Sunday, December 1, 2019

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                                                           दो शब्द
                                                     मेरे द्वारा किए गए कुछ पूर्वानुमान -
  मैं प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पूर्व अगले महीने के पूर्वानुमान पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी के जीमेल पर भेज दिया करते थे उन्होंने कहा था कि हमारे पूर्वानुमान यदि सही निकलेंगे तो वो मुझे लिखित फीडबैक देंगे !इसलिए अपने पूर्वानुमान परीक्षणार्थ मैं उन्हें भेज रहा था जो सही निकलते जा रहे थे !इसी विषय में मेरी उनसे अक्सर बात भी होती थी | इसी क्रम में अगस्त 2018 के विषय में मैंने जुलाई में ही उनके जीमेल पर पूर्वानुमान डाल दिया था जिसमें 1 से 11 और 7 से 14 अगस्त में बीच दक्षिण भारत में भीषण वर्षात होने का पूर्वानुमान लिखा था जिसमें कुछ दशकों का रिकार्ड टूटने की बात भी लिखी थी | जबकि मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी उसमें अगस्त और सितम्बर में सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी | जबकि इसी बीच केरल आदि दक्षिण भारत में बहुत अधिक वर्षा हुई थी | भारतीय मौसम विज्ञानविभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी वो भविष्यवाणी गलत हो गई थी मेरे द्वारा अपनी भविष्यवाणी की  तुलना उससे किए जाने के कारण उनसे  हमारी बातचीत बंद हो गई | ये दोनों जीमेल मैं आपको भेज रहा हूँ | इसके विषय में उन्होंने जो फीडबैक दिया है भले उसमें हमारी भविष्यवाणियों को सही न स्वीकार किया गया हो किंतु मैं उन्हें आपको भेज रहा हूँ | 
       इसी विषय में मैं एक दिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री जी से मिला उन्होंने मुझे सेकेटरी साहब के पास यह कहते हुए भेजा कि यदि कुछ हो सकता होगा तो वही करेंगे !मैं राजीवन जी के पास गया तो उन्होंने एडवाइजर गोपाल रमन जी से मिलाया और हमारी बात सुनने को कहा | गोपाल रमन जी ने हमसे वो तकनीक और वह प्रक्रिया लिखकर देने के लिए कहा जिसके आधार पर और जिस प्रकार से मैं पूर्वानुमान लगाता हूँ !मैंने ज्योतिष आदि गणित पक्ष को उद्धृत  किया तो वहाँ ज्योतिष के कुछ पंचांग रखे हुए थे उनकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अमावस्या संक्रांति के आसपास वर्षा होती है इसके अलावा  मौसम का पूर्वानुमान तुम कैसे लगाते हो !इससे लगा कि वहाँ पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष पंचांगों का उपयोग तो किया जाता है किंतु स्वीकार नहीं किया जाता है कि यह भी विज्ञान है | 
     इसके  अतिरिक्त स्काई मेट के  वैज्ञानिक डॉ रजनीश जी को भी मैं पूर्वानुमान भेजता था !उन्होंने मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमानों की सच्चाई स्वीकार करते हुए  आपदा प्रबंधन विभाग को एक पत्र भी लिखा था मैं वो भी संलग्न कर रहा हूँ | 
    मैंने वायु प्रदूषण के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे भी काफी हद तक सही निकले हैं जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि वायु प्रदूषण बढ़ने में समय की भी बड़ी भूमिका है | मैं वो मेल भी आपको भेज रहा हूँ | 
     आँधी तूफानों एवं चक्रवातों के विषय में मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान लगभग सच सिद्ध हो रहे हैं | 
   इसके अतिरिक्त मैं दिसंबर 2019 महीने के विषय में भी पूर्वानुमान आपके पास भेज रहा हूँ | 
        आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इस विधा पर भी विचार करें एवं इसी विषय में मुझे मिलने के लिए समय दें !
            
