Pages

Monday, March 21, 2022

अनुसंधानों के लिए चुनौती बनी हैं प्राकृतिक घटनाएँ -

                                            अनुसंधानों के लिए चुनौती बनी हैं प्राकृतिक घटनाएँ -
     किसी महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं सरकारों और वैज्ञानिकों को इनके विषय में पहले से कुछ भी पता नहीं होता है | किसी बस्ती में बीस तीस फिट ऊँची पानी  की लहरें अचानक प्रवेश लगें तो उस समय  गाँव के लोगों को ही लहरों का सीधा सामना करना होगा |ऐसी घटनाओं को घटित होने से रोकना मनुष्यकृत प्रयासों से संभव नहीं है | इसलिए ऐसी घटनाएँ तो घटित होंगी ही यह तो  निश्चित है | जनता के बचाव के लिए सरकारें सतर्कता पूर्वक प्रयास अवश्य कर सकती हैं | 
      सरकारों के द्वारा प्रभावी  बचाव भी तभी किया जा सकता है जब घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता हो | घटनाओं के पूर्वानुमानों  को जाने बिना सरकारों के द्वारा भी अग्रिम उपाय कैसे किए जा सकते हैं |घटनाएँ घटित होने  के बाद में आपदा प्रबंधन की दृष्टि से ही प्रयास किए जा  सकते हैं | 
     आपदा घटित होने से पहले संभावित प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए प्रयास किया जाना तभी संभव है जब सरकारों को ऐसी आपदाओं के विषय में पहले से जानकारी हो |ऐसा तभी संभव है जब वैज्ञानिकों को ऐसी संभावित घटनाओं  विषय में सही सही अनुमान या पूर्वानुमान पता हों | यदि वैज्ञानिकों को ही नहीं पता होंगे तो वो सरकारों को ऐसे आवश्यक अनुमान या पूर्वानुमान  कैसे उपलब्ध करवा सकेंगे | वैज्ञानिक सहयोग के बिना सरकारें जनता के लिए सार्थक बचाव कार्य कैसे कर सकती हैं |
    वैज्ञानिकों ने जिस विज्ञान को पढ़ा समझा होगा उसके द्वारा यदि  प्राकृतिक घटनाओं को समझना ,अनुमान ,पूर्वानुमान  आदि लगाना संभव होगा तभी उनके द्वारा ऐसा कुछ किया जा सकता है किंतु जिस विज्ञान के द्वारा ऐसा किया जाना संभव ही न हो उसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को समझा ही कैसे जा सकता है | 
    यही कारण है कि भूकंपों के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत जो जो कारण बताए जाते हैं यदि उन वैज्ञानिक कल्पनाओं में थोड़ी भी सच्चाई है तो उसके आधार पर भूकंपों के विषय में अभी तक ऐसा कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि क्यों नहीं पता लगाया जा सका जिससे भूकंपों के विषय में कोई ऐसी प्रमाणित जानकारी जुटाई जा सकी होती अनुसंधानों के बिना जिसका पता लगाया जाना संभव न हो | 
     भूकंपों के कारणों के रूप में जो भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने को या पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाव को कारण बताया जाता है | ये तब तक केवल कोरी कल्पनाएँ हैं जब तक इनके विषय में कोई ऐसे सर्व स्वीकार्य  तर्कसंगत वैज्ञानिककारण भूत प्रमाण  प्रस्तुत  नहीं किए जाते हैं जिनका प्रत्यक्ष भूकंपों के साथ कोई संबंध सिद्ध होता हो | 
     ऐसे कारण बताए जाने में विज्ञान और वैज्ञानिक चिंतन क्या है  | तर्क की कसौटी पर ये कैसे सही उतरता है और इसमें साइंटिफिकता अर्थात अर्थात वैज्ञानिकता क्या है ?यदि इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकता जैसी रंच मात्र भी कोई चीज है तो इसके द्वारा आज तक  भूकंपों के विषय में कोई सही सटीक पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका | इसके बिना वैज्ञानिकों के द्वारा  रही उन बातों सही किस आधार  लिया जाए जिन्हें वैज्ञानिकों के द्वारा भूकंप आने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है |
  इसीप्रकार से मानसून आने और जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐसी कौन सी सर्व स्वीकार्य  तर्कसंगत वैज्ञानिक  तकनीक खोजी जा सकी है  जिसके आधार पर प्रतिवर्ष मानसून आने और  जाने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो प्रायः गलत निकलते देखा जाता है | इस प्रक्रिया में साइंटिफिकता  अर्थात अर्थात वैज्ञानिकता क्या है और वो किस प्रकार से सिद्ध होती है ?यदि इसे विज्ञान सम्मत मान भी लिया जाए तो  इसके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान आखिर सही क्यों नहीं घटित होते हैं ? 
      लोग भी ऐसी घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों के विषय में नहीं पता होगा तो वैज्ञानिक ही  सरकार एवं समाज को ऐसी घटनाओं के  विषय में बचाव के लिए आगे से आगे कैसे सतर्क कर पाएँगे | वैज्ञानिक लोग भी ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान तभी तो लगा सकते हैं जब उनके द्वारा किए  जाने वाले अनुसंधानों से ऐसा कर पाना संभव हो | 
      जिस विषय को विज्ञान मानकर उसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की कल्पना की जाती है उस विषय का ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से संबंध ही क्या है और उसमें प्रकृति संबंधी अध्ययनों की आधारभूत क्षमता क्या है ?यह स्वयं में अनुसंधान का  विषय है | 
       ऐसे ही समय समय पर तापमान घटने और बढ़ने के विषय में जो पूर्वानुमान लाए जाते हैं वे प्रायः गलत निकलते देखे जाते हैं | यदि ये किसी वैज्ञानिक आधार पर लगाए जाते हैं तो वो तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार क्या है और ये गलत क्यों होते हैं ?  
      वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने के लिए वास्तविक जिम्मेदार कारणों को अभी तक खोजा नहीं जा सका है  और न ही इसके विषय में सही पूर्वानुमान ही लगाने की विधि खोजी जा सकी है | इसके बाद भी समय समय पर  प्रदूषण बढ़ने और घटने के लिए जो जिम्मेदार कारण बताए जाते हैं उनके आधार पर जो पूर्वानुमान लगाया जाता है उसका वैज्ञानिक आधार क्या है और वे पूर्वानुमान सही न निकलने का कारण क्या  है ?
    इसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं को उपग्रहों रडारों के माध्यम से एक जगह घटित होता देखकर इनकी गति और दिशा के हिसाब से दूसरी जगह घटित होने के विषय में जो अंदाजा लगाया जाता है |इस प्रक्रिया में साइंटिफिकता  अर्थात वैज्ञानिकता क्या है और वो किस प्रकार से सिद्ध होती है ? 
                                                       अनुसंधान और घटनाएँ !
    जिन महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारण एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि खोजने की विधि विश्व विद्यालयों के संबंधित विभागों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है उसकी पढ़ाई होती है परीक्षाएँ होती हैं जिन्हें उत्तीर्ण करके छात्र रीडर प्रोफेसर बनकर पढ़ते देखे जाते हैं |उनमें से कुछ लोग  बड़े बड़े वैज्ञानिक बनकर उन्हीं विषयों में बड़े बड़े अनुसंधान करते देखे जाते हैं |ऐसे विषयों पर उन्हीं वैज्ञानिकों  के द्वारा बड़े बड़े बड़े सम्मेलन करके वैचारिक आदान प्रदान किया जाता है | उनके द्वारा जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में एक से एक विद्वत्ता पूर्ण भाषण दिए जाते हैं वही प्राकृतिक घटनाएँ जब घटित होने लगती हैं तब उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसा कुछ भी किया जाना संभव नहीं हो पाता है जिससे उनकी वैज्ञानिकता प्रमाणित हो सके | इसीलिए बीते एक दशक में जितनी भी ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं उनमें से किसी के भी विषय में कोई ऐसा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है जो सही निकला हो |  

