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Saturday, July 12, 2014

astro

     
    बंधुवर !
      एक निवेदन मेरा है कि जो लोग धर्म शास्त्रों  को मजाक समझते हैं इसलिए उस विषय में साईं या अन्य विषयों में मन माने तर्क गढ़ लिया करते हैं और शास्त्रार्थ के नाम पर चोंच लड़ाना शुरू कर देते हैं हैं ये अच्छी परंपरा नहीं है आखिर सरकार ने संस्कृत विश्वद्यालय बनाए किस लिए हैं वहाँ पुराणों से लेकर हर सब्जेक्ट का डिपार्टमेंट है जिसमें कई कई शिक्षक होते हैं जिनकी लगभग एक लाख रूपए सैलरी होती है आखिर सरकार कुछ सोच कर ही दे रही होगी और वहाँ कुछ पढ़ाया भी जाता होगा जब सामान्य विश्व विश्वद्यालयों की तरह ही उसमें भी एम. ए.पी.एच.डी.आदि होती है तो आखिर कुछ तो सरकार को आवश्यक लगा ही होगा तब वो ऐसा कर रही है!ऐसी परिस्थिति में जो लोग ऐसे किसी शिक्षण संस्थान या मजबूत गुरुपरम्परा का आश्रय लिए बिना कुछ धार्मिक पुस्तकों के हिंदी टीका पढ़कर बहस के नाम पर केवल चोंच लड़ाते हैं मैं उनसे अपने को अलग रखना चाहता हूँ आखिर बीस वर्ष तक संस्कृत विश्वद्यालयों की परंपरा में रहकर जिन आकर ग्रंथों का अध्ययन किया गया है उसकी गरिमा से समझौता करने की मेरी मजबूरी क्या है !
       हमने ज्योतिष विषय से एम. ए.पी.एच.डी.किया है हमारे संस्थान में बिलकुल ज्योतिष वैज्ञानिक की तरह लोगों को ज्योतिष की सेवाएँ लिखित एवं प्रमाणित रूप से दी जाती हैं !उसमें कई बार ऐसे लोग चोंच लड़ाने चले आते हैं जिनका ज्योतिष का स्वयं कोई ज्ञान नहीं होता है और किसी पढ़े लिखे ज्योतिषी से उनका कभी कोई संपर्क भी नहीं रहा होता है ,बहुत तंग करते हैं ऐसे लोग !
      बंधुओं ! ऐसे लोगों ने उन लोगों को विद्वान मान लिया है जिनका ज्योतिष से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं होता है समाज को आज कुछ ऐसा भ्रम सा हो गया कि अच्छे महात्मा और पढ़े लिखे विद्वान  की पहचान  उसके पास बहुत पैसे का होना, बड़े बड़े नेताओं का आना जाना लगा रहना या उसका विदेश में भी अपने काम के प्रचार प्रसार के लिए जाना आना आदि,अधिक से अधिक टी.वी.पर दिखाई पड़ना,या ज्योतिष आदि विषयों के विषय में टी. वी. चैनलों पर बैठ कर बड़ी बड़ी बातें करे,या कुछ पढ़ावे,या कुंडली देखना सिखावे या भविष्य बदलने की बात करने लगे लोग ऐसे लोगों को विद्वान समझते हैं आज कल और जिसके पास ये कुछ नहीं वो पढ़ा लिखा मूर्ख माना जाता है । यही वर्तमान समय में यही ज्योतिष आदि शास्त्रों के उपहास का प्रमुख कारण है और शास्त्रीय  विषयों का सम्मान एवं क्वालिटी भी इसी लिए घटी है !
        वस्तुतः इसप्रकार के प्रचार प्रसार से सम्बंधित सभी कार्य करने के लिए धन की अधिक आवश्यकता होती है और धन  दो प्रकार से मिलता है एक तो आता है और एक लाया जाता है बिलकुल किसी गाय के दूध की तरह वो जो स्वाभाविक दूध देती है वो तो सर्व गुण संपन्न होता है किंन्तु इंजेक्सन लगा कर जबरदस्ती निकला जाता है उसमें उतने गन नहीं होते ठीक इसी प्रक़र से ज्योतिष आदि विषयों में भी जब तक सच बोल कर जो पैसे समाज से मिलते हैं वो परिश्रम की कमाई कोई बर्बाद नहीं करेगा किन्तु कालसर्पदोष बताकर नग नगीनों का कमीशन लेकर,वास्तु दोष का बहम डालकर ,यदि ऐसा नहीं करोगे तो वैसा हो जाएगा आदि आदि  भय भावना भरके जो थोड़े प्रयास में अधिक पैसा कलेक्ट किया जाता है उसे प्रचार प्रसार में खर्च करने में अधिक कठिनाई नहीं होती है क्योंकि वो इंजेक्सन लगाकर निकाला गया दूध होता है! पुराने लोग पहले भी कहा करते थे कि बिना पाप के बहुत काम समय में अधिक धन नहीं कमाया जा सकता है। बिना धन के प्रचार प्रसार कैसे किया जा सकता है ! और यदि आप प्रचार प्रसार नहीं कर पाए तो आपके पास भीड़ नहीं होगी और यदि आपके पास भीड़ नहीं होगी तो आप विद्वान नहीं हैं यदि आप कुछ मंत्री मंत्रियों के साथ लिपट चिपट कर फोटो खिंचवा पाए तो और बड़े विद्वान ,और यदि आप टी.वी.चैनलों का मोटा मोटा पेमेंट करके वहाँ जाकर कुंडली कुंडली कहकर कुछ कुछ बोलने लगे तो आप और बड़े विद्वान  बन गए ,और यदि आप ज्योतिष पढ़ाने लगे तो आपके विषय में समाज जरूर समझ जाता है कि इन बेचारों ने यदि ज्योतिष पढ़ी न होती तो पढ़ा कैसे पाते पढ़ा रहे हैं इसका मतलब जरूर पढ़ी होगी !