                                            मौसमविज्ञान का सारांश 
       मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दो प्रमुख विधाएँ हैं एक वेदविज्ञान के आधार पर मौसम पूर्वानुमान लगाया जाता है तो दूसरा बाइबल के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाता है |वेदविज्ञान मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया है !
      वेदविज्ञान के आधार पर महीनों वर्षों पहले के प्राकृतिक लक्षणों को देखकर उसके अनुसार या फिर गणित के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिया जाता है यह गणित के आधार पर लगाया जाने वाला मौसम संबंधी पूर्वानुमान ग्रहण की तरह ही सैकड़ों वर्ष पहले भी लगाया जा सकता है जो सही एवं सटीक निकलता है |
      बाइबल में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने का जो वर्णन  मिलता है इसके अनुशार बाइबल के ज़माने में आँखों को जो नज़र आता था, उसी से मौसम का अनुमान लगाया जाता था। (मत्ती 16:2,3)
      आधुनिक मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बाइबल की इसी दृष्टि का अनुगमन करती है जो दिखेगा वो माना जाएगा | किसी ट्रेन की गति देखकर ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस समय कहाँ पहुँचेगी |ऐसे ही नहर में छोड़े गए पानी या नदी में आने वाली बाढ़ के पानी को देखकर यह अंदाजा लगा लेना कि यह पानी किस दिन कहाँ पहुँचेगा उसी तरह की आधुनिक विज्ञान के द्वारा मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया है |
   बाइबिल के मत से बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ एक जगह घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लेने मात्र को भविष्यवाणी मान लिया जाता है| बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ देखने के लिए यंत्रों की आवश्यकता पड़ी तो दो ढाई सौ वर्ष पूर्व ऐसे यंत्रों का निर्माण किया गया |यंत्रों से प्राप्त जानकारी सुरक्षित रखने के लिए बीसवीं शती के उत्तरार्ध में कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ | कुछ ज़रूरी यंत्रों से वायु दाब, तापमान, नमी और हवा को मापा जाता है।
      इस समय मौसम कैसा है यह जानना काफी आसान है। लेकिन, इसकी तुलना में अगले घंटे, दिन या सप्ताह का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान लगाना इतना आसान नहीं है।
    द वर्ल्ड बुक इंसाइक्लोपीडिया कहती है, “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”इसे वास्तविकता समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए | 
      संभवतः इसीलिए इस बाइबल पद्धति से की जाने वाली मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं | इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं का  पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक असंभव बना हुआ है | वैज्ञानिक न इनके कारण बता पाते हैं और न ही पूर्वानुमान !एक आध तीर तुक्कों को छोड़ दिया जाए तो इस प्रक्रिया में मौसम पूर्वानुमान के लिए कुछ भी नहीं है या यूँ कह लिया जाए कि आधुनिक मौसम विज्ञान पद्धति में विज्ञान का एक छोटा से छोटा अंश भी नहीं है |
      अब बाद वेद विज्ञान की इसके आधार पर जो मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाता है इस प्रक्रिया में जो दिखाई पड़ता है उसके विषय में तो पूर्वानुमान लगाया ही जाता है जो नहीं दिखाई पड़ता है उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है वो विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है वो आज भी सही एवं सटीक घटित हो रहा है | ग्रहण संबंधी सौ वर्ष पूर्व का पूर्वानुमान लगाते समय उस समय की संभावित सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि की परिस्थिति देख पाना बिल्कुल संभव नहीं होता है इसके बाद भी इसके बाद भी ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक निकलते हैं |
    भारत सरकार का मौसमविज्ञान विभाग वेद विज्ञान को विज्ञान मानता ही नहीं है  जबकि उसकी अपनी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ  गलत निकल जाती हैं |
     आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में चूँकि भविष्य झाँकने की कोई विधि  ही नहीं है और किसी भी घटना का पूर्वानुमान जानने के लिए भविष्य विज्ञान एक मात्र विकल्प है !इसके बिना आधुनिक विज्ञान के द्वारा भविष्य के विषय में किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं  है |
  मौसमसंबंधी समाचारों को ही मौसमसंबंधी भविष्यवाणी कहा जाता है !
     आधुनिक विज्ञान प्रक्रिया में तो केवल मौसमसंबंधी समाचार बाचन किया जाता है | जिसमें अन्य समाचारों की तरह ही आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त करनी होती हैं जिनके गलत होने के बाद भी उनकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है |
     राजनैतिक या सामाजिक समाचारों की प्रक्रिया भी तो यही है कि वहाँ ऐसा ऐसा हुआ है और यदि वहाँ ऐसा हो रहा है तो यहाँ भी ऐसा होने की संभावना या आशंका है | यहाँ सांप्रदायिक दंगा भड़का है तो ये पूरे देश में फैल सकता है | इस वर्ष महँगाई बढ़ सकती है | मद्यावधि चुनाव हो सकते हैं !इस पार्टी की सरकार बन सकती है | उस पार्टी में फूट पड़ने की आशंका है एक नया गठबंधन तैयार होने की आशंका है | आगामी सत्र में सरकार इस प्रकार का बिल ला सकती है !इस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है |
     ऐसी आशंकाओं संभावनाओं को यदि राजनीति और समाज में भविष्यवाणी नहीं माना जाता है तो मौसम के क्षेत्र में ऐसे समाचारों को भविष्यवाणी कैसे माना जा सकता है जिनका कोई आधार या अनुसंधान प्रक्रिया ही न हो किसी की जवाबदेही न हो केवल आशंकाओं संभावनाओं की भरमार हो |
      इस वर्ष सर्दी  ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने उतने वर्ष का और वर्षा ने इतने दशकों का तोड़ा !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई वहाँ इस नाम का तूफ़ान आया | तीन दिनों तक वर्षा हो सकती है उसके बाद कह दिया जाता है दो दिनों तक और वर्षा हो सकती है इसके बाद फिर कह दिया जाता है तीन दिन और वर्षा हो सकती है जैसी जय वर्षा आँधी तूफ़ान आदि होने की घटनाएँ घटित होते जाते हैं वैसी वैसी आशंकाएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त करते जाते हैं ऐसी मौसमी भविष्यवाणियों और राजनैतिक समाचारों में क्या अंतर है |
     वर्षा अधिक हो सकती है या गर्मी अधिक पड़ने की संभावना है या सर्दी कम या अधिक पड़ने की आशंका या संभावना है ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वालों की न तो कोई जवाबदेही होती है और न ही इनके गलत हो जाने के बाद उनसे जवाब भी नहीं माँगा जा सकता कि ये गलत क्यों हो गईं !यदि जवाब माँगा भी जाए तो जवाब दिया भी क्या जाएगा जब ऐसी भविष्यवाणियों का कोई आधार ही नहीं है |यदि आधार हो तब भविष्यवाणियों के गलत होने पर त्रुटियाँ खोजी जा सकती हैं कि आखिर हमसे गलती कहाँ छूट गई है किंतु आधार विहीन भविष्यवाणियों के गलत होने पर केवल यह कह दिया जाएगा कि इसमें रिसर्च की आवश्यकता है !ऐसे समय बरका देने के अतिरिक्त और दूसरा विकल्प बचता भी क्या है ?
       राजनैतिक भविष्यवाणियों में जिस प्रकार से कुछ लक्षणों संकेतों संपर्कों के आधार पर राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरणों के विषय में आवश्यकताएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त की जाती हैं ऐसा हो सकता है वैसा होने की आशंका है सरकार बनने की संभावना है  किंतु राजनीति में कई बार कुछ घटनाएँ अचानक घटित हो जाती हैं जो क्रमिक प्रक्रिया में नहीं होती हैं इसलिए उनके विषय में किसी को कानोकान कोई खबर नहीं होती है | इसलिए ऐसी ख़बरों के विषय में कोई आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है | बिना किसी सुगबुगाहट के किसी सरकार के गिरने की घोषणा हो जाए या बन जाए तो राजनैतिक पत्रकारों या भविष्य वक्ताओं के पास कोई जवाब नहीं होता है वे केवल आश्चर्य प्रकट कर रहे होते हैं |
        राजनैतिक भविष्यवाणियों की तरह ही मौसम के क्षेत्र में जब ऐसी कोई प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जो क्रम से अलग हटकर होती हैं इसीलिए उनके विषय में भी आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है  तो ऐसी घटनाओं को आधुनिक मौसमविज्ञान की भाषा में अप्रत्याशित बता दिया जाता है और ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन बता दिया जाता है | 
        कुलमिलाकर ये राजनैतिक समाचारों की तरह ही मौसमसंबंधी समाचार भी हैं जिन्हें मौसम पूर्वानुमान या भविष्यवाणियों के नाम पर परोसा जाता है और समाज को स्वीकार करना पड़ता है |

