कोरोनिल कोरोना और बाबा रामदेव के रिसर्च पर सबसे बड़ा रिसर्च !
कोरोना महामारी को व्यापार बनाने का अवसर है !
आज 23 जून है जब रामदेव ने अपनी तथाकथित कोरोना की दवा लांच की है बाजार में कोरोना के लिए अभी तक न कोई औषधि है और न ही कोई वैक्सीन बनी है ऐसी परिस्थिति में उनके पास विज्ञापन के लिए पैसे भी हैं | तो उन्हें यह महामारी बेचकर धन कमाने का सबसे सुनहरा मौका है | व्यापारिक दृष्टि से उन्होंने बिल्कुल ठीक समय पर निशाना लगाया है इस बीमारी के बहाने भगवान उन्हें बहुत पैसा दे ईश्वर से मैं भी ऐसी मंगल कामना करता हूँ |
रामदेव जो कहते हैं कि अभी तक कोरोना की दवा का रिसर्च करते रहे हैं वस्तुतः वो कोरोना की दवा का रिसर्च न होकर अपितु किस समय दवा लांच की जाए जब अपयश की सम्भावना काम और यश की संभावना अधिक हो और पैसा भी अधिक कमाया जा सके !इस दृष्टि से यह बिल्कुल ठीक समय है |इस लेख के माध्यम से हम तीन बिंदुओं पर बिचार करेंगे पहला यह समय ही दवा लाँच करने के लिए क्यों चुना गया ?दूसरी बात महामारी में होने वाले रोगों की दवा बना पाना संभव है क्या ?तीसरी बात रामदेव की दवा 'कोरोनिल' में पड़े घटक द्रव्यों में से उसके मुख्य द्रव्य गिलोय तुलसी अश्वगंधा ही हैं जैसा कि वो खुद कह रहे हैं तो इसमें इन तीन चीजों में से इतनी महँगी कौन सी चीज है जिसके कारण उन्हें इस 25 ग्राम की डब्बी की कीमत 600 या 400 रूपए समाज की मदद करने के लिए रखनी पड़ी है |
सबसे पहले कोरोनिल दवा लाँच करने का समय :-
23 जून का आज वो दिन है जब कोरोना की बिना किसी दवा या वैक्सीन के कोरोना से संक्रमित रोगियों के ठीक होने की दर सारे विश्व में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक अब देश में संक्रमितों की रिकवरी रेट 56.38% हो गया है जो संक्रमितों की संपूर्ण संख्या के आधे से काफी अधिक है | पिछले 4 दिनों में इसमें 6% का इजाफा देखने को मिला है। इसके पहले 19 जून को 50.12% रिकवरी रेट थी। मंत्रालय के मुताबिक अभी तक देश में कुल 2 लाख 58 हजार 523 लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं जबकि 1 लाख 78 हजार 014 संक्रमितों का इलाज चल रहा है | यहाँ तक कि आज सुबह से शाम तक 15,368 नए मामले सामने आए हैं और 10,386 रोगी स्वस्थ होकर घर गए हैं | उधर चिकित्सकों ने पहले से ही कह रखा है कि कोरोना का प्रभाव पहले की अपेक्षा कम हुआ है इसकी मारक क्षमता भी घटी है | दूसरी बात कोरोना से होने वाली मौतों में बहुत बड़ी संख्या उन रोगियों की है जो पहले से किसी बड़ी बीमारी से ग्रसित हैं | केवल कोरोना से मरने वाले रोगियों की संख्या बहुत कम है |वैसे भी पिछले तीन दिनों से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या दिनों दिन कम होते देखी जा रही है |
ध्यान रहे कि अभी तक बिना किसी दवा वैक्सीन के भी कोरोना जैसी महामारी का पलायन तेजी से होते देखा जा रहा है|कोरोना की रिकवरी बढ़ने या कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या घटने या संक्रमण का बिषैलापन कम होने में किसी भी दवा या वैक्सीन की कोई भूमिका अभी तक सिद्ध नहीं हो सकी है ये सब बिना रामदेव जैसे लोगों की दवा लाँच हुए भी होते देखा जा रहा है | ऐसे समय ऐसी किसी दवा का ढिंढोरा पीटने का पवित्र उद्देश्य क्या हो सकता है |
कोरोना जैसी महामारियों को दवाओं या वैक्सीन से पराजित किया जा सकता है क्या ?