 ऐसी कुछ घटनाएँ -
 
 महामारी -
 
                                                  महामारी विज्ञान  और चिंताएँ  
    
    महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना उनकी  प्रकृति समझना केवल गणितविज्ञान के द्वारा ही संभव है |बहुत समय से उपेक्षित रहने के कारण उसमें भी अनुसंधानों की आवश्यकता है फिर भी प्राकृतिक घटनाओं को समझने में अन्य विधाओं की अपेक्षा वह अधिक कारगर है | विश्व की किसी भी वैज्ञानिक विधा के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कुछ सही गलत अंदाजा भले लगा लिया जाए परंतु वास्तविक अनुमान या पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |संपूर्ण कोरोना काल में यह दुनियाँ देखती रही है | इसलिए मानवता के हित में वैज्ञानिकों और सरकारों का यह कर्तव्य बनता है कि  वे सभी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर उदारता पूर्वक गणितविज्ञान के गौरव को स्वीकार करें और उसे अपनावें ताकि महामारी और मौसम संबंधी प्राकृतिक संकटों से जूझती जनता को कुछ तो मदद पहुँचाई जा सके | 
      महामारी और मौसम संबंधी प्राकृतिक संकटों  को  समझने में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अभी कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है इसका मूल्यांकन इसी आधार पर कर लिया जाना चाहिए कि अभी तक जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं या महामारियाँ आई हैं उनमें से किसी के भी विषय में आधुनिक विज्ञान के द्वारा सही सही कोई अनुमान या पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | हर बार अपनी भविष्यवाणियों के गलत होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बताकर काम चलाना पड़ता है | गणित विज्ञान की दृष्टि से तो जलवायुपरिवर्तन जैसी कोई ऐसी विश्वसनीय घटना ही नहीं है वो एक प्रकार का प्रकृति कर्म है जिसकी समझ के अभाव में ऐसा भ्रम होता है | वो कल्पना यदि सच भी हो तो उसके भी उपाय तो उन्हें ही करने होंगे जिन्होंने ऐसा करने की जिम्मेदारी सँभाल रखी है | एक बार ब्यंजन बनाने की जिम्मेदारी सँभाल लेने वाला कोई रसोइया व्यंजनों के बनने बिगड़ने दोनों परिस्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार होता है | पकवान अच्छे बनें तो उसका श्रेय यदि रसोइया को जाता है तो पाक बिगड़ने के लिए किसी जलवायु परिवर्तन की कहानी गढ़कर स्वयं को जिम्मेदारी स्वीकार करने से बचा लेना ठीक नहीं है | 
      इसलिए व्यंजननिर्माण  में कहीं यदि कोई कमी रह भी गई है जिसके कारण उसका स्वाद बिगड़ा है तो उस कमी को सुधारना भी उसी की जिम्मेदारी है और यह कर भी वही सकता है क्योंकि पाक कला में वही कुशल है बाकी लोग तो केवल स्वाद लेना जानते हैं |  
    इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारी से जूझती जनता को तो केवल मदद चाहिए जलवायु परिवर्तन हो या कोरोना का स्वरूप परिवर्तन हो जनता का इससे क्या लेना देना | उसे तो बचाव के लिए जो अनुमान पूर्वानुमान आदि जो बताए जाएँ वे सही निकलने चाहिए | इतनी अपेक्षा है और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जनता ऐसे अनुसंधानों की मदद करती है | 
    किसी देश पर दुश्मन देश चढ़ाई कर दे उस देशवासियों को इसकी भनक ही न लगे तो ये कमी शत्रु सेना की नहीं अपितु उस देश के अपने खुपिया विभाग की है जो उसका पता लगाने में असफल रहा | ऐसे ही प्राकृतिक आपदाएँ हों या कोरोना जैसी महामारी के यदि शुरू होने के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा पाता तो तो इसके लिए वही जिम्मेदार हैं जिनपर  ऐसा करने की जिम्मेदारी डाली गई है और जिन्होंने स्वेच्छया ऐसी जिम्मेदारी सँभाली है | आवश्यकता पड़ने पर जलवायु परिवर्तन को दोष देना युद्धक्षेत्र में किसी सैनिक के हथियार डाल देने जैसा है | 
     ये चिंता की बात है कि महामारी पूरी तरह से समाप्त कब होगी इसके विषय में किसी वैज्ञानिक के द्वारा अभीतक कोई ऐसा अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं बताया जा सका है जिसका आधार कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक सिद्धांत हो | इतना ही नहीं अपितु कोरोना महामारी की जितनी भी लहरें अभी तक आई हैं उनमें से किसी के भी शुरू और समाप्त होने के विषय में अभी तक कोई भी पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है | ये लहरें भविष्य में कब तक आती रहेंगी इसके विषय में भी वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जा सकी है | इसके बाद भविष्य में कब कौन महामारी शुरू हो जाएगी किसी को कुछ भी नहीं पता है | ये चिंता का विषय है |
      कोरोना महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है अंतर्गम्यता कितनी है इस पर मौसम का क्या प्रभाव पड़ता है ,तापमान का कितना प्रभाव पड़ता है वायु प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है | इसके पैदा होने और समाप्त होने एवं इसकी लहरें आने जाने का क्या कारण है आदि आवश्यक प्रश्नों के अभी तक किसी ठोस सबूत के साथ कोई मजबूत उत्तर नहीं खोजे जा सके हैं |  ऐसे  मजबूत कारणों को समझे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और  इसे ठीक ठीक समझे बिना इसके आने और जाने के विषय में न तो अनुमान या पूर्वानुमान लगाना ही संभव है और न ही ऐसे संक्रमितों की चिकित्सा ही संभव है |किसी रोग का ठीक ठीक निदान हुए बिना उसके लक्षण प्रकृति आदि पहचाने बिना उसकी चिकित्सा कैसे की जा सकती है उसके लिए किसी औषधि का निर्माण किया जाना  कैसे संभव है |
      प्राचीन काल में कई छद्म चिकित्सकों के ऐसे दृष्टांत मिलते हैं जो रोग को न समझ पाने के बाद भी उसकी चिकित्सा के लिए कोई न कोई मध्यम मार्ग अपना लिया करते थे और वो तब तक उसे चलाते थे जब तक वह रोगी स्वस्थ नहीं हो जाता था | समय प्रभाव से वैसे भी रोगी को कभी तो स्वस्थ होना ही होता था और जब वह स्वस्थ हो जाता था तब उसके  स्वस्थ होने का श्रेय वे स्वयं ले लिया करते थे | दुर्भाग्यवश यदि चिकित्सा काल में ही रोगी की मृत्यु हो जाती थी तो जलवायु परिवर्तन की अवधारणा की तरह ही रोग,रोगी एवं कुदरत को जिम्मेदार बताकर उससे अपने को अलग कर लिया करते थे | 
     कुशल चिकित्सकों को चिकित्सा क्रम में इस बात का अनुमान होता ही है कि अमुक रोग से पीड़ित इस रोगी को इस औषधि की कितनी कितनी मात्रा  कितने कितने दिनों के अंतराल में देनी पड़ेगी और उसके प्रभाव से किस मात्रा के बाद कितने सुधार की संभावना होगी | इसके साथ ही ऐसे रोगी को पूरी तरह कितने दिनों में रोग मुक्त किया जा सकता है | ऐसा अनुमान लगाकर ही चिकित्सक उस रोगी की न केवल चिकित्सा प्रारंभ करते हैं अपितु चिकित्सा के परिणामों का परीक्षण भी किया करते हैं कि अपेक्षित लाभ हो भी रहा है या नहीं | कई बार तो प्रक्रिया बदलनी भी पड़ती है | चिकित्सा की यही पद्धति ठीक भी है | ऐसे चिकित्सकीय प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जाना मानवता के हित में होगा |
      वस्तुतः वर्तमान समय में कोरोना महामारी की पीड़ा ने समाज को इतना अधिक भयभीत कर दिया है कि उन्हें हमेंशा आशंका बनी रहती है कि न जाने कब कौन लहर आ जाए और कब कौन महामारी प्रारंभ हो जाए | इस महामारी ने न जाने कितने जीवन छीने ,कितने परिवार बर्बाद किए,आर्थिक बर्बादी के शिकार हुए कितने छात्रों की शिक्षा संकट में पड़ी इन सब बातों का अंदाजा लगाना महा मुश्किल है | बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है | महामारी से जो लोग प्रभावित हुए हैं या जिन्होंने वे भयावह दृश्य देखे हैं शायद ही वह इस जीवन में महामारी को भूल पाएँगे | 
     यह चिंता की बात है कि मौसम एवं महामारी के विषय  में अभी तक कोई ऐसी अनुसंधान पद्धति नहीं विकसित नहीं की जा सकी है जो किन्हीं ठोस प्रमाणों तर्कों के आधार पर आधारित हो एवं परीक्षण के धरातल पर खरी उतर सकी हो | ऐसे अनुसंधानों से क्या लाभ जिनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों से जूझती जनता को कोई मदद ही पहुँचाई जा सकी हो |कोरोना महामारी से जूझती जनता को दुनियाँ ने देखा है | ऐसी परिस्थिति में परिणाम विहीन वैज्ञानिक अनुसंधानों को अधिक दिन तक ढोया जाना ठीक नहीं है |इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है कि भविष्य में किसी महामारी के आने पर मनुष्य इतना बेबश न रहे जैसा अभी हुआ है | उसके पास महामारी का सामना करने की कुछ तो तैयारी हो | 
     बिल्ली से चूहों के बचाव को लिए बिल्ली के गले में घंटी बाँध कर बिल्ली के आने की आहट पाकर चूहों को भागने का अवसर उपलब्ध करा देना ये चूहों को बचाने के लिए एक जुगाड़ मात्र है इस प्रक्रिया को बिल्ली से चूहों को बचाने की दृष्टि से कोई वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं माना जा सकता है | आखिर कितनी बिल्लियों के गले में घंटियाँ बाँधी जाएँगी | महामारियाँ तो स्वभाव बदल बदलकर आती ही रहेंगी | उनके स्वरूप बदलने की बात कहकर कब तक वैज्ञानिक अपना पीछा छोड़ा लेते रहेंगे | 
     इसलिए बिना किसी पूर्वाग्रह के मेरी निजी राय है कि कोरोना महामारी अंतिम महामारी नहीं है|  इसके बाद महामारियाँ आना बंद तो नहीं हो जाएगा | ये तो पहले भी आती जाती रही हैं और बाद में भी आती रहेंगी | इसलिए इनकी पीड़ा से मानव जीवन को कम से कम प्रभावित होने देने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों की कोई ऐसी ठोस पद्धति खोजी जाए जिससे ऐसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो एवं समय रहते ऐसे आहार व्यवहार औषधि आदि की व्यवस्था की जा सके जिससे महामारी काल में भी महामारी मुक्त समाज निर्माण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके | 
 