                    भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान     
     भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।उसी के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ सफलता पूर्वक की जाती रही हैं |इसमें प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं जो सही सटीक घटित होती थीं | वेदों उपनिषदों दार्शनिक विवेचनों में बादलों के गठन और बारिश के विषय में वर्णन मिलता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ऋतुचक्र की प्रक्रिया के बारे में  गंभीर चर्चा की गई है !500 ईस्वी के लगभग वाराहमिहिर द्वारा निर्मित वृहद्संहिता इस बात का सुपुष्ट प्रमाण है कि वायु मंडलीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान उस समय भी आस्तित्व में था !कहा गया है - आदित्याज्जायते वृष्टिः अर्थात सूर्य से वर्षा का  निर्माण होता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देश के राजस्व और राहत कार्य के लिए वर्षा के वैज्ञानिक मापन और उसके उपयोग की सूची सम्मिलित है ! सातवीं शताब्दी के आसपास कालिदास ने अपने महाकाव्य 'मेघदूत' के माध्यम से भारत के मध्य भाग में मानसून आने के समय का संकेत किया है एवं बादलों के मार्ग का भी वर्णन किया है !1753 में महान मौसम वैज्ञानिक महाकवि 'घाघ' हुए जिनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों से प्रभावित जन जन की जबान पर घाघ की कहावतें विद्यमान हैं |कुलमिलाकर भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत अत्यंत प्राचीन काल में हो गई थी |
 विदेशों में भी यंत्रों के बिना ही मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते थे ! 
      उस समय विदेशी विद्वान भी बिना यंत्रों के ही मौसमसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगाया करते थे | विदेशी विद्वानों में भी 350 ईसा पूर्व में अरस्तु ने मौसम विज्ञान पर लिखा था।15अक्टूबर 1987 को ब्रिटेन में एक औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है। लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया: “चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी इंग्लैंड पर ऐसा भयंकर तूफान आया जिससे भारी जनधन की हानि हुई |
      ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करे। लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था |इसलिए उनकी वो प्रक्रिया प्रचलन में नहीं आ सकी !किंतु गणित से मौसम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसा वे भी मानते थे |
     स्वदेश से लेकर विदेश तक जिस प्रक्रिया के द्वारा हजारों वर्षों तक मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे और समाज उससे संतुष्ट भी था यदि ऐसा न होता तो मध्य भारत में घाघभंडरी की कहावतें आज जन जन की वाणी पर नहीं होतीं !वे अनुभव आज भी उनके काम आया करते हैं |वो मौसम संबंधी अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया जो अब तक प्रचलित रही वो अचानक गलत कैसे हो गई !
      कुल मिलाकर भारतवर्ष में ऋषियों मुनियों ने सदियों पहले ही वो ज्ञान अर्जित कर लिया था जिससे मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जाती रही है जिन दिनों योरोप ने मौसम विज्ञान की ओर  पहला कदम भी नहीं बढ़ाया था जब अमेरिका में विज्ञान का कोई नाम लेवा भी नहीं था तब ही घाघ जैसे मौसम वैज्ञानिक ने संसार के सर्वाधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक वर्षा वेत्ता की ख्याति अर्जित कर ली थी वे सटीक एवं अचूक भविष्यवाणी किया करते थे |
      प्राचीन ऋषियों की विशेषता एक और थी जब कोई प्राकृतिक घटना क्रम से अलग घटित होती थी तो उसका पूर्वानुमान लगाना भी वे आवश्यक समझा करते थे इसलिए उसके विषय में भी अनुसंधान पूर्वक न केवल पूर्वानुमानलगाते थे अपितु वैसा होने के पीछे के कारण खोजकर उस घटना को भी नियमबद्ध कर दिया करते थे |
     प्रकृति में चंद्रमा का थोड़ा थोड़ा घटना या बढ़ना रहा हो या सूर्य चंद्र ग्रहण की घटनाएँ या फिर समुद्र में उठने वाला ज्वार भाँटा हो ये घटनाएँ प्रतिदिन नहीं घटित होती हैं कभी कभी घटित होने के बाद भी उन्होंने अनुसंधान पूर्वक इस बात की खोज कर ली कि ये कब कब किन किन तिथियों में घटित होती हैं | ज्वार भाँटा प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा को भले घटित होता हो किंतु ग्रहण अमावस्या पूर्णिमा में घटित होने के बाद भी प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होते कभी कभी घटित होते हैं उनका पूर्वानुमान लगाने में एवं ऐसी घटनाओं को भी गणित बढ़ करने में उन्होंने अनुसंधान पूर्वक सफलता प्राप्त की थी |
    आधुनिक मौसम विज्ञान में भी यदि वैज्ञानिकता का थोड़ा भी अंश होता तो भूकंपों के घटित होने के कारण और पूर्वानुमान खोजकर उन्हें भी नियमबद्ध या गणितबद्ध करने के विषय में कोई न कोई सफल अनुसंधान हो चुका होता इसके साथ ही अलनीनो ,लानीना, जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग एवं वायु प्रदूषण के होने न होने या बढ़ने घटने के विषय में खोज की जा चुकी होती एवं मौसम पर पड़ने वाले इनके प्रभाव के विषय में अब तक कोई न कोई सफल अनुसंधान कर लिया गया होता !कब अर्थात किस वर्ष ऐसी घटनाएँ घटित होंगी कब नहीं घटित होंगी आदि के पूर्वानुमान लगाने की विधि खोज ली गई होती उसे नियमबद्ध या गणितबद्ध कर दिया गया होता ताकि भावी पीढ़ियों को वर्तमान समय की तरह भ्रम की स्थिति से नहीं जूझना पड़ता |
         आधुनिक मौसमविज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
 
     उन दिनों मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें नहीं थीं फिर भी महाकवि घाघ ने प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप के बिना प्रकृति को पढ़ने की व्यवस्था खोज ली थी |इसप्रकार से अपने देश में ही मानसून की चाल को सही सही पढ़ने वाला विज्ञान विद्यमान है फिर भी भारत में इन दिनों पाश्चात्य जगत के विज्ञान का अंधानुशरण हो रहा है मानसून के मन में क्या है इसे जानने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में बनी मशीनों का उपयोग हो रहा है |
     इसके आधार पर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जाता है तब बूंदाबांदी होकर निकलजाता है कई बार बूँदा बाँदी की भविष्यवाणी की जाती है और मूसलाधार बारिश हो जाती है | कई बार आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाती है किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आता है कई बार बिना किसी भविष्यवाणी के ही भीषण आँधी तूफ़ान आ जाता है |
       निकट समय में घटित हुई ऐसी ही कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -

       ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -
  1. केदारनाथ जी में  16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए  किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! 
  2. 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
  3.  बनारस में 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को भीषण बारिश हुई जिसके कारण बनारस में संभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की सभाएँ लगातार दो करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में पहले कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
  4. सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में कई दिनों तक लगातार भीषण बारिश हुई थी जिसके कारण मद्रास में भीषण बाढ़ से त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
  5.  सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने की घटना घटित हुई थी  नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में  आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन  न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा इस वर्ष हुआ क्यों?इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहीं बताया जा सका था | 
  6.  2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | 
  7.   7 और 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई थी  जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए थे किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई  ऐसा कई बार हुआ क्यों ? 
  8. केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 15 अगस्त 2018 तक  केरल में भीषण बरसात हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |बाद में भी इसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया था |  
  9.  17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था ! 
  10. सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटित हुई जिसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है | इस भीषण बारिस का पूर्वानुमान एवं ऐसा होने का विश्वसनीय कारण मौसम विभाग के द्वारा न बता पाने एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों से निराश मुख्यमंत्री एवं केंद्र के एक राज्यमंत्री ने ऐसी भीषण बारिश होने का कारण  हथिया नक्षत्र को बताया था !
       ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था | 
     मानसून आने जाने की तारीखें एक आध बार छोड़कर कभी सच नहीं हुईं अब कहा जा रहा है मौसम चक्र बदल गया है इसलिए मानसून आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जाएगा | ऐसा ही सभी जगह किया जाता है | 

                मौसमपूर्वानुमान के अभाव से होने वाले नुक्सान !

       वर्षा के बिना सरकारें नहीं चलती हैं देश की आयव्यय का लेखा जोखा वजट का पूरा तामझाम  मौसम की मर्जी पर निर्भर करता है | विज्ञान मौसम की चाल को पढ़ने का सही एवं सटीक विज्ञान नहीं खोज पाया है जिसके कारण कृषि योजना बनाने में किसानों को कठिनाई आती है इसलिए किसानों का हर वर्ष नुक्सान होता है इसीलिए हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या करते हैं | 
    वर्तमान वैज्ञानिक मानसून का तिलस्म नहीं तोड़ पाए हैं और न ही मौसम विज्ञान का मर्म ही समझ पाए हैं | कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव ही नहीं है |महावैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अकाल और सुकाल सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की थी !देश वासी इस पर विश्वास  करते हैं किंतु सरकार इसे नहीं मानती है  प्राचीन विज्ञान के हिसाब से पूर्वानुमान लगाया जाता तो हजारों किसानों  की जान बच सकती थी |
     आपदा प्रबंधन  की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए ! 
      विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
      किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है | 

     5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |
  
ऐसी परिस्थिति में वेद विज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी अनुसंधान सरकार की देख रेख में पुनः प्रारंभ किए जाएँ तो इससे मौसम संबंधी पूर्वानुमान  में क्रांति लाई जा सकती है |
          
   वैदिक मौसम पूर्वानुमान की नई तकनीक !