वेद विज्ञान का मानना है कि महामारियाँ हमेंशा बुरे समय के प्रभाव से निर्मित होती हैं बुरा समय आते ही संपूर्ण वायु मंडल ,जल एवं समस्त खाद्य पदार्थ बिषैले होने लग जाते हैं !बिना साँस लिए या कुछ खाए पिए बिना किसी का रहना संभव होता नहीं है सभी को साँस तो लेनी ही पड़ेगी और जीने के लिए कुछ न कुछ खाना पीना भी पड़ता है | इसलिए बुरे समय के प्रभाव से होने वाली महामारियों के प्रभाव से किसी का बच पाना संभव नहीं होता है |
समय का प्रभाव ऐसा होता है कि महामारी के कठिन समय में भी रोगी वही लोग होते हैं जिनका अपना समय भी रोग कारक चल रहा होता है और जिनका अपना समय मृत्यु कारक चल रहा होता है उनकी मृत्यु तो होनी ही होती है उनके लिए कोरोना जैसी महामारियाँ बहाना बन जाती हैं | जिनका अपना समय बिल्कुल ठीक चल रहा होता है वे ऐसी महामारियों में भी स्वस्थ बने रहते हैं या थोड़े बहुत रोगी होकर भी समय के प्रभाव से स्वस्थ होते देखे जाते हैं |यही कारण है कि इस बार भी बच्चे बूढ़े सभी वर्ग से लोग अपने अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ होते देखे गए हैं कुछ तो सौ वर्ष से अधिक उम्र के लोग भी स्वस्थ होते देखे गए हैं क्योंकि उनका अपना समय अच्छा चल रहा था |
कुलमिलाकर समय का ही समय का ही सारा खेल है जिसके जीवन में जब जैसा समय आता है तब वैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |किसी व्यक्ति का समय जब ख़राब आता है तब उसके सारे काम बिगड़ने लगते हैं उसे तनाव होने लगता है ऐसे लोग हर किसी से झगड़ने लगते हैं किंतु लोग उसकी आदत समझ कर सह जाया करते हैं किंतु समस्या तब होती है जब उसी समय किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन में भी ऐसा ही समय आ जाता है ऐसे दो लोग किसी एक ही परिवार ,व्यापार,सरकार ,संस्थान,संस्था या राजनैतिकदल में प्रभावी पद पर बैठे होते हैं और उन्हें एक दूसरे के साथ ही काम करना पड़ता है तो वहाँ उन दोनों के बीच आपसी तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है कई बार तो इसी समय के प्रभाव से संस्थाएँ टूटते या नष्ट भ्रष्ट होते देखी जाती हैं | यदि ऐसे समय के शिकार कोई पति पत्नी एक साथ ही हो जाते हैं तो उन दोनों के बीच उसी समय कलह बहुत अधिक बढ़ जाता है कई बार तो इसी बुरे समय के प्रभाव से पति पत्नी में तलाक तक होते देखा जाता है | ये सब बुरे समय का ही प्रभाव है |
यही स्थिति चिकित्सा के क्षेत्र में भी है लगभग एक तरह के कुछ रोगी किसी अस्पताल में रोग मुक्ति अर्थात स्वस्थ होने के लिए एडमिट होते हैं उन्हें अत्यंत योग्य एक जैसे चिकित्सकों के द्वारा अच्छी से अच्छी औषधियाँ स्वास्थ्य सुधारने के लिए दी जाती हैं किंतु उस एक जैसी चिकित्सा का असर प्रत्येक रोगी के स्वास्थ्य पर अलग अलग होते देखा जाता है |उनमें से कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं और कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं ये उन सभी रोगियों के अपने अपने समय का ही असर होता है ऐसा महामारियों में भी होते देखा जाता है |कोरोना जैसी महामारियों के समय भी कुछ लोग अस्वस्थ होते हैं और उनमें से बहुत कम लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है इनके अतिरिक्त बहुत बड़ा वर्ग ऐसा होता है जिसको ऐसे समय में भी सर्दी जुकाम तक नहीं होता है ये उनके अपने अच्छे समय का प्रभाव होता है |इसलिए जिनका जब जैसा समय चल रहा होता है उन्हें तब वैसी परिस्थिति का सामना करना ही पड़ता है |जिसे अपने समय के संचार के बिषय में पता होता है ऋतुपरिवर्तन अर्थात मौसम बदलने के समय या महामारी फैलने के समय विशेष सावधानी पूर्वक पथ्य परहेज से रहना होता है |मैंने इसी बिषय पर अनुसंधान अनुभव एवं पीएचडी की है पिछले 25 वर्षों से अनुभव भी करता आ रहा हूँ इसलिए मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि जब किसी का अपना समय ख़राब आता है तब वह रोगी होता है उसे तनाव होता है उसके सारे काम बिगड़ते हैं किंतु जब सारे संसार पर सामूहिक रूप से बुरे समय का प्रभाव पड़ता है तब महामारियाँ फैलती हैं दो देशों के बीच तनाव होता है बार बार भूकंप आते हैं | आदि आदि और भी बहुत कुछ | रामदेव ने यदि आयुर्वेद पढ़ा होता तो उन्हें समय के बिषय में ये बातें पता होतीं | उन्होंने आयुर्वेद पढ़ा नहीं या उन्हें यह कठिन बिषय समझ में नहीं आया ईश्वर ही जाने !इसलिए वे समय बोधक शास्त्र को न मानने की बात करने लगे कि मैं तो इसे मानता ही नहीं हूँ और उस शास्त्र का ही मजाक उड़ाने लगे |आयुर्वेद में बीस से पच्चीस प्रतिशत समय बोधक शास्त्र के प्रभाव की चर्चा है जिसे न जानने वाले रामदेव जैसे लोग आयुर्वेद के विद्वान् कैसे हो सकते हैं | यही कारण है कि समय के प्रभाव से होने वाली महामारियों को वे समझ नहीं पाए कि महमारियां समय से होतीं और समय से ही समाप्त होती हैं इनकी कोई औषधि चिकित्सा आदि संभव ही नहीं है !इसीलिए विश्व के लाखों लोग लगे हैं वैक्सीन बनाने और औषधि खोजने में किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली ये कह रहे हैं मैंने तो बना ली | जबकि आयुर्वेद उनके ऐसे आचरण का समर्थन नहीं करता है |