                                                         प्रकृति खंड
 
     प्रायः देखा जाता है कि डेंगू ,कोरोना जैसे रोग एवं , भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं | इसे समझा कैसे जाए !
 आयुर्वेद की दृष्टि से स्वास्थ्य के क्षेत्र में कफ पित्त वात की बड़ी भूमिका होती है प्राकृतिक वातावरण में ये जब तक  उचित अनुपात में रहते हैं तब तक सब कुछ संतुलित बना रहता है |महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ कम घटित होती हैं और जो होती भी हैं उनके घटित होने की मात्रा अत्यंत कम होने लग जाती है | उनका वेग बहुत कम होता है इसीलिए उनसे बहुत कम लोग पीड़ित और प्रभावित होते हैं | शीतल मंद सुगंधित हवाएँ चलती हैं | बादल धीरे धीरे कर्णप्रिय गर्जन करते हैं| बज्रपात जैसी घटनाएँ बहुत कम सुनी जाती हैं | यह औषधीय वातावरण सुख शान्ति समृद्धि प्रदान करने वाला होता है 
      कफ पित्त बात के असंतुलित होने पर सूर्य चंद्र मंडल कृष्ण वर्णी होने लगते हैं | हमेंशा नीलवर्ण का दिखाई देने वाला आकाश कालिमा लिए हुए दिखाई देने लगता है | उल्कापात एवं ताराओं के टूटने की घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं |आकाश से धूल गिरने लगती है जिससे आकाश धूल धूसरित होते देखा जाता है | क्रुद्ध हवाएँ  कृष्णवर्णी होकर अत्यंत वेग से बहने लगती हैं |बार बार चक्रवात घटित होते देखे जाते हैं ऐसे ही अग्नि तत्व जलतत्व आदि क्रुद्ध हो जाते हैं | बादल गंभीर गर्जन करते हुए कहीं बहुत अधिक बारिश बाढ़ करते हैं और कहीं सूखा पड़ता है | भयावह गंभीर गर्जना के साथ बादलों के फटने की घटनाएँ सुनी जाती हैं | हिंसक बज्रपात होते देखे जाते हैं | भूकंप सुनामी जैसी घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जाने लगती हैं |पहाड़ों की आभा काली पड़ने लग जाती है | 
     जिस प्रकार से किसी रोग की औषधि के रूप में कोई आयुर्वेदिक काढ़ा बनाना है तो उसमें जो चीज जितनी डाली जानी चाहिए वो उतनी ही डाली जाएगी तभी उस प्रकार की औषधि तैयार हो पाएगी जैसी बनाई जानी होती है तभी वैसा स्वाद होगा और वैसे गुण होंगे | जिस उद्देश्य से जो समझकर बनाई जा रही होती है | वे घटकद्रव्य निर्धारित मात्रा से यदि कम या अधिक डाल दिए जाएँगे तो उनका स्वाद और गुणों में बदलाव आना स्वाभाविक ही है | ये एक गणितीय व्यवस्था है |जो प्रत्येक पदार्थ की निर्माण प्रक्रिया पर लागू होती है |  
    इसीप्रकार से कफ पित्त बात आदि त्रिदोषों की संतुलित मात्रा को ध्यान में रखकर ही सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के समय को निश्चित किया गया है और उन उन कालखंडों के गुण दोषों को उसी अनुपात में व्यवस्थित किया गया है कि कफ पित्त बात आदि का प्रभाव इस ऋतु में इतनी मात्रा में रहेगा तो प्राकृतिक वातावरण स्वस्थ होगा | 
     कफ पित्त और बात आदि का अनुपात असंतुलित होना सामान्य बात है क्योंकि प्रत्येक वर्ष में लगभग 120 दिन सर्दी,120 दिन गर्मी और 120 दिन वर्षा होने का अनुमानित समय माना जाता है| उसीहिसाब से ऋतुओं में होने वाले कफ पित्त बात अदि के संभावित गुण दोष बताए  गए हैं | उसी के अनुशार ऋतुओं में होने वाले संबंधित वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों अनाजों फूलों फलों आदि के रंग रूप गुण दोष आदि बताए गए हैं | कुलमिलाकर
आकाश से लेकर पाताल तक स्वस्थ प्राकृतिक वातावरण की जो परिकल्पना की गई है वह कफ पित्त बात आदि के उचित अनुपात को ध्यान में रखकर की गई है किंतु कफ पित्त बात आदि का  यह संतुलन यदि बिगड़ता है तो प्राकृतिक वातावरण भी बिगड़ेगा ही इसमें कोई संशय नहीं है |यह संतुलन जिस अनुपात में बिगड़ेगा प्राकृतिक वातावरण भी उसी अनुपात में बिगड़ेगा | यह असंतुलन कफ पित्त बात आदि तीनों में जिससे संबंधित होगा उससे ही संबंधित असंतुलन वातावरण में भी बढ़ेगा | इसलिए उसी से संबंधित प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं उसी से संबंधित आकाश से लेकर पाताल तक परिवर्तन होते देखे जाते हैं वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों अनाजों फूलों फलों आदि में उसी हिसाब से विकार उत्पन्न होते देखे जाते हैं | 
    फूलों की सुगंध, फलों, अनाजों के स्वाद और पौष्टिकता में उसी अनुपात में सूक्ष्म बदलाव आने लगते हैं | इसलिए इसी ऐसी असंतुलित ऋतुओं में वृक्षों बनस्पतियों शाक सब्जियों अनाजों फूलों फलों औषधियों तथा पूर्व निर्मित औषधियों आदि के रंग रूप गुण दोष आदि जो सामान्य वातावरण के हिसाब से बताए गए है वे उस समय वैसे नहीं रहते हैं |
    इसप्रकार से प्राकृतिक वातावरण में समय समय पर होते रहने वाले इस अस्वास्थ्यकर असंतुलन से प्राकृतिक   वातावरण अचानक बिषैला होता चला जाता है |जिसके प्रभाव से जहाँ एक ओर भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  बज्रपात आदि हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | 
                                         प्राकृतिक असंतुलन से होता है महामारियों का उद्भव और विकास
   सर्दी के बाद गरमी शुरू होती है गर्मी के बाद वर्षा और वर्षा के बाद पुनः सर्दी प्रारंभ हो जाती है | इन सभी ऋतुओं में कफ पित्त वात आदि का अनुपात एक जैसा नहीं रहता है और प्रत्येक ऋतु संधि में एक जैसा नहीं रहता है | सभी ऋतु संधियों में एक दूसरे से अलग अलग बदलाव होते हैं किंतु उस समय कफ पित्त वात आदि का संतुलन अवश्य बिगड़ जाता है जिससे रोग होने की संभावना रहती है इसीलिए मौसम बदलते समय कुछ समय तक रोगों का विस्तार होते देखा जाता है उसके बाद शरीर उस वातावरण का अभ्यासी हो जाता है | 
    इसीप्रकार से यदि ग्रीष्मऋतु में भीषण गरमी के बीच अचानक वर्षा होने लगे या शिशिर ऋतु में अचानक तापमान बढ़ने लग जाए या वर्षाऋतु में सूखा पड़ जाए तो यह एक प्रकार से मौसम बदलने जैसा होता है किंतु इसका वेग अधिक होता है | इस प्रकार के दीर्घकालीन प्राकृतिक परिवर्तनों के समय रोग महारोग आदि होने की संभावना बनते देखी जाती  है |  
    इस समय होने वाले सामान्य रोग भी महारोग का स्वरूप धारण करते इसलिए देखे जाते हैं क्योंकि पूरा वातावरण बिषैला हो चुका होता है हवा बिषैली होती है जल भी बिषैला हो जाता है इस बिषैलेपन के प्रभाव से खाने पीने की सभी वस्तुएँ बनस्पतियाँ औषधि निर्माण के घटक द्रव्य एवं निर्मित औषधियाँ आदि सभी कुछ बिषैला हो जाता है | फलों अनाजों के अंदर तक बिषैलापन व्याप्त होता है |इससे प्राकृतिक रोग महारोग महामारियाँ आदि जन्म लेने लगती हैं | बिषैलेपन का प्रभाव भिन्न भिन्न शरीरों पर अलग अलग प्रकार का दिखाई पड़ता है |
   महामारी के समय अलग से कोई विशेषप्रकार के लक्षणों वाले रोग नहीं होते हैं, अपितु बिषैले  वातावरण का प्रभाव प्राणियों पर पड़ने से उनके शरीर अपनी अपनी प्रतिरोधक क्षमता एवं के अनुशार उस विषैले प्रभाव का प्रतीकार करते हैं तो जिनमें  प्रतिरोधक क्षमता का स्तर जितना कमजोर होता है वे उतने रोगी हो जाते हैं | जो किसी रोग के प्रभाव से पहले से रोगी हुए चले आ रहे होते हैं वे उनमें उन्हीं रोगों के और अधिक बढ़ जाने की संभावना रहती है | इसलिए ऐसे समय में भी किसी एक प्रकार के रोग सभी को नहीं होते क्योंकि महामारी का विषैला प्रभाव तो सभी प्राणियों पर एक जैसा होता है किंतु सभी प्राणियों के शरीर एक जैसी क्षमता से युक्त नहीं होते हैं | इसलिए महामारी के समय में अलग अलग लक्षणों वाले रोग होते दिखाई पड़ते हैं | 
     इस प्रकार से बिषैलेपन से संक्रमित तो सभी शरीर होते हैं किंतु पीड़ित वही और उतने ही होते हैं जिस अनुपात में उनके शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी होती है |उसी अनुपात में उसी प्रकार के रोगों से वे रोगी होने  लगते हैं इसीलिए सभी प्राणियों पर संक्रमण का प्रभाव एक जैसा नहीं पड़ता है | प्राणियों की अपनी अपनी प्रतिरोधक क्षमता के अनुशार अलग अलग प्रकार के रोग होते देखे जाते हैं | जो शरीर पहले से किसी रोग से ग्रस्त चले आ रहे होते हैं |उनके संक्रमित होने पर उसी प्रकार के रोग और अधिक बल मिल जाता  है | 
     कुलमिलाकर यह प्राकृतिक बिषैलापन शरीरों  की प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट करता है इस प्रभाव से शरीरों में रोगों को सहने की सामर्थ्य समाप्त होने लग जाती है |ऐसी परिस्थिति में महामारी संक्रमितों को कोई औषधि लाभ नहीं करती है |  
                                      कफ पित्त वात के इतने शक्तिशाली होने का कारण !
     कई बार बिचार करने पर लगता है कि जिन महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाओं एवं रोग महारोग आदि के लिए जिम्मेदार कारण स्वरूप कफ पित्त और वात आदि त्रिदोषों का प्रकृति और जीवन पर इतना अधिक प्रभाव क्यों पड़ता है ये इतने अधिक शक्तिशाली क्यों होते हैं कि जब तक ये संतुलित बने रहते  हैं तभी तक तक शरीर स्वस्थ रह पाते हैं |इनके असंतुलित होते ही शरीर रोगी होने लगते हैं | यदि यह संतुलन बहुत अधिक बिगड़ जाता है तो लोग महामारी जैसे बड़े रोगों के शिकार होने लग जाते हैं | प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने लगती हैं | त्रिदोषों का संतुलन बिगड़ने से वृक्षों बनस्पतियों में भी उसी हिसाब के विकार उत्पन्न होते देखे जाते हैं |उनके  फूलों की सुगंध, फलों, अनाजों बनस्पतियों शाक सब्जियों औषधियों तथा पूर्व निर्मित औषधियों आदि के रंग रूप गुण दोष स्वाद और पौष्टिकता में उसी अनुपात में  विकार आने लग जाते हैं | त्रिदोष दूषित वस्तुओं का सेवन करने से लोगों के शरीर धीरे धीरे रोगी होने लगते हैं | रोग भयानक स्वरूप धारण कर लिया करते हैं |    
  प्रकृति से लेकर जीवन तक को आंदोलित कर देने वाले ये कफ पित्त वात आदि कोई बाहरी तत्व नहीं होते हैं | वस्तुतः ये प्रकृति एवं जीवन के निर्माण के आधारभूत प्रमुख कारण हैं और दृश्यमान जगत के कण कण में व्याप्त हैं| पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि,आकाश आदि पंचतत्वों में से जल,अग्नि,वायु ही कफ पित्त वात आदि हैं!यदि सर्दी गर्मी वर्षा नाम से प्रसिद्ध प्रमुख कालखंड हैं | इनके सम्मिलित हुए बिना प्रकृति और जीवन का निर्माण संभव ही नहीं है |
यही कारण है कि इनके असंतुलन का प्रभाव प्रकृति और जीवन पर एक समान रूप से पड़ता है | जहाँ एक ओर प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने लगती हैं वहीँ दूसरी ओर रोग महारोग आदि जीवन को प्रभावित करने लगते हैं | देशों में उन्माद द्वेष समाज में वैमस्य आदि उत्तेजना फैलने लगती है |    
     जल,अग्नि,वायु ही कफ पित्त वात आदि हैं |कोई भी संचार वायु के बिना संभव नहीं है | सामान्यतः इन तीनों में भी जल,अग्नि अर्थात कफ(शीतल) ,पित्त(उष्ण) आदि प्रमुख दो ही हैं | वायु तो जल के संयोग से शीतल एवं अग्नि के संयोग से उष्ण हो जाती है| इसलिए वायु के तापमान के विषय में अलग से बिचार किए जाने की आवश्यकता नहीं है | शीतलता का कारक चंद्र एवं उष्णता का कारक सूर्य होता है | इसमें भी सूर्य की प्रधानता रहती है | इस प्रकार से  कफ पित्त कफ पित्त वात के  कारक सूर्य चंद्र ही हैं |  ऐसी परिस्थिति में कफ पित्त वात आदि के संतुलन के बनने बिगड़ने को समझने के लिए सूर्य के संचार को समझना आवश्यक होता है |
       कफ का मतलब ठंडक,पित्त का मतलब गरमी एवं वात  का मतलब हवा है | शरीर के आतंरिक वातावरण में एवं शरीर के बाहरी प्राकृतिक वातावरण में जब तक कफ पित्त एवं वात की मात्रा उचित अनुपात में बनी रहती है तब तक शरीर स्वस्थ एवं प्राकृतिक वातावरण उपद्रव मुक्त रहता है |यह संतुलन जब जब बिगड़ने लगता है तभी अचानक उपद्रव घटित होने लगते हैं | जिन प्राणियों के शरीरों में यह अनुपात बिगड़ता है वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से रोगी होने लगते हैं | कफ ,पित्त एवं वात का अनुपात यदि प्राकृतिक वातावरण में असंतुलित हो जाता है तो महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाएँ  घटित होते देखी जाती हैं | 
   इनके असंतुलित होते ही डेंगू जैसे प्राकृतिक रोग एवं कोरोना महामारी जैसे महारोग भी तो सूर्य के प्रभाव से  पैदा होते और समाप्त होते हैं |कोई प्राकृतिक रोग महारोग (महामारी )आदि पैदा होने और समाप्त होने एवं उसकी संक्रामकता में अचानक कमी या बढ़ोत्तरी होने का कारण भी तो सूर्य ही है|अतएव मौसम एवं महामारी से संबंधित अनुसंधानों के लिए सूर्य के संचार का सही सही ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है |   
                                     समय के प्रभाव से ही घटित होती हैं प्राकृतिक घटनाएँ !ऐसे ही मौसम एवं महामारी से
    मनुष्यकृत घटनाओं का संभावित समय जिसप्रकार से मनुष्य वर्ष मास दिन घंटा मिनट आदि के रूप में निर्धारित करके फिर उसके पालन का प्रयास करता है | सरकारों के द्वारा बनाई जाने वाली समस्त योजनाएँ कार्यक्रम आदि भी समय का आश्रय लेकर ही बनाए जाते हैं |  व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसा ही होते देखा जाता है | ऐसी योजनाएँ जो व्यक्ति बनता है उसके साथ जो जो लोग सम्मिलित होते हैं केवल उन्हीं को उनकी जानकारी होती है | इसके अतिरिक्त भी जो लोग जिस किसीप्रकार से उन लोगों के संपर्क में होते हैं उन्हें कुछ जानकारी पहले से मिल जाती है बाक़ी लोगों को तो तभी पता लग पाता है जब ऐसी योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही होती हैं | 
     इसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाएँ भी समय के आधार पर ही निर्धारित होती हैं |इस निर्धारण में जो जो तत्व सम्मिलित होते हैं | उनके स्वरूपों में समय के साथ साथ उसप्रकार के परिवर्तन आने लगते हैं | ऐसी घटनाओं के सूक्ष्म चिन्ह केवल उन्हीं तत्वों में अनुभव किए जा सकते हैं जो घटनाएँ जिन  तत्वों से संबंधित होती होती हैं | 
     ऐसी घटनाओं को दूर दूर तक देखे बिना भी गणित विज्ञान के द्वारा इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | जिसप्रकार से किसी रेलवे स्टेशन पर  कोई ट्रेन आती हुई  दिखाई न देने पर भी सबको पता होता है कि कौन ट्रेन कितने बजे आएगी क्योंकि ट्रेनों के आने जाने की समय सारिणी उन्हें पता होती है | उसी समय सारिणी के आधार पर ही ट्रेनों के आवागमन के विषय में कई कई सप्ताह पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि कौन ट्रेन किस तारीख को कितने बजे जाएगी | 
    ऐसी परिस्थिति में यदि समयसारिणी पता न हो तो केवल ट्रेन देखकर इतने पहले पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है ट्रेन देखकर तो केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है जिसके गलत निकल जाने की संभावनाएँ अधिक बनी रहती हैं | 
    मौसम और महामारी के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान इसीलिए गलत निकलते देखे जाते हैं क्योंकि उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |  ऐसी घटनाएँ देख देखकर बताया जाता है कि अब आँधी आ रही है इसलिए अपने यहाँ भी आ सकती है | अब पड़ोसी देश प्रदेश जिले आदि में वर्षा हो रही है इसलिए अपने यहाँ भी हो सकती है | गंगा जी में अपने गाँव से तीन जिले पहले तक बाढ़ आ गई है इसलिए अपने यहाँ भी आ सकती है | कोरोना महामारी चीन समेत कई देशों में फैल चुकी है इसलिए अपने यहाँ भी फैल सकती है संक्रमितों की संख्या सभी जगह बढ़ या घट रही है इसलिए अपने यहाँ भी ऐसा हो सकता है | ऐसी घटनाओं को एक जगह घटित होती देखकर दूसरे स्थान के विषय में जो अंदाजे लगाए जाते हैं उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसलिए वे सही गलत कुछ भी हो सकते हैं | कोरोना महामारी के समय यही तो होता रहा भिन्न भिन्न वैज्ञानिकों के भिन्न भिन्न अंदाजे थे | कई बार एक ही घटना के विषय में अनेक वैज्ञानिकों के अंदाजों में इतनी भिन्नता देखी जाती थी कि वे एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते देखे जाते थे |
     मौसम या महामारी संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए जो मॉडल बनाए जाते हैं वे प्रत्यक्ष घटनाओं को आधार मानकर बनाए जा रहे होते हैं | अभिप्राय यह है कि पहले ऐसा हुआ था इसलिए अब भी ऐसा या वैसा होगा किंतु ऐसे अवैज्ञानिक अंदाजे सही होने की संभावनाएँ बिल्कुल नहीं होती हैं | आम लोगों के द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजों में और वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अंदाजों में कोई विशेष अंतर नहीं होता है और हो भी क्यों इसमें वैज्ञानिकता का दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता है | 
      जिस प्रकार से ट्रेन को  प्रतिदिन आते जाते  देखकर आगे भी उसी समय पर ट्रेन के आने जाने का अंदाजा जिस किसी ने भी लगाकर भविष्यवाणी कर दी थी कि परसों भी ट्रेन इतने बजे ही स्टेशन पर आएगी और इतने बजे जाएगी किंतु इसी बीच सरकार यदि ट्रेन के आने जाने का समय बदल देती है तो वह भविष्यवाणी गलत हो जाएगी | इसके लिए न तो ट्रेन को दोषी ठहराया जा सकता है और न ही न उसके चालक को और न ही सरकार को अपितु दोषी तो वह है जिसने भविष्यवाणी करने के लोभ में  इतने कमजोर अवैज्ञानिक आधार को चुनकर ऐसी सतही भविष्यवाणी की जिसके गलत होने पर अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए उसे  जलवायुपरिवर्तन जैसी ऊटपटाँग कहानियाँ गढ़नी पड़ीं कि जिस जलवायुपरिवर्तन के कारण आज जो ट्रेन दो घंटे लेट हुई है यदि इस जलवायुपरिवर्तन  को रोका नहीं गया तो आज के सौ दो सौ वर्ष बाद यही ट्रेन जलवायु परिवर्तन के कारण ही महीनों वर्षों देर से चला करेगी | 
                                                जलवायु परिवर्तन की अफवाहें 
     जलवायु परिवर्तन जैसे निराधार काल्पनिक खतरों का तर्कसंगत ठोस वैज्ञानिक आधार खोजे बिना उसके भय से समाज को क्यों भयभीत किया जाए या जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सभा सम्मेलन किए जाएँ कि ट्रेन अब न लेट हो इसके लिए हमें ट्रेनसंबंधी जलवायुपरिवर्तन को रोकना होगा | इसके लिए हम सबको संकल्प लेना होगा कि हम प्रतिदिन स्टेशन पर इकठ्ठा होकर ट्रेन को पहले की तरह उसी समय पर चलाने का प्रयास करेंगे ताकि ट्रेन का भविष्य में समय न बदले और ट्रेन अपने पहले वाले समय से ही आती जाती रहे | 
     इसी  प्रकार से प्रकृति के स्वभाव को समझने का कोई ठोस वैज्ञानिक प्रणाली न होने पर भी अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा बचाए रहने के लिए ही तो ऐसी निराधार परिकल्पनाएँ की जा रही हैं जबकि इन कल्पनाओं से, इनके विषय में बताए गए संभावित खतरों से,ऐसे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयासों से वास्तविक घटनाओं का कोई लेना देना ही नहीं होता है | सरकार जब चाहेगी तब दोबारा भी ट्रेन के आने जाने के समय में बदलाव कर सकती है | इसके लिए ट्रेन को देखकर भविष्यवाणी करने वाले दर्शकों से परामर्श करके ट्रेन के आने जाने के समय में बदलाव करने को सरकार बाध्य नहीं है | इसे कोई जलवायु परिवर्तन जनित घटना माने तो मानता रहे |यह भ्रम तभी टूटेगा जब ट्रेन संचालन के  संपूर्ण तंत्र की समझ विकसित हो और ट्रेन की परिवर्तित समय सारिणी हाथ लगे | तब पता लगेगा कि ट्रेन के जल्दी और देर में आने का कारण क्या है |इस सच्चाई को समझे बिना जलवायुपरिवर्तन का भ्रम टूटने का और कोई दूसरा विकल्प नहीं है |    
    ट्रेन संबंधी जलवायुपरिवर्तन की तरह ही महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं  के विषय में भी जलवायु परिवर्तन जैसा भ्रम होता है | ऐसी घटनाओं को एक जगह घटित होते देखकर अज्ञानवश हम पहले तो ऐसी कल्पना कर लें कि ये हमेंशा इसी प्रकार से इसी समय पर इसी जगह घटित होती रहेंगी | उसी के आधार पर आगे की भविष्यवाणियाँ कर दी जाएँ कि पिछले वर्ष इतनी वर्षा हुई थी इसलिए इसवर्ष भी उस समय उतनी ही वर्षा होगी या आँधी तूफ़ान आदि आएगा, किंतु  जब वे भविष्यवाणियाँ गलत निकलने लगें  तो  हम अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा बचाए रखने एवं अपनी  उपयोगिता सिद्ध करने के लिए तथाकथित भविष्यवाणियों के गलत होने का दोष किसी के सिर मढ़ने के लिए जलवायु परिवर्तन जैसी कल्पना कर डालें जिसका कोई वैज्ञानिक आधार ही न   हो |
    कुल मिलाकर ट्रेन संचालन के सिस्टम को समझे बिना जिस प्रकार हम ट्रेन के आने जाने के समय के विषय में हम बहुत सारा  भ्रम पाल लिया करते हैं उसी प्रकार से प्रकृति का स्वभाव समझे बिना ऊटपटाँग निराधार कल्पनाएँ कर कर के हम नित्यप्रति घटित हो रही प्राकृतिक आपदाओं के लिए जनता को दोषी ठहरा ठहराकर बचाव क्र जनता के आवश्यक कार्यों को अवरूद्ध करने लगते हैं | 
   वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने का कोई निश्चित कारण खोजा नहीं जा सका जिसे रोकने से वायु प्रदूषण का बढ़ना रुक ही जाएगा !अनुसंधानों की ये दुर्बलता भी देखी जानी चाहिए | किसी को नहीं दिखाई देती है किंतु वायु प्रदूषण बढ़ने के  कल्पित कारण  बता बता कर पराली जलाने वाले किसानों के विरुद्ध कार्यवाही की जाने लगती है | निर्माण कार्य रोके जाने लगते हैं, फेंकने वाले उद्योगों,वाहनों ईंट भट्ठों पर प्रतिबंध लगाया जाने लगता है |  
     इसी प्रकार से अन्य सभी प्रकार की हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने पर जनता जहाँ एक ओर उनसे डरी  होती है भविष्यवाणियाँ दूसरी ओर इसलिए यह बोलते रहना कि ऐसी घटनाएँ अभी और घटित होती रहेंगी बार बार घटित होंगी !न घटित हों तो कोई बात नहीं घटित होजाएँ तो भविष्यवाणी सच हो गई और बार बार गलत होती रहें तो जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग और न जाने क्या क्या कारण बताए जाने लगते हैं | 
       प्रकृति के स्वभाव को समझे जा सकने वाले वास्तविक विज्ञान के अभाव में ही अनुसंधान प्रक्रिया ऐसी कल्पित परिस्थितियों से गुजरने पर विवश है| जिस  दुर्बलता की कीमत समाज प्राकृतिक आपदाओं के समय तो चुकाता ही है उसे कोरोना जैसी महामारी के समय भी चुकानी पड़ी है |इसका कोई स्थाई समाधान खोजा  जाना बहुत आवश्यक है | 
 
