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Tuesday, January 25, 2022

समाज के अनुत्तरित प्रश्न(इसका उपयोग हो चुका )

   महामारी के इतने डरावने स्वरूप से अपरिचित समाज ने कभी नहीं सोचा था कि हमारे जीवन में कभी ऐसे भयावह दिन भी आएँगे | वर्तमान समय की परिस्थिति यह है कि महामारी के जाने के बाद भी दशकों तक महामारी के विषय में सोचकर समाज सहम उठेगा | जिस पीढ़ी ने महामारी के दारुणदिनों को अपनी आँखों से देखा है ऐसी परेशानियों का स्वयं अनुभव किया है वह तो ऐसे दुर्दिनों को कभी नहीं भूल सकेगी |मानव मन तरह तरह की आशंकाओं से आक्रांत है यह सोचकर बहुत अधिक डरा हुआ है कि न जाने फिर से महामारी कब प्रारंभ हो जाएगी और फिर से लॉकडाउन लगा दिया जाएगा | मुझे दोबारा अपना सारा काम काज बंद करना पड़ेगा |कर्जा लेकर किए गए व्यवसाय का कर्जा कैसे उतारा जाएगा आदि |चिंताएँ मानव मन को व्यथित कर रही हैं |पहले की तरह दोबारा व्यवस्थित होने में समय लगेगा |परिस्थितियाँ सामान्य होने के बाद भी महामारीजनित समस्याओं से आशंकित लोगों का चिंतन सहज होने में लंबा समय लगेगा | इस डर को भूलने में वर्षों का समय लग सकता है | महामारी का प्रभाव केवल उनकी दिनचर्या तक ही सीमित नहीं रहेगा अपितु वर्षों तक दूसरे को छूने में ,किसी का छुआ खाने में ,किसी का दिया हुआ उपहार लेने देने में ,किसी सर्दी जुकाम खाँसी से ग्रस्तव्यक्ति से मिलने में उसके साथ काम करने में,भीड़ भाड़ में आने जाने में डर लगता रहेगा |
     महामारी का प्रभाव शिक्षा से लेकर सामाजिक संबंधों कार्यक्रमों व्यवहारों व्यापारों एवं सरकारी कामकाज आदि सभी स्थलों पर लंबे समय तक पड़ता रहेगा | लोग उधार व्यवहार लेकर व्यापार करने में दशकों तक हिचकते रहेंगे | महामारी से उत्पन्न अवरोध के कारण ऋणाश्रित छोटे मोटे व्यापार तो लगभग समाप्त हो ही चुके हैं | ऐसे व्यापारों से लंबे समय तक जुड़कर आजीविका अर्जित करने वाले कर्मचारियों ने उस विषम परिस्थिति से निपटने में अपनी अपनी तत्कालीन आजीविका अर्जित करने के लिए यथा संभव विकल्प चुन लिए हैं | कुलमिलाकर उन छोटे मोटे व्यापारों का ताना बाना पूरी तरह बिखर चुका है | जो किसी तरह व्यापार खड़ा भी करेंगे उन्हें उस काम के लिए उतने कुशल कारीगर मिलने में समय लगेगा | जो मिलेंगे उन्हें काम सीखने में समय लगेगा |

     इसलिए महामारी के भय को मिटाने के लिए शासन प्रशासन को कुछ अलग से ऐसे विश्वसनीय विकल्प चुनने पड़ेंगे | जिनके द्वारा जनता के मन में बैठे इस प्रकार के महामारी जनित भय दूर किया जा सके | चिंता की बात यह है कि इस कार्य में चिकित्सा वैज्ञानिक चिकित्सक आदि बड़ी भूमिका निभा सकते थे कि अब निकट समय में महामारी नहीं आएगी और आएगी भी तो उसके चिकित्सकीय विकल्प खोजे जा चुके हैं इसलिए उससे अब परेशान  नहीं होना पड़ेगा | जनता चिकित्सकों को भगवान का दूसरा स्वरूप मानती है उनकी प्रत्येक बात को मंत्र की तरह सही मानकर उस पर न केवल विश्वास कर लिया करती है अपितु उसका अनुपालन भी किया करती है किंतु महामारी काल में अपने आदरणीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुमानों पूर्वानुमानों से संबंधित प्रत्येक बयान को बार बार झूठ निकलते देखा गया  है |अपने चिकित्सा संबंधी उन्नत अनुसंधानों पर गर्व करने वाले समाज ने अपनी चिकित्सा सेवाओं को इतना विवश होते पहले कभी नहीं देखा था | इसका कुछ प्रभाव तो उनके भी मन पर पड़ा ही होगा | वैक्सीन के दो दो डोज लगाकर भी समाज को यह विश्वास नहीं दिलाया जा सका कि तुम्हें अब कोरोना से खतरा नहीं है अब तुम सुरक्षित हो | जितने भी कोरोना नियम बनाए गए उनका पूरी तरह से पालन करने वालों को भी विश्वास पूर्वक यह आश्वासन नहीं दिया जा सका कि तुम्हें महामारी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैं |

इसलिए समाज के उस टूटे हुए विश्वास को जोड़ने में समय लगेगा तब तक के लिए कोई ऐसा विकल्प चुनना आवश्यक हो गया है जो महामारी से डरे सहमे समाज के मन में यह भरोसा पैदा करने में सक्षम हो सके कि भविष्य में पैदा होने वाली महामारियों का पूर्वानुमान लगा लिया जाया करेगा | इसके साथ ही अब महामारी से मुक्ति के लिए विश्वसनीय प्रभावी प्रयत्न किए जा सकेंगे | 
     वैसे भी महामारी अभी आई है कुछ समय में चली ही जाएगी | उससे जनता को जितना जूझना था जूझ लिया है किंतु उसके पीछे कुछ ऐसे अनुत्तरित प्रश्न अवश्य छूटे जा रहे हैं जिनका उत्तर शायद कभी न मिल पाए |जनता  जिन अपनों पर सबसे अधिक विश्वास किया करती थी आखिर उनकी क्या मजबूरी रही कि वे जो दावे किया करते थे उन पर खरे क्यों नहीं उतर सके ?
 
    1. वैज्ञानिकों के पास महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक पद्धति है या नहीं जिसके द्वारा महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके ? यदि है तो महामारी के आने से पहले वे महामारी के आने के विषय में कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा सके ? यदि नहीं है तो समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के  विषय में पूर्वानुमान किस आधार पर बताए जाते रहे ?

  2. यदि कोविड नियम वास्तव में प्रभावी थे और उनके द्वारा महामारी संबंधी संक्रमण पर अंकुश लगाना संभव था तो महामारी का जन्म पड़ोसी देश में हो चुका है ऐसा जानकर भी कोविड नियमों का पालन करके अपनेदेश को कोरोना मुक्त बनाए रखने में कठिनाई क्या थी ?

 3. महामारी काल में कोरोना महामारी से लोग अधिक पीड़ित हुए या महामारी में बचाव करने लायक तैयारियों के अभाव में लोग अधिक पीड़ित हुए ? हमेंशा चलने वाले चिकित्सकीय अनुसंधानों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए पहले से ऐसी क्या  तैयारी करके रखी गई थी जिससे महामारी से जूझती जनता को थोड़ी भी मदद मिल सकी हो ?

 4. महामारी और सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के विषय में यदि पहले से पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है बाद में तो महामारी और प्राकृतिक आपदाएँ ही जो कुछ करती हैं वही होता है |ऐसी घटनाओं के घटित हो जाने के बाद जनता की मदद करने में वे वैज्ञानिक अनुसंधान किस प्रकार की आशा रखी जानी चाहिए !

5 . आयुर्वेद के चरकसंहिता आदि ग्रंथों में महामारी का पूर्वानुमान लगाने की जो विधियाँ बताई गई हैं उनके आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका और महामारी से मुक्ति दिलाने वाले प्रभावी उपाय क्यों नहीं किए जा सके ?

6 . योग में स्वस्थ रहने एवं दूसरों को स्वस्थ रखने की असीम शक्ति बताई जाती है | योग की ही एक विधा स्वरोदय है जिसके द्वारा महामारी के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाता है अपितु महामारी पर अंकुश लगाना भी संभव बताया जाता है | यदि आधुनिक युग के योगियों में भी योग की थोड़ी बहुत भी समझ थी तो उनके द्वारा योग के माध्यम से महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज को महामारी मुक्त क्यों नहीं रखा जा सका ? 

 7. ज्योतिषविद्वानों के द्वारा सभी घटनाओं की तरह ही महामारियों के विषय में भी पूर्वानुमान लगा लेने के दावे किए जाते रहे हैं ऐसी परिस्थिति में सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों में नियुक्त रीडर प्रोफेसरों आदि ने इतनी बड़ी आपदा से जूझती जनता को मदद पहुँचाने के लिए महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सरकार को उससे अवगत क्यों नहीं करवाया | आखिर उनकी क्या मजबूरी थी ?

8.वेद वेदांगों में यज्ञादि अनेकों ऐसे  उपायों का वर्णन मिलता हैजिनके द्वारा महामारी जैसे संकटों से मुक्ति पाई  जा सकती है | ऐसी परिस्थिति में सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों के वेद विज्ञान विभागों में नियुक्त  विद्वान शिक्षकों ने ऐसे कोई यज्ञादि प्रभावी उपाय करके महामारी से मुक्ति दिलाने में सरकार का सहयोग क्यों नहीं किया ? 

9. महामारी और सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाव कर लेने की जो विशेषता  वेद वेदांगों में बताई गई है जो विश्व गुरु भारत की मुख्य पहचान है | महामारी काल में विद्वानों के द्वारा उसका कुछ ऐसा परिचय क्यों नहीं दिया जा सका जिससे विश्व मंच पर भारत की कुछ ऐसी विशेषता  प्रकट होती जो अन्य देशों को भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की ओर आकृष्ट करती | 

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