अशिक्षित मंत्रियों के रौब का शिकार बनते हैं सुशिक्षित अफसर पैर न छुवें तो क्या गाली खाएँ !आखिर कितनी दहशत में जीते होंगे वो लोग!वारे लोकतंत्र !!!जो बाप के पैर नहीं छूते हैं वो आपके छूते हैं वारे नेता जी!!!
वर्त्तमान समाज अब आत्म संयम से विमुख होने के कारण अनैतिकता की ओर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है न केवल इतना अपितु समाज का एक बड़ा वर्ग धर्म कर्म से विमुख होकर अन्यायार्जित धन से उदर पोषण करने लगा है जिसके परिणाम स्वरूप बलात्कार ,भ्रष्टाचार आदि में सम्मिलित आम जनता के एक वर्ग के साथ साथ कुछ साधू महात्मा,कई पत्रकार, अनेक राजनेता तथा कई नौकरी करने वाले लोग भी देखे जा रहे हैं।इसे देखकर यह कह पाना अत्यंत कठिन है कि समाज बदल रहा है या बिगड़ रहा है!किन्तु संसद भवन से लेकर विधान सभाओं में भी बिगत कुछ वर्षों से जो कुछ देखने को मिल रहा है उसमें बहुत कुछ अच्छा हो रहा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ सांसदों विधायकों के अमर्यादित आचरणों ने देश एवं प्रदेशों को एक नहीं अपितु कई बार शर्मसार किया है! ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए देश के चरित्रवान राजनेताओं को आगे आना चाहिए और अमर्यादित आचरण करने वाले उन भ्रष्ट, निर्लज्ज नेताओं को अपनी अपनी पार्टियों से बाहर करने का सभी दलों को सामूहिक संकल्प लेना चाहिए !
वैसे भी नेता का अर्थ गुंडा तो नहीं ही होता है फिर नेतागिरी चमकाने के लिए लोग गुंडई क्यों करने लगे हैं? जो नेता किसी दरोगा जी या किसी अन्य अफसर को समाज में खड़ा करके बेइज्जत कर दे या दो चार हाथ लात मार दे इससे भयभीत होकर वह अफसर उस नेता के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगे तो आम समाज में मान लिया जाता है कि ये बहुत दमदार नेता हैं।इस प्रकार से किसी गुंडा मवाली उपद्रवी नेता को दमदार सिद्ध करने के लिए अहंकारी राजनैतिक दल अपने अपने मन मुताविक दुमदार अफसरों की फौज अपने आगे पीछे रखते हैं उन्हें नेता जी के पैर छूने के लिए मजबूर किया जाता है उनकी ड्यूटी ही इसीलिए और ऐसी जगहों पर लगाई जाती है कि नेता जी के प्रकट होते ही अफसर उनके चरण चूमते दिखें !कितनी दहशत है अफसरों में नेताओं के नाम पर ?
पुराने समय में जो अफसर अपने अच्छे कामों के बल पर उस समय के चरित्रवान नेताओं एवं समस्त समाज का दिल जीत लिया करते थे आज उन्हीं में से कुछ कायर कामचोर अफसर नेता जी के सामने दुम हिलाकर एवं उनके चरण चूमकर चाटुकारिता के बलपर नेताओं की कृपा से बिना कुछ करके भी राज कर रहे हैं इससे कानून व्यवस्था चरमराती चली जा रही है किन्तु किसी की जवाब देही नहीं दिखती है और दिखे भी क्यों "सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का"!
जब तक अफसरों से पैर छुवाने के शौकीन अहंकारी निकम्मे नेता रहेंगे एवं नेताओं के चरण चूमने वाले मक्कार अफसर रहेंगे तब तक सरकार एवं ऐसे सरकारी कर्मचारियों की सड़ाँध मारती कार्य शैली सुधर पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है ऐसे तो स्वस्थ राजनीति की परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है !