                                             सूर्य की सामर्थ्य और प्रभाव 

      ऐसी परिस्थिति में महामारी तथा भूकंप वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जिस सूर्य को माना जाता है,उसी सूर्य के आधार पर किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा उस सूर्य के संचार को ठीक समझकर उसी के आधार पर ऐसी सभी घटनाओं को समझा जाना चाहिए एवं उसके विषय में अनुमान ,पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाना चाहिए | 
    महामारी तथा भूकंप वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के लिए यदि सूर्य को ही सर्वे सर्वा समझते हुए उसे ही ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार मान लिया जाए और  वैज्ञानिक अनुसंधानों का संपूर्ण ध्यान केवल सूर्य पर केंद्रित करके ही यदि ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाया  जाए तो क्या सूर्य इतना स्वतंत्र है कि वो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने न होने के विषय में निर्णय लेने के लिए वह स्वयं में कितना स्वतंत्र है |दूसरी बात ऐसी घटनाओं के घटित होने न होने के पीछे सूर्य का स्वार्थ क्या है | तीसरी बात ऐसी घटनाओं के घटित होने में दूसरे तत्व सूर्य का साथ क्यों देंगे | वे भी स्वतंत्र हैं | वर्षा के लिए समुद्र जल की आवश्यकता होगी, आँधी, तूफानों के लिए वायु तत्व का सहयोग चाहिए !भूकंप के लिए पृथ्वी तत्व का सहयोग लेना होगा | 
     इसलिए सूर्य इतना स्वतंत्र नहीं हो सकता उसकी परतंत्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सूर्य को निर्धारित समय पर उगना एवं अस्त होना पड़ता है |सभी ऋतुओं को अपने अपने समय पर आना और समय से जाना पड़ता है | सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं  के समय मेंसूर्य चंद्र एवं पृथ्वी को निर्धारित समय पर एक सीध में आना पड़ता है और सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं को अपने समय से ही घटित होना पड़ता है | ऐसी सभी घटनाएँ देखकर ऐसा नहीं लगता है कि सूर्य स्वतंत्र है | उसने कभी कोई अवकाश नहीं लिया है | सूर्य के पीछे कोई न कोई तो चेतनतत्व है जिससे अनुशासित होकर सूर्य अभी तक समय का अनुपालन करता चला आ रहा है |
      प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येक घटना उसी चेतनतत्व के आधीन है उसी के द्वारा लिखी गई पटकथा का अभिनय करते संपूर्ण चराचर जगत देखा जा रहा है | सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के घटित होने का वर्ष मास दिन आदि सभी कुछ आदिकाल से ही सुनिश्चित होता है तभी तो सूर्य ग्रहण अमावस्या में और  चंद्र ग्रहण पूर्णिमा में घटित होता है किंतु किस अमावस्या और पूर्णिमा में सूर्य और चंद्र ग्रहण घटित होंगे किसमें नहीं होंगे यह भी निश्चित होता है | कौन ग्रहण कितने बजकर कितने मिनट पर प्रारंभ होगा और कितने बजकर कितने मिनट पर समाप्त होगा यह भी  सुनिश्चित होता है | कौन ग्रहण सूर्य या चंद्र के कितने भाग को ढकेगा !पृथ्वी के कितने भूभाग पर कौन ग्रहण दिखाई देगा !सब कुछ पूर्व निर्धारित है | सूर्य को कब कितने बजे कहाँ पहुँचना है उसमें कब किस प्रकार के परिवर्तन होने हैं यह सब सृष्टि बनने के समय से ही समय के आधार पर निश्चित हो चुका होता है |
     सूर्य अस्त या उदय हो गया ,चंद्रमा निकल आया,कौन ग्रह कब किस नक्षत्र या राशि पर चला गया | ऋतुएँ आईं या चली गईं,, इस वर्ष सर्दी कम पड़ेगी या अधिक पड़ेगी | मानसून आ गया चला गया ,मौसम धोखा दे गया,बादल आ गए, वर्षा होने लगी या बंद होगई | आँधी आ गई बंद हो गई,भूकंप आ गया,सुनामी  आ गई | डेंगू शुरू हो गया या समाप्त हो गया? महामारी आ गई या चली गई आदि ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हम ऐसा कहने सुनने के अभ्यासी उसी तरह हो गए हैं जिस प्रकार से ट्रेन आ गई या ट्रेन चली गई | चुनाव हो गया या होगा | राशन बँट गया,वैक्सीन लग गई,सड़क बनगई ,पंखा चल गया भोजन पक गया, कार भागती चली जा रही थी,आपरेशन हो गया आदि जीवन से जुड़ी प्रायः ऐसी सभी घटनाओं के लिए हम घटनाओं को ही कर्ता बना दिया करते हैं | 
     वस्तुतः मनुष्यकृत घटनाएँ जिस किसी के द्वारा की जा रही होती हैं उसके पीछे निर्णय लेने वाला कोई न कोई 
 निर्णायक चेतनतत्व अवश्य होता है |सरकार के द्वारा ट्रेन के आने जाने का समय क्रम निर्धारित किया गया होता है कि किस ट्रेन को कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचना होगा और कितने बजे वहाँ से चलना होगा | सरकार के इस आदेश का पालन करने के लिए ड्राइवर को रखा गया होता है जिसे उतने बजे ट्रेन दौड़कर समय से उस स्टेशन पर पहुँचना होता है और निर्धारित समय पर उस स्टेशन से ट्रेन लेकर आगे निकलना होता है | इस योजना में ट्रेन कहीं नहीं सम्मिलित होती है और कहाँ कब पहुँचना है इससे भी उसका कोई लेना देना नहीं होता है | ऐसी परिस्थिति में ट्रेन को देखकर ट्रेन के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है कि ये कब किस स्टेशन पर पहुँचेगी और कितने बजे वहाँ से छूटेगी | 
     इसी प्रकार से महामारी तथा भूकंप वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं को किसी यंत्र से या प्रत्यक्ष देखकर देखकर उसके विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | जिस प्रकार से प्रतिदिन किसी ट्रेन को आते जाते बार बार देखकर इस बात का अंदाजा लग जाता है कि उसके आने और जाने का समय क्या है | इस आधार पर आगे के विषय में भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि कल परसों आदि भी ये ट्रेन इतने बजे ही आए और जाएगी किंतु ऐसा कहने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है अपितु इसका आधार यही है कि ये प्रतिदिन इतने बजे आती और इतने बजे जाती है |यदि यह ट्रेन चेतन होती इसलिए अपने आने का एवं उसके समय का निर्णय स्वयं ले रही होती तब तो एक सीमा तक इसे अभ्यासी मानकर ऐसा सोचा जा सकता था कि ऐसा आगे भी होता रह सकता है |
     जिस प्रकार से पक्षी शाम को अपने बसेरों की ओर लौटते हैं,मुर्गा प्रतिदिन प्रातः काल बोलता है | कोयल बसंत में कूकती है ऐसे और भी बहुत सारे पशु पक्षी अपने अपने समय के अभ्यासी हैं किंतु  ट्रेन सजीव न होने के कारण उसके आने जाने के समय का निर्णय सरकार ले रही होती है जो ट्रेन के साथ आते जाते आगे पीछे दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ रही होती है और न ही ट्रेन चालक के कान में कुछ कहती दिख रही होती है कि कहाँ कब रुकना है कब नहीं | यदि ट्रेन के आने जाने के समय में बदलाव सरकार कर भी दे तो वो उसे भी सरकार न तो ट्रेन चालक के कान में बताने आएगी और न ही ट्रेन चालक ट्रेन के कान में बताएगा | इसके बाद भी ट्रेन का आना जाना सरकार के द्वारा निर्धारित दूसरे समय पर प्रारंभ कर दिया जाएगा | 
   
