Saturday, September 17, 2016

Mind 1(कॉपी)

      Mind 1
     लेख नं 3 
मनोरोगियों  के लिए ज्योतिष काउंसलिंग ही कारगर बाक़ी सब फेल !जानिए क्यों ?
    योगासनों का भी मनोरोग में कोई रोल नहीं ! मनोरोगी इतना निरुत्साही और निराश हो जाता है कि आसन करेगा कैसे !फिर आसनों से पेट हिलेगा दिमाग नहीं !मनोरोग से योगासनोंका क्या संबंध !
       सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं  किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !
    यथा -  "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |'
     कुल मिलाकर विश्व की किसी  भी चिकित्सा पद्धति में मनोरोगियों को स्वस्थ करने की कोई दवा नहीं होती नींद लाने के लिए दी जाने वाली औषधियाँ  मनोरोग की दवा नहीं अपितु नशा  हैं उन्हें मनोरोग की दवा नहीं कहा जा सकता है ! अब बात आती है  काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा की !
    काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा - 
    काउंसलिंग के नाम पर चिकित्सावैज्ञानिक मनोरोगी को जो बातें समझाते हैं उनमें उस मनोरोगी के लिए कुछ नया और कुछ अलग से नहीं होता है क्योंकि स्वभावों के अध्ययन के लिए उनके पास कोई ठोस आधार नहीं हैं और बिना उनके किसी को कैसे समझा सकते हैं आप !कुछ मनोरोगियों पर किए गए कुछ अनुभव कुछ अन्य लोगों पर अप्लाई किए जा रहे होते हैं किंतु ये विधा कारगर है ही नहीं  हर किसी की परिस्थिति मनस्थिति सहनशीलता स्वभाव साधन और समस्याएँ आदि अलग अलग होती हैं उसी हिसाब से स्वभावों के अध्ययन की भी कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिए !इस विषय में मैं ऐसे कुछ समझदार लोगों से मिला भी उनसे चर्चा की किंतु वे कहने को तो मनोचिकित्सक  थे किंतु मनोचिकित्सा के   विषय में  बिलकुल कोरे और खोखले थे !मैंने उनसे पूछा कि मन के आप चिकित्सक है तो मन होता क्या है तो उन्होंने कई बार हमें जो समझाया उसमें मन बुद्धि आत्मा विवेक आदि सबका घालमेल था किंतु मनोचिकित्सा की ये प्रक्रिया ठीक है ही नहीं क्योंकि इसके लिए हमें मन बुद्धि आत्मा आदि को अलग अलग समझना पड़ेगा और चोट कहाँ है ये खोजना होगा तब वहाँ लगाया जा सकता है प्रेरक विचारों का मलहम ! इसलिए ऐसी आधुनिक काउंसलिंग से केवल सहारा दे दे कर मनोरोगी का  कुछ समय तो  पास किया जा सकता है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !
     'समयशास्त्र' (ज्योतिष) -के द्वारा मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किसी मनोरोगी का विश्लेषण करने के लिए उसके जन्म समय तारीख़ महीना वर्ष आदि पर रिसर्च कर के सबसे पहले उस मनोरोगी का स्थाई स्वभाव खोजना होता है इसके बाद उसी से उसका वर्तमान स्वाभाव निकालना होता है फिर देखना होता है कि रोगी का दिग्गज फँसा कहाँ है ये सारी चीजें समय शास्त्रीय स्वभाव विज्ञान के आधार पर तैयार करके इसके बाद मनोरोगी से करनी होती है बात और उससे पूछना कम और बिना  बताना ज्यादा होता है उसमें उसे बताना पड़ता है कि आप अमुक वर्ष के अमुक महीने से इस इस प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं उसमें कितनी गलती आपकी है और कितनी किसी और की ये सब अपनी आपसे बताना होता है उसके द्वारा दिया गया डिटेल यदि सही है तो ये प्रायः साठ से सत्तर प्रतिशत तक सही निकल आता है जो रोगी और उसके घरवालों ने बताया नहीं होता है इस कारण मनोरोगी को इन बातों पर भरोसा होने लगता है इसलिए उसका मन मानने को तैयार हो जाता है फिर वो जानना चाहता है कि ये तनाव घटेगा कब और घटेगा या नहीं !ऐसे समय इसी विद्या से इसका उत्तर खोजना होता है यदि घटने लायक संभावना निकट भविष्य में है तब तो वो बता दी जाती है और विश्वास दिलाने के लिए रोगी से कह  दिया जाता है कि मैं आपके बीते हुए जीवन से अनजान था मेरा बताया हुआ आपका पास्ट जितना सही है उतने प्रतिशत फ्यूचर भी सही निकलेगा !इस बात से रोगी को बड़ा भरोसा मिल जाता है और वह इसी सहारे बताया हुआ समय बिता लेता है !
