भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
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Friday, November 29, 2013
सुंदरता क्या है ?
अर्थात जिसे देखने में हर क्षण कुछ नए प्रकार का आनंद मिले वही सर्वोत्तम सुंदरता है।
Thursday, November 28, 2013
बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो,
आज सरकारी प्राथमिक स्कूलों के कुछ लापरवाह शिक्षकों की लापरवाही ही बच्चों को अपराधों की ओर धकेल रही है।क्या इसके लिए सरकार उन्हें इतनी मोटी मोटी सैलरी देती और समय समय पर बढाती भी रहती है इस प्रकार से ऐसी सरकारें और ऐसे लापरवाह शिक्षक
अपने देश में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है
सरकारी कर्मचारी हड़ताल क्यों किया करते हैं और उनकी माँगें मान मान कर सरकारें उन्हें बार मनाती क्यों रहती है?कहीं सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने आपस में एक दूसरे की कोई पोल तो नहीं छिपा रखी होती है जिसके खुलने का भय हो जिससे देश की जनता कोई हंगामा खड़ा कर दे! जैसे कि सुना जाता है कि सरकारी कर्मचारी जो घूस लेते हैं वो ऊपर तक भेजी जाती है !!!
आज पचासों हजार सैलरी लेने वाले सरकारी पोस्ट आफिस के कई कर्मचारियों के बराबर पाँच हजार रुपए महीना पाने वाला एक कोरियर कर्मचारी अधिक काम कर लेता है क्यों ?
कई क्षेत्रों में उन सरकारी कर्मचारियों से अधिक परिश्रमी एवं उनसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग मजदूरी करते घूम रहे हैं यदि ऐसे कर्मचारियों का पेट भर चुका है तो वो अवसर किसी और को क्यों नहीं उपलब्ध कराए जाते हैं क्या उनका इस देश की आजादी पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए?
एक
प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक शिक्षकों
यदि इनका पेट पचास हजार की सैलरी में नहीं भरता है तो पाँच पाँच हजार रूपए महीने कमाने वाले कैसे अपना पेट भरते होंगे
सैलरी उड़ाते है सरकारी शिक्षक और मेहनत करते हैं प्राइवेट शिक्षक!
पचासों हजार रुपए महीने की सैलरी पाने वाले सरकारी अनेकों शिक्षकों की अपेक्षा पाँच हजार रुपए महीना पाने वाला प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक इतना अधिक काम कर लेता है क्यों?
वह इतना अधिक विश्वसनीय भी होता है कि सरकारी कर्मचारी भी अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं यहाँ तक कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कम से कम सरकारी पाँच शिक्षकों के काम से अच्छा काम प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक कर लेता है।
अर्थात ढाई लाख रुपया रूपया महीना खर्च करके भी सरकार जो काम नहीं करा पाती है वो काम गैर सरकारी शिक्षक पांच हजार रुपए में उससे अधिक अच्छा कर दिखाता है।
फिर भी सरकारी शिक्षक हड़ताल किया करते हैं और उनकी माँगें मान मान कर सरकारें उन्हें बार मनाती क्यों रहती है? उनकी छुट्टी करके प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक रखकर उससे सस्ते में उससे अच्छा एवं उससे अधिक विश्वसनीय कार्य क्यों नहीं करवा लेती हैं? कहीं सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने आपस में एक दूसरे की कोई पोल तो नहीं छिपा रखी होती है जिसके खुलने का भय हो जिससे देश की जनता कोई हंगामा खड़ा कर दे! जैसे कि सुना जाता है कि सरकारी कर्मचारी जो घूस लेते हैं वो ऊपर तक भेजी जाती है !!!
जिसका कुछ अंश फिर महँगाई भत्ता या सैलरी बढ़ाने के नाम पर वापस लौटाकर उन शिक्षकों को प्रसन्न किया जाता है
सरकार और सरकारी शिक्षकों के बीच का यह तालमेल इसी प्रकार से शिक्षा सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ करता रहा तो क्या आम आदमी का कोई कर्तव्य नहीं बनता है कि वह सरकार से ललकार कर कह सके कि शिक्षा पर खर्च होने वाला धन आप सीधे हमें दें हम अपने विद्यालय स्वयं बना और चला लेंगे !इस प्रकार से अभिभावकों के हाथ में नियंत्रण पहुंचते ही कितना भी मक्कार शिक्षक क्यों न हो उसे पढ़ाना ही पढ़ेगा
आज सरकारी प्राथमिक स्कूलों के कुछ लापरवाह शिक्षकों की लापरवाही ही बच्चों को अपराधों की ओर धकेल रही है।क्या इसके लिए सरकार उन्हें इतनी मोटी मोटी सैलरी देती और समय समय पर बढाती भी रहती है इस प्रकार से ऐसी सरकारें और ऐसे लापरवाह शिक्षक
अपने देश में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है
सरकारी कर्मचारी हड़ताल क्यों किया करते हैं और उनकी माँगें मान मान कर सरकारें उन्हें बार मनाती क्यों रहती है?कहीं सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने आपस में एक दूसरे की कोई पोल तो नहीं छिपा रखी होती है जिसके खुलने का भय हो जिससे देश की जनता कोई हंगामा खड़ा कर दे! जैसे कि सुना जाता है कि सरकारी कर्मचारी जो घूस लेते हैं वो ऊपर तक भेजी जाती है !!!
आज पचासों हजार सैलरी लेने वाले सरकारी पोस्ट आफिस के कई कर्मचारियों के बराबर पाँच हजार रुपए महीना पाने वाला एक कोरियर कर्मचारी अधिक काम कर लेता है क्यों ?
कई क्षेत्रों में उन सरकारी कर्मचारियों से अधिक परिश्रमी एवं उनसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग मजदूरी करते घूम रहे हैं यदि ऐसे कर्मचारियों का पेट भर चुका है तो वो अवसर किसी और को क्यों नहीं उपलब्ध कराए जाते हैं क्या उनका इस देश की आजादी पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए?
एक
प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक शिक्षकों
यदि इनका पेट पचास हजार की सैलरी में नहीं भरता है तो पाँच पाँच हजार रूपए महीने कमाने वाले कैसे अपना पेट भरते होंगे
सैलरी उड़ाते है सरकारी शिक्षक और मेहनत करते हैं प्राइवेट शिक्षक!