     प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारी के समय में जनता को इसप्रकार के निराधार कल्पित अनुसंधान जनित अनुभवों को खूब सहना पड़ा है | इसलिए इसे रोका जाना चाहिए अन्यथा जनता उन प्राकृतिक घटनाओं से जूझ रही होती है जिनके विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कभी कुछ बताया नहीं गया होता है बाद में जहाँ एक ओर प्राकृतिक आपदाएँ एवं कोरोना जैसी महामारियाँ तंग कर रही होती हैं वहीँ दूसरी ओर वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर तरह तरह की अफवाहें फैलाई जा रही होती हैं जिनका मूलघटनाओं से कोई लेना देना होता भी है या नहीं पता नहीं | 
      अनुसंधानों की दृष्टि से संभव है कि ट्रेन के आने जाने के विषय में पूर्वानुमान लाभ भी लिया जाए किंतु सरकार समय सारिणी बदल भी तो सकती है तो ड्राइवर को उसके अनुसार आना जाना पड़ेगा | ऐसी परिस्थिति में वह अंदाजा गलत निकल जाने पर उसे भी मौसम की तरह ही ट्रेन के लिए भी जलवायु परिवर्तन जैसा कोई कारण कल्पित बताना पड़ेगा कि पहले ऐसा नहीं होता था अब ऐसा होने लगा है | 
                                                 
                                                          

 
 महामारी

 
 महामारी और मौसम 
 
 महामारी
 


  
 
 
 पूर्वानुमान लगाने में समय की भूमिका 
        सूर्य आदि ग्रहों के संचार में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है समय के अनुशार सूर्य के संचार में बदलाव होते रहते हैं उन बदलावों से ही ऋतुओं का जन्म होता है समय के अनुशार ही सभी| समय के अनुशासन के कारण ही तो प्रातः काल का समय होने पर सूर्य को उगना पड़ता है और सायंकाल का समय होने पर सूर्य को अस्त होना  पड़ता है | कुल मिलाकर समय के साथ साथ समय के अनुशार ही सूर्य को भी बदलना पड़ता है | समय जैसे जैसे बीतता जाता है सूर्य के स्वभाव प्रभाव स्वरूप आदि में वैसे वैसे परिवर्तन होते देखे जाते हैं |     यहाँ तक कि सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ भी अपने निर्धारित समय पर ही घटित होती हैं
       समय एक सा कभी नहीं रहता है वह हमेशा बदलता रहता है  बीतने के साथ साथ समय में बदलाव होते चलते हैं | समय के साथ साथ इस चराचर संसार का सबकुछ  बदलता रहता है समय के साथ साथ सूर्य भी बदलता है सूर्य के साथ सारा ग्रह नक्षत्र मंडल बदलता है उसका प्रभाव वातावरण पर पड़ता है जिससे संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बदलता है मौसम बदलता है ऋतुएँ बदलती हैं दिन बदलते है दिनों में भी अलग अलग समय आता है उसके अनुशार सब कुछ बदलता रहता है पेड़ पौधे बनस्पतियाँ मनुष्यादि सभी जीवजंतुओं में बदलाव होते देखा  जाता है |        समय के ही साथ साथ  प्राणियों  के स्वभाव बदलते देखे जाते हैं उनकी अवस्था स्वरूप भावनाएँ संबंध स्वाद पसंद नापसंद स्वास्थ्य सुख दुःख संयोग वियोग आदि सबकुछ  समय के साथ साथ बदलता चलता है |महामारी के समय में भी समय के अनुशार ही संक्रमण बढ़ता और घटता है | समय के अनुशार ही लोग स्वस्थ एवं अस्वस्थ होते हैं | समय के साथ ही महामारियाँ जन्म लेती हैं और समय के साथ ही महामारियाँ समाप्त होती हैं कुलमिलाकर समय ही समस्त परिवर्तनों की जड़ है | 
      जिस प्रकार हवा किसी को नहीं दिखाई पड़ती है जबकि पाँचों तत्वों में हवा ही गति कारक है उसी  से  वस्तुएँ हिलती डुलती एवं गति करती हैं किंतु हवा जिस चीज को उड़ाकर  होती है वह चीज तो उड़ती हुई दिखाई पड़ती है किंतु उड़ती हुई हवा नहीं दिखाई पड़ती है | चूँकि उनके उड़ने का आधार वायु है इसलिए यह वायु ही निश्चय करेगा कि उसके साथ हवा में उड़ने वाले पत्ते तिनके कपड़े धूल आदि उड़कर कब कहाँ पहुँचेंगे |इसलिए इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए हवा की गति दिशा आदि के आधार पर ही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना पड़ेगा | हवा में उड़ने वाले पत्ते तिनके कपड़े धूल आदि को देखकर लगाया गया  अनुमान पूर्वानुमान आदि सच नहीं होगा | 
      इसी प्रकार से समय किसी को नहीं दिखाई पड़ता है जबकि समय के साथ प्रकृति, जीवन और स्वभावों में होने
वाले बदलाव तो सबको दिखाई पड़ते हैं | ऐसी परिस्थिति में उन बदलावों को देखकर यदि संभावित परिवर्तनों के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाया जाएगा तो वह इसलिए सच नहीं होगा क्योंकि उन परिवर्तनों के होने का आधार तो समय है | इसलिए  संभावित समय जैसा होगा वदलाव भी वैसे होंगे | समय अच्छा होगा तो बदलाव अच्छे होंगे अर्थात प्रकृति और जीवन में अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित होंगी और समय बुरा होगा तो ऐसे समय में बदलाव भी बुरे ही होंगे अर्थात भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात महामारी जैसी घटनाएँ घटित होंगी |ऐसी  परिस्थिति में घटनाओं को देखकर भावी बदलावों का पूर्वानुमान लगाना सही नहीं होगा |घटनाओं का आधार चूँकि समय है इसलिए घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का आधार भी समय को ही माना जाना चाहिए | 
    समय दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए किसी प्रकार के अनुसंधान के लिए समय को आधार कैसे बनाया जाए | इसके लिए कहा गया कि 'कालज्ञानंग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधार पर किया जा सकता है | ग्रहों का ज्ञान गणित के द्वारा किया जा सकता है | समय को के लिये हमें सूत्रों से गणित द्वारा ग्रह तथा तारों की स्थिति ज्ञात करनी पड़ती है, अथवा पंचांगों से उसे ज्ञात किया जाता है। ग्रह तथा नक्षत्रों की स्थिति प्रति क्षण परिवर्तनशील है, अतएव प्रति क्षण में होनेवाली घटनाओं पर ग्रह तथा नक्षत्रों का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार का पड़ता है।
 
      संसार में दिखने वाले सभी बदलाव समय के आधार पर समय के ही साथ साथ होते रहते हैं प्रत्यक्ष नेत्रों से वे बदलाव तो दिखाई पड़ते हैं किंतु बदलता हुआ समय किसी को  दिखाई नहीं पड़ रहा होता है इसीलिए उसमें कब किस प्रकार के बदलाव हो रहे हैं वह भी नहीं दिखाई पड़ते हैं जबकि समय के साथ संसार की समस्त वस्तुओं प्राणियों आदि में जो बदलाव होते हैं वे दिखाई पड़ते हैं |इनमें से किसी बिषय का पूर्वानुमान लगाने के लिए इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि समय के संचार में कब किस प्रकार के बदलाव होने की संभावना है उन बदलावों का अच्छा या बुरा प्रभाव प्रकृति और जीवन पर कैसा पड़ेगा और उसके प्रभाव से प्रकृति और जीवन  में कब किस प्रकार के बदलाव होते दिखाई पड़ेंगे | उसके प्रभाव से कब कैसी घटनाएँ घटित होती दिखाई पड़ सकती हैं | ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान समय के आधार पर  लगाया जा सकता है किंतु समय के संचार को ऐसे प्रत्यक्ष रूप से देख पाना मनुष्य के बश की बात नहीं है |
     इस चराचर संसार में जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ हैं प्राकृतिक रोग हैं महामारियाँ हैं या अन्य जितने भी छोटे से छोटे या बड़े से बड़े बदलाव होते दिखाई पड़ते हैं | ऐसा होने के पीछे का आधारभूत वास्तविक कारण तो समय ही है जबकि बदलता हुआ समय किसी को दिखाई नहीं पड़ता है |
 