     दूसरी बात इससे विपरीत अर्थात निकट भविष्य में या भविष्य में जैसा वो चाहता है वैसा होने की सम्भावना नहीं लगती है तो भी उसका पास्ट बताकर पहले तो विश्वास में ले लिया जाता है फिर फ्यूचर के विषय  में न बताकर  अपितु  घुमा फिरा कर कुछ ऐसा समझा दिया जाता है जिससे तनाव घटे और वो धीरे धीरे भूले इसके लिए कईबार उसके साथ बैठना होता है । आदि  इस प्रकार से   मनोचिकित्सा के   विषय में भी  'समयशास्त्र' (ज्योतिष)की बड़ी भूमिका है ।  मनोरोगियों में पनपजाते हैं कई प्रकार केशारीरिकरोग -
      मनोरोग के कारण  शारीरिक बीमारियाँ भी पैदा होने लगती हैं उसी के साथ एक एक पर एक जुड़ती चली जाती हैं धीरे धीरे मनोरोग तो पीछे पड़ बाक़ी शारीरिक बीमारियों का समूह बन जाता है मनोरोगी  !ऐसे रोगों का इलाज शारीरिक  चिकित्सा पद्धति की दृष्टि से अत्यंत कठिन एवं काम चलाऊ  होता है ऐसे लोगों को समयशास्त्र  (ज्योतिष)की पद्धति से कुछ समय तक यदि लगातार काउंसलिंग दी जाए और उसके बाद चिकित्सा की जाए तो घट सकती हैं जीवन से जुडी अनेकों बीमारियाँ !
   आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे लोग अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं हैं इसलिए उनके शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता है उससे नींद नहीं आती है नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लगती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,यही गैस कान में पहुँच कर कर्ण निनाद अर्थात कानों में आवाजें आने लगना तैयार कर देती है बाल फटना ,सफेद होना ,झड़ना, उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना , 6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी तथा जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,घुटने जाम होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें होने लगती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने  मन नहीं होता किसी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों पर यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकर मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और चिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !   कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूज में सुनने पर ऐसे लोग उस बड़ी से बड़ी बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !
     चिकित्सा करते समय ऐसे लोगों का मानसिक तनाव सर्व प्रथम कम करना चाहिए जब  मानसिक तनाव घटकर चिंतन सामान्य हो जाए!ऐसे लोगों की चिकित्सा में धीरे धीरे कुछ महीना  या अधिक दिक्कत हुई तो वर्ष भी लग सकते हैं ठीक ढंग से सविधि चिकित्सा करने में समय तो लगता है किंतु धीरे धीरे सब कुछ नार्मल होता चला जाता है !कंडीशन पर डिपेंड करता है ! सबसे पहले तो हमें ऐसे लोगों के विषय में गंभीर रिसर्च इस बात के लिए करनी होती है कि ये परिस्थिति पैदा क्यों हुई !दिमागी तनाव बढ़ा क्यों और कब से बढ़ा तथा रहेगा कब तक और उसे ठीक करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं !
      दूसरी स्टेज वो आती है जब पता करना होता है कि इतने दिनों तक तनाव बना रहने से सम्बंधित व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार से कितना नुक्सान हुआ और उसे रिकवर कैसे किया जाए !ये खान पान औषधि टॉनिक आदि  चीजों के साथ साथ उचित आहार व्यवहार से उचित समय से उचित मात्रा में देना होता है । इन सबके साथ साथ अपने विरुद्ध सोचने की आदत ऐसे लोगों की इतनी जल्दी नहीं छूटती है ये डर हमेंशा बना रहता है कि ये कहीं पुरानी स्थिति में फिर न लौट जाएँ इसलिए ऐसे लोगों समय समय पर आवश्यकतानुशार उचित काउंसेलिंग करनी होती है ।
     योगासन करने से लाभ -   ऐसे में ये निरुत्साही लोग योगासन भी नहीं कर पाते करें तो थोड़ा डैमेज कंट्रोल हो सकता है किन्तु अधिक नहीं कुछ पाखंडी लोग ऐसे सपने दिखाते हैं कि योगासनों से मनोरोग दूर हो जाएंगे ये सच नहीं हैं इसमें एकमात्र भूमिका निभा सकता है तो समयशास्त्र  (ज्योतिष)इसकी पद्धति  ही मनोरोग में सबसे अधिक प्रभावी है । 



 मनोरोग, मानसिक तनाव ,स्ट्रेस आदि  को  कंट्रोल करने में सक्षम है ज्योतिष ! जानिए कैसे ?
   भविष्य के भय को चिंता कहते हैं और गंभीर एवं लगातार रहने वाली चिंताएँ ही मनोरोगी बना देती हैं जिनके कारण सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा कर देता है मानसिक तनाव !उन बीमारियों पर यथासंभव नियंत्रण करने की योग्यता तो डॉक्टरों के पास है किंतु जिस मानसिक तनाव से वो बीमारियाँ होती हैं उस तनाव को कैसे घटाया जाए ! इसके लिए चिकित्सा पद्धति में कोई उपाय नहीं है । वस्तुतः ये विषय ही ज्योतिषविज्ञान का है  ।
    मन के प्रायः समस्त रोग भविष्य के भय सोच सोच कर होते हैं "कल क्या होगा !"जो हम पाना चाहते हैं वो हमें मिलेगा कि नहीं ?जो हमें मिला आई उसे सुरक्षित रख पाएँगे कि नहीं !कल कोई बीमारी तो नहीं हो जाएगी !व्यापार में घाटा तो नहीं हो जाएगा !कुल मिलाकर भविष्य में कुछ बुरा न हो जाए चिंता तो इसी बात की है कि सब कुछ वैसा होगा क्या जैसा हम भविष्य में चाहते हैं आदि बातों के ही तो हमें मानसिक तनाव होते हैं !भविष्य में क्या होगा क्या नहीं आदि भविष्यसंबंधी बातों का जवाब कोई डॉक्टर या मनोचिकित्सक कैसे दे सकता है !ये तो काम  ही ज्योतिष का है इसलिए इसका उत्तर भी ज्योतिष वैज्ञानिक ही दे सकते हैं ।     
        डॉक्टरों का कार्यक्षेत्र हमारे शरीर का हार्डवेयर तो है किंतु साफ्टवेयर पर उनका कोई अधिकार नहीं है!डॉक्टर या विश्ववैज्ञानिक अभी तक आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियों आदि को लेकर इनके आस्तित्व को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करते हैं क्योंकि इन्हें वो देख नहीं सकते छू नहीं सकते इनका अनुभव नहीं कर सकते !यदि सच्चाई इतनी ही है तो इन्हें मनोचिकित्सक क्यों मान लिया जाए !ये मन को देख नहीं सकते छू नहीं सकते मन की जाँच नहीं कर सकते मन को दवा नहीं दे सकते किसी के मन की उदासी निराशा आत्मग्लानि आदि को कम करने की इनके पास कोई दवा नहीं है फिर भी मनो चिकित्सक आखिर किस बात के !मन की चिकित्सा में इन चिकित्सकों की भूमिका आखिर क्या है !
     मोबाईल का मैकेनिक मोबाईल के पुर्जे पुर्जे खोल सकता है बाँध सकता है नए बदल सकता है किंतु उसमें मैसेज आएगा कि नहीं कॉलड्रॉप होगा कि नहीं ये मोबाइल मैकेनिक नहीं बता सकता !घर में लगे बिजली के उपकरण ठीक कर लेने वाला मैकेनिक बिजली आने न आने की गारंटी नहीं दे सकता और बिजली के बिना उन्हें चला कर नहीं दिखा सकता !जैसे मोबाईल और बिजली उपकरणों के मैकेनिक का उसके साफ्टवेयर पर कोई अधिकार नहीं होता है ठीक उसी प्रकार से शरीरों के मैकेनिक डॉक्टरों का  शरीरों के साफ्टवेयर पर कोई अधिकार नहीं होता !
     आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियों आदि का क्या पता उनको !डॉक्टर लोग पूरा शरीर खोलकर देख लेते हैं किंतु उन्हें आत्मा मन बुद्धि प्राण इंद्रियाँ आदि कहीं नहीं मिलते !आधुनिक वैज्ञानिकों की आदत है कि वो जिस चीज को देख नहीं सकते छू नहीं सकते आदि उसे वो विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं होते !जिसमें भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की तो बात सुनते ही वो भड़क उठते हैं । मोबाईल और टेलीवीजन में जितने सन्देश या चित्र आदि दिखाई पड़ते हैं यदि मोबाईल एवं  टेलीवीजन का पुर्जा पुर्जा खोल दिया जाए तो एक भी सन्देश या चित्र आदि उसके अंदर खोजने पर भी कहीं नहीं मिलेगा किंतु वैज्ञानिकों को उसमें आपत्ति इसलिए नहीं है क्योंकि इनमें जो सन्देश या चित्र आदि दिखाई पड़ते हैं वो जहाँ से भेजे जातें हैं उन कंपनियों के विषय में इन्हें पता है ये उस सारे सिस्टम को समझते हैं इसलिए इन्हें उसमें कोई आश्चर्य नहीं लगता किंतु शरीर के साफ्टवेयर विज्ञान के विषय में इन्हें चूँकि जानकारी नहीं है इसलिए ये उन बातों को गलत मानते हैं यदि इन वैज्ञानिकों को जानकारी नहीं है इसलिए इनके कह देने  पर  शरीर के साफ्टवेयर विज्ञान को गलत कैसे मान लिया जाए !हम अपने शरीर की हर समस्या का समाधान डाक्टरों से चाहते हैं किंतु उनकी भी सीमाएँ  हमें समझनी होंगी !के पास भागते हैं किंतु हमें यह भी सोचना चाहिए कि डाक्टर हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत कुछ हैं किंतु सब  कुछ नहीं हैं 
मन है क्या ? मनोरोग क्या हैं इनकी जाँच कैसे हो दवा कैसे हो !मनोचिकित्सा या औषधि देने से मानसिकतनाव, निराशा, उदासी, हीनभावना आदि रुकजाती है क्या ?यदि नहीं तो मनोचिकित्सा का मतलब क्या है !मन को देखा नहीं जा सकता छुआ नहीं जा सकता जाँचा नहीं जा सकता !मन में दवा नहीं दी जा सकती फिर मनोचिकित्सा कैसी !
मन -
   जुकाम बुखार जैसी छोटी छोटी बीमारियों में बिना जाँच कराए एक कदम भी आगे न बढ़ने वाले चिकित्सक मन की जाँच किस मशीन से करते होंगे ?मनोरोगी को कौन सी दवा देते हैं और उस दवा से मानसिक तनाव घट जाता है क्या ? सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा करने वाले मानसिक तनाव को घटाने के लिए क्या है आधुनिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के पास उपाय क्या है ?     बेरोजगारी, किसी प्रियजन की मृत्यु, कर्जदार होने जैसी आर्थिक समस्याएं, अकेलेपन बांझपन या नपुंसकता, वैवाहिक झगड़ा, हिंसा और मानसिक अघात ऐसी समस्याएं हैं जो बहुत ज्यादा तनाव पैदा करती है | कुछ लोग ऐसी स्थिति में ही मनोरोगी होकर सुगर B. P. जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं ।मन को न मानने वाली चिकित्सा पद्धति में मन को  जाँचने वाली न कोई मशीन है और न ही मनोरोग की कोई दवा ही होती है !चिकित्सा पद्धति में लोगों का स्वभाव समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है अच्छे बुरे समय के अनुसार लोगों का स्वभाव बदलता रहता है इसलिए किसी भी व्यक्ति के समय को समझे बिना उसके स्वभाव को समझ पाना अत्यंत कठिन है और स्वभाव को समझे बिना मनोरोगियों को दी जाने वाली काउंसलिंग  खानापूर्ति मात्र होती  है जबकि ऐसे स्थलों पर ज्योतिष विज्ञान संपूर्ण रूप से सटीक बैठता है ।इसके  द्वारा काफी हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं मनोरोग !