पचासों हजार रुपए महीने की सैलरी पाने वाले सरकारी अनेकों शिक्षकों की अपेक्षा पाँच हजार रुपए महीना पाने वाला प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक इतना अधिक काम कर लेता है क्यों?
वह इतना अधिक विश्वसनीय भी होता है कि सरकारी कर्मचारी भी अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं यहाँ तक कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कम से कम सरकारी पाँच शिक्षकों के काम से अच्छा काम प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक कर लेता है।
अर्थात ढाई लाख रुपया रूपया महीना खर्च करके भी सरकार जो काम नहीं करा पाती है वो काम गैर सरकारी शिक्षक पांच हजार रुपए में उससे अधिक अच्छा कर दिखाता है।
फिर भी सरकारी शिक्षक हड़ताल किया करते हैं और उनकी माँगें मान मान कर सरकारें उन्हें बार मनाती क्यों रहती है? उनकी छुट्टी करके प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक रखकर उससे सस्ते में उससे अच्छा एवं उससे अधिक विश्वसनीय कार्य क्यों नहीं करवा लेती हैं? कहीं सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने आपस में एक दूसरे की कोई पोल तो नहीं छिपा रखी होती है जिसके खुलने का भय हो जिससे देश की जनता कोई हंगामा खड़ा कर दे! जैसे कि सुना जाता है कि सरकारी कर्मचारी जो घूस लेते हैं वो ऊपर तक भेजी जाती है !!!
जिसका कुछ अंश फिर महँगाई भत्ता या सैलरी बढ़ाने के नाम पर वापस लौटाकर उन शिक्षकों को प्रसन्न किया जाता है
सरकार और सरकारी शिक्षकों के बीच का यह तालमेल इसी प्रकार से शिक्षा सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ करता रहा तो क्या आम आदमी का कोई कर्तव्य नहीं बनता है कि वह सरकार से ललकार कर कह सके कि शिक्षा पर खर्च होने वाला धन आप सीधे हमें दें हम अपने विद्यालय स्वयं बना और चला लेंगे !इस प्रकार से अभिभावकों के हाथ में नियंत्रण पहुंचते ही कितना भी मक्कार शिक्षक क्यों न हो उसे पढ़ाना ही पढ़ेगा
Wednesday, November 27, 2013
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज जी
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज अपनी सनातनी शास्त्रीय संस्कृति एवं भारत भूमि के कण कण के लिए समर्पित थे सबसे लगाव रखते थे कभी कभी मन विवश हो जाता है यह सोचने को कि ऐसा धर्म योद्धा अवतारी महामानव क्या फिर कभी इस मेदनी मंडल पर कृपा करने पधारेगा ?
जहाँ तक गाँव में तीन दिन रह ने से मूर्ख हो जाने की बात है ये केवल महाराज जी का ही कथन नहीं है अपितु सभी शास्त्रीय विद्वानों की आम मान्यता है कि शिक्षाकाल जैसे विरक्त तपस्या काल में गाँवों का असीम आनंद प्राप्त करके सुकोमल मन शिक्षा की कठोर साधना से कहीं भटक न जाए !
श्री शंकराचार्य नवावतारम् विद्वद् वरेण्यं च यतींद्र मुख्यम् ।
कलौ युगे धर्म युग प्रवर्त्तकं वंदे सदा श्री करपात्रिणम् गुरुम् ॥
आपने सँभाल लिया मैं आपका आभारी हूँ !वर्त्तमान धार्मिक झंझावातों में सनातनी शास्त्रीय संस्कृति से जुड़े असंख्य लोग उन्हीं धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज जी की चिरस्मृति के सहारे प्राण पोषण कर रहे हैं मैं सभी महानुभावों से प्रार्थना करता हूँ कि उनके नाम के साथ किसी बात को जोड़ने से पहले उस बात का सम्यक परीक्षण किया जाना चाहिए वे सामान्य तर्कों से समझे जाने योग्य न होकर अपितु असाधारण महामानव थे। आज उनके बिना सूनी सूनी लगती है काशी !और उनके बिना अनाथों की तरह भटकते हैं शास्त्रीय संस्कृति से जुड़े विद्वान और महात्मा !जिनकी आँखें हमेशा खोजती हैं सनातनी शास्त्रीय संस्कृति के उस अमर साधक को -
धर्म का नारा देकर बढ़के ललकारा जिसने
हिन्द का हितैषी ऐसा होगा दुबारा कौन !
आप सभी बंधुओं को क्षमा प्रार्थना के साथ पुनः प्रणाम
महापुरुषों के आशीर्वाद से मैं बिलकुल ठीक हूँ
आपका -वाजपेयी
Monday, November 25, 2013
भाजपा भूल सुधारों पर भी सोचे !
भाजपा में भी चाहिए एक हनकदार हाईकमान ?
जहाँ तक काँग्रेस का हाईकमान तो विश्व विदित है । इस प्रकार से जनता हर पार्टी की हाईकमान एवं उसकी स्वाभाविक स्थिरता और विचारधारा पर भरोसा करके उसका साथ देती है कि ये हारे चाहें जीते किन्तु ये समय कुसमय में हमारा साथ देगा!
