ज्योतिषीय कारणों से ध्वस्त होता दिख रहा है आम आदमी पार्टी के किले में अरविन्द का भविष्य!
जिस 'अ' अक्षर से अरविन्द केजरीवाल का नाम प्रारंभ होने के कारण सारे अ अक्षर वाले उन्हें बहुत अच्छे लगेंगे प्रारम्भ में पटरी भी अच्छी खाएगी और बाद में तगड़ी चोट देकर जाएंगे !जैसे - अमित त्रिवेदी ,अग्निवेष,अन्ना हजारे दूर हुए और जन लोक पाल बिल लोकसभा में पास होकर राज्य सभा में लटक गया क्योंकि वहाँ सत्ता पक्ष के अभिषेक मनु सिंघवी और विपक्ष के अरुण जेटली जी से अरविन्द या अन्ना को कोई उम्मीद करनी ही नहीं चाहिए थी फिर जब अरविंदर सिंह लवली के समर्थन से सरकार बनाई उससे भी अपयश ही होना था मैंने निजी तौर पर कई पत्र भी लिखे थे किन्तु कोई जवाब नहीं मिला इसके बाद जब आशुतोष, आदर्श शास्त्री,अलका लाम्बा ,अशोक अग्रवाल,अश्विनी उपाध्याय वा इनके अलावा और भी कई प्रभावी कार्यकर्ता अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाले साथ लिए गए हैं सबसे बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी का नाम भी अ अक्षर से ही प्रारम्भ है!एक ज्योतिष वैज्ञानिक होने के नाते ज्योतिष शास्त्रीय दृष्टि से मैं मान चुका हूँ कि इन सब अ अक्षरों के बीच अपमानित होते होते अरविन्द केजरी वाल जैसे नौकरी छोड़ आए सरकार छोड़ दी वैसे ही अपनी बनाई हुई पार्टी भी अतिशीघ्र ही छोड़ देंगे !
अरविन्द केजरी वाल के जीवन में कुछ और भी ऐसे ज्योतिष शास्त्रीय दोष हैं जिनके दुष्प्रभाव से उन्हें सतर्क रहना चाहिए !उचित होता कि इस दोष की शान्ति करा दी जाती और कुछ ज्योतिष शास्त्रीय सावधानियाँ भी बरती जातीं तो काफी कुछ सुधार सम्भव है !
वैसे भी अ अक्षर वालों के साथ अरविन्द अधिक दिन नहीं रह सकते अरविन्द को आम आदमी पार्टी में ज्योतिष की दृष्टि से समस्याएँ ही समस्याएँ हैं यहाँ तक कि अरविन्द स्वयं अपनी पार्टी के लिए किसी समस्या से कम नहीं हैं इसी प्रकार से पार्टी भी अरविन्द के लिए बहुत बड़ी समस्या है जब से पार्टी बनी तब से अरविन्द का सार्वजनिक गौरव गिरा है !और यदि 'अ' अक्षर से प्रारम्भ नाम वालों की संख्या आम आदमी पार्टी में बढ़ती है तो अरविन्द एवं उन अ अक्षर वालों के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी अ वालों की इस बर्चस्व की लड़ाई को शांत करने के लिए किसी निर्जीव विचार वाले या शिखंडी टाइप के विचार और स्वाभिमान विहीन व्यक्ति को सौंपा जाएगा पार्टी प्रमुख का पद जिसका कोई भविष्य ही नहीं होगा! इस बर्चस्व की लड़ाई में अरविन्द की उपेक्षा का मतलब होगा पार्टी की पूर्णाहुति के प्रयास !
(ज्योतिष वैज्ञानिकों की सलाह न मानने का कठिन दंड कई बड़ी राज नैतिक पार्टियाँ भोग रही हैं किन्तु योग्य ज्योतिष वैज्ञानिकों से मिलने में उन्हें शर्म लग रही है ज्योतिष के नाम पर शौकिया ज्योतिषी या पंडित पुजारियों ने उनका मन बहला रखा है और ऐसे चालाक नेता लोग गंगा नदी की जगह नालों में नहा कर खुश हो रहे हैं !मैं भी भविष्यवाणियाँ महीनों वर्षों पहले ब्लॉग पर लिख कर डाल चुका हूँ!)