 रोग और मनोरोग जैसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए  समय का पूर्वानुमान लगाकर उसके अनुरूप ही कार्य योजना बनाकर चलने से ऐसी परेशानियों के  पैदा होने से बचा जा सकता है । पुराने समय में जब राजा प्रजा लोग ज्योतिषीय पद्धति से  समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे उसी के अनुसार जीवन और शासन सत्ता को ढाल लिया करते थे !इसीलिए तब रोगी मनोरोगी हत्यारे आत्महत्यारे बलात्कारी और लुटेरे आदि इतने नहीं होते थे । ज्योतिषीय पूर्वानुमान के कारण ही लोग अच्छी बुरी परिस्थितियों को सहने की क्षमता  रखते थे यही कारण है कि  तब जो समाज विश्व बन्धुत्व की भावना से जुड़ा होता था कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे किंतु ज्योतिष की उपेक्षा होते ही समाज बिखर रहा है परिवार टूट रहे हैं 'वसुधैवकुटुम्बकं' तो दूर अब तो पति -पत्नी ,बाप-बेटा ,भाई - भाई के संबंध भी बोझ बनते जा रहे हैं एक साथ कब तक रह पाएँगे कहना कठिन  है ।
ज्योतिष अपनाओ ! तनाव घटाओ ! मनोरोग भगाओ !
    भविष्य का भय ही चिंता है जिसे जितना बड़ा भय उसे उतनी बड़ी चिंता !
      जिसके स्वप्नों और परिस्थितियों में जितना बड़ा गैप उसे उतनी बड़ी चिंता !इस गैप को ही तो तनाव खिंचाव चिंता स्ट्रेस आदि कुछ भी कहा जा सकता है । गलत काम करने वालों को, अधिक कर्ज से रिस्क लेकर काम करने वालों को जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने वालों को !किसी न ठीक होने लायक बीमारी वालों को या दवा कराने की सामर्थ्य न होने वालों को भविष्य का भय बहुत अधिक रहता है ऐसे लोगों में मनोरोग होने की प्रबल संभावनाएँ होती हैं । 
     जिसका मन नैतिकता, कानून ,सिद्धांत, सदाचार ,कृतज्ञता और ईश्वर पर विश्वास छोड़कर जितनी दूर चला जाता है उतनी ज्यादा गंदगी समेट लाता है ! गंदे काम करके आया कोई संस्कारित बच्चा जैसे अपने माता पिता का सामना करने में डरता है वैसे ही गलत काम करने वाले लोग अपनी आत्मा का सामना करने से डरने और बचने लगते हैं जैसे हम यदि सूर्य के सामने नहीं पड़ेंगे तो सूर्य की किरणे हमारे ऊपर नहीं पड़ेंगी और धूप न लगने से जैसे स्वास रोग, टीवी ,एलर्जी आदि अनेकों बीमारियाँ होने लगती हैं हड्डियाँ कमजोर  हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार से आत्मसूर्य का प्रकाश मन पर न पड़ने से मन में होने वाली बीमारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं और मन कमजोर होने लगता है । क्योंकि हमारे मन को बल (ताकत) आत्मा से ही मिलता है और आत्मा के सामने न पड़ने के कारण मन को आत्मा का बल नहीं मिल पाता है ऐसे आत्मबल से विहीन लोग हर किसी से डरने लगते हैं हर काम डर डर कर करते हैं । मन उदास रहता है काम करने का उत्साह नहीं रहता इसीलिए काम डरने के कारण काम धीरे धीरे करते हैं और धीरे धीरे काम करने के कारण ही सबसे पहले पेट की पाचन शक्ति समाप्त होने लगती है इसके बाद शरीर बिगड़ने लगता है और धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय (जाम) होता चला जाता है यही स्थिति बढ़ते बढ़ते हृदय रोग शुगर रोग जैसी तमाम बड़ी बीमारियाँ पनपने  लगती हैं और धीरे धीरे बीमारियों से बीमारियाँ बनने लगती हैं ।बीमारियों का जाल बनता चला जाता है सकने वाले न हमारे उससे हमारे देता है यही आत्मा ही हमारे आतंरिक जगत का सूर्य है जैसे सूर्य 
 सूर्य हमें प्रकाश देता है और बिटामिन 'D ' अर्थात शक्ति देता है सूर्य
     भविष्य का भय हर किसी को रहता है  हर कोई जानना चाहता है कि हमारे जीवन में कल क्या होगा !और यह जानना जरूरी भी है !भविष्य के विषय में ये पता हो कि हम अपने जीवन का विकास करने के किस क्षेत्र में कितना बढ़ सकते हैं तो वो उस सीमा में अपने को समेटने की कोशिश करता है या उससे अधिक जो प्रयास भी करता है उनसे बहुत अधिक आशा नहीं रखता है मिल जाए तो अच्छा और न मिल जाए तो विष तनाव नहीं होता !