यह समय का प्रभाव ही है कि कोरोना से निपटने के लिए विश्व के अनेकों देशों ने अलग अलग प्रकार से प्रयास किए !कुछ ने लॉकडाउन किया तो कुछ ने नहीं भी किया कुछ देशों या देशों की बस्तियों परिवारों गरीबों या घनी बस्तियों आदि में शोसल डिस्टेंसिंग बनाना या मस्का लगाकर रह पाना संभव ही नहीं था फिर भी अन्य जगहों की अपेक्षा वहाँ संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई हो ऐसा देखा नहीं गया | दूसरी ओर कई लोग तो कोरोना के संपूर्ण समय में घर से निकले ही नहीं किसी से मिले जुले ही नहीं कोरोना उन्हें भी होते देखा गया है ये सब सबके अपने अपने समय का ही प्रभाव है |
समय विज्ञान की दृष्टि से पिछले 25 वर्षों से मैं इस बिषय पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ इसीलिए इस महामारी के घटने और बढ़ने की तारीखों के बिषय में मैंने भारत सरकार की मेल पर 19 मार्च को ही एक पत्र के माध्यम से पूर्वानुमान भेज दिया था जो अभी भी साक्ष्य रूप में विद्यमान है उसमें 6 मई से इस महामारी के समाप्त होने लगने की बात लिखी गई है यह उसी समय सुधार का ही प्रभाव है कि आज रिकवरी 56 प्रतिशत हो चुकी है |समय का प्रभाव सभी देशों पर समान रूप से पड़ता है इसीलिए यह रिकवरी भी सभी देशों में लगभग समान रूप से ही बढ़ी है जिन्होंने लॉकडाउन या शोसल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं भी किया है वहां भी बढ़ी है यही तो समय का प्रभाव है जब समय अच्छा आने लगता है तब सभी चीजें अपने आपसे ठीक होने लगती हैं | आज कोरोना रिकवरी दर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है |
संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण दूसरा है किसी नदी के संपूर्ण भाग में मछलियाँ विद्यमान होती हैं किंतु जाल जितने बार फेंका जाता है उसमें उतनी ही मछलियाँ फँस पाती हैं | ऐसी परिस्थिति में अधिक बार जाल फेंकने से यदि अधिक मछलियाँ फँसने लगें तो इसका ये मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि नदी में मछलियाँ बढ़ गई हैं अपितु सच्चाई यही है कि जाल अधिक बार फेंकने से अधिक मछलियाँ फँसी होती हैं | यही स्थिति कोरोना से प्रभावितों की है जब जितनी बार जितने कम या अधिक लोगों की जाँच हुई तब उतनी कम या अधिक संक्रमितों की संख्या मिली | संक्रमित तो समाज में विद्यमान है ही ठीक भी हो रहे हैं जिन्हें इलाज मिला वे भी समय के प्रभाव से ठीक हो रहे हैं और जिन्हें इलाज नहीं मिला समय के प्रभाव से वे भी ठीक हुए हैं | ध्यान रहे कि महामारियाँ समय से आतीं और समय से ही जाती हैं या समय जनित महारोग होता है इसलिए इसपर किसी दवा का कोई विशेष असर नहीं होता है |
आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ चरकसंहिता में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि महामारियाँ अपने समय से आती हैं और समय से ही जाती हैं इनमें औषधियों की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है जिन औषधियों की भूमिका होती है वे दुर्लभ होती हैं एवं उनका निर्माण न केवल अत्यंत कठिन अपितु असंभव भी होता है क्योंकि उसके लिए महामारी प्रारंभ होने से पूर्व महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा कर उसी समय उसकी औषधि तैयार करके रख लेनी होती है केवल वही औषधि महामारी काल में होने वाले महारोग से मुक्ति दिलाने में सक्षम हो सकती है |आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ चरक संहिता में उसकी विधि स्पष्ट से बताई गई है |
चूँकि इस महामारी का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका है अन्यथा सबको पहले से पता होता कि इस वर्ष कोरोना जैसी महामारी होगी और इतना भयंकर रूप ले लेगी | पूर्वानुमान के बिना दवा या वैक्सीन आदि बना पाना संभव ही नहीं है यदि कोई कहता है कि मैंने बना ली है तो वो केवल झूठ बोलता है इसे आयुर्वेद के सिद्धांतों के आधार पर ग्रंथ प्रमाणों के द्वारा मैं सिद्ध करने को तैयार हूँ | साहस है तो हमारा शास्त्रार्थ का आमंत्रण रामदेव स्वीकार करें |
महामारियों का व्यापार और सच्चाई !