जैसे - मुलायम सिंह जी सपा में कभी भी कोई भी निर्णय ले सकते हैं वे स्वतंत्र हाईकमान हैं ,इसी प्रकार बसपा में मायावती,नीतीशकुमार जी जद यू में,लालू प्रसाद जी जनतादल में,तृणमूल काँग्रेस में ममता बनर्जी जी ,अकाली दल में प्रकाश सिंह जी बादल ,इसी प्रकार उद्धव ठाकरे जी,राज ठाकरे जी ,ओम प्रकाश चोटाला जी ,शरद पवार जी,करुणा निधि जी , जय ललिता जी, नवीन पटनायक जी ,चन्द्र बाबू नायडू जी आदि और भी छोटे बड़े सभी दलों के हाईकमान अपनी अपनी पार्टी में सदैव सम्माननीय एवं प्रभावी बने रहते हैं चुनावों में उनकी हार जीत कुछ भी हो तो होती रहे किन्तु इनके सम्मान एवं अधिकारों में कटौती नहीं होती है ये स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बने रहते हैं उन्हें ही देखकर उनके स्वभाव को समझने वाली जनता यह समझकर वोट देती है कि ये हारें या जीतें किन्तु यदि हम इनका साथ देंगे तो ये हमारे साथ भी खड़े होंगे!इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता भी अपने हाईकमान को पहचानने लगते हैं कि ये जैसा कहेंगे इस पार्टी में रहने के लिए हमें वैसा ही करना होगा किन्तु जिन पार्टियों में हाईकमान गुप्त है वहाँ कार्यकर्ता भी चुप रहता है और समर्थक तो चुप ही रहते हैं।
भाजपा में ऐसा नहीं है यहाँ कब कौन किसका कब तक हाईकमान रहेगा फिर कब कौन किस कारण से कहाँ से हटाकर कहाँ फिट कर दिया जाएगा ये सब काम कौन क्यों कहाँ से किसकी प्रेरणा से कर रहा है या किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा से होता रहता है आम जनता इसे जानने की हमेंशा इच्छुक रहती है किन्तु किसी को कुछ बताने कि जरूरत ही नहीं समझी जाती है इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में कब क्या उथल पुथल चल रहा होता है जनता में से किसी को कुछ पता नहीं होता है।यहाँ तक कि बड़े बड़े कार्यकर्त्ता तक अखवार पढ़ पढ़ कर समाज को समझा रहे होते हैं कि अंदर क्या कुछ चल रहा है ,जैसे आम परिवारों में माता पिता की लड़ाई में बच्चों की स्थिति होती है न माता की बुराई कर सकते हैं और न ही पिता की न सच्चाई ही किसी को बता सकते हैं केवल मौन रहना ही उचित समझते हैं ये स्थति भाजपा के आम कार्य कर्ता की होती है जब हाईकमान हिलता है ।ऐसी बातों में सुधार की आवश्यकता दिखती है।
जिन जिन प्रदेशों में भाजपा किसी प्रांतीय हाईकमान को स्थापित करने में सफल हो गई है उन उन प्रदेशों में न केवल सफल हो गई है भाजपा अपितु अन्य सभी दलों पर भारी भी पड़ रही है।उसका मुख्य कारण संघ के विरक्त, बुद्धिमान, एवं राष्ट्रीय समर्पणवाले अत्यंत अनुभववान, ज्ञानवान ,समाजसाधकों से सुसेवित है भाजपा!ऐसा सौभाग्य भाजपा को छोड़कर किसी अन्य दल को नहीं मिला है जिसे अपने दल के विचारकों कार्यकर्ताओं के अलावा पीछे से विराट ऊर्जा देने वाला कोई आर.एस.एस. जैसा अति विशाल संगठन साथ दे रहा हो इसीलिए भाजपा की नियति, नीति, निर्णय एवं न्यायनिष्ठा सुदृढ़ सिद्धांतों से सम्बद्ध हैं इसलिए उनमें संदेह की कहीं कोई गुंजाईस ही नहीं है किन्तु उनका कार्यान्वयन उस प्रकार से नहीं हो पा रहा है जैसा होना चाहिए और जहाँ हो पा रहा है वे मध्य प्रदेश छत्तीस गढ़ आदि में मिल रही सफलता उसी के प्रमाण हैं किन्तु जिन प्रदेशों में प्रांतीय हाईकमान ही व्यवस्थित नहीं है उन प्रदेशों में आपसी कलह के कारण पिछड़ी है भाजपा !
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, विहार आदि में इसी परिस्थिति की शिकार भाजपा है !
Sunday, November 24, 2013
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से प्रश्न ! जरूर पढ़ें -
माननीय मनमोहन सिंह जी से विनम्र निवेदन !
आपके मंत्रिमंडल के द्वारा पास किए गए किसी बिल को बकवास बताते हुए राहुल गाँधी जी ने जिस दिन सरकार को लताड़ लगाई थी जिसके बाद सरकार का दिमाग कुछ ठनका और अपना बिल वापस ले लिया किन्तु शिक्षा से जुड़े होने के नाते व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में वो ढंग बहुत बुरा लगा हो सकता है कि सबको ही लगा हो या कुछ लोगों को अच्छा भी लगा हो मैं नहीं जानता !
आप जैसे सुयोग्य व्यक्ति के निर्णय को मीडिया के सामने जितने अपमान पूर्ण ढंग से न केवल नकारा गया अपितु बिना किसी ना नुकुर के आपको उस निर्णय से पीछे हटने के लिए बाध्य किया गया और आप बिना किसी सामाजिक प्रतिक्रिया के हटे भी !यह सब मैं क्या किसी भी आत्म सम्मान से जीने की ईच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए सुनना सहना सब कुछ बहुत कठिन था, हो सकता है कि आप ऐसी परिस्थितियों के पहले से ही अभ्यासी रहे हों किन्तु मीडिया के सामने पहली बार इस रूप में यह सब देखकर बुरा लगना स्वाभाविक था!इन परिस्थितियों से प्रकटे प्रश्नों को शिक्षित भारतीय नागरिक होने के नाते मैं सामजिक रूप से आपसे पूछना चाहता हूँ !
प्रधानमंत्री जी ! क्या कभी आपको ऐसा नहीं लगता कि आप अपने बल बूते पर यदि ग्राम प्रधानी का चुनाव भी जीतने की हैसियत नहीं रखते हैं तो फिर दूसरे के कह देने मात्र से आपको अचानक ऐसा क्यों लग गया कि आपको प्रधानमंत्री बन जाना चाहिए!यह कितना और कहाँ तक उचित है? जब सोनियाँ जी को ही देखकर लोग वोट देते हैं आपको तो देते नहीं हैं फिर आप बीच में क्यों टपक पड़ते हैं! इसलिए आप लोकतांत्रिक दृष्टि से चुने गए जनता के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री कैसे कहे या माने जा सकते हैं?
माना कि प्रधानमंत्री ऐसा नाम रखने के लिए सोनियाँ जी को तलाश थी किसी दबे- कुचले,लाचार बेचारे,स्वाभिमान विहीन और उनके प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति की,जिसका नाम प्रधानमंत्री रखकर वो इसी नाम से उसे पुकार सकें ताकि उनकी अपनी चौधराहट चलती रहे यहाँ तक तो ठीक है किन्तु उनकी आधीनता इस प्रकार से स्वीकार करने की आप की मजबूरी क्या थी मान्यवर ?