ज्योतिष अपनाओ ! तनाव घटाओ ! मनोरोग भगाओ !
    भविष्य का भय ही चिंता है जिसे जितना बड़ा भय उसे उतनी बड़ी चिंता !
      जिसके स्वप्नों और परिस्थितियों में जितना बड़ा गैप उसे उतनी बड़ी चिंता !इस गैप को ही तो तनाव खिंचाव चिंता स्ट्रेस आदि कुछ भी कहा जा सकता है । गलत काम करने वालों को, अधिक कर्ज से रिस्क लेकर काम करने वालों को जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने वालों को !किसी न ठीक होने लायक बीमारी वालों को या दवा कराने की सामर्थ्य न होने वालों को भविष्य का भय बहुत अधिक रहता है ऐसे लोगों में मनोरोग होने की प्रबल संभावनाएँ होती हैं । 
     जिसका मन नैतिकता, कानून ,सिद्धांत, सदाचार ,कृतज्ञता और ईश्वर पर विश्वास छोड़कर जितनी दूर चला जाता है उतनी ज्यादा गंदगी समेट लाता है ! गंदे काम करके आया कोई संस्कारित बच्चा जैसे अपने माता पिता का सामना करने में डरता है वैसे ही गलत काम करने वाले लोग अपनी आत्मा का सामना करने से डरने और बचने लगते हैं जैसे हम यदि सूर्य के सामने नहीं पड़ेंगे तो सूर्य की किरणे हमारे ऊपर नहीं पड़ेंगी और धूप न लगने से जैसे स्वास रोग, टीवी ,एलर्जी आदि अनेकों बीमारियाँ होने लगती हैं हड्डियाँ कमजोर  हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार से आत्मसूर्य का प्रकाश मन पर न पड़ने से मन में होने वाली बीमारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं और मन कमजोर होने लगता है । क्योंकि हमारे मन को बल (ताकत) आत्मा से ही मिलता है और आत्मा के सामने न पड़ने के कारण मन को आत्मा का बल नहीं मिल पाता है ऐसे आत्मबल से विहीन लोग हर किसी से डरने लगते हैं हर काम डर डर कर करते हैं । मन उदास रहता है काम करने का उत्साह नहीं रहता इसीलिए काम डरने के कारण काम धीरे धीरे करते हैं और धीरे धीरे काम करने के कारण ही सबसे पहले पेट की पाचन शक्ति समाप्त होने लगती है इसके बाद शरीर बिगड़ने लगता है और धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय (जाम) होता चला जाता है यही स्थिति बढ़ते बढ़ते हृदय रोग शुगर रोग जैसी तमाम बड़ी बीमारियाँ पनपने  लगती हैं और धीरे धीरे बीमारियों से बीमारियाँ बनने लगती हैं ।बीमारियों का जाल बनता चला जाता है 
         
 मन क्या है ? मनोरोग कितने हैं ? मन में होने वाले रोगों की जाँच कैसे की जाती है ?मनोरोगों की दवा क्या है ?उस दवा से मनोरोग  या मानसिक तनाव  को रोका जा सकता है क्या ?

      मनोरोग, मानसिक तनाव ,स्ट्रेस आदि कंट्रोल करने का एक मात्र  उपाय है ज्योतिष !जानिए कैसे ?