महामारियों का लाभ लेने या इससे अपना धंधा चमकाने के प्रयास हमेंशा से किए जाते रहे हैं कुछ चतुरलोग ऐसे समय में समाज को भ्रमित करके श्रेय लूटने एवं महामारियों को कैस करने में हमेंशा से सफल होते रहे हैं | महामारियों का प्रकोप जब तक बढ़ा रहता है तब तक ये मौके की ताक में चुप बैठे बैठे महामारियों की दवा खोजने के लिए रिसर्च करने का आडंबर किया करते हैं और समय के प्रभाव से जैसे ही महामारियाँ स्वयं समाप्त होने लगती हैं वैसे ही ऐसे लोगों की रिसर्च पूरी हो जाती है और वो महामारियों से मुक्ति दिलाने की दवा बना लेने का नाटक करने लगते हैं |समाज की मुसीबतों को व्यापार बना लेने का इसवर्ग को महारथ हासिल होता है बहुत बड़ा वर्ग इस फिराक में दृष्टि गड़ाए बैठा है कि जब महामारी स्वयं समाप्त होने लगेगी तब महामारी की दवा बनाने के नाम पर हम पैसे कमा लेंगे | इसलिए इससे किसी को भ्रमित नहीं होना चाहिए | ईश्वर पर भरोसा रखिए सभी लोग अब स्वस्थ होते चले जाएँगे | महामारियों के समय केवल ईश्वर ही मदद करता है |
ऐसे ही 'बाबारामदेव' भी कोरोना को कैस करने निकल पड़े हैं |आखिर व्यापार करने के लिए ही वे बाबा बने हैं तो ऐसे मौके पर चौका लगाना उनका भी तो बनता था उन्होंने भी दवा लाँच कर दी है !विज्ञापन पुरुष वे स्वयं ही हैं प्रचार के लिए पैसा उनके पास है ही और साधू संत झूठ नहीं बोलते समाज में ऐसा विश्वास बना ही है इसीलिए तो बहुत व्यापारी लोग ईमानदार दिखने के लिए टीका लगाने या लालपीले कपड़े पहनने लगते हैं |इस आंशिक बाबा बन जाने से व्यापार बढ़ाने में बहुत मदद मिलती है और जो व्यापार के लिए समूचा ही बाबा बन गया हो उसके कहने ही क्या हैं |
कोरोना महामारी को व्यापार बनाने का अवसर है !
आज 23 जून है जब रामदेव ने अपनी तथाकथित कोरोना की दवा लांच की है बाजार में कोरोना के लिए अभी तक न कोई औषधि है और न ही कोई वैक्सीन बनी है ऐसी परिस्थिति में उनके पास विज्ञापन के लिए पैसे भी हैं | तो उन्हें यह महामारी बेचकर धन कमाने का सबसे सुनहरा मौका है | व्यापारिक दृष्टि से उन्होंने बिल्कुल ठीक समय पर निशाना लगाया है इस बीमारी के बहाने भगवान उन्हें बहुत पैसा दे ईश्वर से मैं भी ऐसी मंगल कामना करता हूँ |
रामदेव जो कहते हैं कि अभी तक कोरोना की दवा का रिसर्च करते रहे हैं वस्तुतः वो कोरोना की दवा का रिसर्च न होकर अपितु किस समय दवा लांच की जाए जब अपयश की सम्भावना काम और यश की संभावना अधिक हो और पैसा भी अधिक कमाया जा सके !इस दृष्टि से यह बिल्कुल ठीक समय है |इस लेख के माध्यम से हम तीन बिंदुओं पर बिचार करेंगे पहला यह समय ही दवा लाँच करने के लिए क्यों चुना गया ?दूसरी बात महामारी में होने वाले रोगों की दवा बना पाना संभव है क्या ?तीसरी बात रामदेव की दवा 'कोरोनिल' में पड़े घटक द्रव्यों में से उसके मुख्य द्रव्य गिलोय तुलसी अश्वगंधा ही हैं जैसा कि वो खुद कह रहे हैं तो इसमें इन तीन चीजों में से इतनी महँगी कौन सी चीज है जिसके कारण उन्हें इस 25 ग्राम की डब्बी की कीमत 600 या 400 रूपए समाज की मदद करने के लिए रखनी पड़ी है |
सबसे पहले कोरोनिल दवा लाँच करने का समय :-
