Saturday, March 15, 2014

आरक्षण समर्थक नेताओं के पास कहाँ से आई इतनी संपत्ति ! पहले नेताओं की संपत्तियों की जाँच हो बाद में दूसरी बात !

    क्या सवर्णों में गरीब नहीं होते हैं और दलितों में रईस नहीं  होते यदि हाँ तो गरीब सवर्णों पर क्यों किया जा रहा है जातीय अत्याचार और रईस दलितों का दुलार पियार बारे लोकतंत्र और बारी सरकार !
   अब तो एक ही रास्ता है कि पहले नेताओं की संपत्तियों की जाँच हो बाद में दूसरी बात !ऐसे नेता लूट रहे हैं खुद और दलितों के शोषण का आरोप लगा रहे हैं सवर्णों पर !इन नेताओं का अपना कार्य व्यापार क्या है और वो करते कब हैं अन्यथा ये संपत्तियाँ  आती कहाँ से हैं ?
     सवर्णों को रईस बताकर किया जा रहा है उन पर जातीय अत्याचार ! क्या सवर्णों में गरीब नहीं होते हैं और दलितों में रईस नहीं  होते यदि हाँ तो गरीब सवर्णों के लिए भी सरकारों का कोई दायित्व नहीं है क्या ? इसीलिए फिर हाल सवर्णों के लिए किसी भी राजनैतिक पार्टी की सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है ने इस भरोसे  इसे गद्दारी क्यों न कहा जाए कि अच्छा अच्छा सब अपने एवं अपनों के लिए और वोट चाहिए जनता से ! 
      अरे नेताओ ! जनता कहीं पिछले कामों का हिसाब किताब न पूछने लगे तुम्हारे घपले घोटाले न उठाने लगे तुम्हारे भ्रष्टाचार पर जवाब न माँगने लगे इसलिए जनता के क्रोध की तोप का मुख जाति, क्षेत्र, समुदाय के नाम पर दूसरों की और मोड़ देते हो कितनी कुटिलता  भरी है आपके मनों  में !इसी प्रकार से  दलितों के नेता कहलाने वाली राजनैतिक आत्माएँ खुद तो जनता के पैसे से खुद तो करोड़ों के घाँघरे पहनें जहाजों पर चढ़े घूमें कोठियों पर कोठियाँ खरीदें महँगी महँगी गाड़ियों के मालिक मालकिन बन बैठे हों और जब दलितों की गरीबत की बात आवे तो उनके मन में सवर्णों के प्रति घृणा पैदा करना कि तुम्हारा शोषण सवर्णों ने किया है जबकि दलितों के हिस्से का सारा पैसा नेता जी के कोष में पहुँच चुका होता है फिर भी ये कुटिल नेतालोग झूठी बातें बता बता कर दलितों को सवर्णों से लड़ने के लिए उत्तेजित करते हैं!ऐसे दुराचरणों को नीचता और गद्दारी न कहा जाए तो क्या कहा जाए ?

     इसी प्रकार अपने को दलित कहलाने के शौकीन नेता लोग जो दलितों की दुर्दशा के लिए सवर्णों को कोसते या दोषी ठहराते हैं ऐसे नेताओं में यदि थोड़ी भी शर्म संकोच हो तो सवर्णों की संपत्ति की जाँच करवा लें और अपनी संपत्ति की भी करवा लें जिसके पास ज्यादा निकल जाए सो लुटेरा मान लिया जाए ! इसके बाद सवर्णों के शोषण सम्बन्धी बात को आधार हीन मान लिया जाए और ये जाँच आम जनता के द्वारा कराई जाए !साथ ही यह भी पता लगाया जाए कि जब आप राजनीति में आए थे तब आपके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है कहाँ से आई ये संपत्ति !और जो नेता कहते हैं कि हमारे पास पहले से ही है तो उस आय के स्रोत क्या थे उसका भी पता लगाया जाए !और यदि वास्तव में पहले से ही थी इतनी सम्पत्ति तो दलित किस बात के ?