   जुकाम बुखार जैसी छोटी छोटी बीमारियों में बिना जाँच कराए एक कदम भी आगे न बढ़ने वाले मनोचिकित्सक लोग मन की जाँच किस मशीन से करवाते हैं और मनोरोगी को कौन सी दवा देते हैं और उस दवा से मानसिक तनाव घट जाता है क्या ? सुगर, B. P. , हार्टअटैक, अनिद्रा ,पेटखराबी  जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों को पैदा करने वाले मानसिक तनाव को घटाने के लिए क्या है आधुनिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के पास उपाय क्या है ?

कुछ लोग ऐसी स्थिति में ही मनोरोगी होकर सुगर B. P. जैसी तमाम अन्य बड़ी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं ।मन को न मानने वाली चिकित्सा पद्धति में मन को  जाँचने वाली न कोई मशीन है और न ही मनोरोग की कोई दवा ही होती है !चिकित्सा पद्धति में लोगों का स्वभाव समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है अच्छे बुरे समय के अनुसार लोगों का स्वभाव बदलता रहता है इसलिए किसी भी व्यक्ति के समय को समझे बिना उसके स्वभाव को समझ पाना अत्यंत कठिन है और स्वभाव को समझे बिना मनोरोगियों को दी जाने वाली काउंसलिंग  खानापूर्ति मात्र होती  है जबकि ऐसे स्थलों पर ज्योतिष विज्ञान संपूर्ण रूप से सटीक बैठता है ।इसके  द्वारा काफी हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं मनोरोग !

     रोग और मनोरोग जैसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए  समय का पूर्वानुमान लगाकर उसके अनुरूप ही कार्य योजना बनाकर चलने से ऐसी परेशानियों के  पैदा होने से बचा जा सकता है । पुराने समय में जब राजा प्रजा लोग ज्योतिषीय पद्धति से  समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे उसी के अनुसार जीवन और शासन सत्ता को ढाल लिया करते थे !इसीलिए तब रोगी मनोरोगी हत्यारे आत्महत्यारे बलात्कारी और लुटेरे आदि इतने नहीं होते थे । ज्योतिषीय पूर्वानुमान के कारण ही लोग अच्छी बुरी परिस्थितियों को सहने की क्षमता  रखते थे यही कारण है कि  तब जो समाज विश्व बन्धुत्व की भावना से जुड़ा होता था कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे किंतु ज्योतिष की उपेक्षा होते ही समाज बिखर रहा है परिवार टूट रहे हैं 'वसुधैवकुटुम्बकं' तो दूर अब तो पति -पत्नी ,बाप-बेटा ,भाई - भाई के संबंध भी बोझ बनते जा रहे हैं एक साथ कब तक रह पाएँगे कहना कठिन  है । 

मानसिकतनाव विज्ञान !

 ऐसे लोगों को समय विज्ञान की दृष्टि से यदि काउंसलिंग (परामर्श) दिया जाए एक सीमा तक बचाव हो सकता है अन्यथा ऐसे मनोरोगी धीरे धीरे गंभीर शारीरिक बीमारियों से ग्रसित होते चले जाते हैं । 
      कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बिना तनाव के रह ही नहीं सकते !ऐसे लोग अच्छी से अच्छी एवं अनुकूल से अनुकूल बातों व्यवहारों से भी अपने लिए मानसिक तनाव खोज लेते हैं ऐसे लोग धीरे धीरे मानसिक तनाव में रहने के आदी हो जाते हैं ।कुछ समय विंदुओं में ऐसी परिस्थितियाँ सारे जीवन के लिए होती हैं तो कुछ में दो चार दस पाँच वर्ष के लिए होती हैं । ऐसे समय विन्दुओं का अध्ययन करके ये पता किया जा सकता है कि यह तनावी मानसिकता किसमें कितने समय के लिए है जिसके जीवन में कुछ वर्षों के लिए है वो किस उम्र या किस  वर्ष में होगी  साथ ही इससे बचने के लिए क्या कुछ सावधानी बरती जानी चाहिए आदि पर व्यापक रिसर्च की आवश्यकता है । इन्हें कोई नमस्ते करे तो तनाव न करे तो तनाव ।किसी के नमस्ते करने से इस बात का तनाव कि कोई स्वार्थ होगा तभी ऐसा कर रहा है और नमस्ते न करने से इन्हें लगता है वो घमंडी  हो गया है। आफिस में या घर में इनकी आज्ञा लेकर कोई काम करे तो इन्हें चमचा गिरी लगती है और इनसे बिना पूछे करे तो इन्हें लापरवाह घमंडी आदि वो सब कुछ लगता है जिससे अपना तनाव बढ़ाया जा सके !