इसलिए समय के बदलाव  के साथ साथ बदलते चलने वाले सूर्य चंद्रादि ग्रहों  में  जिस  प्रकार के बदलाव आते हैं उन बदलावों के प्रभाव से प्राकृतिक वातावरण में कितने समय बाद किस प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं उनका पूर्वानुमान  लगाया जा सकता है | प्राकृतिक वातावरण पर पड़ने वाले सूर्य के न्यूनाधिक प्रभाव को समझना यदि संभव हो तो भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के साथ साथ कोरोना जैसी महामारियों    के बिषय में भी मध्यावधि पूर्वानुमान लगाए जा  सकते हैं ,क्योंकि सूर्य मंडल में या उसके संचारक्रम में होने वाले बदलावों का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ने में एवं उसे मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं या महामारी आदि जीवन संबंधी घटनाओं के रूप में परिवर्तित होने में कुछ दिन महीने वर्ष आदि तो लग ही जाते हैं |यदि सूर्य में  होने वाले परिवर्तनों के आधार पर यदि भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं या महामारी आदि जीवन संबंधी घटनाओं के बिषय में कुछ दिन महीने वर्ष आदि  पहले भी पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो पाया तो इससे भी मानवता की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत मदद मिल सकती है |
      समय के संचार को समझकर ही उसी के आधार पर वेदवैज्ञानिक लोग जिस प्रकार से किसी ग्रहण के बिषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया करते  हैं उसी प्रकार से भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में उसी समय के संचार के अनुशार पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसके अतिरिक्त सभी परिवर्तनों की तरह ही समय के अनुसार घटित होने वाली कोरोना जैसी महामारियों के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |महामारी से संबंधित संक्रमण कब कितना बढ़ेगा कब कितना घटेगा एवं महामारी समाप्त कब  होगी !समय के बदलाव के आधार पर ही ऐसी आवश्यक बातों का पूर्वानुमान लगाना संभव  हो  सकता है |
 
                     अच्छे बुरे समय का ज्ञान करने के लिए समझना होगा सूर्य संचार
        इनमें से जल,अग्नि अर्थात कफ और पित्त का अभिप्राय सर्दी और गर्मी ही प्रमुख हैं |यदि ग्रहों की दृष्टि से देखा जाए तो सर्दी से अभिप्राय चंद्र तथा गर्मी का प्रतिनिधित्व सूर्य करता है | विशेष बात यह है कि चंद्र शीतलता का प्रतिधित्व अवश्य करता है किंतु प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव सूर्य का ही दिखाई पड़ता है ,क्योंकि पूर्णमासी को चंद्रमा पूर्ण प्रकट दिखाई देता है उस रात्रि को देखने में अच्छा तो लगता है किंतु उससे ठंड होने का अनुभव नहीं होता है | ऐसे ही अमावस्या को चंद्रमा के क्षीण हो जाने पर गर्मी अधिक नहीं पड़ते देखी जाती है | वैसे भी चंद्रमा तो सूर्य के  प्रकाश से ही प्रकाशित है | इसलिए चंद्रमा का चमकना एवं उसकी शीतलता सूर्य के आधीन ही रहती है सूर्य जैसे जैसे अपना प्रभाव प्रकाश आदि कम करता जाता है वैसे वैसे चंद्र का प्रभाव अँधेरा शीतलता आदि बढ़ते देखी जाती है| ग्रीष्मऋतु में सूर्य का प्रभाव बढ़ने पर वातावरण में गर्मी बढ़ते देखी जाती है और शिशिर ऋतु में सूर्य का प्रभाव घटने से वातावरण में सर्दी होते दिखाई देती है | इसी प्रकार से दिन में सूर्य की उपस्थिति रहने के कारण रात्रि की अपेक्षा दिन का तापमान बढ़ा रहता है | 
    कुलमिलाकर बात जो तापमान के बढ़ने और घटने की है इसका कारण तो सूर्य ही है | सूर्य का प्रभाव बढ़ते ही तापमान बढ़ जाता है और सूर्य का प्रभाव घटते ही तापमान कम होना शुरू हो जाता है | इसप्रकार से प्राकृतिक वातावरण में तापमान का कम और अधिक होना दोनों ही परिस्थितियाँ सूर्य के ही आधीन हैं |  मौसम बनता बिगड़ता है | मानसून आता जाता है | ऋतुखण्डों में उनका प्रभाव अत्यधिक बढ़ने सम रहने एवं कम होने का कारण सूर्य ही है | सूर्य की ऊष्मा के कारण ही हवाओं, बादलों, चक्रवातों भूकंपों एवं अन्य मौसमसंबंधी परिघटनाओं का जन्म होता है। पृथ्वी पर बेमौसम बारिश, बाढ़, सूखा, ग्लेशियरों के पिछलने जैसी घटनाएँ भी तो सूर्य संबंधी परिवर्तन के ही प्रभाव हैं |मौसम में परिवर्तन अचानक हो सकता है एवं इसका अनुभव किया जा सकता है जबकि ऋतु परिवर्तन अपने समय से ही होता है ऋतुध्वंस कभी भी हो सकता है किंतु ये बात हमेंशा पृथ्वी के मौसम रूपी इंजन को चलाने वाला ऊर्जा स्रोत सूर्य ही है। सूर्य की ऊर्जा व ऊष्मा के बगैर कोयला, जीवाश्म ईंधन, पौधे, हवा और बारिश ही नहीं अपितु जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। सूर्य ही हवा के गर्म या ठंडी, तूफानी या शांत, बादलों भरी या स्वच्छ और आर्द्र या शुष्क होने का निर्धारण करता है।
     ऐसी परिस्थिति में सूर्य के प्रभाव परिवर्तन से ही कफ पित्त वात आदि का संतुलन बनता बिगड़ता है | इसलिए इसे समझने के लिए सूर्य के संचार को समझना आवश्यक होता है |सूर्य के  स्वभाव और प्रभाव में समय समय पर आते रहने वाले परिवर्तनों के कारण ही तापमान बढ़ता घटता है |उसका प्रभाव वायु के संचार पर पड़ता है | 
    भविष्य में घटित होने वाले सूर्य के संभावित संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना होता है यह प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा संभव नहीं है |इसे  उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि से देखा नहीं जा सकता और अलनीनो लानिना जैसी छिछली कल्पनाओं के आधार पर सूर्य के संचार या सूर्य चंद्र ग्रहण के विषय में अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है | इसके लिए काल्पनिक विज्ञान से ऊपर उठकर वास्तविक विज्ञान के आधार पर सोचे जाने की आवश्यकता है |  
      विशेष बात यह है कि यदि उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि के द्वारा निकट समय में घटित होने वाले संभावित ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाना जिस किसी भी प्रकार से संभव मान भी लिया जाए तो भी भविष्य संबंधी ग्रहणों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाने के परिकल्पना कैसे की जा सकती है जबकि आज के हजारों वर्ष बाद घटित होने वाले ग्रहणों के विषय में जो पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | वह एक एक सेकेंड सही घटित होता है | ऐसा तभी संभव हो पाया है जब प्रत्यक्ष की जगह परोक्ष विज्ञान को आधार बनाकर ऐसी घटनाओं की गणना  की गई है | 
  इसकी एक विशेषता यह भी है कि इस ज्ञान के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों को कोई अलनीनो लानिना एवं जलवायु परिवर्तन आदि प्रभावित नहीं कर पाता है ये हर हाल में सही ही घटित होता है|सूर्य चंद्र ग्रहण हों या सभी ग्रहों के उदयअस्त के समय के विषय में गणित के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि कभी गलतनहीं हुए हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में यदि सूर्य और चंद्र के संचार को गणित के द्वारा समझा जा सकता है इनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है तो उसी सूर्य के प्रभाव से घटित होने वाली महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है |                      

                              प्रकृति और जीवन को समझने में सक्षम है गणित विज्ञान !
    प्राचीन विज्ञान वेत्ताओं का मानना है कि महामारी एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना  केवल गणितविज्ञान के द्वारा संभव है | इसीलिए प्राचीन काल में मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने के लिए केवल गणित विज्ञान का ही सहारा लिया जाता था |वस्तुतः मौसम और महामारियों का कारक सूर्य को माना जाता है | इसलिए सूर्य के संचार को ठीक ठीक समझकर उसी के आधार पर मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
     सूर्य सिद्धांत जैसे अनेकों आर्ष ग्रंथों में प्रकृति एवं जीवन को समझने के लिए गणित के सूत्रों का उपयोग किया गया है | गणित के द्वारा सूर्य आदि ग्रहों के संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बताई गई है | उसी पद्धति से पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के एक सीध में आने के विषय में सही सटीक अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाकर गणित के द्वारा ही सूर्य चंद्रग्रहणों का भी सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
    ऐसी परिस्थिति में जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में  हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तो इन्हीं के संचार परिवर्तनों से घटित होने वाली महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है| इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | 
                                                                   गणितागत  पूर्वानुमान !
     विज्ञान में गणित की महत्ता  बताते हुए आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के एक प्रोफेसर  गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं -
    "हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के जो फार्मूले हैं जो कि कागज़ पेन से लिखे जाते हैं वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं और वो कागज़ पेन से की गई कैलकुलेशन वो प्रकृति में क्या हो रहा है ये बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी पूरी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा  गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हैं लेकिन वो कागज़ पेन से की हुई चीजें वास्तविक प्रकृति में क्या हो रहा है बड़ी बड़ी चीजें कैसे घटित हो रही हैं ये बता देती हैं | "
       इसी प्रकार से एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित में आंकड़ों की प्रधानता है और विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए है।वैसे तो गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रम्हांड में तारा एवं ग्रहों की दूरी के लिए कर रहे हैं ।"    
    एक वैज्ञानिक कहते हैं -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
   एक वैज्ञानिक कहते हैं -  "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है।"
  गैलिलियो के अनुसार, “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”
      एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।"
       कुलमिलाकर प्राकृतिक बिषयों में गणित के बिना विज्ञान अधूरा होता है|किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने के बिषय में विज्ञान के द्वारा यदि यह पता लगा भी लिया जाता है कि ऐसी घटना घटित होने की संभावना है|तो प्रश्न उठता है कि कब घटित होगी उसके लिए गणित की आवश्यकता होती है | इसलिए गणित और विज्ञान दोनों मिलकर ही प्राकृतिक रहस्यों  को सुलझा सकते हैं |
    भारत की जो प्राचीन पारंपरिक ज्ञान की पद्धति थी उस विज्ञान का गणित ही मूल आधार है | उस गणित के बलपर वे बड़ी बड़ी घटनाओं के रहस्यों को सुलझा लिया करते थे | इसीलिए उन्हें वर्तमान समय की तरह यंत्रों पर आश्रित नहीं होना पड़ता था |                                            
   - जीवन खंड -
 
 
मनुष्य प्रयास पूर्वक  महामारी के प्रभाव से अपना बचाव भी कर सकते हैं !
 