    इसका सीधा सा अर्थ है कि कुछ राजनैतिक मगरमच्छों ने जाति क्षेत्र संप्रदायों के नाम पर जनता के मन में आपसी फूट डालकर  स्वयं ही दलितों  गरीबों अल्पसंख्यकों और सवर्णों को भी लूटा है और सवर्ण मगर मच्छों ने सवर्णों को लूटा है आखिर सवर्णों में भी तो गरीब हैं !या फिर दलित हों कि सवर्ण सभी वर्ग के संपत्तिसिन्धुओं के आर्थिक स्रोतों की जाँच की जाए जिसके आय स्रोत पवित्र और पारदर्शी हों उन्हें प्रोत्साहित किया जाए बाकी की संपत्ति देश के कोष में जमा की जाए जो जनता के काम आवे !

          ऐसे अकर्मण्य नेताओं में पनपी सत्ता की भयंकर भूख  गरीब सवर्णों को मार डालने पर अमादा है क्या है आरोप है  इन गरीब सवर्णों पर ! यही न कि इनके पूर्वजों ने कभी दलितों के पूर्वजों का शोषण किया होगा !केवल इस आशंका के कारण जातिगत आरक्षण के रूप में सवर्णों से बदला लिया जा रहा है!आखिर क्या है सच्चाई इस आरोप में ?बहु संख्यक दलितों ने आखिर क्यों सहा होगा अल्प संख्यक सवर्णों के द्वारा किया गया शोषण !ऐसे तर्कहीन अंधविश्वासी आरोपों पर क्यों दी जा रही है गरीब सवर्णों को सजा ? क्या इस देश में गरीब सवर्णों के कोई अधिकार ही नहीं होने चाहिए ?जहाँ सभी नागरिकों के समान अधिकार न हों वह कैसा लोकतंत्र ?ऐसे अंधविश्वास के सहारे कब तक ढोया जाएगा यह प्रभाव विहीन पूर्वाग्रह ग्रस्त लोकतंत्र ?

        जब वी.पी.सिंह सरकार के समय  सरकारी शोषण से ऊभकर गरीब सवर्ण लोमहर्षक आत्मदाह कर रहे थे तब कहाँ था लोकतंत्र ? आत्मदाह कोई सुख से नहीं कर सकता है कितना कठिन होता है एक अंगुली भी जलाना ! आखिर कोई असह्य पीड़ा तो रही ही होगी उनकी जिसे सहने की अपेक्षा आत्मदाह करना उन्हें अधिक आसान लगा !ऐसे गरीब सवर्णों की पीड़ा पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया ऐसे कठोर क्रूर लोकतंत्र को गरीब सवर्ण कैसे क्यों और कब तक लगाए रहें सीने से जो तर्क हीन अंधविश्वास के सहारे केवल सत्तालु नेताओं का पेट भरने के लिए चलाया जा रहा हो! इस जातीय अंधविश्वास के कारण गाँवों में उन गरीबों को आपस में लड़ाया जा रहा है जो पहले कभी एक दूसरे के पास बैठकर मन के सुख दुःख बता लिया करते थे एक दूसरे के सहारे मिलजुल कर आपस में कर लिया करते थे अपने बेटा बेटियों के काम काज ! अब नेताओं की सत्ता भूख ने नष्ट कर दी गाँवों की सुषमा सुंदरता सद्भावना भाईचारा आदि और घटित हो रहे हैं मुजफ्फर नगर  जैसे असह्य  नर संहार!

          इसलिए अब आवश्यक हो गया है जब ऐसे सत्ता लोलुप  नेताओं को मुख लगाना ही बंद कर दिया जाए और इनसे कहा जाए कि आप केवल भ्रष्टाचार रहित स्वच्छ प्रशासन दीजिए बस !बाकी हम लोग अपनी अपनी तरक्की स्वयं कर लेंगे हमें आपकी नरेगा ,मरेगा,मनरेगा एवं भोजन बिल जैसी किसी सुविधा की आवश्यकता ही नहीं है हम लोग परिश्रम पूर्वक अपना परिवार चला  लेने में सक्षम हैं !

 


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