भगवान किसे कहते हैं क्या कभी जाना समझा है हम लोगों ने! इस विषय में क्या कहते हैं हमारे शास्त्र ?
देश वासियों की सुरक्षा के लिए शिर कटाने वाले सैनिक यदि हमारे भगवान् नहीं हो सकते तो कोई खिलाड़ी भगवान् कैसे हो सकता !सम्मानीय हो जाए ये बात और है ।
कुछ मीडिया के महापुरुषों ने एक बाबा जी से जब तक विज्ञापन मिलते रहे तब तक उन्हें बे मतलब में सर्व शक्तिमान मलमल बाबा की तरह उनसे उनकी शक्तियों की कृपा लोगों पर लुटवाते रहे उन्हें अपने मन से धर्म गुरु और जाने क्या क्या बताते रहे और भी जितना चढ़ा सकते थे उतना चढ़ाया किन्तु जब वो अपने पत्र पत्रिकाएँ टी. वी.चैनल आदि खुद चलाने लगे तो इसी मीडिया ने न केवल उनके लिए अपितु समस्त धर्म एवं धर्माचार्यों के लिए क्या कुछ नहीं कहा !महीनों तक अपने अपने चैनलों पर बैठकर पानी पी पी कर खूब कोसते रहे बाक़ी सच्चाई तो ईश्वर ही जाने !मेरा उद्देश्य किसी का पक्ष लेना नहीं है ,किन्तु विज्ञापन का ये ढंग ठीक नहीं है गम्भीरता तो रखनी ही चाहिए ।
हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि वह मीडिया यदि किसी मनुष्य को भगवान जैसे शब्दों से सम्बोधित करने भी लगे तो गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि अब मीडिया भी निष्पक्ष नहीं रहा है !
जहाँ तक किसी को भगवान् कहने की बात है ये धर्म का विषय है इसे धर्माचार्यों पर छोड़ा जाना चाहिए साथ ही हमें एक बात और ठीक तरह से समझ लेनी चाहिए कि खेल या किसी कला में कोई कितना भी निपुण क्यों न हो जाए किन्तु उसे भगवान् नहीं कहा जा सकता ! भगवान् न तो कोई बन सकता है और न ही बनाया जा सकता है ये बनने बनाने का खेल ही नहीं है वह परं प्रभु तो ("चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्" "स्वे महीम्नि महीयते" आदि आदि )अपनी महिमा में महिमान्वित् एवं स्वयं सिद्ध स्वामी हैं उनकी तुलना किसी मनुष्य से करनी ही क्यों ?
2.बहादुर, वीर, पराक्रमी आदि ।
3.
अब मैं खेल प्रिय समाज से क्षमा माँगते हुए खिलाड़ियों और देश के लिए समर्पित सैनिकों की तुलना करना चाहता हूँ ! देश के लोगों का जो समर्पण खेल ,खेलों और खिलाडियों के एवं फ़िल्म से जुड़े लोगों के प्रति होता है काश! कम से कम उतना ही समर्पण राष्ट्र के प्रति समर्पित वीर सैनिकों के प्रति भी होता तो क्यों झेलना पड़ता देश को आतंक वाद का कठिन दंश !
विदेशों से जब खिलाड़ी खेलों में जीत कर आए होते हैं तो प्रधान मंत्री जी,मुख्यमंत्री जी फिल्मोद्योग से जुड़े लोग एवं बड़े बड़े उद्योग पति सब लोग कुछ न कुछ देने घोषणा कर रहे होते हैं !
किन्तु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में शहीद हुए वीर सैनिकों के लिए यह जोश क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ?जब उन सैनिकों के दुध मुए बच्चों के दूध की व्यवस्था एवं भविष्य सुधारने की व्यवस्था करने के लिए सरकारी आफिसों के चक्कर काटती फिरती हैं सैनिकों की विधवाएँ! उन्हें देखकर इन जोशीले नेताओं एवं धनियों की आत्माएँ इनको क्यों नहीं धिक्कारती हैं इनकी कुंद जबान से क्यों नहीं निकलता कि देवी ! तुम घर बैठो तुम्हारे बच्चों समेत तुम्हारे परिवार की चिंता हम उद्योग पतियों और सरकारों पर छोड़ दो !
उनमें से जिन सैनिकों के परिजनों के लिए पेट्रोल पम्प देने की घोषणा सरकारों के द्वारा की भी जाती है उन्हें वे मिलते भी हैं कि नहीं है कोई देखने या पूछने वाला? उनकी विधवाओं को कागजों फाइलों अफ्सरों के नाम पर कितने चक्कर कटवाए जाते हैं वे छोटे छोटे बच्चे लेकर भटका करती हैं एक आफिस से दूसरी आफिस दूसरी से तीसरी आदि आदि !कितनी निर्दयता का व्यवहार होता है उनके साथ ?
जब किसी खिलाड़ी भगवान की खेल जगत से बड़े धूम धाम पूर्वक विदाई देखता हूँ जिसमें बड़ी बड़ी स्वर कोकिलाओं के द्वारा प्रशंसा की गई होती है फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े बड़े महापुरुष वहाँ पहुँच जाते हैं बड़े बड़े तथाकथित युवराज ,मुख्य मंत्रियों समेत राजनैतिक जगत के बड़े बड़े भाग्य विधाता पहुँचकर उस अवसर पर शोभा बढ़ा रहे होते हैं बहुत अच्छा लगता है यह सब देखकर !
दूसरी ओर राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों के शिर काट लिए जाते हैं बिना शिरों के शव पहुँचते हैं परिजनों के पास उस दुःख की घड़ी में कोई नहीं पहुँचता है उन प्रणम्य शहीद वीर सैनिकों के परिजनों को ढाढस बँधाने !यदि आत्मा का विज्ञान सच है तो यह सब देखकर उन शहीद सैनिकों की आत्माओं को कितना बड़ा आघात लगता होगा ?
क्या तुलना नहीं की जानी चाहिए एक खिलाडी की खेल जगत से की गई धूम धाम से विदाई, दूसरी ओर राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों की इस संसार से विदाई में बेरुखाई ही बेरुखाई!क्या किसी को नहीं लगना चाहिए कि सैनिकों के परिजनों को न कुछ और तो सांत्वना ही दे आएँ !
याद रखिए कि खेल कूद और नाच गाना आदि सारा मनोरंजन तभी तक अच्छा लगता है जब तक असंख्य सैनिक देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीना लगाए खड़े हैं ,उन्हें भी बूढ़े माता पिता ,जवान पत्नी एवं छोटे छोटे बच्चों की याद आती होगी! प्रिय परिजन, पुरबासी, खेत -खलिहान समेत सभी स्मृतियाँ उन्हें भी सोने नहीं देती होंगी किन्तु राष्ट्र रक्षा की प्रबल भावना ने उन्हें बाँध रखा होता है देश की सीमा पर और यों ही बीत जाते हैं उनके सारे तिथि त्यौहार,सारे गाँव , घर खानदान के उत्सव !
अपने प्रिय देश वासियों से मेरी प्रार्थना यही है कि सैनिकों के महान त्याग और बलिदान का सम्मान भी देश में कम से कम उतना तो हो ही जितना किसी और का होता है !!!
(इस कारगिल विजय नामक काव्यात्मक पुस्तक की प्राप्ति के लिए हमारा वर्तमान पता है-)
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