महामारी को समझने के लिए किया जाएगा मौसम का अध्ययन !
22 दिसंबर 2020 को प्रकाशित : पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।ज्ञात हो कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं।
प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली के आधार पर ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र की जाती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं। चिकनगुनिया, मलेरिया, डायरिया, डेंगू, पीत ज्वर/येलो फीवर और चेचक रोग तथा कोरोना जैसी महामारियों के पैदा होने में मौसम की स्थिति भी अहम भूमिका निभाती है।इसी प्रकार से हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियाँ भी हीट वेव तथा पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि से जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार से मौसम की महत्ता समझते हुए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली के विकास अध्ययन और अनुसंधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।
मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले वैज्ञानिक मिलना आसान है क्या ?
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के जिन वैज्ञानिकों को महामारी में मौसम संबंधी भूमिका का अध्ययन करने के लिए सम्मिलित किया गया है वे ऐसा तभी कर पाएँगे जब मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में सक्षम हों |
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले एक दो दशकों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से लगभग किसी के भी बिषय में मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा सही एवं सटीक पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका है ऐसी परिस्थिति में ऐसे लोगों को सम्मिलित कर लेने से भी स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को सफल कैसे बनाया जा सकता है फिर भी प्रयत्न किया जाना चाहिए | कहीं ऐसा न हो जैसा सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर जनता का ध्यान भटकाने के लिए एक नए प्रकार के रिसर्च की घोषणा करने का रिवाज सा पड़ा हुआ है |इसके तहत उस प्राकृतिक आपदा से संबंधित रिसर्च को बढ़ावा देने की घोषणा कर दी जाती है | इसके लिए कुछ फंड पास कर लिया जाता है कुछ सुपर कंप्यूटर खरीद लिए जाते हैं कुछ स्थानों पर उपग्रह रडारों आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करने की घोषणा कर दी जाती है |
भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के बाद कुछ स्थानों पर रिसर्च के नाम पर कुछ गड्ढे खोदे जाने लगते हैं कुछ जगहों पर जमीन के अंदर कुछ मशीने लगाईं जाने लगती हैं | जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा बहुत कुछ किया जाता है जिस प्रकार से अभी महामारी आई है तो सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित करने की बात भी कहीं उसी प्रकार के रीति रिवाजों का निर्वाह जनता का ध्यान भटकाने मात्र के लिए ही तो नहीं किया जा रहा है | ऐसा हमें इसलिए भी सोचना पड़ रहा है क्योंकि 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति तथा 1866 एवं 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई थी लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं उस लक्ष्य को हासिल करने में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आजतक आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाया है |ऐसी परिस्थिति में उससे संबंधित लोगों को सम्मिलित करके जनता के लिए अत्यंत आवश्यक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को सफल कैसे बनाया जा सकता है ?
मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !1008
मुंबई में आई भीषण बाढ़:2005 में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ आई थी!|इसमें करीब 850 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं. अकेले मुंबई में मरने वालों की संख्या करीब 400 से ज्यादा थी |
सन 2013 में 16 \17 जून की रात केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया था | लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे। इसके बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।
भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं !
इस विषय में वैज्ञानिकों के वक्तव्य : सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता |
2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के महा निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"
केरल में भीषण बाढ़ :3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई |
इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा कि बचाव के लिए सरकारों के द्वारा किए जाने वाले अधिकतम प्रयास निरर्थक होंगे !"यह पूर्वानुमान हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है किंतु उसे प्रोत्साहित नहीं किया है |
सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी : सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए। पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए |
अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी गलत हुई :2020-21 में लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु इस बार तो जनवरी माह से ही तापमान बढ़ने लग गया था | ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !:
सन 2020 के अप्रैल मई में इतनी अधिक बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।इसके बाद मौसम विभाग की ओर से और अधिक बारिश होने का अनुमान बताया गया |
15 Oct 2020 : इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी !मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खिंची थी। इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !
2020-21 में वैज्ञानिकों के द्वारा लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु इस बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था | इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की क्या वजह बताई कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है।
मौसम वैज्ञानिकों के वक्तव्य :
मानसून और सर्दी संबंधी पूर्वानुमान लगातार गलत साबित होते रहने पर मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा गया कि पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।
04 Mar 2021-साल 1901 में जब से भारतीय मौसम विभाग ने रिकॉर्ड रखना शुरू किया, तब से आज तक कुल 120 सालों में इस साल की सर्दी तीसरी सबसे गर्म सर्दी रही यानी तीसरा सबसे कम सर्दी वाला मौसम रहा। खास बात यह कि शीतलता प्रदान करने वाली भौगोलिक घटना ला-नीना के असर के बावजूद जनवरी से फरवरी के बीच सर्दी गर्म रही।
अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग से जो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं,कभी नहीं भी होते हैं तो वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है |
कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्यवक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रृंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं |
ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |
जलवायु परिवर्तन और मौसम !
वैज्ञानिकों के द्वारा स्थापित मान्यता के अनुशार जलवायुपरिवर्तन मौसम को प्रभावित करता है और मौसम स्वास्थ्य को प्रभावित करता है मौसम संबंधी बड़े उत्पात महामारियों की उत्पत्ति के कारण बनते हैं |इसलिए महामारियों से संबंधित किसी भी अनुसंधान के लिए मौसम संबंधी घटनाओं का अध्ययन अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना बहुत आवश्यक है | चूँकि मौसम संबंधी घटनाओं पर जलवायुपरिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है इसलिए जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव के बिषय में सही सही अनुसंधान किए बिना मौसम से प्रभावित होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सही एवं सटीक अध्ययन कैसे किया जा सकता है और महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |
विशेष बात यह है मौसम का जो सहज क्रम बना हुआ है जिसमें सर्दी के समय में उचित मात्रा में सर्दी होती है और गर्मी की ऋतु में उचित मात्रा में गरमी होती है तथा वर्षा के समय उचित मात्रा में वर्षा होती है | जब तक ऐसा क्रम अपने सहज प्रवाह में चलता रहता है तब तक न तो मौसम पूर्वानुमान लगाने की विशेष आवश्यकता होती है और न ही ऐसे समय में महामारियों के ही पैदा होने की दूर दूर तक कोई संभावना रहती है |
सर्दी की ऋतु सर्दी बहुत कम या बहुत अधिक होने लगे या उसकी समयावधि बहुत अधिक घट या बढ़ जाए !ऐसा ही वर्षाऋतु में वर्षा को लेकर हो और गर्मी के समय में ऐसा ही गर्मी के संबंध में असंतुलन देखा जाए तो वैज्ञानिक भाषा में ऐसी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के नाम से जाना जाता है | उन्हीं के द्वारा कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण घटित हुई घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और यदि सभी घटनाएँ संतुलित मात्रा में ही घटित होती रहें तो पूर्वानुमानों की आवश्यकता ही क्या है वो तो सबको वैसे ही पता है |
अनंतकाल से चला आ रहा मौसम का यह क्रम जब टूटता है और वह जिस सीमा तक टूटता है उसी स्तर के प्राकृतिक रोग प्रारंभ होने की संभावना होती है और जब बड़े प्राकृतिक विप्लव होते हैं तब महामारियों का निर्माण होने की संभावना होती है |
मौसम वैज्ञानिकों की समस्या यह है कि मौसम का क्रम टूटने या प्राकृतिक विप्लवों को वो जलवायु परिवर्तन मान चुके हैं और जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता ऐसा पहले ही कहा जा चुका है | जलवायु परिवर्तन के कारण घटित घटनाओं का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | यदि उनका पूर्वानुमान वे लगा ही नहीं सकेंगे तो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा कल्पित विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को सम्मिलित किए जाने का उद्देश्य क्या होगा और उस प्रकार के अध्ययनों में उनकी सार्थक भूमिका किस प्रकार की होगी |
