महिलाओं की सुरक्षा पर सबका ध्यान कैसे बचे जान और कैसे सम्मान ?
महिलाओं
के रहन सहन या खुले पन पर रोक के लिए किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो
मीडिया से लेकर महिलाओं तक में बवाल मच जाता है आखिर क्यों ?कहने के लिए तो
इतने तर्क दे दिए जाते हैं कहा जाता है कि महिलाओं की वेष भूषा पर किसी
को आपत्ति क्यों होती है जबकि पुरुष वर्ग के लोग जब जहाँ जैसे चाहें वैसे
या वैसी पोशाक पहनकर रह या जा सकते हैं उनसे कोई कुछ नहीं कहता !इस पर मेरा
निवेदन है कि यदि पुरुषों से बराबरी ही करनी है तो ध्यान रखना चाहिए कि
पुरुष अपनी सुरक्षा की मांग भी कभी नहीं करते हैं फिर महिलाओं को असुरक्षा
का भय क्यों होता है ?हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि जिसे सुरक्षा दी जाती
है उसे अपनी तरफ से भी सतर्क रहना होता है तब तो उसकी सुरक्षा हो भी सकती
है किन्तु जो जैसे चाहे वैसे रहे जो चाहे सो पहने तो उसकी सुरक्षा की
जिम्मेदारी भी सरकार के साथ साथ उसकी भी होती है । एक छोटा सा उदहारण लेते
हैं कि यदि कोई कीमती ज्वेलरी देर सबेर पहनकर किसी एकांतिक जगह पर जाता है
तो माना कि उसकी सुरक्षा का दायित्व सरकार का ही होता है किन्तु किसी कारण से यदि सरकार न सुरक्षा दे सके तो अपने को भी इतनी गुंजाइस हो कि यदि कोई हमला कर ही देगा तो सह जाएंगे खो जाएगी तो भी सह जाएंगे जो इसके लिए तैयार होते हैं वे कहीं भी कैसे भी जाएं किसी को क्या आपत्ति ?उनके लिए तो ठीक है किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो उसे भी अपनी सीमा में रहकर ही व्यवहार करना चाहिए ताकि अनचाही पीड़ा से बचा जा सके ! ऐसे किसी भी नागरिक के लिए सरकार क्या करे!उसका अपना भी तो कुछ दायित्व होता है !
आज कालगर्ल,या सभी प्रकार के नाच गायन में रूचि लेने वाली तथा प्यार
के कारोबार में सम्मिलित लड़कियों या महिलाओं की सुरक्षा कैसे की जाए इसका
कोई उपाय ही नहीं सूझ रहा है । इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसे अधिकाँश केसों
में ऐसी लड़कियों का शत्रु वही होता है जिस पर वे विश्वास करने लगती हैं
जिस दिन इनका आपसी विश्वास टूटता है उसी दिन ये एक दूसरे की जान के प्यासे
हो जाते हैं इसलिए वो एक दूसरे के विरुद्ध कब कितना घातक आचरण करने लगें कैसे समझा जाए दूसरा किसका किससे कब विश्वास टूटा और वह उससे अपना बदला किस प्रकार से लेना चाहता है या लेगा इसकी जानकारी प्रशासन पहले से कैसे करे और कैसे करे उस पर नियंत्रण ?इन चित्रों को ही देखिए अपनी अपनी इच्छाओं की
तृप्ति में लगे जोड़े क्या सरकार से पूछकर इस तरह की गतिविधियों में
सम्मिलित होते दिख रहे हैं। इन्हें देखकर ये कैसे समझ लिया जाए कि इस तरह
की गतिविधियों से केवल लड़के ही आनंदित हो रहे हैं है लड़कियों का कोई लेना
देना ही नहीं है !मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि इन जोड़ों में
अपने अपने घर से यहाँ एकांतिक मौज मस्ती के लिए लड़के लड़कियां अपनी अपनी इच्छा से समझौता पूर्वक आए हैं
दोनों बराबर मस्ती कर रहे हैं दोनों के लिए बराबर रिस्क है फिर सुरक्षा की
मांग केवल लड़कियों के लिए क्यों ?और इनकी सुरक्षा के लिए सरकार कहाँ कहाँ
किस किस प्रकार से चौकीदार लगा दे?