आप तो सुशिक्षित हैं लोग आपको ईमानदार मानते हैं और आप हैं भी!वैसे भी आप जैसे भले व्यक्ति के लिए ईश्वर का दिया हुआ इतना सुयश जीने के लिए पर्याप्त नहीं था क्या कि आपकी सरकार पर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लगे जिनमें कुछ मंत्रियों को जेल भी जाना पड़ा, फिर भी लोग आज भी आपकी ईमानदारी पर भरोसा करते हैं ?
आदरणीय प्रधानमंत्री जी ! आखिर क्या और कितना जरूरी था सोनियाँ जी के द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री नामकरण संस्कार में अकारण इस प्रकार से आपका आत्म समर्पण कर देना ?
खैर, और जो हो सो हो आप कुछ तो सोच कर ही सम्मिलित हुए होंगे किन्तु एक बात तो है ही कि यदि आप प्रधानमंत्री न बने होते तो आप में जो सद्गुण हैं उनके बल से आयु पूर्ण होने पर आप गौरव पूर्वक मर भी सकते थे किन्तु आप ऐसे लोगों के कुसंग का शिकार बने कि अब आपको वह सौभाग्य भी नसीब होते नहीं दिख रहा है !आपको भी इन बातों का पश्चात्ताप रहेगा ही !
आखिर ऐसा हो भी क्यों न !आपका बुढ़ापा था आपने तो चाटुकारिता पूर्वक या जैसे तैसे हाथ पैर जोड़ते हुए मानापमान सहकर भी काट लिया अपना बुढ़ापा प्रधानमंत्री कहलाकर ही सही !किन्तु आपके इस शासन काल में आपकी प्राशासनिक क्षमता के आभाव में जिनकी जवानी बर्बाद हुई वे आपको क्यों नहीं कोसेंगे आखिर दस वर्ष का समय थोड़ा तो नहीं होता आपकी अक्षमता के कारण बढ़ी महँगाई में जिन बच्चों का बचपन बर्बाद हुआ, मान्यवर! वे क्यों न कोसें आपको?जो बलात्कारों के शिकार हुए वे कैसे भूल जाएँ अपनी पीड़ा ?
आपकी कृपा पूर्ण अक्षमता से देश में बलात्कार ,भ्रष्टाचार आदि सब कुछ तो छाए रहे! सैनिकों के शिर काटे गए!क्या क्या नहीं हुआ आपके कलुषित शासन काल में ?महोदय, आपके रूप में सारे देश ने देखा है कि स्वाभिमान विहीन जब एक सुशिक्षित सिंह लाचार और बेचारा होता है तो उसके दुष्परिणाम किस किस रूप में भोगने पड़ते हैं देश और समाज को!धन्यवाद !!!
- डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
Friday, November 22, 2013
भाजपा का मुखिया कौन? कोई क्यों दे भाजपा को वोट ?
आखिर क्यों और कैसे बन जातीहै काँग्रेस की सरकार बार बार! और क्यों देखती रह जाती है भाजपा ?
कल मैंने किसी बड़े नेता के भाषण में सुना कि सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ काँग्रेस जैसी पार्टी की ही देन हैं !
मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ क्योंकि जब ये बात में सोचता हूँ तो एक सच्चाई सामने आती है कि काँग्रेस हमेशा से गलतियाँ करती रही है पहले जब भाजपा का हाईकमान हिलता नहीं था अर्थात हिमालय की तरह सुस्थिर था तब तक काँग्रेस का विरोध करने की क्षमता भाजपा में थी इसीलिए भाजपा आगे बढती चली गई !
किन्तु जब सर्व सम्मानित अटल जी एवं अडवाणी जी को संन्यास लेने की सलाहें अंदर से ही आने लगीं। इस पर उस समाज को भयंकर ठेस लगी जिसके मन में भाजपा का नाम आते ही अटल जी एवं अडवाणी जी सहसा कौंध जाया करते थे उसने सोचना शुरू किया कि यदि ये नहीं तो कौन?जनता को इसका उचित उपयुक्त एवं सुस्थिर जवाब अभी तक नहीं मिल सका है क्योंकि बार बार बनने बिगड़ने बदलने वाला निष्प्रभावी हाईकमान जनता को अभी तक मजबूत सन्देश देने में सफल नहीं हो सका है जो पार्टी में हार्दिक रूप से सर्वमान्य हो !
भारत वर्ष में एक ऐसी भी बड़ी पार्टी है जिसका हाईकमान सरस्वती नदी की तरह अदृश्य रहता है आखिर क्यों ? इसकी कीमत देश की जनता को बार बार चुकानी पड़ती है।इस पार्टी की कई वर्षों तक सरकार चलने के बाद भी भगवान् श्री राम के कार्य को भूल जाने के कारण लगता है कि उस पार्टी को शाप लगा है कि इसका हाइकमान हमेशा चलता फिरता रहेगा !
जहाँ तक काँग्रेस का हाईकमान तो विश्व विदित है । इस प्रकार से जनता हर पार्टी की हाईकमान एवं उसकी स्वाभाविक स्थिरता और विचारधारा पर भरोसा करके उसका साथ देती है कि ये हारे चाहें जीते किन्तु ये समय कुसमय में हमारा साथ देगा!