इसलिए ईमानदारी पूर्वक जनसेवा व्रती राजनैतिक कार्यकर्ताओं को चाहिए कि अपने दल से ऐसे नेताओं को निकाल बाहर करें जो अपने को स्वामी समझते हों क्योंकि राजनीति तो सेवाकार्यों के लिए है रौब मारने के लिए नहीं ! और सरस्वती पुत्र ईमानदार अफसरों को भी चाहिए कि कर्तव्य पालन करते समय उन्हें विद्यादायिनी देवी सरस्वती को साक्ष्य मानकर कार्य करना चाहिए जिनकी कृपा बल एवं जन्म जन्मान्तर के पुण्यों के प्रभाव से दुर्लभ विद्या की प्राप्ति हुई है उसी विद्या के प्रभाव से नौकरी मिली है ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि भ्रष्टाचार में सम्मिलित होकर आखिर क्यों लजाते हैं माँ सरस्वती का दूध?अर्थात ऐसे सरस्वती पुत्र बिना चाटुकारिता के केवल कर्तव्य पालन करते रहें तो भगवती सरस्वती स्वयं उनकी रक्षा करती रहेंगी।वैसे भी कर्तव्य भय से भयभीत होकर किसी नेता के सामने दुम हिलाने से क्या होगा? आज का सामाजिक एवं राजनैतिक वातावरण दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा है कोई किसी की बात सुनने एवं सहने को तैयार ही नहीं है आश्चर्य !
मैं राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सभी राजनैतिक दलों से जानना चाहता हूँ कि भारतीय समृद्ध लोकतंत्र को खोखला करने वाला यह अयोग्य नेताओं का नंगा नाच आखिर कैसे बंद होगा! कब तक फेंके जाएँगे विधान सभाओं में माईक,कब तक विधायक उतार कर खड़े हो जाएँगे कपड़े और कब तक मार्शलों को पिटना पड़ेगा और कब तक करेंगे ऐसे बदजुबान प्राणी आपस में गाली गलौच और मारपीट!संसद में फेंके गए मिर्च पाउडर जैसी शर्मनाक दुर्घटनाएँ आखिर कबतक सहनी पड़ेंगी देश को ?ऐसे नेताओं से क्या आशा करे देश और समाज ?
अपने पवित्र लोकतंत्र को इस प्रकार के सभी विकारों से बचाने के लिए एक ही रास्ता है कि चुनावी राजनीति में भी उच्च शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए जिससे उन नेताओं के आदर्श आचरणों से उनकी शैक्षणिक योग्यता की सुगंध का एहसास सबको हो साथ ही साथ उच्च शिक्षा से संपन्न बड़े बड़े अधिकारियों से बातचीत करने की शालीनता का विकास नेताओं में भी हो! साथ ही अपनी अयोग्यता के कारण कल तक अधिकारियों से डरते रहने वाले हीन भावना से ग्रस्त नेता जी आज मंत्री बन कर सुशिक्षित एवं सुयोग्य अधिकारियों को डरवाते घूमा करते हैं या यूँ कह लें कि उनका अपमान करते रहते हैं ,वैसे भी कोई अयोग्य आदमी किसी योग्य आदमी पर शासन कैसे कर सकता है और कोई योग्य आदमी किसी अयोग्य आदमी का अनुशासन कैसे बर्दाश्त कर सकता है अर्थात सम्भव ही नहीं है। यही कारण है कि योग्य अफसर जो निर्णय करेगा वो अयोग्य नेता को समझ में नहीं आएगा और अयोग्य नेता जो निर्णय करेगा वो मानने के लिए किसी योग्य अधिकारी का मन नहीं मानेगा ! सम्भवतः यही कारण है कि देश की कानून व्यवस्था बिलकुल ठप सी पड़ी है!जैसे सब को पता है कि बलात्कार रोके जाने चाहिए किन्तु समझ में नहीं आ रहा है कि रोके कैसे जाएँ !ऐसे ही और भी बहुत सारे क्षेत्र हैं जो जाम से पड़े हैं । जिन क्षेत्रों में योग्य अधिकारियों को सुयोग्य एवं सुशिक्षित मंत्रियों का सान्निध्य प्राप्त होता है उन क्षेत्रों में काम की गुणवत्ता अन्य जगहों की अपेक्षा विशेष अच्छी होती है ।
इसलिए देश और समाज के हित में राजनैतिक सेवा करने के लिए सभी दलों के कार्यकर्ताओं में शैक्षणिक सुयोग्यता एवं सदाचरण आदि को न केवल महत्त्व दिया जाना चाहिए अपितु नेताओं में भी उच्च शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य की जानी चाहिए !