    विशेष बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से लोग प्रभावित ही होंगे ऐसा आवश्यक नहीं है कई बार ऐसी घटनाएँ घटित होकर निकल जाती हैं जिसमें प्रभावित हुए लोग सुरक्षित बचे रहते हैं | कभी कभी ऐसी दुर्घटनाओं से समाज पीड़ित होते देखा जाता है | यही कारण है कि महामारी भूकंप बाढ़ आँधी तूफान जैसी घटनाओं में बहुत लोग प्रभावित होते हैं जबकि उनमें से कुछ लोग मारे भी जाते हैं | 
     जिस समय प्राकृतिक वातावरण में कफ ,पित्त एवं वात का अनुपात असंतुलित होता है उस समय महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि  घटनाओं का निर्माण होता है|  उसी समय प्राणियों के शरीरों में यह अनुपात बिगड़ने पर वे भी ऐसी घटनाओं से प्रभावित होते हैं , जबकि उन्हीं क्षेत्रों में उन्हीं स्थानों पर रहने वाले बाक़ी लोग सुरक्षित बने रहते हैं | यही कारण है कि कोरोना जैसी महामारी हो या अन्य प्रकार की प्राकृतिक दुर्घटनाएँ जब जहाँ घटित होती हैं तब तहाँ बहुत सारे वे लोग आहार विहार रहन सहन साधना संयम सदाचरण आदि के द्वारा अपने कफ ,पित्त, वात आदि त्रिदोषों को असंतुलित होने से बचाकर स्वस्थ और सुरक्षित बने रहते हैं | ऐसे लोग अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय तो सुरक्षित बने ही रहते हैं कोरोना महामारी के समय में भी वे सुरक्षित बचे रहे हैं | कई बार ऐसे लोग भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाओं में फँस कर भी सुरक्षित निकल आते हैं उन्हें एक खरोंच तक नहीं लगती है | 
    इसलिए इन त्रिदोषों को भली भाँति समझा जाना चाहिए और प्राकृतिक वातावरण तथा आतंरिक वातावरण का निरंतर परीक्षण करते रहना चाहिए कि कहीं ये असंतुलित तो नहीं हो रहे हैं यदि प्राकृतिक वातावरण में ऐसा होते दिखाई दे तो निकट भविष्य में असंतुलन में सम्मिलित  तत्वों के अनुशार प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाना चाहिए |
     महामारी तो प्राकृतिक वातावरण में व्याप्त होती है उससे मनुष्यों को संक्रमित होना ही पड़े ये आवश्यक नहीं है ,क्योंकि महामारी का प्रभाव तो सभी पर एक जैसा पड़ता है किंतु संक्रमित कोई होता है कोई नहीं भी होता है संक्रमितों में भी कुछ लोगों की मृत्यु भी हो जाती है किंतु बहुत लोग संक्रमित होकर स्वस्थ भी हो जाते हैं | शरीर तो सभी प्राणियों के प्रायः एक जैसे ही होते हैं किंतु सभी प्राणी तो इस प्रकार से संक्रमित नहीं होते जैसा मनुष्यों में हाहाकार होता है और न ही इतनी बड़ी संख्या में उनकी मृत्यु ही होते देखी जाती है |छोटे बड़े सभी जीव जंतुओं की यही स्थिति है | उन्हें कोरोना नियमों का पता भी नहीं होता इसीलिए वे उनका पालन भी नहीं करते हैं | उनके पास 
चिकित्सा सुविधा नहीं होती है फिर भी वे महामारियों के समय में भी अपना बचाव करने में सफल होते देखे जाते हैं | मनुष्यों में भी बहुत लोग ऐसे होते हैं जो महामारी के समय में भी स्वस्थ बने रहते हैं | 
   प्राकृतिक वातावरण की तरह ही प्राणियों के शरीरों में भी इन कफ पित्त वात की उपस्थिति होती है निरोग रहने के लिए उसका संतुलित अनुपात में रहना बहुत आवश्यक होता है |  जिन शरीरों में जब तक कफ पित्त वात संतुलित अनुपात में रहते हैं तब तक लोग स्वस्थ बने रह सकते हैं | 
    कफ पित्त वात के बाहरी असंतुलन को भी ऐसे सुढृढ़ शरीर सह जाते हैं किंतु यदि आतंरिक संतुलन भी बिगड़ता है तो ये शरीर रोगी होते देखे जाते हैं | यदि ये संतुलन अधिक बिगड़ जाता है तब तो स्वास्थ्य की स्थिति अधिक बिगड़ जाती है और यदि कफ पित्त वात का संतुलन थोड़ा बहुत बिगड़ता है तो ऐसे लोग रोगी होने पर  स्वस्थ होते देखे जाते हैं | महामारियों के अलावा दूसरे समय में भी यदि मनुष्यों का त्रिदोष संबंधी आंतरिक संतुलन बिगड़ने पर लोग रोगी होते देखे जाते हैं | वे प्रायः साध्य होते हैं जिन शरीरों में ऐसे रोग अधिक असाध्य हो जाते हैं ऐसे लोग महामारी के समय के बिना भी मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं | इतना अवश्य है कि त्रिदोष संबंधी बाह्य एवं आतंरिक दोनों प्रकार के संतुलन  बिगड़ जाने पर रोग  महामारी का स्वरूप धारण कर लिया करते हैं | इसलिए ये अधिक हानिकारक हो जाया करते हैं |  
        ऐसे समय में प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ रोग महारोग तो होते ही हैं इसके साथ ही साथ मानसिक विकार बढ़ने लगते हैं मनुष्यों के साथ साथ इस असंतुलन के प्रभाव से पशु पक्षियों समेत समस्त प्राणियों के स्वभाव ,व्यवहार आदि में बेचैनी आक्रामकता आदि बढ़ते देखी जाती  है | यही कारण है कि प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसे संकटों के उपस्थित होने पर देशों में पडोसी देशों से तनाव टकराहट युद्ध आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | समाज में तनावआंदोलन उत्तेजना उन्माद घरेलू तनाव राजनैतिक तनाव आतंक वाद उग्रवाद आदि घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं | इसी अनुपात में पशु पक्षियों आदि समस्त जीवजंतुओं में बेचैनी बढ़ती देखी जाती है वे अपने अपने स्वभाव से अलग आहार व्यवहार अपनाते देखे जाते हैं | जिसे कई बार भूकंपों महामारियों  आदि के प्रारंभ होने से पहले अनुभव भी किया जाता है |
      ऐसी बड़ी घटनाएँ घटित होने के कुछ वर्ष पहले से  ये निराशा हताशा असंतुष्टि बेचैनी आदि अधिक बढ़ जाती है जिसका कोई कारण और निवारण नहीं दिखाई पड़ता है | ऐसी परिस्थिति में यह हैरान परेशान मनुष्यादि समस्त प्राणी अपने तनाव को घटाने के लिए बासना (सेक्स ) से समाधान खोजने लगते हैं उन्हें लगता है कि शायद इसी से शांति मिले |  इससे बलात्कार ह्त्या आत्महत्या जैसे बासनात्मक अपराधों में वृद्धि होते देखी जाती है | इससे और कुछ लाभ होता हो न होता हो किंतु  मनुष्यादि समस्त प्राणियों की प्रजनन दर बहुत अधिक बढ़ जाती है |ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि के द्वारा इस वृद्धि को प्रकृति के द्वारा धीरे धीरे संतुलित कर लिया जाता है |
      इस असंतुलन के प्रभाव से पेड़ पौधे ऋतु का बिचार भूलकर कई बार दूसरी ऋतुओं में भी फल फूल आदि देते देखे जाते हैं |इसी कफ पित्त वात आदि असंतुलन से प्रभावित पशु पक्षी भी भी ऋतुभावना भूलकर व्यवहार करते देखे जाते हैं |  
                                 महामारी के समय चिकित्सा निष्प्रभावी होने का कारण !
      कफ पित्त और वात का असंतुलन प्राकृतिक वातावरण में होने का प्रभाव मनुष्य समेत समस्त प्राणियों  पर तो पड़ता ही है इसके साथ ही उसी अनुपात में यह प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता है जिससे इनके वास्तविक आकार प्रकार रंग रूप गुण दोष आदि में सूक्ष्म परिवर्तन होते देखे जाते हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में महामारी के समय त्रिदोषों के असंतुलित होने का प्रभाव आकाश से लेकर पाताल तक व्याप्त होता है | इससे सब कुछ दूषित हो ही जाता है | यह जानते हुए भी उसी हवा में साँस लेना ,वही जल पीना मनुष्य की विवशता है |जीवन धारण करने के लिए उन्हीं शाक सब्जियों अनाजों फूलों फलों आदि से निर्मित भोज्य पदार्थों को खाना होता है | 
      इसप्रकार से महामारीकाल में प्राकृतिक वातावरण असंतुलित होने पर रोग की संभावना बलवती हो जाती है | इसके बाद प्रदूषित पर्यावरण में रहन सहन एवं  खान पान में उसी प्रकार की वस्तुओं का उपयोग महामारी जनित समस्याओं को और अधिक बढ़ा देता है |इससे बचाव हो पाना बहुत कठिन होता है |
      विशेष बात यह है कि इस सबके बाद भी पशु पक्षी आदि सभी छोटे बड़े जीव जंतु उसी वातावरण में रहते हुए वही सबकुछ खाते पीते हुए उसी वातावरण में साँस लेकर भी अपने को संक्रमित होने से एक सीमा तक बचा लिया करते हैं | इसी प्रकार से मनुष्यों में भी योगी तपस्वी सदाचारी संयमी साधक लोग अपने को संक्रमित होने से बचा लेते हैं | इसके अतिरिक्त गरीब ग्रामीण किसान आदिवासी लोग एवं मजदूर ,रिक्साचालक आदि परिश्रमी लोग , महानगरों में झुग्गियों में रहने वाले लोग,घनी बस्तियों में छोटे छोटे घरों में अधिक संख्या में एक साथ रहने वाले लोग भी वही सबकुछ खा पीकर उसी हवा में साँस लेकर तथा कोविड नियमों का पालन न कर पाने पर भी  महामारी जनित संक्रमण से अन्य लोगों की अपेक्षा प्रायः सुरक्षित बच जाया करते हैं | ये परिणाम शून्य अनुसंधान करने वालों के लिए भले रिसर्च का विषय हो जबकि महामारी के स्वभाव को समझने वाले लोग इस अंतर का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं | 
      ऐसे समय में  चिकित्सा की दृष्टि से यदि बिचार किया जाए तो किसी भी रोगी की चिकित्सा करने पहले उस रोगी के रोग का निदान होना बहुत आवश्यक होता है | रोग के लक्षणों की पहचान होना आवश्यक होता है | रोग , रोगी एवं औषधियों की  प्रकृति को पहचाने बिना चिकित्सा कैसे की जा सकती है | 
      रोगियों के शरीरों में कफ पित्त और वात आदि में से कुछ की स्वास्थ्य विपरीत वृद्धि एवं कुछ का स्वास्थ्य विपरीत क्षय हो जाता है इसी से उस शरीर में रोगों का निर्माण होता है | ऐसे रोगियों को स्वस्थ करने के लिए इस वृद्धि क्षय को समझने की आवश्यकता  होती है | इसके साथ ही जिस किसी भी प्रकार से प्रयत्न पूर्वक बढे हुए दोषों को कम करना एवं घटे हुए दोषों को बढ़ाना होता है | इनके संतुलित होते ही शरीर रोग मुक्त होते देखे जाते हैं | 
    इसके लिए इसी प्रकार के गुणों से युक्त खाद्यपदार्थों का चयन करना होता है एवं इसी प्रकार के औषधीय द्रव्यों का सेवन करना होता है वैसा ही रहन सहन आदि अपनाना पड़ता है | जिससे शरीर को रोगमुक्त किया जा सकता है | 
     इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या इस बात की होती है कि महामारी के प्रभाव से शरीरों में, खाद्यपदार्थों में  एवं औषधीय द्रव्यों में जो बदलाव आए होते हैं चिकित्सा करने के लिए उन्हें ध्यान में रखना आवश्यक होता है | जबकि उनमें इतना बदलाव आ चुका होता है कि उनकी पहचान कर पाना आसान नहीं होता है |
       संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण के प्रदूषित हो जाने के कारण स्वास्थ्यकर औषधियाँ निर्माण करने के लिए जिन घटक द्रव्यों की आवश्यकता होती है उन वृक्षों बनस्पतियों खनिज द्रव्यों से लेकर ऐसी सभी वस्तुओं के उस विषैले प्रभाव से प्रदूषित होने के कारण उनके अपने स्वाभाविक गुणों में न्यूनता आ जाती है | इसलिए जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए वे जानी जाती हैं उस प्रभाव में कमी आकर उसी अनुपात में संक्रमण जनित प्रदूषण उनमें भी प्रवेश कर जाता है | 
     ऐसी परिस्थिति में निर्मित औषधियाँ रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम न होकर अपितु कुछ प्रतिशत तक रोगों की सहायक हो जाती हैं | इसीलिए महामारी से संक्रमित रोगियों पर चिकित्सा का प्रभाव बहुत अधिक पड़ नहीं पाता  है | चिकित्सालयों के सघन चिकित्साकक्ष में सक्षम चिकित्सकों के तत्वावधान में चिकित्सा का लाभ ले रहे 
 साधन संपन्न रोगियों को भी सुरक्षित बचा पाना काफी कठिन होता है |                         
              
                                               प्रकृति और जीवन साथ साथ चलता है !