   कई प्राचीन वैज्ञानिक विधाओं के संयुक्त अध्ययनों अनुसंधानों से प्रकट हुई  मौसम पूर्वानुमान लगाने की बिल्कुल नई तकनीक है | यह विशेष कर योग सांख्य आयुर्वेद तथा खगोल विज्ञान के संयुक्तअनुसंधान से इस तकनीक को खोजा गया है |इसके द्वारा प्रकृति के सभी अंगों का अनुसंधान करके वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि  प्राकृतिक घटनाओं का बहुत पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |यह वही अनुसंधान पद्धति है जिसके द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सही सही पूर्वानुमान सैकड़ों वर्ष पहले के लगा लिया जाता है |जो आज भी सही एवं सटीक होते देखे जाते हैं |
     यदि थोड़ी बहुत कहीं कुछ कमी रह भी गई है तो इसके लिए इस विज्ञान के प्रति सरकार एवं समाज की उदासीनता एक बड़ा कारण रही है | इसीलिए इस क्षेत्र में अनुसंधान का निरंतर अभाव रहा है |भारत के परतंत्र होने से पूर्व राजा महाराजा लोग इन विषयों के विद्वान हुआ करते थे इसीलिए उन्हें ऐसे विषयों में रूचि होती थी | ऐसे विद्वानों का संग्रह किया करते थे और ऐसे अनुसंधानों को प्रोत्साहित करने में योगदान दिया करते थे |इसलिए उस समय भारत विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित था |भारत के वैज्ञानिक अनुसंधानों का  महत्वपूर्ण स्थान था | पृथ्वी के गर्भ से लेकर सुदूर आकाश तक की ग्रह गतिविधियों का अनुसंधान कर लिया जाता था | ग्रहण आदि का पूर्वानुमान उसी प्रकार के अनुसंधानों की उपज थी |
      जिस विज्ञान के द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाली ग्रह जनित परिस्थितियों संचार आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है उस विज्ञान के द्वारा यदि बादलों(वर्षा) या आँधी तूफानों के संचार का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य क्या है ? पृथ्वी पर घटित होने वाली भूकंपीय हलचल या सुनामी आदि प्राकृतिक उपद्रवों के विषय में पूर्वानुमान लगा लेने में कठिनाई की बात क्या है ?
     देश परतंत्र हुआ उसमें हमारी कुछ वैज्ञानिक विधाएँ विलुप्त हो गईं और जब देश स्वतंत्र हुआ तब उन अनुसंधान के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए जिससे उनमें से जिन्हें बचाया जा सकता था वे भी नहीं बचाई जा सकीं जो बचीं उन्हीं के सहारे अनुसंधान पूर्वक अपनी विलुप्त विद्याओं को पुनः प्राप्त किया जा सकता है | 
       आधुनिक विज्ञान की तरह ही भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों पर यदि इतना ध्यान दिया गया होता तो अब तक परिस्थितियाँ बहुत बदल चुकी होतीं और प्राकृतिक घटनाओं के विषयों में सरकार एवं समाज की पूर्वानुमान संबंधी आवश्यकताओं का समाधान किया जा चुका होता | इससे प्राकृतिक आपदाओं के विषय में समय पूर्व ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और बचाव कार्यों को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है |
    आधुनिक विज्ञान के  उपग्रहों रडारों के द्वारा किसी एक स्थान पर बादलों की घटाएँ वर्षा एवं आँधी तूफानों आदि की घटनाएँ घटित होती देखकर उन्हीं की गति और दिशा के अनुशार इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये उड़कर किधर को किस गति से जा रहे हैं वही बता दिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच रहे हैं | इसमें मौसम पूर्वानुमान विज्ञान जैसा तो कुछ भी नहीं है |
       किसी नहर में छोड़ा गया पानी या किसी नदी में आया बाढ़ का पानी या किसी स्टेशन से छोड़ी गई ट्रेन आदि कब किस शहर में पहुँच सकेंगे इस बात का भी अंदाजा लगा लिया जाता है यदि वो विज्ञान नहीं है तो बादलों और आँधी तूफानों से संबंधित ऐसे अंदाजे को विज्ञान की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता  है |  
       इसलिए प्राचीन विज्ञान से संबंधित इस नई तकनीक के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले उस प्रकार की घटनाओं के घटित होने वाले संभावित समय का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना या आपदा के घटित होने का समय कब होगा |
      इस प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं के घटित  होने के समय का पूर्वानुमान लग जाने पर उपग्रहों रडारों के द्वारा सतर्कता पूर्वक उस समय निरीक्षण किया जा सकता है कि इस समय उत्पन्न हुई घटनाओं से हमारा क्षेत्र कितना प्रभावित हो रहा है |