आम आदमी पार्टी क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में सफल हो पाएगी ?अब इसका हल ज्योतिष से सोचना है आम आदमी पार्टीं में अभी तक के प्रकाश में आए नामों के अनुशार मनीष सिसोदिया एवं योगेन्द्र यादव ये दो लोग तो हर
परिस्थिति में अरविंद
केजरी वाल का सहयोग करते रहेंगे हाँ इतना अवश्य है कि ये अपना मन दबाकर साथ नहीं दे पाएँगे जहाँ तक इनका सम्मान सुरक्षित रहता जाएगा
वहाँ तक ये किन्तु परन्तु नहीं करेंगे इसलिए इनके साथ अरविन्द को लम्बी
योजनाएँ बनानी चाहिए ।
जहाँ तक बात प्रशांत भूषण और
कुमार विश्वास की है इन दोनों लोगों की राजनैतिक तथा सामाजिक गम्भीरता के
अभाव में अपनी कही हुई बातों एवं अपने अलोक प्रिय व्यवहारों के कारण
ये न तो अरविन्द जी के साथ चल पाएंगे और न ही आम आदमी पार्टी के लिए ही हितकर रहेंगे !अपितु अरविन्द केजरीवाल
के लिए समस्याएँ ही पैदा करते रहेंगे!
जहाँ तक बात संजय सिंह की है
उनके साथ अरविन्द केजरीवाल जी का ताल मेल तभी तक चल पाएगा जब तक वो उनकी
अच्छी बुरी हर बात में अपनी मोहर लगाते रहेंगे!वैसे भी ये अपना तो पूरा
सम्मान चाहेंगे ही और अपनी हठवादिता का भी पूरा
सम्मान कराना चाहेंगे यही स्थिति गोपाल राय जैसे महत्वांकांक्षी लोगों की
भी है इन लोगों के साथ किसी संगठन को सफलता पूर्वक चला पाना अरविन्द जी के
लिए बहुत टेढ़ी खीर होगी इनके मन में असंतोष होते ही ये चुप नहीं बैठेंगे
उससे जो लपटें निकलेंगी उनसे अपने व्यक्तित्व को संवार सुधार कर सफलता
पूर्वक आगे बढ़ाते रह पाना अरविन्द जी के लिए काफी कठिन होगा विशेष संयम पूर्वक
ही उस स्थिति से निपट पाना सम्भव हो पाएगा!
इसके बाद एक जो सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी के लिए होगी वह है अ अक्षर! अर्थात अ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले नामों वाले लोगों का विरोध बहुत भारी री पड़ेगा यद्यपि भारी तो अन्य लोगों का विरोध भी पड़ेगा
अ अक्षर का विरोध दूसरे ढंग का होगा अर्थात अ अक्षर वाले जितने भी प्रभावी लोग आम आदमी पार्टी में जुड़ते जाएँगे पार्टी के उतने टुकड़े होते चले जाएँगे क्योंकि न तो वे आम आदमी
पार्टी के सगे होंगे और न अरविन्द केजरीवाल के ही होंगे तथा न ही दूसरे अ अक्षर वालों के ही यहाँ तक कि अरविन्द केजरीवाल जी स्वयं आम आदमी
पार्टी के विरुद्ध आचरण करते करते स्वयं एक दिन पार्टी पर न केवल बोझ बन जाएँगे अपितु कोई बड़ी बात नहीं होगी कि वे स्वयं ही पार्टी छोड़ कर चले जाएँ !
वह है आम आदमी
पार्टी एवं उसके सर्वे सर्वा श्री अरविन्द केजरीवाल जी के साथ का तालमेल
बनाना सबके साथ नहीं बन सकते हैं अरविन्द जी के ताल मेल।इसमें सबसे बड़ी
कठिनाई उनसे होगी जिनका नाम अ - आ अक्षर पर है जैसे -अलका लाम्बा ,आदर्श
शास्त्री ,आशुतोष, अशोक अग्रवाल एवं और भी वे लोग जिनका नाम अ - आ से प्रारम्भ होता
है ये अरविन्द जी के लिए उस तरह की परेशानी पैदा करेंगे जैसी अरविन्द जी
ने अन्ना हजारे जी के लिए खड़ी की थीं ये भी एक एक सिद्धांत बघारते हुए कब
अपनी अपनी ढपली बजाते हुए अपनी अपनी दुकान अलग अलग खोलने लगें कुछ कहा
नहीं सकता।
अन्ना आंदोलन के समय ही इंडियन पीस टाइम्स में मेरा एक लेख छपा था कि इस
अन्ना आंदोलन को तीन जगहों से खतरा है अर्थात इसके तीन जोड़
हैं एक तो अन्ना-अरविन्द का ,तो दूसरा अन्ना - अग्निवेश का, तीसरा अन्ना-
अमित त्रिवेदी का आदि आदि! यदि देखा जाए तो अन्ना के आंदोलन में ये तीन
लोग ही विशेष चर्चित रहे और अलग हुए।अबकी बार अन्ना ने किसी अ अक्षर से
प्रारम्भ नाम वाले को मुख नहीं लगाया इसीलिए वो जो लक्ष्य लेकर आगे बढ़े थे
उसे पूरा कर पाने में कामयाब रहे !