23 जून का आज वो दिन है जब कोरोना की बिना किसी दवा या वैक्सीन के कोरोना से संक्रमित रोगियों के ठीक होने की दर सारे विश्व में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक अब देश में संक्रमितों की रिकवरी रेट 56.38% हो गया है जो संक्रमितों की संपूर्ण संख्या के आधे से काफी अधिक है | पिछले 4 दिनों में इसमें 6% का इजाफा देखने को मिला है। इसके पहले 19 जून को 50.12% रिकवरी रेट थी। मंत्रालय के मुताबिक अभी तक देश में कुल 2 लाख 58 हजार 523 लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं जबकि 1 लाख 78 हजार 014 संक्रमितों का इलाज चल रहा है | यहाँ तक कि आज सुबह से शाम तक 15,368 नए मामले सामने आए हैं और 10,386 रोगी स्वस्थ होकर घर गए हैं | उधर चिकित्सकों ने पहले से ही कह रखा है कि कोरोना का प्रभाव पहले की अपेक्षा कम हुआ है इसकी मारक क्षमता भी घटी है | दूसरी बात कोरोना से होने वाली मौतों में बहुत बड़ी संख्या उन रोगियों की है जो पहले से किसी बड़ी बीमारी से ग्रसित हैं | केवल कोरोना से मरने वाले रोगियों की संख्या बहुत कम है |वैसे भी पिछले तीन दिनों से कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या दिनों दिन कम होते देखी जा रही है |
ध्यान रहे कि अभी तक बिना किसी दवा वैक्सीन के भी कोरोना जैसी महामारी का पलायन तेजी से होते देखा जा रहा है|कोरोना की रिकवरी बढ़ने या कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या घटने या संक्रमण का बिषैलापन कम होने में किसी भी दवा या वैक्सीन की कोई भूमिका अभी तक सिद्ध नहीं हो सकी है ये सब बिना रामदेव जैसे लोगों की दवा लाँच हुए भी होते देखा जा रहा है | ऐसे समय ऐसी किसी दवा का ढिंढोरा पीटने का पवित्र उद्देश्य क्या हो सकता है |
कोरोना जैसी महामारियों को दवाओं या वैक्सीन से पराजित किया जा सकता है क्या ?
वेद विज्ञान का मानना है कि महामारियाँ हमेंशा बुरे समय के प्रभाव से निर्मित होती हैं बुरा समय आते ही संपूर्ण वायु मंडल ,जल एवं समस्त खाद्य पदार्थ बिषैले होने लग जाते हैं !बिना साँस लिए या कुछ खाए पिए बिना किसी का रहना संभव होता नहीं है सभी को साँस तो लेनी ही पड़ेगी और जीने के लिए कुछ न कुछ खाना पीना भी पड़ता है | इसलिए बुरे समय के प्रभाव से होने वाली महामारियों के प्रभाव से किसी का बच पाना संभव नहीं होता है |
समय का प्रभाव ऐसा होता है कि महामारी के कठिन समय में भी रोगी वही लोग होते हैं जिनका अपना समय भी रोग कारक चल रहा होता है और जिनका अपना समय मृत्यु कारक चल रहा होता है उनकी मृत्यु तो होनी ही होती है उनके लिए कोरोना जैसी महामारियाँ बहाना बन जाती हैं | जिनका अपना समय बिल्कुल ठीक चल रहा होता है वे ऐसी महामारियों में भी स्वस्थ बने रहते हैं या थोड़े बहुत रोगी होकर भी समय के प्रभाव से स्वस्थ होते देखे जाते हैं |यही कारण है कि इस बार भी बच्चे बूढ़े सभी वर्ग से लोग अपने अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ होते देखे गए हैं कुछ तो सौ वर्ष से अधिक उम्र के लोग भी स्वस्थ होते देखे गए हैं क्योंकि उनका अपना समय अच्छा चल रहा था |
कुलमिलाकर समय का ही समय का ही सारा खेल है जिसके जीवन में जब जैसा समय आता है तब वैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |किसी व्यक्ति का समय जब ख़राब आता है तब उसके सारे काम बिगड़ने लगते हैं उसे तनाव होने लगता है ऐसे लोग हर किसी से झगड़ने लगते हैं किंतु लोग उसकी आदत समझ कर सह जाया करते हैं किंतु समस्या तब होती है जब उसी समय किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन में भी ऐसा ही समय आ जाता है ऐसे दो लोग किसी एक ही परिवार ,व्यापार,सरकार ,संस्थान,संस्था या राजनैतिकदल में प्रभावी पद पर बैठे होते हैं और उन्हें एक दूसरे के साथ ही काम करना पड़ता है तो वहाँ उन दोनों के बीच आपसी तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है कई बार तो इसी समय के प्रभाव से संस्थाएँ टूटते या नष्ट भ्रष्ट होते देखी जाती हैं | यदि ऐसे समय के शिकार कोई पति पत्नी एक साथ ही हो जाते हैं तो उन दोनों के बीच उसी समय कलह बहुत अधिक बढ़ जाता है कई बार तो इसी बुरे समय के प्रभाव से पति पत्नी में तलाक तक होते देखा जाता है | ये सब बुरे समय का ही प्रभाव है |