सन 2013 की बहुत बड़ी पीड़ा रही
हैं बलात्कारों की घटनाएँ! इसमें नेता ,उद्योग पति ,न्याय प्रणाली से
जुड़े लोग,पत्रकारिता से जुड़े लोग ,पुलिस विभाग से जुड़े लोग हों या आम जनता
से जुड़े लोग आदि तो मिल ही जाते हैं जिनमें सबसे जघन्यतम चिंतनीय घटनाओं
में से एक धर्म से जुड़े लोगों का भी इन्हीं आरोपों में आरोपित होना है। इस
तरह की दुर्घटनाओं का प्रचार प्रसार भी इस प्रकार से हुआ है कि सम्पूर्ण
वर्ष में बलात्कार से जुडी ख़बरें प्रमुखता से दिखाई सुनाई एवं छापी जाती
रही हैं।जन जागरण भी खूब हुआ आम समाज से लेकर प्रशासन से जुड़े लोग ,राज
नेता लोग युवा वर्ग आदि सभी स्त्री पुरुष मय समाज इन बलात्कारों की
समाप्ति के लिए सुचिंतित भी दिखा !न केवल इतना अपितु बलात्कारों को रोकने
के लिए कठोर कानून भी बनाया गया !ये सब तो ठीक ही है । मुझे भी
विभिन्न शहरों शिक्षण संस्थानों समाजों में रहने के अवसर मिले!जिसमें
ज्योतिष एवं धर्म तथा समाज सुधार सम्बंधित कार्यों से जुड़े होने के नाते
इसी विषय से जुड़े हमारे अनुभव में जो आम समाज में से दबे छिपे कुछ तथ्य
सामने आए हैं वो मैं आप सभी के सम्मुख रखना चाह रहा हूँ। जहाँ तक मुझे
लगता है कि जैसे किसी जीवित व्यक्ति के वजन को एक आदमी भी उठा सकता है
किन्तु प्राण हीन शरीर वजनीला होने के कारण उठाया नहीं जाता है।
इसी प्रकार से हम सभी लोग यदि अपनी अपनी जीवन शैली में सुधार नहीं करते हैं और चाहते हैं कि सरकार हमें रखाती घूमे ऐसा कैसे सम्भव है !कहने का मतलब अपना स्वेच्छाचार जारी रखते हुए केवल पुलिस और कानून के भरोसे अपने को छोड़ देना ठीक नहीं होगा। अपनी सुरक्षा के लिए हमारी अपनी भी कुछ जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें हमें भी न
केवल समझना होगा अपितु अपने रहन सहन बात व्यवहार वेष भूषा आदि में भी
आवश्यक संयम बनाए रखना होगा तभी पुलिस और कानून से सुरक्षा की आशा रखना ठीक
होगा ।
बनारस की बात है वर्षों से टूटी पड़ी एक बिल्डिंग थी, भूत प्रेत के भय से उसके अंदर कोई जाता आता नहीं था। एक दिन एक लड़की लड़के
का जोड़ा एकांत की तलाश में उसके अंदर घुसा और उस एकांत से बड़ा प्रभावित
हुआ!इसलिए उनका वहाँ अक्सर आना जाना होने लगा!ऐसे में यदि वहाँ उस लड़की
के साथ कोई दुर्घटना घट ही जाती तो क्या कर लेती पुलिस !और ऐसी एकांतिक जगहों पर प्रशासन कितनी रखे निगरानी ?कोई लड़का यदि किसी अत्यंत एकांत स्थान
में किसी लड़की को ले भी जाना चाहता है तो क्या उसकी बात मान लेनी चाहिए
!यदि हाँ तो पुलिस क्या करे ?आखिर वे भी इंसान हैं और हमें भी रामराज्य की
आशा नहीं करनी चाहिए !