यद्यपि इस तरह का दम्भ तो सभी राजनैतिक दल भरते हैं कि वो योग्य एवं ईमानदार लोगों को ही अपना चुनावी प्रत्याशी बनाने के लिए टिकट देंगे किन्तु ऐसा वो या तो करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या करना ही नहीं चाहते हैं न जाने क्यों ?
अभी अभी लगभग एक डेढ़ वर्ष पूर्व अपने देश में एक नया राजनैतिक दल बना है जो अपने अलावा सभी दलों के अधिकाँश नेताओं को बेईमान न केवल समझता है अपितु कहता भी है किन्तु उसकी अपनी ईमानदारी संदेह के घेरे में रहती है !मैंने सुना है कि किसी सीट के लिए वो लोग अपना उम्मीदवार पहले ही तय कर लेते हैं बाद में जनमत संग्रह का नाटक करते हैं ।मैं पूछना चाहता हूँ कि ऐसी ईमानदारी किस काम की ! मेरा सभी दलों से निवेदन है कि ईमानदारी का पालन ईमानदारी पूर्वक किया जाना चाहिए ।यदि ऐसा नहीं हो सका तो अभी तक तो कुछ खास नहीं बिगड़ा है किन्तु ऐसे तो दिनोंदिन वातावरण बिगड़ना ही है !इसलिए अभी भी समय है कि सुशिक्षित एवं सुयोग्य लोगों को सक्रिय राजनीति में जोड़ा जाए !
वर्त्तमान समाज अब आत्म संयम से विमुख होने के कारण अनैतिकता की ओर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है न केवल इतना अपितु समाज का एक बड़ा वर्ग धर्म कर्म से विमुख होकर अन्यायार्जित धन से उदर पोषण करने लगा है जिसके परिणाम स्वरूप बलात्कार ,भ्रष्टाचार आदि में सम्मिलित आम जनता के एक वर्ग के साथ साथ कुछ साधू महात्मा,कई पत्रकार, अनेक राजनेता तथा कई नौकरी करने वाले लोग भी देखे जा रहे हैं।इसे देखकर यह कह पाना अत्यंत कठिन है कि समाज बदल रहा है या बिगड़ रहा है!किन्तु संसद भवन से लेकर विधान सभाओं में भी बिगत कुछ वर्षों से जो कुछ देखने को मिल रहा है उसमें बहुत कुछ अच्छा हो रहा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ सांसदों विधायकों के अमर्यादित आचरणों ने देश एवं प्रदेशों को एक नहीं अपितु कई बार शर्मसार किया है! ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए देश के चरित्रवान राजनेताओं को आगे आना चाहिए और अमर्यादित आचरण करने वाले उन भ्रष्ट, निर्लज्ज नेताओं को अपनी अपनी पार्टियों से बाहर करने का सभी दलों को सामूहिक संकल्प लेना चाहिए !
वैसे भी नेता का अर्थ गुंडा तो नहीं ही होता है फिर नेतागिरी चमकाने के लिए लोग गुंडई क्यों करने लगे हैं? जो नेता किसी दरोगा जी या किसी अन्य अफसर को समाज में खड़ा करके बेइज्जत कर दे या दो चार हाथ लात मार दे इससे भयभीत होकर वह अफसर उस नेता के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगे तो आम समाज में मान लिया जाता है कि ये बहुत दमदार नेता हैं।इस प्रकार से किसी गुंडा मवाली उपद्रवी नेता को दमदार सिद्ध करने के लिए अहंकारी राजनैतिक दल अपने अपने मन मुताविक दुमदार अफसरों की फौज अपने आगे पीछे रखते हैं उन्हें नेता जी के पैर छूने के लिए मजबूर किया जाता है उनकी ड्यूटी ही इसीलिए और ऐसी जगहों पर लगाई जाती है कि नेता जी के प्रकट होते ही अफसर उनके चरण चूमते दिखें !कितनी दहशत है अफसरों में नेताओं के नाम पर ?