                आधुनिक मौसमविज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
    मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगाने के लिए आधुनिक मौसम पूर्वानुमान की परिकल्पना की गई है | आधुनिक विज्ञान में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया क्या है इसकी वैज्ञानिक क्षमता कितनी है आदि बातें स्पष्ट नहीं हैं |इतना ही नहीं अपितु मौसम विज्ञान  के नाम से प्रसिद्ध विधा में विज्ञान क्या है यह अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है |
     इसमें सब कुछ कल्पना के आधार पर मान लिया गया है जिसका वैज्ञानिक सच्चाई से कितना संबंध है यह अनुसंधान का विषय है ,क्योंकि उन कल्पनाओं का अधिकाँश  प्राकृतिक घटनाओं के साथ कोई ताल मेल नहीं बैठ पाता है |इसीलिए इसके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान बहुत कम सही निकलते हैं जो सही निकलते भी हैं उनकी संख्या इतनी कम होती है कि वे किसी वैज्ञानिक सच्चाई की उपज हैं या कुछ तीर तुक्के ही लग गए हैं इसका अंदाजा लगाना भी अत्यंत कठिन होता है | 
इस विषय में कुछ सर्व विदित प्रत्यक्ष उदाहरण  इस प्रकार हैं -
 1.  अलनीनों लानीना की कल्पना की गई और बताया गया कि इसका मौसम पर बहुत बड़ा असर पड़ता है | इससे दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान प्रभावित होते हैं | ऐसा मानकर सुदूर समुद्र में घटित होने वाली अलनीनों लानीना जैसी घटनाओं को मौसम पूर्वानुमान अनुसंधान की प्रक्रिया में सम्मिलित किया गया आशा थी कि इसके बाद मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान सही एवं सटीक होने लगेंगे किंतु अभी तक न तो दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों को सही होते देखा गया और न ही मानसून के आने जाने से संबंधित पूर्वानुमानों को कभी सही होते देखा गया है इसीलिए अब मानसून के आने जाने की तारीखों में बदलाव करने पर बिचार किया जाने लगा है | ये इस बात का प्रमाण है कि अलनीनों लानीना जैसी कल्पनाओं का मौसम संबंधी घटनाओं से कोई संबंध सिद्ध नहीं हो सका है |
     ऐसी परिस्थिति में रिसर्च तो इस बात पर होनी चाहिए मानसून आने जाने के लिए निश्चित की गई तारीखों को छोड़कर उससे अलग तारीखों में मानसून आने जाने का कारण क्या है ? मानसून की तारीखें निश्चित करने में पहले ही कोई चूक हुई है या मौसम के चक्र में कोई बदलाव आया है !यदि मौसम के चक्र में ही कोई बदलाव आया है तो पीछे ऐसे कितने वर्ष बीत चुके हैं जिनमें मानसून आने जाने की घटनाएँ निर्धारित तारीखों में घटित हुआ करती थीं |  
    2. जलवायु परिवर्तन नाम से जो कल्पना की गई है उसके लक्षण एवं मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में स्पष्टताका अभाव है |जलवायुपरिवर्तन का मौसम संबंधी किस पूर्वानुमान पर कितना असर पड़ेगा !इसके असर से वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी कौन सी भविष्यवाणी कितनी तक गलत हो सकती है इसका कोई स्पष्ट विवेचन नहीं किया  गया है |
   जलवायु परिवर्तन शब्द का उपयोग अक्सर तभी करते देखा जाता है जब मौसम वैज्ञानिकों की कोई भविष्यवाणी गलत होजाती है तो उसका कारण जलवायुपरिवर्तन को बता दिया जाता है या फिर जिन प्राकृतिक घटनाओं के अचानक घटित हो जाने के कारण उसके विषय में कोई झूठ या सच भविष्यवाणी करने से वे चूक गए थे | इसलिए उनके अचानक घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बता दिया जाता है |
      ऐसी परिस्थिति में रिसर्च तो इस बात पर होनी चाहिए कि मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ गलत होने का कारण आखिर क्या है ?ये कोई मौसम संबंधी बदलाव है या पूर्वानुमान लगाने में ही चूक हुई है यदि चूक हुई है तो क्या और यदि बदलाव आया है तो किस प्रकार का और कितना !ऐसा अतीत में कब कब हुआ है और भविष्य में किस वर्ष होने की संभावना है ?वस्तुतः ऐसी घटनाओं का कारण जलवायुपरिवर्तन या और जो कुछ भी हो उसे घटना घटित होने से पहले बताया जाना चाहिए बाद में बताने से ये पता नहीं लग पता है कि इसका कारण जलवायुपरिवर्तन है भी या नहीं या भविष्यवाणी गलत हो जाने के कारण ही ऐसी लीपा पोती की जा रही है |
      जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विषय में बताया जाता है कि भविष्य में  आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि से संबंधित घटनाएँ अधिक घटित होंगी और भी ऐसा बहुत कुछ !किंतु हमेंशा हर कालखंड में ऐसा ही होता रहा है परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसलिए इसे जलवायु परिवर्तन के नाम पर अलग से चिन्हित किया जाना किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक  है |इसका कोई स्पष्ट उत्तर मिलता नहीं है |
      ऐसी परिस्थिति में यह लगभग निश्चित है कि मौसमसंबंधी कोई भी विज्ञान अभी तक खोजा नहीं जा सका है | इसीलिए वर्षा आँधी तूफान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ जब एक जगह घटित होने लगती हैं तो उनकी गति और दिशा उपग्रहों या रडारों पर देख ली जाती है उसी के अनुसार इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कितने समय में किस देश प्रदेश या शहर  में पहुँच  सकती हैं किंतु इस प्रक्रिया से किया गया अंदाजा दो एक घटनाओं को छोड़कर अक्सर गलत निकल जाता है क्योंकि हवा का रुख कब किधर मुड़ जाएगा इसको परखने के लिए अभी तक कोई विधा विकसित नहीं की जा सकी है |
    मौसम भविष्यवाणियाँ गलत होने का कारण मौसमसंबंधी किसी विज्ञान का न होना है !
     मौसम विज्ञान के नाम पर कुछ ऐसे जुगाड़ किए गए हैं इन जुगाड़ों को वैज्ञानिक अनुसंधानों जैसा सम्मान मिला हुआ है इसमें अध्ययन और अनुसंधान क्या है ये समझ में आना अत्यंत कठिन है | 
     पिछले वर्ष इस तारीख़ को मानसून आया या गया था अबकी उस तारीख में नहीं आया गया तो जलवायु परिवर्तन !
     पिछले वर्ष इस सप्ताह या महीने में यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिस हुई थी अबकी उतनी नहीं हुई इसका मतलब जलवायु परिवर्तन !
      पिछले वर्ष इस महीने बर्फ बारी शुरू हो गई थी अबकी नहीं हुई इसका मतलब जलवायु परिवर्तन हो रहा है | 
  पिछले वर्ष इतने आँधी तूफ़ान नहीं आए थे अबकी आ रहे हैं इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है | 
इसमें कौन सा विज्ञान है ?कैसा अनुसंधान और ऐसे अनुसंधानों से आज तक उपलब्ध क्या हुआ है ?
  अनुसंधानों का उद्देश्य चक्रवातों के विषय में पूर्वानुमान लगाना था किंतु पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका इसलिए चक्रवातों के नाम रखे जाने लगे!इसे मौसमवैज्ञानिकअनुसंधानों की उपलब्धि कैसे माना जा सकता है | 
     सैटेलाइट से समुद्र में उठे आँधी तूफानों या बादलों को देखकर उसकी गति और दिशा के हिसाब से ये कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँचेंगे इस बात का अंदाजा लगा लेने को विज्ञान नहीं माना जा सकता ! 
       पूर्वानुमान का मतलब है जो घटनाएँ किसी भी रूप में घटित होने से पूर्व अनुमान लगा लिया जाए तब तो पूर्वानुमान अन्यथा किसी घटना के प्रकट हो जाने पर उसे किसी भी संसाधन की मदद से देखकर उसके विषय में कोई अंदाजा लगा लेने से कभी कभी मदद मिल जाती है किंतु पूर्वानुमान विज्ञान या मौसम विज्ञान  जैसा इस प्रक्रिया में कुछ भी नहीं है | 
   सर्दी गर्मी या वर्षा संबंधी भविष्यवाणियों का सच !
      मौसम वैज्ञानिक लोग सर्दी गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान आदि के विषय में भविष्यवाणी करते अक्सर सुने जाते हैं किंतु यही लोग भूकंपों के विषय में कभी कोई भविष्यवाणी  न करते हैं और न ही ऐसा कर पाने का दावा ही करते देखे जाते हैं इसका मुख्यकारण मौसम या भूकंपों से संबंधित किसी वैज्ञानिक अनुसंधान का अभाव ही है        सर्दी गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ हों या भूकंप हों इनसे संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है अंतर केवल इतना है कि सर्दी गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान आदि की ऋतुएँ निश्चित हैं कि किस प्रकार की घटनाएँ किस ऋतु में घटित होने की संभावना अधिक होती है जैसे वर्षा ऋतु में वर्षा और बाढ़ की संभावना अधिक होती है इसलिए वर्षाऋतु में वर्षा संबंधी भविष्यवाणी कर दी जाती है क्योंकि इतना विश्वास होता है कि वर्षा ऋतु है तो वर्षा तो होगी ही भले कुछ कम हो या अधिक किंतु होगी वर्षा ही इस ऋतु में सर्दी तो नहीं ही होने लगेगी !इसलिए ऋतुओं से मिलती जुलती भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं ऐसी भविष्यवाणियाँ यदि गलत हो भी जाती हैं तो उसे अलनीनों लानिना ,जलवायु परिवर्तन आदि काल्पनिक कारण  बता कर सही सिद्ध कर लिया जाता है |
    भूकंपों की अपनी कोई ऋतु  नहीं होती है इसलिए इनके विषय में गलत भविष्यवाणियों को भी सही सिद्ध करने वाली अलनीनों लानिना ,जलवायु परिवर्तन जैसी सुविधाओं का लाभ नहीं लिया जा सकता है तभी तो इसमें तीर तुक्के चल नहीं पाते हैं यही कारण है कि भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के विषय में सभी लोग अपनी असमर्थता प्रकट कर देते हैं जबकि वर्षा आँधी तूफ़ान आदि के विषय में अक्सर तरह तरह की भविष्यवाणियाँ करते देखा जाता है | 
   वस्तुतः किसी भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का अभी तक कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है |  
    सर्दी गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान आदि ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ जो अपनी अपनी ऋतुओं में प्रतिवर्ष घटित हुआ करती हैं मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा उन्हीं के विषय में तीर तुक्के भी लगाए जा सकते हैं क्योंकि उससे जन धन की अधिक हानि नहीं होने पाती है इसलिए इधर लोगों का ध्यान भी कम जाता है |
    इसी प्रकार की ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ जो भूकंपों की तरह कभी कभी ही घटित होते देखी जाती हैं  और भूकंपों की तरह ही भारी जन धन की हानि करने के लिए जानी जाती हैं इसलिए इन्हें भी भूकंपों की तरह ही प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में रखा जाता है |
      प्राकृतिक आपदाओं के विषय में तीर तुक्के नहीं चल पाते हैं इसीलिए ऐसी घटनाओं को अप्रत्याशित एवं इनके घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन आदि को बता दिया जाता है | बहुत अधिक दबाव पड़ा तो ऐसी घटनाओं के विषय में रिसर्च की आवश्यकता है ऐसा कहकर बात टाल दी जाती है बाद में पूछता कौन है !