हमारे संस्थान के द्वारा इस विषय
में जहाँ तहाँ से लिए गए ये तथाकथित लव के लिए लव लवाते लड़के लड़कियों के
चित्र हैं जो ऊपर दिए गए हैं जिनमें हर लड़की अपनी सम्पूर्ण रूचि के साथ इन
लड़कों का साथ देती दिख रही होती है।इन लड़कों की सामूहिक हरकतों का न तो
कोई विरोध कर रही होती है और न कोई शोर मचाया जा रहा होता है और न ही उन
लड़कों के साथ कोई गिरोह या हथियार ही दिख रहे होते हैं और न ही कहीं किसी
को कैद कर के रखा दिखाई पड़ रहा होता है ऐसी परिस्थिति में यदि वह लड़का
विश्वास घात कर ही देता है और कुछ नहीं तो गला ही दबा दे तो उस समय कैसे
सुरक्षा कर लेगी पुलिस?और गला दबाने से पहले यदि किसी दुर्घटना की आशंका
से पुलिस वाले लोग इन्हें रोकने की कोशिश करें तो प्यार पर पहरा कहकर
मीडिया शोर मचाने लगता है।आखिर लड़कियों की सुरक्षा के लिए किया क्या और
कैसे जाए!आखिर प्यार की गलत फहमी में इंद्रियों की भूख मिटाने लिए कितनी
लड़कियों के जीवन से खेलने की यों ही आजादी मिलती रहेगी और इसे रोकने के लिए
इस प्यार के खेल में सम्मिलित बच्चों के लिए कठोर कानून के नाम पर क्या
फाँसी ही एक मात्र विकल्प है! क्या ये हमारी समाज के चिंतकों लिए चिंता का
विषय नहीं होना चाहिए ? कि हमें अपने बच्चों के लिए इतने कठोर दंड के विषय
में निर्णय लेना पड़ा! आखिर ऐसे लड़के लड़कियों के माता पिता समेत समस्त
परिवार वालों का दोष क्या है जो उन्हें उनकी आँखों के सामने अपने बच्चों के
साथ हुई इस प्रकार की अप्रिय वारदातें सुननी सहनी पड़ती हैं, क्या उन्मुक्त
आधुनिकता के उत्कट समर्थकों के पास है कोई मध्यम मार्ग जिससे ऐसे युवक
युवतियों के माता पिता को यह दुस्सह पीड़ा कभी न सहनी पड़े!इस विषय में मेरा
एक और निवेदन है कि कानूनी स्तर पर जब तक ऐसे यौवनोन्मादी लोगों की सुरक्षा
सुनिश्चित नहीं कर ली जाती है तब तक के लिए ऐसे खुलेपन को विराम क्यों न
दे दिया जाए!आखिर कैसे टाली जाएँ ये दुर्घटनाएँ?
ऐसे खुलेपन को रोकने की बात
उठते ही न जाने क्यों कुछ विदेशी संस्कृति परस्त लोग,समलैंगिक वर्ग के साथ
साथ और भी लिंगजीवी वर्ग अर्थात केवल लैंगिक सुखों के लिए जीवन धारण
करने वाला शरारती वर्ग भी शोर मचाने लगता है। नाच गाकर भागवत के नाम पर
भोगवत बाँचने वाला आम समाज या साधू समाज ये लोग भी रासलीला के नाम पर खूब
दुष्कर्म करते देखे सुने जा रहे हैं। ये सब टी.वी.चैनलों पर भी बैठ बैठ कर
शोर मचाने लगते हैं आखिर क्यों न पूछा जाए उन्हीं से ऐसी दुर्घटनाओं को
रोकने का उपाय ?
इस प्रकार से प्यार के नाम पर
जब तक मेट्रो ,पार्कों,पार्किंगों जैसी सामूहिक जगहों पर आपसी सहमति से
भी ये शरीर घर्षण होते रहेंगे तब तक बलात्कारों का बंद होना कठिन ही नहीं
असम्भव भी
लगता है।यदि सच है कि ये युवा वर्ग बासना की बेदना सहने में सक्षम नहीं है
तो शारीरिक आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए इनकी शादी क्यों नहीं कर दी जानी
चाहिए? इससे इन युवकों की भी सामाजिक साख सुरक्षित बनी रहे एवं समाज का
वातावरण भी न बिगड़े और युवक युवतियों की जिंदगी भी सुरक्षित बनी रहे !
ये लोग खुद तो बर्बाद होते
ही हैं और देखने वालों को भी बर्बाद कर रहे होते हैं जो ऐसे असामाजिक
कृत्यों में सम्मिलित हो जाते हैं या होना चाहते हैं या हो चुके होते हैं
वे इन्हें प्रेम या प्यार कहने लगते हैं बाकी लोग तो घृणा करते ही हैं।जब
तक
ऐसे असामाजिक कृत्य सामूहिक रूप से होते रहेंगे तब तक बलात्कारों का बंद
होना मेरी अपनी समझ में कठिन ही नहीं असम्भव सा भी लगता है।
प्रेम या प्यार जैसे ऐसे
कुकृत्यों में सम्मिलित लोग केवल एक दूसरे की जिंदगी से खेल रहे होते हैं
अर्थात दोनों दोनों के साथ जब एक बार पूरी तरह एक दूसरे की अंतरंगता में
सहभागी हो चुके होते हैं फिर उन दोनों में किसी एक का प्यार नाम का सौदा
कहीं दूसरी जगह उससे अच्छा पट जाता है तो वो पहले वाले को छोड़ना चाहता है
इसके लिए उन दोनों के बीच हर प्रकार के अपराध की गुंजाइस रहती है इसमें
हत्या और आत्म हत्या तक होते देखी जाती हैं!