जैसे - मुलायम सिंह जी सपा में कभी भी कोई भी निर्णय ले सकते हैं वे स्वतंत्र हाईकमान हैं ,इसी प्रकार बसपा में मायावती,नीतीशकुमार जी जद यू में,लालू प्रसाद जी जनतादल में,तृणमूल काँग्रेस में ममता बनर्जी जी ,अकाली दल में प्रकाश सिंह जी बादल ,इसी प्रकार उद्धव ठाकरे जी,राज ठाकरे जी ,ओम प्रकाश चोटाला जी ,शरद पवार जी,करुणा निधि जी , जय ललिता जी, नवीन पटनायक जी ,चन्द्र बाबू नायडू जी आदि और भी छोटे बड़े सभी दलों के हाईकमान अपनी अपनी पार्टी में सदैव सम्माननीय एवं प्रभावी बने रहते हैं चुनावों में उनकी हार जीत कुछ भी हो तो होती रहे किन्तु इनके सम्मान एवं अधिकारों में कटौती नहीं होती है ये स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बने रहते हैं उन्हें ही देखकर उनके स्वभाव को समझने वाली जनता यह समझकर वोट देती है कि ये हारें या जीतें किन्तु यदि हम इनका साथ देंगे तो ये हमारे साथ भी खड़े होंगे!इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता भी अपने हाईकमान को पहचानने लगते हैं कि ये जैसा कहेंगे इस पार्टी में रहने के लिए हमें वैसा ही करना होगा किन्तु जिन पार्टियों में हाईकमान गुप्त है वहाँ कार्यकर्ता भी चुप रहता है और समर्थक तो चुप ही रहते हैं।
भाजपा में ऐसा नहीं है यहाँ कब कौन किसका कब तक हाईकमान रहेगा फिर कब कौन किस कारण से कहाँ से हटाकर कहाँ फिट कर दिया जाएगा ये सब काम कौन क्यों कहाँ से किसकी प्रेरणा से कर रहा है या किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा से होता रहता है आम जनता इसे जानने की हमेंशा इच्छुक रहती है किन्तु किसी को कुछ बताने कि जरूरत ही नहीं समझी जाती है इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में कब क्या उथल पुथल चल रहा होता है जनता में से किसी को कुछ पता नहीं होता है।यहाँ तक कि बड़े बड़े कार्यकर्त्ता तक अखवार पढ़ पढ़ कर समाज को समझा रहे होते हैं कि अंदर क्या कुछ चल रहा है ,जैसे आम परिवारों में माता पिता की लड़ाई में बच्चों की स्थिति होती है न माता की बुराई कर सकते हैं और न ही पिता की न सच्चाई ही किसी को बता सकते हैं केवल मौन रहना ही उचित समझते हैं ये स्थति भाजपा के आम कार्य कर्ता की होती है जब हाईकमान हिलता है ।
भाजपा के इस ऊहा पोह के दिशाभ्रम से बल मिलता है क्षेत्रीय पार्टियों को !ये केंद्र सरकार के विरुद्ध उठे जनाक्रोश को काँग्रेस का विरोध करके पहले कैस करती हैं और फिर काँग्रेस को ही बेच लेती हैं इस प्रकार से फिर से बन जाती है काँग्रेस की सरकार !भाजपा काँग्रेस को कोसती रह जाती है!
एक लड़की घर से बाहर निकली
…उसे गली के लड़कों ने छेड़ा
वो थाने गई
…उसे थानेदार ने छेड़ा
वो संसद गई
…उसे नेताजी ने छेड़ा
वो अदालत गई
…उसे जज ने छेड़ा
वो मीडिया के पास गई
…उसे संपादक ने छेड़ा
फ़ाइनली संसार से दुखी होकर वो बाबा की शरण में गई
…बाबाजी ने "सर्वजनहिताय" उसे जनहित में जारी किया और सपरिवार छेड़ा
अब बहस का मुद्दा ये है कि उस लड़की के घरवालों ने उसे घर से निकलने ही क्यों दिया!
…उसे गली के लड़कों ने छेड़ा
वो थाने गई
…उसे थानेदार ने छेड़ा
वो संसद गई
…उसे नेताजी ने छेड़ा
वो अदालत गई
…उसे जज ने छेड़ा
वो मीडिया के पास गई
…उसे संपादक ने छेड़ा
फ़ाइनली संसार से दुखी होकर वो बाबा की शरण में गई
…बाबाजी ने "सर्वजनहिताय" उसे जनहित में जारी किया और सपरिवार छेड़ा
अब बहस का मुद्दा ये है कि उस लड़की के घरवालों ने उसे घर से निकलने ही क्यों दिया!
Thursday, November 21, 2013
भाजपा को अपनी भी उचित आलोचनाएँ सुनने का धैर्य रखना चाहिए !
भाजपा की ओर से जो नेता प्रधानमंत्री पद के लिए जिसे प्रत्याशी बनाया जा चुका हो उसे क्षेत्रीय एवं प्रांतीय समस्याओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में वर्त्तमान सरकार फेल क्यों हुई यह गिनाना चाहिए साथ ही उनकी जगह यदि भाजपा होती तो वो देश एवं समाज के हित में यह सरकार इससे और अधिक अच्छे ढंग से कैसे चला सकती थी जनता भी तो समझे आपका व्यूह क्या है ?
रही बात उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव को सम्बोधित करते हुए यह कहना कि गुजरात की पेय जल पाइप लाइन में कार से जाया जा सकता है इतनी चौड़ी है यह कहकर किससे क्या कहने का प्रयास किया जा रहा है मान्यवर,आप अब केवल किसी प्रदेश के मुख्य मंत्री ही नहीं हैं आप एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी हैं !आप बजाए गुजरात के विकास कि बात करने के अपने पूर्व के महापुरुषों श्रीमान अटल जी एवं अडवाणी जी के नेतृत्व में चली गौरव पूर्ण ईमानदार विकास श्रेष्ठ सरकार की उपलब्धियाँ उस प्रकार से क्यों नहीं गिनाई जा रही हैं जिस प्रकार से उन्हें उपस्थित किया जाना चाहिए !उनकी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में चली अटल जी कि सरकार में उपलब्धियों का टोटा नहीं है कहने औरगिनाने के लिए बहुत कुछ है ।
राहुल जैसे लोगों पर टिपण्णी का काम किसी और पर छोड़ दिया जाना चाहिए ये प्रधान मंत्री प्रत्याशी का काम नहीं है ।
जो मुद्दे आम आदमी को पता हैं उन्हें उठाने का क्या लाभ
सरकार
भाजपा की ओर से जो नेता प्रधानमंत्री पद के लिए जिसे प्रत्याशी बनाया जा चुका हो उसे क्षेत्रीय एवं प्रांतीय समस्याओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में वर्त्तमान सरकार फेल क्यों हुई यह गिनाना चाहिए साथ ही उनकी जगह यदि भाजपा होती तो वो देश एवं समाज के हित में यह सरकार इससे और अधिक अच्छे ढंग से कैसे चला सकती थी जनता भी तो समझे आपका व्यूह क्या है ?