सम्भवतः यही कारण है कि अबकी बार अरविन्द केजरी वाल दिल्ली के चुनावों में
अपने मिशन में कामयाब रहे क्योंकि उनके पास अभी तक कोई प्रभावी साथी अ
अक्षर से प्रारम्भ नाम वाला नहीं था !
अब
अरविन्द केजरी वाल के लिए आवश्यक है कि यदि वो चाहते हैं कि उनके आमआदमी
पार्टी आंदोलन को शाश्वत रूप से चलाया जा सके तो उन्हें भी अपने यहाँ
बर्चस्व की लड़ाई नहीं पनपने देनी चाहिए साथ ही याद रखकर अपने अंदर की बातों
को कम से कम चालीस प्रतिशत तक रहस्यमय बनाकर रखना चाहिए इस गैप को केवल और केवल अपनी
आध्यात्मिकता से भरने का प्रयास करते रहना चाहिए!
वैसे भी आम आदमी पार्टी में स्वयं अरविन्द केजरी वाल ही संतुष्ट नहीं
रहेंगे कोई बड़ी बात नहीं है कि उन्हें ही कोई और विकल्प चुनना पड़े !और अपनी ही बनाई हुई पार्टी के अंतर्कलह से ऊभ कर उन्हें खुद ही पार्टी छोड़नी पड़ती है !अभी तो
यहाँ उनका मन इस कारण से भी लगा हुआ है कि दिल्ली के चुनावों में भाजपा की ज्योतिषीय लापरवाही उन्हें कुछ
सीटें अधिक मिल गईं हैं जिससे देश विदेश में आम आदमी पार्टी एवं अरविन्द
केजरी वाल का प्रचार प्रसार हो गया है इससे आम आदमी पार्टी वालों को लगने
लगा है कि हमारी साख विशेष बढ़ गई है इससे हम लोक सभा चुनावों भी बहुत कुछ
करने में सफल हो जाएँगे किन्तु ये आसान नहीं होगा क्योंकि दिल्ली में आम
आदमी पार्टी अपनी योग्यता के परिणाम स्वरूप नहीं जीती है इसमें प्रमुख दो
कारण हैं एक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध आप का अन्ना के साथ चलाया गया आंदोलन
से हुआ जन जागरण दूसरा लम्बे समय से सत्ता में रही कांग्रेस से लोगों का
मोह भंग होना और विपक्षी दल भाजपा का आपसी कलह में जूझने के कारण सक्षम
विकल्प न बन पाना इससे नाराज होकर जनता ने अपने वोट को किसी कुएँ में डालने की अपेक्षा आम आदमी पार्टी को भी टेस्ट करना चाहा है। यहाँ तक तो आम आदमी पार्टी
की कोई अच्छाई दिखाई नहीं पड़ती है यदि इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी
गुडबिल बनाने एवं बचाने में सफल हो जाती है जिसकी सम्भावनाएँ अत्यंत कम हैं फिर भी यदि ऐसा हो ही जाता है तो यह उसकी अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी
और उस पर खड़ा हो पाएगा उसका अपना मजबूत भविष्य !
दिल्ली के चुनावों में जो सकारात्मक परिस्थिति आम आदमी पार्टी को मिली वो
अन्य जगह मिलना सम्भव नहीं हो पाएगा इसलिए वहाँ सफलता की आशा इतनी त्वरित नहीं की जानी चाहिए
फिर भी शुरुआत बहुत अच्छी नहीं तो अच्छी जरूर है ! लोक सभा चुनावों के
बाद आम आदमी पार्टी अपनी शाख उतनी तेजी से बढ़ा एवं बचा पाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता है ।
अन्य पार्टियों से आए हुए नेता लोग आम आदमी पार्टी के लिए विशेष विश्वसनीय
नहीं होंगे क्योंकि उनके मन में यदि त्याग की ही भावना होती तो वहीँ जमे
रहते किन्तु वहाँ उनका कोई न कोई स्वार्थ बाधित जरूर हुआ है जिस लिए उन्होंने आप से संपर्क साधा है !
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