यहाँ एक विशेष बात
ध्यान देनी होगी कि जो युवा वर्ग इस तरह की गतिविधियों में सम्मिलित है वो
शादी होने तक इतना बेकार हो चुका होता है कि शादी शुदा जीवन या तो सुखमय
नहीं होता या नाना प्रकार की दवाएँ लेकर काम चलातू माहौल तैयार किया जाता
है फिर भी काम संतोष जनक न हुआ तो तलाक होता है
ये तलाक शुदा लोग या तो कार्य
क्षेत्र में कोई साथी ढूँढते हैं यदि नौकरी पेशा या विशेष बाहर जाने आने
वाले न हुए तो कोई बाबा ,मुल्ला ,फादर, पंडित आदि धार्मिक लोगों से जुड़ते
हैं जिन्हें जब अपने घर बुलाना चाहें बुला लें या उनके पास जब जाना चाहें
तब किसी बहाने से चले जाएँ ! अपने दाम्पत्यिक जीवन से असंतुष्ट लोगों की
विशेष भर्ती सत्संग या योग शिविरों में ही होती देखी जाती है जिनके लिए
घर गृहस्थी में विशेष विरोध भी नहीं झेलना पड़ता है !इसके बाद आना जाना
प्रारम्भ हो जाता है!अन्यथा कथा सत्संगों में उमड़ने वाली भीड़ें यदि चरित्र
सुधरने तथा सुधारने एवं साधना के लिए जातीं तो इसका असर समाज में भी
दिखाई पड़ता किन्तु सुधारने के ठेकेदार खुद बलात्कारों में लिपटे घूम रहे
हैं। धर्म क्षेत्र में जो व्यभिचारी वर्ग है वो शास्त्रों को न तो पढ़ा
होता है न पढ़ता है न उनकी बात मानना होता है जैसे मन आता है वैसे रहता है
और जो मन आता है वो खाता है जैसा मन होता है वैसा श्रृंगार करता है प्रायः
ऐसे मजनूँ ही धर्म की आड़ में दुष्कर्म करते घूम रहे हैं!
गैंग रेप की घटनाएँ भी
आजकल अधिक रूप में घटने लगीं हैं जो घोर निंदनीय हैं और रोकी जानी चाहिए ।
इसमें कुछ और भी कारण सामने आए हैं जो विशेष चिंतनीय हैं एक तो वो जो
लड़कियाँ सामूहिक जगहों पर अपनी सहमति से अपने साथ किसी प्रेमी नाम के लड़के
को अश्लील
हरकतें करने देती हैं या हँसते हँसते सहा करती हैं उन्हें देखने वाले सब
नपुंसक नहीं होते ,सब संयमी नहीं होते ,सब डरपोक नहीं होते कई बार देखने
वाले कई लोग एक जैसी मानसिकता के भी मिल जाते हैं वो यह सब देखकर कुछ करने
के
इरादे से उनका पीछा करते हैं मैटो आदि सामूहिक जगहों से हटते ही वो कई लड़के
मिलकर उन्हें दबोच लेते हैं वो अकेला प्रेमी नाम का जंतु क्या कर लेगा फिर
उस लड़की से उसका कोई विवाह आदि सामाजिक सम्बंध तो होता नहीं है जिसके लिए
वो अपनी कुर्बानी दे वो तो थोड़ी देर आँख मीच कर या तो निकल जाता है या समय
पास कर लेता है।अगले दिन सौ पचास रुपए किसी डाक्टर को देकर ऐसी ऐसी जगहों
पर पट्टियाँ करा लेता है ताकि लड़की को दिखा सके कि उसके लिए वो कितना लड़ा
है ऐसी दुर्घटनाएँ घटने के बाद यदि अधिक तकलीफ नहीं हुई तो
ऐसे प्रेम पाखंडी बच्चे डर की वजह से घरों में बताते भी नहीं हैं और जो
बताते भी हैं तो कुछ
अन्य कारण बता देते हैं!