पुराने समय में जो अफसर अपने अच्छे कामों के बल पर उस समय के चरित्रवान नेताओं एवं समस्त समाज का दिल जीत लिया करते थे आज उन्हीं में से कुछ कायर कामचोर अफसर नेता जी के सामने दुम हिलाकर एवं उनके चरण चूमकर चाटुकारिता के बलपर नेताओं की कृपा से बिना कुछ करके भी राज कर रहे हैं इससे कानून व्यवस्था चरमराती चली जा रही है किन्तु किसी की जवाब देही नहीं दिखती है और दिखे भी क्यों "सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का"!
जब तक अफसरों से पैर छुवाने के शौकीन अहंकारी निकम्मे नेता रहेंगे एवं नेताओं के चरण चूमने वाले मक्कार अफसर रहेंगे तब तक सरकार एवं ऐसे सरकारी कर्मचारियों की सड़ाँध मारती कार्य शैली सुधर पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है ऐसे तो स्वस्थ राजनीति की परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है !
इसलिए ईमानदारी पूर्वक जनसेवा व्रती राजनैतिक कार्यकर्ताओं को चाहिए कि अपने दल से ऐसे नेताओं को निकाल बाहर करें जो अपने को स्वामी समझते हों क्योंकि राजनीति तो सेवाकार्यों के लिए है रौब मारने के लिए नहीं ! और सरस्वती पुत्र ईमानदार अफसरों को भी चाहिए कि कर्तव्य पालन करते समय उन्हें विद्यादायिनी देवी सरस्वती को साक्ष्य मानकर कार्य करना चाहिए जिनकी कृपा बल एवं जन्म जन्मान्तर के पुण्यों के प्रभाव से दुर्लभ विद्या की प्राप्ति हुई है उसी विद्या के प्रभाव से नौकरी मिली है ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि भ्रष्टाचार में सम्मिलित होकर आखिर क्यों लजाते हैं माँ सरस्वती का दूध?अर्थात ऐसे सरस्वती पुत्र बिना चाटुकारिता के केवल कर्तव्य पालन करते रहें तो भगवती सरस्वती स्वयं उनकी रक्षा करती रहेंगी।वैसे भी कर्तव्य भय से भयभीत होकर किसी नेता के सामने दुम हिलाने से क्या होगा? आज का सामाजिक एवं राजनैतिक वातावरण दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा है कोई किसी की बात सुनने एवं सहने को तैयार ही नहीं है आश्चर्य !
मैं राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सभी राजनैतिक दलों से जानना चाहता हूँ कि भारतीय समृद्ध लोकतंत्र को खोखला करने वाला यह अयोग्य नेताओं का नंगा नाच आखिर कैसे बंद होगा! कब तक फेंके जाएँगे विधान सभाओं में माईक,कब तक विधायक उतार कर खड़े हो जाएँगे कपड़े और कब तक मार्शलों को पिटना पड़ेगा और कब तक करेंगे ऐसे बदजुबान प्राणी आपस में गाली गलौच और मारपीट!संसद में फेंके गए मिर्च पाउडर जैसी शर्मनाक दुर्घटनाएँ आखिर कबतक सहनी पड़ेंगी देश को ?ऐसे नेताओं से क्या आशा करे देश और समाज ?
