के तहाँ चले गए किन्तु चार लड़के एक ही झुण्ड के थे वे भी ये हरकतें देखते रहे वो नहीं रोक सके अपना मन और उन लोगों ने प्रेमी जोड़े का पीछा किया जहाँ वे स्टेशन से उतरे वो भी उतर गए उनके पीछे लग लिए जहाँ कुछ एकांत मिला झपट पड़े और उस प्रेमी नाम के लड़के को पकड़ लिया वो अकेला था ये चार थे इसके बाद उन्होंने वो सब कुछ किया जो उन्हें ठीक लगा और वो दोनों सहते रहे करते भी क्या !इसके बाद वो पुलिस को कम्प्लेन करके प्रशासन को दोष दें यह कितना उचित है!आखिर ऐसे जोड़े किस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था चाहते हैं वो इनसे भी पूछा  जाना चाहिए और यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या उनकी भी कुछ  जिम्मेदारी है या कि सारी प्रशासन की ही  है?

  

प्रेमी नाम के लड़कों के द्वारा की गई सार्वजानिक जगहों पर अश्लील हरकतें सहमति पूर्वक  क्यों सही जाती हैं ?आपने भी देखे होंगे ऐसे दृश्य !सहमति से सेक्स या अश्लील हरकतें करने वाले जोड़े खोजकर ऐसी जगह में ही बैठते हैं जो बिलकुल सुनसान हो,या कार पर सूने घरों में बंद मकानों फैक्ट्रियों झाड़ियों भीड़भाड़ बिहीन बसों में बैठना उठना चलना  फिरना पसंद करते हैं ऐसे लोग जहाँ उनकी आपस में अश्लील हरकतें भी चला करती हैं!आप स्वयं सोचिए कि जब वो चुन कर स्वयं एकांत स्थान में ही जाते हैं क्योंकि उनकी आपसी हरकतें असामाजिक होती ही हैं इसलिए वहाँ पुलिस आदि का तो छोड़िए आम आदमी का जाना आना ही नहीं होता होगा ऐसी जगहों पर वो लड़का प्यार करे या बलात्कार या हत्या ही कर दे तो कौन है उसे देखने या रोकने वाला ?तो ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ  उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?कई बार ऐसे एकांतिक स्थलों पर अक्सर ऐसी घटनाएँ होने के कारण  ये जगहें ऐसे कामों के लिए वेलनोन हो जाती हैं तो यहाँ इस तरह की हरकतें देखने के शौक़ीन या अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी नशे आदि के बहाने से बैठने उठने लगते हैं उनसे वो प्रेमी नाम का अकेला जंतु भी चाहकर कैसे बचा लेगा उस लड़की को !

     ऐसी हर जगह  पर पुलिस का होना संभव ही नहीं होता है और यदि पुलिस हो तो ये जोड़े वहाँ  जाएँगे ही क्यों ?ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?फिर भी यदि किसी प्रकार से पुलिस इन्हें रोकने की कोशिश भी करे तो क्या करे सहमति से सेक्स को पुलिस रोके तो 'प्यार पर पहरा' और यदि न रोके और कोई दुर्घटना घट जाए तो 'बलात्कार  या गैंगरेप' पुलिस आखिर करे तो क्या करे ?

    ये तथाकथित प्यार के सम्बन्ध दोनों तरफ से झूठ बोलकर ही बनाए गए होते हैं इसलिए दो में से किसी का झूठ जब खुलने लगता है तो वो कुछ और दबाते दबाते कब गला ही दबा दे किसी का क्या भरोस ?अन्यथा यदि सच बोलते तब तो प्यार नहीं  होता या फिर सीधे विवाह ही होता तब तक वो अपनी बहती सेक्स भावना को रोक कर रखते किन्तु सेक्स के लिए बिल बिलाते  घूमते जवान जोड़े  आम समाज की परवाह किए बगैर ही राहों चौराहों गली मोहल्लों पार्कों ,मेट्रोस्टेशनों आदि सार्वजनिक जगहों पर भी कुत्ते बिल्लियों की तरह बेशर्मी पूर्वक वो सब किया करते हैं जो देखने वालों की दृष्टि से सभ्य समाज को शोभा नहीं देता है किन्तु इन्हें समझावे या रोके कौन ?

