क्या सवर्णों में गरीब नहीं होते हैं और दलितों में रईस नहीं होते यदि हाँ तो गरीब सवर्णों पर क्यों किया जा रहा है जातीय अत्याचार और रईस दलितों का दुलार पियार बारे लोकतंत्र और बारी सरकार !
अब तो एक ही रास्ता है कि पहले नेताओं की संपत्तियों की जाँच हो बाद में दूसरी बात !ऐसे नेता लूट रहे हैं खुद और दलितों के शोषण का आरोप लगा रहे हैं सवर्णों पर !इन नेताओं का अपना कार्य व्यापार क्या है और वो करते कब हैं अन्यथा ये संपत्तियाँ आती कहाँ से हैं ?
सवर्णों को रईस बताकर किया जा रहा है उन पर जातीय अत्याचार ! क्या सवर्णों में गरीब नहीं होते हैं और दलितों में रईस नहीं होते यदि हाँ तो गरीब सवर्णों के लिए भी सरकारों का कोई दायित्व नहीं है क्या ? इसीलिए फिर हाल सवर्णों के लिए किसी भी राजनैतिक पार्टी की सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है ने इस भरोसे इसे गद्दारी क्यों न कहा जाए कि अच्छा अच्छा सब अपने एवं अपनों के लिए और वोट चाहिए जनता से !
अरे नेताओ ! जनता कहीं पिछले कामों का हिसाब किताब न पूछने लगे तुम्हारे घपले घोटाले न उठाने लगे तुम्हारे भ्रष्टाचार पर जवाब न माँगने लगे इसलिए जनता के क्रोध की तोप का मुख जाति, क्षेत्र, समुदाय के नाम पर दूसरों की और मोड़ देते हो कितनी कुटिलता भरी है आपके मनों में !इसी प्रकार से दलितों के नेता कहलाने वाली राजनैतिक आत्माएँ खुद तो जनता के पैसे से खुद तो करोड़ों के घाँघरे पहनें जहाजों पर चढ़े घूमें कोठियों पर कोठियाँ खरीदें महँगी महँगी गाड़ियों के मालिक मालकिन बन बैठे हों और जब दलितों की गरीबत की बात आवे तो उनके मन में सवर्णों के प्रति घृणा पैदा करना कि तुम्हारा शोषण सवर्णों ने किया है जबकि दलितों के हिस्से का सारा पैसा नेता जी के कोष में पहुँच चुका होता है फिर भी ये कुटिल नेतालोग झूठी बातें बता बता कर दलितों को सवर्णों से लड़ने के लिए उत्तेजित करते हैं!ऐसे दुराचरणों को नीचता और गद्दारी न कहा जाए तो क्या कहा जाए ?
अब तो एक ही रास्ता है कि पहले नेताओं की संपत्तियों की जाँच हो बाद में दूसरी बात !ऐसे नेता लूट रहे हैं खुद और दलितों के शोषण का आरोप लगा रहे हैं सवर्णों पर !इन नेताओं का अपना कार्य व्यापार क्या है और वो करते कब हैं अन्यथा ये संपत्तियाँ आती कहाँ से हैं ?
सवर्णों को रईस बताकर किया जा रहा है उन पर जातीय अत्याचार ! क्या सवर्णों में गरीब नहीं होते हैं और दलितों में रईस नहीं होते यदि हाँ तो गरीब सवर्णों के लिए भी सरकारों का कोई दायित्व नहीं है क्या ? इसीलिए फिर हाल सवर्णों के लिए किसी भी राजनैतिक पार्टी की सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है ने इस भरोसे इसे गद्दारी क्यों न कहा जाए कि अच्छा अच्छा सब अपने एवं अपनों के लिए और वोट चाहिए जनता से !
अरे नेताओ ! जनता कहीं पिछले कामों का हिसाब किताब न पूछने लगे तुम्हारे घपले घोटाले न उठाने लगे तुम्हारे भ्रष्टाचार पर जवाब न माँगने लगे इसलिए जनता के क्रोध की तोप का मुख जाति, क्षेत्र, समुदाय के नाम पर दूसरों की और मोड़ देते हो कितनी कुटिलता भरी है आपके मनों में !इसी प्रकार से दलितों के नेता कहलाने वाली राजनैतिक आत्माएँ खुद तो जनता के पैसे से खुद तो करोड़ों के घाँघरे पहनें जहाजों पर चढ़े घूमें कोठियों पर कोठियाँ खरीदें महँगी महँगी गाड़ियों के मालिक मालकिन बन बैठे हों और जब दलितों की गरीबत की बात आवे तो उनके मन में सवर्णों के प्रति घृणा पैदा करना कि तुम्हारा शोषण सवर्णों ने किया है जबकि दलितों के हिस्से का सारा पैसा नेता जी के कोष में पहुँच चुका होता है फिर भी ये कुटिल नेतालोग झूठी बातें बता बता कर दलितों को सवर्णों से लड़ने के लिए उत्तेजित करते हैं!ऐसे दुराचरणों को नीचता और गद्दारी न कहा जाए तो क्या कहा जाए ?
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