अपने पवित्र लोकतंत्र को इस प्रकार के सभी विकारों से बचाने के लिए एक ही रास्ता है कि चुनावी राजनीति में भी उच्च शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए जिससे उन नेताओं के आदर्श आचरणों से उनकी शैक्षणिक योग्यता की सुगंध का एहसास सबको हो साथ ही साथ उच्च शिक्षा से संपन्न बड़े बड़े अधिकारियों से बातचीत करने की शालीनता का विकास नेताओं में भी हो! साथ ही अपनी अयोग्यता के कारण कल तक अधिकारियों से डरते रहने वाले हीन भावना से ग्रस्त नेता जी आज मंत्री बन कर सुशिक्षित एवं सुयोग्य अधिकारियों को डरवाते घूमा करते हैं या यूँ कह लें कि उनका अपमान करते रहते हैं ,वैसे भी कोई अयोग्य आदमी किसी योग्य आदमी पर शासन कैसे कर सकता है और कोई योग्य आदमी किसी अयोग्य आदमी का अनुशासन कैसे बर्दाश्त कर सकता है अर्थात सम्भव ही नहीं है। यही कारण है कि योग्य अफसर जो निर्णय करेगा वो अयोग्य नेता को समझ में नहीं आएगा और अयोग्य नेता जो निर्णय करेगा वो मानने के लिए किसी योग्य अधिकारी का मन नहीं मानेगा ! सम्भवतः यही कारण है कि देश की कानून व्यवस्था बिलकुल ठप सी पड़ी है!जैसे सब को पता है कि बलात्कार रोके जाने चाहिए किन्तु समझ में नहीं आ रहा है कि रोके कैसे जाएँ !ऐसे ही और भी बहुत सारे क्षेत्र हैं जो जाम से पड़े हैं । जिन क्षेत्रों में योग्य अधिकारियों को सुयोग्य एवं सुशिक्षित मंत्रियों का सान्निध्य प्राप्त होता है उन क्षेत्रों में काम की गुणवत्ता अन्य जगहों की अपेक्षा विशेष अच्छी होती है ।
इसलिए देश और समाज के हित में राजनैतिक सेवा करने के लिए सभी दलों के कार्यकर्ताओं में शैक्षणिक सुयोग्यता एवं सदाचरण आदि को न केवल महत्त्व दिया जाना चाहिए अपितु नेताओं में भी उच्च शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य की जानी चाहिए !
यद्यपि इस तरह का दम्भ तो सभी राजनैतिक दल भरते हैं कि वो योग्य एवं ईमानदार लोगों को ही अपना चुनावी प्रत्याशी बनाने के लिए टिकट देंगे किन्तु ऐसा वो या तो करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या करना ही नहीं चाहते हैं न जाने क्यों ?
अभी अभी लगभग एक डेढ़ वर्ष पूर्व अपने देश में एक नया राजनैतिक दल बना है जो अपने अलावा सभी दलों के अधिकाँश नेताओं को बेईमान न केवल समझता है अपितु कहता भी है किन्तु उसकी अपनी ईमानदारी संदेह के घेरे में रहती है !मैंने सुना है कि किसी सीट के लिए वो लोग अपना उम्मीदवार पहले ही तय कर लेते हैं बाद में जनमत संग्रह का नाटक करते हैं ।मैं पूछना चाहता हूँ कि ऐसी ईमानदारी किस काम की ! मेरा सभी दलों से निवेदन है कि ईमानदारी का पालन ईमानदारी पूर्वक किया जाना चाहिए ।यदि ऐसा नहीं हो सका तो अभी तक तो कुछ खास नहीं बिगड़ा है किन्तु ऐसे तो दिनोंदिन वातावरण बिगड़ना ही है !इसलिए अभी भी समय है कि सुशिक्षित एवं सुयोग्य लोगों को सक्रिय राजनीति में जोड़ा जाए !