रही बात उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव को सम्बोधित करते हुए यह कहना कि गुजरात की पेय जल पाइप लाइन में कार से जाया जा सकता है इतनी चौड़ी है यह कहकर किससे क्या कहने का प्रयास किया जा रहा है मान्यवर,आप अब केवल किसी प्रदेश के मुख्य मंत्री ही नहीं हैं आप एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी हैं !आप बजाए गुजरात के विकास कि बात करने के अपने पूर्व के महापुरुषों श्रीमान अटल जी एवं अडवाणी जी के नेतृत्व में चली गौरव पूर्ण ईमानदार विकास श्रेष्ठ सरकार की उपलब्धियाँ उस प्रकार से क्यों नहीं गिनाई जा रही हैं जिस प्रकार से उन्हें उपस्थित किया जाना चाहिए !उनकी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में चली अटल जी कि सरकार में उपलब्धियों का टोटा नहीं है कहने औरगिनाने के लिए बहुत कुछ है ।
राहुल जैसे लोगों पर टिपण्णी का काम किसी और पर छोड़ दिया जाना चाहिए ये प्रधान मंत्री प्रत्याशी का काम नहीं है ।
जो मुद्दे आम आदमी को पता हैं उन्हें उठाने का क्या लाभ
सरकार
Wednesday, November 20, 2013
अन्ना एवं अरविन्द केजरी वाल के बीच बढ़ते विवाद के विषय में ज्योतिषीय सफाई !
कई बार बड़े लोगों के बीच मतभेद पनपने का कारण होता है ज्योतिष शास्त्र!जिसे हम न जानने के कारण अथवा ज्योतिष के नाम पर अयोग्य लोगों के संपर्क में रहने के कारण नहीं समझ पाते हैं ज्योतिष का महत्त्व ! अन्ना हजारे एवं अरविन्द केजरी वाल भी इसी योग के शिकार हुए हैं सबको सतर्क रहना चाहिए ! आप भी पढ़ें समझें और जानें ज्योतिष विज्ञान का महत्त्व !
अन्ना हजारे एवं अरविन्द केजरी वाल के बीच मतभेद का कारण केवल ज्योतिष है एक मात्र ज्योतिष !
जब ये सब लोग साथ साथ आंदोलन कर रहे थे तब जो आज चल रहा है इसके विषय में हमने सैकड़ों लोगों को पहले ही लेटर लिखे थे यहाँ तक कि अन्ना की आफिस में भी ये सब कुछ लिख कर लेटर भेजा था जो आज हो रहा है ! जिसका स्वीकृत फोन भी मेरे पास आया था,और भी मीडिया की लगभग सभी विधाओं के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में भी मैंने यह लेख भेजा था जिसे लेकर बल्कि शीला दीक्षित जी की आफिस में किसी ने शिकायत की थी कि ज्योतिषीय भ्रम फैलाया जा रहा है वहाँ से श्री वरुण कपूर जी का लेटर मेरे यहाँ आया था जिसमें इसी विषय में सफाई देने के लिए मुझे बुलाया भी गया था तो मैंने अपने शास्त्रीय से तर्क दिए थे जिससे संतुष्ट होकर ही उन्होंने इन बातों को आगे बढ़ाने में मौखिक सहमति दी थी !
इन सब बातों के बीच यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि मीडिया ने इसे सम्भवतः आम ज्योतिषीय बकवास समझ कर कोई महत्त्व नहीं दिया था ज्योतिष विज्ञान पर प्रमाणित अनुसन्धान करने वाले हमारे संस्थान को जब हर जगह से निराश होना पड़ा तब मैंने Swasth Samaj नाम से एक Blog बनाया उसमे सबसे प्रारम्भ में अन्ना हजारे एवं अरविन्द केजरी वाल के आपसी सम्बन्धों के विषय में ये लेख प्रकाशित किया था !जो अभी भी ब्लॉग में इस नाम से ही पड़ा है -
Thursday, 18 October 2012
1.Anna Arvind me aapasi duri kyon ?
2. क्यों बिगड़े अन्ना और अरविन्द के आपसी सम्बन्ध!
विस्तार पूर्वक पढने के लिए इन लेखों को गूगल पर इन्हीं नामों से सर्च किया जा सकता है !
भिन्न भिन्न समयों में इसी विषय में ब्लॉग पर ही हमने अनेकों लेख प्रकाशित किए हैं जिसने पढ़े होंगे उन्हें पता होगा यद्यपि सैकड़ों बार पढ़े गए हैं ।
इसी बीच विशेष बात एक और हुई जब अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई किन्तु उसी ज्योतिषीय दोष के कारणअरविन्द केजरीवाल के लिए आम आदमी पार्टी अनुकूल नहीं है इसके लिए मैंने फिर से अपने ब्लॉग में इस विषय पर कई लेख प्रकाशित किए हैं जैसे -
Friday, 29 March 2013
आम आदमी पार्टी बनते ही अरविन्द का करिश्मा समाप्त ?
आम आदमी पार्टी और अरविन्द जी एवं ज्योतिष
http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_8869.html
ज्योतिषीय दृष्टि से कहा जा सकता है कि अरविन्द जी की प्रतिष्ठा समाप्त करने के लिए ही आम आदमी पार्टी का निर्माण हुआ है! इसमें ज्योतिषीय एक बड़ी कमी छूटने के कारण ही जबसे आम आदमी पार्टी बनी है तब से अरविन्द जी कि प्रतिष्ठा दिनों दिन घटती ही जा रही है हाल में अन्ना और अरविन्द के बीच उठे विवाद को भी इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए !
Tuesday, November 19, 2013
वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के जन्म दिवस पर कोटिशः नमन !
क्षमा याचना के साथ विनम्र निवेदन !
माते !आपने जिस देश प्रेमी भावना से भारत वर्ष की गौरवमयी अस्मितता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी आज उसी भारत वर्ष की मर्यादाएँ उन्हीं अपनों के द्वारा तार तार की जा रही हैं! जिन फिरंगियों से लड़ते लड़ते आप घायल होकर जिन महात्मा जी की कुटिया के पास गिरी थीं और प्राण त्यागने से पहले आपने महात्मा जी से कहा था कि फिरंगी हमारा पीछा कर रहे हैं वो घोड़े पर सवार हैं आ ही रहे होंगे आप मेरे शरीर को फिरंगियों से स्पर्श मत होने देना यह कह कर आपने प्राण छोड़ दिए थे आप कि इच्छा पूर्ति के लिए उन महात्मा जी ने अपनी कुटिया में ही आग लगा दी थी तब तक घुड़ सवार अंग्रेज सैनिक आ गए किन्तु वे आपके पावन शरीर को छू भी नहीं पाए थे उस आग में जलकर आपका शरीर पञ्च तत्व में विलीन हो गया था !