सामान्यतौर पर प्रत्येक वर्ष के अप्रैल मई जून तक अधिक गरमी पड़ती है इसी प्रकार से नवंबर दिसंबर जनवरी आदि में अधिक सर्दी बढ़ती है|प्रकृति के इसी समय चक्र से समाज सुपरिचित है यही हमेंशा से चला आ रहा है इसी समय क्रम को स्थायी मानकर इसी के आधार पर चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि सन 2020 के अप्रैल मई जून आदि में अधिक गरमी पड़ेगी और अधिक तापमान में वायरस कमजोर पड़ जाता है इसलिए सन 2020 के अप्रैल मई जून आदि में कोरोना संक्रमण समाप्त जाएगा किंतु ऐसा हुआ नहीं मई तक तो वर्षा और बर्फबारी ही होते देखी सुनी जाती रही इसलिए तापमान उतना अधिक बढ़ा ही नहीं जितने बढ़ने पर कोरोना संक्रमण समाप्त होने की संभावना थी |
इसी प्रकार से नवंबर दिसंबर जनवरी आदि में अधिक सर्दी पड़ती है|समय जनित मौसम के इसी स्वभाव से समाज सुपरिचित भी है और यही हमेंशा से चला भी आ रहा है इसे ही सच मानकर वैज्ञानिकों ने कह दिया कि 2020 की सर्दी अर्थात नवंबर दिसंबर आदि में कोरोना संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाएगा !दिल्ली के बिषय में अनुमान लगाया गया कि 15 हजार बिस्तरों की आवश्यकता पड़ सकती है |उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि इस वर्ष की सर्दियों में जनवरी फरवरी से ही तापमान बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा जिससे सर्दियों के समय में भी सर्दी कम पड़ेगी |
ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा गरमी की ऋतु में कोरोना संक्रमण घटने एवं सर्दी के समय में कोरोना संक्रमण बढ़ने के बिषय में लगाया गया पूर्वानुमान संपूर्ण रूप से गलत निकल गया | वस्तुतः चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए इस पूर्वानुमान का आधार तो मौसम था मौसम का पूर्वानुमान उन्हें पता नहीं था इसलिए चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान के गलत निकल जाने का एक कारण यह भी हो सकता है | इसलिए बिना किसी सार्थक अनुसंधान के यह मान लेना उचित नहीं होगा कि सर्दी में कोरोना बढ़ा नहीं और गर्मी में कम नहीं हुआ | इसका मतलब मौसम का महामारी से कोई संबंध ही नहीं है |ऐसा निश्चय किया जाना तब संभव था जब हर वर्ष की तरह ही सर्दी के समय सर्दी पड़ी होती और गर्मी के समय गर्मी पड़ी होती | ऐसे समय यदि मौसम संबंधी अनुसंधानों का सही सहयोग मिला होता तो महामारी को समझने में और अधिक सुविधा हो सकती थी |
वर्तमान मौसम वैज्ञानिक इस परिस्थिति में चिकित्सा वैज्ञानिकों का सहयोग करने में कितने सक्षम थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 2019\20 की सर्दियों में कम सर्दी होने का पूर्वानुमान लगाया था जबकि 2020\21की सर्दियों में अधिक सर्दी होने का पूर्वानुमान लगाया था ,किंतु उनके द्वारा लगाए गए ये दोनों पूर्वानुमान ही न केवल गलत निकल गए अपितु अनुमानों के विरुद्ध घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं | जिस वर्ष सर्दी कम होने का पूर्वानुमान लगाया गया उस वर्ष सर्दी इतनी अधिक हुई कि दशकों के रिकार्ड टूटे और जिस वर्ष सर्दी अधिक होने का पूर्वानुमान लगाया उस वर्ष आधी सर्दी से ही तापमान बढ़ने लग गया ऐसा दशकों बाद हुआ है यह उन्हीं लोगों ने बताया है जिन्होंने अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की थी |
ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जो विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली की अध्ययन और अनुसंधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।यह भी उचित दिशा में अच्छी नियत से उठाया कदम माना जा सकता है किंतु प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसे बड़े संकल्प को पूरा करने के लिए इस प्रक्रिया में भारतमौसमविज्ञानविभाग को केवल सम्मिलित कर लेना ही पर्याप्त नहीं होगा अपितु उनमें से उन लोगों को ही सम्मिलित करना उचित होगा जिन मौसम वैज्ञानिकों को मौसम के बिषय में कुछ समझ भी हो |जिनके द्वारा पहले की गई मौसम संबंधी कुछ भविष्यवाणियाँ सही एवं सटीक घटित हो चुकी हों |
स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों के लिए मौसमसंबंधी प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले सक्षम मौसमवैज्ञानिक ही कुछ योगदान दे सकते हैं |ऐसे अध्ययनों अनुसंधानों में उपग्रहों रडारों से की जाने वाली आँधी तूफानों एवं बादलों की जासूसी वाला विज्ञान उपयोगी नहीं होगा और न ही सुपरकंप्यूटरों से प्राप्त गणनाएँ ही उपयोगी रहेंगी !इसके अतिरिक्त यदि मौसम के स्वभाव को समझने के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के पास यदि कोई वैज्ञानिक पद्धति भी हो तभी उनके योगदान से ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में कुछ मदद मिल सकती है |
जुगाड़ और वैज्ञानिक अनुसंधानों में अंतर होता है !
जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है ये विज्ञान नहीं हो सकता है | जिसमें दीर्घकालीन अनुसंधान भावना न होकर प्राप्त परिस्थिति में जिस किसी प्रकार से काम चला लेना जुगाड़ होता है जो किसी वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित न होने के कारण उभयपक्षी होता है | उसमें सही गलत हानि लाभ दोनों होने की संभावना होती है | काम बनेगा तो बनेगा अन्यथा बिगड़ तो रहा ही है | इस भावना से किसी विषय में जुगाड़ पद्धति अपनाई जाती है | जुगाड़ प्रक्रिया किसी सिद्धांत से न बँधी होने के कारण ये सही गलत दोनों ही होती है | एक ही प्रक्रिया एक बार सही तो दूसरी बार गलत हो जाती है | मौसम हो या महामारी जुगाड़ विज्ञान दोनों ही जगह काम नहीं आया है |
उदाहरण -किसी जंगल में हाथी बहुत रहा करते थे वे आस पास के गाँवों में कभी कभी उपद्रव मचा आया करते थे | जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था | इससे बचाव के लिए हैरान परेशान होकर गाँव वालों ने अपने गाँव में पहरा देना शुरू कर दिया किंतु कब तक ऐसा करते कोई अवधि तो थी नहीं |
परेशान होकर गाँव वालों ने गाँव के बाहर जंगल की ओर मुख करके कुछ कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुंड गाँव की ओर आते दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का नुक्सान होने से कभी कभी बच जाया करता था| कभी बचाव होने और कभी न होने का कारण यह था कि गाँव वालों ने अपने अपने गाँवों में कैमरे केवल जंगल की तरफ लगवा रखे थे उधर से ही हाथियों के आने की अधिक संभावना रहती थी|इसलिए जब उधर से आते थे तब तो हाथियों का झुंड दिखाई पड़ जाता था उन्हें खदेड़ कर अपना बचाव कर लिया जाता था |यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान
नहीं कहा जा सकता है |कभी कभी हाथियों का झुंड जगल की ओर से प्रवेश न करके किसी दूसरी ओर से गाँव में घुस कर उपद्रव मचा दिया करता था जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था |ऐसे समय में यह जुगाड़ निष्फल हो जाया करता था |
इसी प्रकार से मौसम विज्ञान है जो उपग्रहों रडारों के आधीन है जो उससे दिखाई देता है वो पता हो जाता है |बादल आँधी तूफ़ान आदि तो दिखाई दे जाते हैं तो उनके विषय में कुछ सही गलत अंदाजा लगा भी लिया जाता है किंतु भूकंप बज्रपात जैसी घटनाएँ उनसे नहीं देखी जा सकती हैं इसलिए उनके विषय में कुछ भी कहना संभव नहीं हो पा रहा है |वस्तुतः मौसम विज्ञान के नाम से जिसे जाना जाता है वह मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अंदाजा लगाने का एक जुगाड़ मात्र है यह विज्ञान नहीं है | यदि यह वैज्ञानिक पद्धति होती तब तो मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की वह पद्धति खोजी जाती जिससे इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाता कि वर्षा किस दिन कैसी होगी !किस महीने कैसी होगी और किस वर्ष कैसी होगी | ये पूर्वानुमान कहे जाते किंतु किसी एक स्थान पर घटित होती घटनाओं को देखकर उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में अंदाजा लगा लेने में न कोई विज्ञान है और न ही पूर्वानुमान है |
इसमें यदि वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जाती तो मौसम के आधारभूत वे कारण खोजे जाते जिनसे मौसम संबंधी घटनाएँ न सिर्फ पैदा होती हैं अपितु प्रभावित भी होती हैं उन्हें खोजकर लगाए जाने वाले मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि सही होते देखे जाते हैं |
इसी प्रकार से हाथियों के स्वभाव का अध्ययन किया जाता उसके अनुशार यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता कि हाथी अपनी किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए गाँव की ओर आते हैं !आते भी हैं तो ऐसा उपद्रव क्यों करते हैं इससे उन्हें क्या मिलता है | यदि वे सुविधाएँ उन्हें जंगल में ही मिलने लगें तो संभव है कि हाथी जंगलों से निकलें ही नहीं और न किसी गाँव में घुसें और न ही उनका नुक्सान करें |
हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ?
इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान तो यह जानने के लिए करना होगा कि हाथी जंगलों से निकलते कब हैं ? दूसरी बात हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ?तीसरी बात हाथियों का झुंड जंगलों से निकलकर योजनाबद्ध ढंग से सीधे गाँव की ओर ही क्यों आता है | इन बातों को ठीक ढंग से समझने के लिए हाथियों के स्वभाव का अध्ययन करना होगा | तभी यह पता लग पाएगा कि जंगलों में जब हाथियों के खाने के लिए चारा और पीने के लिए पानी नहीं बचता है तब वे जंगलों से निकलकर गाँवों की ओर जाने का रुख करते हैं ?ऐसा पता लगा करके जंगलों में ही चारा पानी को पर्याप्त बनाए रखने का प्रयत्न करना होगा तो हाथी जंगलों में ही संतुष्ट बने रहेंगे न जंगलों से बाहर निकलेंगे और न ही गाँव की ओर आएँगे |
ऐसे अनुसंधानों को यदि और अधिक गंभीर बनाना है तो यह पता लगाना पड़ेगा कि जंगलों में हाथियों के खाने पीने की कमी वर्ष के किन किन महीनों में होने की संभावना रहती है | अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया गया कि ग्रीष्म ऋतु में जब तालाब सूख जाते हैं नदियों में पानी बहुत कम हो जाता है उस समय पेड़ पौधे झुलसने लग जाते हैं तब हाथियों को भोजन और पानी दोनों की समस्या हो जाती है | ऐसे समय में हाथियों जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहती है|उसमें भी जिस दिन तापमान जितना अधिक होगा उस दिन व्याकुलता भी उतनी अधिक होगी |उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना विशेष अधिक रहती है |इन सभी बिंदुओं पर अध्ययन पूर्वक हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
इसमें भी यदि पता लग जाए कि सबसे अधिक गर्मी होने की संभावना तब होती है जबतक सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | प्रतिवर्ष कब से कब तक सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | खगोलीय गणित विज्ञान के द्वारा इसकी गणना करके वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसी के आधार पर वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस वर्ष के किस महीने के किन किन दिनों में हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहेगी |
किसी किसी वर्ष ही वर्षा ठीक होती है तो कुछ वर्षों में बहुत अधिक और कुछ वर्षों में वर्षा बहुत कम होकर बिल्कुल सूखा जैसे हालात बन जाते हैं | जिन वर्षों में वर्षा ठीक होती है उन वर्षों में तो आवश्यकता के अनुरूप चारा पानी जंगलों में बना रहता है किंतु वर्षा का संतुलन बिगड़ते ही चारा पानी का भी संतुलन बिगड़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में किस वर्ष कैसी वर्षा होगी इसका सही सही पूर्वानुमान पता लगना आवश्यक हो जाता है |
जिस प्रकार से यह पद्धति हाथियों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए वैज्ञानिक होगी उसी प्रकार से वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा लगाए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक होते देखे जाते हैं |महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए भी इसी प्रकार की वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति अपनाई जानी चाहिए |
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