में कमीशन के लिए ये सब कुछ है आदि है के पास पैसा
गलती से वो लोग कुछ ऐसे लोगों को ज्योतिषी मान बैठे हैं जिन लोगों का ज्योतिष शास्त्र से कोई संबंध ही नहीं होता है न किसी संस्कृत विश्व विद्यालय के ज्योतिष पाठ्यक्रम से ही उनका कोई सम्बन्ध रहा होता है फिर भी वो पैसे खर्च करके अपने को ज्योतिषी सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं!कुछ लोग टी.वी.पर पढ़ाने लगते हैं कुछ कुंडली समझने लगते हैं कुछ नेताओं मंत्रियों के साथ अपनी फोटो लेकर टी.वी.पर ज्योतिष की कुछ बातें बोल बताकर या इधर उधर लाप्प झप्प करके किसी प्राइवेट संस्था से अपने ज्योतिषी होने के विषय में कुछ लिखवा कर कुछ लोग अपने ज्योतिषी होने का पैसे के बल पर प्रचार प्रसार कर लेते हैं ऐसे लोगों के अनुयायी कई बार बहुत तंग करते थे वो ये मानने को ही तैयार नहीं होते हैं कि उनके ज्योतिषी कम पढ़े लिखे हुए हैं   हो जाएँ कि उनके ज्योतिषी जी के यहाँ मंत्रियों का आना जाना रहता है बहुत बन फटो खिंचवाकर खूँटों के साथ   से ही उनका 
    ये जितने प्रश्न आपने किए हैं यदि  इस परंपरा से कोई धर्म शास्त्र शिक्षित व्यक्ति होता  तो उसे इनके विषय में न केवल शास्त्रीय अपितु वैज्ञानिक उत्तर स्वयं ही पता होते दो चार न भी पता होते तो बताए जा सकते थे किन्तु बिलकुल नए व्यक्ति को सारी जानकारी बिना पढ़े  ही कैसे दी जा सकती है वैसे भी मैंने यहाँ कोई स्कूल तो खोल नहीं रखा है किसी ने कुछ पढ़ा हो तो कुछ समझाना आसान हो जाता है !अब आपसे ये जानना चाहता हूँ कि प्राचीन विद्याओं के विषय में किसी संस्कृत विश्वद्यालय से कुछ पढ़ा है और यदि पढ़ा है तो किस विषय में किस क्लास तक आप बता दें तो उससे मुझे अपनी बात आप तक पहुँचाने में आसानी हो जाएगी कुछ  मैं बताऊँगा कुछ आपसे पूछूंगा आपको समझ भी आ जाएगा और बात भी साफ हो जाएगी अन्यथा बेकार में चोच लड़ाने का कोई फायदा ही नहीं समाज में बहुत लोग बहुत कुछ नहीं मानते हैं तो वो उनका विषय है हमारा काम लिखना है जिन्होंने कुछ पढ़ा होगा वो समझेंगे । 
         आपने कहा भगवान श्री राम थे मैं नहीं मानता साबित करिए मैं कैसे साबित कर दूँ  ये शास्त्रीय स्वाध्याय एवं चिंतन करने से आपको स्वयं इसका ज्ञान होगा कोई और कैसे साबित करेगा ये आपके अंतस का विषय है अब कोई आम आदमी जिसे चिकित्सा के विषय में कुछ भी न पता हो वो कहे कि हार्ट सर्जरी मैं तो नहीं मानता तो डाक्टर को क्या करना चाहिए उसके सामने किसी व्यक्ति को लिटाकर उसकी सर्जरी करने लगना चाहिए खैर ,वो आपका विषय है
    

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