फिरंगियों के स्पर्श से आपके शरीर को तो बचा लिया गया था किन्तु हमें माफ करना हम आपके दुलारे भारत को नहीं बचा पाए फिरंगियों के स्पर्श से !आज भी जैसा वो चाह रहे हैं वैसा ही कर रहे हैं!वैसा ही देश में हो रहा है !
सरकारें जब बनाई जाती है तो नेताओं के अयोग्यता प्रमाण पात्र मँगाए जाते हैं जो जिस विषय में जितना अधिक अयोग्य होता है उसे उस विषय का उतना बड़ा पद दे दिया जाता है जैसे घपले घोटाले के कारण जिसकी देश में बदनामी होती हो उसे विदेशमंत्री बना दिया जाता है ,जो कभी चुनाव न जीत सकता हो उसे प्रधान मंत्री बना दिया जाता है जिसे कभी किसी ने बोलते न सुना हो उसे लोक सभा स्पीकर बना दिया जाता है जिसका प्रदेश की राजनीति से आगे कोई राष्ट्रीय प्रवेश ही न रहा हो उसे राष्ट्रपति इसी प्रकार और भी सारे पद लिए दिए जा रहे हैं ।
जिन पर समस्त पूर्वजों समेत आप को बड़ा सहारा था आज आपके देश में बनावटी नेता और बनावटी बाबा देश को लूट लूट कर अपने अपने घर एवं आश्रम भर रहे हैं बलात्कार जैसे अपराधों में बड़े बड़े लोग फँसते दिखाई दे रहे हैं भ्रष्टाचार तो धर्म ,राजनीति और व्यापार का अंग सा बनता जा रहा है। सरकारी नौकरी उन्हें दी जा रही हैं जो या तो कम करने लायक नहीं हैं या काम करना नहीं चाहते हैं या काम करते नहीं हैं जो काम करते भी हैं उन्हें भी रोका जा रहा है सरकारी स्कूलों को शिक्षा मुक्त रूप में संचालित किया जा रहा है किसी की कहीं कोई जवाब देही नहीं है ।
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
Monday, November 18, 2013
यह राजनैतिक टुच्चापन लोकतंत्र के लिए घातक है !!!
आरक्षण जैसी भिक्षा की आधीनता कैसी और क्यों ?
दलितों और अल्प संख्यकों को बेवकूप बनाने का ये खेल काँग्रेस साठ वर्षों से खेल रही है किन्तु दलितों और अल्प संख्यकों को समझ में क्यों नहीं आ रहा है ?कि जब सारे देश के लोग इस लोकतंत्र में सामान अधिकार रखते हैं सब के लिए कानून बराबर है सबके सबसे सामान सम्बन्ध हैं सबको अपनी अपनी इच्छानुसार व्यापार करने की स्वतंत्रता है फिर आरक्षण जैसी भिक्षा की आधीनता कैसी और क्यों ?क्यों नहीं उतार कर फ़ेंक देते हैं यह दैन्यता पूर्वक आरक्षण के लिए गिड़ गिड़ाने की आदत और लोभ ?आखिर नेताओं के दिमाग में दलितों और अल्प संख्यकों की क्यों बना दी गई है भिखारियों जैसी इमेज ?नेता लोग चुनावों के समय जब वोटों को माँगने के लिए निकलते हैं तो हर भाषण में गिना रहे होते हैं अपनी अपनी दी हुई भीखें !हमने भोजन की गारंटी दी है हम केंद्र से पैसा भेजते हैं दलितों और अल्प संख्यकों की हमें बहुत चिंता है!
सभी देश वासियो का कर्तव्य है कि इन लोभ देने वाले नेताओं को दुदकार कर कह देना चाहिए माँ भारती की कोख से जन्म लेने वाला हर बच्चा भाई भाई होता है और भाइयों के रहते यहाँ कोई अल्प संख्यक और दलित कैसे हो सकता है ?जहाँ तक बात गरीबत की है वो सभी जातियों वर्गों समुदायों सम्प्रदायों में है किन्तु गरीब केवल गरीब होते हैं वे अल्प संख्यक और दलित नहीं होते !किसी भी सच्चे प्रशासक को प्रजा प्रजा में भेद करना शोभा नहीं देता है यह राजनैतिक टुच्चापन लोकतंत्र के लिए घातक है !!!
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक- राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
Saturday, November 16, 2013
खिलाड़ियों के भगवान की विदाई देख सैनिकों की याद आई !
खिलाड़ियों और सैनिकों की तुलना करने पर किसी को बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ !
देश के लोगों का जो समर्पण खेल ,खेलों और खिलाडियों के एवं फ़िल्म से जुड़े लोगों के प्रति होता है काश! कम से कम उतना ही समर्पण राष्ट्र के प्रति समर्पित वीर सैनिकों के प्रति भी होता तो क्यों झेलना पड़ता देश को आतंक वाद का कठिन दंश !
विदेशों से जब खिलाड़ी खेलों में जीत कर आए होते हैं तो प्रधान मंत्री जी,मुख्यमंत्री जी फिल्मोद्योग से जुड़े लोग एवं बड़े बड़े उद्योग पति सब लोग कुछ न कुछ देने घोषणा कर रहे होते हैं !
किन्तु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में शहीद हुए वीर सैनिकों के लिए यह जोश क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ?जब उन सैनिकों के दुध मुए बच्चों के दूध की व्यवस्था एवं भविष्य सुधारने की व्यवस्था करने के लिए सरकारी आफिसों के चक्कर काटती फिरती हैं सैनिकों की विधवाएँ! उन्हें देखकर इन जोशीले नेताओं एवं धनियों की आत्माएँ इनको क्यों नहीं धिक्कारती हैं इनकी कुंद जबान से क्यों नहीं निकलता कि देवी ! तुम घर बैठो तुम्हारे बच्चों समेत तुम्हारे परिवार की चिंता हम उद्योग पतियों और सरकारों पर छोड़ दो !
उनमें से जिन सैनिकों के परिजनों के लिए पेट्रोल पम्प देने की घोषणा सरकारों के द्वारा की भी जाती है उन्हें वे मिलते भी हैं कि नहीं है कोई देखने या पूछने वाला? उनकी विधवाओं को कागजों फाइलों अफ्सरों के नाम पर कितने चक्कर कटवाए जाते हैं वे छोटे छोटे बच्चे लेकर भटका करती हैं एक आफिस से दूसरी आफिस दूसरी से तीसरी आदि आदि !कितनी निर्दयता का व्यवहार होता है उनके साथ ?