      निकट समय में घटित हुई ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ -

       ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -       
  1. केदारनाथ जी में  16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए  किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! 
  2. 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
  3.  बनारस में 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को भीषण बारिश हुई जिसके कारण बनारस में संभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की सभाएँ लगातार दो करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में पहले कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
  4. सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में कई दिनों तक लगातार भीषण बारिश हुई थी जिसके कारण मद्रास में भीषण बाढ़ से त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
  5.  सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने की घटना घटित हुई थी  नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में  आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन  न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा इस वर्ष हुआ क्यों?इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहीं बताया जा सका था | 
  6.  2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | 
  7.   7 और 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई थी  जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए थे किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई  ऐसा कई बार हुआ क्यों ? 
  8. केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 15 अगस्त 2018 तक  केरल में भीषण बरसात हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |बाद में भी इसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया था |  
  9.  17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था ! 
  10. सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटित हुई जिसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है | इस भीषण बारिस का पूर्वानुमान एवं ऐसा होने का विश्वसनीय कारण मौसम विभाग के द्वारा न बता पाने एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों से निराश मुख्यमंत्री एवं केंद्र के एक राज्यमंत्री ने ऐसी भीषण बारिश होने का कारण  हथिया नक्षत्र को बताया था !
       ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था |
      आपदा प्रबंधन  की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए ! 
      विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
      किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है |इसका कारण क्या है ?
   5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |


    ऐसी परिस्थिति में इस बात की समीक्षा तो होनी ही चाहिए कि इतने लंबे समय से चले आ रहे अनुसंधानों द्वारा प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा लेने में भारत की क्षमता में कितना विकास हुआ है ?

प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से संबंधित कारणों की खोज का अभाव !
       प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे पहले आवश्यकता इस बात की है कि घटनाओं के घटित होने के आधार भूत वे कारण खोजे जाएँ जो तर्कों की कसौटी पर खरे उतर सकें | और उन कारणों का अन्योन्याश्रित संबंध उस प्रकार की संबंधित घटनाओं के साथ सिद्ध हो सके किंतु ऐसा अभी तक हो नहीं पाया है |    
      कई बार कुछ प्राकृतिक घटनाएँ कुछ दिनों या सप्ताहों तक बार बार घटित होती जाती हैं एक घटना समाप्त होती है दूसरी घटित होने लगती है|ऐसी घटनाओं के घटित होने के पीछे का कारण एवं उनके विषय में पूर्वानुमान खोजने के लिए कुछ भी नहीं है | 
     कभी कभी किसी क्षेत्र में भीषण बाढ़ आने से पूर्व जब वर्षा प्रारंभ होती है तो उपग्रहों रडारों आदि से आकाश में एक निश्चित दूरी तक फैले हुए बादल दीखने लगते हैं और वे किस दिशा में कितनी गति से आगे बढ़ रहे हैं इसका अंदाजा लगा लिया जाता है उसके हिसाब से ये बता दिया जाता है कि 24,48 या 72 घंटे अभी और बरसेगा ये अंदाजा केवल उतने बादलों को ध्यान में रखकर लगाया गया होता है जो उस समय आकाश में दिखाई पड़ रहे होते हैं किंतु 72 घंटे बीतने के बाद भी जब बादलों की श्रंखला समाप्त नहीं होती है तो तीन दिन और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है इसके बाद भी आवश्यकता पड़ती है तो भविष्यवाणी और आगे बढ़ा दी जाती है |    ये क्रम ऐसे ही चला करता है और वो क्षेत्र बाढ़ से डूबने उतराने लगता है |
     ऐसी परिस्थिति में पहले तीन दिनों तक बारिश होने की भविष्यवाणी सुनकर जिन लोगों ने तीन दिनों के लिए अपनी आवश्यकता की सामग्री का संग्रह किया था तीन दिन बीतने के बाद उनके द्वारा संग्रहीत आवश्य सामग्री भी समाप्त हो गई और बारिश का पानी तब तक इतना अधिक भर चुका होता है कि उनके घरों की पहली मंजिल डूब जाती है | इसके बाद वे अपने भरोसे सामग्री लेने जाने लायक भी नहीं बचते  हैं और सामाग्री भी समाप्त हो चुकी होती है | ऐसे लोगों को मौसम संबंधी भविष्यवाणियों से कितना लाभ पहुँच पाता  है | 
      इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में कुछ कुछ दिनों के अंतराल में बार बार आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि घटित होने लगते हैं | ऐसी परिस्थिति में जब जो आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि उपग्रहों रडारों से आकाश में आते हुए दिखाई पड़ जाता है उसके विषय में बता दिया जाता है कि एक तूफ़ान आ रहा है दूसरा दिखाई देता है तो दूसरे के विषय में बता दिया जाता है कि दूसरा तूफ़ान आ रहा है ऐसे ही तीसरा चौथा आदि क्रम चला करता है किंतु ये तूफ़ान इतनी जल्दी जल्दी बार बार क्यों आ रहे हैं और कब तक आते रहेंगे ?इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है |इन प्रश्नों का  कोई उत्तर किसी मौसम भविष्यवक्ता के पास इसलिए नहीं होता है क्योंकि ये घटनाएँ घट क्यों रही हैं इसका कारण अभी तक खोजा ही नहीं जा सका है और कारण पता लगे बिना उसके विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है | 
     ऐसा ही सुनामी भूकंप बज्रपात आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के साथ में होते देखा जाता है |ऐसी घटनाओं के लिए बताए जाने वाले कारण ही इस बात के प्रमाण हैं |   
 भूकंपों के घटित होने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण !
       भूकंप सुनामी वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित होने का निश्चित कारण खोजे जाने अभी तक अवशेष हैं | पृथ्वी के अंदर गैसों के भरे भण्डार के कारण भूकंप घटित होता है ऐसा कहा जाता है लावा पर तैरतीं भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आता है ऐसा बताया जाता है किंतु यदि यह सही है तो जिस प्रकार से गैसों के भण्डार को खोजा गया या प्लेटों के आपस में टकराने की बात पता की गई उसी प्रक्रिया से इनके विषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है क्योंकि किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए उस घटना के घटित होने का कारण ज्ञात करना आवश्यक होता है !
       दूसरी बात हिमालय के नीचे गैसों का बहुत बड़ा संचित भण्डार बताया जाता है इसके कारण कभी भी कोई 9 के आसपास की तीव्रता का बड़ा भूकंप आ सकता है ऐसा पिछले कुछ दशकों से कहा जा रहा है यह भी कहा गया कि ऐसा भयंकर भूकंप सन 2018 में आएँगे किंतु ऐसा कुछ हुआ तो नहीं !इसका मतलब कारण निर्धारित करने में कोई चूक हो रही है | रही बात भूकंप आने की तो कहीं भी कभी भी कितना भी बड़ा भूकंप आ सकता है उसका ऐसी भविष्यवाणियों या अनुसंधानों से कोई संबंध कैसे सिद्ध किया जा सकता है | 
      ऐसे ही महाराष्ट्र में भूकंप कम आया करते थे किंतु 1967 में कोयना झील में पानी भरा गया उसके बाद से वहाँ अनेकों भूकंप आए !जिससे उन भूकंपों का संबंध उस पानी भरे जाने से कुछ तो सिद्ध हुआ किंतु जब यह कहा गया कि इस झील के  जल भार से भूमिगत प्लेटों में कंपन होने लगा उसी के कारण भूकंप आने लगे तो फिर प्रश्न उठा स्वाभाविक था कि टिहरी आदि अन्य झीलें जो बनीं जलभार तो उसमें भी है वहाँ गैसों का भारी दबाव भी बताया जा रहा है तो वहाँ ऐसा कुछ न होने का कारण क्या है और कोयना में ऐसा होने का कारण क्या है ?ऐसा ही अन्य कुछ जगहों पर होते देखा जाता है | 
      भूकंपों के घटित होने का कारण यदि जमीन के अंदर संचित गैसों या भूमिगत प्लेटों के टकराने को ही सच मान लिया जाए और विश्वास कर लिया जाए कि भूकंप आने के कारण जमीन के अंदर ही हैं तो फिर एक दूसरा प्रश्न उठता है कि कईबार ऐसा अनुभव किया जाता है कि जहाँ कहीं भूकंप आने या सुनामी आने का समय हुआ है तो उसके कुछ पहले ही वहाँ रहने वाले बनबासी आदिवासी ग्रामीण लोग वह स्थान छोड़कर वहाँ से जा चुके थे कुछ पशु पक्षी आदि वह स्थान छोड़कर चले गए थे कुछ पशुओं पक्षियों के आचार व्यवहार बोली भाषा आदि में अनेकों प्रकार के अस्वाभाविक से परिवर्तन आते देखे गए थे | 
     ऐसी परिस्थिति में यदि भूकंप आदि आने के कारण जमीन के अंदर ही होते हैं तो फिर ऐसे मनुष्यों या जीव जंतुओं को ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे पता लगा जाता है ?यदि उन्हें लग सकता है तो आधुनिक विज्ञान संबंधी समस्त संसाधनों से संपन्न लगातार रिसर्च में लगे रहने वाले वैज्ञानिकों को वो बात क्यों नहीं समझ में आ पा रही है जो उन बिना पढ़े लिए बनवासियों या जीव जंतुओं को समझ में आ जा रही है | इसका कारण कहीं ये तो नहीं है कि जिस प्रक्रिया को हम भूकंप विज्ञान समझ रहे हैं वो भूकंप विज्ञान हो ही न जिससे संबंधित अनुसंधानों में समय संपत्ति एवं संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है | 
    सुनामीके घटित होने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण !

    समुद्री भूकंपों की वजह से सुनामी पैदा होती है। ऐसा माना जाता है किंतु 22 दिसंबर 2018 की रात्रि में  इंडोनेशिया में जो सुनामी आयी उसका कारण भूकंप तो नहीं था क्योंकि भूकंप आया ही नहीं | ऐसा घटित होने के पीछे के कारणों का अंदाजा लगाने वाले वैज्ञानिकों ने आशंका व्यक्त की कि "ज्वालामुखी में विस्फोट के बाद पानी के भीतर या तो भूस्खलन हुआ होगा या फिर पूर्णिमा के कारण समंदर में हाई टाइड यानी लहरों का ऊंचा उठना रहा होगा !"लेकिन ये दोनों बातें केवल आशंका मात्र हैं ये किसी वैज्ञानिक अनुसन्धान पर आधारित नहीं कही जा सकती हैं |
     इसमें भी प्रत्यक्षदर्शी फोटो ग्राफर एंडरसन बताते हैं, "इन ख़तरनाक लहरों के तट पर पहुँचने से पहले, किसी तरह की हलचल (ज्वालामुखी) नहीं थी, चारों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था."
     दूसरी बात पूर्णिमा की तो कहा जाता है कि "समुद्र में लहरे चाँद-सूरज और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से उठती हैं, लेकिन सुनामी लहरें इन आम लहरों से अलग होती हैं.!"
      इंडोनेशिया की आपदा नियंत्रण एजेंसी के प्रमुख सुतोपो पूर्वोनूग्रोहो का कहना है कि "आमतौर पर इस शांत खाड़ी में सूनामी नहीं आती, और न ही क्रेकाटोआ ज्वालामुखी में बड़े विस्फोट होते रहे हैं. कुछ कम तीव्रता के भूकंप इस इलाक़े में ज़रूर आते रहे हैं.किंतु यह सुनामी आने का कारण भूकंप नहीं है क्योंकि भूकंप कोई  आया ही नहीं है !सुनामी की असल वजह का पता करने में  ये सबसे बड़ी मुश्किल है !"
    ऐसी परिस्थिति में विश्व स्तर पर चलाए जा रहे इतने बड़े बड़े अनुसंधानों के बाद भी इंडोनेशिया में भारी सुनामी आई जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है किंतु इसका न पूर्वानुमान पता लगाया जा सका और न ही इसके घटित होने का कारण ही पता लगाया जा सका है |केवल आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं जो आम आदमी भी व्यक्त कर लेता है किंतु इनमें समस्त संसाधनों से संपन्न विशेषज्ञ वैज्ञानिकों या उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों का वैज्ञानिक योगदान आखिर क्या है ?
     वर्षा आँधी तूफ़ान आदि -
    मानसून आने जाने का कारण अलनीनो लानीना का प्रभाव जलवायुपरिवर्तन वायुमंडल में आर्द्रता घनत्व ग्लोबलवार्मिंग आदि अनेकों प्रकारों को वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित अध्ययनों में सम्मिलित किया जाता है किंतु जब आवश्यकता पड़ती है तब केवल उपग्रह से प्राप्त चित्र ही काम आते हैं जिनसे ये देख लिया जाता है कि बादल या आँधी तूफ़ान किस दिशा में किस गति से जा रहे हैं इस आधार पर ये कब कहाँ पर पहुँच सकते हैं | उसके अनुसार भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं हवाओं का रुख यदि बदला तो भविष्यवाणियाँ गलत भी हो जाती हैं |ऐसी परिस्थितियों में बाकी सभी प्रकार के मौसम संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों का उपयोग आखिर और क्या है ?  
    वायुप्रदूषण बढ़ने  के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण !

      वायुप्रदूषण जब बढ़ने लग जाता है उस समय जहाँ कहीं भी धुआँ धूल आदि उड़ती दिखाई देती है उसे ही वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |  
      दशहरे में रावण जलने को , दिवाली में पटाके जलने से,  होली में होली जलने से वायुप्रदूषण बढ़ता है ऐसा मान लिया जाता है | सर्दी में हवा के धीमे  चलने को ,गर्मी में हवा के तेज चलने को,धान काटने के समय पराली जलने को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण बता दिया जाता है !ऐसे ही ज्वालामुखी फटने या फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ना बताया जाता है | इसी प्रकार गाड़ियों के धुएँ से ,उद्योगों से। घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से या भौगोलिक कारणों से वायु प्रदूषण बढ़ता है ऐसा भी कहा जाता है | 
    इस विषय में जितने भी कारण गिनाए या बताए जा रहे हैं वो किसी वैज्ञानिक अनुसंधान की उपज नहीं हैं ये केवल आधार विहीन कल्पना मात्र हैं यही कारण है कि इनके विषय में दृढ़ता पूर्वक यह नहीं कहा जा सकता है कि वायु प्रदूषण बढ़ने की सच्चाई यह है | वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार जब जो कारण बताए जाते हैं उस समय उन कारणों के बीतने पर भी वायु प्रदूषण बढ़ता दिखता है तो उन कारणों को छोड़कर दूसरे कारण पकड़ लिए जाते हैं | कई बार जो कारण बताए जाते हैं उनके रहते हुए भी वायु प्रदूषण घटने लगता है तो उसके लिए कोई अन्य कारण  गिना दिए जाते हैं |   
      इस प्रकार से वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले कारणों की संख्या इतनी अधिक बताकर कर ऐसी भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई है कि किसी को इस बात का पता ही नहीं है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं जिन्हें रोकने के लिए सरकार के साथ साथ आम जनता भी अपने स्तर से प्रयत्न करे | 
      इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वायुप्रदूषण प्राकृतिक कारणों से बढ़ता है या इसके लिए मनुष्यकृत कारण जिम्मेदार हैं इस प्रश्न का उत्तर अभी तक किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के द्वारा नहीं खोजा जा सका है | केवल तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं |ऐसी परिस्थिति में वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण किसे माना जाए और क्यों माना जाए !किसी प्रक्रिया को कारण मानने के पीछे कुछ विश्वसनीय तर्क भी तो दिए जाने चाहिए किंतु ऐसा नहीं किया जा सका है |
    
इस विषय में विचारणीय बात यह है कि एक ही समय में बहुत सारे देशों शहरों में एक साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ता है जबकि सभी जगह कारण एक जैसे नहीं होते हैं !दूसरा जो कारण बताए जाते हैं उनके समाप्त होने के बाद तो वायु प्रदूषण कम होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं होता है तब तक दूसरे कारण गिना दिए जाते हैं ऐसे ही समय बीतता जाता है जब जब वायुप्रदूषण बढ़ता है तब तब कोई न कोई कारण बता दिए जाते हैं !
      यह स्थिति पर्यावरण और मौसम पर किए जा रहे हमारे अनुसंधानों की है !किसी विषय पर इतनी ढुलमुल बातों में विज्ञान कहाँ है और यदि इन्हें विज्ञान मानना प्रारंभ कर दिया जाएगा तो ऐसी आधारविहीन कल्पनाएँ तो कोई भी कर सकता है !इनके लिए विज्ञान की आवश्यकता क्या है ?

     मौसम भविष्यवाणियों  से किसानों को कितना लाभ हो पा रहा है ?
   वर्तमान समय में वर्षा संबंधी की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अधिकतम पाँच दिन पहले तक के विषय में ही की जा सकती हैं जबकि दो दिन पहले तक के विषय में  की गई भविष्यवाणी ही सही होने की संभावना होती है क्योंकि रडारों उपग्रहों के द्वारा इससे अधिक दूर के बादल दिखाई ही नहीं पड़ पाते हैं |
    वर्षा संबंधी मौसम पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता कृषिकार्यों के लिए दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों के लिए होती है |किसानों को कृषि योजना बनाने के लिए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान होने चाहिए कि आगामी वर्षा ऋतु में कैसी बारिश होगी | यदि अधिक बारिश होनी होती है तो वे धान आदि ऐसी फसलें बोने का चयन करते हैं जिन्हें अधिक बारिश की आवश्यकता होती है और यदि माध्यम बारिस होनी होती है तो मका आदि की फसलें बो दिया करते हैं यदि बहुत कम वर्षा की संभावना होती है तो गन्ना ज्वार बाजरा अरहर उड़द मूँग आदि कम पानी में हो जाने वाली फसलें बो दिया करते हैं |
      वर्षा के विषय में की गई कोई भविष्यवाणी यदि पाँच दिन पहले तक सही हो भी जाए तो वो किसानों के लिए किस किस प्रकार से कितनी लाभप्रद हो सकती है | 
      1. प्रायः किसान लोग मार्च अप्रैल में फसल तैयार होने के बाद रख रखाव की व्यवस्थाएँ कम होने के कारण या अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनी उपज को आवश्यकता भर के लिए रखकर बाकी बेच लिया करते हैं इसके लिए उन्हें वर्षा ऋतु में होने वाली वर्षा के अनुशार निर्णय लेना होता है | वर्षा ऋतु में वर्षा जैसी होगी उसके अनुसार ही उस समय की फसल होगी स्वाभाविक है और अग्रिम फसल यदि अच्छी होने की संभावना होती है तब तो वो आनाज एवं पशुओं के लिए भूसा आदि का कम संरक्षण करते हैं क्योंकि उन्हें अगली फसल से सहारा हो जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है तो उन्हें पूरे वर्ष के विषय में सोच कर निर्णय लेना होता है | इसलिए उन्हें वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता आगे से आगे होती है | 
  2. अधिकाँश किसानों के खेत अलग अलग कई स्थानों पर होते हैं उनमें से कुछ ऊंचाई पर और कुछ निचले स्थानों पर होते हैं | ऊपर के खेतों में पानी रुकता नहीं है और नीचे वाले खेतों में पानी सूखता नहीं है ऐसी परिस्थिति में वर्षाऋतु में जैसी वर्षा होनी होती है किसान उसी के अनुसार ऊँचे नीचे खेतों में बीज बोने का निर्णय करते हैं इसलिए खेत में जितने समय तक फसल रहेगी तब तक बारिस की परिस्थिति कब कैसी रहेगी इसका पूर्वानुमान लगाकर उसके अनुसार ही फसल बोने का निर्णय लेना पड़ता है |इसके लिए उन्हें कुछ महीने आगे तक के वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है जबकि मौसम भविष्य वक्ता लोग दो तीन दिन पहले का ही मौसम पूर्वानुमान बता पाते हैं | 
  3. धान लगाने के लिए किसानों को लगभग 30 से 45 दिन पहले बीज बोने होते हैं उनसे बेड़ अर्थात धान के पौधों को तैयार होने में 30 से 45 दिन लग जाते हैं उसके बाद धान की रोपाई की जाती है | ऐसी परिस्थिति में यदि पाँच दिन पहले तक का पूर्वानुमान सही हो भी जाए तो वो किसानों के लिए कैसे और कितना लाभ परैड हो सकता है | 
      4 .  कई बार वर्षा ऋतु कुछ पहले समाप्त हो जाती है इसलिए बीज बोने के समय खेत सूख जाते हैं जिससे बीज उग नहीं पाते हैं | इसलिए उनमें पानी देकर पलेवा की जाती है|उसके 10 से 15 दिन के बाद खेत बोने लायक हो पाता है इस समय किसानों का एक एक दिन बहुमूल्य होता है | ऐसी परिस्थिति में यदि 10 दिन बाद वर्षा हो जाती है तो खेत लंबे समय तक गीला बना रहा है जिससे पलेवा में पैसा लगता है वो अलग इसके आलावा फसल बहुत पिछड़ जाती है जिसका असर उसकी पैदावार पर भी पड़ता है | ऐसे ही कई बार आलू आदि फसलों में एक ओर सिंचाई कर दी जाती है तो दूसरी ओर वर्षा भी हो जाती है एक ओर सिंचाई करने में पैसा लगता है तो दूसरी ओर पैदावार पर भी उसका असर पड़ता है | 
       ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ता लोग दो या तीन दिन पहले की भविष्यवाणी कर पाते हैं इसके अतिरिक्त उनके पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणी करके ऐसे परिस्थितियों में वे किसानों की मदद कर सकें |
       

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