यही स्थिति चिकित्सा के क्षेत्र में भी है लगभग एक तरह के कुछ रोगी किसी अस्पताल में रोग मुक्ति अर्थात स्वस्थ होने के लिए एडमिट होते हैं उन्हें अत्यंत योग्य एक जैसे चिकित्सकों के द्वारा अच्छी से अच्छी औषधियाँ स्वास्थ्य सुधारने के लिए दी जाती हैं किंतु उस एक जैसी चिकित्सा का असर प्रत्येक रोगी के स्वास्थ्य पर अलग अलग होते देखा जाता है |उनमें से कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं और कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं ये उन सभी रोगियों के अपने अपने समय का ही असर होता है ऐसा महामारियों में भी होते देखा जाता है |कोरोना जैसी महामारियों के समय भी कुछ लोग अस्वस्थ होते हैं और उनमें से बहुत कम लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है इनके अतिरिक्त बहुत बड़ा वर्ग ऐसा होता है जिसको ऐसे समय में भी सर्दी जुकाम तक नहीं होता है ये उनके अपने अच्छे समय का प्रभाव होता है |इसलिए जिनका जब जैसा समय चल रहा होता है उन्हें तब वैसी परिस्थिति का सामना करना ही पड़ता है |जिसे अपने समय के संचार के बिषय में पता होता है ऋतुपरिवर्तन अर्थात मौसम बदलने के समय या महामारी फैलने के समय विशेष सावधानी पूर्वक पथ्य परहेज से रहना होता है |मैंने इसी बिषय पर अनुसंधान अनुभव एवं पीएचडी की है पिछले 25 वर्षों से अनुभव भी करता आ रहा हूँ इसलिए मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि जब किसी का अपना समय ख़राब आता है तब वह रोगी होता है उसे तनाव होता है उसके सारे काम बिगड़ते हैं किंतु जब सारे संसार पर सामूहिक रूप से बुरे समय का प्रभाव पड़ता है तब महामारियाँ फैलती हैं दो देशों के बीच तनाव होता है बार बार भूकंप आते हैं | आदि आदि और भी बहुत कुछ | रामदेव ने यदि आयुर्वेद पढ़ा होता तो उन्हें समय के बिषय में ये बातें पता होतीं | उन्होंने आयुर्वेद पढ़ा नहीं या उन्हें यह कठिन बिषय समझ में नहीं आया ईश्वर ही जाने !इसलिए वे समय बोधक शास्त्र को न मानने की बात करने लगे कि मैं तो इसे मानता ही नहीं हूँ और उस शास्त्र का ही मजाक उड़ाने लगे |आयुर्वेद में बीस से पच्चीस प्रतिशत समय बोधक शास्त्र के प्रभाव की चर्चा है जिसे न जानने वाले रामदेव जैसे लोग आयुर्वेद के विद्वान् कैसे हो सकते हैं | यही कारण है कि समय के प्रभाव से होने वाली महामारियों को वे समझ नहीं पाए कि महमारियां समय से होतीं और समय से ही समाप्त होती हैं इनकी कोई औषधि चिकित्सा आदि संभव ही नहीं है !इसीलिए विश्व के लाखों लोग लगे हैं वैक्सीन बनाने और औषधि खोजने में किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली ये कह रहे हैं मैंने तो बना ली | जबकि आयुर्वेद उनके ऐसे आचरण का समर्थन नहीं करता है |
यह समय का प्रभाव ही है कि कोरोना से निपटने के लिए विश्व के अनेकों देशों ने अलग अलग प्रकार से प्रयास किए !कुछ ने लॉकडाउन किया तो कुछ ने नहीं भी किया कुछ देशों या देशों की बस्तियों परिवारों गरीबों या घनी बस्तियों आदि में शोसल डिस्टेंसिंग बनाना या मस्का लगाकर रह पाना संभव ही नहीं था फिर भी अन्य जगहों की अपेक्षा वहाँ संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई हो ऐसा देखा नहीं गया | दूसरी ओर कई लोग तो कोरोना के संपूर्ण समय में घर से निकले ही नहीं किसी से मिले जुले ही नहीं कोरोना उन्हें भी होते देखा गया है ये सब सबके अपने अपने समय का ही प्रभाव है |
