जातियाँ कभी गलत नहीं होतीं जिसकी जैसी जाति होती है उसका वैसा स्वभाव !जातियाँ काल्पनिक नहीं होतीं !
- ब्राह्मणों के अलावा दूसरी जातियों के लोग भी साधु संन्यासी बनते देखे जाते हैं किंतु निभा नहीं पाते हैं उनका संन्यास लेकर भी भजन में मन नहीं लगता है वो वहाँ जाकर भी दूध घी और भूरे रंग का गेंहूँ का आता बेचना नहीं छोड़ते !बहुत सारे महात्माओं को करोड़ों अरबों की संपत्तियाँ कमाते देखा होगा किन्तु उन धनी बाबाओं में बहुत कम लोग ब्राह्मण होंगे ! जो महात्मा वैश्य वर्ग के हैं वो संन्यास लेने के बाद भी व्यापार करना नहीं छोड़ते हैं !बल्कि और अच्छे ढंग से करते हैं क्योंकि संन्यास लेने के बाद फंडिंग की समस्या नहीं रह जाती है जब कम पड़े या घाटा होने लगे तो समाज से मांग लो न कर्जा चुकाना न ब्याज देना !कुल मिलाकर जातियों के संस्कार कभी पीछा नहीं छोड़ते !
- आरक्षण माँग माँग कर दलितों ने खुद को इतना कमजोर सिद्ध कर दिया है कि अब कुछ कहने लायक बचे ही नहीं हैं !वैसे भी सवर्णों की तरह हाथ पैर दिल दिमाग वाले हट्टे कट्टे दलित लोग भी सवर्णों की तरह ही भोजन पानी सब कुछ करते हैं फिर सवर्ण लोग खुद तरक्की करके यदि अपना विकास कर सकते हैं तो दलित क्यों नहीं ?इन्हें कोई दिक्कत नहीं है और न ही इनका कभी किसी ने शोषण ही किया है इसलिए ये इनमें मानसिक कमजोरी है जिसे दूर करने के लिए आरक्षण नहीं अपितु किसी मनोचिकित्सकको दिखाया जाना चाहिए !
- दलित लोग अपने तरक्की न कर पाने का कारण सवर्णों और ब्राह्मणों को बताते हैं !ये तो उसी तरह की बात है कि किसी के अपने घर बेटा न पैदा हो रहा हो तो उसके लिए दोष पड़ोसी को दिया जा रहा हो !
- दलित लोग महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु की निंदा करते और मनुस्मृति को जलाते देखे जाते हैं किंतु इसमें मनु का दोष क्या है उन्होंने हम सबके पूर्वजों की योग्यता की परीक्षा ली जो फस्ट डिवीजन आए वो ब्राह्मण जो सेकेण्ड आए वो क्षत्रिय जो थर्ड आए वो वैश्य और जो बेचारे पास ही नहीं हुए ऐसे फेलियर लोगों को पुरस्कृत करने की परंपरा तो पहले थी न आज है फिर उन्हें महर्षि मनु कैसे पुरस्कृत कर देते !
- जिन्हें शिक्षा में आरक्षण चिकित्सा में आरक्षण मान सम्मान में आरक्षण !भोजन सामग्री मिलने में आरक्षण जगह जमीनें मिलने में आरक्षण इन्हें सरकार से आरक्षण में सब कुछ मिलता है सरकारें सारी योजनाएँ ही दलितों के विकास के लिए बनाती हैं इतनी सब सुख सुविधाएँ पाकर भी जो अपना विकास न कर पाते हों इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अतीत में भी यही हुआ होगा अर्थात दलितों के पूर्वज खुद ही नहीं कर पाए होंगे विकास और सवर्णों को दोषी ठहराते रहे किंतु ऐसे आरोपों को कितना और कैसे विश्वसनीय मान लिया जाए ?
- ब्राह्मण वर्ग यदि इतना ही दोषी होता तो अंबेडकर टाइटिल डॉ BR अंबेडकर साहब के शिक्षक की थी दूसरी पत्नी भी ब्राह्मण थीं ये ब्राह्मण टाइटिल और दूसरी पत्नी भी ब्राह्मण होना वो आजीवन सहर्ष स्वीकार करते रहे !फिर ब्राह्मण गलत कैसे हो सकते हैं !
- कांशीराम जी के तीन मित्र बताए जाते हैं एक गुर्जर दूसरा सैनी तीसरा ब्राह्मण क्यों ?
- सतीश मिश्रा जी की योग्यता के प्रति नत मस्तक हैं अपने को दलितों की मसीहा और देवी मानने वाली बसपा प्रमुख क्यों !
- जातियों के आधार पर जब तक आरक्षण लिया जाता रहेगा तब तक जातियाँ समाप्त करने की कल्पना कैसे की जा सकती है !
- जिन लोगों का सब कुछ आरक्षण और सरकारों से प्राप्त भिक्षा के आधीन हो ऐसे युवकों से सवर्णों के उन लड़के लड़कियों को विवाह करने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है जिन्होंने अपने जीवन को स्वयं अपने त्याग और परिश्रम से बुना हो !यदि ऐसा कर भी दिया जाए तो क्या उनके साथ यह अन्याय नहीं होगा ?
- जिनका आत्म विश्वास इतना कमजोर है कि जो अपने बल पर अपनी रसोई और घर गृहस्थी का खर्च तक नहीं चला सकते इसके लिए उन्हें सरकारों से मदद लेनी पड़ती हो वे चुनाव जीतकर भी अपने क्षेत्र का विकास कैसे कर पाते होंगे !
- दलितों को सरकारों के द्वारा मिलने वाली सारी सुविधाएँ भी तो सवर्णों के द्वारा कमाई हुई ही होती हैं जिन्हें टैक्स रूप में सवर्णों से लेकर सरकार आरक्षण प्रेमियों को देती है सवर्णों की कमाई पर जीवन यापन करने वाले लोगों के द्वारा सवर्णों की निंदा किया जाना कहाँ तक न्यायोचित माना जा सकता है !
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