ऐसी घटनाएँ कई बार देर
सबेर कारों में लिफ्ट
लेने,या ऑटो पर बैठकर,या सूनी बसों में बैठकर,या अन्य सामूहिक जगहों पर की
गई प्रेमी प्रेमिकाओं की आपसी अश्लील हरकतें देखकर घटती हैं यह नोच खोंच
देखते ही जो लोग संयम खो बैठते
हैं उनके द्वारा घटती हैं ये भीषण दुर्घटनाएँ !इनमें सम्मिलित लोग अक्सर
पेशेवर अपराधी नहीं होते हैं।ये सब देख सुनकर ही इनका दिमाग ख़राब होता है
।
एक बात और सामने आई है कि
आज कुछ लड़कियाँ कुछ
निश्चित समय के लिए निश्चित एमाउंट अर्थात घंटों के हिसाब से धन लेकर
शारीरिक सेवाएँ देने के लिए सहमति पूर्वक किसी लड़के के साथ जाती हैं उसमें
उस नियत समय के
लिए वह ग्राहक रूप लड़का लगभग स्वतन्त्र होता है उन्हें कहीं ले जाने के
लिए! किन्तु
उतने समय में उसे छोड़ना होता है। ऐसी परिस्थितियों में उस लड़की को बिना
बताए ही वह लड़का उस समय में ही कंट्रीब्यूशन के लिए अपने साथी कुछ और
लड़कों को साझीदार बना लेता
है जिससे वो लड़के आपस में आर्थिक कंट्रीब्यूशन कर लेते हैं और कम कम
पैसों में निपट जाते हैं किन्तु पहले करार इस प्रकार का न
होने के कारण उस लड़की को बुरा लगना स्वाभाविक ही है उसके सामने दो विकल्प
होते हैं या तो वह चुप करके घर बैठ जाए या फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए
कानून की शरण में जाए यदि वह कानून की शरण में जाती है तो सारी कार्यवाही
गैंग रेप की तरह ही की जाती है यहाँ तक कि चिकित्सकीय रिपोर्ट भी उसी
तरह की बनती है मीडिया में भी इसी प्रकार का प्रचार होता है!
इसीप्रकार आजकल कुछ छोटी
छोटी बच्चियों के साथ
किए जाने वाले बलात्कार नाम के जघन्यतम अत्याचार देखने सुनने को मिल रहे
हैं जिनका प्रमुख कारण अश्लील फिल्में तथा इंटर नेट आदि के द्वारा उपलब्ध
कराई जा रही अश्लील सामग्री आदि है आज जो बिलकुल अशिक्षित मजदूर आदि
लड़के भी बड़ी स्क्रीन वाला मोबाईल रखते हैं भले ही वह सेकेण्ड हैण्ड ही
क्यों न
हो ?होता होगा उनके पास उसका कोई और भी उपयोग !क्या कहा जाए!
इसीप्रकार के कुछ मटुक नाथ टाइप के ब्यभिचारी शिक्षकों ने प्यार की पवित्रता समझा समझाकर बर्बाद कर डाला है बहुतों का जीवन !
बड़े बड़े विश्व विद्यालयों
में पी.एच.डी. जैसी डिग्री हासिल करने के लिए लड़कियों को कई प्रकार के
समझौते करने पड़ते हैं यदि गाईड संयम विहीन और पुरुष होता है तो !क्योंकि
शोध प्रबंध उसके ही आधीन होता है वो जब तक चाहे उसे गलत करता रहे !वह थीसिस
उसी की कृपा पर आश्रित होती है ।
ज्योतिष के काम से जुड़े लोग पहले मन मिलाकर सामने वाले के मन की बात जान लेते हैं फिर उसका मिस यूज करते देखे जाते हैं।
चिकित्सक लोग बीमारी
ढूँढने के बहाने सब सच सच उगलवा लेते हैं फिर ब्लेकमेल करते रहते हैं ।इसी
प्रकार से कार्यक्षेत्र में कुछ लोग अपनी
जूनियर्स को डायरेक्ट सीनियर बनाने के लिए कुछ हवाई सपने दिखा चुके होते
हैं उन सपनों को पकड़कर शारीरिक सेवाएँ लेते रहते हैं उनकी !किन्तु जब
महीनों वर्षों तक चलता रहता है ऐसा घिनौना खेल, किन्तु दिए गए आश्वासन झूठे
सिद्ध
होने लगते हैं तब झुँझलाहट बश जो सच सामने निकल कर आता है उनमें आरोप
बलात्कार का लगाया जाता है किन्तु किसी भी रूप में आपसी सहमति से महीनों
वर्षों तक चलने वाले शारीरिक सम्बन्धों को बलात्कार कहना कहाँ तक उचित होगा
?ऐसे स्वार्थ बश शरीर सौंपने के मामले राजनैतिकादि अन्य क्षेत्रों में
भी घटित होते देखे जाते हैं वहाँ भी वही प्रश्न उठता है कि ऐसी
परिस्थितियों में कैसे रुकें बलात्कार ?
No comments:
Post a Comment