     सर्दी गर्मी और हवा को ही आयुर्वेद में कफ पित्त वात के रूप में जाना जाता है | इनके संतुलित संचार पर ही संपूर्ण प्रकृति और जीवन आश्रित है जीवन प्रकृति के अधीन है इसलिए मनुष्य जीवन का भी प्राकृतिक परिस्थितियों से प्रभावित होना स्वाभाविक ही है |बाह्य और आंतरिक दोनों प्रकार से सर्दी गर्मी और हवा के संतुलित संचार से ही मनुष्य शरीर स्वस्थ रह पाते हैं | बाह्य  से अभिप्राय उस प्राकृतिक वातावरण से है जिसमें हम साँस लेते और छोड़ते हैं और आंतरिक से अभिप्राय शरीर के अंदर जहाँ तक हमारा स्वाँस बिना किसी रुकावट के आसानी से जाता और आता रहता है | शरीर के बाहर का प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने का प्रभाव बहुत लोगों पर एक जैसा पड़ने से बहुत लोग एक  जैसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं यदि यह बिगाड़ बहुत बड़े पैमाने पर होता है तो एक जैसे बड़े रोगों से बहुत बड़ी संख्या में लोग पीड़ित होते देखे जाते हैं यह महामारियों के समय ही होते होता है |इसके अतिरिक्त शरीर के अंदर का आतंरिक वातावरण बिगड़ने से केवल वही व्यक्ति रोगी होता है जिसके अपने शरीर के अंदर कफ पित्त और वात संबंधी वातावरण बिगड़ता है |  
     विशेष बात यह है कि बाह्य प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने के प्रभाव से महामारी फैलने लग जाती है उस महामारी का सामान्य प्रभाव तो सभी लोगों पर एक समान पड़ता है उसके प्रभाव से सामान्य रोग तो उस क्षेत्र   में रहने वाले प्रायः सभी लोगों को होते हैं जबकि अधिक पीड़ित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना आतंरिक कफ पित्त और वात संबंधी संतुलन बिगड़ा होता है | यह संतुलन जिनका जिस अनुपात में बिगड़ा होता है वे उसी अनुपात में पीड़ित होते देखे जाते हैं !महामारी से पीड़ित होकर भी कुछ लोग आसानी से स्वस्थ हो जाते हैं कुछ के लिए बिशेष चिकित्सकीय प्रयास करने पड़ते हैं तब स्वस्थ हो पाते हैं |जिनका आतंरिक वातावरण बहुत अधिक बिगड़ा होता है उन्हें बड़े बड़े चिकित्सकीय प्रयास करके भी बचाना संभव नहीं हो पाता है और उनकी  मृत्यु होते देखी जाती है |

       प्रकृति क्रम से इनका आपसी अनुपात थोड़ा बहुत कम या अधिक होता है तब तक तो मनुष्य शरीर सहते  रहते  हैं किंतु जब इसमें अधिक अंतर आ जाता है तब शरीर रोगी होने लगते हैं जब यह अंतर बहुत अधिक हो जाता है तब इस असंतुलन का प्रभाव वातावरण में विद्यमान वायु पर पड़ता है जिससे वह वायु शरीरों के लिए हितकर नहीं रह जाती है इसलिए शरीर सामूहिक रूप से रोगी होने लग जाते हैं | इसी सर्दी गर्मी और हवा का आपसी अनुपात जब बहुत अधिक असंतुलित होने लग जाता है तब वातावरण में विद्यमान वायु का बहुत कम अंश ही शरीरों के लिए हितकर रह जाता है उससे बहुत अधिक मात्रा में  वायु का अहितकर अंश इसी वायु मंडल में तैर रहा होता है !जीवन के लिए हानिकर  होने के कारण ही ऐसे अहितकर अंश को बिषाणु(वायरस) आदि नामों से लोग पहचानने लगे हैं |वातावरण में विद्यमान ऐसी बिषैली हवा में सांस लेने के लिए मनुष्य विवश हो जाता है यह बिषाणु संपन्न हवा ही शरीरों को रोगी बनाने लगती है यह जानते हुए भी उसी में सॉंस लेने के अतिरिक्त मनुष्य के पास और कोई दूसरा विकल्प होता ही नहीं है | चूँकि सभी लोग लगभग एक जैसी हवा में सांस लेते हैं इसलिए अधिकाँश लोग एक जैसे रोगों से पीड़ित होते चले जाते हैं | इस बिषैली वायु का प्रभाव जितना मनुष्य शरीरों पर पड़ रहा होता है उतना ही प्रभाव पशु पक्षियों पर पड़ता है |

      वातावरण का यह बिषैला प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों समेत समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर भी उसी अनुपात में पड़ रहा होता है !चूँकि कुछ न कुछ खाना पीना तो पड़ेगा ही इसके बिना रहना संभव नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में सामूहिक रूप से शरीरों का रोगी होना स्वाभाविक ही है | प्रदूषित वायुमंडल का यह प्रभाव उन सभी वृक्षों बनस्पतियों वस्तुओं औषधियों आदि पर भी पड़ रहा होता है इसलिए वे केवल गुणरहित ही नहीं होती हैं अपितु रोगकारक भी होते देखी जाती हैं !यही कारण है जो औषधियाँ  बनस्पतियाँ आदि जिन रोगों से पीड़ित लोगों को लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही होती हैं बिषैले वातावरण से प्रभावित होने के कारण वही औषधियाँ  बनस्पतियाँ आदि शरीरों के लिए हानिकर होने लग जाती हैं |

    सर्दी गर्मी और हवा या कफ पित्त और वात का आपसी संतुलन बिगड़ने का कारण क्या है ?      

    सर्दी गर्मी और हवा या कफ पित्त वात के संतुलित संचार से ही संपूर्ण प्रकृति और जीवन स्वस्थ एवं सुरक्षित  है! सर्दी गर्मी और हवा का आपसी अनुपात बिगड़ते ही प्राकृतिक वातावरण और मनुष्यादि प्राणियों का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है | ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सर्दी गर्मी और हवा का आपसी अनुपात बिगड़ने का कारण क्या है ?

    अपने आतंरिक कारणों से हवा में विकार आना संभव नहीं होता है हवा तो संयोग पाकर अपने को बदल लिया  करती है ठंड का संयोग पाकर हवा ठंडी हो जाती है और गर्म का संयोग पाकर गर्म होते देखी जाती है | प्राकृतिक वातावरण में शीतलता(ठंड)चंद्रमा  के कारण संभव हो पाती है और गर्मी सूर्य से मिलती है |ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक वातावरण में शीतलता और उष्णता के अनुपात में समता और बिषमता घटने बढ़ने का कारण चंद्र और सूर्य ही हैं |

  इसमें भी प्राकृतिक वातावरण को शीतलता प्रदान करने में चंद्रमा स्वतंत्र नहीं है वह सूर्य के आधीन है चंद्रमा न केवल प्रकाश सूर्य से लेता है अपितु वातावरण को शीतल बनाने के लिए शीतलता भी उसे सूर्य से ही मिलती है क्योंकि वातावरण  से सूर्य जब अपना उष्णप्रभाव कम करेगा तभी प्राकृतिक वातावरण को शीतलता मिल पाएगी जिसका कारण चंद्र है |   ऐसी परिस्थिति में ठंड और गर्मी दोनों का मूल कारण सूर्य हुआ !इसलिए प्राकृतिक वातावरण में कब कितनी गर्मी बढ़ेगी और कब कितनी ठंड बढ़ेगी यह सब सूर्य के द्वारा निर्धारित होती है क्योंकि सर्दी और गर्मी  का आपसी अनुपात बिगड़ते ही प्राकृतिक वातावरण और मनुष्यादि प्राणियों का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है | जिस गुण की अधिकता होती है हवा तो उसी का साथ देने लगती है | हवा सूर्य से प्रभावित होकर केवल गरम ही नहीं होती है अपितु उसकी गति भी बढ़ जाती है और हवा के ठंडी होने से उसकी गति भी धीमी हो जाती है |

      इस प्रकार से चंद्रमा की तरह ही हवा भी सूर्य के ही आधीन है | शीतलता उष्णता एवं वायु ये तीनों ही इस प्राकृतिक वातावरण को सूर्य से मिल पाते हैं |यही शीतलता उष्णता एवं वायु आदि को चिकित्साशास्त्र में कफ पित्त वात के नाम से जाना जाता है | इन्हीं कफ पित्त और वात का आपसी अनुपात किसी व्यक्ति के शरीर में बिगड़ने से शरीर रोगी होता है और इन्हीं कफ पित्त और वात का आपसी अनुपात के प्राकृतिक वातावरण  में बिगड़ने से महामारियों का  जन्म  होता है | ऐसी ही परिस्थिति में भूकंप वर्षा बाढ़ आदि बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ भी जन्म लेती हैं प्राकृतिक वातावरण में बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं महामारियों के घटित होने का कारण सूर्य ही है | यही कारण है कि जब जिस अनुपात में जिस प्रकार की महामारी घटित होनी होती है उसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ उस समय घटित होने लगती हैं कोरोना महामारी के  समय जितनी अधिक संख्या में भूकंप आए उस तरह हमेंशा तो नहीं आते हैं |  

    इस प्रकार से जिस कफ पित्त बात आदि का आपसी संतुलन बिगड़ने से भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं जब इन तीनों का आपसी अनुपात बहुत अधिक असंतुलित हो जाता है तो कोरोना जैसी बड़ी महामारियाँ जन्म लेती हैं जिनसे बहुत लोग एक जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं | वह कफ पित्त बात आदि वातावरण पर पड़ने वाले सूर्य के न्यूनाधिक प्रभाव की ही तो तीन अवस्थाएँ हैं ये तीनों सूर्य से ही तो संचालित होते हैं इसलिए इनका मूल कारण तो सूर्य ही है किंतु  सूर्य ऐसा करने के लिए कितना स्वतंत्र होता है इसे भी  समझा जाना आवश्यक है |

                                                                  
सूर्य चंद्र -तापमान

      आज के हजारों वर्ष बाद में घटित होने वाली प्राकृतिक अथवा जीवन संबंधी घटनाओं के बिषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा पाना केवल गणित के द्वारा ही संभव है इसीलिए गणित के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं |
    सैद्धांतिक रूप से पूर्वानुमान होते ही वही हैं जो किसी बिषय में बहुत पहले पता लगा लिए जाते हैं और उनके गलत निकलने की संभावना बहुत कम होती है|सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के बिषय में जो पूर्वानुमान हजारों वर्ष पहले  लगा लिए जाते हैं उनका एक एक मिनट सही घटित होता है | ऐसे पूर्वानुमानों की अपेक्षा केवल गणित विज्ञान से ही की जा सकती है |
   कुल मिलाकर जिस प्रकार से सूर्य चंद्र पृथ्वी के आपसी संयोग से सूर्य चंद्र ग्रहण घटित होते हैं उसी सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि के आपसी तारतम्य से मौसमसंबंधी भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं |
    ऐसी परिस्थिति में जिस गणितविज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के बिषय में हजारों वर्ष पहले जो पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं

संबंधित जो पूर्वानुमान जिस गणित विज्ञान के द्वारा हजारों वर्ष पहले पता लगा लिए जाते हैं और वे पूरी तरह सही एवं सटीक निकलते हैं | उसी गणित विज्ञान के आधार पर उसी सूर्य चंद्र के प्रभाव से घटित होने वाली महामारी एवं भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले यदि पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है ?
      इसमें संशय नहीं होना चाहिए कि गणित विज्ञान के द्वारा उस सूर्य के बिषय में बहुत सारी जानकारी जुटाई जा सकती हैं जो समस्त प्राकृतिक एवं जीवन संबंधी घटनाओं का प्रत्यक्षतौर पर मूल कारण है | वैसे तो विज्ञान की जिस किसी विधा से ऐसी संभावित परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सके उसी के आधार पर लगा लिया जाना चाहिए किंतु मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि गणितागत पूर्वानुमान ही सबसे अधिक सही एवं सटीक घटित होता है |
    अधिकाँश  प्राकृतिक घटनाएँ भी समय के द्वारा  निर्धारित कालखंड में ही घटित होती हैं | महामारियों को ही देखा जाए तो पिछली कुछ सदियों से अपने निर्धारित समय पर अर्थात लगभग सौ वर्ष बाद घटित होते देखी जा रही हैं |
    ऐसी परिस्थिति में जब महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ जब समय के एक निश्चित अंतराल में घटित होते देखी जा रही हैं | ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए तो गणित विज्ञान ही सर्व श्रेष्ठ साधन है |







No comments:

Post a Comment