समय विज्ञान की दृष्टि से पिछले 25 वर्षों से मैं इस बिषय पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ इसीलिए इस महामारी के घटने और बढ़ने की तारीखों के बिषय में मैंने भारत सरकार की मेल पर 19 मार्च को ही एक पत्र के माध्यम से पूर्वानुमान भेज दिया था जो अभी भी साक्ष्य रूप में विद्यमान है उसमें 6 मई से इस महामारी के समाप्त होने लगने की बात लिखी गई है यह उसी समय सुधार का ही प्रभाव है कि आज रिकवरी 56 प्रतिशत हो चुकी है |समय का प्रभाव सभी देशों पर समान रूप से पड़ता है इसीलिए यह रिकवरी भी सभी देशों में लगभग समान रूप से ही बढ़ी है जिन्होंने लॉकडाउन या शोसल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं भी किया है वहां भी बढ़ी है यही तो समय का प्रभाव है जब समय अच्छा आने लगता है तब सभी चीजें अपने आपसे ठीक होने लगती हैं | आज कोरोना रिकवरी दर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है |
संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण दूसरा है किसी नदी के संपूर्ण भाग में मछलियाँ विद्यमान होती हैं किंतु जाल जितने बार फेंका जाता है उसमें उतनी ही मछलियाँ फँस पाती हैं | ऐसी परिस्थिति में अधिक बार जाल फेंकने से यदि अधिक मछलियाँ फँसने लगें तो इसका ये मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि नदी में मछलियाँ बढ़ गई हैं अपितु सच्चाई यही है कि जाल अधिक बार फेंकने से अधिक मछलियाँ फँसी होती हैं | यही स्थिति कोरोना से प्रभावितों की है जब जितनी बार जितने कम या अधिक लोगों की जाँच हुई तब उतनी कम या अधिक संक्रमितों की संख्या मिली | संक्रमित तो समाज में विद्यमान है ही ठीक भी हो रहे हैं जिन्हें इलाज मिला वे भी समय के प्रभाव से ठीक हो रहे हैं और जिन्हें इलाज नहीं मिला समय के प्रभाव से वे भी ठीक हुए हैं | ध्यान रहे कि महामारियाँ समय से आतीं और समय से ही जाती हैं या समय जनित महारोग होता है इसलिए इसपर किसी दवा का कोई विशेष असर नहीं होता है |
आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ चरकसंहिता में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि महामारियाँ अपने समय से आती हैं और समय से ही जाती हैं इनमें औषधियों की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है जिन औषधियों की भूमिका होती है वे दुर्लभ होती हैं एवं उनका निर्माण न केवल अत्यंत कठिन अपितु असंभव भी होता है क्योंकि उसके लिए महामारी प्रारंभ होने से पूर्व महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा कर उसी समय उसकी औषधि तैयार करके रख लेनी होती है केवल वही औषधि महामारी काल में होने वाले महारोग से मुक्ति दिलाने में सक्षम हो सकती है |आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ चरक संहिता में उसकी विधि स्पष्ट से बताई गई है |
चूँकि इस महामारी का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका है अन्यथा सबको पहले से पता होता कि इस वर्ष कोरोना जैसी महामारी होगी और इतना भयंकर रूप ले लेगी | पूर्वानुमान के बिना दवा या वैक्सीन आदि बना पाना संभव ही नहीं है यदि कोई कहता है कि मैंने बना ली है तो वो केवल झूठ बोलता है इसे आयुर्वेद के सिद्धांतों के आधार पर ग्रंथ प्रमाणों के द्वारा मैं सिद्ध करने को तैयार हूँ | साहस है तो हमारा शास्त्रार्थ का आमंत्रण रामदेव स्वीकार करें |
महामारियों का व्यापार और सच्चाई !