  इसी प्रकार से कुछ लड़कियाँ धन लेकर शारीरिक संबंधों में सम्मिलित होती हैं उसमें कुछ निश्चित समय रखा जाता है ऐसी जगहों पर घंटों के हिसाब से पेमेंट करना होता है । यहाँ भी लड़कियों के साथ एक धोखा होता है जैसे दो घंटे के किसी ने पैसे जमा किए तो वो दो घंटे के लिए लड़की को अपनी इच्छानुशार जगह और कमरे में ले जाता है ऐसी हरकतें कोई अपने घर ले जाकर नहीं करेगा दूसरा पुलिस का भी भय होता है तीसरी बात इनके लिए कमरा कोई भला आदमी क्यों देगा ?वैसे भी एक सिद्धांत है कि जब हम कोई गलत काम करने लगें तो हमें सामने वाले से भी ईमानदारी की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। इसलिए ऐसी लड़कियों को पेमेंट देकर लाने वाले लड़के लती होने के कारण रोज  रोज इस आदत के आदी  हो जाते हैं जबकि उतना खर्च कर पाना उनके बस का नहीं होता है तो वो आपसी कंट्रीब्यूशन में चार पाँच लड़के मिलकर करते हैं ऐसे काम जो पहले से ही उस कमरे में बैठे होते हैं जिसकी जानकारी पहले से उस लड़की को नहीं होती है और वो वहाँ  से भाग भी नहीं सकती है वहाँ होता है उसका भीषण शारीरिक मानसिक शोषण और बाद में वो लड़की रोड पर छोड़ दी जाती है! अब वो केस करे तो कैसे अपने घर वालों को भी नहीं बताना चाहती है क्योंकि उन्हें तो बता रखा है की हम सर्विस करते हैं वो बात खुल जाएगी और यदि उन्हें बता भी दे केस भी कर दे तो पुलिस को सच्चाई नहीं बताएगी कि हम वहाँ  तय शुदा पेमेंट पर अपनी इच्छा से गए थे यदि वह कानून की शरण में जाती  है तो सारी  कार्यवाही   गैंग रेप की तरह  ही की जाती है यहाँ तक कि चिकित्सकीय रिपोर्ट भी उसी तरह की बनती है मीडिया में भी इसी प्रकार का प्रचार होता है इससे ऐसे प्रकरणों में लगभग निर्दोष प्रशासन को अकारण दोषी माना जाता है जबकि वो करे भी तो क्या ?उपाय भी तो बताना चाहिए !एक बड़ी बात ये भी कि उस कमरे में पहुँच पाना  उस लड़की के लिए बिलकुल असंभव सा होता है पहुँच भी जाए तो वो कमरा उन लड़कों का तो होता नहीं है ऐसी परिस्थिति में पुलिस और कठोर कानून भी क्या करे ? 

    जब जब समाज में इस तरह  की बहस चलती है तब तब सहमति से सेक्स करने वाले लोग फैशन के नाम पर इसके समर्थन में उतर जाते हैं कुछ लोग राजनैतिक लोभ से महिलाओं को नाराज नहीं करना चाहते हैं इसलिए कानून चुस्त दुरुस्त करने की बात करने लगते हैं दूसरे लोग इसकी बुराई करने लगते हैं इनका काम तो केवल चर्चा करना होता है टी. वी.चैनलों का काम एक प्रोग्राम बनाना होता है बनाया दिखाया छुट्टी ! इसलिए चर्चा की और शांत हो गए किन्तु पुलिस क्या करे उसे तो प्रत्यक्ष रूप से कुछ करके दिखाना होगा वो क्या करे इन्हें रोके या न रोके ! 

     गैंग रेप की घटनाएँ भी आजकल अधिक रूप में घटने लगीं हैं जो घोर निंदनीय हैं और रोकी जानी चाहिए । इसमें कुछ  और भी कारण सामने आए हैं जो विशेष चिंतनीय हैं एक तो वो जो लड़कियाँ सामूहिक जगहों पर अपनी सहमति से अपने साथ किसी प्रेमी नाम के लड़के को अश्लील हरकतें करने देती हैं या हँसते हँसते सहा करती हैं उन्हें देखने वाले सब नपुंसक नहीं होते ,सब संयमी नहीं होते ,सब डरपोक नहीं होते कई बार देखने वाले कई लोग एक जैसी मानसिकता के  भी मिल जाते हैं वो यह सब देखकर कुछ करने के इरादे से उनका पीछा करते हैं सामूहिक जगहों से हटते ही वो कई लड़के मिलकर उन्हें दबोच लेते हैं वो अकेला प्रेमी नाम का जंतु क्या कर लेगा फिर उस लड़की से उसका कोई विवाह आदि सामाजिक सम्बंध तो होता नहीं है जिसके लिए वो अपनी कुर्बानी दे वो तो थोड़ी देर आँख मीच कर या तो निकल जाता है या समय पास कर लेता है।अगले दिन सौ पचास रुपए किसी डाक्टर को देकर ऐसी ऐसी जगहों पर पट्टियाँ करा लेता है ताकि लड़की को दिखा सके कि उसके लिए वो कितना लड़ा है ऐसी दुर्घटनाएँ घटने के बाद यदि अधिक तकलीफ नहीं हुई तो ऐसे प्रेम पाखंडी बच्चे डर की वजह से घरों में बताते भी नहीं हैं और जो बताते भी हैं  तो कुछ अन्य कारण बता देते हैं!