यदि ऐसा कोई विचार हो तो सभी दल के राजनेता गण मेरा भी निवेदन स्वीकार करें! मैं भी सक्रिय रूप से राजनीति से जुड़कर देश एवं समाज की सेवा करना चाहता हूँ क्या मुझे भी मेरी शैक्षणिक योग्यता के अनुशार आप लोगों के द्वारा हमें भी किसी उचित स्थान पर जोड़ने की कृपा की जाएगी !मैं इसी आशा से आप सब के लिए यह निवेदन रहा हूँ इसमें हमारे द्वारा किए जा रहे कार्य एवं शैक्षणिक योग्यता के भी संकेत सम्मिलित हैं यदि उचित लगे तो मुझे भी अवसर प्रदान करें ।
भवदीय -
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान
तथा
दुर्गा पूजा प्रचार परिवार
एवं
ज्योतिष जन जागरण मंच
शिक्षा- व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
एवं
ज्योतिष जन जागरण मंच
शिक्षा- व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी
कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी
कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी
विशेषयोग्यताः-वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीनवाङ्मयएवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
प्रकाशितः-पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम(एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन
कुछमैग्जीनोंमेंसंपादन,सहसंपादनस्तंभलेखनआदि।
कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम(एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन
कुछमैग्जीनोंमेंसंपादन,सहसंपादनस्तंभलेखनआदि।
अप्रकाशितसाहित्यः-श्रीशिवसुंदरकांड,श्रीहनुमतसुंदरकांड,
संक्षिप्तनिर्णयसिंधु,
ज्योतिषायुर्वेद,श्रीरुद्राष्टाध्यायी,
वीरांगनाद्रोपदी,दुलारीराधिका,
ऊधौगोपीसंवाद,
श्रीमद्भगवद्गीता‘काव्यानुवाद’
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
ब्लॉग -स्वस्थसमाज \ भारतजागरण \ समयविज्ञान \ सहजचिंतन
जन्मतिथिः9.10.1965
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव-इंदलपुर, पो.संभलपुर, जि.कानपुर,उत्तरप्रदेश वर्तमान पता के -71, छाछी बिल्डिंग चौक , कृष्णानगर,दिल्ली51 01122002689,01122096548,मो.09811226973,09968657732
संक्षिप्तनिर्णयसिंधु,
ज्योतिषायुर्वेद,श्रीरुद्राष्टाध्यायी,
वीरांगनाद्रोपदी,दुलारीराधिका,
ऊधौगोपीसंवाद,
श्रीमद्भगवद्गीता‘काव्यानुवाद’
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
ब्लॉग -स्वस्थसमाज \ भारतजागरण \ समयविज्ञान \ सहजचिंतन
जन्मतिथिः9.10.1965
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव-इंदलपुर, पो.संभलपुर, जि.कानपुर,उत्तरप्रदेश वर्तमान पता के -71, छाछी बिल्डिंग चौक , कृष्णानगर,दिल्ली51 01122002689,01122096548,मो.09811226973,09968657732
पांचजन्य में प्रकाशित अंश
Friends, | ||||||||
Appended below is a news item on the "Arogya Mela" carried in the HindustanTimes of 10th Feb.. The Mela is being organised by the Swadeshi JagaranManch in New Delhi and is reportedly drawing huge crowds. It is reported tohave received funds drom the Ministries of Health, Chemicals and S&T! I feelthat the JSA should react to this. Please send your views.Amit------------------------------------Banish the spirit, cure the ‘disease’ at Arogya melaSutirtho Patranobis(New Delhi, February 9)--------------------------------------------------------------------------------If you have a stomach problem or a throbbing headache, look behind.According to Dr Shesh Narayan Vajpayee, an astrologer who looks up to theplanets to treat patients, ‘spirits’ often follow people around and areresponsible for prolonged illnesses.These ‘spirits’ are mischievous as well, Vajpayee says. “They are aware whenthe person is going for a check-up. So, they disappear and the test resultscome out normal. Step out of the clinic, the spirit is back,” he says,rather seriously. The only way you can get rid of them is to perform ‘pujaand havan’ and appease the planets.Vajpayee is busy these days at the Swadeshi Arogya Mela at the JawaharlalNehru Stadium, catering to people waiting to get their hands and bodieschecked. The Mela has been organised by the Centre for Bharatiya MarketingDevelopment (CBMD)—a unit of Swadeshi Jagran Foundation—and National MedicosOrganisation, an NGO.The Government, according to a CBMD official has just provided logisticalsupport. The official, however, declines to comment on the financialaspects, saying the details would be available after the fair concludes onFebruary 12.Besides Vajpayee, numerous doctors and medical companies, dabbling in Indiansystems of medicine, have put up stalls at the Mela, which was inauguratedon Thursday by Union Human Resources Development Minister Dr Murli ManoharJoshi. Some are selling ayurvedic herbs to treat baldness and some othersare selling clothes made with ‘vastra vigyan’, designed to make the buyerfeel happy about life.The fair is an attempt to spread awareness about the Indian systems ofmedicine, says Delhi's former Health Minister Dr Harsh Vardhan. “Even if‘health for all’ has not been achieved so far, we want to show that Indiansystems of medicine have the potential to cure many diseases,” he says.Vajpayee, meanwhile, says the premise of his treatment is that diseases arerelated to planetary movement. | ||||||||
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