      ऐसे लोग अपने इतने बड़े शत्रु स्वयं होते हैं कि ये अपनों पर तो शक करते ही रहते  हैं साथ ही इन्हें अपनी कार्यक्षमता पर भी हमेंशा शक बना रहता है किंतु ऐसी बातें ये मन खोलकर कभी किसी के सामने रखते नहीं हैं केवल अंदर ही अंदर सहते रहते हैं ऐसे लोग अपने  गलत चिंतन से तैयार हुआ दिमागी कूड़ा कचरा खुद ढोया करते हैं इन्हें अपने को अकारण व्यस्त और सम्मानित मानने की लत होती है बहुत काबिल समझते हैं अपने को इसीलिए इन्हें एक एक करके धीरे धीरे अपने लोग छोड़ते चले जाते हैं। यहाँ तक कि पति पत्नी और बच्चों के संबंध भी इतने अधिक बोझिल हो जाते हैं कि कुछ को ये छोड़ देते और कुछ इन्हें छोड़ देते हैं यदि सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा धन दौलत मान मर्यादा आदि बहुत अच्छी हुई तो परिवार के लोग दिखावटी रूप से तो जुड़े रहते हैं किंतु मन से औरों के प्रति समर्पित हो जाते हैं उसका भी  इन्हें तनाव होता है ऐसे तनाव प्रिय लोग अपनी सोच के कारण अपने घर को एक घोसला बना लेते हैं जहाँ रात्रि में केवल सोने के लिए इकट्ठे होते हैं बाकी उनकी सारी  सुख सुविधाएँ दूसरों पर आश्रित एवं घर से बाहर होती हैं । 
       ऐसे लोग सुखों एवं अपनेपन  के अभाव में आजीवन तड़पते रहते हैं इनकी मदद के लिए समय विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और इन्हें भी सामान्य जीवन की सुख सुविधाओं का एहसास करवा सकता है भविष्य का भय हर किसी को रहता है  हर कोई जानना चाहता है कि हमारे जीवन में कल क्या होगा !और यह जानना जरूरी भी है !भविष्य के विषय में ये पता हो कि हम अपने जीवन का विकास करने के किस क्षेत्र में कितना बढ़ सकते हैं तो वो उस सीमा में अपने को समेटने की कोशिश करता है या उससे अधिक जो प्रयास भी करता है उनसे बहुत अधिक आशा नहीं रखता है मिल जाए तो अच्छा और न मिल जाए तो विष तनाव नहीं होता !


आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे में वो अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं हैं ऐसे में उनके शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता है उससे नींद नहीं आती है नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लगती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,कानों में आवाजें आने लगना ,मसूड़ों में दर्द होना सूजन हो जाना ,मुख के अंदर छाले पड़ना या घाव होने लगना ,जीभ में बलगम लिपटा रहना मुख से दुर्गंध आने लगना,बाल फटना ,सफेद होना ,झड़ना उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगाना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,महिलाओं के मुख पर बाल उगने लगना, सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना ,दबाने से बायीं और दायीं छाती से निचे पेट के ऊपर ज्वाइंट में दर्द होने लग्न या कुछ अड़ा सा प्रतीत होने लगना होने लगना ! 6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगाना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी तथा जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,घुटने जाम होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें होने लगती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने  मन नहीं होता किसी से आँख मिलने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों पर यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकर मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और चिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !
     कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूज में सुनने पर ऐसे लोग उस बड़ी से बड़ी बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !कि किंतु भी बहुत अधिक कारगर नहीं होते
पेट में शांत करने के लिए पति पत्नियों के आपसी शांत करने के लिए बीमारियाँ
 

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