     ऐसी  घटनाएँ  कई बार देर  सबेर कारों में लिफ्ट लेने,या ऑटो पर बैठकर,या सूनी बसों में बैठकर,या अन्य सामूहिक जगहों पर की गई प्रेमी प्रेमिकाओं की आपसी अश्लील हरकतें  देखकर घटती हैं यह नोच खोंच देखते ही जो लोग संयम खो बैठते हैं उनके द्वारा घटती हैं ये भीषण दुर्घटनाएँ !इनमें सम्मिलित लोग अक्सर पेशेवर अपराधी नहीं होते हैं।ये सब देख सुनकर ही इनका दिमाग ख़राब होता है । 

        इसीप्रकार आजकल कुछ छोटी छोटी बच्चियों के साथ किए जाने वाले बलात्कार नाम के जघन्यतम  अत्याचार देखने सुनने को मिल रहे हैं जिनका प्रमुख कारण अश्लील फिल्में तथा इंटर नेट आदि के द्वारा  उपलब्ध कराई  जा रही अश्लील सामग्री  आदि है आज जो बिलकुल अशिक्षित  मजदूर आदि लड़के भी बड़ी स्क्रीन वाला मोबाईल रखते हैं भले ही वह सेकेण्ड हैण्ड ही क्यों न हो ?होता होगा उनके पास उसका कोई और भी उपयोग !क्या कहा जाए! 

     इसीप्रकार के कुछ मटुक नाथ टाइप के ब्यभिचारी शिक्षकों ने प्यार की पवित्रता समझा समझाकर बर्बाद कर डाला है बहुतों का जीवन !

        बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में पी.एच.डी. जैसी डिग्री हासिल करने के लिए लड़कियों को कई प्रकार के समझौते करने पड़ते हैं यदि गाईड संयम विहीन और पुरुष होता है तो !क्योंकि शोध प्रबंध उसके ही आधीन होता है वो जब तक चाहे उसे गलत करता रहे !वह थीसिस उसी की कृपा पर आश्रित होती है । 

     ज्योतिष के काम से जुड़े लोग या असंयमी बाबा लोग परेशान लड़कियों महिलाओं को पहले मन मिलाकर सामने वाले के मन की बात जान लेते हैं फिर उसे उसका मन चाहा काम या बशीकरण अादि करने के लिए मोटा खर्च बताते हैं जो न दे पाने की स्थिति में वो लड़की या महिला उस पाखंडी को अपना शरीर सौंप देती है यह खेल चलता रहता है कई बार वर्षों बीत जाते हैं वो उसके शरीर का मिस यूज करते रहते हैं किन्तु जब काम नहीं होता है तब कुछ तो निराश होकर घर बैठ जाती हैं कुछ ऐसे लोगों पर वर्षों बाद बलात्कार का केस करती हैं और कह देती हैं की मैंने इनके भय के कारण नहीं बताया था किन्तु यह कहाँ तक विश्वास करने योग्य है!

       चिकित्सक लोग बीमारी ढूँढने के बहाने सब सच सच उगलवा लेते हैं फिर ब्लेकमेल करते रहते हैं ।इसी प्रकार से कार्यक्षेत्र में कुछ लोग अपनी जूनियर्स  को डायरेक्ट सीनियर बनाने के लिए कुछ हवाई सपने दिखा चुके होते हैं उन सपनों को पकड़कर शारीरिक सेवाएँ लेते रहते हैं उनकी !किन्तु जब  महीनों वर्षों तक चलता रहता है ऐसा घिनौना खेल, किन्तु दिए गए आश्वासन झूठे सिद्ध होने लगते हैं तब झुँझलाहट बश जो सच सामने निकल कर आता है उनमें आरोप बलात्कार का लगाया जाता है किन्तु किसी भी रूप में आपसी सहमति से महीनों वर्षों तक चलने वाले शारीरिक सम्बन्धों को बलात्कार कहना कहाँ तक उचित होगा ?ऐसे स्वार्थ बश शरीर सौंपने के मामले राजनैतिकादि अन्य क्षेत्रों में भी घटित होते देखे जाते हैं वहाँ भी वही प्रश्न उठता है कि ऐसी परिस्थितियों में कैसे रुकें बलात्कार ?