जब किसी खिलाड़ी भगवान की खेल जगत से बड़े धूम धाम पूर्वक विदाई देखता हूँ जिसमें बड़ी बड़ी स्वर कोकिलाओं के द्वारा प्रशंसा की गई होती है फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े बड़े महापुरुष वहाँ पहुँच जाते हैं बड़े बड़े तथाकथित युवराज ,मुख्य मंत्रियों समेत राजनैतिक जगत के बड़े बड़े भाग्य विधाता पहुँचकर उस अवसर पर शोभा बढ़ा रहे होते हैं बहुत अच्छा लगता है यह सब देखकर !
दूसरी ओर राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों के शिर काट लिए जाते हैं बिना शिरों के शव पहुँचते हैं परिजनों के पास उस दुःख की घड़ी में कोई नहीं पहुँचता है उन प्रणम्य शहीद वीर सैनिकों के परिजनों को ढाढस बँधाने !यदि आत्मा का विज्ञान सच है तो यह सब देखकर उन शहीद सैनिकों की आत्माओं को कितना बड़ा आघात लगता होगा ?
क्या तुलना नहीं की जानी चाहिए एक खिलाडी की खेल जगत से की गई धूम धाम से विदाई, दूसरी ओर राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों की इस संसार से विदाई में बेरुखाई ही बेरुखाई!क्या किसी को नहीं लगना चाहिए कि सैनिकों के परिजनों को न कुछ और तो सांत्वना ही दे आएँ !
याद रखिए कि खेल कूद और नाच गाना आदि सारा मनोरंजन तभी तक अच्छा लगता है जब तक असंख्य सैनिक देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीना लगाए खड़े हैं ,उन्हें भी बूढ़े माता पिता ,जवान पत्नी एवं छोटे छोटे बच्चों की याद आती होगी! प्रिय परिजन, पुरबासी, खेत -खलिहान समेत सभी स्मृतियाँ उन्हें भी सोने नहीं देती होंगी किन्तु राष्ट्र रक्षा की प्रबल भावना ने उन्हें बाँध रखा होता है देश की सीमा पर और यों ही बीत जाते हैं उनके सारे तिथि त्यौहार,सारे गाँव , घर खानदान के उत्सव !
अपने प्रिय देश वासियों से मेरी प्रार्थना यही है कि सैनिकों के महान त्याग और बलिदान का सम्मान भी देश में कम से कम उतना तो हो ही जितना किसी और का होता है !!!
(इस कारगिल विजय नामक काव्यात्मक पुस्तक की प्राप्ति के लिए हमारा वर्तमान पता है-)
( K -71, Chhachhi Building Chauk, Krishna Nagar Delhi -51. Mo.9811226973)
पांचजन्य में प्रकाशित अंश
Counseling psychology परामर्श मनोविज्ञान और ज्योतिषीय समाधान
अनंत काल से चली आ रही मनुष्यों की विभिन्न प्रकार की समस्याएँ होती हैं मनुष्य का स्वभाव है कि वो उनसे मुक्त होना चाहता है किन्तु जानकारी के आभाव में वो उन्हीं में उलझता चला जाता है इसमें वैसे तो कई प्रकार की समस्याएँ होती हैं किन्तु कुछ ऐसी होती हैं जो जीवन के किसी महत्वपूर्ण क्षेत्र को रोक कर खड़ी हो जाती हैं !जैसे -शिक्षा का क्षेत्र - आजकल के महत्वाकाँक्षी जीवन में लोग अपने अपने अपने मन के सब्जेक्ट बच्चों पर थोप दिया करते हैं जबकि बच्चे का मन उस सब्जेक्ट में लग नहीं रहा होता है तो वो या तो पढ़ नहीं पाता है या फिर आधी अधूरी रूचि से पढ़ता है तो सफलता भी उसीप्रकार की मिल पाती है। इसी प्रकार से एक परिस्थिति और बनती है जब कोई छात्र आज जो विषय पढ़ रहा होता है उस विषय में उसका कैरियर बन ही नहीं सकता क्योंकि जिस समय पढ़ाई हुई थी उस समय ज्योतिष का प्रभाव कुछ और था और जब कैरियर बनने का समय आया तब तक वो समय बदल चुका होता है इसलिए उसे उस समय एक अजीब सा मति भ्रम बना होता है जिसके निराकरण के लिए किसी किसी प्रमाणित विश्व विद्यालयों से प्रापर ढंग से ज्योतिष के क्षेत्र में उच्च डिग्रियाँ हासिल किए हुए किसी अच्छे ज्योतिष वैज्ञानिक से मिलकर आपको अपनी समस्याओं का विधिवत निराकरण करवाना चाहिए
परामर्श मनोविज्ञान से जुड़ी समस्याएँ ही समस्याएँ
जब तक किसी के विषय में मनो विज्ञान यही एक मात्र भावना है
" मनोवैज्ञानिक "और" मनोचिकित्सक "अक्सर चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है जो किसी को वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है. मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों के आचरण जबकि दोनों मनोचिकित्सा और अनुसंधान, दो व्यवसायों के बीच महत्वपूर्ण मतभेद हैं.
मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ हैं -
असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology)
जीववैज्ञानिक मनोविज्ञान (Biological psychology)
नैदानिक मनोविज्ञान (Clinical psychology)
संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology)
सामुदायिक मनोविज्ञान (Community Psychology)
तुलनात्मक मनोविज्ञान (Comparative psychology)
परामर्श मनोविज्ञान (Counseling psychology)
Critical psychology
विकासात्मक मनोविज्ञान (Developmental psychology)
शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology)
विकासात्मक मनोविज्ञान (Evolutionary psychology)
आपराधिक मनोविज्ञान (Forensic psychology)
वैश्विक मनोविज्ञान (Global psychology )
स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health psychology)
औद्योगिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान (Industrial and organizational psychology (I/O))
विधिक मनोविज्ञान (Legal psychology)
Occupational health psychology (OHP)
व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality psychology)
संख्यात्मक मनोविज्ञान (Quantitative psychology)
मनोमिति (Psychometrics)
गणितीय मनोविज्ञान (Mathematical psychology )
सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology )
विद्यालयीन मनोविज्ञान (School psychology)
पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental psychology)