महामारियों का लाभ लेने या इससे अपना धंधा चमकाने के प्रयास हमेंशा से किए जाते रहे हैं कुछ चतुरलोग ऐसे समय में समाज को भ्रमित करके श्रेय लूटने एवं महामारियों को कैस करने में हमेंशा से सफल होते रहे हैं | महामारियों का प्रकोप जब तक बढ़ा रहता है तब तक ये मौके की ताक में चुप बैठे बैठे महामारियों की दवा खोजने के लिए रिसर्च करने का आडंबर किया करते हैं और समय के प्रभाव से जैसे ही महामारियाँ स्वयं समाप्त होने लगती हैं वैसे ही ऐसे लोगों की रिसर्च पूरी हो जाती है और वो महामारियों से मुक्ति दिलाने की दवा बना लेने का नाटक करने लगते हैं |समाज की मुसीबतों को व्यापार बना लेने का इसवर्ग को महारथ हासिल होता है बहुत बड़ा वर्ग इस फिराक में दृष्टि गड़ाए बैठा है कि जब महामारी स्वयं समाप्त होने लगेगी तब महामारी की दवा बनाने के नाम पर हम पैसे कमा लेंगे | इसलिए इससे किसी को भ्रमित नहीं होना चाहिए | ईश्वर पर भरोसा रखिए सभी लोग अब स्वस्थ होते चले जाएँगे | महामारियों के समय केवल ईश्वर ही मदद करता है |
ऐसी परिस्थिति में रामदेव को भी लगा होगा कि इस समय कोरोना की दवा के नाम पर समाज के कोरोनाभय का दोहन किया जा सकता है इसमें केवल ऐसी दवाएँ बेचीं जा सकती हैं जिससे कोई नुक्सान न हो और फायदा तो अपने आप हो ही रहा है क्योंकि अच्छा समय आ चुका है तभी तो स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है | ऐसे समय में विज्ञापनों के माध्यम से थोड़ा हाथ पैर मार कर बहते पानी में हाथ धो लेने के लिए ये यह सबसे अच्छा अवसर है |
अब बात 'कोरोनिल' की -
रामदेव की 'कोरोनिल' में मुख्य द्रव्य गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी बताए जा रहे हैं यदि यह सच है तो इसमें इतनी महँगी कौन सी जड़ी बूटी है जिसके कारण 25 ग्राम की डिब्बी की कीमत चार या छै सौ रूपए रख गई है वह भी समाज पर उपकार करने के लिए !
दूसरी बात गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी ये ज्वर रोग में लाभप्रद हैं किंतु 'कोरोनिल' के छोटे छोटे टेबलेट्स में इनकी मात्रा इतनी कम होगी कि उतने से कोरोना तो छोड़िए साधारण ज्वर उतरना भी संभव नहीं है ! इसीलिए इसका कोई दुष्प्रभाव संभव नहीं है |
रामदेव की 'कोरोनिल' में मुख्य द्रव्य गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी बताए जा रहे हैं यदि यह सच है तो इसमें इतनी महँगी कौन सी जड़ी बूटी है जिसके कारण 25 ग्राम की डिब्बी की कीमत चार या छै सौ रूपए रख गई है वह भी समाज पर उपकार करने के लिए !
दूसरी बात गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी ये ज्वर रोग में लाभप्रद हैं किंतु 'कोरोनिल' के छोटे छोटे टेबलेट्स में इनकी मात्रा इतनी कम होगी कि उतने से कोरोना तो छोड़िए साधारण ज्वर उतरना भी संभव नहीं है ! इसीलिए इसका कोई दुष्प्रभाव संभव नहीं है |
इसके अतिरिक्त श्वसारि रस और अणुतेल बताए जा रहे हैं | श्वसारि रस बलगम को नियंत्रित करता है जिसके बिषय में 'श्वाससकुठाररस' 'कफकर्तरीरस' जैसी और भी बहुत प्रभावी औषधियाँ बहुत पहले से प्रचलन में हैं जिनका रामदेव और पतंजलि से कोई लेना देना नहीं है इनके बिषय में लोगों को बहुत पहले से पता है और वे कोरोना काल में भी प्रयोग करते देखे जा रहे हैं |इस प्रकार की औषधियाँ देश की डाबर बैद्यनाथ जैसी पुरानी कंपनियाँ बाबा रामदेव और पतंजलि के जन्म से बहुत पहले से बना रही हैं और वैद्य लोग प्रयोग भी करते आ रहे हैं |
अब बात 'अणुतेल' तेल की कोई भी हो यहाँ तक कि सरसों के तेल का भी यदि नस्य लिया जाए तो भी नाक शिर कान गले और केशों के लिए अच्छा होता है मर्दन करने का और अधिक प्रभाव है !सरसों के तेल को कान में डालने से 'कर्णनिनाद' आवाजें सुनाई देना जैसे रोग नियंत्रित होते हैं अणुतेल का इसी दिशा में कुछ अधिक प्रभाव हो सकता है किंतु इसका कोरोना से सीधा कोई संबंध दूर दूर तक नहीं है |
कुलमिलाकर जब रामदेव ने कोरोना की दवा
बना लेने का दावा किया है इससे कुछ पहले भी विश्व में बहुत देश कोरोना
वैक्सीन बनाने या उसका ट्रायल करने का दावा करते रहे हैं इसमें बहुत
दवाओं का प्रयोग करके परीक्षण भी किया गया होगा किंतु किसी के दावे में अभी तक
कोई प्रमाणित सच्चाई सिद्ध नहीं हुई है |ऐसे लोगों को स्वयं भी पता था कि
वे महामारियों के बिषाणुओं से होने वाले रोगों की दवाएँ नहीं बना सकते हैं
यही कारण है कि अनादिकाल से अभी तक महामारियों के लिए कोई दवा बनाई ही नहीं
जा सकी है इसीलिए तो वे महामारियाँ या महारोगों की श्रेणी में डाली गई
हैं |
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